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________________ १०३४ वग्ग-वट्टमाण ३,४५ १२६१६।३२,१७।५८,२०५६ से ५८; विग्ग (वल्ग) वग्गति ज ५१५५ २२।२५,२३।१६१,१६७; २४।१३,२५।३; वग्गण (वल्गन) ज ३।१७८ २६।४।२८।११२,१२३,१२६,१२७,१२६, वग्गणा (वर्गणा) प १११७२,१७।११४११.१४२ १३२,१३३,१३७ से १४१,१४३ ज २१७०, वग्गमूल (वर्गमूल) प १२।१२,१६,२७,३१,३२,३८ १३१,३।६,४।१७७,२१०,२४०,२४८,५।१३, वग्गु (वल्गु) प २१६४।१५ ज २१६४;३।१८५, . ४६,५२।१ २०६४।२१२,४।२१२॥३,५१५८ वज्ज (वाद्य) ज ५१५७ वग्गु (वाच) उ ११४१,४४ वज्जकंदय (वज्रकंदक) प १७११३० वग्गुरा (वागुरा) उ ५।१७ वज्जण (वर्जन) प १११०१३ वग्गुलि (वल्गुलि) प ११७८ वज्जणिज्ज (वर्जनीय) ज ११४६ वग्घ (व्याघ्र) प ११६६,१११२१ ज २१३६,१३६ वज्जपाणि (वज्रपाणि) ५२।५० ज ५१८,४६,६६ वग्घमुह (बाघ्रमुख) प ११८६ वज्जमाण (वाद्यमान) उ १११३८ वग्घारिम (दे०) ज ३८८ वज्जरिसभणाराय (वनऋषभनाराच) ज ११५; वग्घारिय (दे०) प २।३०,३१,४६ ज २१७,८८, २१४६ ११७ वज्जरिसहणाराय (वज्रऋषभनाराच) ज २।१६,८६ वग्यावच्च (व्याघ्रापत्य) ज ७।१३२१४ सू १०।११६ वज्जरिसहनाराय (यज्र ऋषभनाराच) सू ११५ वग्घी (व्याघ्री) प ११।२३ वज्जसंठिय (वज्रसंस्थित) प ११३० वच्च (वच्) वच्चंति ज ७।१३५।२,३ वज्जसूलपाणि (वज्रशूलपाणि) ज ५१५७ विच्च (व्रज्) वच्चइ सू ११६ वज्जिऊण (वर्जयित्वा) प २।२७।३ वच्छ (वक्षस्) प २।३०,३१,४१,४६ ज ३।३,६, वज्जित्ता (वर्जयित्वा) प २।२२,३२,३४ ज ४।१३४ ६,१८,६३,१८०,२२१,२२२:५।२१।। वज्जिय (वजित) प १०।१४।६ ज ५१५२ सू २०१७ वच्छ (वत्स) प ११६३।४ ज ४।२०१,२०२।१,२४८ वज्जेत्ता (वजयित्वा) प २।२१,२३ से २७,३०, वच्छगावई (वत्सकावती) ज ४।२०२।१ ३१,३३,३५,३६,४१ से ४३,४६ वच्छमित्ता (वत्स मित्रा) ज ४।२०४,२३८,५१६ वज्झ (वधा) ज ३।६२,११६ वच्छल (वत्सल) प ३।१२५; ५।५,४६ वज्झार (वर्धकार) प १६७ वच्छल्ल (वात्सल्प) प १।१०१।१४ वज्झियायण (वध्यापन) ज ७।१३२।४ सू १०।११८ वच्छाणी (वत्सादनी) प ११४०।४ सू १०।१२० विट्ट (वृत्) व ति उ ३।३३ वट्टति प १६।२२ गजपीपल, गुडूची वट्ट (वृत्त) प ११४ से ६,११६३।५,२।२० से २७, वच्छावई (वत्सावती) ज ४।२०२ ३० से ३६,४१ से ४३;१०।१५,२६,३६।८१ वज्ज (वज्र) ५११४८७ वज्रकंद, कोकिलाक्षवृक्ष, ज १७,३१,२।१५,३।७,८८,११७,४।३,२५, तालमखाना ६७,११४,१२८,२३४,२४०,२४१,५।५,४३; वज्ज (वर्जय) वज्जेज्ज प १०।१४।४ ७।३१,३३,१६७,१७८ सू १११४;४।३ से ७%; बज्ज (वज्र) ज २०१५ १०।७४; १६।२,६,६,१२,१६,२८,३२,३६ वज्ज (वयं) प २१४०।५,२१५२,६।४६,५६,६६, वडग (वर्तक) प ११७६ ज ५।१६ ८६,६४,९५,१०२,१०४;१०।३६११॥४१,८०, वट्टगमंस (वर्तकमांस) १०११२० कमलकंद ८४१२।३,१३।२२।२,१५४९८,११५,१२१, वट्टमाण (वर्तमान) प २।३१ ज २१७१३।१३८, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003555
Book TitleUvangsuttani Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages1178
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size22 MB
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