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________________ सत्तरसमं लेस्सापयं २३१ जीए इ वा अंजणे इ वा खंजणे इ वा कज्जले इ वा गवले इ वा 'गवलवलए इ वा " जंबूफले इ वा अद्दारिट्ठए' इ वा परपुट्ठे इ वा भमरे इ वा भमरावली इ वा गयकलभे इ वाहिकेसरे' इवा आगासथिग्गले इ वा किण्हासोए इ वा किण्हकणवीरए इ वा किण्हबंधुजीवए इ वा भवेतारूवा ? गोयमा ! णो इणट्ठे समट्ठे, किण्हलेस्सा णं एत्तो अणिट्टतरिया चेव अकंततरिया चेव अप्पियतरिया चेव अमणुण्णतरिया चेव अमणामतरिया चेव वण्णेणं पण्णत्ता ॥ १२४. णीललेस्सा णं भंते ! केरिसिया वण्णेणं पण्णत्ता ? गोयमा ! से जहाणामए - भिंगे इ वा भगपत्ते इ वा चासे इ वा चासपिच्छे इ वा सुए इ वा सुयपिच्छे इ वा सामा इ वा वणराई इ वा उच्चतए' इ वा पारेवयगीवा इ वा मोरगीवा इ वा हलधरवस इ वा अयसिकुसुमे इ वा बाणकुसुमे इ वा अंजणकेसियाकुसुमे इ वा णीलुप्पले इ वा नीलासोए इ वा नीलकणवीरए इ वा णीलबंधुजीवए इ वा भवेतारूवा ? गोयमा ! णो इणट्ठे समट्ठे', 'णीललेसा णं एत्तो अणिट्ठतरिया चेव अकंततरिया चेव अप्पियतरिया चेव अणुणतरिया चेव' अमणामतरिया चेव वण्णेणं पण्णत्ता । १२५. काउलेस्सा णं भंते ! केरिसिया' वण्णेणं पण्णत्ता ? गोयमा ! से जहाणामएखइरसारे" इ वा कइरसारे" इ वा धमाससारे" इ वा तंबे" इ वा तंबकरोडए इवा तंबछवाडिया " इ वा वाइंगणिकुसुमए" इ वा कोइलच्छद" - कुसुमए इ वा 'जवासाकुसुमे इ वा कलकुसुमे इवा, भवेतारूवा ? गोयमा ! णो इणट्ठे समट्ठे, काउलेस्सा णं एत्तो अणिट्टतरिया" "चेव अकंततरिया चेव अप्पियतरिया चेव अमणुण्णतरिया चेव' अमणामतरिया चेव वण्णेणं पण्णत्ता ॥ १. चिन्हाङ्कितः पाठो मलयगिरिवृत्तौ नास्ति व्याख्यातः । २. अद्दारिभे ( क ) ; अद्दारिपुष्पे ( ग ); अद्दाअरेट्ठए (ख,घ ) ; अरिष्टकं फलविशेषः पदं नास्ति अस्यां मलयगिरिवृत्तौ 'अद्द' व्याख्यातम् । ३. कहके से (ख, पु) 1 ४. भवेतारुवे (क,ख,ग,घ ) । ५. मुद्रितायां मलयगिरिवृत्ती उच्चन्तको दन्तरागः आह च मूलटीकाकारः 'उच्चतगो' दंतरागो भवइ' इति पाठो दृश्यते । हस्तलिखिते मलयगिरिवृत्त्यादर्थे ' उद्दन्तको दतरागः आह च मूलटीकाकारः उद्दतको दंतरागो भन्नइ । 'उव्वत्तए' (प्रदेशव्याख्या) । ६. हलहर° (क, ग, घ ) 1 ७. वणकुसुमे ( ग ) । Jain Education International ८. सं० पा० - समट्ठे एत्तो जाव अमणामतरिया । ६. केसरिया ( ख, ग, घ ) । १०. खयर० (ख, घ ) । ११. कयरसारए ( ख, ग ); कतरसारए (घ ) । १२. धमाससारते (घ) 1 १३. तंवे (घ) । १४. तंबाछिवाए ( ग ) । १५. वाइंगिणि° (ख, घ ) । १६. कोइच्छा (क, ख, ध ) । १७ एते पदे वृत्तौ व्याख्याते न स्तः 'क, ख, घ’ संकेतितादर्शेषु 'कलकुसुमे इवा' इति पाठो नैव दृश्यते । १८. सं० पा०- अणिट्ठतरिया जाव तरिया 1 For Private & Personal Use Only अमणाम www.jainelibrary.org
SR No.003555
Book TitleUvangsuttani Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages1178
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size22 MB
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