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________________ ६५८ निभ-निविट्ठ निभ (निभ) ज ३।१०६ निरुवक्कमाउय (निरुपक्रमायुष्क) प६।११५,११६ निमज्जग (निमज्जक) उ ३१५० निरुवलेव (निरुपलेप) ज २१६८ निमित्त (निमित्त) उ ११४१,४३ निरुवहय (निरुपहत) उ ३।३२ निम्मंस (निर्मास) उ ११३५ निरोदर (निरुदर) ज २१५ निम्मम (निर्मम) प २१६४।१ निलाड (ललाट) उ १।२२,११५,११७,१४० निम्मल (निर्मल) प २।३१,४१,४६,५६.६३,६४ ।। निवइय (निपतित) ज ३।२५,३८,४६ ज ७१७८ निवज्जाव (नि+सादय) निवज्जावेइ उ ११४६ नियग (निजक) ज २।९३ उ १११६,१३६, ३३५०, निवज्जावेत्ता (निष द्य) उ १।४६ ९८,११०,१११,१२८,४।१३,१६,१८ निवडिय (निपतित) उ ११२२,१४० नियत्त (निकृत्त) उ १।२३,६१ निवड्ढेत्ता (निवर्ध्य) ज ७।२७ नियत्थ (दे०निवसित) उ ३१५१,५३,५५,६३,६७, निवड्ढेमाण (निवर्धयत् ) ज ७।२५,२७,३० ७०,७३ सू १२० नियम (नियम) प६।११६१०१६,२१,१११५५ निवत्त (निवृत्त) उ ११६३ २१।१०३ ; २२।५० से ५२,६७,२७।२ निवयउप्पय (निपातोत्पात) ज ५१५७ उ ३।३१ निवह (निवह) ज २१६५,३।६३,१५७,१६३ नियमसो (नियमशस्) प २।६४।११ निवार (नि+वारय्) निवारेंति उ ३।११७ नियमा (नियमा) ज ७।४८ निवारिज्जमाण (निवार्यमाण) उ ३।११८ नियल (निगड) उ ११६५,६६,६८,७२,८८,६२ निवुड्ढित्ता (निवर्ध्य) सू १।१४ निरंगण (निरङ्गण) प ११२५ निवुड्ढेत्ता (निवi) सू ६।१ निरंजण (निरञ्जन) ज २१६८ निवुड्ढेमाण (निवर्धमान) सू १।१४,२१,२७,२।३; निरंतर (निरन्तर) १६.४७ से ५८,१०६,११०% १०।३५ से ३६,४१ से ५३,१११७०,२०।१६, रोदन ३० ४४,६०; २२।११,२७,५३, ३६।२४ ज ५१५,७, निवेस (निवेश) प १७४ ज ३।१८,६१,६६, निरय (निरय) प २११,१० ज २११३३ १३१,१३७ उ १११३३,१३४ निरयगति (निरयगति) प ६।१,६ निवेसिय (निवेशित) उ ३६८ निरयपत्थड (निरयप्रस्तर) प २।१ निव्वत्त (निर्वत्त) प २१६७।१ ज ३।१४,४३,१४६ निरयावलिया (निरयावलिका) प २।१,१० उ १२५ निव्वत्तणया (निर्वर्तन) प ३४।१,२,३ से ८,१४२,१४३,१४८, २।१५।४५ निव्वत्तणा (निर्वर्तना) प १५१६०,६५ निरयावास (निरयावास) प २।२५ निव्वत्तणाहिकरणिया (निर्वर्तनाधिकरणिकी) निरवकंख (निरवकाङ्क्ष) ज २०७० प२२।३ निरवयव (निरवयव) उ ३७६ निव्वत्ति (निर्वृत्ति) प ११४८॥५३ निरवसेस (निरवशेष) प३४।२१ ज ४।१६०,२७७ निवाघाइय (निाघातिक) ज ७।१८२ उ१११४७ निव्वाघातिम (नि घातिन्,निर्व्याघातिम) निरालंबण (निरालम्बन) ज २१६८ सू १८।२० निरालोय (निरालोक) उ ११२२,१४० निव्वाघाय (निाघात) ज २१७ ज ३।२२३ निरावरण (निरावरण) ज ३।२२३ निम्विट्ठ (निर्विष्ट) ज ३।३२।१,२२१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003555
Book TitleUvangsuttani Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages1178
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size22 MB
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