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________________ ८६४ गिण्ह-गुत्ति गिण्ह (ग्रह.) गिण्हइ ज ५१६०,६६ उ ११५७ गिण्हति ज ५।१४,१७,५५ उ ११४५ गिण्हह उ ११४४ गिण्हेइ उ ११४८ गिण्हउकाम (ग्रहीतुकाम) उ १।१०५ गिण्हमाण (गृह णत्) प १११७० गिण्हित्तए (ग्रहीतुम्) उ १।११६ गिण्हित्ता (गृहीत्वा) ज ५।१४ सू २०।२ उ १।४५ गिण्हेऊणं (गृहीत्वा) उ ३१६८ गिण्हेत्ता (गृहीत्वा) उ ११४८ गिम्ह (ग्रीष्म) ज २१६४,७०,७।१६४,१६७ सू ८।११०७१ से ७४;१२।१४ उ ५१२५ गिरिकुमार (गिरिकुमार) ज ३।१३३,१३६ गिरा (गिरा,गिर्) ज २।१५ गिरि (गिरि) ज २।१५,६५,१३१,१३३,१३४; ३।३२,७६,७७,१०६,१२६।४,१२८,१३८, १५१,१७०,१८५,२०६,२२१,४।२३४,२४० गिरिकण्णइ (गिरिकर्णी) प १४०।५ अपराजिता गिरिदरी (गिरिदरी) ज ३।१०६ गिरिराय (गिरिराज) ज ४।२६०११ सू ५।१ गिरिवर (गिरिवर) ज २१६५,३।३,८८ गिल्लि (दे०) ज १३३ गिह (गह) ज ३।३२,१८३,१८६ उ ११४२,४४, १०८:३।२६,१००,१०१,१३१,१४१,१४८; ४।१२,१५ गिहिलिंगसिद्ध (गहलिङ्गसिद्ध) प १११२ गीत (गीत) प २।३०,३१,४१ सू१८।२३; १६।२३,२६ गीतजस (गीतयशस्) प २।४५,४५।२ गीतरति (गीतरति) प २१४५ गीय (गीत) प २।४१,४६ ज ११४५,२१६५%, ३८२,१८५,१८७,२०४,२०६,२१८,५१, १६७५५,५८,१८४ गीयरइ (गीतरति) प२।४५२ गोवा (ग्रीवा) ज २०१५ गुंजंत (गुञ्जत्) ज २०१२ गुंजद्ध (गुजार्ध) ज ३।३५,१८८ गुंजद्धराग (गुजार्ध राग) प १७१२६ गुंजालिया (गुजालिका) प २।४,१३,१६ से १६, २८,१११७७ गुंजावल्ली (गुञ्जावल्ली) प ११४०।४ चूंघची गुंजावाय (गुञ्जावात) प १।२६ गुच्छ (गुच्छ) प ११३३।१,३७, ११४८।६,६१ ज२।१२,१३१,१४४,१४६ उ ५१५ गुच्छवहुल (गुच्छबहुल) ज ११८ गुज्झ (गुह्य) उ ३।११ गुझंतर (गुह्यान्तर) ज ४।२१ गुण (गुण) प २१६४।१३,१७,५।३६ से ३८,५८ से ६०,७३ से ७५,८८ से १०,१०६ से १०८, १४६,१५०१५।१४ से १६,२७,२८,३२,३३, ५७; २०१७,१८,३४,२८।२०,२६,३२,६६; ३४।२० ज २।१५,६५, ३।३,३२,११७।१, ११६,१८६,२०४,२०६; १५६,६८,७० गुणड्ढ (गुणाढ्य) ज ३।३२।१ गुणनिप्फण्ण (गुणनिष्पन्न) उ ११६३ गुणरयण (गुणरत्न) ज ५।५८ गुणसिलय (गुणशिलक) उ १११,२,३४,२१,२४, ८६,१५५,१६८,४।४,६,१३,१८ गुणसेढि (गुणश्रेणि) प ३६।१२ गुणसेढीय (गुणश्रेणिक) प ३६।९२ गुणहर (गुणधर) ज ३३१२६।१ गुणित (गुणित) सू १६।२२।२६ गुणिय (गुणित) ज २१६ गुणेत्ता (गुणयित्वा) ज ७।३१ सू ४।४,७ गुणोववेय (गुणोपेत) ज २११४ । गुप्त (गुप्त) प २।३०,३१,४१ ज २१६८,३३५ गुत्तबंभयारि (गुप्तब्रह्मचारिन् ) ज २१६८ उ २१६% ३।१३,८६,१०२,११३,११५,१४६,१६०%3; ४।२०,२२, ५।२७,३८,४३ गुत्ति (गुप्ति) प ११०१।१० ज २७१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003555
Book TitleUvangsuttani Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages1178
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size22 MB
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