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________________ पढमं पण्णवणापयं ५ निद्धफासपरिणता वि लुक्खफासपरिणता वि, संठाणओ परिमंडल संठाणपरिणता वि ठाणपरिणता वितंसंसंठाणपरिणता वि चउरंससंठाणपरिणता वि आयतसंठाणपरिणता २० । वि जेवणओ नीलवण्णपरिणता ते गंधओ सुब्भिगंध परिणता' वि दुब्भिगंध परिणता वि रसओ तित्तरसपरिणता वि कडुयरसपरिणता वि कसायरसपरिणता वि अंविलरसपरिणता वि महररसपरिणता वि, फासओ कक्खडफासपरिणता वि मउयफासपरिणता वि गरुयफासपरिणता विलहुयफासपरिणता वि सीतफासपरिणता वि उसिणफासपरिणता वि निद्धफासपरिणत विक्खफासपरिणता वि, संठाणओ परिमंडलसंठाणपरिणता वि वट्टसंठाणपरिणता वि तंससंठाणपरिणता वि चउरंससंठाणपरिणता वि आयतसंठाणपरिणता वि २० । जेवणओ लोहियणपरिणता ते गंधओ सुब्भिगंधपरिणता वि दुब्भिगंधपरिणता वि, रसओ तित्तरसपरिणता वि कड्यरसपरिणता वि कसायरसपरिणता वि अंबिलरसपरिणता वि महुररसपरिणता वि, फासओ कक्खडफासपरिणता विमउयफासपरिणता वि गरुयफासपरिणता विलहुयफासपरिणता वि सीतफासपरिणता वि उसिणफासपरिणता वि निद्धफासपरिणता वि लुक्खफासपरिणता वि, संठाणओ परिमंडल संठाणपरिणता वि वसंठाणपरिणता व तंससंठाणपरिणता वि चउरंससंठाणपरिणता वि आयतसंठाणपरिणता वि २० । जेवणओ हालिद्दवण्णपरिणता ते गंधओ सुब्भिगंधपरिणता वि दुब्भिगंध परिणता सओ तित्तरसपरिणता वि कडुयरसपरिणता वि कसायरसपरिणता वि अंबिलरसपरिणता वि महुररसपरिणता वि, फासओ कक्खडफासपरिणता वि मउयफासपरिणता गरुयफासपरिणता विलहुयफासपरिणता वि सीतफासपरिणता वि उसिणफासपरिणता व निद्धफासपरिणता वि लुक्खफासपरिणता वि, संठाणओ परिमंडल संठाणपरिणता वि वठाणपरिणता वि तंसंसंठाणपरिणता वि चउरंसंसंठाणपरिणता वि आयतसंठाणपरिणता वि २० । जे वण्णओ सुक्किलवण्णपरिणता ते गंधओ सुब्भिगंधपरिणता वि दुब्भिगंधपरिणता वि, रसओ तित्तरसपरिणता वि कडुयरसपरिणता वि कसायरसपरिणता वि अंबिलरस - परिणता वि महुररसपरिणता वि, फासओ कक्खडफासपरिणता वि मउयफासपरिणता गरुफासपरिणता विलहुयफासपरिणता वि सीयफासपरिणता वि उसि फासपरिणता वि निद्धफासपरिणता वि लुक्खफासपरिणता वि, संठाणओ परिमंडलसंठाणपरिणता वि ठाणपरिणता वितंसंसंठाणपरिणता वि चउरंससंठाणपरिणता वि आयतसंठाणपरिणता वि २०।१०० ।। ६. जे गंधओ सुब्भिगंधपरिणता ते वण्णओ कालवण्णपरिणता वि णीलवण्णपरिणता लोहवण्णपरिणता वि हालिद्दवण्णपरिणता वि सुक्किलवण्णपरिणता वि, रसओ तित्तरसपरिणता विडुयरसपरिणता वि कसायरसपरिणता वि अंबिलरसपरिणता वि १. सुरभि ( ग ) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003555
Book TitleUvangsuttani Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages1178
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size22 MB
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