Book Title: Sushil Nammala
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushilsuri Jain Gyanmandiram
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ HWAR सुशीलनाममाला का-विजयसुशीलसूरि Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RKE-KEKKKKAKKKKKKK-100 25 श्री नेमि लावण्य-दक्ष-सुशील ग्रन्थमाला रत्न 47 वांक संस्कृत-भाषा-साहित्य में पर्यावाचक अनेक शब्दों के संग्रह को पद्य में बताने वाली * सुशीलनाममाला[संस्कृत शब्दकोशः] - कर्ताशासनसम्राट्-सूरिचक्रचक्रवत्ति-तपोगच्छाधिपति-ब्रह्मतेजोमूत्ति श्रीकदम्बगिरिप्रमुखानेकतीर्थोद्धारक-सर्वतन्त्रस्वतन्त्र स्व०प० पू० प्रा० श्रीमद्विजयनेमिसूरी-- श्वरस्य पट्टालङ्कार साहित्यसम्राट-व्याकरणवाचस्पति-शास्त्रविशारद-कविरत्न-स्व. प० पू० प्रा०श्रीमद्विजनालांवण्यसूरीश्वरस्य पट्टधर व्याकरणरत्न-शास्त्र विशारद-कवि-दिवाकर-देशनादक्ष / पू० प्रा० श्रीमद्विजयदक्षसूरि वरस्य पट्टधराचार्य श्रीविजयसुशीलसूरिः / Ke-KeKE-KE-KE-KE-KE-KE-KE-KE-10 Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सर्जक: सम्पादकश्च प्रेरक : / जैनधर्मदिवांकर-शासन रत्नप०पू० प्राचार्यदेव श्रीमद् है / तीर्थप्रभावक - राजस्थानविजयसुशीलसूरीश्वरस्य दीपक - शास्त्रविशारद - शिष्यरत्न स्व० पू० मुनि है / साहित्यरत्न - कविभूषणेति - श्रीदेवभद्रविजयः पदसमलङ्कृतो विजयसुशीलसूरिः www. है श्री बीर सं० 2504 . है ... विक्रम सं. 2034 ई नेमि सं० 26 है , ,प्रतियें : 1000 प्रथमावृत्तिः 1 मूल्यम् : रु० 25)00 ~~wwwvvvvvvvvvu. प्रकाशक : माचार्य श्री सुशीलसूरि जैन ज्ञान मन्दिरम् शान्तिनगर, सिरोही (राजस्थान) मुद्रक : 1 श्री जगदीशचन्द्र स्वर्णकार // अजन्ता प्रिण्टर्म त्रिपोलिया बाजार, जोधपूर (राज.) Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निषष्णा कमले भव्या, अब्जहस्ता सरस्वती / सम्यग्ज्ञानप्रदा भूयाद्, भव्यानां भक्ति शालिनाम् // Page #5 -------------------------------------------------------------------------- _ Page #6 -------------------------------------------------------------------------- _ Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वन्दनीया गुरुदेवाः प्रतिमूर्ति किमि मीवरजीम-बारा কাজিপটি ফুল कवि दिवाकर एमनिराजश्री राष्ट्रिचंदजी मा. मा. Pाला TEco C श्रीचन्दनविजयजीगणी मार पप श्रीविनोद विजयजामणी सभाकरपद द.फोट पालीनिधासी शाहनाजीके सपुत्र श्रीमीश्रीस्लमजमा समपनील प्रमाई की नपश्ययाकेपलरथमे रुमक्तिसिमितीसंयकी बनाये समर्पण मादस्था सुद-५ सुस्वार % वा-२६-.-०२. Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ KKK-KE-KE-KE-KK- wint KINNER CELama EXURE S दा Hशवरापा श्रीमतां शासनसम्राट्पदभाजां सूरिचक्रचक्रवर्तिना तपागच्छाधिपतीनां भारतीयभव्यविभूतीनां प्रभूतभूपप्रतिबोधकानां सर्वतन्त्रस्वतन्त्राणां श्रीकदम्बगिरिप्रमुखानेकप्राचीनतीर्थोद्धारकाणां पञ्चप्रस्थानमयसूरिमन्त्रसमाराधकानां चिरन्तनयुगप्रधान कल्पानां महाप्रभावशालिनां बालब्रह्मचारिणां न्याय-व्याकरणशास्त्राद्यनेक ग्रन्थसर्जकानां सिंहगर्जनासमनिरुपमप्रवचनकारकानां परमपूज्यानां परमकृपालूनां परमोपकारिणां परमगुरु देवानां श्रीमद्विजयनेमिसूरीश्वराणां ; तथा तत्पट्टालङ्काराणां साहित्यसम्राटपदभाजां व्याकरणवाचस्पति-शास्त्रविशारद-कविरलेतिपदसमलङ कृतानां साधिक संप्तलक्षश्लोकप्रमाणनूतनसंस्कृतसाहित्यसर्जकानां निरुपमव्याख्यानामृतवर्षिणां परमशासनप्रभावकानां बालब्रह्मचारिणां परमपूज्यानां परमोपकारियां प्रगुरुदेवानां श्रीमद्विजयलावण्यसूरीश्वराणाञ्च __सच्चरण-करण - शील-शालि - सूकोमलकरकमलेष सादरं सप्रश्रयञ्च समर्पयामि 'सुशीलनाममाला' कोशरत्नम् / . परमगुरु-प्रगुरुगुणसौरभ मधुलिट् _ विजयसुनीलसूरिः। KKKEKE-KE-KE-Hino Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ' SPERMERSAGAGGAROORoman विषयानुक्रमणिका मङ्क नम्बर ' विषय पृष्ठ नम्बर (1) (2) मङ्गलाचरणम् प्रथमो देवाधिदेवविभागः द्वितीयो देवविभागः तृतीयो मर्त्यविभागः चतुर्य स्तियंग विभागः पञ्चमो नरकविभागः षष्ठः सामान्य विभाग: प्रशस्तिः एकाक्षर कोशमाला शब्दानमानुक्रमणिका शुद्धि-पत्रम् .. 3-10 11-62 63-254. . 255-398 366-401 4.2-460 461-463 464-470 471-667 668-704 fe (10) (11) SUBeabeasesGOOKSpace5eacoohorica Page #10 -------------------------------------------------------------------------- _ Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शासनसम्राट-सूरिचक्रचक्रवति-तपागच्छाधिपति-ब्रह्मतेजोमूत्ति महाप्रभावशालि-श्रीकदम्बगिरिप्रमुखानेकप्राचीन तीर्थोद्धारक-सर्वतन्त्र-स्वतन्त्र-वचनसिद्ध परमपूज्य-परमोपकारी-परमकृपाल-आचार्य महाराजाधिराज श्रीमविजयनेमिसूरीश्वरजी महाराज साहेब / / Page #12 -------------------------------------------------------------------------- _ Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शासनसम्राट-सूरिचक्रचक्रवति-तपागच्छाधिपति-ब्रह्मतेजोमूत्ति महाप्रभावशालि-श्रीकदम्बगिरिप्रमुखानेकप्राचीन तीर्थोद्धारक-सर्वतन्त्र-स्वतन्त्र-वचनसिद्ध शारास परमपूज्य-परोपकारी-परमकृपालु-आचार्य महाराजाधिराज श्रीमद्विजयनेमिसूरीश्वरजी . ___ महाराज साहेब / Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रोतपोगच्छाधिपति - शासनसम्राट् - सूरिचक्रचक्रवति-जगद्गुरुश्रीमद्विजय नेमिसूरीश्वरपट्टालङ्कार - व्याकरणवाचस्पति-शास्त्रविशारद - कविरत्नश्रीमद्विजयलावण्यसूरीश्वरशिष्यरत्न-विद्वद्वर्य मुनिश्रीदक्षविजय शिष्यरत्नविद्वद्वर्य-बालमुनिश्रीसुशीलविजय विरचितम् // श्रीनेमीसूरीश्वराष्टकम् // [शार्दूलविक्रीडित वृत्तानि यज्ज्ञानं च निबन्धसिन्धुतरणे, नौकानिभं वर्त्तते / यहाणी शुभमानसाम्बुजरवि- नार्थसम्बोधिनी // यत्कीत्तिः किलदिक्षु विस्तृततरा, चन्द्रोज्ज्वला सर्वदा / वन्देऽहं शुभपादपद्मयुगलं, तं नेमिसूरीश्वरम् // 1 // यस्य क्षान्तिरनल्पकोपशमने, धाराधराभा वरा। नानाशिष्यप्रशिष्यवृन्दसहितं, सद्बोधिरत्नप्रदम् / / दुन्तिप्रतिवादिवादनिपुणं, सम्राटपदालङ कृतं / वन्देऽहं शुभपादपद्मयुगलं, तं नेमिसूरीश्वरम् / / 2 / / नानातर्कपरायणं गुणयुत्तं, लावण्यलीलालयं / न्यायव्याकरणादिशास्त्ररचना नैपुण्यभाजां वरम् / / तीर्थोद्धारधुरन्धरं मुनिवरं, चारित्ररत्नाकरं।। वन्देऽहं शुभपादपद्मयुगलं, तं नेमिसूरीश्वरम् / / 3 / / वैराग्यद्रुमवर्धने जलधरं, श्वेताम्बराग्रेसरं / भव्यानामुपकारकारकुशलं, सिद्धान्तपारङ्गतम् / नानादर्शनदर्शनामलधियं, सद्ब्रह्मचर्याञ्चितं / वन्देऽहं शुभपादपद्मयुगलं तं नेमिसूरीश्वरम् / / 4 / / गीतार्थाऽनुसृते तथाऽऽगमगते, पान्थं पथि प्रोद्यतं / विद्वद्वन्दसुवन्दितामलगुणं, विद्वद्सभाभासुरम् / / Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साहित्यसम्राट-व्याकरणवाचस्पति-शास्त्रविशारद-कविरत्न साधिकसप्तलक्षश्लोकप्रमाणनूतन संस्कृतसाहित्यसर्जक परमशासनप्रभावक-बालब्रह्मचारी-परमपूज्याचार्यप्रवर श्रीमविजयलावण्यसूरीश्वरजी महाराज साहेब! Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्याकरणवाचस्पति-कविरत्न- शास्त्रविशारद // श्रीविजयलावण्यसूरीशाष्टकम् // . [ शिखरिणी - वृत्तानि ] सुधाधारासाराऽतिम्धुर सुवाण्या रचनया। सुभत्यानां चेतोऽम्बुजदल सुपक्ती दिनमणिम् // सुशास्त्राब्धी देवाऽचलविमलधिष्णं बुधवरं / स्तुवे तं सूरीशं प्रपुरुवरलावण्य मुनिपम् // 1 // सदा कोडन्तं स-चरणजलधौ नौ वरगुरणः / सुशीलालङ्कारो-लसिततनुवल्लीसुललितम् // सुविद्वदवृन्दालि-स्तुतविबुधतं सद्गुणयुतं / स्तुवे त सूरीशं प्रगुरुवरलावण्यमुनिपम् // 2 // थशोभियस्येदं धवलमनिसन्मण्डलतलं / क्षमावल्लीमाला-परिमलविको. दशदिशः // सुलेखेन श्रीमद्-बुधजनमनो मोदकुशलं / स्तुवे तं सूरीशं प्रगुरुवरलावण्यमुनिषम् // 3 // वहन्तं योगं चाऽऽगमननपूर्व च सकलं। गत सूरीशान्तं सुगुणयुतप्रावर्तक पदात् // सभायां व्याख्याता शुभ भगवती येन निखिला। स्तुवे त सूरीशं प्रगुरुवरलावण्यमुनिपम् // 4 // प्रनल्पे ग्रन्थोचे सनिपुरणविया शास्त्रनिपुरणः। कवीनां रत्नं व्याकरण-वरवाचस्पतिरिति // शुभा प्राप्ता येन विविधपदवी श्रीगुरुवरात् / स्तुवे तं सूरीशं प्रगुरुवरलावण्यमुनिपम् // 5 // पयोधौ धातूनां गरगदशकरूपेरुपचितं / / रिणङन्तं सन्नन्तं यङिलुपिगतं नामजनितम् // - सकृद् भावव्याप्यं वसुमितविभागान विदधत / स्तुवे त सूरीशं प्रगुरुवरलावण्य मुनिपम् // 6 // Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालायां प्रकुर्वाणं श्लिष्टां विवृतिकलित मष्टकताति / . त्रिसूत्री व्याख्यात्रा शुभतिलकमजयपि कृता॥ रतं न्यासोद्धारे स्वपरहितकारेऽतिरसिकं / स्तुवे तं सूरीशं प्रगुरुवरलावण्य मुनिपम् // 7 // पुरे बोटादाख्ये विमलगिरिसौराष्ट्रविषये / यदीयं जन्माभूत सुगुणगणभाग 'जीवन' गृहे // सदाशीलाढयानाममृत जननीनां सदुदरात्।। स्तुवे तं सूरीशं प्रगुरुवरलावण्यमुनिपम् // 8 // [ वसन्ततिलका-वृत्तम् ] विख्यातराजनगरे जिनचैत्ययुक्त। नन्दग्रहाशशिविक्रमवर्षमाघे॥ शुल्के दले च प्रतिपत्तिथि शुक्रवारे। श्रीनेमिसूरिवर पट्टप्रभावकस्य // 6 // लावण्यसूरिपमरणेर्बुधदक्षशिष्यस्तस्यान्तिषत्क मुनिराज सुशीलब्धम् // रम्यं किलाष्टकमिदं विबुधार्थजातमा पुष्पदन्तमनिशं पठतां शिवं स्यात् // 10 // [ युग्मम् ] // इति श्रीविजयलावण्यसूरीशाष्टकं समाप्तम् / / ['प्रगुरुदेव विरहगीत' ग्रन्थ में से उद्धत ] गच्छतः स्खलनं क्वापि, भवत्येव प्रभादतः। हसन्ति दुर्जनास्तत्र, समादधति सज्जना: // 1 // छद्मस्थेषु सदा स्खलदगतितया दोषप्रबन्धान्वये। नोहास्यास्पदमत्र दोषघटनायां स्यामहं धीमताम् // नो प्रार्थ्याः कृतिनो निसर्गगरिमावासा मया शोधने / येषां दोषगरण प्रमार्जनविधिः स्वाभाविकोऽयं ततः॥२॥ Page #18 -------------------------------------------------------------------------- _ Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मप्रभावक-व्याकरणरत्न-शास्त्रविशारद-कविदिवाकर .देशनादक्ष-बालब्रह्मचारी परमपूज्याचार्यवर्य श्रीमविजयदक्षसूरीश्वरजी महाराज साहेब। - - - - - Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ / / ॐ ह्रीं अर्ह नमः / / वन्दे शासनसम्राट् श्री-नेमि पूरि जगद्गुरुम् / / शब्दसाहित्यसम्राट् श्री-लावण्यसूरिसदगुरुम् / / 1 / / // श्री सुशीलनाममालाशीर्वादाष्टकम् // [कर्ता-धर्मप्रभावकः प० पू० प्रा० श्रीमद्विजय दकसूरीश्वरः] श्रतभक्तचनुरागेण, श्रतदेवीप्रसादतः / गुरुकृपाप्रभावाञ्च, शब्दरत्नरलङ्कृता॥१॥ कवीनां शनाशाय, काव्यकौशल्यकारिणी। गुम्फिता स्वान्यबोधाय, "नाममाला" मनोरमा // 2 // हृत्कोष स्थापनीयैषा, पठनीया पुन: पुनः / कविप्राणप्रिया लोके, नाममाला सदा भूयात् // 3 // प्रशस्योऽयं प्रयासो हि, प्रमोदाद् गुणरागिभिः / कमनीयाऽऽवकार्येयं, कृतिः सुकृतिभिः सदा / / 4 // निरभ्र गगने चन्द्रो, राकायां राजते यथा / तथैव नाममालयं, शब्दकोशनभस्तले // 5 // एकाक्षरार्थसम्पृक्ता, शेषशब्दः समन्धिता। एकवृत्तात्मिका प्रोक्ता, षड्काण्डेषु विभाजिता // 6 // श्रीकलिकाल सर्वज्ञ-हेमचन्द्रारव्यसूरिणः / रूढ-यौगिकमित्रैक- नाममालानुसारिणी // 7 // सुशोलनाममालेषा, सुशीलसूरिणा कृता। जैनेन्द्रशासनस्यैव, वितनोतु प्रभावनाः // 8 // [2504 श्रीवीराब्दे का० 0 5 गुरुपुष्यामृत-सिद्धियोगे दक्षसूरिः / ] Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 809009087088 सुशीलनामाला समीक्षा [रचयिता-गिरीशकुमार परमानन्द शाह 'कल्पेश' ध्रांगध्रा वाले] नत्वा बोरं गुरु भक्त्या , जननी जनकं तथा। सुशोलनाममालायाः, समीक्षा विख्यते मया // 1 // नाममाला रमा रम्या, समुत्पन्ना श्रुतार्णवात् / नवयौवन संप्राप्ता, सुशील स्वान्तसनि // 2 // विदिता विश्वविश्व या, जगदाश्चर्यकारिणी। कवित्वजननी ह्यषा, शब्दकल्पद्रुमोपमा // 3 // प्रशस्तगुणयुक्ता या, कवीनां हितकारिणी। गुम्फिता नाममाला सा. सुशोलसूरिणा मुदा // 4 // मनुजभुवी सुधेयं शब्दमाधुर्ययुक्ता, सफलकविजनानां हर्षदा नाममाला। गुरुपदकजयुग्मे यापिता भक्तिभावाजगति विजयते सा विस्तृता कोशरूपा // 5 // गुरूणामादेशात् प्रथितयशसा जैनमुनिना, प्रणीता सम्पूर्णा विविविधवरणः सूकविना / प्रशस्ता मालेयं प्रकृतिसूभगा शब्दप्रसवैः, प्रसादाद् भाषाया प्रपरतिसमस्तेऽत्र भुवने // 6 // अहो ! नाम्नां माला कविकुलमनोरञ्जनपरा, जगद्विद्वन्मान्या परमरमरणीया कृतिरियम् / प्रमोदालोकेऽस्मिन् बुधजनसभायां नुतिपदैः, सशब्दानां व्यासात् समुदयति कत्ति सुविमलाम् // 7 // विशिष्ट : शब्दर्या श्रुतजलनिधेनौरनुपमा, धृता चित्ते पारं गमयति सदा दक्षनिकरान् / कवीनां वकतणां नयति विलय क्लेशमखिल, तनात्युत्कर्ष सा जिनपकृत तीर्थस्य सततम् // 8 // Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ รถระหอรอรอร์เรอรถรอง9รอดดดดดดดดดดดดดด नस्तौमि क्रिश्चित्पदबद्धमेव भूमिका राजानः कवयश्च पण्डितजनाः कोशं विना दुर्बलाः, वक्तारोऽपि न भान्ति हन्ततमृते हास्यास्पदा लेखकाः / तस्मान्कोष प्रवर्धनाय सततं ये यत्नवन्तो बुधाः, जायन्ते जनताजनार्दनकृते तेषां प्रवृत्तिः शुभाः / / 1 / / कोशेन काव्येन च कौमुदीतो. प्राप्नोति लोकः किल कोविदत्वम् / एतत्त्रयाभ्याशधना जना नो .. . कुत्राऽपि किञ्चिद् विमनायमानाः / / 2 / / कोशो बलं सर्वजनस्य तस्मात्, प्रजोपकाराय चिराय कालम् / दुःखानि हतु बहुरूप कोषाऽ गारं विधत्ते सदयेन्द्रिराजीः / / 3 / / विमृश्य छात्राय न संस्कृतस्य - कोषो महानस्ति बहूपकारी। श्रीमान् महाभाग सुशोल सूरिः - __भरि प्रयत्नेन समत्सुकोऽभूत् / / 4 / / Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालायां श्रीगुर्जरोत्पन्नसमस्तजैन ___ साधु प्रधानः प्रिय नेमिसूरिः। तच्छिष्य लावण्य प्रसिद्ध सरिः / - धुरन्धरो व्याकृति तत्व वेत्ता / / 5 / / तदीय पट्टाधिकृतो गुणाना माधिक्यतः शासनदक्षसूरिः / सहोदरश्चाथ तदीय शिष्यः, सुशीलनामानुगुणः . सुशीलः // 9 // सूरिस्तदीयो नव नाम माला कोषः परं तोषक एंष सृष्टः। महामुदं संस्कृत शब्द बोध समुत्सुकायाशुतरं , विदध्यात् / / 7 / / षडत्र ये सन्ति प्रदत्त भागाः / देवाधिदेवादिगुणानुरागाः / तेष्षेव प्रायो जगतां प्रसिद्ध नामानि दृष्टानि मनोहराणि // 8 // प्राशास्यते सुन्दर नाममाला शालेव धर्मस्य सम प्रिया स्यात् / शब्दानुसन्धान प्रदान काले भालेव वा मोदकरो भवित्री / / 6 / / सकल हृदयहारी सर्वलोकोपकारी, कविवर प्रिय सूरेर्यत्न एषः प्रशस्तः / सरलतम नवीना नाममाला विशाला, सपदि मनसि शास्त्रानन्दवृद्धि प्रकुर्यात् / / 10 / Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमिका सशीर्षकं नाम प्रदर्शनन्तु, यत्रोचितं तत्र निवेश्यवद्धम् / प्रकाशितं पुस्तकमोक्ष्य साधु विद्यार्थिनः के नहि मोदमानाः / / 1 / / क्वापि किञ्चिद् भवेद्दोषः, स रोषाय न कल्पताम् / गुणानुरागिणो विज्ञाः, तुष्यन्तु शुद्धिपत्रतः / / 12 / / विक्रम संवत् 2032 आश्विन शुक्ल पूणिमायाम् दिनांक 18-1-1976 सर्वथा सर्वदा च सुधियामाश्रवः .. सुरेश या शिक्षा शास्त्री . व्या. सा. प्रा. न्यायतीर्थ नेपाल राज्य महतरी मण्डलान्तर्गत सांढा ग्राम निवासी (सम्प्रति-जोधपुरस्थः) Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ // ॐ ह्रीं अहं नमः / / oKr-Ke-KEप्रास्ताविक पुरोवचन अनादि अनंत इस संसार में अनादि काल से संसारी मारमाएँ चार गति में एवं चौरासी लाख जीवायोनि में परिभ्रमण कर रही हैं। इसका कारण अपने-अपने कर्म ही हैं। यह कर्म के ज्ञानावरणीयादि पाठ मुख्य भेद और उत्तर भेद 158 (प्रकृतियां) हैं। किसी भी कर्म की विशिष्टता-बाहुल्य बताने के लिए शास्त्रज्ञान कारण हैं, वही शास्त्रज्ञान शास्त्र में रहे हुए वाक्यों के प्राधीन हैं, वाक्यार्यज्ञान उन-उन पदार्यज्ञान के प्राधीन हैं और पदार्थज्ञान याने शमबोध उन-उन पद शक्ति को ग्रहण करना उसके ऊपर निर्भर हैं / पद शक्ति को ग्रहण करने के लिए कहा है कि - शक्तिग्रहं व्याकरणोपमान कोषाप्तवाक्याद् व्यवहारतश्च / वाक्यस्य शेषाद् विवृते वदन्ति, सान्निध्यतः सिद्धपदस्य वृद्धाः / / 1 / / अर्थ व्याकरण से, उपमान से, कोष से, प्राप्त वाक्य.से, व्यवहार से, वाक्यशेष से, विवरण से और सिद्धपद के सान्निध्य से शक्तिज्ञान होता है; ऐसा वृद्ध पुरुषों ने कहा है / / 1 / / Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुरोवचन कोष सम्बन्धी विचारणा .. कोषस्येव महीपानां, कोषस्य विदुषामपि / उपयोगो महान् यस्मात्, क्लेल स्तेन विना भवेत् / / 1 / / विश्व में कोष की प्रावश्यकता सबको रहती है। कोष के बिना सारा व्यवहार अटक जाता है / चाहे वह द्रव्यकोष हो या ज्ञानकोष हो / देश, राष्ट्र और सम्राट का वैभव द्रव्य कोष से अबाधित रहता है। द्रव्यकोष बिना देश और राष्ट्र की उन्नति के कार्य अटक जाने पर राष्ट्र पराधीन बनता है और देश पायमाल हो जाता है। .. इसीलिए विश्व में द्रव्य कोष की अति प्रावश्यकता है। द्रव्यकोष से भी ज्ञान कोष विशिष्ट हैं / द्रव्य सामग्री होने पर भी मूर्ख जन ज्ञान के प्रभाव से दुर्दशा प्राप्त किए बिना नहीं रहते। इसके अनेक दृष्टांत-उदाहरण प्राज भी इतिहास के पृष्ठों पर दृष्टिगोचर होते हैं। ___ ज्ञानकोष- यह एक अद्भुत जीवन्त वस्तु है, दीपक के समान देदीप्यमान प्रकाशक है अर्थात् अज्ञानी जीवों के लिए सुन्दर मशाल है। शब्दकोष की आवश्यकता शब्दकोष के ज्ञान बिना विद्वानों या लेखकों, कवियों या वाचकों, व्याख्याताओं या विद्याभ्यासियों की प्रगति किस प्रकार से हो सकती है ? विविध विषयक वाङ्मय को समझने के लिए और अभिनव-नूतन साहित्य की रचना करने के लिए भी शब्द-वैभव की अवश्यमेव अपेक्षा रहती है। जिस तरह राजा-महाराजाओं को, राज्य संचालकों को और श्रीमन्तों-धनवानों आदि को प्रखूट अर्थकोष की अर्थात् धन-भंडार की प्रत्यन्त आवश्यकता अवश्य होती है, उसी तरह विद्वानों को, Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ त] सुशीलनाममालायां ------....-- व्याख्याकारों को, साहित्यकारों को, कवियों को, लेखकों को. वाचकों को और वाङ्मय के किसी भी प्रदेश में विचरने वालों को खजानाभंडार रूप विपुल शब्दकोष की अति आवश्यकता होती है। किसी भी भाषा के अभ्यास के लिये जिस प्रकार व्याकरण के अभ्यास की मावश्यकता है, उसी तरह भाषा के तलस्पर्शी अभ्यास के लिए उस भाषा के कोष को भी उतनी ही आवश्यकता रहती है। शब्दकोषों की रचना अनेक प्राचीन व अर्वाचीन भाषाओं के लिए तत् तद् भाषा के विद्वानों ने शब्दकोषों की रचना करके अपने-अपने कोषग्रन्थ को मुख्य स्थान दिया है। अपनी प्रति प्राचीन संस्कृत भाषा व प्राकृत भाषा विस्तृत और शब्दबाहुल्य वाली है। व्युत्पत्ति सम्बन्ध से, सामासिक सम्बन्ध से, प्रायोगिक सम्बन्ध से, माथिक-तात्विक सम्बन्ध से, सौत्रिक सम्बन्ध से काठिन्य सम्बन्ध से और अनेक विध सम्बन्ध से संस्कृत भाषा या प्राकृत भाषा समलङ्कृत है। प्रतः संस्कृत भाषा में या प्राकृत भाषा के पठन-पाठन में वह प्रन्थ पाठ्य पुस्तकों में मुख्यतया समादरणीय है। संस्कृत साहित्य के या प्राकृत साहित्य के समुपासक भारतवर्ष के प्राचीन या अर्वाचीन अनेक विद्वानों ने एकार्थ, अनेकार्थ अनेक संस्कृत शब्दकोषों की रचना की है। नामलिङ्गानुशासनकोषकार प्राचार्य श्री अमरसिंह के समकाल में तथा पूर्वकाल में 'विश्व' 'साश्वत' 'मेदिनी' 'रभस' इत्यादि संस्कृत में ऐसे अनेक कोष प्रवर्तक हो गये हैं, जिनका नामस्मरण भी दुर्लभ है। (1) जैन कवि श्री धनञ्जय ने 'धनञ्जय नाममाला', 'अनेकार्थ माममाला' और 'अनेकार्थ निघंटु' यह नाम के तीन कोष-ग्रन्थों का सर्जन किया है। - Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुरोवचन [ थ (2) जैनकवि श्री अमसिंहजी ने 'अमरकोष' नामक ग्रन्थ का निर्माण नवमी शताब्दी में किया है / (3) महाकवि 'श्री धनपाल' ने 'पाइपलच्छी नाममाला' नामक पद्यबद्ध कोषग्रन्थ का प्राकृत भाषा में वि.सं. 1029 में सर्जन किया है। (4) कलिकाल सर्वज्ञ 'श्री हेमचन्द्रसूरीश्वरजी महाराज श्री' ने चार कोषों का निर्माण किया है। जिनमें से 'अभिधान चिन्तामणि' नामक कोष मुख्य है। इसमें एक-एक शब्द के अनेक पर्यायवाची शब्दों का संकलन सुन्दर है / दूसरा 'अनेकार्थ संग्रह' नामक कोष है / इसमें शब्दों के नाना अर्थों का संग्रह है। तीसरा 'अनेकार्थ निघण्टु' नामक कोष है। इसमें वनस्पत्यादिक पदार्थों के शब्दार्थों का संग्रह है। चौथा 'देशीनाममाला' नामक कोष है। इसमें प्राकृत और देशीय भाषाओं के शब्दार्थों का संकलन है। (5) सेनसंघ के 'प्राचार्य श्रीधरसेन' ने 'विश्वलोचन' नामक कोष का सर्जन किया है जिसका दूसरा नाम 'मुक्तावली कोष' है। उन्होंने एक 'अन्त्याक्षरी' नामक कोष की भी रचना की है। (6) प्राचार्य श्री राजशेखरसूरि म. के शिष्यरत्न 'श्री सुधाकलश मुनिपुङ्गव' ने 'एकाक्षरी नाममाला' नामक कोष की रचना की है। .. (7) 'प्राचार्य श्री जिनदत्तसूरि म.' के शिष्यरत्न 'श्री अमरचन्द्र मः' ने वर्णमाला क्रम से प्रत्येक अक्षर का अर्थ बताते हुए 'एकाक्षरी नाममाला' नामक कोष की रचना की है। ... (8) प्राचार्य श्रीजिनभद्रसूरि म. ने 'पञ्चधर्मपरिहारनाममाला' नामक कोष की रचना की है। (9) प्राचार्य श्रीविमलसूरि म. ने 'देश्य शब्द समुच्चय' एवं अकारादि क्रम से 'देश्य शब्द निघण्टु' कोष की रचना की है। Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालायां ............ ....... (10) आचार्य श्री रामचन्द्रसूरि म० सा० ने 'देश्य निर्देश निघण्टु' नामक कोष की रचना की है। (11) प्राचार्य श्री जिनदेवसूरि म. सा. ने श्री अभिधानचिसापरिण कोश के पूरक रूप में 'शिलोञ्छनाममाला' नामक कोष की रचना . (12) प्राचार्य श्री पुग्यरत्नमरि म. सा. ने 'यक्षरकोश' को रचना की है। (13) प्राचार्य श्री हर्षीतिसूरि म० सा० ने 'नाममाला कोष' तथा 'लघनाममाला कोष' की रचना की है। (14) तपागच्छाचार्य श्री सूरचन्द्रसूरि म. सा. के शिष्यरत्न श्री भानुचन्द्रविजयजी ने 'नामसंग्रहकोश' की रचना की है। (15) वाचनाचार्य श्री साधुसुन्दरगरिएवर ने 'शब्दरत्नाकर कोष' की रचना की है। . (16) प्रा० श्री राजेन्द्रसूरि म. सा. ने अभिधान राजेन्द्र कोष' की सात भाग में रचना की है। . (17) प्रागमोद्धारक प्राचार्य श्री प्रानन्दसागरसूरि म० सा० ने 'अल्प परिचित सैद्धान्तिक शब्दकोष' तथा 'लघुतम नाम कोष' की रचना की है। (18) स्थानकवासी पंडित मुनि श्री रत्नचन्दजी शतावधानी ने 'जैनागमशब्द' प्राकृत भाषा के लघुकोश की रचना की है। तदुपरान्त 'अर्द्धमागधी कोश' की भी रचना की है। (19) पंन्यास श्री मुक्तिविजयजी गणो ने 'शब्दरत्नमहोदधि (संस्कृत-गुजराती) कोश अन्य की रचना दो भागों में की है। (20) 'पाइग्रज सद्दमहण्णवो' (प्राकृत शब्द-महार्णव) कोष की रचना जैन पंडित श्री हरगोविन्वदास ने की है। Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ध ] . पुरोवचन ___(21) 'जैन लक्षणावलि-कोश' का सम्पादन कार्य भी बालचन्द्रजी ने किया है। (22) 'जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश' का चार विभाग में निर्माण कार्य श्री जिनेन्द्रवर्णी ने किया है। (23) 'हिन्दी नाममाला' कोश की रचना कवि श्री बनारसीदास मे की है। ___ (24) 'अंग्रेजी-गुजराती लधुकोश' का निर्माण एक पारसी विद्वान् ने किया है। (25) 'हिन्दी विश्व कोश' एवं 'बंगला विश्व कोश' का सम्पादन कार्य सन् 1915 में श्री नागेन्द्र बसु ने प्रारम्भ किया है। (26) 'वाचस्पत्यबृहव भिवान-संस्कृतमहाकोश' का निर्माण सन् 1940 में श्री तारानाथ वाचस्पति ने किया है। . (27) संस्कृत कल्पद्रुमकोश' का निर्माण श्री राधाकान्तदेव ने किया है। (28) शब्दार्थ चिन्तामणि' कोश का निर्माण श्री श्यामलदास ने किया है। . .. (26) शब्दार्थ चितामणि' कोश की रचना श्री सवाईलाल बी. छोटालाल वोरा ने की है। ___(30) 'गुजराती सार्थ जोडणी कोश' सन् 1928 में प्रकाशित हुना है। -- (31) 'बृहत् हिन्दी शब्दसागर कोश' सात भाग में प्रकाशित . * हुआ है। (32) संस्कृत शब्दोस्तोम महानिधि' कोश प्रकाशित हुआ है। . (33) 'शब्दादर्श' (संस्कृत-गुजराती) कोश की रचना वो विभाग में शास्त्री गिरिजाशंकर मयाशंकर महेता ने की है। Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ न] सुशीलनाममालायां (34) 'संस्कृत शब्दार्थ कौस्तुभ' कोश प्रकाशित हुआ है। (35) 'शब्दसागर' कोश भी प्रकाशित हुआ है। सदुपरान्त-हस्तलिखित 'शब्दरत्न समुच्चय', आयुर्वेदीय औषधि कोष', 'शालिग्रामौषध', 'हलायुधकोष', हिन्दी- 'अनेकार्थसंग्रहनामकोश', न्यायकोष', प्रोफेसर प्राप्टे कृत छोटी-बड़ी संस्कृत-अंग्रेजी डिक्षनरी' प्रादि अनेक कोश के अन्य विद्यमान हैं। संस्कृत व प्राकृत कोशों के कितने ही ग्रन्थों के विविध भाषा में अनुवाद होकर प्रकाशित हो चुके हैं। इसमें भी कलिकाल सर्वज्ञ श्रीमद्हेमचन्द्राचार्य विरवित 'अभिवान चिन्तामरिण कोश' पर 'चन्द्रोदयाभिध गूर्जर भाषा-टीका' प्राकृविद्विशारद सिद्धान्तमहोदधि पू० प्रा० श्रीमद्विजयकस्तूरसूरीश्वरजी म० श्री द्वारा रची हुई प्रकाशित है। प्रस्तुत 'सुशीलनाममाला' कोश की रचना प्राज से दस वर्ष पूर्व कलिकाल सर्वज्ञ श्रीमद् हेमचन्द्रसूरिजी महाराजश्री का बनाया हुआ 'अभिधान चिन्तामरिण कोश' जैसा संस्कृत भाषा में एक नूतन कोष बनाने की भावना मेरे अन्तःकरण में स्कुरायमान हुई। वि० सं० 2025 की सात में राजस्थान के मरुधर प्रदेश में प्राया हुमा जावाल में पूज्यपाद् प्राचार्यदेव श्रीमद्विजयदक्षसूरीश्वरजी गुरु महाराज के साथ में मेरा चातुर्मास हुआ। वहां पर मेरे वयोवृद्ध शिष्य मुनि श्री देवभद्रविजयजी ने इस कार्य को प्रारम्भ करने के लिए प्रेरणा की। पूर्वे भावना थी और पुनः प्रेरणा का निमित्त मिला। श्रीअभिधान चिन्तामणि कोश का पालंबन लेकर सोत्साह 'सुशीननाममाला' नाम से यह संस्कृत शब्दकोश ग्रन्थ का प्रारम्भ किया। मेरा चलता हुप्रा इस कार्य को देखकर पू० प्रा० गु० म० श्री प्रसन्न हुए / Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुरावचन [प ... वि० सं० 2026 की साल में मेरा चातुर्मास गढ़ सिवाना में हुआ / कोश रचना का चलता हुआ कार्य क्रमशः आगे बढता रहा। वि० सं० 2027 की साल में पाली चातुर्मास में इस ग्रन्थ रचना का कार्य 2824 श्लोकों में और प्रशस्ति के साथ 2848 श्लोकों में पूर्ण हुआ। इस ग्रन्थ को जिज्ञासु, संस्कृतज्ञ, विद्वान, अभ्यासीगण प्रादि अपनावें। इतना ही नहीं, किन्तु अध्ययन-अध्यापन में भी इसका उपयोग करें। श्री वीर स० 2502 वि० सं० 2032 चंत्र शुद 15 ( चैत्री पूर्णिमा ) - दि. 14-4-1976 विजयसुशीलसूरि श्रीफलवृद्धिपार्श्वनाथतीर्थ जैन धर्मशाला मेड़ता रोड़ (मारवाड़) राजस्थान Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना कोशकला भारतीय वाङ्मय की विशिष्टता का प्रतिपादन करती है। किसी भी भाषा का व्याकरण तत् तत् भाषा का स्वरूप निर्धारण कर उसका नियमन करता है, तो कोश उस भाषा के स्वरूप निर्माण की प्रक्रिया का उद्घाटन करता है। इसीलिए हमारे मनीषियों ने ठीक हो कहा है 'अष्टाध्यायो जगन्माता शप्रमर कोषो जगत्पिता' व्याकरण का कार्य भाषा के मूल में स्थित तत्वों का उद्घाटन करना है, तो कोश उद्घाटित तत्वों का संक्षिप्त सार्थ स्वरूप प्रकट करता है। संस्कृत एवं प्राकृत साहित्य में कोशकारों को एक बृहत्परम्परा रही है, जिनमें जैन एवं बौद्ध कोशकारों का भी अपना विशिष्ट स्थान रहा है। जैन कोशकार कलिकाल सर्वज्ञ श्रीहेमचन्द्राचार्य के 'अभिधान चिन्तामणि कोश से लेकर प्रस्तुत सुशील नाममाला' में एक सूक्ष्म तात्विक तत्वसूत्र ग्रथित-सा दिखाई दे रहा है। परम्परा निर्वाह कर तद्रूप कोश का निर्माण करना तो पिष्टपेषण मात्र रह जाता है, अतः प्रत्येक कोषकार ने अपने अपने मन्तव्यानसार कोश के क्रम, विभाग एवं स्वरूप का परिवर्तन परिवर्द्धन किया है। 'सुशील नाममाला' में भी ऐसा ही हना है, यहाँ जैन दर्शन के नामों का क्रमानुसार उल्लेख किया हुआ है। कोश के दो प्रकार हैं-ज्ञानकोष एवं शब्दकोष। ज्ञानकोष Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना सम्पूर्ण साहित्य का अभिज्ञान करवाने का प्रयत्न करता है, तो शब्दकोष शब्द ब्रह्म का निरूपण। जैन साहित्य में ज्ञान कोषकारों में प्रा० श्रीजिनभद्रसूरि (1456-1510 वि०) का नाम विशेष आदर से लिया जाता है। उन्होंने जैसलमेर, जालौर, नागौर एवं पाटन आदि स्थानों पर जैन पुस्तक भण्डारों की स्थापना की थी। धीमज्जैसलमेरुदुर्ग नगरेजाबालपुयों तथा, श्रीमद्देवगिरौ तथा अहिपुरे श्रीपत्तने पसने / भाण्डागारम बी भरद्वरताना विधः पुस्तकं:, सः श्रीमन्जिनभद्रसूरि सुगुरुभाग्याद्भुतोऽभुमुनि // -समयसुन्दर कृत 'भष्टलक्षी प्रशस्ति' उन्होंने 'अपवर्ग नाममाला' नामक एक कोश की भी रचना की थी एवं ज्ञान भण्डारों की स्थापना की थी। इन ज्ञान. भण्डारों में कोश, व्याकरण, आयुर्वेद, साहित्य, ज्योतिष, धर्म एवं दर्शन सम्बन्धी सभी प्रकार के ग्रंथ एकत्रित हो गए थे। तब से ज्ञानकोषों के एवं शब्दकोशों के निर्माण की सूप्त परम्परा जागृत हुई एवं पन्द्रहवीं शदी से लेकर आज तक यह परम्परा विधिवत् चली आ रही है। जैन ज्ञानकोश की कड़ी में अभिधान राजेन्द्र कोश ( 20 वीं शती ) एक महत्वपूर्ण कार्य रहा है। शब्द एवं ज्ञानकोष की मिली-जुली रूपरेखा 'सुशील नाममाला' में प्रकट हुई है। ... 'सुशोल नाममाला' शब्दकोश की परम्परा का ग्रंथ है। इसमें कूल 6 विभाग हैं। कोश परम्परा से हटकर इसका विभाग निर्माण इस प्रकार हुअा है Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालायां प्रथम - देवाधिदेव विभाग। द्वितीय - देव विभाग। तृतीय - मर्त्य विभाग। . चतुर्थ - तिर्यग विभाग। पंचम - नारक विभाग। षष्ठ - सामान्य विभाग। परिशिष्ट - एकाक्षर कोशमाला मंगलाचरण में भगवान श्री महावीर, गौतमस्वामी, सुधर्मास्वामी की वन्दना कर प्राचार्य श्री सुगीलसूरिजी ने अपनी गुरु परम्परा की वन्दना करते हुए श्रीनेमिसूरीश्वरजी, श्रीलावण्य सूरीश्वरजी एवं श्रीदक्षसूरीश्वरजी की वन्दना की है, जिनका स्वयं का कोशकला एवं शब्दानुशासन में प्रावीण्य रहा है। तत्पश्चात् भगवती आहती भारती की वन्दना की गई है। सरिजी ने इसमें अपने शिष्य देवभद्रविजयजी का भी स्मरण किया है, जो उनके उदार चरित् का दिग्दर्शन करवाता है / प्रथम विभाग को जिनशासन के बीज रूप अर्हन्नाम से प्रारम्भ किया है एवं 24 तीर्थङ्करों का ऐक्य प्रतिपादित करने के लिए अर्हद् भगवान के 24 नामों का शिवप्रद पर्यायत्व प्रदर्शित किया है तथा इनकी संज्ञा जैन धर्म एवं दर्शन के चरम लक्ष्य 'शिवत्व' को देने वाली बताई है। ये 24 नाम हृदय कमल की 24 पंखुरियाँ हैं / तत्पश्चात् गणधर इन्द्रभूति गौतम के नामों का उल्लेख - किया गया है। यह एक प्रकार से जैनधर्म कोश है।। इस कोश में जैन जगत की परम्परानुसार तीर्थङ्कर, गणधर श्रतकेवली, दर्शपूर्वधर, जिनमाता-पितामो, यक्ष, यक्षिणी, Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना [ म लीच्छन, गत चोवीसी, अनागत चौवीसी एवं मोक्ष नामों का निरूपण संग्रंथन किया गया है। तत्पश्चात् मुनि, प्राचार्य, शिष्य, दोक्षा आदि शब्दों का जैनमतानुसार नामोल्लेख किया गया है / द्वितीय विभाग में स्वर्ग, देव, अकृत. भवनपति, व्यन्तरदेव, सूर्य नक्षत्र आदि के नामों का उल्लेख है। देवी-देवताओं एवं तत्सम्बन्धी साधनों का वर्ग इस विभाग में समाया हुआ है। तीसरे मर्त्य विभाग में मृत्यूलोक सम्बन्धी नामों का उल्लेख हा है, जिसमें पदार्थों से लेकर मनुष्य के भाव भी सत्व अभयत्व आदि का भी समावेश हुआ है। यह विभाग बड़ा है। . चौथे तिर्यग् विभाग को पृथ्वीकाय के नामों से प्रारम्भ किया गया है। इसमें प्रत्येक वस्तु के सूक्ष्म से सूक्ष्म भेदों का निरूपण किया गया है- जैसे क्षेत्र, धूलि, लेष्टु व नगर आदि / इसमें साग-सब्जियों के नाम से लेकर पशु-पक्षियों के नामों एवं भेदों तक का उल्लेख है। पाँचवें नारक विभाग में नरक, नरक की वासनाओं एवं पाताल आदि के नामों का उल्लेख है। यह सबसे छोटा विभाग है। - छठा सामान्य विभाग अपेक्षाकृत बड़ा है। इसमें लोक, प्रात्मा, जीव, श्वास, मन, गुण, अवस्था, पाप, पुण्य आदि के नामों का उल्लेख है। अन्य विभागों के बचे हए समस्त विषय इसमें आए हैं, पर प्राचार्य श्री की दृष्टि जैन दर्शन के परिभाषिक नामों एवं शब्दों पर ही टिकी रहती है। सब प्रकार के Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ य] सुशीलनाममालायां साधन के साथ जैन दर्शन के नामों का साधन इस नाममाला की विशेषता है। परिशिष्ट में अकारादि क्रम से एकाक्षर कोशमाला भी दी गई है, जो इस नाममाला की पूर्णता का प्रतिपादन करती है। सबसे अन्त में 'सुशील नाममाला' में स्थित शब्दों की अकारादि क्रम से अनुक्रमणिका दी गई है, जो दिदृक्षुओं एवं जिज्ञासुओं के बड़े काम की वस्तु है। - ग्रंथकार का परिचय पृ० प्राचार्य श्रीसुशीलसूरिजी म० एक सिद्धहस्त लेखक हैं एवं इन्होंने 108 छोटे-मोटे ग्रन्थों का सर्जन किया है। उनमें से 56 तो प्रकाशित हो चुके हैं। इन ग्रन्थों में 'तीर्थङ्कर चरित्र', 'छन्दो-रत्नमाला', षड्दर्शन दर्पण (संस्कृत) 'शील दूत टीका' एवं 'श्री हेम शब्दानुशासन सुधा' आदि प्रमुख हैं। इतिहास एवं पुरातत्व में भी आपकी रूचि है एवं निरन्तर साहित्य सर्जन से जैन जगत के भण्डार को भर रहे हैं। आपका जन्म वि० सं० 1973 में गुजरात के चारणस्मा ग्राम में हुआ था। माता का नाम चंचल बहन व पिता का नाम चतुरभाई ताराचन्द मेहता था। दस वर्ष की लघुवय में ही संयम पथ पर अग्रसर होने की इनकी भावना प्रकट हुई एवं 15 वर्ष की अवस्था में सं० 1988 में प्रवर्तक प्रवर श्रीमद् लावण्यविजयजी म. के वरदहस्त से दीक्षित हुए। सं. 1988 में ही बड़ी दीक्षा प्राचार्य देवेश शासन सम्राट् श्रीमद् विजय नेमिसूरीश्वरजी म. के हाथ सम्पन्न हुई। सं० 2007 में Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना [ र इन्हें गणिपदवी प्राप्त हुई एवं इसो साल इन्हें पन्यास पदवी से विभूषित किया गया। सं० 2021 में मुण्डारा ग्राम में आपको उपाध्याय एवं आचार्य पदवी से मंडित किया गया। शास्त्र विशारद, साहित्यरत्न एवं कविभूषण की पदवी से समलङ्कृत प्राचार्य महाराज प्रखर वक्ता एवं सिद्ध लेखक हैं। जैसलमेर 'तीर्थ में श्री संघ ने आपको 'जैन दिवाकर' की उपाधि से सम्मानित किया। - आपका सम्बन्ध कई मंदिरों की प्रतिष्ठा से रहा है एवं कई तीर्थ स्थानों का आपने जीर्णोद्धार करवाया है। जैन जगत में महत्वपूर्ण कई संघों का आयोजन आपकी निश्रा में हुआ है। जैन जगत में एक प्रखर आचार्य के रूप में आपकी प्रतिष्ठा है। इन प्रखर प्राचार्य श्री की लेखनी अभी भी व्याकरण, न्याय, साहित्य, छन्दकोश आगम आदि विविध विषयों पर चल रही है एवं मुझे आशा है कि जैन जगत से बाहर भी प्राचार्य श्री की प्रतिष्ठा एक विद्वान् मनीषी के रूप में प्रतिष्ठित रहेगी। विद्वद्रज प्रो० सोहनलाल पटनी दीपोत्सव, 2033 एम. ए. (संस्कृत, हिन्दी) हिन्दी विभाग राजकीय महाविद्यालय, सिरोही Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इस ग्रन्थ के व्रणेता जैनधर्म दिवाकर-शासनरत्न-तीर्थप्रभावक परमपूज्य आचार्यदेव श्रीमद्विजयसुशीलसूरीश्वरजी म. साo " का जन्म प्रापश्री शासनसम्राट्-सूरिचक्रचक्रवत्ति-तपोगच्छाधिपति प० पूज्य प्राचार्य महाराजाधिराज श्रीमद्विजय नेमिसूरीश्वरजी म. सा. के सुविख्यात पट्टालङ्कार-साहित्यसम्राट-व्याकरणवाचस्पतिशास्त्रविशारद-कविरत्न प० पू प्राचार्यप्रवरश्रीमद्विजयलावण्यसूरीश्वरजी म. सा. के प्रधान पट्टधर-व्याकरणरत्न-शास्त्र विशारद-कविदिवाकर-देशनादक्ष प० पू० प्राचार्यवर्यश्रीमद् विजयदक्षसूरीश्वरजी म. सा. के सहोदर पट्टधर हैं / प्रापश्री का जन्म वि० सं० 1973 की साल में भाद्र शूद द्वादशो के दिन महागुजरात में आये हुए सुप्रसिद्ध चाणस्मा गांव में चौहारण गौत्र के वीशाश्रीमाली स्व० महेता चतुरभाई ताराचन्दजी की धर्मपत्नि स्व० चंचलबाई की कुक्षी से हुआ था। प्रापश्री की भागवती दीक्षा पूर्वभव की आराधना, इस भव में माता-पिता के द्वारा बाल्यावय में पड़े हुए सुसंस्कार और सद्गुरु के संयोगादि के . कारण से दस वर्ष की अवस्था में चारित्र के पुनीत पन्थ में प्रयारण करने की शुभ भावना प्रगट हुई। वि० सं० 1988 कार्तिक (मागशर) वद बीज के दिन 15 वर्ष की बालवय में परमपूज्य प्रवर्तक मुनिप्रवर श्रीलावण्यविजय Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनधर्मदिवाकर-शासनरत्न-तीर्थप्रभावक-जस्राथानदीपक-मरुधर देशोद्धारक-शास्त्रविशारद-साहित्यरत्न-कविभूषण बालब्रह्मचारी-पूज्यपाद् आचार्यदेव श्रीमद्विजयसुशीलसूरीश्वरी _महाराज साहेब। Page #41 -------------------------------------------------------------------------- _ Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ग्रन्थकार का परिचय [ व जी म. सा. के वरदहस्ते मेवाड़ के पाटनगर उदयपुर में पिताजी की सम्मति और विद्यमानता में महामहोत्सव पूर्वक हुई थी। प्रापश्री की बड़ी दीक्षा वि० सं० 1988 महा शुद पांचम ( वसन्त पञ्चमी ) के दिन शासनसम्राट् प० पू० प्रा० श्रीमद्विजयनेमिसूरीश्वरजी म० सा० के वरदहस्ते, महागुजरात में आया हुआ श्रीसेरीसा तीर्थ में नूतन जिनमन्दिर में प्राचीन मूलनायक श्रीसेरीसा पार्श्वनाथ प्रभु के प्रवेश प्रसंग पर चलता हुआ श्रीबृहद्नन्द्यावतपूजन युक्त महामहोत्सव में हुई थी। प्रापश्री की गणिपदवी _ वि० सं० 2007 कात्तिक (मगसर) वद छठ के दिन साहित्यसम्राट् प० पू० प्रा० श्रीमद्विजयलावण्यसूरीश्वरजी म. सा. के वरदहस्ते, सौराष्ट्र में आया हुआ वेरावल बन्दरगाह में आप श्री के गुरुवर्य पूज्य मुनिप्रवर श्रीदक्षविजयजी म. सा. के साथ में सोलह दिन के महामहोत्सव पूर्वक हुई थी। प्रापश्री को पंन्यास पंदवी वि० सं० 2007 वैशाख शुद त्रीज (अक्षय तृतीया) के दिन .. स्व० शासनसम्राट समुदाय के पाठ पूज्यपाद प्राचार्य महा राजादि विशाल साधू समुदाय, साध्वी समुदाय: और श्रावक श्राविकादि जैन-जैनेतर जनता के समक्ष, स्व समुदाय के 15 गणिवरों के साथ राजनगर, अहमदाबाद में महामहोत्सव पूर्वक हुई थी। प्रापश्री की उपाध्याय और आचार्य पदवी वि० सं० 2021 महा शुद त्रीज के दिन उपाध्याय पदवी Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श] सुशीलनाममालायां और पाँचम (बसन्त पञ्चमी) के दिन प्राचार्य पदवी पूज्यपाद ' प्राचार्यप्रवर श्रीमद्विजयदजीसूरीश्वरजी म. सा. के वरदहस्ते राजस्थानान्तर्गत मरुधर देश में आये हुए श्रीराणकरजी तीर्थ तथा श्रीवरकाणाजो तीर्थ समीपवर्ती मुण्डारा गाँव में अभूतपूर्व शासन प्रभावना पूर्वक 61 घोडके उद्यापनादि महामहोत्सव युक्त हुई थी। उसी प्रसंग पर आपश्री प्राचार्य पदवी के साथ साथ 'शास्त्र विशारद' 'साहित्य रत्न' और 'कविभूषण' इन तीन पदों से भी समलङ्कृत किये थे। प्रापश्री ने __ जैन धर्म के विद्यमान 45 आगम के योगोद्धहन विधिपूर्वक किये हैं। श्रीवीशस्थानक तप की और श्री नवपदजी महाराज की अोली की भी प्राराधना विधिपूर्वक की है। श्रीर्वद्धमानतप की 36 मी अोली की आराधना हो गई है। तीर्थाधिराज श्रीसिद्धगिरिजी महातीर्थ की विधिपूर्वक 66 यात्रा और चोवीहारा छट्ठ कर के दो दिन में सात यात्रा भी कर ली है। तदुपरान्त सूरिमन्त्र के पञ्चप्रस्थान की विधिपूर्वक पंञ्चअोली युक्त सम्यग् आराधना की है। आपश्री का प्रतिदिन 108 बार सूरिमन्त्र का अखण्ड जाप अद्यावधि चालू है / नित्य प्रात्मरक्षा नवकार मन्त्र, सात स्मरण, जिन पञ्जरस्तोत्र, ग्रहशान्तिस्तोत्र. श्रीपार्श्वनाथ मन्त्राधिराजस्तोत्र, श्रोऋषिमण्डलस्तोत्र, श्रीतत्वार्थाधिगम सूत्र, शत्रुञ्जयलघुकल्प और श्रीगौतमाष्टक आदि का स्वाध्याय भी अद्यावधि चाल है। Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ग्रन्थकार का परिचय प्रापश्री के वरद हस्ते श्रीमूछाला महावीर तीर्थ में, श्रीकापरडाजी तोर्थ में,श्री जैसलमेर तीर्थ में, गुजरात के पाटण शहर में भी प्रतिष्ठा परम शासनप्रभावनापूर्वक हुई है। तदुपरांत जोधपुर, उदयपुर, पाली, सिरोही, सादड़ी, रानी स्टेशन, खीमेल, खुडाला, नांदणा, धरणी, शिवगंज, जावाल, अनदोर, मनोरा, गूडा-बालोतान्, लकडवास, गुडली, बडी रुपाहेली आदि क्षेत्रों में भी परमशासनप्रभावना पूर्वक प्रतिष्ठाएँ खीमेल में और बिलाड़ा में, श्रीब्राह्मणवाडजी तोर्थ में और खौड़ गांव में तथा रानीगांव में भी अञ्जननलाका तथा प्रतिष्ठा अनुपम शासन-प्रभावना पूर्वक हुई हैं। प्रापश्री की शुभ निश्रा में 1. खौड़ से पैदल संघ श्रीकापरडाजीतीर्थ का और श्रीराणक पुरजी की पञ्चतीर्थी का निकला है। * 2. बिजोवा से पैदल संघ श्रीराणकपुरजी पञ्चतीर्थी का निकला है। 3. खीमेल से पैदल संघ श्रीराणकपुरजी पञ्चतीर्थी का निकला है। 4. सिरोही से पैदल संघ श्रीपाबूजीतीर्थ का निकला है। 5. पाली से पैदल संघ श्रीकापरड़ाजीतीर्थ का निकला है। 6. पीपाड़ से पैदल संघ श्रीफलवृद्धिपार्श्वनाथजी तीर्थ का - निकला है। Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स ] सुशीलनाममालायां 7. केकड़ो से पैदल संघ श्रीचॅवलेश्वरजीतीर्थ का निकला है। . ' 8 उदयपुर से पैदल संघ श्रीकेशरियाजीतीर्थ का निकला है। 6. सादड़ी से पैदल संघ श्रीकेशरियाजीतीर्थ का निकला है / .. 10. जोधपुर से पैदल संघ श्रीगांगाणीजीतीर्थ का निकला है / 11. उदयपुर से पैदल संघ श्रीराणकपुरजीतीर्थ का निकला है। प्रापश्री को 1. श्रीजैसलमेर तीर्थ में प्रतिष्ठा प्रसंग पर श्रीसंघ ने समारोह पूर्वक 'जैनधर्मादवाकर' पद से विभूषित किया है। (वि. सं. 2027) 2. रानी स्टेशन में प्रतिष्ठा प्रसंग पर श्रीसंघ ने समारोह पूर्वक 'मरुधर देशोद्धारक' पद से समलंकृत किया है। (वि. सं. 2028) 3. श्रीचवलेश्वरतीर्थ में संघमाला प्रसङ्ग पर श्रीकेकड़ी संघ ___ ने समारोहपूर्वक 'तोर्थप्रभावक' पद से विभूषित किया है। . (वि सं 2026) 4 पाली शहर में प्रतिष्ठा प्रसंग पर श्रीसंघ ने समारोहपूर्वक ___ 'राजस्थान दोपक' पद से समलंकृत किया है (वि. सं.२०३१) 5. जोधपुर नगर में प्रतिष्ठा प्रसंग पर श्रीसंघ ने समारोह पूर्वक 'शासनरत्न' पद से विभूषित किया है (वि सं. 2031) प्रापश्री के सदुपदेश से (1) श्रीकापरड़ाजी तीर्थ में 'समवसरण मन्दिर' का निर्माण हुआ। (2) खीमेल में 'श्रीपावापुरी मन्दिर' का निर्माण हुआ। Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ग्रन्यकार का परिचय . (3) जोधपुर में 'शाश्वतजिन समवसरण मन्दिर' का निर्माण हुआ। (4) नाडोल में 'श्रीसिद्धचक्र मन्दिर', 'श्रीपावापुरी मन्दिर' का तथा लघुशान्ति के कर्ता श्रीमान देवसूरिजी म. सा० का जावन-चरित्र पारस के पट्ट में तैयार हो रहा है। (5) श्रीजैसलमेर पञ्चतीर्थी में जिनमन्दिरों का जीर्णोद्धार का काम चल रहा है। (6) जावाल में 'श्रमण भगवान महावीर कोत्तिस्तम्भ' का कार्य शुरू कराया है। (7) खिमाड़ा में 'स्व० प्रा० श्रीमद्विजयलावण्यसूरीश्वरजी समाधिसद्गुरुमन्दिर' का काम हो गया है। (8) शूरगांव में जिनमन्दिर के पास श्रीसुशील जैन श्वेताम्बर धर्मशाला (जिला-उदयपुर) तैयार हुई है। प्रापश्री का ग्रंथ सर्जनादि संस्कृत मेंतीर्थङ्कर चरित्र. षड्दर्शन दर्पण, सुशील नाममाला (संस्कृत शब्दकोश) छन्दोरत्नमाला, काव्यानुशासन टीका, शीलदूतवृत्ति, अर्हन अष्टोत्तरसहस्रनाम स्तोत्र, आत्मनिन्दा द्वात्रिशिका टीका, 'श्रीरत्नाकर पञ्चविंशिका टीका इत्यादि हुए हैं। गूर्जर भाषा मेंश्रीहेमशब्दानुशासन सुधा, रत्ननोमाला, सम्यक् रत्न दीपक, प्रभु महावीर जीवन सौरभ, तीर्थयात्रा संघनी महत्ता, सुशील लेख संग्रह, सुशील साहित्य संग्रह इत्यादि हुए हैं। [छोटे-बड़े 108 ग्रंथों की रचना प्रापश्री ने की है, और अनेक ग्रन्थों का सम्पादन कार्य भी आपश्री के द्वारा हुआ है।] Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्ष ] सुशीलनाममालाया प्रापश्री के-संसारी पिताश्री और संयमावस्था के साधु, स्वर्गीय शासनसम्राट् प. पू. प्राचार्य महाराजाधिराज श्रीमद् विजयनेमिसूरीश्वरजो म० के शिष्यरत्न संयमवयस्थिर पूज्य मनिराज श्रीचन्द्रप्रभविज्यजी म. संयम की सुन्दर आराधना करके स्वर्ग सिधाये हैं। प्रापश्री के-संसारी ज्येष्ठ बन्धु और संयम अवस्था के गुरु स्वर्गीय साहित्य-सम्राट् प० पू० प्राचार्यप्रवर श्रीमद्विजयलावण्यसूरीश्वरजी म. सा. के प्रधान पवर-व्याकरणरत्न-शास्त्रविशारद-कविदिवाकर-देशनादक्ष-धर्मप्रभावक पूज्य आचार्यप्रवर श्रीमद्विजयदक्षसूरोश्वरजी म. सा. अनुपम शासन को प्रभावना कर रहे हैं। प्रापश्री को-संसारी छोटी बहिन और संयंम अवस्था की साध्वी, स्व. शासनसम्राट् समुदाय के प्राज्ञावत्तिनी परमविदुषी स्व० पू० साध्वी श्रीप्रभाश्रीजी म. श्री की शिष्या, बालब्रह्मचारिणी-विद्यानुरागिणी-संयमी पू. साध्वी श्रीरवीन्दुप्रभाश्रीजी म. भी संयम की सुन्दर आराधना कर रही हैं / प्रापक्षी भी-बालब्रह्मचारी, 46 वर्ष के निर्मल दीक्षा पर्याय वाले व्याकरण-न्याय-साहित्य-छन्द-कोश-आगम आदि अनेक शास्त्रों के ज्ञाता, प्रशान्त, सौजन्यमूर्ति, प्रतिभाशालो, सच्चारित्र. शोल, क्रियापात्र और ज्ञानध्यानादिक में सदा लीन रहते हैं / दिनाङ्क 17-6-1978 मनोजकुमार बाबुलालजी हरण * 'बी. कॉम. सिरोही (मारवाड़) Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ KE-KE-K . प्रकाशकीय निवेदन * KE-KE-KE 'प्राचार्य श्रीसुशोलसूरि जैन ज्ञान मन्दिर' की तरफ से यह 'सूशील नाममाला' (संस्कृत शब्दकोश) नूतन ग्रंथ का प्रकाशन करते हुए अत्यन्त हो आनन्द का अनुभव कर रहे हैं। इस विशालकाय ग्रन्थ का सर्जन संस्कृत भाषा में पद्यमय अनुष्टुप् छन्द में 2824 श्लोकों में शासनसम्राट् समुदाय के सुप्रसिद्ध जैन धर्मदिवाकर-शासनरत्न-तोर्थप्रभावक-राजस्थान दीपक-मरुधरदेशोद्धारक-शास्त्रविशारद-साहित्य रत्न-कविभूषण बालब्रह्मचारी-परमपूज्य-प्राचार्यदेव-श्रीमदिजयसुशीलसूरीश्वरजी म. सा. ने अति परिश्रम करके बहुत ही सुन्दर किया है। संस्कृत पढ़ने वाले विद्यार्थियों और विद्यार्थिनियों को, संस्कृत जानने वाले विद्वानों और विदुषियों को संस्कृत भाषा में गद्य या पद्य में रचना करने वाले सब के लिये यह ग्रन्थ अति उपयोगी प्रमाणित होगा एवं विश्व के इतिहास में सुवर्ण अक्षरों में अङ्कित होगा। इस ग्रन्थ के सर्जक प० पू० प्राचार्य महाराज सा० ने प्रास्ताविक पुरोवचन सुन्दर लिखा है। र जस्थान में सुप्रसिद्ध तर्कतीर्थ-व्याकरण-साहित्याचार्य, शिक्ष शास्त्री पण्डितप्रवर मैथिल श्रीसुरेशझाजी ने इस ग्रन्थ का साद्यान्त प्रफ संशोधन कार्य बहुत ही सुन्दर ढंग से किया है और भूमिका भी श्लोक में बनाकर दी है, इसलिए धन्यवाद देते हुए हम सन्माननीय पण्डितजी के आभारी हैं। Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञ ]. सुशीलनाममालायां ___ इस ग्रन्थ को 'प्रस्तावना' प्रोफेसर श्री सोहनलालजी पटनी सिरोही वालों ने प्रौढ भाषा में सुन्दर लिखी है, इसलिए हम उनके भी आभारी हैं। प० पू० प्रा० म० सा का संक्षिप्त परिचय लिखने वाले विधिकारक श्री मनोजकुमार बाबूलालजी हरण के भी हम प्राभारी हैं। इस ग्रंथ के सम्बन्ध में अपनी अपनी तरफ से सुन्दर अभिप्राय देने वाले पू० प्राचार्य महाराजादि मुनि भगवन्तों का, विद्वानों और प्रोफेसरों आदि का भी हम आभार मानते हैं। इस विशालकाय ग्रन्थ प्रकाशित करने में द्रव्यं सहाय दाता भाई-बहनों को धन्यवाद देते हैं। Page #50 -------------------------------------------------------------------------- _ Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - - * अई नमः // * प्रातःकालीन प्रमु प्रार्थना* ॥मलाष्टकम् // मलं सिद्धच , मऊलं परमेष्ठिनः / मङ्गलं ऋषभो देयो, मशालमजितो निन: // 1 // महलं सम्मेवोनायो, मालमिनन्दनः / मझालं सुमतिस्वामी, मद्यप्रमे यमझलम्॥२॥ मझलं श्रीगुपायो बै, चन्द्रप्रमेा समालम् / मकल सुविधि देवो, मङ्गलं शीतलो जिनः // 3 // श्रेयांसो मझल श्रेष्ठो, वासुपूज्य च मकालम् / मकालं विमलो देवो, जिनोऽनन्तोऽपिमङ्गलम् // 4 // मऊलं धर्मनाथः श्री-शान्तिनाथश्च मझलम् / मऊलं कन्यनाथो चै, जनाधोऽपि मालम्॥ माल मल्लिनाथो वै, मालं मुनिसुव्रतः / मङ्गलं नमिनाथः श्री, नेमिनाथश्च मझलम्॥६॥ मङलं पाश्विनधिः श्री-महावीर श्य मझलम् / मऊलं गौतमस्वामी, सुघोद्यपि मझलम् // 7 // मङलं स्थलमेद्राया, गुरुदेवा च मालम् / मझाले श्रुतदेवी चें, जैनधमोऽस्तु मझलम् // // यो मलाष्टकमिदं सुप्रभातफाले, . नित्यं च निर्मलमनः शुचिधारधीते | समाग्यशीलकलितो इतसर्वविघ्नो, विश्वे स मङलमलं लभेते सुशीलः॥९॥ // श्रीरस्तु // शुभं भवतु श्रीसंघस्य / [रचयिता - विजय सुशीलसरिः / - - Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अहम् / ॥श्री गढसिवानानगरमण्डन-श्रीपार्श्वनाथ जिनेश्वरेभ्यो नमः // // शासनसम्राट्-श्रीमविजयनेमिसूरीश्वर परमगुरुभ्यो नमः // ॥साहित्यसम्राट्-श्रीमविजयलावण्यसूरीश्वरप्रगुरुभ्यो नमः // 'साहित्यरत्न-शास्त्रविशारद-कविभूषण' इति पदालङ्कृतेन श्रीविजयसुशीलसूरिणा बिरचिताErrowrommons / सुशीलनाममाला ولاعه मङ्गलाचरणम्।... [अनुष्टुव्-वृत्तम् ] प्रणम्य श्रीमहावीरं, महाधीरं महागिरम् / वीतरागं च सर्वज्ञ, सावं विश्वाचितं विभुम् // 1 // मनन्तलम्धिसत्सौषं, भीगौतमेन्द्रभूतिकम् / . गणपरं सुधाण, . गुणिमणिमधोधहम् // 2 // Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालायां युगप्रधानकल्पं चा,-ऽऽबाल्यतो ब्रह्मचारिणम् / श्रीतीर्योद्धारक सूरि, सम्राजं नेमिसूरिपम् // 3 // शब्दानुशासने वाच-स्पति शास्त्रविशारदम् / प्रगुरु कविरत्नं स्वं, नत्वा लावण्यसूरिपम् // 4 // कविदिवाकरं शास्त्र,-विशारदं सहोदरम् / शब्दानुशासने रत्नं, सद्गुरु दक्षसूरिपम् // 5 // माहती भारती भव्या, स्मृत्वा श्रीश्रुतदेवताम् / विज्ञप्त्या स्वविमेयस्य देवमद्राभिधस्य वै // 6 // NAAMKAamam सुशीलनाममालेयं, सुशीलसूरिणा मुदा / बालबोधाय हुन्धाऽभिधानचिन्तामणि मिता 17 Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमो देवाधिदेवविभागः ___ // अथ प्रथमो देवाधिदेवविभागः // * अर्हन्नामानि * अर्हन्' जिन स्त्रिकालज्ञः, परमेष्ठी जगत्प्रभुः / स्वयम्भू भगवान् शम्भु,- स्तीर्थङ्करो जिनेश्वरः // 8 // सर्वज्ञः'१ सर्वदर्शी'२ च, स्याद्वादी केवलोश्वरः१४ / प्राप्तो' 5 देवाधिदेवो' 6 वै, वीतरागोऽप्यधीश्वरः१८ // 6 // बोधिदो ऽभयदो° पार-गतश्च 21 पुरुषोत्तमः 22 // सार्व२३ स्तीर्थाधिप श्वे माः, संज्ञाः सन्तु शिवप्रदाः // 10 // _* वर्तमान चतुर्विंशतितीर्थङ्कराणां नामानि * श्रीऋषभो'ऽजितो देवः, सम्भव श्वाभिनन्दनः / पञ्चमः सुमतिस्वामी, षष्ठः पद्मप्रभः प्रभुः // 11 // सुपार्श्व: सप्तमः स्वामी, चन्द्रप्रभजिनोऽष्टमः / सुविधिः शीतलस्वामी,' श्रेयांसोवासुपूज्यक:१२ // 12 // विमलोऽनन्त'४-धर्मों५च, शान्तिः कुन्थुः "त्वरो जिनः / मल्लिनाथो जिनेन्द्रश्च, श्रीमुनिसुव्रतो नमिः२१ // 13 // नेमिः२२ पार्थो 33महावीरो,२४ भवादवतु वः सदा / एतस्यामवसपिण्या-चतुर्विशतिरहताम् // 14 // -- * गणधरनामानि * श्रीवीरस्येन्द्रभूतिः' श्री, अग्निभूति द्वितीयकः / वायुभूति' रिति भ्रातृ,-त्रिकं गौतमगोत्रपम् // 15 // Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालायां व्यक्तः सुधर्म मण्डित',-मौर्यपुत्रा-अकम्पितः / प्रचलभ्रातृ-मेतार्य, -प्रभासा" गणधारिणः // 16 // [युग्मम्] * श्रुतकेवलिनामानि * अन्तिमः केवली जम्बू', स्वामी श्रीवीरशासने / जातोऽथ प्रभवस्वामी', शय्यम्भवाभिध स्तथा // 17 // यशोभद्रश्च सम्भूति -विजयो भद्रबाहुक: / स्थूलभद्रोऽन्तिमश्चैते, श्रुतकेवलिनो हि षट् // 18 // * दशपूर्वधरनामानि र महागिरिः सुहस्ती च, सूरिः श्रीगुणसुन्दरः / श्यामार्यः स्कन्दिलार्यश्च, रेवतीमित्र सूरिपः // 16 // श्रीधर्मा भद्रगुप्त इच, श्रीगुप्तो वज्रसंज्ञकः' / प्रायः सूरीश्वरा जाता, दशैते दशपूर्विणः // 20 // * तीर्थङ्कराणां पितृनामानि * नाभिराड्' जितशत्रुश्च, जितारिः संवरो नृपः / मेघो धरो धराधीशः, प्रतिष्ठो ऽप्रतिमो नृपः // 21 // महासेनो महाराजा, सुग्रीवो वसुधाधिपः / दृढरथो °नृपो विष्णु", सुपूज्यः१२प्रजापतिः // 22 // कृतवर्मा नृपो सिंह-सेनो 4 भानु१५ नरेश्वरः / विश्वसेन स्तथा सूरः", सुदर्शन'श्च कुम्भराट् // 23 // Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमो देवाधिदेवविभागः सुमित्रो२० विजयो 1 राजा, समुद्रविजय:२२क्रमात् / अश्वसेन२३श्च सिद्धार्थः,२४ सन्त्येते पितरोऽर्हताम् // 24 // * तीर्थङ्कराणां मातृनामानि * प्रथमा मरुदेवा'ऽम्बा, द्वितीया विजयाह्वया / ततः सेना च सिद्धार्था', सुमाता मङ्गला' तथा // 25 // सुसीमा जननी पृथ्वी, माता च लक्ष्मणाऽमला। रामा नन्दा' प्रसू विष्णु'',-जया'श्यामाभिधा ततः॥२६॥ सुयशा:१४ सुव्रता१५ माता, तथाऽचिराभिधा ततः / जनित्री श्री' ७श्च देवीच, माता प्रभावती तथा // 27 // पद्मा२० वप्रा२१ शिवा२२ वामा२३, सुमाता त्रिशला२४ऽन्तिमा / श्रीतीर्थङ्करमात णां, नामान्युक्तानि प्रक्रमात् // 28 // . * तीर्थङ्कराणां यक्ष [शासनदेव] नामानि * : गोमुख'श्च महायक्ष,-विमुखो यक्षराट् ततः / तुम्बुरु: कुसुमो यक्षो, मातङ्गो ऽविजयो जितः // 26 // ब्रह्मा'• यक्षेट्' कुमारः१२ षण-मुख:१३ पाताल'४-किन्नरौ५। यक्षो गरुड'.६-गन्धर्वो," यक्षेन्द्र'८श्च कुबेरक:१६ // 30 // वरुणो२० भृकुटि र्यक्षो, गोमेध:२२ पार्श्व 3यक्षपः। मातङ्ग२४ श्चाहतां भक्ताः, क्रमात् शासनरक्षकाः // 31 // Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालायां * तीर्थङ्कराणां यक्षिणी [शासनदेवी] नामानि के प्राद्या चक्रेश्वरी देवी, तथा ऽजितबला' ततः।। दुरितारिश्च काली वै, महाकाली च यक्षिणी // 32 // श्यामा देवी तथा शान्ता". भृकुटिश्च सुतारका / अशोका' मानवी' 'देवी,चण्डा'च विदिता' 3-ऽङ्कुशा'४॥३३॥ कन्दर्पा१५ चैव निर्वाणी१६, बला'७ देवी च धारिणी'८। वैरोट्या'६ नरदत्ता२० वै, गान्धारी२१ चाम्बिका 'सुरी // 34 // देवी पद्मावती२३ चैव, सुरी सिद्धायिका२४ऽन्तिमा। क्रमेणता बुधै र्बोध्या, जैनशासनरक्षिकाः // 35 // ____* तीर्थङ्कराणां लाञ्छनानि * वृषभो वारणो वाजी', कपिः क्रौञ्चा'-ऽब्ज-स्वस्तिकाः / चन्द्रमाःमकराङ्कः श्री,-वत्सः' खड्गी''च सैरिभः१२ // 36 // शूकरो' श्येन'को वज्र'५, मृगः१५ छाग:" सुलाञ्छनम् / नन्द्यावर्तश्च कुम्भश्च, कूर्मो नीलोत्पलं 'ततः // 37 // शङ्क:२२ सर्प२३ श्च सिंहश्च२४, क्रमतो लाञ्छनानि च / तत् तत् तीर्थकृतां चैत,-च्चिह्नानि ज्ञापकान्यपि // 38 // ____* गतचतुर्विंशतितीर्थङ्कराणां नामानि * जिनेन्द्रः केवलज्ञानी', निर्वाणी सागर स्ततः / महायशा श्चतुर्थश्च, पञ्चमी विमला भिधः // 36 // Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमो देवाधिदेवविभागः ततः सर्वानुभूतिश्च, श्रीधरो" दत्ततीर्थपः। दामोदरः सुतेजा'श्च, स्वामी'१ च मुनिसुव्रतः१२ // 40 // तीर्थकृत् सुमति' स्वामी, विभुः शिवगति१४ स्तथा। प्रस्ताग१५ स्तीर्थकृद् देवो, निमीश्वर१६ स्ततोऽनिल:१७ // 41 // यशोधरः१८ कृतार्थ ६श्च, तीर्थङ्करो जिनेश्वर:२० / ततः शुद्धमति२१देवः, शिवकर२२ स्ततः परम् // 42 // स्यन्दनः२३ सम्प्रति२४श्चेति, चतुर्विशतिरहताम् / उत्सपिण्यामतीतायां, बुधै बर्बोध्या स्तुताः सुरैः // 43 // ___* अनागतचतुर्विंशतितीर्थङ्कराणां नामानि * तीर्थकृत् पद्मनाभन, शूरदेवः सुपार्श्वकः / स्वयंप्रभ स्तत: सर्वानुभूतिः परमेश्वरः // 44 // देवश्रुतो -दयौ देवी, पेढालः, पोट्टिल स्तथा। जिनेशः शतकोति' श्च, श्रीसुव्रतो जिनोऽममः१२ // 45 // निष्कषायश्च निर्माय., निष्पुलाक' ४श्च निर्ममः१५ / चित्रगुप्तः१६ समाधि'श्च, संवरो'८ वै यशोधरः१६ // 46 // विजयो मल्ल२१-देवौ२२चा,-ऽनन्तवीर्य 3 श्च भद्रकृत्२४ / उत्सर्पिण्यान्तु भाविन्यां, चतुर्विशति रहताम् // 47 // . * मोक्षस्य नामानि * महानन्दो' ऽमृतं मुक्तिः, मोक्षो ब्रह्म महोदयः / / श्रेयो निःश्रेयसं सिद्धिः, कैवल्य' मपुनर्भवः // 48 // Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालायां निर्वाणं१२ निर्वृतिः१३ शान्तिः४, सर्वदुःखक्षयः१५ शिवः१६ / निर्याण "मपवर्ग१८श्चा- ऽक्षरं चेति शिवाभिधाः // 46 // ___ * मोक्षसाधनम् * ज्ञान-श्रद्धान-चारित्र,-योगो' मोक्षस्य साधनम् / मौन' चाऽभाषणं प्रोक्तं, धर्मोपदेशको' गुरु:२ // 50 // के मुनिनामानि * वाचंयमो' ऽनगार'श्च, निर्ग्रन्थः भमणो मुनिः / ऋषि यति यंती साधुः८, मुमुक्षु भिक्षुक' श्च सन् 1 // 51 // त्यागी१२ योगी१३ वियोगी१४च, क्षमो१५ शमीदमी' यमी१८॥ संयमी माहनो२: मौनी२१, चारित्री २२च महाव्रती // 52 // * आचार्यादिपदस्थगुरुनामानि * अनुयोगकृ'दाऽऽचार्य, उपाध्याय"श्च पाठकः। अनूचानः' प्रवचने, साङ्गेऽधीतो गणिः स च // 53 // * शिष्यनामानि * अन्तेवासी' विनेय'श्च, शैक्षः प्राथमकल्पिकः / छात्रोऽन्तेषच्च विद्यार्थी, शिष्यश्च शिष्यवाचकाः // 54 // * गुरुबन्धुनामानि * सतीर्थ्या श्चैकगुरवो 2, गुरुभ्रातृप्रवाचकाः / एकब्रह्मवताचारा, मिथः सब्रह्मचारिणः // 55 // Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमो देवाधिदेवविभागः * गुरुपरम्परारूपसम्प्रदायाभिधा विवेकश्च * सम्प्रदाय' स्तथा ऽऽम्नायः२, पारम्पर्य गुरुक्रमः / गुरुपरम्परा चाथ, विवेकः' पृथगात्मता // 56 // * दोक्षावाचकाः शब्दाः * प्रव्रज्या' च परिव्रज्या२, दीक्षा-चारित्र-संयमाः। तपस्या च व्रतादानं, संन्यासो- निगमस्थितिः // 17 // * योगस्याष्टाङ्ग नामानि * ..[ योगस्य प्रयमाङ्गरूपं यमपञ्चकम् ] अहिंसा'-सत्य-मस्तेयं, ब्रह्मचर्य चतुर्थकम् / स्यादकिञ्चनता चैते पञ्चधाः कीत्तिता यमाः // 8 // . [योगस्य द्वितीयाङ्गमयं नियमपञ्चकम् ] शौचं' तथैव संतोष:२, स्वाध्यायोऽपि तपस्तथा। देवताप्रणिधानं च, पञ्चापि नियमाः मताः // 56 // [ योगस्य तृतीयाङ्गमासनं, चतुर्थाङ्ग प्राणायामः, पञ्चमाङ्ग प्रत्याहारश्च ] करण मासनं प्राणायामः' प्राणयम स्तथा / श्वासप्रश्वाससंरोधः3 प्रत्याहारो' ऽक्षरोधनम् // 60 // Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालायां -10 [ योगस्य षष्ठाङ्गधारणा, सप्तमाङ्ग च ध्यानम् ] क्वचिद् ध्येये तु चित्तस्य, स्थिरबन्धोहि धारणा' / ध्यानं तद् विषये चैक-प्रत्ययसन्तति मंतम् // 61 // [योगस्याष्टमाङ्ग समाधिः ] समाधि श्च तदेवार्थ-मात्राभासनरूपकम् / एवं योगोष्टधा प्रोक्तः, यमाद्यङ्गाष्टकेन च // 62 // * कल्याण मङ्गलादिशुभनामानि * श्रेयः' श्वःश्रेयस क्षेमं, कुशल श्वोवसोयसम् / भावुक भविकं भव्यं, भद्रं मद्रं तथा शुभम् // 3 // प्रशस्तं सुकृतं शस्तं'४, सूनृतं१५ च ततः परम् / कल्याणं मङ्गलं "चव, भद्रं काम्यं तथा शिवम् 20 // 64 // / इति श्रीतपोगच्छाधिपति - सूरिचक्रचक्रवत्ति * भारतीयभव्यविभूति चिरंतनयुगप्रधानकल्प - सर्वतन्त्रस्वतन्त्र - श्रीकदम्बगिरिप्रमुखानेकप्राचीन / तीर्थोद्धारक-पञ्चप्रस्थानमयसूरिमन्त्रसमाराधक-शासनसम्राट् - जगद्गुरु- 3 भट्टारकाचार्यमहाराजाधिराज - श्रीमद् विजयनेमिसूरीश्वर - सुप्रसिद्ध 1 पट्टालङ्कार - व्याकरणवाचस्पति-शास्त्रविशारद-कविरत्न साहित्यसम्राट् , / साधिक सप्तलक्षश्लोक प्रमाण नूतन संस्कृत साहित्यसर्जक-परमशासन , प्रभावकाचार्यदेवेश धीमद् विजयलावण्यसूरीश्वर पट्टधर-व्याकरणरत्न- . शास्त्रविशारद- कविदिवाकर-देशनादक्ष - शासनप्रभावकाचार्यदेव - श्रीमद् विजयवक्षसूरीश्वर * पट्टधर-साहित्यरत्न-शास्त्रविशारद-कविभूषण-पञ्च प्रस्थानमयसूरिमन्त्रसमाराधक शासनप्रभावकाचार्य श्रीमद्विजयसुशील सूरिणा विरचितायां सुशीलनाममालायां प्रथमो देवाधिदेवविभागः समाप्तः // 1 // www.rammmmmmmmmmmmmmmmm Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयोदेवविभागः ..........11 // द्वितीयो देवविभागः // * स्वर्गनामानि * स्वर्ग' स्त्रिविष्टपं नाको', देवलोक: सुरालयः / त्रिदिव-मूवंलोको गौ,? -दिवो छु' 'श्व दीदिविः 2065 / सैरिक१३ स्त्रिदशावासो'४, भुवि१५ स्तविष१६-ताविषौ / दिदिविसिवावासो'६, मेरुपृष्ठं२० फलोदयः // 66 // * देवनामानि * अमरा' निर्जरा देवाः, देवता दानवारयः / / गोर्वाणा नाकिनो ऽस्वप्नाः, मरुतो विबुधाभिधा:१०॥६७॥ अमर्त्या स्त्रिदशा:१२ लेखा'3, बहिर्मुखा:१४ स्वधाभुजः१५ / अनिमिषाः१५ सुपर्वाण:१९, स्वाहाभुजः१८ सुधाभुजः // 6 // स्वर्गिण२० स्त्रिदिवाधीशा:२१,ऋतुभुजोरर हविर्भुजः२३ / प्रादितेया२४ स्तथा वृन्दारका:२५ सुमनस:२६सुराः२७ // 66 // . * अमृतनामानि * पीयूषं चापि पेयूषं, देवभोज्यं सुधा ऽमृतम् / देवाहार -श्च देवान्नं , समुद्रनवनीतकम् // 70 // - * भवनपतिदेवाः * प्रसुरा' स्वैव नागाश्च, विद्युतो ऽनु सुपर्णकाः / अग्नयो वायव श्चैव, स्तनिता श्वोदधीश्वराः // 7 // Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालायां द्वोपा विशो१० दशाश्चैते, भवनपतयो मता। श्री असुरकुमाराख्य-जातिका निखिला अपि.॥७२॥ * व्यन्तरदेवाः * स्युः पिशाचा' श्च भूताश्च, यक्षा श्च राक्षसा स्तथा। ततश्च किन्नरा देवः, किंपुरुषा महोरगाः // 73 // गन्धर्वजातिका देवा, व्यन्तरा चाष्टधा मतः / व्यन्तरान्तर्गता देवा अष्टापि वाणव्यन्तराः // 7 // * ज्योतिष्कदेवाः * चन्द्रा' अर्का प्रहा' श्चैवं, नक्षत्राणि च तारकाः / / ज्योतिष्का देवताः पञ्च, विश्वे विश्वप्रकाशकाः / / 75 // * वैमानिकदेवाः * देवाः वैमानिकाः कल्प-भवा द्वादश ते त्वमी।। सौधर्मजा' स्तथैशान -जाता सनत्कुमारजाः // 76 // माहेन्द्र कल्पजा ब्रह्म-जा श्च लान्तककल्पजाः / शुक्रजाश्च सहस्रार-जा स्तथा ऽऽमतकल्पजा: // 77 // प्रारणतकल्पजा'• देवा, पारणकल्पजास्तथा। अच्युतकल्पजा२श्चते, कथिता ज्ञानिभिः खलु // 7 // . १-'अणपन्नी - पणपन्नी * इसीवादी - भूतवादी - कदित - महाकंदित कोहंड - पतङ्ग' इत्यष्टापि वारणम्यन्तरदेवाः। . Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयोदेवविभागः •कल्पातीताश्च विज्ञेयाः, नवगैवेयकाः सुराः / 'पञ्चानुत्तरगा एवं, चतुनिकाय देवताः / / 76 / * सूर्यनामानि * प्रादित्यः' सविता सूर्यः, सहस्रांशुः रवि स्तथा / मार्तण्ड स्तरणि' र्भानु-र्गभस्ति: किरणो' * भगः // 8 // अर्कः१२ पूषा 3 पतङ्गस्च, खगः१५ प्रद्योतन 6 स्तथा / तपन "स्तापन, सूर:१६,विवस्वान् २०मिहिरो'ऽरुणः२२॥११॥ सप्तसप्ति२३ हरि२४ हेलिः२५,तिमिरारि२६र्विकर्तनः२७ // भास्कर२८श्चित्रभानु२६श्च भास्वान्: मित्र:३१ विभावसुः३२ // 2 // नभोमणि33 जंगच्चक्षुः३४, विभाकर:३५ प्रभाकर:३६ / अहर्मणि दिवापुष्ट:3८ दिनेश ६३च दिवाकरः // 3 // * अर्क किरणनामानि * रोचि.' शोचि श्च रश्मि श्च, ज्योतिश्च किरणो शुचिः / घृणिः पृश्निः मयूख श्च, मरीचिर्दीधितिर्युतिः१२॥१४॥ ___ [1] सुदर्शनः, [2] सुप्रतिबद्धः, [3] मनारमः, [4] सर्वतोभद्र, [5] सुविशालः, [6] सुमनसः, [7] सौमनसः, [8] प्रियङ्करः, [6] नन्दीकर श्चेति नववेयकाः। __deg(1) विजयः, (2) वैजयन्तः, (3) जयन्तः, (4) अपराजितः, . (5) सर्वार्थ सिद्ध श्चेत्यनुत्तरा विमानदेवाः / Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 14 सुशीलनाममालायां प्रकाश'3 इतेज१४ उद्योतः१५, पालोकः१६ छवि "रातप:१८ / अचिरंशुरेश्च भा:२१ भानु:२२, गभस्ति२३ श्चविभा२४ प्रभा२५ // 5 // प्रग्रह२६ स्तथा पाद:२७, मृगतृष्णा' मरीचिका। मण्डलं' परिवेषश्च, परिधि स्तूपसूर्यकम् // 86 // सूरसूतो' ऽरुण स्चैव, काश्यपि गरुडाग्रजः। तथापि विनतासूनुः, अनूरु श्चादयो मताः // 7 // ____ * चन्द्रनामानि * चन्द्रः शशी सुधांशुश्च, विधु रिन्दुश्च चन्द्रमाः / नक्षत्रेशः निशेशश्च, निशारत्नं निशाकरः // 8 // नि शौषधी१२-कौसुदी'3-भी ४-दक्षजा'५-रोहिणी-पति:१६॥ श्वेतवाजी तथा सोमः 8, श्वेताऽमृत२०-हिम-द्युतिः / / षोडशोऽशः कला' ज्ञेया, लाञ्छनं' लक्ष्म लक्षणम् / चिह्न मङ्कः कलङ्क श्चा-ऽभिज्ञानं तदनन्तरम् // 60 // चन्द्रिका' कौमुदी' ज्योत्स्ना, चन्द्रिमा चन्द्रगोलिका / चन्द्रातपश्च बिम्बं' तु. मण्डलं तदनन्तरम् // 1 // . नक्षत्रं' तारका तारा', ज्योतिषी भ'मुड' प्रहः / धिष्ण्य मृक्षं नवैव स्यु, रन्तर्भेदोऽपि ज्ञायताम् // 2 // Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयोदेवविभागः __ 15 * नक्षत्रनामानि * प्राश्वि'न्यश्वकिनी दस्र-देवता चाश्वयुक् तथा / बालिनी चाथ नक्षत्रे, भरणी' यमदेवता // 3 // कृत्तिका' श्चाग्निदेवाश्च, बहुलाश्चाथ रोहिणी'। ब्राह्मी तु मृगशीर्ष च, मृगशिर स्ततः परम् // 14 // चान्द्रमसं तथा मार्गः, मृगश्च तदनन्तरम् / इल्वला'स्तु मृगशिरः, शिरःस्थाः पञ्चतारकाः // 6 // ज्ञेया प्रार्द्रा' तु रौद्री च, कालिनी तु पुनर्वसू / प्रादित्यौ' यामको चाथ, पुष्य 'श्च गुरुदैवतः // 6 // तिष्यः साध्य स्ततः सामे'-श्लेषा' पित्र्यास्तथा मघाः / विज्ञेया पूर्वफल्गुनी', नक्षत्र योनिदेवता // 7 // उत्तरफल्गुनी' चार्य-मदेवा' हस्त' नामकः / सवितृदेवत' स्त्वाष्ट्री', चित्रा स्वाति' स्तथाऽऽनिली२॥८॥ इन्द्राग्निदेवता' राधा, विशाखा' तदनन्तरम् / अनुराधा' च मैत्री स्यात्, ज्येष्ठेन्द्री मूल' पाश्रपः // 66 पूर्वाषाढा' तथाऽऽपी तू- त्तराषाढा' तदनन्तरम् / वैश्वी तु श्रवण' श्चैव, हरिदेव स्ततः परम् // 10 // धनिष्ठा' तु श्रविष्ठा' च, नक्षत्रवसुदेवता। शतभिषक् तु नक्षत्र-वारुणी त्वजदेवता' // 101 // Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालायां पूर्वभद्रपदा श्चैव, प्रोष्ठपदा स्ततःपरम् / नक्षत्र श्चाप्यहिर्बुध्न'- देवताः स्तदनन्तरम् // 102 // प्रोष्ठपदाश्च नक्षत्रो-तरभद्रपदा स्तथा। .. रेवती पौष्णमाख्यातं, दाक्षायण्य: शशिप्रियाः२ // 103 // * राशिनामानि * राशीनामुदयो लग्नं', स च मेषो' वृष स्तथा। मिथुनः कर्कट: सिंहः५, कन्या तुला च वृश्चिकः // 104 // धनु श्च मकर' श्चैव, कुम्भो'१ मीन'२श्च राशयः / के ग्रहनामानि के अथग्रहाणां नामानि, ज्ञेयानि क्रमतो यथा // 10 // पारो' वक्रो नवाचिश्च, माहेयोऽङ्गारक स्तथा / प्राषाढाभू.६ कुजो भौमः, लोहिताङ्गश्च मङ्गल:१०।१०६॥ बुधः' सौम्यः२ श्रविष्ठाभूः, श्यामाङ्ग श्च प्रहर्षुलः / चन्द्रात्मज स्तथा ज्ञश्च, पञ्चाषिः रोहिणीसुतः // 107 // प्राङ्गिरसो' गुरु ग्मिी', गी:पति बृहतीपतिः / द्वादशाचिः सुराचार्यो", वाचस्पति बृहस्पतिः // 10 // चित्रशिखण्डिजो' जीवो'१, धीषणो१२ फल्गुनीभव:१३।। शुक्र:' काव्यः कविःधिष्ण्यः, षोडशाचिश्च भार्गवः // 10 // Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयोदेवविभागः 17 उशना श्च भृगु श्चैव, दैत्यगुरु मघाभव:१० / शनैश्चरः१ शनिः सौरिः, सप्ताचिः रेवतीभवः // 110 // छायासुतोऽसितो मन्दः, क्रू रात्मा च यम स्थिरः११ / पङगुः१२कोड स्तथा काल:१४,नीलवासा "महाग्रह // 111 // उपराग'स्तु स्वर्भाणुःर, सैहिकेयो विधुन्तुदः / उपप्लव' स्तमो राहु', भरणीभू रथाऽऽहिकः // 112 // अश्लेषाभू श्च केतुश्च', शिखी चेति ग्रहा मताः / उत्तानपादज' श्चैव, ध्रुवाख्यः कथितो बुधैः // 113 / / * अगस्त्यनामानि * अगस्त्यो' ऽगस्ति' राग्नेयः, सत्याग्नि रग्निमारुतः:५। पातापिद्विड तथा क्वाथि:, और्वशेयो घटोद्भवः // 14 // पीताब्धि:११ वारुणिः१२ मैत्रा-वरुणि:१३ कलशीसुतः१४ / कौषीतको' तु तद्भार्या, लोपामुद्रा वरप्रदा // 11 // . * सप्तर्षि नामानि * सप्तर्षयस्तु नामानि, मरीचि रत्रि' रङ्गिराः / पुलस्त्य च महातेजाः, ऋतुः वशिष्ठ' नामवान् // 116 // पुलहः सप्तमो ज्ञेयः, एते चित्रशिखण्डिनः / * चन्द्र-सूर्यसंमिलितनामानि * पुष्पवन्तौ' पुष्पदन्ता-वेकोक्तया चन्द्रभास्करौ // 117 // Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 18......... सुशीलनाममालायां * चन्द्र सूर्यग्रहणनामांनि के सूर्येन्द्रो राहुग्रासे' स्या-दुपराग उपप्लवः / * उपद्रवनामानि * .. उपसर्ग' स्त्वरिष्टं स्या-दुपलिङ्ग मुपद्रवः // 11 // उत्पात तथाऽजन्य -मीति"श्च तदनन्तरम् / एते चोपद्रवाः ज्ञेयाः, वय त्पात' उपाहित:२ // 11 // ___* कालनामानि * कालो' दिष्टो ऽप्यनेहा: स्यात्, समयः सर्वमूषकः / कालो द्विधाऽवसपिण्यु-त्सर्पिणीकालभेदतः // 120 // षडरा अवसर्पिण्या-मुत्सपिण्यां त एव वै। एवं द्वादशभिश्चारैः, वर्तते कालचक्रकम् // 121 // अष्टादश निमेषाः स्युः, काष्ठा' काष्ठाद्वयं भवेत् / लवस्तु तैः कला' पञ्च-दशभि रपि ज्ञायताम् // 122 // लेश' स्तु तद्वयेनैव, तैः पञ्चदशभिः क्षणः' / नाडिका' तु क्षरणैः षभिः , धारिका घटिका च सा // 123 // तद्वयेन मुहूर्त स्तु, तथा तैरपि त्रिशता / अहोरात्रस्तु सम्पूर्ण, दिवसः कथितो बुधैः // 124 // * दिवसनामानि * अह' दिन ञ्च धव' धु, दिवसो वासरो दिवम् / * प्रभातनामानि * . प्रभातं तु विभातं च, प्रत्यूषं स्यादहमुखम् // 125 // Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयोदेवविभागः उषो व्यष्टं प्रगे प्राहे, पूर्वेद्य श्च निशात्ययः / गोस:'" प्रात'२श्च गोसर्गः१२, काल्यं कल्यं च प्रत्युषः // 126 // * मध्याह्ननामानि * दिवामध्यं' तु मध्याह्न, मध्यन्दिनं तथैव च / * सायं-सन्ध्याकालनामानि * दिनावसान' मुत्सूरो, विकालः सबलि स्तथा // 127 // सायं तु पितृसूः' सन्ध्या', त्रिसन्ध्यं' तूपर्वणवम् / / कुतपो' श्राद्धकाल' स्तु, भागोऽष्टमो दिनस्य यः // 128 // * रात्रिनामानि * रात्रिः' रात्री तमी भौती, तमा तमि स्तमस्विनी / त्रियामा यामिनी तुङ्गी', वासतेयो' विभावरी''॥१२६॥ शर्वरी'२ शार्वरी:१३ श्यामा'४, वसति 15 र्वासुरा तथा। निशीथिनी' निशा' नक्ता 16, शताक्षी२० क्षणदा' क्षपा२२ // 130 // घासरकन्यका२३ याम्या२४, निशीथ्या२५ च निषद्वरी। रजनी२७ रजनिः२८ धोरा२६, पूताचि श्चक्रभेदिनी // 131 // क्षणिनी३२ राक्षसी33 चैव, यामवती३४ च तामसी३९ / उशाः३६ उषा तथा दोषा८ ,इन्दुकान्ता तथैवच // 132 // Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 20 सुशीलनाममालायां ज्योस्त्नी' तु पूणिमारात्रि स्तमिस्रा' दर्शयामिनी / निशासमूह बोधार्थे, गणरात्रो' निशागण: 2 // 133 // पक्षिणी' पक्षतुल्याभ्या-महोम्यां वेष्टिता क्षपा। ज्ञातव्या रजनीद्वन्द्वं', गर्भकं तु निशामुखम् ' // 134 // दिनात्ययः२ प्रदोष श्च, याम' स्तु प्रहर स्तथा। निशीथ' स्त्वर्धरात्रश्चं, निःसंपातो महानिशा // 135 // उच्चन्द्र' स्त्वपररात्र-स्त्वन्धकारं रजोबलम् / तमिन तिमिरं ध्वान्तं , तथा ऽन्धतमसं तमः // 136 // नीलपङ्को निशावर्म,'", दिनाण्डं 2 दिनकेसरः / सन्तमसं४ तथा वृत्रो,१५ ऽवतमसं दिगम्बरः // 137 // वियद्भूति 8 श्च भूच्छाया'६, रात्रिरागः२० स्मृतो बुधैः / तुल्यनक्तं दिवंकाले, विषुवद्' विषुवं' च यत् // 138 // पञ्चदशदिनानाञ्च , पक्षः स बहुलो ऽसितः / कृष्णो निशाह्वयः ख्यातः, शुक्लो दिशाह्वय स्तथा // 136 // तिथि' स्तु कर्मवाटी स्यात् , पक्षतिः' प्रतिपत् तथा। पञ्चदश्यो' यज्ञकालौर, पक्षान्तौ चापि पर्वणी // 140 // भूतेष्टापञ्चदश्यो यंद, पर्वमूलं' तदन्तरम् / प्रतिपत् पर्वसन्धिः स पञ्चदश्यो र्यदन्तरम् // 141 // पूर्णिमा' पौर्णमासी' स्यात्, राका' पूणे क्षपाकरे / कलाहीने त्वनुमति', मार्गशीर्ष्या' ऽऽग्रहायणी // 142 // Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्विनीयोदेवविभागः अमावास्या' त्वमावासी२, सूर्येन्दुसङ्गम स्तथा।। अमावस्या च दर्शो ऽमा - मावासी कथिता बुधैः // 143 // सा नष्टेन्दुः कुहुः प्रोक्ता, कुहू 2 श्चापि निगद्यते / सचन्द्रिका सिनीवाली', भूतेष्टा' तु चतुर्दशी // 144 // _* मासनामानि * द्विपक्षौ मास' प्राख्यातः, वर्षकोशोऽपि कथ्यते। वर्षांशकोऽपि मासार्थे, दिनमल श्च प्रयुज्यते // 14 // . * मासभेदः * मार्गशीर्ष' स्सहा: मार्गो, वत्सरादि स्तथा सहः / प्राग्रहायणिक श्चैव, सहस्य' स्तु सहस्यवत् // 146 // पौष स्तैष स्तु माघ'श्च, तफा स्तु फाल्गुन स्तथ।। फल्गुनिक स्तपस्य श्च, फल्गुनाल' स्तपस्यवत् // 147 // चैत्र'स्तु चैत्रिक श्चैव, मधुश्च फाल्गुनानुजः / / कामसख' स्तथा मोह-निक राध' स्तु माधव:२ // 148 / / उच्छर' श्चैव वैशाखे , ज्येष्ठ' स्तु खरकोमल: / मल: शुक्र स्तथा ज्येष्ठा-मूलीयः' खरक स्तथा // 14 // प्रथाऽऽषाढः' शुचि श्चापि, श्रावण' स्तु नभा२ स्तथा। श्रावणिकोऽथ भाद्र' श्च, भाद्र-प्रौष्ठ परः पदः // 150 / / Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 22 सुशीलनाममालायां नभस्यः स्यादिष' श्चाश्वि-युज प्राश्विन उच्यते / . अथ कात्तिकिक: सैरी२, कात्तिक: कौमुद स्तथा // 15 // बहुलो-च नामानि, प्रोक्तानि कोविदः समैः / द्वौ द्वौ मासौ च एकर्तु, मार्गादितः क्रमाद् भवेत् // 152 // हिमागम' स्तु हेमन्तो', रौद्र श्च प्रसल' स्तथा। शेष' स्तु शिशिर श्चव, वसन्त' स्तु बलाङ्गकः२ // 153 // इष्य श्च पुष्पकालस्तु, सुरभिः५ पिकबान्धवः। पुष्पसाधारण श्चाथ, निदाग' ऊष्म ऊष्मकः // 154 // उष्ण ऊष्मायणो ग्रीष्मः, पद्म उष्णागम स्तपः / प्राखोर'० श्चैव वर्षा' तु, मेघागम स्तपात्ययः // 155 // मेघकाल: क्षरी' प्रावृट्प, वरिषा स्तु घनात्ययः / शरद् चैवा ऽयनं' ज्ञेयं, शिशिराद्यै खिभिखिभिः // 156 // उत्तरायण' कालेन, संयुक्त दक्षिणायनम् / स्यादेको वत्सरो' नाम्ना, वर्ष संवत्सरं शरत् // 157 // तथाऽनुवत्सरो ऽब्दं च, हायनः परिवत्सरः। उद्वत्सरः समाः' वत्सः'१, संवत्र च कथ्यते बुधैः // 15 // भवेत् पैत्र' त्वहर्नक्त, मासेनाब्देन दैवतम् / सहस्रयुगले दिव्यः युगैः स्याद् ब्राह्म'मेककम् // 156 // स्थिति-प्रलयकालात्म-कल्पो नरणां तु तत्तथा। एकसप्ततिभि दिव्य, युग मन्वन्तरं' मतम् // 160 // Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयोदेवविभागः कल्पान्तः१ प्रलयः२ कल्प:३, परिवर्त्त स्तथा क्षयः / समगुप्ति श्च संवर्तो, युगान्त' श्च जिहानक: // 161 // संहार१० स्यादथत्काले, तदात्वं प्रतिपाद्यते / तज्जं सांदृष्टिकं चैव, सांसृष्टिकं फलं तथा // 162 // प्रायति' स्तूत्तरः काल, उदकः स्याद् भविष्यदः। . * आकाशस्य नामानि * प्राकाश' मम्बरं चाऽभ्र, मन्तरिक्ष घनाश्रयः // 163 // वियद् विष्णुपदं खञ्च,-धौ दिवौं च मरुत्पथः११ / व्योमा१२ऽनन्तं विहाय १४श्च,पुष्करं गगनं ६नभ:१७॥१६४॥ सुरा' -म्रो'६. डुपथ२० श्चेति, नभो नामानि विंशतिः / _. * मेघनामानि * घो' घनाघनो नभ्राट्, तडित्वान् मुदिरो' घनः // 16 // जीमूतो जलद श्चा ऽम्र, जलमुक् जलद स्तथा / वारिमुक्१२ वारिवाह'3 श्च, वारिधर'४श्च वारिद:१५ // 166 // स्तनयित्नु' 6 श्च पर्जन्यो'७, धाराधरो'८ बलाहक:१६ / नभोध्वजोर जलपरो२१, जलवाह२२ श्च वार्मसि:२३ // 167 // व्योमवूम 24 स्तथा धूम-योनि२५ श्ववारिवाहनः२६ / कादम्बिनी' कालिका वै, मेघमाला निगद्यते // 16 // Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 24 सुशीलनाममालायां दुर्दिनं' वार्दलं चैव, ज्ञायतां मेघजं तमः / / धारासम्पात' प्रासारः, महावृष्टि स्तथैवच // 16 // जायतां वेगवान् वर्षो, वातास्तं वारि शीकरः / वृष्टि' श्च वर्षणं वर्ष, तदभाव स्त्ववग्रहः // 170 // अवग्राह श्च वग्राहो, वग्रहः कथ्यते बुधः। . मेघास्थिमिञ्जका चैव, वर्षाबीजं घनोपलः // 171 // करक' स्तोयडीम्भो वै, बीजोदक मिरावरम् / मेघास्थिपुञ्जिका चैव, मेघकफ इराम्बरम् // 72 // अम्बुघन'' श्च नामानि, कथ्यन्ते किल पण्डितः। * दिङ्नामानि'* माशा'चैव हरित्'काष्ठा ,स्याद् दिक् तथा ककुप् किल // 173 // दिक् पूर्वा तु तथा प्राची२, स्यादऽपरेत। तथा। दक्षिणा' तु अवाची स्या-दपाची चोत्तरेतरा // 174 / / प्रतीची' पश्चिमा तु स्याद्, पूर्वेतरा तथैव च / उदीची' तूत्तरा' दिग् च, स्यावऽपाचीतरा' तथा // 17 // विदिक ' त्वपदिशं चैव, प्रदिक च कथ्यते बुधैः / दिश्यं दिग्भववस्तुन्य- पाग' पाचीन मेवस्यात् // 176 / / उदीचोनं' मुदगजातं२० प्राक् प्राचीन तथा भवेत् / स्यात् प्रत्यक्' तु प्रतीचीनर, तिर्यदिशां तु नाथकाः // 177 // Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 25 द्वितीयो देवविभागः इन्द्र' श्चाग्नि यम चैव, नैऋतो वरुण स्तथा / वायु स्तया कुबेर." स्याद, ईशान श्च यथाक्रमम् / / 17 / / अथेन्द्री' तत्समाऽग्नेयी, याम्या च नैऋती तथा। वारुणो५ चापि वायव्या, कौबेरी तदनन्तरम् // 17 // ऐशानो चेति नामानि, कथ्यन्ते पण्डितैरिह / * दिग्गजा: * ऐरावतो' दिग्गजोऽस्ति पुण्डरीकर श्च वामनः // 10 // कुमुद श्चाऽञ्जन' श्चैव, पुष्पदन्त स्तदन्तरम् / सप्तमः सार्वभौमो ऽस्ति, सुप्रतीकोऽष्टमस्तथा // 11 // इत्यष्टौ दिग्गजाः श्रेष्ठाः, कथ्यन्ते ज्ञानिभिः किल / * इन्द्रनामानि * इन्द्रो' हरि रुपेन्द्र श्च, वज्री दुश्च्यवनो' वृषा // 182 // बिडौजा मधवान् शक्रः , पुरन्दर'० श्च वासवः१५ / प्राखण्डलः 12 सहस्राक्षः१३, सुत्रामा१४च सुरर्षम:१५ // 13 // शुनासोर:१६ सुनासीर:१७ शतक्रतु१८ वरक्रतुः१६ / वास्तोष्पति स्तथा दल्मि:२', कौशिको 22 मेघवाहन:२३॥१८४॥ तुराबाट२४ यामनेमि२५श्च, तपस्तक्षो२६ ऽच्युताग्रजः२० / पृतनाषा मरुत्वान् वै, पर्जन्यः3° पूर्वदिक्पतिः३१ // 18 // Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ............ सुशीलनाममालायां पौलोमीश:3२ सुखा काक्षी 2, सचीपति:३४ स्वर्गपति:3५ / सुरेश श्च सुरस्त्रीश:३७, नाकेशो 8 ऽसन्महा 6 तथा 1186 // शचीश४०श्च शपोवि१श्च, वराणो४२ वज्रदक्षिणः४३ / नेरी४४ सहसनेत्र 5 ३च, वन्दीक:४६ देवदुन्दुभि:४७ // 187 // उग्रधन्वा 8 जयो 6 जिष्णु:५०, पुरुहूतो५१ ऽप्पर:पति५२।। खदिरो५3 ऽपि किरणालात:५४, . खिदिरो५५ मिहिर स्तथा // 18 // ऋभुक्षा:५७ बाहुदन्तेय:५८, त्रास्त्रिशपति५६ स्तथा। वयुनो गौरवास्कन्दी, हर्यश्वो 2 हरिमान्3 तथा // 18 // नरी 4 प्राचीनबर्हि 5 श्च, वृद्धश्रवा स्तथैव च / प्राचीश:६७ पूर्वदिक् स्वामी 8, संक्रन्दन स्तथैव च // 10 // इन्द्रवाचक नामानि, ज्ञातव्यानि बुधै जनैः / इन्द्रस्य तु द्विषः पाक: पुलोमा नमुचि स्तथा // 19 // वत्रो४ बलोऽद्रयो जम्भो -विख्याता इन्द्र शत्रवः / इन्द्रस्य तु प्रियेन्द्राणी', पौलोमी जयवाहिनी // 12 // शतावरी महेन्द्राणी', चारुधारा' शची' तथा। शकाणी' चापि ज्ञातव्या, तनयस्तु जय' स्तथा // 16 // जयन्तो जयदत्त श्च, सुता तु तविषी' पुनः / नयन्ती तविषी तिस्रो, हय उच्चैः श्रवा' महान् // 194 // Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयो देव विभागः 27 मातालः' सारथि स्तस्य, द्वितीयोऽस्ति हयंकष / द्वाःस्थ स्तु देवनन्दो' वै, ऐरावणो' गजः पुनः // 19 // ऐरावतोऽभ्रमातङ्गो, हस्तिमल्लो ऽभ्रमुप्रियः / श्वेतगज श्चतुर्दन्त , तथाऽर्कसोदरो गजः // 16 // वैजयन्त' स्तु प्रासादः, वैजयन्तो' ध्वज स्तथा। पुर्यमरावती' ज्ञेया, नामापरं सुदर्शनम् // 197 // सरो नन्दीसर' स्तस्य, सुधर्मा' तु सभा भवेत् / वनं तु नन्दनं' ज्ञेयं, वृक्षाश्च हरिचन्दनः // 19 // मन्दार: पारिजात श्च, सन्तान श्चापि कल्पकः / धनु वायुधं' ज्ञेयं, तमुजु रोहितं' तथा / / 196 // दीर्घरावतं चैव, स्याद् वज्र त्वशनिः२ स्वरुः / दम्भोलि दिनी' शंव', शतकोटि स्तथा पविः // 20 // शतारः शतधार'० श्च, व्यायामः११ कुलिश स्तथा। भिदु' 3 श्च भिदुरं वज्र-ज्वाला तु अतिभी' भवेत् // 201 // स्फुर्जथु' वज्रनिर्घोषः-पण्डितेन निगद्यते / स्ववॆद्या वश्विनौ दस्रौ , नासिकयौ वडवासुतौ // 202 // नासत्या वाश्विनोपुत्रौ , तथा प्रवरवाहनौ। यमौ नासत्यदस्रौ' वै गदान्तको 1 तथा ऽर्कजो१२॥२३॥ प्रब्धिजौ13 आश्विनेयौ१४ च, ज्ञेयौ यज्ञवहौ'५ तथा / त्वष्टा' तु विश्वकर्मा च, विश्वकृद् देववर्द्धकिः // 204 // Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 28 सुशीलनाममालायां वगिवध्व' स्तु स्वर्वध्व:२, स्वर्गखियः सुरखियः / . अप्सरसो ऽप्सरा श्वापि, स्वर्वेश्या उर्वशीमुखाः // 20 // हाहादय स्तु गान्धर्वा', गन्धर्वा देवगायना: / * यमराजनामानि * यमराजो' यमः कालो', यमराट् यमुनाप्रजः // 206 / / दक्षिणाशापति मृत्युः, कालकूट स्तथा ऽन्तकः / श्राद्धदेवो' ' अर्कनु १श्व, कालिन्दोसोदर१२ स्तथा // 207 // धर्मराजो'3 महासत्य:१४, शमनो१५ महिषध्वजः।। कोनाशो'" वे कृतान्त 8 श्च, हरि दण्डधर२° स्तथा // 208 / / शोर्णाहि२१ श्चापि शोर्णाघ्रि२, पुराणान्त२3 स्तथैव च / समवर्ती२४ यमश्चापि, धूमोर्णा तु यमप्रिया // 206 // पुरी संयमिनी' तस्य, प्रतीहार स्तु वैध्यतः'। दास स्तस्य महाचण्ड:', चण्ड स्तथा यमस्य वै // 210 // लेखक स्तु पुन ज्ञेयः, चित्रगुप्ता भिधः किल / * राक्षसत्तामानि * राक्षस' प्राक्षरो रक्षः३, कोनाश: कौणप' स्तथा // 21 // क्रव्याद: कर्बरः ऋव्यात्, रक्तनीव श्च नैऋतः१० / पुण्यजन,' पलाद१२ श्च, हनुषो'3 निकसात्मजः१४ // 212 / Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयो देवविभागः 26 मैकसेयः५ खेसापुत्र:१६, यातुधान:१७ पलप्रियः१८ / त्रिशिरा:१६ स्तब्धसंभार:२० रात्रिबल:२१ प्रवाहिक:२२॥२१३।। यातुः२३ संध्याबल:२४ शकु :15, उद्धरो२६ जललोहितः२७ / रात्रिञ्चरो२८ नृचक्षा२६ श्च, विथुरः3° समितीपदः // 214 // रात्रिचर३२ स्तथा ऽसृक्प:, स्यादिति नरविष्वणः३४ / . * वरुणदेवनामानि * वरणो' जलकान्तारः२, प्रचेता श्च परञ्जनः 4 // 215 // अर्णवमन्दिर: पाशी, प्रतीचीश श्च संवृतः / उद्दामो जलाकन्तार: , मेघनाद श्च दुन्दुभिः१२ // 216 // याद:पति 3 रपांनाथ 4, ज्ञेया: जलपति 5 स्तथा। .. - * कुबेरनामानि * कुबेरो' धनद:२ श्रीदः', नृधर्मा नरवाहनः // 217 // कैलासौका निधानेशः , किनरेशो निधीश्वरः / / राजराजो महासत्व:१० धनके लि: धनेश्वर:१२ // 218 // वैश्रवण१३ श्च वित्तेश:१४, हर्यक्षः१५ सत्यसङ्गरः१६ / पौलस्त्यः१० परिविद्ध'८ श्च, कुहः१६ किंपुरुषेश्वरः२० // 21 // तथा मनुष्यधर्मा', रत्नगर्भः२२ सितोदर:२३ / / त्रिशिरा:२४ सुप्रसन्न 5 इच, यक्षो२६ यक्षेश्वर२७ स्तथा // 220 // Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालायां गुह्यकेश२८ श्च गुह्य शः२६, प्रमोदित स्सितोदरः / ऐलविश्लैकपिङ्गो 3 वै, रत्नकरः३४ पिशाचको३५ // 221 // इच्छावसुरीशसखः३७, सन्ति नामानि शास्त्रके। विमानं पुष्पकं' तस्य, वनं चैत्ररथं तथा // 222 // पुरी वस्वौकसारा' च, वसुप्रभा' ऽलका तथा। वसुसारा प्रभा चोक्ता, पुत्रोऽस्ति नलकूबरः // 223 // ज्ञेयः कुबेरदेवस्य, इत्येवं कथितं बुधैः। ___ * धननामानि * धनं' वित्तं तथा द्रव्यं, द्रविणं विभवो वसु // 224 // पृक्थ -मृक्थं च रिक्थं स्वं',स्वापतेयं च रा१२ स्तथा। ऋण' 3-मर्थो 4 हिरण्यं 5 स्याद्, - सारं द्युम्नं तथोच्यते // 225 / / * निधाननामानि * निधानं' तु कुनाभि श्च, शेवधि निधि रित्यपि। * निधिभेदा: * महापद्म' स्तथा पद्मः२, शङ्ख-मकर-कच्छपाः // 21 // मुकुन्दः कुन्द -कोलौ च, चर्चा श्च निधयो नव / * जैनमतानुसारं निधिनाम * नैसर्पः' पाण्डुक:२ श्चैव, पिङ्गलः सर्वरत्नकः // 327 // Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयो देवविभागः ___ 31 महापद्म स्तथा कालोः: महाकाल श्च मारणवः / शङ्खक स्चेति नामानि, निधयो नव संख्यया // 22 // जैनमतानुसारेण, कथ्यते ज्ञानिभिः किल / * यक्षनामानि * राजा' पुण्यजनो यक्षः, वटवासी च गुह्यकः // 226 // * किन्नरनामानि * किन्नर' स्तु किम्पुरुषः, तुरङ्गबदनो' मयुः / * शिवनामानि * शिवः शम्भुः वृषाङ्क श्च, रुद्रः शर्व श्च शङ्करः / / 230 // श्रीकण्ठो नीलकण्ठ श्च, गिरीशो गिरिशो हरः१० / ईश११ ईश्वर१२ ईशान:१३, भीमो१४ भर्ग१५ श्च धूर्जटि:१६ // 23 // अस्थिधन्वा 7 जगत्स्रष्टा'८, वह्निरेता:१६ महाव्रती / दिग्वासा:२१ कृत्तिवासा 2 श्च,कपर्दो 3 पांशुचन्दनः२४॥२३२॥ उड्डीश:२५ ऊर्ध्वलिङ्ग२६ श्च, विरूपाक्षो२७ विषान्तक:२८ / महाकान्तो महानाद:3°,सिताङ्ग 1 त्रिपुरान्तक:३२ // 233 // लिधन्वा विशालाक्षो७४, महादेवो 35 महेश्वर:३६ / शूल-खट्वाङ्ग ८-गङ्गाऽही 0. न्दु १-कपाल४२-पिनाक उभृत् // 234 // Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 32...... .......... सुशीलनाममालायां गजा ४-ऽनङ्गा ५-पुरा-पूषा-४७ काला ८-ऽन्धका ६-मखा सुहृत् / अर्धकालो' जगद्रोणिः 52, कोणवादो५३ नृवेष्टन:५४ // 23 // अन्धकारि:५५ अहिर्बुध्नः५६, समिरो५७ धर्मवाहनः५८ / षण्ढः५६ श्मशानवेश्मा वै, सर्वज्ञो' ' वृषलाञ्छनः३२ // 236 // क्षिपिविष्टो 3 ऽष्टमूति श्च, घना ५-ऽब्द वाहनौ मृड:६७ / भाल दृगेकपात् त्रिक०, महानादो 1 दशाव्ययः७२ // 237 // अनेकलोचनो धूमः७४, नाट्यप्रियो 1 महानट:७६ / खण्डपशु:७० नराधार:७८, दिशांप्रियतम 6 स्तथा // 238 // कटाट.८० कटप्र ८..श्च, कूटकृ२ कपिलाञ्जनः / कण्डेकालो हिपर्यङ्क:५८, मिहिरागो महाम्बकः // 23 // योगी८८ जोटीच जोटीङ्गः, भवो' भूरिश्च भैरव:3 / उग्रः ६४कालः 5 उलन्द३६ श्च, रेरिहाणो जटाधरः // 240 // प्रमथ-पशु-भूतो'०१-मा-१०२,पतिःपिङ्गेक्षण१०३स्तथा। पशु ०४-गरण' ०५-भूतनाथः, गोरोनाथ' ०७स्तथा ऽतल:०८ // 241 // शैलधन्वा१०६ अट्टहासी च, 110 कामध्वंसी'११ च हृत्करः११२॥ शकु:११३ पञ्चमुख:११४ स्थाणुः११५, यमजित् 16 च मृत्युञ्जयः१ 17 // 242 // हीरो'१८ हिरण्यरेताः११६ वै, तथा स्यादक्षतस्वनः१२० / कपर्दो ऽस्य जटाजूट.२, खट्वाङ्ग स्तु सुखं सुरणः // 243 / / Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयो देवविभागः तद्धनुः स्याद् पिनाक' चा ऽजकावा ऽऽजगवौ3 तथा। प्रजगाव मपि प्रोक्त, ब्राह्म याद्याः सप्त मातरः // 244 // ब्राह्मी' माहेश्वरी सिद्धी, कौमारी वैष्णवी तथा। वाराहो' चापि चामुण्डा , ज्ञेयाः सदैव मातरः // 24 // प्रमथाः' पार्षदा स्तस्य, पारिषदाः गणाः स्मृताः / ___* अष्टसिद्धिनामानि * प्राकाम्यं' वशिते शित्वं, लघिमा महिमा ऽणिमा // 24 // यत्रकामावसायित्वं, प्राप्ति रैश्वर्यमष्टधा। __ * पार्वतीनामानि * पार्वती' तामसी चण्डी', कुमारी रेवती जया // 247 // मृडानी बाभ्रवी क्षेमा', जाङगुली' यादवी११ वरा' / नकुला' 3 नन्दिनी'४ नन्दा'५, . नन्दंपुत्री१६ निरञ्जना // 248 // सुनन्दा 8 नन्दयन्ती१६ वै, नीलवस्त्रा२० घनाञ्जनी'। . प्रार्या२२ कात्यायनी दुर्गा२४, प्रगल्भा२५ कृष्णपिङ्गला२६ // 24 // प्रकूष्माण्डी च रुद्राणी२८, भवानी' 6 सर्वमङ्गला / अर्पणा 1 त्र्यम्बका३२ कृष्णा33, कौशिकी 4 गौतमी३५ शिवा // 250 // Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 34 सुशीलनाममालायां सती शिवी३८ च शर्वाणी३६, सावित्री सिंहवाहना। निशुम्भमथनी४२ शुम्भ-मथनी 3 भूतनायिका 4 // 251 // महिषमथनी 5 भीमा४६, गार्गी 7 च गोकुलोद्भवा / बहिध्वजा जयन्ती५० वै, पुत्री क्षेमकरी५२ प्रभा॥२५२॥ होरी५४ हैमवतो५५ हासा५६, विकराला यमस्वसा५ / महानिशा५६ महारौद्रो०, कालङ्गमा 1 करालिका 2 // 253 // कालरात्रि:६३ कुला६४ लम्बा६५ विलंक्रा६६ कुलदेवता / भद्रकाली६८ महाकाली 66, परमब्रह्मचारिणी // 254 / / वरदा 1 बदरीवासा 2, दर्दुरा3 दक्षजा 4 जया 5 // अनन्ता७६ स्कन्धमाता७७ च, . पितृगणा८ ऽद्विजा हिमा०॥२५५।। अमोधा' च महाविद्या२, महामाया महाजया। एकानसी८५ विशालाक्षी, उमाप मलयवासिनी // 256 // अष्टादशभुजा कुन्द्रा०, सिंहयाना 1 कुहावती / ईश्वरा 3 चेश्वरी 4 मारी 5, गोला शिखरवासिनी 6 // 257 // मातृमाता च मैनाक-स्वसाः 8 कृष्णस्वसाः स्मृता। वाहनं तु मनस्तालः', पार्वत्या कथ्यते बुधैः // 258 // जया' च विजया तस्याः, सख्या नाम द्वयं स्मृतम्। . * चामुण्डानामानि * . चामुण्डा' चर्ममुण्डा' च, चण्डमुण्डा' च चर्चिका // 25 // Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ........... द्वितीयो देवविभागः 35 महाचण्डो' महागन्धा', तथा मार्जारणिका / भैरवी कर्णकोटी' च, प्रोक्ता बुधैः कपालिनी' // 260 // * गणेशनामानि * गणेश' श्च गजास्य श्चरे, विषाणान्तो विनायकः / विघ्नेशो५ विघ्नराज श्च, हेरम्बः प्रमथाधिपः // 26 // एकदन्तो द्विशरीरो':, द्वैमातुर'' स्त्रिधातुक:१२ / पृश्निगर्भ3 स्तथा पृश्नि शृङ्गो'४ लम्बोदरा' ५ऽऽखुगौ'६॥२६२॥ पशुपाणि स्तथा हस्ति-मल्ल'८ श्चेति स्मृतं किल / . * स्कन्दनामानि * स्कन्दः' स्वामोरे च सेनानी:३, पार्वतीनन्दन स्तथा // 263 // सिद्धसेनो महासेनः६, षण्मुख स्तारकान्तकः / शक्तिभृत् शक्तिपाणि'च, क्रौञ्चारिः११ क्रौञ्चदारणः१२॥२६४॥ अग्निभूः१३ अग्निजन्मा'४ वै, गङ्गो१५-मा'६ कृत्तिकासुतः१७। शरभू:१८ शरजन्मा' च, ब्रह्मचारी 2 दिगम्बरः२१ // 26 // तारकारि:२२ महातेजाः२३, कुमार:२४ करवीरक:२५ / / गाङ्ग यो२६ बालचर्य 7 श्च, वैजयन्तो२८ दिवाकरः२६॥२६६॥ Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालायां द्वादशाक्ष3° स्तथा बाहु-लेय१ श्च शिखिवाहन:३२। . पाण्मातुरो विशाख 4 श्च, ___ स्याद् मयूररथो३५ गुहः // 267 // * शिवभृङ्गीगणादिनामानि * भृङ्गिरिटी' च भृङ्गी वै, चर्मी भृङ्गोरिटि स्तथा। नाड्य-स्थि विग्रहौ चोक्तः, पुनः कूष्माण्डका'भिधः // 268 // केलिकिल' स्तथा प्रोक्तो, नन्दिश' स्तण्डु-नन्दिनौ / शङ्करस्य गणाश्चैते, कथिताः पण्डितैः किल // 26 // * ब्रह्मणो नामानि * ब्रह्मा' चतुर्मुखः२ शम्भुः३, स्रष्टा शतधृति ध्रुषः / विश्वरेताः' जगत्कर्ता, पितामहः१० प्रजापतिः११ // 270 // विधि१२ र्वेषाः१३ विधाता'४ वै, वेदगर्भः१५ पुराणग:१६ / भवान्तकृत् स्वयम्भू इच, सनत् सरोरुहासनः 2 // 271 // स्थविर श्च शतानन्द:२२, सात्त्विक:२३ कमन:२४ कवि:२५ // त्रुहिणो द्रुघणो धाता, नाभिजन्मा२६ विरिञ्चनः३० // 272 // कश्च 1 कमलजन्मा 2 च, नाभिभू:33 पद्मसू३४ स्तथा। प्रात्मभूः३५ प्रात्मयोनि३६ श्च, पुरुषः३७ पुरुषासनः // 273 // Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयो देवविभागः ____ 37 श्वेतपत्ररथ६ श्चापि, हिरण्यगर्भ४०-हंसगौ४१ / विरिच४२ श्च विरिञ्चि४३ वै, विरञ्चि४४ श्चापि विश्वसृट्४५ // 274 // क्षेत्रज्ञ६ श्चापि लोकेश:४७, सुरज्येष्ठ 8 स्तथैव च / प्रजो ऽष्टश्रवण५० श्चेति, सन्ति नामानि ब्रह्मणः // 275 // ___ * विष्णुनामानि * विष्णु' जिष्णु जगन्नाथो, जह, नु, र्बभ्र 5 श्चतुर्भुजः / अक्षजो ऽधोक्षजो मा| . विधु'" जिनो'१ जनार्दनः१२ // 276 / / ता_ध्वजः 3 शतावर्तो४, जलशयो'५ जलेशय:१६ / धीरो' ब्धिशयनो१८ धन्वी६, _ सुधन्वा२० विष्टरश्रवा.२१ // 277 // उपेन्द्रः२२ पुण्डरीकाक्ष:२३, पुरुष:२४. पुरुषोत्तम:२५ / पीताम्बरः२६ पराविद्धः२७, पुराणपुरुष२८ स्तथा // 278 // श्रीपति:२६ पद्मनाभ3 deg श्च, पुण्यश्लोको 1 ऽपराजितः३२ // एकपाद्?3 द्विपद३४ स्त्रिपाद्३५, तीर्थपाद:३६ पराक्रमः // 27 // श्रीगर्भ:37 श्रीधरः३६ सोमः४०, श्रीवत्सः४१ श्रीकर४२ स्तथा। श्रीवराहो 43 वृषोत्साहः४४, श्रीवत्साङ्क:४५ सरीसृपः४६ // 280 // नवशक्ति 7 नवव्यूहः४८, चतुर्दूहः 6 सुयामुन:५० / प्रासन्द५१ श्च शतानन्द:५२, नारायणो५३ नरायणः५४ // 281 // Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 38 ... सुशीलनाममालायां अजितो५५ देवकीसूनुः५१, सुषेण:५७ पांशुजालिक:५८ / . खण्डास्यो जितमन्युश्च, सुवृषः६१ समितिञ्जयः३२॥२८२॥ षबिन्दु र्योगनिद्रालु:६४. वृषाक्षो५ वायुवाहन: / वर्द्धमानो'७ वरारोहोप, रन्तिदेवो 6 वृकोदरः७० // 283 // यदुनाथो' गदा०२-चक्र 3. शाङ्ग ७४-श्रीवत्स५.शङ्खभृत् / दशाहः७७ केशव:७८ कृष्णः 6, . विश्वभुगमः शिवकीर्तनः८१ // 24 // हृषीकेशो' महाहंसः८२, बहुरूपो-3 महाक्रम:८४ / बहुशुङ्गो८५ वरारोहो६, महामायो महातपाः८ // 285 // हरि:५६ सौरि: * हृषोकेशः 1, . शौरिः६२ सोमः 3 स्वभूः६४ स्थिर:६५ / पुनर्वसु:६६ शतावर्त्तः 7, शद्र 68 वंशः सुयामुनः१०० // 286 // अहि'०१ रिन्द्रानुजो' 02 ऽज'०३ श्च, पद्मशयो'०४ वृषाकपिः१०५ / ऊर्ध्वकर्मा' 06 महामायः१०७, उरुगाय'०८ उरुक्रम'०६ // 287 // वैकुण्ठः११० कालकुण्ठ'११ श्च, विष्वक्सेनो'१२ महीधरः११३॥ धर्म'१४-लोक १५-ब्रह्म'१६ नाभाः, सूक्ष्मनाभः'१७ सुरोत्तमः 18 // 28 // माधवो'१६ वासुदेव१२० श्च, मुजकेशी 21 कुमोदक: 122 / तमोघ्न '23 श्च चतुर्दष्ट्र:१२४, त्रिधामा 25 ऽपि त्रिविक्रमः१२६ // 28 // Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयो देवविभाग: ...36 अच्युत 27 प्रात्मभू१२८ चैत्र, यज्ञनेमि।२६ बलिन्दमः३० / शश'३१-सुवर्णबिन्दू'७२ वै, वासवावरज' 33 स्तथा // 290 // लोहिताक्षो' 34 लतापर्णः 135, गोपेन्द्रो'३६ ऽसंयुतो'३७ ऽव्ययः१३८ / गोवर्धनधरो१३६ वेधाः१४०, धार 41 श्च धरणीधरः 142 // 26 // लतापर्णो 143 लतावर्ण:१४४, कपिलः१४५ पाण्डवायनः१४६ / पृश्निशृङ्गः१४७ शरु:१४८ शा8१४६, . गरुडाको 150 गदाधरः१५१ // 292 // दामोदरो' 52 मुकुन्द 153 श्व, ऋतुधामाऽ१५४ प्यधोमुखः१५५ / प्रासादः१५६ सोमसिन्धु१५७ श्च, शलिक:१५८ शिलिकाजित:१५६ // 23 // तीर्थयाद१६० स्तथा लक्ष्मी-नाथ६१ श्चक्रपाणिः१६२ कपि:१६३। पद्मगर्भ१६४ स्तथा भद्र-कपिल'६५ श्च प्रमर्दनः१६६ // 264 // पृश्निगर्भ६७ श्च हिरण्य-केशो१६६ यज्ञधर'७० स्तथा। एकाङ्ग१७१ एकशङ्ग१७२ श्च, विश्वम्भरो१७३ जलेशयः१७४ // 29 // सुभद्रो१७५ वासुभद्र 176 श्च, विश्वरूप१०७ स्तथैव च / वनमाली१७८ सदायोगी१७६, यवनारि'८० रुदाहृतः // 26 // पुन हिरण्यनाभ.८१ इच, रुद्र कपिलनामक:१८२ / लक्ष्मीनाथः१८3 स एवास्ति, विष्णुनामानि चिन्तयेत् // 297 // Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालायां मधु' मन्दो मुर: केशी', हिरण्यकशिपुः बलिः / .. अरिष्ट: शिशुपाल श्च, द्विविदो यमलार्जुनौ // 298 // कैटभ:११ कालियः१२ कंसः'3, नरक:१४ शकट१५ स्तथा। पूतना कालनेमि१७ श्च, हयग्रीव१८ श्च धेनुक:१६ // 26 // राहः२' साल्व२१ श्च चागूरो२२, बाणो२३ वध्योऽस्य मन्यते / वाहनं वैनतेय' स्तु, शङ्गो ऽस्य पाञ्चजन्यक: // 300 // श्रीवत्स'नामकोऽङ्कस्तु, कृपाणोऽस्यास्ति नन्दक:'। कौमोदकी' गदा विष्णोः, ज्ञेया कोपोदको तथा // 301 / चापं शाङ्ग तु विष्णोः स्यात्, तथा चक्र सुदर्शनः' / स्यमन्तको' मरिण हस्ते, भुजमध्ये च कौस्तुभः // 302 // पिता तु वसुदेवो ऽस्य, स एवानकदुन्दुभिः / / दिन्दुः भूकश्यप श्चेति, कथ्यते कोविदः सदा // 303 // * बलदेवनामानि * बलदेवो' बलो' रामः, बलभद्रो बली' हली'। प्रलापी कामपाल श्च, सात्वतोऽपि सितासितः१० // 304 // मुसली'' ताललक्षमा 2 च, कालिन्दीकर्षण' 3 स्तथा। भद्रचलन ४-भद्राङ्गौ५, प्रलम्बघ्नः१६ प्रलम्बभिद्॥३०॥ अनन्तो१८ नीलवस्त्र' इच, सङ्कर्षण २१-ककुण्डलौ / यमुनाभित्२३ तथा फाल:२४, . रुक्मिभिद्२५ रुक्मिदारण:२६॥३०६॥ Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयो देवविभागः पौर:२७ प्रियमधु२८ गुप्त-चरो२६ ऽच्युताग्रज3 deg स्तथा। रेवतीश' स्तथा रौहि-णेयः३२ शेषाहिनामभृत्३३ // 307 // इत्येवं बलदेवस्य, नामानि कथितानि वै / सौनन्द' मुसलं त्वस्य, ज्ञेयं संवर्तक' हलम् // 308 // . * लक्ष्मीनामानि * लक्ष्मी' मा सा रमा पद्मा', पद्मवासा हरिप्रिया / इन्दिरा कमला ता१० श्रीः', ई१२ आ3 क्षीराब्धिमानुषी 4 // 30 // भर्मरी'५ विष्णुशक्ति:१६ स्यात्, क्षीरोदतनया तथा / * कामदेवनामानि * अथ कामः कलाकेलिः२, कमन श्च शमान्तकः // 310 / / शिखिमृत्यु मनोदाही, मथनो मन्मथः स्मरः / मदनो' यौवनोभेद:११ प्रद्युम्नः पुष्पकेतन:१३ // 311 // अनन्यजो१४ ऽङ्गजो१५ ऽनङ्गः१६, दर्पको विषमायुधः१८ / रागरज्जु' जराभीरु:२०, सर्वधन्वी२१ प्रकर्षकः२२ // 312 // श्रीनन्दन२३ श्च कन्दर्पः२४, मधुदीपो२५ महोत्सव:२६ / कन्तु:२७ पुष्पध्वजो नाम२८ मार श्च२६ मधुसारथिः३० // 313 // स्यान् मनसिशय१ श्चेति, नामानि हृच्छयो 2 ऽपि च / इषु' श्चापं तथा ऽस्त्रं च, कामपुष्पादि कथ्यते // 314 // Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 42 सुशीलनाममालायां पुष्पास्त्रः' पुष्पचाप श्च, पुष्पेषुः कुसुमायुधः / तथा कुसुमधन्वा वै, कुसुमबाण संज्ञकः // 315 // अथ कामरिपु हृयः, शंवरः शम्बर स्तथा / .. शूर्पक श्चापि प्रख्यातः, शंवरा'रि स्ततोऽपि सः // 316 // शम्बरा रिः शूर्पकारिः३, कामचिह्नतु केतनन् / मीन श्च मकर श्चापि, तस्मात् स मीनकेतनः // 317 / मकरकेतन श्चापि, स्याद् झष-मकर ध्वजौ। बाणाः पञ्च तु कामस्य, चूतं' नीलोत्पलं तथा // 318 // अरविन्दमशोक च, स्यात् तथा नवमल्लिका। तस्मात् स पञ्चबाणोऽ'पि, विषमेषुश्च कथ्यते / 316 // कामस्य स्त्री रति नाम्नी, तस्मात् रतिपति' भवेत् / ज्ञेयो रतिवर' श्चापि, योनि स्त्वस्य मन' स्तथा // 320 // प्रात्मा२ शृङ्गार-संकल्पौ', तस्मात् चेतोभव' स्तथा / प्रात्मभू रात्मयोनि श्च, शृङ्गारयोनि रुच्यते // 321 / / तथा शृङ्गारजन्मा' च, संकल्पयोनि संज्ञकः / स्मृतिभूश्च मनोयोनिः', कामसंज्ञा श्च यौगिकाः // 322 / / काममित्रं मधु' चैत्रः२, तस्मात चैत्रसख' मतथा। मधुसुहृत् च नामानि, कामस्य यौगिकानि च // 32 // स्यात् सुतोऽस्याऽनिरुद्धो' हि, उषारमण संज्ञकः।। ऋष्याङ्क: ऋष्यकेतुश्च , उषेशो' ब्रह्मसू रपि // 3.4 / / Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयो देवविभागः 43 * गरुडनामानि * गरुड' श्च गरुत्मान् वै, कामायुः काश्यपि स्तथा। सौपर्णेयः सुपर्णश्च, वज्रिजिद् विष्णुवाहनम् // 325 // अरुणावरज स्ताक्ष्यो', महापक्षो' विषापहः१२ / उन्नीतशः१३ शिलाऽनीहः१४, स्वर्णकायो१५ विशालक:१६ // 326 // पक्षिसिंहः 17 सुधाहत्१८ च, पक्षिस्वामी१६ तथा ऽहिभुक्२० / स्वमुखभू२१ महावेगः२२, शाल्मली२३ गरुल 24 स्तथा // 327 // वज्रतुण्डा२५ह वय श्चैव, वैनतेय२६ स्तथैव च / साराति२७ श्च नामानि, ज्ञेयानि गरुडस्य वै // 328 // . * बुद्धनामानि * बुद्धो' बौद्धो बुधो बोधि, महाबोधि स्त्रिकालवित् / बोधिसत्त्वो' महासत्त्वो', दशपारमिताधरः // 326 // संगुप्तः१० सुगतो योगी१२, खजिद् विज्ञानमातृक:१३ / आर्य 14 श्चाऽर्हन् 15 दशाह 15 श्च, शास्ता'६ विज्ञानदेशनः१७ // 330 // षडभिज्ञ१८ श्चतुस्त्रिंश-ज्जातकज्ञ१६ स्तथागतः२० / जिनः२१ समन्तभद्र 22 श्च, दशार्हः२३श्रीघना२४ऽद्वयौ२५॥३३१॥ सिद्धार्थो२६ विगतद्वन्द्व:२७, लोकनाथः२८ सुनिश्चित:२६ / लोकजित्3 deg मारजित्३१चैव,त्रिकाय३२ श्च तथागतः33 // 332 // Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 44 सुशीलनाममालायां पञ्चज्ञानो३४ महामंत्रो'५, मुनीन्द्रश्च विनायक:३७ / धर्मधातु र्दयाकू!३६, भगवान् * दशभूमिग:४१ // 333 // धर्मराज श्च नामानि, बुद्धस्य कथितानि वै। .. तथै वेमानि नामामि, विपश्यो' च शिखी तथा। विश्वभू श्च क्रकुच्छन्दः, काञ्चन: काश्यप स्तथा // 334 // नामावल्यां शाक्यसिंहः, मायासुतो ऽर्कबान्धवः / शुद्धोदनसुत. शाक्यो', देवदत्ताप्रज' स्तथा // 33 // राहुलसू श्च सर्वार्थ-सिद्ध श्च गोतमान्वयः / / शौद्धोदनि श्च शाक्यस्य, नामानि दश सन्ति च // 336 / / * असुरनामानि * असुरा' दानवा चैव, दैतेया दितिजा स्तथा / दनुजाः पूर्वदेवाः श्च, पातालोकः-सुरारयः // 337 // शुक्रशिष्या श्च नामानि, ज्ञातव्यानि सदा बुधैः / ___* षोडश विद्यादेवीनामानि * विद्यादेव्यास्तु नामानि, षोडश क्रमश स्त्वधः // 338 // रोहिणी' प्रज्ञप्ति वज्र-शृङ्खला कुलिशाङ्कुशा। देवी चक्रेश्वरी' चैव, नरदत्ताभिधा पुनः // 336 // . काली देवी महाकाली, गौरीदेवी तथैव च / गान्धारी' चापि सर्वास्त्र-महाज्वाला'१ च मानवी१२ // 340 // Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयो देवविभागः 45 वैरोट्या' 3 संज्ञका देवी, अच्छुप्ता१४ मानसी१५ तथा / महामानसिका१६ चेति, कथ्यन्ते ज्ञानिभिः किल // 341 // ___* सरस्वतीदेवीनामानि * देवी सरस्वती' ब्राह्मी, श्रुतदेवी च भारती / वाग् गो वाणी तथा गौ श्च, भाषा च वचनं तु वै // 342 // भाषितं भरिणतं चैव, जल्पितं लपितं वचः / ध्याहार* श्चाभिधानं स्या-दुदितं गदितं तथा // 343 // * वाक्य-पदयो लक्षणम् * सविशेषरणमाख्यातं, वाक्यं स्त्याद्यन्तकं पदम् / * प्रागमनामानि * प्रागम' श्चापि सिद्धान्तः२, राद्धान्त समय स्तथा // 344 // प्राप्तोक्ति श्च कृतान्तो वै, नामानि तु विशेषतः / प्राचाराङ्गा'ह्वयं सूत्र-कृतं थानाङ्गसंज्ञकम् // 345 // . चतुर्थं समवायाङ्ग, भगवत्यङ्गसंज्ञकम् / ज्ञाताधर्मकथाङ्ग वै, उपाशका ऽन्तकृदशाः // 346 / / अनुत्तरोपपातिक -दशाङ्ग नवमं तथा। प्रश्नव्याकरणाङ्ग१० वै, विपाकाङ्ग११ श्रुतं तथा // 347 // Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालायां इति चैकादशाङ्गानि, उपाङ्गसहितानि हि।. उपाङ्गानां तु नामानि, प्रथममौपपातिकम् // 34 // द्वितीयं राजप्रश्नोयं२, जीवाभिगममित्यपि / / प्रज्ञापनाह्वयं जम्बू-द्वीपप्रज्ञप्ति रित्यपि // 346 // . चन्द्रपज्ञप्त्युपाङ्ग वै' सूर्यप्रज्ञप्ति रित्यपि / निरयावलिकोपाङ्ग, तथा कल्पावतंसिका / 350 // : पुष्पिकासंज्ञकं° पुष्प-चूलिका' नामविद्यते / वृष्णिदशाभिधं चेति, स्यादुपाङ्गानि चागमे // 351 // पुन दिशमङ्गवे, दृष्टिवादाह्वयं किल / द्वादशाङ्गी' च प्रख्याता, गरिणपिटक मित्यपि // 352 // भेदा स्तु दृप्टिवादस्य, क्रमशः पञ्चसंख्यकाः / परिकर्म' तथा सूत्रम्, पूर्वानुयोग सज्ञकम् / / 353 // पूर्वगतं चतुर्थ स्यात्, पञ्चमः चूलिका' ऽभिधम् / पूर्वगते तु पूर्वाणि', चतुर्दश यथाक्रमम् // 354 // प्राधमुत्पादपूर्व' चा-ग्रायणीयाह्वयं तथा। वीर्यप्रवादपूर्व वै, अस्तिनास्तिप्रवादकम् // 355 // ज्ञानप्रवादपूर्व वै, सत्यप्रवाद संज्ञकम् / प्रात्मप्रवादपूर्व च, कर्मप्रवादपूर्वकम् // 356 // प्रत्याख्यानप्रवादं वै, विद्याप्रवादपूर्वकम् / / तथा कल्याणप्रवादं', प्राणावायप्रवादकमा२ // 357 // Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयो देवविभागः क्रियाविशालपूर्व१३ च, हि लोकबिन्दुसारकम्१४ / इत्येवं कथितं शास्त्रे, ज्ञानिभि श्च महर्षिभिः // 358 // * वेदनामानि * वेदानां पञ्चनामानि, स्वाध्याय' श्च श्रुति स्तथा / आम्नायो नाम विख्यातं. छन्दो वेद' स्त्रयो पुनः // 356 // ऋग्वेद' श्च स्यजुर्वेदः, सामवेद स्तृतीयकः / चतुर्थोऽथर्ववेद स्तु, तस्मात् चत्वार एव ते // 360 // उपनिष'च्च वेदान्तो२, वेदसारस्य नामनी / मन्त्रबीजञ्च, प्रख्यात-मोङ्कार-प्रणवा विमौ / / 361 // षडङ्गानि तु वेदस्य, शिक्षा' च कल्पसंज्ञकः / व्याकरणं तथा छन्दो, ज्योति निरुक्ति रे व च // 362 / / स्मृति' स्याद् धर्मशाख ञ्च, तथा च धर्मसंहिता। ज्ञातव्या तर्कविद्या' वै, आन्वीक्षिको च या स्मृता // 363 // विचारणा' तु मीमांसा सर्ग' स्तु प्रतिसर्गकः / तथा वंश श्च वंशानु-बंशचरितसंज्ञकम् // 364 // मन्वन्तराणि यत्रस्युः पुराणं' पञ्चलक्षणम् / षडङ्ग सहितावेदाः मीमांसा ' sऽन्विक्षिको२तथा // 36 // त्रयोदशं धर्मशास्त्रं, पुराणं१४ च चतुर्दशम् / चतुर्दशैताः विधाःस्युः लोकशास्त्रे हि उत्तमा : // 366 / Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 48 सुशीलनाममालायां अथ सूचनकृत् सूत्र, सूत्रोक्तार्थप्रपञ्चकम् / भाष्यं' ज्ञेयं च प्रस्तावः', प्रकरणं ज्ञायतां तथा // 367 / / पदभञ्जन' मेवंहि निरुक्त शीघ्रपाठतः / अवान्तरप्रकरण-विश्रामे ह्रयाह्नि नकं तु वै // 36 // अधिकारोऽधिकरण' मेकन्यायोपपादनम् / उक्तानुक्तदुरुक्तार्थ-चिन्ताकारि च वात्तिकम् // 36 // तथा निरन्तरव्याख्या, सा टोका कथ्यते बुधैः / पुन यास:' पञ्जिकाफि तथा स्यात् पदभञ्जिका // 37 // अथाऽन्वर्थे निबन्ध' श्च, वृत्तिः स्याद् संग्रह'स्तु वै। समाहृति:२ तथा ज्ञेया. परिशिष्टं तु पद्धति:२ // 371 // अध्यायोऽङ्क स्तथोच्छवासः सर्गः प्रमुखमत्रस्यात् / ग्रन्थस्यावयवाः प्रोक्ताः काव्यादौ यत्र कुत्रचित् // 372 // कारिका' स्वल्पवृत्तौ स्याद् बहोरर्थस्य सूचिका। ज्ञातव्या सर्वविद्या' च कलिन्दिका' कडिन्दिका // 373 // निघण्टुः' शब्दकोषः स्याद्. नामसंग्रह इत्यपि / इतिहासः' पुरावृत्तं', द्वयं पूर्वचरित्रके // 374 // सूचकः गुप्तभावस्य, प्रवलिका' प्रहेलिका। जनश्रुतिः' किंवदन्ती२, तितिह्य पुरातनी // 375 . उदन्त'स्तु प्रबृत्तिः स्याद्, वार्ता' वृत्तान्तक स्तथा / प्रथाऽऽध्या' ऽऽह्वाऽभिधाऽभिख्या संज्ञा' गोत्रं तथा ऽऽह्वयः // 376 // Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयो देवविभागः 46 नामधेयं च नाम स्यादथ, सम्बोधनं पदम् / मिन्त्रण२ मपि ज्ञेय- माह्वान' त्वभिमन्त्रणान्२ // 377 / / आकारणं तथाऽऽकारो', हूति राकारणं' हवः / हक्कारक श्च हक्कार:१०, संहूति' बहुभिः कृता // 378 / / * प्रस्तावनामानि * उपोद्घात' उपन्यास उदाहारश्च वाङ्मुखम् / विवादो' व्यवहारः२ स्यात्, शपनं शपथः२ शपः // 376 / / अथ प्रतिवच' स्तु स्या, दुत्ता'ञ्चापि कथ्यते / पृच्छा' ऽनुयोजनं प्रश्नः', कथंकथिकता किल // 30 // तथा पर्यनुयोगो वै, अनुयोग श्च कथ्यते / देवप्रश्नस्तथैवस्या दुपश्रुति श्च चाटु' च // 381 // प्रियप्राय चटु' तुस्यात्- प्रियसत्यं तु सूनृतम् / अथ सत्यं तथा सम्यक्र, समीचीनं यथास्थितम् // 382 // यथातथ मृतं तथ्य,, सद्भूतं स्यान् मृषा'ऽनृतम् / अलीकं वितथं मिथ्या', ऽसत्यं सत्येतरत् तथा // 383 / स्यात् क्लिष्ट' सङ्कलं चैव, परस्परपराहतम् / सान्त्वं' सुमधुर ख्यात, मश्लीलं' ग्राम्य मस्फुटम् // 34 // अस्पष्ट स्यात् तथा म्लिष्ट, लुप्तवर्णपदं' पुनः / ग्रस्तं ध्वस्तं मवाच्यं तु, प्रोक्त मनक्षरं बुधैः // 385 // Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 50 सुशीलनाममालायां अम्बूकृतं' सनिष्ठेवर, सथूत्कारे च कथ्यते / तथा निरस्तं सर्वत्र जानातु त्वरयोदितम् // 386 // भवेदाम्रोडितं द्विस्त्रि-रुक्तं, निरर्थक' तु वै / असम्बद्धं तथाऽबद्धं 3, कथितं पण्डितर्जनः // 387 // पृष्ठमांसादनं' तद् यद्, परोक्षे दोषदर्शनम् / अथ मिथ्याभियोगः' स्यादभ्याध्यानं तथा किल // 38 // स्याद् हृदयंगमं' चैव, सङ्गतं परुषं वचः / विक्रष्टं निष्ठुरं रुक्ष - मुच्चैर्युष्टं तु घोषणा // 36 // अथेडा' वर्णना२ श्लाघा, स्तवः स्तुति' र्नुति' स्तथा। स्तोत्रं तथा प्रशंसा स्या दर्थवाद, श्च मन्यते // 360 // विकत्थनं च मिथ्या स्यात् कौलिनं' वचनीयता / तथा जनप्रवादो वै, विगानं च निगद्यते // 361 // उपक्रोशो' ऽपवाद 2 श्च, गर्दा गर्ह श्च गर्हणा / जुगुप्सनं जुगुप्सा च, निन्दा कुत्सा च धिक्रिया // 362 // निर्वाद:११ परिवाद 2 श्चाऽवर्ण:१३ क्षेप 14 श्च कथ्यते। स्यादाऽक्रोश' स्तथाऽऽक्षेपः२, शाप स्तथाऽभिषङ्गकः // 363 // क्षारणा' ऽऽक्षारणा स्यान् वै, स रते दूषणं तथा / . विरुद्धशंसनं' गालि'- राशी' मङ्गलशंसनम् // 364 // प्रथ कोतिः' समाख्या स्याद, श्लोकोऽ ऽभिख्या यश५ स्तथा समाज्ञा रुशती' वाणी सर्वथा याऽशुभा भवेत् // 36 // Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयो देवविभागः तथा कल्या' शुभा वाणी, चर्भटी' चर्चरी समे / यः सनिन्द उपालम्भः, स्यात् तत्र परिभाषणम् // 366 // अथाऽऽपृच्छा' च सोम्भाष, पालाप3 श्चापि कथ्यते / मुहुर्वचोऽनुलाप: स्यात्, प्रलाप' श्चाप्यनर्थकम् // 367 // अथोयशोचनं' स्याच् च, विलाप:२ परिदेवनम् / उल्लापः' काकुवाहः स्याद्, अन्योऽन्यक्ति' स्तु संकथा // 38 // संलापो विप्रलाप' स्तु, विरुद्धोक्ति 2 श्च कथ्यते / निह्नव' श्वाऽपलाप: स्यात्. सुप्रलाप' स्तथा पुनः // 36 // ज्ञेयं सुवचनं चापि, सन्देशवाक् ' तु वाचिकम् / अथाऽऽज्ञा' शासनं शिष्टिः निर्देश ३च नियोगकः५ // 400 // प्रादेशश्च निदेशो वै, प्रववादश्च कथ्यते / सेवकादिक माहय प्रेषणं प्रतिशासनम् / / 401 // प्रथाऽऽस्था' संश्रवः' सन्धा3, संवित् प्रतिश्रवाऽऽश्रवौ / पागू श्चापि प्रतिज्ञा वै, समाधि: सङ्गर स्तथा // 402 / / अङ्गीकारो'१ ऽभ्युपाय१२ इच, स्यादभ्युपगम स्तथा / गीतनृत्यवाद्ययुक्त, नाट्य तौर्यत्रिकं भवेत् // 403 // सङ्गीत' मीक्षणार्थेऽस्मिन्, शास्त्रोक्त नाट्यमिका' / गीतं' गानञ्च गान्धर्व, गेयं गीति' श्च कथ्यते / / 404 // Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 52 सुशीलनाममालायां नर्तनं नटनं नृत्यं 3, नृत्तं नाट्य च ताण्डवान् / . . लास्य ज्वेति हि नामानि, कथ्यन्ते कोविदः किल // 405 / / स्त्रीमण्डलेन यन्नृत्य, ज्ञेयं हल्लीसक' हि तत् / मद्यगनेन यन्नृत्यमुच्चतालं' तु कथ्यते // 40 // समराङ्गणे च यत्नृत्यं ज्ञेयं वीरजयन्तिका' / नाट्यस्थानं तु रङ्गः स्यात्, पूर्वरङ्गो' ऽप्युपक्रमः / 407 / / अङ्गहारो' ऽङ्गविक्षेपो व्यञ्जको' ऽभिनयो भवेत् / चतुर्विधानि नामानि प्रथितानि च यथाक्रमम् // 408 // पाहार्यो' ऽभिनयो ज्ञेयो, रचितो भूषणादिना। वाचिको वचसा चैव तथाऽङ्गेनाऽऽङ्गिक:3 किल // 406 // सत्त्वेन सात्त्विक श्वैत्र, कथ्यते कोविदः खलु / अथ स्यान्नाटकं' भाणः', तथा प्रहसनं डिमः / / 4:0 // अङ्कः प्रकुरणं चैव, व्यायोगेहा मृगौ तधा। वीथोऽसमवकार' श्च, नाटकादौ प्रयुज्यते / / 411 // षट् संस्कृतादिकाः भाषाः, कथ्यन्ते क्रमशो यथा। . संस्कृतं' प्राकृतं' शौरसेनी पैशाच -मागधी // 412 // अपभ्रंशोऽपि विज्ञेयो, नृत्य-गीताऽभिनेयके। भारती' सात्वती चापि, कौशिक्या रभटी तथा // 413 // Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयो देवविभागः 53 चतुर्विद्या वृत्ति रेषा, काव्य-नाटकयोः स्थिता। तूर्य ' वादिन' मातोद्यं, तूरं वायं५ स्मरध्वजः // 414 // ततं' वीरणादिवाजिन्त्रं, घनं तालादिकं तथा। शुषिरं चादि वंशादि- मानद्धं' दर्दरं तथा // 415 // करट मवनद्धं च, कथ्यते मुरजादिकम् / वीणा' घोषवती' चैव, विपञ्ची कण्ठकूणिका // 416 // वल्लको चाथ तन्त्रीभिः, सप्तभिः परिवादिनी' / अनालम्बी' शिवस्य स्यात्, सरस्वत्या श्च कच्छयो' // 417 // महतो' नारदस्य स्याद् गणानां च प्रभावतो' / बृहती' संज्ञका वीणा, विश्वावसो स्तु कथ्यते // 418 // अथ कलावती' वीणा, तुम्बरस्य हि कथ्यते / चण्डालानां तु डकारी, किनरी बल्लको तथा // 416 // काण्डवीणा कुवीणा वै, चाण्डालिका च खुङ्गाणी / तथा कटोलवीणा वै, सारिका चेति कथ्यते / / 420 // तस्याः कोलम्बक:' काय, उपनाहो' निबन्धनम् / प्रवालः' स्यात् पुनर्दण्डः, ककुभ' स्तु प्रसेवक:२ // 421 // स्यान्मूले कलिका' वंश- शलाका कूणिका' तथा / कालस्य क्रियया मानं, ताल: ' साम्यं लयः' पुनः / / 4.2 // स्याद् शीघ्रगतिमन् नृत्यादिकमघो द्रुतं' किल / स्यान् मन्दगतिमन् नृत्यं, तत्त्वं विलम्बितं खलु // 423 // Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 54 सुशीलनाममालायां मध्यमगतिमन् नृत्यादिकं मध्यं धनं तु वै। .. पुनरनुगतं चेति, कोविदः कथ्यते किल / / 424 // मृदङ्गो' मुरज श्चेति, सोऽङ्कया' लिङ्ग यूवंक विधा / स्याद् यशःपटह' श्चैव, ढक्का भेरी' तु दुन्दुभिः२ // 425 // प्रानक: पटह' श्चाथ दर्दरः कलशीमुखः / ज्ञेयं वै सूत्रकोण' श्च, उमरुकं पुन स्ततः / / 426 // परणवः१ किंकण स्याद् वै, हुडुक्कः 'तालमर्दक:२ / वाजिन्त्रं शृङ्गवाद्यं तु, शृङ्गमुखं तथवै च // 427 // कुहाला काहला' स्याद् वै, चण्डकोलाहला तथा। द्रकट:' द्रगड पश्चापि, स्यात् धूमल स्तथा बलिः 2 / / 428 // क्षुण्णक' क्षणकरे चाथ, स्यात् प्रियवादिका किल / वाजिन्न मर्धतूरं' स्याद्, डिण्डिम' स्टट्टरी तथा // 426 // झर्भर श्च कलापूरः, तिमिला' लम्बिका तथा। वेध्या तथापि मड्डु श्च, ज्ञातव्या किरिकिच्चिका // 430 // अथ स्यात् शारिका' कोणो, वीणादिवादनं किल / * रसनामानि * अथ शृङ्गार'-हास्यौ च, करुणः रौद्र-वीरकौ // 431 // भयानक श्च बीभत्सो -ऽद्भुत-शान्तौ रसाः नव / ज्ञेयाः पुन स्त्रिधा भावाः', स्थायिनः सात्विका स्तथा // 432 / / Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयो देवविभागः 55 सञ्चारिणः प्रभेदाश्च, रसानां तु रतिः' पुनः / राग श्चाप्यनुराग' श्चा- ऽनुरति हसनं' तु वै // 433 // हसो हास इच हास्य ञ्च, हासिका' घर्घर स्तथा। तत्रादृष्टरदे वक्रो-ष्ठिका' स्मितं च कथ्यते // 434 // हसितं' कश्यते प्रायः किञ्चिदृष्टरदाङकुरे / तथा विहसितं' किञ्चि-च्छ्र ते वै कथ्यते बुधैः // 435 // अनुस्यूतेऽतिहासः' स्यादहहासो' महीयसि / अकारणात् कृते हासेह्यपहास: स कथ्यते // 436 // प्रथाऽऽच्छुरितकं' हास्यं सोत्प्रासे मन्यते खलु। कथ्यते हसनं' चापि कोविदः स्फुरदोष्ठके // 437 // अथ स्याद् शोचनं' शोकः२, शुक् खेदश्च रुषा' तथा। रुट' रोषो प्रतिघः कोपः५, - कुत् क्रोधश्च तथा ऋधा // 438 // मन्यु श्चाथा ऽभियोग' श्चोत्साहः२ प्रौढिः3 प्रगल्भता। उद्योग उद्यम श्चोर्जः, तथापि कियदेतिका // 436 // पुन श्चाऽध्यवसायो ऽथ, वीर्य' सोऽतिशयान्वितः / प्रातङ्क' स्तु भयं भीतिः, - भिया भी: साध्वसं दरः // 440 // प्राशङ्का चापि तच्चाऽहिभयं' ज्ञेयं स्वपक्षजम् / भूपतीना मथाऽदृष्टं', जलाग्निप्रमुखात् तथा // 441 // Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालायां स्वपर चक्रजं दृष्टं 1, ज्ञेयं भीम' च भैरवम् / .. दारुणं भीषणं घोरं', भयानकं भयावहम् // 442 // भयङ्करं तथा भीष्मं, प्रतिभयं च भासुरम्''। प्राभीलं' 2 डमरं चैव, जुगुप्सा' तु घृणा' खलु // 443 // अथ स्याद् विस्मयो' मोहः२, चित्रं चोद्य तथाऽद्भुतम् / प्राश्चर्य फुल्लकं वीक्ष्यं, शान्ति' स्तु शमथ स्तथा // 444 // उपशम:3 शम इचैव, तृष्णाक्षय स्तथैव च / अमी तु स्थायिनो भावाः, रसानां कारणं क्रमात् // 44 // शृङ्गारे च रतिः स्थायीः, हास्ये तु हसनं तथा। ." शोक्र: स्थायी च करुणे, क्रोधो रौद्र रसे तथा // 446 // वीरे स्थायी समुत्साहोभयानके च भयं भवेत् / स्थायी भावश्च बीभत्से, जुगुप्सा च घृणाथवा // 447 // पाश्चय विस्मयश्चित्रं, स्थायी भावोऽद्भुते रसे / शान्तरसे, च तृष्णान्तः स्थायि भावश्च जायते // 448 // अथ स्तम्भो' भवेज् जाड्य, धर्मः स्वेद स्तथैव च / निदाघ श्चाथ रोमाञ्चः', कण्टकः२ पुलक स्तथा // 446 // रोमोद्गम स्तथा रोमविकागे रोमहर्षणम् / पुन रुद्धषरणं ज्ञेयमुल्लकसनमित्यपि // 450 // कल्लत्वं' स्वरभेदः स्याद्, स्वरे कम्प' स्तु वेपथुः / वैवयं' कालिका स्याद वै, हगजलं' रोदनं भवेत् // 45 // Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 57 द्वितीयो देवविभागः अस्र मस्त्रु च नेत्राम्बु', बाष्पो लोत स्तथाऽश्रु वै / मूर्छा तु प्रलय श्चैवासात्विकाऽचेष्टिताऽखित्वा // 452 // अथ स्वास्थ्यं च सन्तोषो', धृतिः स्यात् स्मरणं' स्मृतिः / अध्यानं धो मंति' बुद्धि, मनोवा विषणा पुनः // 453 // ज्ञप्ति' श्चित् चेतना प्रज्ञा , प्रेक्षा च प्रतिभा'१ तथा / उपलब्धि१२ श्च संवित्ति:१३, दृष्टि१४ ३च शेमुषी 15 तथा // 454 // प्रतिपद्१६ षोडशं नाम, सा मेधा' धारणक्षमा। तत्त्वानुसारिणी पण्डा', ज्ञानं' च मोक्षदायकम् // 455 // विज्ञान मन्यतो ज्ञेयं, धीगुणा अष्टधा पुनः / शुश्रूषा' श्रवणं चापि, ग्रहणं धारणं लथा // 456 // ऊहो५ ऽपोहो ऽथ विज्ञानं, तत्वज्ञानं च मन्यते / अथ ब्रीड' श्च मन्दाक्षं, शूका सूका तथा त्रपा' // 457 / / खोडा लज्जा तथा ह्री श्च, ज्ञेया सा ऽपत्रपा' ऽन्यतः / अथ जाड्यं' तथा मौख्यं , विषाद' स्तु विषण्णता // 45 // अवसाद श्च सादोऽपि, विबुधैः कथ्यते किल / मदो' मुन्मोहसम्भेदः, स्याद् व्याधि' स्तु रुजाकरः२ // 456 / / प्राधि श्चाथ प्रमीला' स्यात्, तन्द्रा तन्द्रि श्च तामसी। तन्द्री नन्दीमुखी निद्रा, श्वासहेति' श्च संलयः // 460 // संवेश:१० शयनं 1 स्वाप:१२, सुप्तं' तु सुखसुप्तिका / सुष्वाप श्चेति निद्राया, खयं नामाधिकं खलु // 461 // Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालायां अथौत्सुक्यं तथोत्कण्ठ, पायल्लक तथाऽरतिः। .. उत्कलिका तथोत्कण्ठा, रणरणक इत्यपि / 462 // हल्ले व श्चापि प्रोक्तार्थेऽऽवहित्या' ऽऽकार गोपनम् / आकारगूहनं गृहजालिका ऽवकुटारिका // 463 / / अवकुठारिका' चैव, स्यादऽवकटिका तथा। अनिष्टोत्प्रेक्षणं शङ्का', कथ्यते पण्डितैः सदा // 464 // अथाऽनवस्थिति' नाम, चापलं च तदेव स्यात् / तन्द्रा' ऽऽलस्य चकौसीद्य, स्याद् वै चित्तप्रसन्नता // 465 // ह्लादो' हर्षः प्रमोद श्च, प्रमदो मुच् च सम्मदः / प्रानन्दा 8 ऽऽनन्दथू प्रीति:१०, प्रामोद'' श्चापि कथ्यते॥४६६।। प्रय गर्व श्च दर्प श्च, मान श्चित्तोन्नतिः४ स्मय.५ / ममता चाभिमानः स्या, दहङ्कारो ऽवलिप्तता // 46 // अहमहमिका' ज्ञानं, युद्धादौ दृश्यते सदा / पाहोयुकाषिका दर्पात, या सा सम्भावनाऽऽत्मनि // 468 // अहं पूर्व मह पूर्वमिति स्यादहम्पूविका' / अहंप्रथमिका चैव, तथा ऽहमग्रिका किल // 469 / / उग्रत्वं चण्डताः स्याद् वै, ग्लानि' स्तु बलहीनता। प्रब ध:' स्याद् विनिद्रत्वं', दैन्यं' कार्पण्य' मुच्यते / / 470 // अथाऽऽयासः' प्रयास श्च व्यायाम श्च परिश्रमः / क्लम: क्लेशः श्रमो ऽपिस्या, दुन्मादी श्चित्तविप्लवः॥४७१॥ Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयो देवविभागः 56 मोहो' मौढ्य समानार्थः, चिन्ता ध्यानं तथैव च / अमर्षः' क्रोधसजातो, जिगोषोत्साहवान् गु. : // 472 // प्राकस्मिकं भयं त्रासः', स्यादाऽऽवेश' स्तथा किल / अपस्मारो ऽथ निर्वेदः', कथ्यते स्वावमाननम् // 473 // आवेग: ' स्यात् त्वरा तूरिणः३, संवेगः४ सम्भ्रम स्त्वरिः / अथ तर्क:' परामर्शो२, वितर्क श्च विमर्शनम् / ऊह' उन्नयनं चोहा ऽध्याहार श्चापि उच्यते // 474 / / अन्येषाञ्च गुणे दोषाऽऽरोपणं क्रियते च यत् / कथ्यते वल्वऽसूया' सा, लोकमध्ये तु पण्डितैः // 475 // * मृत्युनामानि * मृत्युः' कालो मृतिः२ संस्था, कालधर्मो निमीलनम् / पञ्चत्व मवसानं च, तथा निधन मत्ययः१० // 476 / / दीर्घनिद्रा'१ च दिष्टान्तः१२, परलोकगम' 3 स्तथा। नाशो१४ ऽस्तं 5 चेति मृत्योर्नामानि कथितानि वै // 487 // पुनः स्यात् सर्वगा मृत्युः र्मोरि' श्च मरकरे स्तथा / त्रयस्त्रिंशदमी भावाः, भवेयुर्व्यमिचारिणः // 478 / / कारणानि चकार्याणि, सहचारीरिण यानि वै। रत्यादेः स्थायिनो लोके, तानि चेन् नाटय-काव्ययोः // 476 // विभावा' चाऽनुभावा श्च, व्यभिचारिण एव वै। व्यक्तः स ते विभावाद्य :, स्धायिभावो भवेद् रसः // 40 // Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 60 सुशीलनाममालायां ये नाट्येऽधिकृताः सन्ति, लोके पात्र ञ्च तान् विदुः / / / तत्तद्वेषोऽपि नाट्ये वै, मन्यते भूमिका किल // 41 // * नटनामानि * अथ नट:' कृशाश्वी च, शैलूषो भरत स्तथा। धर्मी पुत्र श्च शैलाली, तथा भरत पुत्रकः // 402 // जायाजीव श्च रङ्गाजीवो रङ्गावतारकः / कथ्यते सर्वकेशी११ च, चारण' स्तु कुशोलव:२ // 483 // भ्रकुंसः' स्यात् भ्र कुंप२ श्च भ्र कुशो भृकुस' स्तथा / स्त्रीवेषधारकः सोऽपि नाटके कथ्यते नटः // 484 // पुनः स्यात् पीठमर्द' श्च, वेश्याचार्य स्तथैव च। सूचकू:' सूत्रधारः२ स्यात्, स्थापको बीजदर्शक: // 45 // नन्दी' स्यात् पाठको नान्द्याः, पावस्थः' पारिपाश्विक:२ / विदूषक:' प्रहासी२ स्याद्, वासन्तिक' श्च प्रीतिदः // 486 // वहासिक स्तथा कैलिकिलः केलीकिल* श्च वै / अथ पल्लवक: षिङ्गः२, स्तथा विटोऽपि कथ्यते / प्रावुक' श्च पिता प्रोक्त, प्रावुत्त'-भावुको पुनः // 487 / / Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयो देवविभागः भगिनी स्वामिनी प्रोक्ता भावो' विद्वान् हि कथ्यते / युवराजः' कुमार' श्च, स्य द् भर्तृ दारक स्तथा // 48 // बाला' वासूः२ कुमारी स्याद्, ___ मार्ष' आर्य श्च मारिषः / देवो' भट्टारको भूपः, श्यालो नृपस्य राष्ट्रियः' // 48 // स्याद् भर्तृ दारिका' सा तु, कथ्यते दुहिता बुधैः / देवी' कृताभिषेकाऽन्या, कथ्यते भट्टिनो' तथा // 460 // अज्जुका' चाऽर्जुका' चैव, कथिताः गणिकाः किल / नीचा' चेटी सखी हूतौ, हण्डे'-हजे'-हलाः क्रमात्॥४६१॥ अब्रह्मण्य' मवध्योक्ती, स्याद् ज्यायसी स्वसाऽत्तिका' / तथा भर्ताऽऽर्यपुत्रो' वै, . माताऽम्बा' कथ्यते बुधैः // 462 // भदन्ता' श्चापि वै ज्ञेयाः, सौगतप्रमुखाश्च ये। पूज्य' स्तत्रभवा नत्रभवांश्च भगवानपि // 463 // . इत्येवं कथ्यते पूज्ये, प्रयोज्यः पूज्यनामतः / भट्टो' भट्टारको देवः, पादा: भरटक४ स्तथा // 464 // गुरुपादाः यथा ज्ञेयाः, अर्हद्भट्टारक स्तथा। कुमारपालदेव श्चेत्यादयोऽनेकशब्दकाः // 465 // Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 62 सुशीलनाममालायां इति श्रीतपोगच्छाधिपति - सूरिचक्रचक्रवत्ति - भारतीयभंव्यविभूति - चिरंतनयुगप्रधानकल्प * सर्वतन्त्रस्वतन्त्र - श्रीकदम्बगिरिप्रमुखानेक * प्राचीन तीर्थोद्धारक - पञ्चप्रस्थानमयसूरिमन्त्रसमाराधक * शासन - सम्राट् . जगद्गुरु - भट्टारकाचार्य महाराजाधिराज - श्रीमद्विजय - नेमिसूरीश्वर - सुप्रसिद्ध पट्टालङ्कार - व्याकरणवाचस्पति / शास्त्र - विशारद - कविरत्न - साहित्यसम्राट् . साधिकसप्तलक्षश्लोक प्रमाण नूतन संस्कृत साहित्यसर्जक,- परमशासन प्रभावकाचार्य देवेश - श्रीमद्विजयलावण्यसुरीश्वर * पट्टधर - व्याकरणरत्न * शास्त्रविशारद - कविदिवाकर - देशनादक्ष - शासनप्रभावकाचार्य देव - धीमद्विजय - दक्ष सूरीश्वर * पट्टधर - साहित्यरत्न - शास्त्रविशारद - कविभूषण - 1 पञ्चप्रस्थानमयसूरिमन्त्रसमाराधक - शासनप्रभावकाचार्य - श्रीमद् - विजयसुशीलसूरिणा विरचितायां सुशीलनाममालायां - द्वितीयो - देवविमागः समाप्तः // 2 // Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्य विभागः ॥तृतीयो मर्त्यविभागः // * मनुष्यनामानि * मनुष्यो' मानुषो मर्यो, मनुजो मानवो नरः / भूस्पृक् पञ्चजनो ना विट 10, पूरुषः 1 पुरुष:१२ पुमान्१३ // 466 / / * बालनामानि * बालो' डिम्भः शिशुः शावः', पोत: पाक: स्तनन्धयः / अर्भोत्तानशयो चैव; क्षीरकण्ठः१० कुमारक: 11 // 467 / / कुमारः१२ क्षीरप१3 श्चैव, पृथुकः' 4 स्तनप१६ स्तथा। स्यात्: शिशुत्वं' तथा बाल्यं, शैशवं चापि मन्यते // 498 // * युवनामानि * वयस्थ' स्तरुण श्चैव, युवा ऽपि कथ्यते बुधैः / तारुण्यं यौवनं चैव, यौवनिका ऽपि मन्यते // 46 // . * वृद्धनामानि * वृद्ध' श्च स्थबिरो जीर्णो, जीनो' जरी जरन् तथा। प्रवया: यातयाम श्च, कथ्यते विबुधै रिति // 50 // विस्रसा' च जरा स्याद् वै, वार्द्ध ' स्थाविरं पुनः / ज्यायान्' जरत्तर श्चैव, वर्षीयान् * दशमी तथा // 501 // Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 24 सुशीलनाममालायां दशमीस्थ श्च विद्वद्भि, रित्येवं कथ्यते किल। .. * पण्डितनामानि * पण्डितः' प्राप्तरूप श्च, विद्वान् सुधीः कविः कृती / / 502 // लब्धवर्णो ऽभिरूप श्च, धीमान् धीरः'" सुधी' 'बुंध:१२ / जः१३ प्राज्ञ'४ श्च प्रबुद्ध 15 श्च, व्यक्तो'६ विचक्षण 7 स्तथा // 503 // मतिमान्१८ चाऽभिरूप:१६ सन् 20, विपश्चित्२१ कविता२२ तथा। दोषज्ञः२३ कोविद:२४ सूरि:२५, .. संख्यावान्२६ च विशारदः२७ // 504 / / मनीषी२८ चापि मेधावी२६, कृष्टि3 0 श्चेत्यपि मन्यते / * प्रवीणनामानि * प्रवीणः' शिक्षितो दक्षो', निष्णातो निपुणः पटुः // 505 // विज्ञो वैज्ञानिको ऽभिज्ञः, चतुरः१° कृशल'' स्तना। क्षेत्रज्ञः१२ कृतकृत्य' श्च, कृतहत्तः१ कृती५ तथा // 506 / / कृतकर्मा' कृतार्थ ७श्च, निष्णः१८ कृतमुख स्तथा / नदीष्ण२८ श्च विदग्ध स्तु, छइल्लः छेकिल स्तथा // 507 // छेकाल श्चापि छेको वै, प्रौढ स्तु प्रतिभान्वितः' / प्रगल्भः सूक्ष्मदर्शी तु कुशाग्रीयमति स्तथा // 508 / / Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्यविभागः प्रत्युत्पन्न मति' नाम, तथा तत्कालधी रपि / कथ्यते दीर्घदर्शी' च, दूरदर्शी बुधैः किल // 506 // चिद्र पो' हृदयालु' श्च, सहृदयो ऽथ संस्कृतः / व्युत्पन्न: प्रहतः क्षुण्णः, अन्तर्वाणि' स्तु शाखवित्२ // 510 / / स्याद् वाक्पति' श्च वागीशः२, प्रवाक्' वावदूक स्तथा / वाचोयुक्ति मधु वग्रिमो , समुखः५ कथ्यते बुधैः / / 511 // प्रथ वदावदो' वक्ता, वदः स्याद् बहुगावाक् / वाचाट श्चापि वाचालः३, जल्पाकः कथ्यते बुधैः / / 512 / / यद्वदो' ऽनुत्तरः स्याद् वै, दुर्वाक ' तु कद्वद स्तथा। अधरो' हीनवादी' स्यादेडमूक' स्त्ववाक् श्रुतः२ // 513 / / कलामूक स्तथाऽनेडमूको ऽपि कथ्यते बुधः / / रवरणः' शब्दनः स्याद् वै, कुवादः' कुटिलाशय: // 514 / / कुचरोऽपि भवेन्नाम, लोहजो' ऽस्फुटवा तथा / काहल श्चाधमूकोऽवाक्, जडो गडो जड स्तथा / / 515 / / अथाऽसौम्यस्वरो' लोके, कथ्यतेऽस्वर एव हि-। त्रिदुरो' वेदिता चैवं, कथ्यते विन्दु रित्यपि / / 516 / / अथाऽभिवादक' श्चैव, वन्दारु:२ कथ्यते बुधैः / आशंसिता' तथा ऽऽशंसुः२, कद्वर' स्त्वति कुत्सितः२ // 517 // कटवरः स्यादथ क्षिप्नुः', निराकरिष्णु रप्यथ / विकस्वरो' विकासी स्यान्, मुखर श्चापि दुर्मुख:२ / / 518 // Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालायां तथाऽबद्धमुखो' दुष्टवचनः कथ्यते बुधैः / शुक्ल:' प्रियंवदः स्याद् वै, प्रियवाक् सैव कथ्यते // 516 // वदान्य' स्तु वदन्य श्च, दानशीलः स कथ्यते। अथ मूर्यो' यथाजातो', बालिशो मातृशासितः // 520 // . मातृमुख श्च मूढो ऽज्ञों, मन्द श्च नामजितः / बालो'• ऽमेधाः 1 विवर्ण श्च, वैधेय 3 श्च यथोद्गत:१४ // 521 // देवानांप्रिय-१५ जाल्मौ 16 वै, जडो१७ ऽनेड' श्च कथ्यते / मन्दः क्रियासु कुष्ठः' स्याद्, दीर्घसूत्री' चिरक्रियः // 522 // कर्मोद्यतः क्रियावान्' वै, कर्मक्षमोऽपि कथ्यते / तथाऽलङ्कर्मोण:२ किल, कर्मशूर' स्तु कर्मठ:२ // 523 // स्यात् कार्मः' कर्मशील' श्च, पुनस्तु तीक्ष्णकर्मकृत् / किलाऽऽयः शूलिक श्चैव, ज्ञेयो राभसिक स्तथा // 524 // अथ स्वङ्ग' स्तथा सिंह-संहननो' ऽपि मन्यते / स्यात् स्वतन्त्रः' स्वछन्द श्च, स्वैरी वै स्वरुचि स्तथा // 525 // अपावृतौ यथाकामी', तथापि निरवग्रहः / . स्वेच्छा' च स्वैरिता चैव, यदृच्छा मन्यते किल // 26 // Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्यविभागः * पराधीन नामानि * परवशः' पराधीनः२, परायत्त श्च गृह्यकः / परतन्त्रः५ पुरच्छ द", प्रायत्तः परवान् वशः // 527 / / अधीन' 0 श्चापि निघ्नो' 'वै, आधोनः१२ कथ्यते बुधैः / * श्रीमतां नामानि * अथ श्रीमान्' च लक्ष्मोवान्, श्लीलः श्रील श्च लक्ष्मणः / / 528 / / स्यादिभ्य' स्तु समृद्धो वै, ऋद्ध' माढ्यो धनी -श्वरः / * लक्ष्मी नामानि * श्री' स्तु लक्ष्मो विभूति , ऋद्धि-सम्पत्ति -सम्पदः // 526 / / स्याद् दरिद्र' स्तथा दुःस्थः२, क्षुद्रो' दुविध-दुर्गतौ / कोकटो ऽकिञ्चनो' निःस्वो, __ दोनो नीचो'•ऽपि कथ्यते // 530 // * स्वामि नामानि * प्रय स्वामो' विभु भःि, परिवृढः प्रभुः पतिः / मधिप श्चाऽषिभू र?', नेता नाथ श्च नायकः१२ // 531 / / Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशील नाममालायां ईशितेशे'४श्वरे'५ न्द्र१६ ना१७, कथ्यते कोविदः किल / * दास नामानि * .. अथ वास' श्च भृत्य श्च, किङ्करो डिगर स्तथा // 532 // . गोप्यः५ प्रेष्यो भुजिष्यश्च परान्नः परिचारकः / परिकर्मी परिस्कन्दः'', पराचित:१२ परैधितः१३ // 533 // नियोज्यः१४ परपिण्डादः 5, चेट:१६ प्रतिचर१७ स्तथा। मन्यते परजातोऽपि-विबुधै र्दासवाचके // 534 // * कर्मकर नामानि * भृतिभुग' भृतको वैतनिक: कर्मकरी' अपि / निर्भूतिः कर्मकारो' ऽयं, कथ्यते साक्षर रिह // 53 // * वेतन नामानि * भृतिः' स्याद् वेतनं मूल्यं, कर्मणां निष्क्रयः५ १णः / भर्मण्या' भर्म निर्देशो', ___ भृत्या' च भरण'"विधा'२ // 536 // गणिका' भृतिस्तु भोगो भाटि रित्यपि कथ्यते / ___ * खलपू नामानि * बहुधान्यार्जक: ' स्याद् वै, संमार्जको बहुकरः // 537 // Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्य विभागः खलपू नाम निर्देशः, भारवाह' स्तु भारिकः / पुन तिवहे ' वैवधिको विधिक स्तथा // 538 // किल वीवधिक श्चेति, भारे' विवध-२ वीवधौ / शिकर्य' काच स्तदालम्बो, भारयष्टि' विङ्गिका // 536 // तथा विहङ्गमा चेति, विबुधै कथ्यते खलु / * वीरनामानि * स्याद् वै धीर' श्च विक्रान्तः३, शूर' श्चारभट स्तथा // 540 / / ____ * भीरुनामानि * अथ स्याद् भीरुको भीरुः२, झोत च भीलुक 4 स्तथा / कातर' चकित खस्त:, सश्च दरित' स्तथा // 541 / / ध्यग्रः' स्याद् व्याकुल' श्चैव, विहस्तो ऽपि तथैव च / कान्दोशिकोः' भयQते, समुत्पिञ्ज' स्तु पिञ्जलः२ // 542 // उत्पिञ्जल स्त्रयश्चैते, मन्तव्या भृशमाकुले / / .. . * उदारनामानि * प्रथोद्भटो' महेच्छ' स्यान्, महात्मा च महाशयः // 543n तथोदारो' ऽप्युदीर्णो वै, उदात्त श्च महामनाः / Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 70 . सुशीलनाममालायां * कृपणनामानि * कृपण' स्तु कदर्य इच, किम्पचानो' मितम्पचः // 544 / / कोनाशो दृढमुष्टि इच, क्षुद्र स्तथैव तद्धनः। .. * कृपालुनामानि * कृपालु' स्तु दयालु इच, सूरतः करुणापरः // 54 // दयानामानि * अथ दया' घृणा शूकः, कारुण्यं करुणा* कृपा। अनुक्रोशो नुकम्पा' स्याद्, * हिंसकनामानि * हिर' शरारु'-धातुकौ // 46 // * हिंसानामानि * अथ हिसा' वधो घातो-३, व्यापादनं प्रमापणम् / विबर्हण निस्तहणं, निर्गन्यनं निषूदनम् // 547 // प्रोज्जासनं प्रवासनं', समापन-१२ मपासनम् / विशरणं१४ विशारणं'५, विशसनं च वर्जनम् // 54 // प्रतिघातन-१८ मुन्मथो'६, काथो२० निष्कारणं'पुनः / मालम्भ२२ श्च निशुम्भ२३ श्च, प्रशमनं२४ परासनम्२५ // 546 // Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्यविभागः उद्वासन२६ स्तथा पिञ्जः२७, निर्वापरणं२८ निर्यातनम्२६ / प्रमय 0 श्चापि संक्षप्तिः१, मार:३२ प्रमथनं 33 तथा // 550 / / कदनं 4 क्षणनं 35 चैव, ज्ञेयं-निर्वासनं 6 तथा / स्यात् कर्तनं तथा छेदः२, ... * आततायिनामानि * कल्पनं वर्धनं पुनः / / 551 / / प्रथ घातोद्यतः स्याद् वै, आततायी च षडविधः / अग्निदो' गरद श्चैव, शखपाणि र्धनावहः // 552 // क्षेत्रहर' स्तथा दारहरो वै आततायिनः / स शैर्षच्छेदिकः' शीर्षच्छेद्यो यो बधमर्हति // 553 / / - * मृतनामानि * अथो मृतः' प्रभीतर श्च, परेता ऽपगतौ तथा / प्रेत श्चाऽऽलेख्यशेष इच, नामशेष स्तथैव च // 554 / / यशःशेषो पसम्पन्नौ , व्यापन्न श्चापि संस्थितः११ / परासु'२ श्चेति शब्दाः वै, प्रख्याता मृतवाचकाः // 555 // मृताहे दोयते दानमौर्ध्वदेहिकनामकम् / अपस्नानं मृतस्नान, तिलापः' पितृतपर्णम् // 556 // चिति' श्चित्या' चिता ज्ञेया, ऋजुः' स्यात् प्राञ्जलो ऽञ्जसः / * यक्षिण'- सरला दाराः, निवृत' स्तु शठ स्तथा // 557 // Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 72 * सुशीलनाममालायां अनृजु श्चापि शण्ठः स्यात्, फरे' पाप:२. नृशंसकः / निखिश श्चापि धूर्त' स्तु, वञ्चको व्यंसक स्तथा // 558 // कुहको जालिको मायो', दाण्डाजिनिक" उच्यते / मायावी मायिक श्चेति, ज्ञातव्या धूर्तवाचकाः // 556 / / शाठ्य' स्यात् शठता माया, कुसृति निकृ'त:' पुनः / कपट' कैतवं' कूट, मिषं लक्षं तथा छलन् // 560 // उपाधि रुप विश्छद्म', व्याजो' व्यपदेशो'१ निभम् / उपधा'३ चेति मन्तव्याः, कपटस्यैव वाचकाः // 561 // अथ स्याद दम्भचर्या' च, कुक्कुटि: 2, कुहना तथा। वञ्चन' च व्यलोकं चा-ऽतिसन्धान प्रतारणम् // 562 // अथाऽऽर्य' श्चापि साधुः२ स्यात्, सभ्य: श्च सज्जन स्तथा / दौषकहक' पुरोभागी, विद्वद्भिः कथ्यते किल // 563 / / अथ कर्णेजप:' क्षुद्रो', द्विजिह्वो' दुर्जनः खलः / प्रखलः पिशुनो नोचः८, स्यान् मत्सरी च सूचक:१°५५६४॥ व्यसना' !परक्तौ वै, * चोरनामानि * भवेच् चोर' श्च चोरडः / . परिमोषो परास्कन्दो, दस्यु' श्च प्रतिरोधक: n565 // Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्यविभागः तथैकागारिक: स्तेनो, मलिम्लु च श्च तस्कर:१° / पाटबरो'' ऽपि चौर 12 इच, पाट१३-रात्रि१४ चरस्तथा // 566 / / पट चोरो'५ ऽपिनामास्ति, तथैव परिपन्थिक:१६ / पश्यतो यो हरेदर्थ, चोरः स पश्यतोहरः // 567 // . * चौयनामानि * स्याच् चौर्य ' चौरिका चैव, स्तेयं स्तन्यं तथैव च / धनम हृतं लोत्रं', विबुधैः कथ्यते खलु // 568 / / अथ देवपरो' देव-वादी दैवप्रमाणक:3 / यद्भविष्योऽपि नामास्य, विद्वद्धि मन्यते किल // 56 // * आलस्यनामानि * अथाऽऽलस्यो' ऽजसो ऽनुष्णः , तुन्दपरिमृज स्तथा / शीतक' श्चापि मन्द: स्वाद्, * दक्षनामानि * दक्ष' स्तु पेशल:२ पटुः // 570 // उष्णोष्णकौ५ च सूत्थान: चतुरश्चाथ तत्परः' / आसक्तः प्रसितः प्रह्वः, प्रवण ३च परायणः // 571 // . .. * उदारनामानि के प्रथोदार' श्च दाता वै, दानशौण्डो' बहुप्रदः / तथैव स्थूललक्षो ऽपि, कथ्यते कोविदः किल / / 572 // Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 74 सुशीलनाममालायां * दाननामानि * अथ दानं' तथा त्यागः२, प्रतिदानं प्रदेशनम् / उत्सर्जन विसर्जन', वितरणं विहायितम् // 573 / / तथा निर्वापरणं निर्वपरणं * प्रादेशनं 1 पुन.। अंहतिः१२ स्पर्शनं 3 विश्राणन 4 स्याच वारवजन 15 // 574 / / के याचक नामानि * सुकलो' ऽर्थव्ययज्ञः स्याद्, वनीपक' स्तु मार्गरणः / तकूको याचक श्वार्थो, याचनक स्तथैव च // 575 // अथाऽर्थना' याचना याचा, भिक्षणा' sध्येषरणा ऽर्दना' / एषणा प्रणय' श्चापि, मार्गणा च सनि' स्तथा // 576 / / अभिलाषो 1 ऽभिषस्ति 12 इच, नामानि याचकस्यवै। अथ स्यादुत्पतिष्णु' वै, तथाप्युत्पतिताखलु / / 57 / / मण्डनो' ऽलङ्कारिष्णुः स्याद्, भूष्णु' स्तु भाविता तथा / भविष्णु वर्तन' स्तु वै, वतिष्णुः२ कथ्यते बुधैः / / 578 / / विसमरो' प्रसारी' स्याद, विसारो च विसृत्वरः / . जज्जाशीलो' ऽपत्रपिष्णुः२, लज्जालु श्च निगद्यते // 576 / / क्षमी' स्यात् क्षमिता क्षन्ता, सहिष्णुः सहन' स्तथा / तितिक्षुश्च तितिक्षा' तु, क्षान्ति' श्चसहनं क्षमा // 580 // Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्य विभागः ईष्यालुः' कुहनो ज्ञेय, ईर्ष्या' ऽक्षान्ति स्तथा स्मृतः / क्रोधनः कोपनः क्रोधी, रोषण चाप्यमर्षणः // 581 // प्रत्यन्तकोपनो' लोकः, चण्ड' श्चेति निगद्यते / क्षुधितो' जिघत्सु राख्यातो, बुभुक्षितो ऽशनायितः // 582 // * क्षुधानामानि * . बुभुक्षा' तु क्षुधार क्षुत् च, रोचक' श्च रुचि' स्तथा। प्रशनाया जिघत्सा च, बुभुक्षा-वाचका अमी // 583 // ___* पिपासुनामानि * तर्षित' स्तृषित' स्तृष्णक 3, पिपासुः स्यात् पिपासितः / तृष्णा' तु तृट् तृषा तर्षः४, पानं५ तथाऽपलासिका॥५८४॥ उदन्या च पिपासा च, धीति: श्चेति तृषाः स्मृताः / शोषण' स्याद् रसादानं 2, भक्षक' स्यात् तु घस्मरः // 585 // प्राशित प्राशिर श्चापि, अगर 'श्चेति भक्षकाः / * अन्ननामानि & प्रथान' मोदनो ऽन्ध: श्च, दोदिवि ३च प्रसादनम् // 586 // याजो' नाजो ऽशनं भिस्सा, भक्त 10 जीवनक'१ तथा / कूर 12 च दग्धिका' चैवं, भिस्सटा मन्यते बुधैः / / 587 // माण्डं' सर्वरसाग्न स्यात्, मस्तु' च दधिजं भवेत् / भक्तोत्थात्रय पाख्याता निःस्रावा'-ऽऽचामर-भासरा: // 588 // Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 76 सुशीलनाममालायां भक्तमण्डं' प्रसाव श्च, प्रखवा-ऽच्छोदना -ऽऽस्रवाः / * श्रारणानामानि * श्राणा' सैव विलेपो स्यात्, तरला तरलं तथा // 86 // यवागू रुष्णिका' लोके, यवानां पाकतो भवेत् / * सूपस्यनामानि * सूप' श्च प्रहित इचापि, सूदोऽपि द्विदलान्नकम् // 560 / / व्यजनं' घृतशाकादि, तिलान्ने कृसरो' भवेत् / त्रिसरोऽपि तिलान्नस्य, नामास्ति व्यवहारतः // 561 // . * पूपस्यनामानि के. पिष्टकः' पारिशोल' इच, पूपो ऽपूप* इति स्मृतः / * पूलिका (पूरो) नामानि * पूलिका' पोलिका पोली', पूपिका पूपलो तथा // 562 // घृतपक्यो भवेत् पौलि', रभ्यूषो ऽन्योष एव च / / * तेमननामानि के तेमनं ' क्नोपनं तद्वन्, निष्ठान मुपसेचनम् // 563 // Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्य विभाग: * करम्बनामानि * करम्ब' श्च करम्भ श्चः, दधिसक्तु रपोष्यते / * घात्तिकनामानि * घात्तिको' घृतपूर श्च, पिष्टपूरो घृतवरः // 564 // चमसी' चमस श्चापि, पिष्टवत्ति रपोष्यते वटको' वटकर चाव-सेकिम श्च निगद्यते // 56 // ईण्डेरिका' च वटिकार, लघ्वी सा यदि क्रियते / * रोटिकानाम * शष्कुली' भोजने सौम्या, तथा स्यादर्धलोटिका // 566 // ____* पर्पटानाम * पर्पटा:' मर्मराला श्च, घृताण्डी' तु घृनौषणी / *मोदक नामानि * मोदको' लड डुक श्चाति-स्वादवान सिंहकेसरः' // 56 // भृष्टा यवा स्तु धानाः' स्युः, धानाचूर्णानि' सक्तवः / .. * चिपिटनाम * चिपिट:' पृथुक श्चैव, चिपिटकोऽपि कथ्यते // 8 // भृष्टधान्यानि लाजा:' स्यु रक्षताः२ शालिसारभाक् / उद्ध षो भरुजो ज्ञेयः, खटिका परिवारक:६ // 56 // Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 78 सुशीलनाममालायां गोधूमचूर्णः' समिता, यवक्षोद' स्तु चि कसः / गुड' इक्षुरसक्वायः२, सितोपला' तु शर्करा // 600 // सिता च मधुधूलि' स्तु, खण्डं खण्डो ऽपि कथ्यते / मत्स्यण्डिका' तु मत्स्यण्डी, मत्स्याण्डिका च फारिणतम् // 601 // मत्स्याण्डी चेक्षुरसतः, सामान्य शर्कराभिदा। * शीखण्डनामानि * शिखरिणी' रसाला च, मजिता माजिता तथा // 602 // शीखण्डं कथ्यते लोके, यू' !ष श्च रसो ऽन्यथा / * दुग्धनामानि * दुग्धं च गोरस: क्षीरं, पुंसवनं च सोमजाम् // 603 // ऊधस्य ममृतं गव्यं 8 स्तन्यं योग्यं 10 रसोत्तमम् / बालसात्म्यं 2 मधुज्येष्ठं'3, जीवनीयं 4 सरं 5 रसम्१६ // 604 // पय१७ श्चेत्यादि नामानि, दुग्धस्य कथ्यते बुधैः। पयस्यं' दधि दुग्धोत्थं, वस्तुजातं निगद्यते / / 605 / / पीयूषं' नव दुग्धं स्यात्, पेयूष श्चापि कथ्यते / किलाटी' चिकारे चाय, कूचिका दुग्धजा स्मृता / 606 / / Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्य विभागः 76 * पायसनामानि * परमान्न' श्च क्षरेयी, पयः पक्वं हि पायसम् / * दधिनामानि * क्षीरज' गोरस श्चैव, मङ्गल्यं श्रीघनं दधि' // 607 // अघनं दधि द्रप्सं स्यात्, द्रप्स्यं पत्रल मित्यपि / ___ * घृतनामानि * घृत' माज्यं हविः सपिः४, . तथाऽऽधारो' हविष्यकम् // 608 // हो गोदोहस्य विकारे तु, हैयङ्गवीन' मुच्यते / * नवनीतनामानि * शरजं' दधिसार' ञ्च, तक्रसारं3 नवोद्धृतम् // 606 // नवनीत' च पञ्चैव, घृतोत्पत्ति कराणि वै। .. * तक्रनामानि * अरिष्टं' गोरसो घोलं, कालशेयं रसायनम् // 610 // दण्डाहतं' षडेतानि, पठ्यन्ते तक्रनामनि / उदश्वित्' त्वर्धपानीयं, तक भोजन पाचनम् // 611 // Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 80 सुशीलनाममालायां श्वेतं' श्वेतरस चैव. समभागजलं दधि / कटवरं' सारणं तक, मर्शोघ्नं परमरसः५ // 612 // जलं विनैव मथित , मथितं' कथ्यते दंधि / सर्पिषा संस्कृतं द्रव्यं, सापिष्क' कथ्यते जनैः // 613 // दनि यत् संस्कृतं द्रव्यं तद् दाधिक ' मुदाहृतम् / दकलावणिक' द्रव्यं, लवणोदक संस्कृतम् // 614 / / अर्द्ध पानीयवद् दध्ना, संस्कृतं वस्तु कथ्यते / प्रौदश्वित' मौदश्वित्कं , लोके सर्वत्र भोजनम् // 615 // लवणेन संस्कृत द्रव्यं, लावणं' कथ्यते बुधैः / उखायां जात मुख्य' स्यात्, पैठरं पिठरे कृतम् // 616 // सुसंस्कृतं प्रयस्त' ञ्च, पक्वान्नं चारु कथ्यते / सिद्ध' राद्ध ञ्च पक्व ञ्च, नाम पक्वस्य वस्तुनः // 617 // भृष्टं' भवति तद् वस्तु, यत् पक्वं जल मन्तरा। . अग्नौ पक्वञ्च भूतिः' स्यात्, भटिव ञ्च भरूटकन् // 618 / / शूल्यं शूलाकृतं मांसं, जानीयात मांम भक्षकः / मांसानाञ्च रसः प्रोक्तो, निष्क्वाथो' रसक' स्तथा // 616 / / प्रणीत' मुपसपन्न', सिद्धमन्नं रसादिवत् / मसृणं' चिक्कणं२ स्निग्धः, सामान्य स्निग्धवस्तुनि // 620 // पिञ्छिलं' विजिलं चापि, विजिविल' ञ्च विज्जलन् / विजिपिलं' सारयुक्त-दधिजं भोजनं भवेत् // 621 // . Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ततीयो मर्त्य विभाग: वासितं' भावितं धूपः, पुष्पाद्य श्च सुगन्धिते / स्वच्छं कृतं भवेद् वस्तु, संतृष्टं' शोधितं तथा // 622 / / * काञ्चिकनामानि * काञ्चिकं' काञ्जिकं चुक्र, कुञ्जसं कुण्डगोलकम् / कुल्माषाभिषुतः शुक्त, कुल्माषं तुषोदकम् // 623 // प्रारनाल deg सुवीराम्लं'१, धान्याम्ल 2 च महारसम्१३ / अवन्तिसोम 14 सौवीरं 15, रक्षोघ्नं 16 मधुरा तथा // 624 // उन्नाहं चापि धातुघ्नं 6, शुक्ल'२० चाऽभिषुतं२१ पुनः / गृहाम्बु२२ चेति नामानि, कथ्यन्ते पण्डितैः जनैः // 625 // * तैलस्यनामानि * तैलं स्नेहो म्रक्षण ञ्च, कथ्यते ऽभ्यञ्जलं तथा। * उपस्करस्यनामानि / वेषवारो' वेसवारो', वेशवार उपस्करः // 626 / / * तिन्तिडोकस्यनामानि * तिन्तिडोकं तथा बुक्र 2, वृक्षाम्ल मम्लवेतसः / * हरिद्र नामानि * हरिद्रा' वरणिनी२, निशा पीता च काञ्चनी // 627 // Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 82 सुशीलनाममालायां रात्रि वाचक शब्दा ये, हरिद्रा नामतः स्मृताः / * राजिकानामानि के क्षुताभिजनन.' क्षव:२, राजिका राजसर्षपः / / 628 // . असुरी' कृष्णिका चापि, व्यञ्जने स्वादकारिणी। धान्याकस्यनामानि * कुस्तुम्बरु' च धन्याकं२, धान्याक धान्यकं तथा // 626 // धन्या नानापि तक्यास्ति, ज्ञायता मल्लुका पुनः / ___* मरीचनामा'न * मरीचं' मरिचं कृष्णं, धार्मपत्तन मूषणम् // 630 // कोलकं बलितं चापि, वेल्लज यवनयिम् / द्वारवृत्तं 0 दशैतानि, कृष्णनामानि कथ्यते // 631 // * शुण्ठीनामानि * शुण्ठी' शुण्ठि२ स्तथा विश्वा, नागरं विश्वभेषजम् / तथा महौषध विश्वे, कथ्यते कोविदः किल // 632 / / . * पिप्पलीनामानि * पिप्पली' पिप्पलि: कृष्णा, कोला' च कृष्णतण्डुला / उपकुल्या कणा शौण्डी, वैदेही तीक्ष्णतण्डुला // 633 // Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मत्यैविभागः ऊषणा११ चोषणा 2 चापि चपला' 3 मागधी तथा। हि तण्डुलफला'५ चेति, कृष्णानामानि कथ्यते // 634 // *पिप्पलीमूलनामानिक पिप्पलीमूल' मित्येकं, ग्रन्थिकर चटकाशिर: / सर्वग्रन्थिक' मित्येवं, नाम ज्ञेयं चतुष्टयम् / / 635 // के त्रिकटुनामानि के ज्यूषणं त्रिकटु व्योषं, त्रिकटुक ञ्च कथ्यते / * जीरकनामानि के जीर' इच्च जोरको ऽजाजी, जरणो' जीरणः कणा // 636 / / * हिङ गुनामानि * वाह्लीक' जतुकं हिङगुः, सहस्रवेधि रामठम् / अत्युग्रा - गूढगन्धे च, कथ्यते भूतनाशनम् // 637 // * भक्षणनामानि * भक्षणं' जक्षणं जग्धि, जैमनं जमनं 'घसिः / पाहारो" sभ्यवहार इच, भोजनं जबनं तथा // 638 // अवष्वाण११ श्च विष्वाणो१२, लेहो न्याद४ इच खादनम्१५॥ Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 84. सुशीलनाममालायां अदनं१६ स्वदनं 7 प्सानं१८, निघस' श्चापि वल्भनम् // 639 / / अशनं 2' प्रत्यवसानं२२, चेति नामानि वै घसेः / * चर्वणनाम * . कथ्यते चूर्णनं तन्तै, श्चरणं पण्डितै जनैः / * लेहननाम * जिह्वास्वादो हि शब्दोऽपि, कथितं लेहनं पुनः // 640 // * प्रात:कालिक भोजननाम * प्रातःकालघसे नाम, प्रातराशो' हि कथ्यते / पुनरपि कल्यवतः२, सन्धि' स्तु सहभोजनम् // 641 / / * ग्रासनामानि * ग्रासो' गुड 2 श्च गण्डोलो, गडोल श्च गुडेरकः / कवक: कवलः पिण्ड,-श्चेत्यादि ग्रासनामका: // 642 // * तृप्तनामानि * पाघ्रातः' मुहित स्तृप्तः, आघ्राण श्चाशितः पुनः / * तृप्तिनामानि * . सौहित्य' तृप्ति राघ्राणं', भोजन रिह जायते // 43 // Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्य विभागः 85 * उच्छिष्टनामानि * भुक्तोच्छिष्ट' ञ्च पिण्डोलिः२, फैला' भुक्तसमुज्झितम् / फेलि' रित्यपि नामास्ति, भुक्त्वा व्यक्तस्य वस्तुनः // 644 // के उदरम्भरिनामानि * स्वोदर पूरक' श्चापि, कुक्षिम्भरि: स एव च / उदरम्भरि राख्यात, प्रात्मम्भरि निकृष्टकः / / 645 / / प्राङ्न' प्रौदरिक श्च, बुभुक्षा पीडितो जनः / सर्वान्नभक्षक' श्चैवं, सर्वान्नीन२ श्च कथ्यते // 646 // उदरपिशाचो' नाम, सर्व भुङ्क्ते हि सर्वभुक् / * मांसभक्षकनामानि * पिशिताशी' च शाष्कुलः, शौष्कलो मांसभक्षकः // 647 / / के उन्मत्तनाम के उन्मादसंयुतः प्रोक्त,-मुन्मदिष्णु स्तथापि वै / . * लुब्धनामानि * लुब्ध' श्च लोलुपो 2 लोलो', लोलुम श्चाभिलाषुकः / / 648 // लम्पटो' लालसो लिप्सुः , गृध्नु च गर्धन स्तथा। तृष्ण' चेत्यादि नामानि, लुब्धस्य कथ्यते बुधैः // 646 // Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालायां * लोभनामानि . लोभ' स्तृष्णा स्पृहा' लिप्सा, गर्द्ध: 5 काङ्क्षा वश स्तथा / प्राशा वाञ्छा धनायाच, रुचिः'' काम 2 श्च कामना'३ // 650 / / प्राशंसा 4 चाऽभिलाष 5 स्तृट् , चेच्छा'७ चेहा मनोगवी१६ // ईप्सा२० चेहो' मनोराज्य 22, प्रोक्त मनोरथरे 3 स्तथा // 651 // * अभिध्यानामांनि . अभिध्या' च परस्वेहार, तथैव विषमस्पृहा / प्रोक्त परधनेच्छायां, विषमप्रार्थना पुनः // 6521 // __* उद्धतस्यनाम * उद्धत' चाऽविनीत' इच, द्वयं सदा प्रयुज्यते / * विनीतनामानि * विनीतो' निभृतः श्चैवं, प्रश्रितो विनयी जनः // 653 / / * विधेयनाम * . विनयस्थो' विधेयरे श्च, शाखसंस्कारवान् जनः / वश्यः' प्ररणेयर प्राख्यात प्राश्रवो वचने स्थितः // 654 / / Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्य विभागः 87 * धृष्टनामानि * धृष्टो' qष्णु वियात श्च, धृष्णक निर्लज्ज उच्यते / * विलक्षनाम * विक्षापन्नो' विलक्ष इच, विस्मयेन समन्वितः / 655 / / * अधृष्ट नामानि * शालीन: शारद चाथ, कथ्यते ऽवृष्टः एव हि / * शुभसंयुक्तनाम * शुभंयुः' शुभसंयुक्त, श्चेति माङ्गलिकं किल // 656 // ___* अहंकृतनामानि * प्रथाऽहंयु' रहंकारी, कथ्यते ऽहंकृतः पुनः / * कामुकनामानि * कमिता' कामुकः२ कम्रः, कामनः कमनो ऽनुक:६ // 657 / / कामयिता ऽभिको ऽभीक: , कमर' श्वापि कथ्यते / . * विप्लुतनामानि * विप्लुतः' पञ्चभद्र श्च, व्यसनी कथितं पुनः // 658 / / * हर्षमाणनामानि * हर्षमाणो' विकुर्वाण:२, प्रमना' हृष्टमानसः / Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालायां * विचेतानामानि ... अन्तर्मनाः' विचेता श्च, विमना: दुर्मना अपि // 656 / / * मत्तनामानि * - मत्तः' शौण्ड 2 स्तथा क्षीबः, उत्कट श्चापि कथ्यते / * उत्सुकनामानि * उन्मना उत्सुक उत्कर, उत्कण्ठित स्तथोच्यते // 660 / / निन्दितनामानि अभिशस्त' स्तथा वाच्यः२, क्षारित,श्चापि दूषितः / प्राक्षारितः प्रयुक्तोऽस्ति, सर्वत्र निन्दिते जने // 661 // - * कृतलक्षणनाम * पाहतलक्षणः' ख्यातो, गुणवान् कृतलक्षण / / * निर्लक्षणनाम * निर्गुणः पाण्डुरपृष्ठो', निर्लक्षरण 2 ३च कथ्यते / / 662 // ___* अस्थिरनाम * संङ्कसुको' ऽस्थिर: शब्द, श्चपले च भवेद् द्वयन् / ___ * मूकनाम * तूष्णींशील' ३च तूष्णीक:२, मूकार्थे कथ्यते बुधः / / 663 // Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्यविभागः 89 * दुष्टबुद्धिमाननाम * अनिष्टदुष्टधी' श्चापि, विवशो' दुष्टबुद्धिमान् / * बद्धनामानि * बद्धो' नद्धः श्च यन्त्रितः, कीलितः संयतः५ सितः // 664 // तथा सन्दानित श्चापि, प्रोक्तं निगडितः किल / * बन्धननाम * उद्वान' बन्धनं चेति, बन्धनस्य हि नाम वै // 66 // * हतनामानि * हत:' स्याद् प्रतिबद्ध' श्च, प्रतिहतो' मनोहतः / . * तिरस्कृतनाम * अधिक्षिप्तः' प्रतिक्षिप्तः२, तिरस्कृत जनो भवेत् // 666 / / निष्कासितो' ऽवकृष्ट 2 श्च, निस्सारितो ऽपि कथ्यते / प्रात्तगन्धो' ऽभिभूत श्च, परास्त जनो भवेत् // 667 / / न्यक्कृतो' धिक्कृत श्चापि, स्यादपध्वस्त३ एव सः। प्रात्तगन्धो ऽपि तस्यैव, नामास्ति व्यवहारतः // 668 / / ‘विप्रकृतो निकृतो ऽपि, निस्तेजो हि जनो भवेत् / * तिरस्कारनामानि * न्यकार:१ परिभाव श्च, परिभवः पराभव:४ // 666 / / Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 60 ममालायां निकारो' विप्रकार श्चा,-ऽत्याकार श्च तिरस्क्रिया / कथितो ऽभिभव श्चेति, तिरस्कारार्थ वाचकः // 670 / / ___ * वञ्चितनाम * वञ्चितो' विप्रलब्ध स्तु, द्वयं स्याद् वञ्चिते जने / ___ * निद्रालुनामानि * शयालु' श्चापि निद्रालुः२, स्वप्नक च शयनोत्सुके / / 671 // प्रासनिः शयमानस्तु, घरिणतः' प्रचलायितः / * निद्रानामानि * निद्राणः' शायितः२ सुप्त.3, निद्रां प्राप्तो जनो भवेत् / 672 / / * जागरूक नामानि * जागरूको' विना निद्रां, जागरिता च जागरो' / * जागरणनामानि * जागर्या' जागरा' चापि, जागरण ञ्च जागर: // 673 / / विश्वद्रयङ् चापि विष्वव्यङ२, सर्वत्र गन्तुको जनः / . सध्रयङ' तु सह गन्ता स्यात्, देवव्यङ' देवपूजकः // 674 / / ___ * तिर्यग्गमननाम * . तिर्यऊ ' भवेद् व क्रगामी, खगादौ च प्रयुज्यते / Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्य विभागः * संशयालुनामानि * संशयालुः' सांसयिकः२, संशायिता जनो भवेत् / / 675 / / * गृहयालुनाम * पतयालुनाम के गृहीता' गृहयालुः२ स्यात्, पतयालु' स्तु पातक:२ / के रोचिष्णुनाम के रोचिष्णुः' कान्तिमान् लोको, रोचनः 2 पुनरुच्यते / / 676 // __* दक्षिणाहनामानि * दक्षिण्यो' दक्षिणाई श्च, दक्षिणीयो ऽपि कथ्यते / * दण्डितनामानि * दण्डं प्राप्तो दण्डितः' स्याद्, दापितः साधित स्तथा / / 677 // * पूज्यनाम * अर्य' स्तथा प्रतीक्ष्यो ऽपि, द्वयं स्याद् पूज्यवाचकः / * पूजितनामानि * प्रचितो' ऽपचितोचित, स्तथाऽपचायितो ऽहितः / / 678 / / नमसितो नमस्यितः, पूजित श्चेति पूजितः / * पूजानामानि * अर्चा' ऽहणा' सपर्या स्यात्, पूजा' चाऽपचिति' स्तथा // 66 // Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालायां * उपहारनाम * उपहारो' बलि श्चाथ, बलिदाने भवेद् द्वयम् / * विह्वलनाम के भयभीतो जनः ख्यातो, विक्लवो' विह्वल२ स्तथा // 680 / / * स्थूलनामानि के . स्थूलः' पीवा च पीन: इच, पीवरः स्यात् तथैव च / * चक्षुष्यनाम है चक्षुष्यः सुभगो' नाम, सुन्दरस्य च वस्तुनः // 681 // * दुष्यनाम' अक्षिगत' स्तथा द्वेष्यो', द्वेष्ये वस्तुनि कथ्यते / * पुष्ट नामानि * अंसल' श्चापि निर्दिग्धो, मांसलो बलवान् बली // 682 / / उपचितोऽपि सर्वत्र, कथ्यते पुष्ट वाचकः / * दुर्बलनामानि * अमांसो' दुर्बन: क्षाम:, कृशः क्षोण' स्तनु स्तथा // 683 // तलिन: पेलव८ छात, श्चेति दुर्बलवाचकाः / * तुन्दिलनामानि के पिचिण्डिलो' बृहत्कुक्षि२,-स्तुन्दी' तुन्दिक -तुन्दिलौ' // 684 // Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्य विभाग: उदरी तुन्दिभ श्चोद-रिक: उदरिल' स्तथा। * अनासिक नामानि के अनासिक'-श्च विप्र श्च, विख श्च विखु रित्यपि // 685 // * चिपिटनासिकस्यनामानि के प्रवनाटो' ऽवटीट२ श्चा,-ऽवभ्रटो नतनासिके / चिपिटो नम्रनासिक-श्चेति चिपिटनासिके // 686 // के तीक्ष्णनासिकस्यनाम * स्यात् तीक्ष्णनासिकावान् वै, खरणा' श्च खरणस:२ / के लघुनासिकस्यनाम * तथा लघुनासिकावान्, नः क्षुद्रः क्षुद्रनासिक:२।६८७।। कथ्यते विकटघोरणः', खुरणा' श्च खुरणसः / उन्नस' उ नासिकोऽपि, कथ्यते उचनासिके / / 688 / / के पगुनामानि के पंगुः श्रोण:२ पंगुलश्च , पीठसर्पो तथैव च / * खल्वाट नामानि के . खलति' श्चापि खल्वाट:२, खलत ऐन्द्रलुप्तिकः // 686 // वभ्र 5 श्च शिपिविष्ट श्च, कथ्यते पण्डित रिह। के कारणस्यनामानि के एकाक्षः' कननः काण, एकदृक् चापि कथ्यते // 660 // Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालायां के किरातनामानि * अल्पतनु' श्च पृश्नि: स्यात्, किरातो लधुदेहवान् / के कुब्जनामानि * कुब्ज' श्च गडुलो न्युज', स्त्रीणि नामानि सन्ति वै // 661 // . के कुरिण नाम के कुणि' स्तु कुकर श्चापि, कथ्यते कुणिनामनि / के वामननामानि के खर्व' श्च खर्वशाख' श्च, निखर्व: खट्टन स्तथा // 692 // ह्रस्व' च वामन श्चेति, कथ्यते ह्रस्वबोधने / * बधिरनामानि * एडो' ऽकर्ण इच बधिरः, श्रुतिांवकल४ इत्यपि // 66 // * दुश्चमेनामानि के वण्ड' श्च शिपिविष्टः स्याद्, दुश्चर्मा च द्विनग्नकः / के खजनामानि के खजश्व खक:२ खोर:३, खोड श्चेत्यपि कश्यते // 664 // * विकलाङ्गनाम के पोगण्डो' हीन देहोऽस्ति, विकलाङ्गो ऽपि स भवेत् / Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्य विभागः 65 * ऊर्ध्वजानुकनामानि * ऊर्ध्वशः' पुरुषो ज्ञेय,-उध्वजु रूख़जानुकः // 695 // के विरलजानुकनामानि * विरलजानुकः' प्रज्ञः२, प्रजु श्चेत्यपि मन्यताम् / * युतजानुनामानि * संजुः' संज्ञः श्लिष्टजानु, युतजानु श्च कथ्यते // 696 // * वलिननाम * वलिनो' वलिभः कोऽपि, दग्धचर्मा जनो भवेत् ! * दन्तुरनाम * उदग्रदन् दन्तुरः स्याद्, यस्य दन्ता बहिः स्थिताः // 697 // * मुष्क रनाम * मुष्कर' च प्रलम्बाण्डो जनो लम्बाण्ड उच्यते / * अन्धनामानि * गताक्षो' ऽनेडमको इन्ध', श्चक्षुतिकल उच्यते // 698 // * उन्मुखनाम * उत्पश्यः' कथ्यते सोऽत्र, यस्तिष्ठेदुन्मुखः२ सदा / * अधोमुखनामानि * प्रवाङ न्युज श्च विज्ञेयः, सर्वत्राऽधोमुखो जनः // 66 // *मक Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ES सुशीलनाममालायां * मुण्डनाम * मुण्ड' श्च मुण्डितो' नाम, केशरहित उच्यते / * केशिकनामानि * केशव:१ केशिकः२ केशी, केशवान् कथ्यते जनः // 700 // * केकरनाम के केकरो' वलिर' श्चेति, प्रोक्तो वक्राक्षिवान् जनः / * तुण्डिभनामानि * तुण्डिलो' वृद्धनाभि श्च, तुण्डिभ: स्यात् पृथूदरः / / 701 // ___* रोगिणोनामानि * प्रातुरो' रोगितो' ग्लानो, व्याधितो ऽयमितो ऽपटुः / विकृत प्रामयावीस्या-दभ्यान्तो ग्लास्नु' रेव च // 702 // दङ्घरोगी' तु दर्गुणोरे, दद्रुरोगी च दद्रुणः / पामनः पामर' श्चापि, कच्छुर श्चर्मरोगवान् / / 06 // सातिसार ' स्तथैवाऽतो-सारको 2 चातिसारको। वातकी' वातरोगी२ स्यात्, श्लेष्मण:१ श्लेष्मल:२ कफी / / 704 / / चिल्ल' श्च चुल्ल' च पिल्ल. इच, क्लिन्ननेत्रो ऽक्षि रोगवान् / अर्शसो' गुदरोगो स्या-दर्शोयुक्२ चापि कथ्यते // 705 / / मूर्छालो' मूच्छितो मूर्तः, विसंज्ञः कथ्यते जनः / किलासी' सिध्मल श्चापि, जनः स्याच्छ्वेतकुष्ठमन् // 706 // Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्य विभागः 67 * पित्तनामानि * पित्तं तथा पलाग्नि इच, मायु: श्च पललज्वरः / तथाऽग्निरेचक' श्चेति, पित्तनामानि कथ्यते // 707 // * कफनामानि के कफ' स्तथा बलाश श्च, श्लेष्मा खेट स्तथा खट:५। शिवानक स्तथा स्नेह-भू श्चेति कफनामकाः // 708 // * रोगनामानि * रुगा' ऽऽतको रुजा' रोगो', व्याधि५ रपाटवं तथा। पाम प्रामयः प्राकल्यं. मान्द्य तथा ऽऽमनं'' गदः१२ // 706 // उपताप१३ स्तथैवास्ति, रोगनाम निरूपणे / क्षयरोगनामानि के राजयक्ष्मा' क्षयः शोषो', यक्ष्मा चापि निगद्यते // 710 // * क्षुतस्यनामानि * क्षुत्' क्षुत ञ्च क्षव श्चापि, छिका देश्या च मन्यताम् / - कासनाम * कासो' विशेष प्रख्यातः, स एव क्षवथु' भवेत् // 711 // Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 68 सुशीलनाममालायां * खसनामानि ॐ . .. पामा' पामा२ खस: कच्छू, विचाचिका' ऽपि कथ्यते / .. . * कण्डूनामानि के .. कण्डू:' खजू 2 श्च खजू तिः३, कण्डूति श्च पुनर्भवेत् // 712 // कण्डूयनं' च कण्डूया' गात्र कण्डूयने स्मृताः / के वणनामानि के ईम' क्षतं व्रण श्चारुः४, क्षणनु५ श्चापि कथ्यते // 713 // व्रण चिह्न किणः' प्रोक्त-मखशखादिकस्य च / . के श्लोपदरोगनाम * श्लीपदं' पादवल्मीकं, पादरोगस्य नाम वै // 714 // के पादस्फोटनाम * शीतादिना समुत्पन्नः, पादस्फोटो' विपादिका / * स्फोटकनाम * विस्फोटः' स्फोटको गण्ड:3, पिटक श्चापि कथ्यते // 715 // * पृष्ठग्रन्थिनाम * पृष्ठग्रन्थि' गडुः प्रोक्तः पृष्ठग्रन्थिक मित्यपि / Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्यविभागः के कुष्ठनामानि * श्वेतं श्वित्रं तथा कुष्ठं, पाण्डुरं चेति कुष्ठकम् // 716 // * केशघ्ननाम के वातरोगविशेष: स्यात्, केशघ्न' चेन्द्रलुप्तकम् / के किलासनामानि * किलासं' सिध्म त्वक्पुष्पं, सिध्म रोग स्तु चर्मणः // 717 // ___ * कोठनामानि * मण्डलं' रोगभेद: स्यात्, कोठो मण्डलकं तथा। ___ * गण्डमालनाम * गलगण्डो' गण्डमालः', कण्ठरोगः सदोच्यते // 718 / / क गलाङ्कुरनाम * गलरोगो रोहिणो' स्याद्, गलाङ कुर२ श्च कथ्यते / क हिक्कानामानि के हेक्का' हिक्का' च हृल्लासो, रोगभेद उदाहृतः // 716 // . * पीनसनाम * नासिका रोग भेद स्तु, प्रतिश्याय' श्च पीनसः / Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 100 सुशीलनाममालायां * शोफनामानि *. . शोफ' श्च श्वयथुः शोथः३, शरीरं यत्र फुल्लति // 720 // * अशनामानि * प्रशः स्याच दुर्नामा, गुदकोलो गुदाङकुरः / * वमननामानि के नाम प्रच्छदिका' छदिर, र्वमनं वमथु वमि:५ // 721 // * उदररोगनाम * गुल्म:' स्यादुदरग्रन्थिर, रुदावर्तो' गुदग्रहः / नाडीव्रणो' गति वृद्धिः', कुरण्ड२ श्राण्डवर्धनम् // 722 // अश्मरीनाम के प्रश्मरी' मूत्रकृच्छ ञ्च, मूत्राशये च जायते / * प्रमेहनामानि * मेह' स्तथा प्रमेहर श्व, कथ्यते बहुमूत्रता // 723 // * विबन्धनाम ॐ . पानाह' श्च विबन्ध स्यात्, पुरीषमूत्ररोधने। . Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्य विभागः 101 * ग्रहणोरुकनाम * प्रतिपुरीषकारी च, ग्रहणीरुक्' प्रवाहिका // 724 // विद्रधि' स्तु भगन्दरो ऽर्बुद श्चापि ज्वरादयः / अनेक व्याधयो लोके, वर्तन्ते दु:खदायकाः // 725 // * वैद्यस्यनामानि ॐ भिषग्' वैद्य स्तु दोषज्ञः प्रायुर्वेदी चिकित्सकः / प्रायुर्वेदिको नामैव, रोगहारी भवेज्जनः // 726 // अगदङ्कार नामा ऽपि, लोकेषु कथ्यते जनैः / * औषधनामानि * औषध' मगद स्तन्त्रं, भैषज्यं चापि भेषजम् // 727 // तथा जायुश्च नामेदं, भेषजस्यैव मन्यते / * चिकित्सामामानि * उपचार' चिकित्सा स्या, दुपचर्या रुप्रतिक्रिया // 728 // * लङ्घननाम 8 . भोजनादि परित्यागो, लङ्घन' मपतर्पणम् / ..विषवैद्यनामानि * . जाङगुलिको' विषवैद्यो२, विषभिषक् च कथ्यते // 726 // . Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 102 सुशीलनाममालायां ॐ स्वास्थ्यनामानि * .. स्वास्थ्यं सह्य तथाऽऽरोग्य, वात स्थाच्चाप्यनामयम् / * नीरुकनामानि * . पटु' वर्ति स्तथोल्लाघः3, कल्यो नीरुक्५ निगद्यते // 730 // . * पार्श्वकनाम * उत्कोचे विभवाऽन्वेषी, पार्श्वकः' सन्धिजीवकः / * कूकुदनामानि * सत्कृत्याऽलकृतां कन्दा, यो ददाति स कूकुदः' / / 731 / / स एव कूपदः प्रोक्तः, पारिमित श्च प्रायशः / 8 चपलनाम ॐ चपल' चिकुर' श्चेति, नामाऽपि कथ्यते जनैः // 732 // 8 नीलीरागनामानि 8 नीलीरागः' स्थिरप्रेमा', तथा स्यात् स्थिरसौहृदः / ॐ हरिद्रारागनाम * हरिद्वाराग' इत्युक्तः, क्षणिकरागवान् किल / / 733 // . ॐ मेदरनाम * .. प्रतिस्नेहेन संयुक्तः, सान्दस्निग्ध' श्च मेदुरः / Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्य विभागः * गेहेशूरनामानि ॐ गेहेनर्दी' तथा गेहे'-पिण्डोशूरौ' च कथ्यते // 734 // * धनि नाम * अस्तिमान् च धनी नाम कथ्यते धनवानपि / * गोष्ठश्वनाम * स्वस्थानस्थः परद्वेषी, गोष्ठश्वः' कथ्यते बुधः // 735 / / * पापन्ननाम * प्रापन्न' प्रापदि स्थितः, संपन्नो धनवान् जनः / * आपत्तिनामानि 8 आपत्ति:' स्याद् विपत्ति' श्च, विपदा ऽऽपत् तथैव च // 736 // * स्निग्धनाम * स्नेहवान स्निग्ध' प्राख्यातो, वत्सल' श्चापि कथ्यते / 8 उपाधिनामानि * कुरुम्बपालको लोकः, कुटुम्बव्यापृतो' भवेत् // 737 // अभ्यागारिक नामापि, स उपाधि श्च कथ्यते / - * दीर्घायुनामानि * प्रायुष्मान्' चापि दीर्घायुः२, जैवातृक श्च मन्यते // 738 // Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 104 . सुशीलनाममालायां * त्रासदायीनाम * त्रासदायो' शङ्कर श्च, कथ्यते त्रासदायकः / * शरणार्थिनाम * शरणार्थी' चाभिपन्नः२, उच्यते शरणागतः // 736 // * परीक्षकनामानि * प्राक्षपटलिक' श्चापि, कारणिक:२ परीक्षकः / परीक्षाकारको लोके, कथ्यते कोविदः किल // 740 // वरदनाम * वरद' श्च समधुक:२, वाञ्छितस्य प्रदायकः / . * सङ्घजीविनाम * मङ्घ स्थिता जीविताश्च, वातीनाः' सङ्घजीविनः॥७४१॥ * सदस्यनामानि पार्षदाः' पारिषद्या श्च, सभ्या श्चापि सभासदः / सभास्तारा: सदस्या श्च, सामाजिकाः स्मृताः समे // 742 // * सभानामानि * सभा' संसत् समाज श्च, समज्या समितिः५ सदः / Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्य विभागः 105 प्रास्था स्थानं तथाऽऽस्थानी , * पर्षत् 1 0 च गरिषद्'१ घटा१२ // 743 // गोष्ठी 13 त्रयोदशं नाम समिते मिसंग्रहे / * ज्यौतिषिकनामानि * सांवत्सर' श्च दैवज्ञो, ज्योतिषिको निमित्तवित् // 744 // नैमित्तिक ३च नैमित्तो, ज्ञानी कान्तिक स्तथा / मौहत्तिक श्च मौहूर्तः१०, ईक्षरिणको 1 विप्रग्निकः१२॥७४५॥ प्रादेशी13 गणक१४ श्चेति, नामानि दर्शितानि वै / * तान्त्रिकनाम * सैद्धान्तिको' हि शाखज्ञः, तान्त्रिको ऽपि च कथ्यते // 746 // * लेखकनामानि * लेख्को' ऽक्षरचञ्चु ३च, करणो ऽक्षरजीवकः / तथाऽक्षरचरण श्चापि, लिपिकर श्च वणिक: / / 747 // लिविकर श्च कायस्थो , ऽक्षरचुञ्चु१० श्च कथ्यते / * लिपिनामानि * लेख: स्याक्षरन्यासो, लिखिता च लिपि लिविः // 748 // Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालायां * मषीभाजननामानि * मषिधानं' मषीधानं२, मषीभाजन मित्यपि / मषिकूपी मषीकूपी, पात्र मस्या: निगद्यते // 746 // * मसोनामानि * . . मसी' मसि श्च मेला च, मलिनम्बु मषी मषिः / * कुलश्रेष्ठिनामानि * कुलक' श्च कुलश्रेष्ठी, कुलिको ऽपि निगद्यते // 750 / / * द्यूतकारकनाम * द्यूतकर्ता भवेल्लोके, सभिको' द्यूतकारक: / * द्यूतकृत्नामानि 8 द्यूद्यूतत्' कितवः प्रोक्तो, धूर्तो ऽक्षधूर्त एव च / / 751 // अक्षदेवी स एव स्या-दक्ष >व्यति यो जनः / * द्यूतनामानि * अक्षवती' पणः२ द्यूतं३, कैतवं स्याद् दुरोदरम् // 752 / / * अक्षनामानि * . पाशक:' प्रासको ऽक्षः स्याद्, द्यूतस्थान हि देवनः / Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्यविभागः 107 * अक्षपणनामानि * प्रक्षपणो' ग्लहो ग्लहिः, द्यूताय कल्पितं धनन् / / 753 / / ___* शारिफलनामानि * स्यात् शालिफलक' शालि-फल' मष्टापद स्तथा / * शारनामानि * शारि' श्च खेलनी शारः, कथ्यन्ते शारसंज्ञकाः // 754 / / परिणायो' ऽपि शारीणां, नयन स्यात् समन्ततः / * प्राणि तनाम * प्राणियुद्ध क्रिया क्रीडा, प्राणिद्यूतं समाह्वयः // 755 // * व्यालग्राहिनामानि * अहितुण्डिक' नामास्ति, व्यालग्राहो' तथैव च / माहितुण्डिक नामापि, स एव कथ्यते किल // 756 / / ___मनोजवनामानि * मनोजवस' प्राख्यातः, ताततुल्यो मनोजवः / . * देशकनाम * . शासनं कुरुते यो हि, स शास्ता' देशक स्तथा // 757 / / नाम * Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 108 सुशीलनाममालायां * धन्यनामानि .. पुण्यवान्' सुकृती' धन्यः३, पुण्यात्मा जन उच्यते / * मित्रवत्सलनामानि * मित्रे स्नेहस्य कर्ता स्यात्, मित्रयु' मित्रवत्सलः // 758 // * क्षेमकरनामानि * शिवताति' स्तथा रिष्ट-तातिर श्चापि शिवकरः / क्षेमङ्कर' स्तथैवास्ति, कल्याणकारकः स च / / 756 / / * प्रास्तिकनामानि 8 प्रास्तिकः१ श्राद्ध श्रद्धालू, श्रद्धावानाऽऽगमे सदा। (r) नास्तिकनाम शास्त्रे श्रद्धा न यस्यास्ति, स भवेत् नास्तिको' जनः / / 760 / / * वैरङ्गिकनाम * वैरङ्गिको' विरागार्हो२, वैराग्यलायकं स च / * वीतदम्भनाम * अमायावी जनः प्रोक्तो, वीतदम्भो' ऽप्यकल्कन 7 // 761 // * असम्मतनाम * . प्रणाय्यो' ऽसम्मतो लोके, विरुद्धपथगन्तुकः / Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्यविभागः 16 * अनुपदिनाम है अनुपदी' तथा ऽन्वेष्टार, पश्चाद् गन्तरि मानवे / / 762 // * समर्थनामानि * सहः' क्षमः२ समर्थ इच, प्रभविष्णु स्तथैव च / प्रलम्भूष्णुः प्रभूष्णु श्च, शक्त" श्चेति समर्थकाः / / 763 // ॐ भूतात्तनाम * प्राविष्ट' श्चापि भूतात्तो, भूतग्रस्तो हि कथ्यते / * शिथिलनाम (r) शिथिल' इच श्लयो नाम, बन्धभेदो निगद्यते // 764 // ॐ अङ्गमर्दनाम * संवाहको' ऽङ्गमर्दः२ स्यात्, शरीर मर्दको जनः / ॐ नष्टबोजनाम * निष्कलो' नष्टबीजः स्यात्, सत्त्वेन रहितो जनः // 765 / / . . ॐ उपविष्टनाम * उपविष्ट' स्तथाऽऽसीनः२, कथ्यते उपविष्टकः / ऊर्ध्व ऊर्ध्वन्दमरे श्चैव, स्थित श्चेत्यपि मन्यते // 766 // Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 110 सुशीलनाममालायां * पथिकनामानि * प्रवासी' पथिकः पान्थो, ऽध्वनीन४ ३चा ऽध्वग' स्तथा / अध्वन्यो देशिक" श्चैव, कथितो मार्ग गन्तरि // 767 // * पथिकसार्थनाम * हारिः' पथिकसार्थ: स्यात्, पथिकानां समूहके / ॐ पाथेयनाम * पाथेयं' शम्बल 2 ञ्चापि, पथि खाद्ये निगद्यते // 768 / / * जङ्घालनाम * प्रतिजव' श्च जङ्घालो, वेगवानुच्यते जनः / * जङ्घाकरनामानि (r) जङ्घाकरिक' -जाचिकौर, जङ्घाकर श्च कथ्यते // 769 / / * त्वरितनामानि * जवी' च जवन 2 श्चापि, त्वरितो बहुवेगवान् / * वेगनामानि * जवो' वाजर स्तथा वैगो', रयो रह स्तथा तरः // 770 // प्रसर" श्च स्यद श्चैव, वेगनामानि सन्ति वै / Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्यविभाग: 111 * मन्थरनाम * मन्थरो' मन्दगामी च, यः शनै श्चलतोह सः // 771 // * अनुकामीननाम * कामंगाम्यनुकामीन:२, स्वेच्छाचारी जनो भवेत् / ___ॐ अत्यन्तीननाम * अत्यन्तीनो' ऽत्यन्तगामी 2, बहुगन्ता जनः स्मृतः // 772 / / * सेवक नामानि * अनुगो' नुचर' श्चैवा,-ऽनुप्लवो ऽभिचर’ स्तथा / सहाय श्चानुगामी चा,-ऽऽनुजीवी स्याद् च सेवकः // 773 / / , * सेवानामानि * सेवा' भक्ति श्च शुश्रूषा, परिचर्या प्रसादना' / उपास्ति' रुपचार ३च, परीष्टि: स्यादुपासना // 774 // पर्यषणा' * वरिवस्या'१, भवेदाराधना१२ च सा। * पदातिकनामानि * पादचारी' पदाति 2 श्च, पादातिकः पदातिकः // 775 // पदाजि चापि पादाजिः, पदिक: पदग स्तथा। पत्तिः पद्ग° ३च पादात.११, पद्भ्यां चलति स भवेत् // 776 // Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 112 सुशीलनाममालायां * अग्रेसरनामानि * पुरोगमः' पुरोगामी, प्रष्ठो ऽप्रतःसर स्तथा। अग्रसरः पुरोग श्च, ह्य ग्रेगू° ३च पुरःसरः / / 777 // * अतिथिनामानि * प्राघूर्णक' श्च प्राघूण:२, स्यादाऽऽतिथ्यो' ऽतिथि स्तथा। आवेशिक तथा ऽऽगन्तुः, अभ्यागतो,' ऽपि कथ्यते // 77 // * प्रातिथ्यनामानि 8 प्रातिथ्य' मातिथेयो च, स्यादा ऽऽवेशिक मित्यपि / .. सूर्यास्तात् परमायातः, सूर्योढः' कथ्यते हि सः // 776 // * पाद्यनाम * पाद्य' भवति तल्लोके, पादप्रक्षालनाय यत् / * अर्घ्यनाम अयं पूजाकृते तोयं, दीयते तत्र कथ्यते // 780 // * अभ्युत्थाननाम * सत्कारस्य क्रियोत्थाय, अभ्युत्थान' ञ्च गौरवम् / . * व्यथकनामानि * . . अरुन्तुद' श्च मर्मस्पृक, व्यथक श्चापि कथ्यते // 781 // Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्यविभागः * ग्रामेयकनामानि * ग्रामीणो' ग्रामवासी स्यात्, ग्राम्यो ग्रामेयक स्तथा / * जननामानि * जनः' प्रजा च लोक श्च, सर्वसाधारणो जनः // 782 / / * अमुष्यपुत्रनामानि ॐ प्रख्यातस्य पितुः पुत्रः, स्यादाऽऽमुष्यायण' स्तथा। अमुष्यपुत्रः२ प्रख्यात,-वप्तृक श्चापि कथ्यते / 783 // * कुलीननामानि के महाकुल:' कुलीन श्च, कुल्यः कौलेयक स्तथा। अभिजात' श्च जात्य श्च, स्यादेवमभिजः" पुनः // 784 // - * कुलनामानि * गोत्रं वंशो ऽन्दवाय इच, सन्तानो ऽभिजन: कुलम् / जनन मन्वय श्चापि, सन्तति श्चापि कथ्यते // 785 // * स्त्रीनामानि * स्त्री' नारी वनिता वामा, योगा योषित्६ च योषिता / वधू वंशाई वणिनो'च, महेला महिला 2 ऽबला' 3 // 86 // सोमन्तिनी 4 च सामान्य, सीवाचकाः प्रदर्शिताः / अङ्गना' ललना' कान्ता, रामा भीरुः५ नितम्बिनी // 787 // Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 114 सुशीलनाममालायां रमणी सुन्दरी चैव, प्रमदा स्त्रीविशेषकाः। .. प्रङ्गानि सुन्दराण्यस्याः, सा भवेत् सुन्दरी सदा // 788 // क्रोडावती च रामा स्यात्. रमणो चापि कथ्यते / क्रीडन्ती ललना प्रोक्ता सुन्दराऽवयवाऽङ्गना // 786 // मनोज्ञा सर्वलोकानां, चित्ताकर्षणाकारिका। वामाक्षी' च मृगालो' च, मत्तेभगमना' पुनः // 760 // तरललोचना' ख्याता, सुस्मिता' चाऽलसेक्षणा। वरारोहा ऽपि प्रख्याता, तथैव वरवणिनी // 761 // प्रतीपदर्शिनी क्वापि, काव्ये शास्त्रे निरूपिता। लीला' शृङ्गारचेष्टा स्यात्. मानः' स्त्रीणां धनं स्मृतम् // 762 // स्मरः कामर्थक श्चापि मनोविलास इत्यपि / एतस्मादयि नामानि, स्त्रीणां भवन्ति कानिचित् // 73 // लीलावती' स्मरवती, मानिनी नाम जायते / मनोविलासवत्यादि,-नाम काव्ये समोरितान् // 764 // * स्त्रीणां स्वाभाविकोऽलङ्कारः * विलासो' ललितो लोला विभ्रमो विहृतं तथा / विव्वोक श्चापि विब्बोको', विच्छित्तिः किलिकिश्चितम् // 79 // कूटटुमितं तथा मोट्टा-यितं 1 मोटायितं च हि / एवा सर्वाऽपि स्त्रीणां स्वा,-भाविकालङ्कृति भुवि // 766 // Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्य विभागः 115 * स्त्रीणां सात्त्विकोऽलङ्कारः ॐ शोभा' माधुर्य मौदार्य, प्रागल्यं दीप्ति' रेव च / धीरत्वं कान्ति रप्यास्ति, स्त्रीणां सात्त्विकालङ्कृतिः // 767 // हेला' हावश्च भावो ऽपि, स्त्रीणामङ्गजाऽलङकृतिः / * भामिनीनाम 8 कोपना भामिनी नारी, कोपवतो हि कथ्यते // 798 // * वाणिनोनाम * वाणिनी' वनिता प्रायः छेका मत्ता च मन्यते / * कन्यानामानि * कनी' कन्या कुमारी' स्यात्, गौरी' तु नग्निका ऽरजा' 766 // * तरुणीनामानि * तरुणी' तलुनी स्याटे, युवतिः युवती चरी / मध्यमा दिक्करी चैव, दृष्टरजा: पुनः किल // 800 // .. स्वयंवरानामानि * स्वयंवरा' तथा वर्या, पतिवरा' पि कथ्यते / Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलानाममालायां * वधूटीनामानि * वधूटी' वध्वटी चैव, चिरण्टी च सुवासिनो // 801 // चरण्टो स्यान्चरिण्टी च, चिरिण्टी स्ववासिनी / ___ * पत्नोनामानि * पत्नी' पाणिगृहीती च, परिग्रहः समिणी // 802 // सधर्मचारिणी भार्या , द्वितोया सहधर्मिणी / ऊढा' क्षेत्रं. कल–११ च, करात्ती१२ गृहिरणो१३ जनी 4 // 803 // वधूः 15 जाया'६ तथा७ दारा:८,' _दारा१६ दार२० श्च गहिनी'। पुनः सहचरी 22 चेति, कथ्यते सहचारिणी // 804 // * पुरन्ध्रीनाम * पुरन्ध्री' स्याद् कुटुम्बिनी२, सा कुटुम्बवती जनी। * प्रजावतीनामानि * भ्रातुर्जाया' तथा भ्रातृ, जाया स्याच्च प्रजावती // 805 // * पुत्रवधूनामानि * . सूनोः स्नुषा' वधूटी च, जनी वधू श्च मन्यते / Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्य विभाग: 117 * यातरनाम बन्धुवर्गस्य या जाया, यातर स्ताः परस्परम् // 806 / / * वारपत्नोनाम वीरपत्नी' वीरभार्यार, सा खी वोरजनस्य व / * कुलस्त्रीनामानि * स्यात् कुलबालिका' चैव, कुलखी कुलपालिका // 807 / / * प्रेयसीनामानि * प्रिया' प्राणसमा प्रेष्ठा, प्राणेशा' प्रेयसी तथा / दयिता हृदयेशा च, प्रणयिनी च वल्लभा // 808 // कान्ता' प्रेमवती११ चेति, प्रोक्ता लोके प्रियप्रिया / ___ * पतिनामानि * पति:' प्राणसमः प्रेयान् , प्रारणेश: प्रणयी' प्रियः // 806 // प्रेष्ठः पाणिग्रही कान्तः', पाणिग्राह' 0 श्च वल्लभ:११ / उपयान्ता१२ परिणेता१३, . भर्ता'४ भोक्ता'५ तथा धव:१६ // 810 // वरयिता' 7 विवोढा१८ च, रुच्य१६ श्च रमणो२० वरः२१ / दायतो हृदयेश 23 श्च, सेक्ता चेति प्रियः पतिः / / 811 // Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालायां * जन्यानाम * जन्याः' वरस्य मित्राणि. व्यवहारे सदा स्मृताः / * विवाहनामानि 8 . उद्वाह' उपयाम श्च, विवाह. पाणिपोडनम् / 812 // स्यात् पाणिग्रहणं दांरा,-कर्मव परिणय स्तथा। उपयमो ऽपि नामास्ति, जाम्बूलमालिका पुनः / / 813 / / * वरयात्रानाम * दौन्दुभी' वरयात्रा स्यात् सा प्रसिद्धा महीतले / . . 8 वर्णकनाम * गोपाली' वर्णकं वेति, देहे विलेपने कृते // 814 / / ॐ वरनिमन्त्रण नाम * वरनिमन्त्रणं' शान्ति,-यात्रा चेत्यपि मन्यते। ... * वरमहोत्सवनाम * स्यादिन्द्राणीमहो' हेलिः२, ख्यातं वरमहोत्सवम् / / 815 / / .... के मङ्गलध्वनिनाम 2 उलूलुः' मङ्गलध्वनि.२, चेति मङ्गलशब्दकः / .. Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्यविभागः 116 * पूर्णकलशनामानि 8 स्याद् वै स्वस्त्ययन' पूर्ण-कलशं२ मङ्गलाह्निकम् // 816 // * मङ्गलस्नाननाम * शान्तिक' मङ्गलस्नानं२, यत् सुजलेन क्रियते / * हस्तलेपनाम * करणं' हस्तलेप इच, विवाह समये विधौ // 17 // * हस्तबन्धनाम * पीडनं' हस्तबन्ध श्च, पाणिग्रहण नामनी / 7 // * करमोचननाम * तथापि समवभ्रंशः', कथ्यते करमोचनम् // 818 // वात्तिक धूलिभक्त 2 स्याद्, विवाह समये क्रिया। * जामातृनाम * जामाता जगति ख्यातः, पुत्रीपतिः स मन्यते // 819 // * जारनाम के उपपति' श्च जारो ऽपि, कथ्यते जारपूरुषः / .. ॐ गणिकापतिनाम * स्याद् गणिकापति' नाम, भुजङ्गो ऽपि तथैव च // 20 // Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 120 सुशीलनाममालायां * दम्पतीनामानि * दम्पतो' जम्पतो जाया,-पती भार्यापती तथा। वरवध्वो स्तु नामानि, पतिपत्न्योः तथैव च // 21 // ___ * दायनामानि .. सुदायो' युतयोर्देयं, यौतकर हरणं तथा। दाय श्चेत्यपि नामापि, कथ्यते स्त्रीहिते धने / / 822 // * महिषीनाम * अभिषेकवतो राज्ञी, महिषी' कथ्यते बुधः / अन्या नृप स्त्रियः प्रायो, भोगिन्यो' विदिताः किल / / 823 // . . * सैरन्ध्रीनाम * स्वतन्त्रा चा ऽन्यवेश्मस्था, पुनश्च शिल्पजीविनी। सैरन्ध्री' या प्रसिद्धा सा, कथ्यते कोविदः किल // 824 // * असिक्नोनाम * नृपस्या ऽन्तःपुरप्रेष्या, साऽसिक्नी' कथ्यते जनः / * दूतीनाम * दूती' सञ्चारिका चेति, दूत्यर्थे वर्तते ऽत्र हि // 25 // Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मत्यविभागः 121 * प्राज्ञीनामानि * तीक्ष्णबुद्धिमती नारी, प्रज्ञा' प्राज्ञी' प्रजानती। * प्राज्ञानामानि * प्रोक्ता प्राज्ञा' पुनश्चापि, सा स्त्री प्रज्ञयाऽन्विता // 26 // * प्राभीरीनाम * प्राभोरी' स्यान् महाशूद्री, महिला ऽऽभीरजातिका / __* प्राचार्यस्य स्त्रीनाम * प्राचार्यानी' तथा ऽऽचार्यो२, प्राचार्यस्य समिणी // 27 // ___ * मातुलीनाम * मातुली' मातुलानी? च, मातुल स्त्री निगद्यते / * उपाध्यायस्य स्त्रीनाम * 'उपाध्यायान्युपाध्यायो', उपाध्यायस्य हि जनी // 828 // * क्षत्रियस्य स्त्रीनाम * क्षत्रियस्य च पत्नी वै, क्षत्रियो' कथ्यते बुधैः / .. * अर्थी शूद्रीनाम * अर्यो' वैश्यस्य भार्याऽऽर्थी, शूद्री' शूद्रस्य गेहिनी // 826 // Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 122 सुशीलनाममालायां * प्राचार्यानाम * प्राचार्या स्त्री प्रसिद्धास्ति, घ्याख्यात्री यत्र कुत्र वै / ॐ शूद्रानाम (r) शुद्रजात्युद्भवा नारो, सा शूद्रा' कथ्यते जनैः // 30 // * क्षत्रियाणीनाम * क्षत्रिया' क्षत्रियाणी च, क्षत्रियजातिजा स्मृता। * उपाध्यायीनाम * उपाध्यायो' उपाध्यायाः, शिक्षिका स्त्री निगद्यते / / 831 // * अर्याणीनामानि * प्रर्या' ऽरिणी 2 च सा नारी, मन्यते वश्यजातिजा। प्रार्या' ऽऽर्याणो तथैवास्ति, साऽपि वैश्योद्भवा किल // 832 / / * द्विरूढानामानि के पुनर्भू' द्विरूढा' स्याद्, दिधीषू दिधिष स्तथा। * दिधिषूनाम * पुनर्लग्नकरिण्याऽस्तु, पति वै दिधिषू' भवेत् // 833 // स्यानेदिधिषू' विप्रः, पुनर्लग्न विधायकः / Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्यविभागः - 123 * परिवेत्तनाम * परिवेत्ता' च स ख्यातः, ज्येष्ठं त्यक्त्वा विवाहित. // 834 // स्वयं न परिणीतो यः, कनिष्ठ श्च विवाहितः / * परिवित्तिनाम * स एव परिवित्ति' स्तु, कथ्यते व्यवहारतः // 835 // * परिवेदिनीनाम * परिवेत्तु स्तु पत्नी वै, मन्यते परिवेदिनी' / * कामुकीनाम * कामुकी' च वृषस्यन्ती', मैथुनेच्छावती भवेत् / / 836 // .. - * कामुकानाम * धनादीच्छावती नारी, कथ्यते * कामुका' हि सा। * अध्यूढानाम * कृतसापत्निका' ऽध्यूढारे, मन्यते प्रथमाऽङ्गना / / 837 // अधिवित्ता ऽधिविन्ना' च, सापि पत्नी तथैव हि / . * सतीनामानि * एकपत्नी सती साध्वी, सुचरित्रा पतिव्रता' / / 838 / / Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 124 सुशीलनाममालायां * असतीनामानि . .. प्रथाऽसती' चर्षणी च, धर्षणी' स्वैरिणी तथा। इत्वरी' पुंश्चलो चापि, त्रिलोचना विलोचना // 836 / / अविनीता पांसुला' खण्ड-शीला'' मदननालिका१२ / बन्धुदा' बन्धको१४ चैवं, कुलटा१५ कलकूणिका' // 84 // दुःशृङ्गी च मनोहारी'८, लाञ्छनी चेति यथ्यते / * अभिसारिकानाम या याति पतिपार्वे सा, कामेच्छयाऽभिसारिका' // 841 / / ॐ सखीनामानि ॐ प्रालिः१ सखी' वयस्याः च, सध्रीची चेति मन्यते / ॐ अशिश्वीनाम (r) अशिश्वी ' वनिता या सा, पुत्रशून्या हि कथ्यते // 842 // ॐ सधवानामानि* जीवत्पति' स्तथा जीवत्-पत्नी पतिवत्नी तथा। * विधवानाम * विधवा' स्यादविश्वस्ता-लोके तु मृतस्वामिनी // 843 // Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ततीयो मर्त्यविभागः 125 निर्वो।' ऽपि वनिता वै, सा निष्पतिसुता मता। * जोवत्तोकानाम * जीवत्सन्तान नारी स्यात्, जीवत्तोका' च जीवसू:२ // 844 // * निन्दुनाम * नश्यत् प्रसूतिका नारी, निन्दुः' सा किल कथ्यते / (r) नरमालिनीनामानि (r) सश्मश्रु' श्चापि पालि' श्च, तथैव नरमालिनी // 845 // खलु भवति सा नारी, यस्याः श्मश्रु श्च विद्यते / * कात्यायनीनाम * कात्यायनी' सा ऽर्द्धवृद्धा, कषायवस्त्रधारिणी // 846 // * विधवानामानि # प्रधवा' विधवा रण्डा, कथ्यते मृतस्वामिनी / * भिक्षुणीनामानि * श्रवणा' श्रमणा मुण्डा, भिक्षुको भिक्षुणी स्मृता // 847 // ___ * पोटानाम * पुंलक्षणवती नारी, पोटा' भवति नामतः / Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 126 सुशीलनाममालायां के वेश्यानामानि * वेश्या' क्षुद्रा रूपाजीवा', कामलेखा खगालिका // 848 / / गणिका लज्जिका चापि, पण्याङ्गना पणाङ्गनाई। भुजिष्या साधारणस्त्री', वारवाणि१२ श्च ज्ञायताम् // 846 // वारवधूः' वारमुख्या, सेवाकार्ये स्थिता हि या। * कुट्टनोनामानि * शम्भली' कुट्टनो चुम्दी, परस्त्री पुंनियोजिका // 850 // __* दासीनामानि * चेटो' दासी कुम्भदासी, पोटा बोटा' गणेरुका / वडवा पिचनामास्ति', कुट हारिकापि कथ्यते / / 851 / / के नग्नानामानि * . कोटवी' नग्नि का नग्ना', या वस्त्ररहिता भवेत् / . * पलिक्नीनाम के वृद्धा नारी पलिक्नी' स्याद्, यस्याः केशाः सिता इह // 852 // * रजस्वलानामानि * रजस्वला' ऋतुमती, पुष्पवती च पुष्पिता। अधि:५ खीधर्मिणी चाऽवोः", उदक्या मलिनी तथा // 853 // Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्य विभागः 127. प्रात्रेयी' 0 चेति नामानि, रजस्वलाया भवन्ति / * निष्कलानाम के मिष्कला' पुष्पहोना च, यस्या रजोऽभवन् नहि // 854 // * राकानाम * राका' रजस्वला कन्या, कथ्यते विबुधै रिह / * स्त्रीरजोनामानि के प्रार्तवं कुसुमं पुष्पं, स्त्रीधर्म च रज' स्तथा // 955 // रजः प्रवृत्तिकाला स्तु, ऋतुः' शास्त्रे निगद्यते / * मैथुननामानि * मैथुनं' मोहनं चापि. सम्भोग: सुरत रतम् // 856 // सम्प्रयोगः4 रहो' ग्राम्य-धर्मः सवेशनं तथा / पशुधर्म:१० पशुक्रिया', कामकेलि१२ स्तथा रतिः१३ // 857 // निधुवनं 14 व्यवाय 15 श्च, कथ्यते कोविदः किल / * मिथुन नामानि के स्त्रीपुंसौ' मिथुनं प्रोक्त, द्वन्द्वं तदेव कथ्यते / / 858 / / के गर्भवतोनामानि * अन्तर्वत्नी' गुविणी' च गु:3 गर्भवती तथा / ५आपन्नसत्त्वोदरिणी', गुविण्या नाम ज्ञायताम् // 856 // .... Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 128 सुशीलनाममालायां * दोहदान्वितानाम * गर्भकाले विभिन्नेच्छा, श्रद्धालु' दोहदान्विता / * प्रसूतिकानामानि * जातापत्या' विजाता' स्यात्, प्राजाता च प्रसूतिका // 60 // ॐ गंभनामानि ॐ गर्भ' श्च गरभो भ्र णो, भवेद् दोहदलक्षरणम् / * गर्भाशयनामानि 8 उलबं' च जरायु श्च, गर्भाशयोऽपि कथ्यते // 861 // * कललनाम * उल्बं' कलल' मित्याहुः, शुक्रशोणित मिश्रणम् / ॐ दोहदनामानि ॐ दोहदं' दौह दं प्रोक्त), श्रद्धा' च लालसा पुनः // 862 // * सूतिमासनामानि 8 सूतिमा:' सूतिमास श्च, वैजनन श्च वुध्यताम् / . 8 प्रसवनाम * .. प्रसव' श्च विजननं२, जन्म नाम द्वयं भवेत् // 6 // Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्यविभागः 129 के पुत्र नामानि * अङ्गजः' प्रात्मजः सूनुः3, नन्दनः कुलधारकः / उद्वहो दारकः पुत्रो', द्वितोय स्तनयः सुतः // 864 // दायाद१२ श्चेति नामापि, कथ्यते सूनु नामनि / ___ * पुत्रोनामानि * उद्वहा' नन्दना सूनु, रङ्गजा चात्मजा सुता // 65 // धीदा समधुका' चापि, दारिका दुहिता' तथा। देहसञ्चारिणो'१ पुत्री 2, तनया' चेति कथ्यते // 866 // * सन्ताननामानि * सन्तानः' सन्तति स्तोक, प्रसूति स्तूक पञ्चमम् / अपत्यं च प्रजा" चापि, सप्त नामानि सन्ति वै // 867 // * भ्रातृव्यनाम के भ्रातृभ्यो' भ्रातृपुत्र स्तु, भ्रात्रीय इचापि मन्यते / ___ * भागिनेयनामानि * स्वस्त्रोयो' भागिनेयः२ स्याज् जामेयः कुतप स्तथा // 868 / / . * पौत्रनामानि * कथ्यते पुत्रपुत्र' इच, नप्ता२ पौत्र स्तथा पुनः / Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 130 सुशीलनाममालायां के दौहित्रनाम के दौहित्र' श्चापि नप्ता हि, मन्यते दुहितुः सुतः / / 866 / / ॐ प्रपौत्रनाम * प्रतिनप्ता' प्रपौत्रो ऽपि, पौत्रपुत्र उदाहृतः / * परम्परनाम * प्रपौत्रस्यात्मजो लोके, परम्पर' ३च 'कथ्यते // 87 // * पैतृष्व सेयनाम * पितृष्वसुः सुतो लोके, पैतृष्वसेय' उच्यते / पैतृष्वस्रीयइत्यस्ति, द्वितीयं नाम तस्य वै / / 871 / / * मातृष्वसेयनाम * मातृष्वसुः सुतो लोके, मातृष्वसेयः' कथ्यते / मातृष्वसीय इत्यस्ति, द्वितीयं नाम तस्य हि // 872 // * विमातृजनाम के विमातुरात्मजो लोके, वैमात्रेयो' विमातृजः / * द्विमातृजनाम * द्वयो त्रिोः सुत स्तावद, द्वैमातुरो' द्विमातृजः // 873 // Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्य विभागा 131 8 सांमातुरनाम * सामातुरः' सतीपुत्रः, भ्राद्रमातुर' उच्यते / * सौभागिनेयनाम * सौभाग्यवत्याः पुत्र स्तु, सौभागिनेयः' उच्यते // 874 // * कानीननाम * कन्या सुत स्तु कानीनो', व्यास: कर्ण उदाहृतः। . * पौनर्भवनाम * पुनर्लग्नवती पुत्रः, पौनर्भव' श्च कथ्यते / / 875 // . * पारस्त्रैणेयनाम * परस्त्रीषु समुत्पन्नः, पारस्त्रैणेय' उच्यते / * दासेक्नाम * दासीपुत्र स्तु दासेयो', दासेर श्च निगद्यते // 876 // * नटीसुतनामानि * नटीसुत' स्तु नाटेयो', नाटेर उच्यते पुनः। .. * असतीसुतनामानि * कोलटेरो' बान्धकिनेयः२, कोलटेयो ऽसतीसुतः // 877 // Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 132 सुशीलनाममालायां बन्धुल' श्चेति नाम्नानि, कथ्यते कुलटासुतः / .. . * कौलटिनेयनाम * सती स्त्री भिक्षुको पुत्रः, कौलटिनेय' उच्यते / / 878 // : * कौलटेयनाम * असती भिक्षुको सूनुः कॉलटेय' उदाहृतः / ॐ क्षेत्रजनाम * क्षेत्रजो' देवरादिजः, लोके निन्दित उच्यते // 876 // * प्रौरसनाम * औरस' श्चप्युरस्यो वै, स्वस्त्री जातः सुतो भवेत् / * गोलकनाम * मृते भर्तरि यो जातः, स गोलक' उदाहृतः / / 880 // * कुण्डनाम * पत्यौ जीवति अन्यस्माज, जात: कुण्डः' सुतो भवेत् / . * भ्रातृनामानि * सहोदरः सगर्भ श्च, सोदर्य:3 सोदर स्तथा // 8 // Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्यविभागः 133 भ्राता च सहज' श्चापि, समानोदर्य इत्यपि / * ज्येष्ठनामानि * अग्रज' श्चाऽग्रिमः२ पित्र्यः स्याज् ज्येष्ठः पूर्वज स्तथा // 882 // * कनिष्ठनामानि * अवरजो' ऽनुज:२ स्याद् वै, कनीयान् कन्यस स्तथा / कनिष्ठ५ च यविष्ठ श्च, स्याद् यवीयान् जघन्यजः // 883 // पितुः पत्न्या श्च मातु श्च, भ्राता लोके निगद्यते / पितृव्य' श्च तथा श्याल:', मातुल:' क्रमशो ऽत्र वै // 24 // * देवरनामानि * . ..... पत्युः कनीयान् भ्राता स्याद, देवा' च देव' देवरौ / * भगिनीनामानि के स्वसा' च भगिनी जामि:, सहोदरा नाम जायते // 18 // ज्येष्ठा ऽत्र वीरभवन्तो', प्रायः कुत्रापि कथ्यते / * नन्दिनीनामानि * ननन्दा' च ननान्दा च, नन्दिनी पतिसोदरा // 886 // Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 134 सुशीलनाममालायां के कुलीनाम के पत्न्याः ज्येष्ठा स्वसा लोके, ज्येष्ठश्वश्रूः' कुली' भवेत् / * श्यालिकानामानि * .. पत्न्याः लध्वो स्वसा लोके, श्यालिका केलिकुञ्चिका // 8 // यन्त्रणी' चापि हाली वै, कथ्यते पण्डितः किल / * क्रीडानामानि * क्रीडा' केलिः२ किल: खेला', लीला' तथा , सुखोत्सवः // 888 / / कूर्दन वर्करो नर्म, विनोदो' देवनं 1 तथा। परिहास:१२ परीहास', स्तथा रागरसो१४ द्रवः // 886 // ललनं चेति नामापि, मन्यते नर्म वाचके। // 888 // * पितृनामानि * वप्यो' बप्ता तथा तातो', बीजी बप्यः पिता पुनः // 10 // जनयिता जनित्र श्च, रेतोधाः जनको' भवेत् / . पितुः पिता पितामहः', तत् पिता प्रपितामहः // 861 // मानामहो' मातृवप्ता, तद् वप्ता प्रमातामहः' / Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्य विभागः * मातृनामानि * माता' ऽम्बा२ जननी जानी', जनयित्री प्रसू स्तथा H892 // सवित्री' च जनित्री च, मातृ नामनि कथ्यते / * कृमिलानाम * कृमिला' च बहुप्रसूः२, या सूते बहुसन्ततिम् / / 863 // * धातृनाम * उपमाता' च धात्री सा, याऽन्यान प्रापयति पयः / * वोरमातृनाम * वोरसूः' वीरमाता' सा, या सूते वीरमात्मजम् / / 864 / / के श्वश्रूनाम, श्वसुरनाम के श्वश्रू' माता पतिपल्योः, श्वसुरस्तु' पिता तयोः / पितरः' स्यात् पितुर्वश्या, मातु मातामहाः' कुले // 86 // * मातुःपितुश्चनामानि * मातरपितरौ माता-पितरौ पितरौ तथा। . . श्वश्वाःश्वसुरस्य च नाम ॐ प्रोक्त माता पिता चापि, श्वश्रूश्वशुरौ' श्वसुरौ // 866 // Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 136 सुशीलनाममालायां * पुत्रपुत्रीनाम * तथा पुत्र श्च पुत्री च, पुत्रौ' प्रोक्त महीतले। __ * भ्रातुःभगिन्याश्चनाम * . भ्राता च भगिनी चापि, भ्रातरौ? कथ्येते खलु // 8 // * स्वजननामानि * स्व:' स्वजनः सगोत्र श्च, ज्ञाति बन्धु श्च बान्धवः / * स्वकीयनामानि * प्रोक्तः पुनः स्वकीय' श्च, स्वर प्रात्मीय स्तथा निज: // 898 // * सपिण्डानाम * सनाभयः' सपिण्डाः स्युः, पितुः सप्तान्तर्गता जनाः / * नपुंसकनामानि 8 . क्लोबः षण्ड' स्तथा पण्ड, स्तृतीयाप्रकृतिः किल // 86 // शष्ठः शण्ड स्तया पण्डुः , प्रोक्त नपुंसक पुमः / * गात्रनामानि ॐ इन्द्रियायतनं' मूति:२, मूर्तिमत्' च कलेवरम् // 600 // अङ्ग गात्रं तनुः क्षेत्रं, तनूः संहननं'• सिनम्' / Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्य विभागः 137 वपु'१ श्च पुद्गलः'३ पिण्ड:१४, काय:'५ प्रजनुक:१६ पुरम् // 601 // व्याधिस्थानं 8 तथा वेरं१६, चतुःशाख२० षडङ्गक२१ / भूधनो 2 विग्रहो२३ वर्म२४, घनो२५ बन्ध२६ श्च सञ्चर:२७ // 602 // शरीरः करणं२६ देह , श्चेति नामप्रयोगतः कथ्यते / * मृतक नाम * मृत शरीर नामानि, मृतकं' कुरणपं शवः // 3 // * कबन्धनाम * शिरो विना च मृतकं कबन्धो' रुण्ड उच्यते। ... . . * वयोनामानि * दशाः' प्रायाः२ वयांसोह', कथ्यन्ते काव्यशास्त्रयोः // 604 // * देहलक्षणनाम * देहस्य लक्षणं प्रोक्त, सामुद्र' देहलक्षणं / ॐ देहावयवनामानि 8 एकदेशे प्रतीको' ऽङ्गा',-ऽवयवा' ऽपघना अपि // 605 // गात्र चापि विजानीयात्, शरीरावयवं पुनः / Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालायां ॐ मस्तकनामानि * . .. मस्तकं' मस्तिकं२ मुण्डं 3, _ मूर्धा मौलि' स्तथा शिरः // 606 // उत्तमाङ्ग तथा शीर्ष, वराङ्ग' चापिक' पुनः / कथ्यते करणवारणं'', देश नामानि सन्ति वै // 607 // ___ॐ केशनामानि * शिरसिजाः कचा:' केशाः२, तीर्थवाका श्च कुन्तला: / वाला' श्च वेल्लितानो ऽस्रः, चिकुरा चिहुरा स्तथा // 608 // वृजिन'० श्चेति नामापि, कथ्यते केशवाचके / ॐ केशपाशनामानि * सकेशः पाश'-रचना२-भार-उच्चय उच्यताम् // 606 // हस्तः५ पक्षः कलाप श्च, केशपाशादिकं भवेत् / * कुटिलकेशनामानि * अलक:' कर्कराल' श्च, खङ्खर श्चूर्णकुन्तलः // 10 // कुटिलकेश' इत्यस्ति, केशशोभा करक्रिया। . * भ्रमरकनामानि . भ्रमरकः' कुरल' श्च, ललाटे भ्रमरालक: // 11 // Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्य विभाग: 136 * जूटकनामानि 8 मिल्लो' ऽपि केशवेशो मौलिः२ जूटक' इत्यपि / * केशवेषनामानि * कबरी' बर्बरी नाम, केशवेष श्च पर्परी // 12 // * वेणीनामानि * वेणी' वेरिण: प्रवेणि इच प्रवेणी ग्रन्थितालकः / _* शिरस्यनामानि # शीर्षण्य' श्च शिरस्य इच, प्रलोभ्यो निर्मलोऽलकः // 13 // __. * सोमन्तनाम * केशेषु वर्त्म सीमन्तः, कथ्यते शिरसि स्थितः / * पलितनाम * पलितं' पाण्डुर: केशः, वृद्धवयसि दृश्यते // 914 / / . शिखानामानि * चूडा' शिखण्डिका केशी, केशपाशी तथा शिखा / .... * काकपक्षनामानि 8 सा बालानां शिखाण्डकः', काकपक्षः२ शिखण्डक:3 // 15 // Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 140 सुशीलनाममालायां * मुखनामानि * प्रास्यं' मुखं वरं वक्त्रं, घनं घनोत्तम चरम् / पाननं वदनं तुण्डं, तेरं' दन्तालय' 2 स्तथा // 16 // लपनं१३ चेति नामानि, मुखस्य सुधयो विदुः / * ललाटनामानि . भालं' गोधि' रलोक च, ललाट मलिक' भवेत् // 617 / * कर्णनामानि * कर्ण:' श्रोत्रं महानाद:3, श्रवणं च श्रुति:५ श्रवः / शब्द -ध्वनिग्रहौ चैव, शब्दाधिष्ठान मित्यपि // 18 // पैञ्जूष' श्चेति नामानि, कर्णस्य प्रतिभान्ति हि / वेष्टनं' कर्णशष्कुली', कथ्यते कर्णपर्पटी / / 616 // पालि' इच कर्णलतिका', कर्णाग्रभाग उच्यते / धारा' च कर्णप्रान्तो हि, कर्णान्त भाग उच्यते // 20 // कर्णमूलस्य भाग स्तु, कर्णमूलं' च शीलकम् / कपाल-कर्णयो मध्यभागः शङ्खः' स्मृतो बुधैः // 21 // * नेत्रनामानि * नेत्रं च नयनं चक्षु लॊचनं च विलोचनम् / ईक्षणं दर्शनं दृष्टि,-देवदीपो ऽक्षि१० वै पुनः // 22 // Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्यविभागः 141 रूप ग्रहो११ ऽम्बकं 12 चव, दृक् 3, चेति कथ्यते बुधैः / तारा' कनोनिका भूयस्-तारका रूप ग्राहिणी // 23 // सौम्यं' वामाक्षि नामास्ति, भानवीय 'श्च दक्षिणम् / अनक्षि' दोषवन् नेत्रं, ख्यातं लोके सदा बुधैः // 624 // * दर्शननामानि * निभालनं च निध्यानं२, दर्शन मवलोकनम् / ईक्षरणं द्योतनं चापि, निशमनं निशामनाम् // 25 // तथा निवर्णनं चेति, नामानि दर्शनस्य हि / के कटाक्षनामानि * . अक्षिविकूणितं' काक्षः२, कटाक्ष श्चार्ध वीक्षणम् // 626 // अपाङ्गदर्शनं५ चेति, वक्रदृष्टया निदर्शनम् / स्यादुन्मीलन' :मुन्मेषो', नयनोद्घाटनं स हि // 27 // नयनमीलनं प्रोक्त, निमेष श्च निमीलनम् / अक्षणो बर्बाह्यान्तावपाङ्गौ', भू-रूद्धे रोमपद्धति. // 628 // भ्रकुटिः' भ्र कुटि२ श्चैवं, 5 कुटि: भृकुटि स्तथा / सकोपभ्र विकारे हि. कथ्यते कोविदः किल // 26 // भ्रू वो मध्ये हि विज्ञेयं, कूर्च कूर्प२ च नामनि / . नेत्ररोमणि वै पक्ष्म', मन्यते पण्डितः पुनः // 630 // Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 142 सुशीलनाममालायां * नासिकानामानि * . . . नासिका' च नसा नासा, नस्या च गन्धनालिका / नक्र नर्कुटकं घ्राणं, घोणा गन्धवहा• तथा // 31 // गन्धज्ञा'' गन्धहृत् चैव, शिविनी' 3 च विकूणिका'४। मासिक्यं१५ चेति नामानि, नासिकायाः भवन्ति वै // 632 // ___ के प्रोष्टनामानि के प्रोष्ठो' ऽधरो' रसालेपी, रदच्छद श्च वाग्दलम् / दन्तवस्त्रं च नामाऽपि, दशनोच्छिष्ट उच्यते // 633 // प्रोष्ठप्रान्तौ सक्कणी' स्यात्, सृक्किच सृक्किरणी तथा / चिवुक मसिका' स्तु, चिक्क' चिक्कमधोऽसिकम् / / 634 // * गल्लनाम * सक्कण: परभाग स्तु, गल्लः' स्यात् सवंदैव हि / * कपोल नाम के गल्लात् परः कपोलो' ऽस्ति, गण्डः परः कपोलतः // 935 // गल्लो गण्डो कपोल श्च, समानार्थक एव च।। के हनुनाम * . कपोलाधो हनु' च्यो, मुखाधोऽपि हनु भवेत् 1936 // Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्यविभागः 143 * श्मश्रुनामानि * प्रासुरी' चास्यलोमं च, श्मश्रु कूर्चश्व व्यञ्जनम् / कोट स्याद् दंष्ट्रिका' नाम, द्राढिका दाढिका तथा // 937 / / * दाढानामानि 8 दाढा' दंष्ट्रा च जम्भ श्च, दन्तभेदे त्रयं भवेत् / * दन्तनामानि है दन्ताः' दंशा द्विजा: दालुः', दशना' रदना रदाः // 638 // मल्लका: खादना भूयः, खरु' र्मुखखुर'' स्तथा / राजदन्तौ तु मध्यस्थावुपरि श्रेणिको क्वचित् // 636 // ..* जिह्वानामानि * जिह्वा लोला रसज्ञा च, रशना रसना' रसा। काकु च ललना रस्ना, रसिका' रसमातृका 1940 // * तालुनामानि 8 काकुवं तालु' प्रख्यातं, क्वचिद् वक्रदलं तथा / . .. * लम्बिकानामानि * सुधास्त्रवा' घण्टिका च, लम्बिका गलशुण्डिका n641 // Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 144 सुशीलनाममालायां ग्रीवानामानि * . .. धमनि' कन्धरा ग्रीवा, शिरोधि ३च शिरोधरा / रेखा त्रयवती सैव, कम्बुग्रीवा निगद्यते // 642 // * शिर:पीटनामानि * पुंखियो खटुः' ख्यातः, घाटा इचव कृकाटिका / तदर्थे च शिर: पीठ पण्डितैः समुदाहृतम् // 643 // कृकः' स्यात् कन्धरामध्यं, कृक पाश्वौं तु वोतनौ' / ग्रोवाधमन्यौ प्राग् नीले', पश्चान् मन्ये' कसम्बिके 2 // 644 // .. * कण्ठनामानि * गलो' निगरण श्चैव, कण्ठः कण्ठस्य कथ्यते / . * कण्ठमणिनाम * . मन्ये कण्ठमणिर्नाम, काफलक' श्च काकल:२ // 645 // * स्कन्धनामानि * स्कन्धो' भुजशिर श्चांसो', भुजशिखर मुच्यते / * जत्रुनाम * सन्धिकरों ऽसगः जत्रु.', उच्यते जगती जनैः // 946 // * बाहुनामानि * . बाहु' हा भुजो दो इच, प्रवेष्ट: कथ्यते पुनः / Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्यविभागः 145 * कक्षनामानि * दोर्मूलं' खण्डिक श्चैव, कक्षा च भुजकोटरः // 947 // स्यादेतयो रधः पावं', कथ्यते पण्डितैः जनः / * कुर्पग्नामानि * कफोणिः' कुपर श्चैव, कफारिण.3 कफणि स्तथा // 648 // भूजामध्यं च बाहूय-बाहुन्धिश्च कूपरः / कपोरिण:८ रत्निपृष्ठकं', चेति नामानि मन्यते // 646 // अधस्तस्याऽऽमणिबन्धा,-दुपबाहु ' कलाचिका / प्रकोष्ठ: स्यात् प्रगण्ड' स्तु, कूर्परांसान्त उच्यते // 650 // के हस्तनामानि के करो' हस्तः२ शमः पाणिः४, पञ्चशाखः५ शयः६ सलः / भुजदल' श्च नामानि, करस्य मन्यते बुधः // 651 // करस्यादौ मणिबन्धो', मरिण 2 श्च कथ्यते पुनः / हस्तस्य मणिबन्धादा-कनिष्ठं करभो' भवेत् // 652 // * अङ्गुलिनामानि के अङ्गुली' स्यादङ्गुलि इच, करशाखा' ऽपि कथ्यते / अगुरि रङगुरी शास्त्रे, ह्रस्वान्तोऽपि निगद्यते // 653 // अङ्गुष्ठो' ऽङ्गुल 2 इत्यस्ति, तर्जनी' च प्रदेशिनी / Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 146 सुशीलनाममालायां मध्या' च मध्यमा ज्येष्ठा, सावित्री' स्यादनामिका // 954 कनोनिका' कनिष्ठा' च, व्यवहारे प्रयुज्यते / प्रवहस्तः' प्रसिद्धोऽपि, कथ्यते हस्तपृष्ठतः // 655 // * नखनामानि के कामाङकुशो' भुजाकण्टर, करज: पाणिज स्तथा। कररुहः५ करशूकः', पुनर्भव: पुनर्नवः // 66 // महाराजो नख' श्वैव, नखर११ श्चापि कथ्यते / प्रदेशिन्यादिभिः सार्द्ध-मङ्गुष्ठे वितते सति // 657 // प्रादेश' श्चापि ताल' इच, गोकर्ण स्तदनन्तरम् / वितस्ति: कथ्यते भूयो, जगति पण्डितैः जनैः // 658 // प्रसारिताङ्गुलौ पाणौ प्रहस्तः' प्रतल स्तलः / चपेट 4 स्तालिका ताल,-श्चेति हस्तस्य पञ्जक: // 56 // कथ्यते तो युतौ सिंह-तल' संहतल' स्तथा / के मुष्टिनामानि * संपिण्डिताङ्गुलिः पाणि, Mचुटी' मुवुटि:२ पुनः // 660 // मुष्टि र्मुस्तु श्च समाहो', ऽर्द्ध मुष्टिः खंटक' स्तु वै / प्रसृतः' प्रसृतिः पाणिः, कुन्जितः कथ्यते किल // 661 // Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्य विभागः 147 पुन श्च प्रसृतौ हस्तौ, साप्यञ्जलि' हि मन्यते / प्रसृते च द्रवाधारे, गण्डूष' श्वुलुक र स्तथा // 662 // चलु श्च चलुक चेति, कथ्यते कोविदैः सदा / हस्तः' प्रामाणिको मध्ये, मध्यमाङ्गुलिकूपरम् // 663 // बद्धमूले भवेद् रत्नि'-ररत्नि' निष्कनिष्ठिकः / तिर्यगबाहू प्रसारितो, न्यग्रोध' श्च तनूतल:२ // 664 // बाहुचापो वियाम इच, व्यायामो व्यामक: पुनः / ऊर्वीकृत भुजाहस्त-नरमानं तु पौरुषम् // 65 // * जानुमात्रनामानि * जानुमात्रं' जानुदनं२, जानुद्वयस मित्यपि / पुरुषमात्रं' नृदनं', पुरुषद्वयसं पुनः // 666 // प्रमाणार्थे खलु मात्रं, द्वयसं दध्न ऊह्यताम् / * पृष्ठवंशनाम * रोढकः' पृष्ठवंश' श्च, स्यात् पृष्ठ' चरम तनोः // 667 // 8 उत्सङ्गनामानि 8 अङ्कः' क्रोड 2 उपस्थ श्च, पुन रुत्सङ्ग इत्यपि / देहस्य पूर्वभायो हि. कथ्यते पण्डितः किल // 668 // Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 148 सुशीलनाममालायां * वक्षनामानि * . .. उर' श्च हृदयस्थानं२, क्रोडा कोडं भुजान्तरे / वत्सो' वत्स तथा वक्ष', श्चेति जगति मन्यते // 969 // * हृदयनामानि * गुणाधिष्ठानक' हृद् च, हृदयं च स्तनान्तरम् / असह' च त्रसं६ मर्म-चरं मर्मवरं तथा // 970 // * कुचनामानि * स्तनौ' कुचौ च वक्षोजौ, धरणौ च पयोधरौ / उरसिजौ' तथोरोजौ , जानीयानाम सप्तकम् // 671 // के स्तनमुखनामानि के स्तनाग्रं' स्तनवृन्त च, स्तनमुख ञ्च मेचक: / स्तनशिखा च पिप्पलः६, चूचुकं चेति मन्यते // 672 // के उदरनामानि * पिचण्डो' मलुक:२ कुक्षिः३, गर्भ श्च जठरो'-दरे / तुन्दं रोमलताधारः, तुन्दि श्च कथ्यते बुधः // 953 / / * यकृन्नामानि * . कालखण्डं च कालेयं, कालखजं च कालकन् / Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ततीयो मर्त्यविभागः 146 यकृत् चेत्यादि नामानि, मन्यते यकृतो बुधः / / 674 // * क्लोमनामानि * दक्षिणे क्लपुष' क्लोम, ताड्य च तिलकं तथा। कथ्यते क्लोम वामे तु, पुष्पसो' रक्तफेनजः / / 675 // * प्लीहानाम * प्लीहा' गुल्मो ऽपि वामे हि, मांसपिण्डो निगद्यते। * अन्त्र नाम * कुक्षावन्त्र' पुरीत-चं, कथ्यतेऽपि पुरीतति // 676 // के रोमलतानाम * रोमावली' रोमलता, नाभौ रोमोद्रमः स्मृतः / * नाभिनामानि के नाभि' श्च तुन्दकूपिकार, सिरामूलं पुतारिका // 977 // * मूत्राशयनामानि के नाभेरधो मूत्राशय.', बस्ति मंत्रपुटं भवेत् / . ..* अवलग्ननामानि * प्रवलग्नं विलग्नं च, मध्य श्च मध्यमः स्मृतः // 17 // Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 150 सुशीलनाममालायां * कटिनामानि के कटिः' कट :2 कटोर3 च, कलत्र ञ्च ककमती / श्रोणिः काञ्चीपदं चेति, नामानि प्रथितानि वैः // 66 // ___ * नितम्बनाम * आरोह' श्च नितम्बो ऽपि, खोकट्याः पश्च भाग्भवेत् / * जघननाम * जघनं मन्यते विश्वे, बीकट्या अग्रतः पुनः // 980 // त्रिक' वंशाध स्तत् पार्श्व-कूपको तु कुकुन्दरे' / कुकुन्दुरः२ कटीकूपौ , उच्चिलिङ्गौ रतावुके // 681 / / * पुतनामानि * स्फिजौ' स्फिचौ कटिप्रोथौ, पुतौ चेति हि कथ्यते / ___* योनिनामानि * भगो' ऽपत्यपथो योनिः, वराङ्ग स्मरमन्दिरम् // 82 // वीचिह्न च च्युति श्चापि बुलि इन स्मरकूपिका / एतानि मन्यते योने, र्नामानि पण्डितो जनः // 983 // * लिङ्गनामानि * पुंश्चिह्न मेहनं 2 मेढ़ः३, शिश्न च शेप-शेपसी' / Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्यविभाग: लाङगूलं' लगुले लिङ्ग, नाङगूलं च शेफ११-शेफसी // 984 // कामलता च लिङ्गस्य, नामानि कथितानि वैः / * योनि-लिङ्गनामानि * गुह्य प्रजननो-पस्थां, कथ्यते द्वयमप्यदः // 985 // . * गुह्यमध्यनामानि * गुह्यस्य मध्यभागोऽपि, गुह्यमध्यं' गुलो२ मणिः / * सीवनीनाम है कथ्यते तदर्धः सूत्रं, सीवनी' साक्षरैः सदा // 86 // ॐ अण्डनामानि * अण्ड' माण्डोरे ऽण्डकोश. श्च, मुष्क -३च वृषणो' ऽण्डकः / पेल° श्च पेलक' श्चेति, अण्डनामानि कथ्यते // 987 // * गुदनामानि 8 गुदं' पायु रपान ञ्च, त्रिवलीक च्युति बुलिः / . शकृवार मधोमर्म, गुदनामानि मन्यते // 8 // Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालायां * विटपनाम (r) .. अण्डमूलं महावीज्यं', विटप' ञ्चापि कथ्यते। __वङ्क्षण-सक्थिनामानि ॐ उरुसन्धि र्वङ्क्षणः' स्या-दुरु:' सविथ स्तत् पर्व तु // 986 // * जानुनामानि * अष्ठीवान्' नलकोल 2 ३च, जानु न म त्रयं भवेत् / पश्चाद्भागो ऽस्य मन्दिरः कपोली' त्वनिमः पुनः // 660 // * जङ्घानामानि 8 जङ्घा' च प्रसृता नाम, नलकिनी निगद्यते / अनजङ्घा' प्रतिजङ्घार, जङ्घाग्रभाग उच्यते // 1 // * पिण्डिकानाम है पिचण्डिका' पिण्डिका च, कथ्यते कोविदः किल / * घुण्टकनामानि * स्याद् गुल्फ' श्चरणप्रन्थि', घृण्टको घुटिको धुटः // 692 / * चरणनामानि * चरण' श्चलनः पादः3, क्रम श्च क्रमरण: पदः / Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्य विभागः 153 हि घ्रि स्तथा पत् पाद्', चेति नामानि मन्यते // 663 // गोहरं' पादमूलं स्यातः पाणि' स्तु घुटयोरधः / पादस्याविभागो हि, पादाग्रं प्रपदं तथा // 664 // कथ्यतेऽपि पुन: क्षिप्र'-मङ्गुष्ठाङ्गुलिमध्यतः / कूर्च' क्षिप्रस्योपह्रि-स्कन्धः' कूर्चशिरः२ समे // 665 / / पादतलस्य मध्ये तत्, स्यात् तलहृदयं तलम् / * तिलकनामानि के शरीरे कृष्णचिह्न हि, कथ्यते तिलकारक: // 66 // तिलक स्चापि पिप्लु इच, जडुलो ऽपि तथंव हि / कालक' श्चेति नामानि, भवन्ति तिलकस्य वै // 667 / / रसा'- सृग्-मांस-मेदो -ऽस्थि मज्जा-शुक्रारिण धातवः / सप्तव दश वैकेषां, रोम-त्वक -स्नायुभिः१० सह // 698 // * रसनामानि 8 अग्नि सम्भव' पात्रेयो ऽसृङ्करः षड्रसासव: / मूलधातु महाधातु र्घनबानु स्तथा रस. // 16 // पुन श्चाऽऽहारतेलोऽपि, रसनाम निगद्यते / Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मत्यं विभाग: तथा वपा वसा चेति, मेदनामानि मन्यते // 1007 // ॐ मस्तिष्कनामानि * मस्तिष्को' मस्तकस्नेहो', गोदं स्यान् मस्तुलुङ्गकः / * अस्थिनामानि * अस्थि' सार२ स्तथा कुल्यं, कोकसं देहधारकम् // 1008 // मेदस्तेज श्च मेदोजं , मांसपित्तं च मज्जकृत् / भारद्वाज तथा हड्ड११, श्वदयित'२ च कर्करः१३॥१००६॥ अस्थि नामानि सर्वारिण, जानीयुः पण्डिताः सदा। करोटि' च करोटी२ च, शिरसो ऽस्थान कथ्यते // 1010 // कपाल' कर्परौ२ तुल्यौ, शकल न्चापि मन्यते / कशारुका' कशेरुका२, पृष्ठस्यास्टिन निगद्यते // 1.11 // नलकं' कथ्यते शाखा-स्थनि वै वक्रि' पशुके / पाश्र्वास्थिन मन्यते देहा-ऽऽस्थि त्वस्थिपञ्जरः पुनः // 1012 // करङ्कर श्चापि कङ्काल', कोविदः कथ्यते किल / के मज्जानामानि * अस्थिस्नेहो' ऽस्थितेजो२ ऽस्थि, सम्भव:3 कौशिक:४ पुनः // 1013 // मज्जा शुक्रकर* श्चेति, मज्जा-नामानि मन्यते / Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मत्यंविभागः ___ 155 तथा वपा वसा चेति, मेदनामानि मन्यते // 1007 // ॐ मस्तिष्कनामानि * मस्तिष्को' मस्तकस्नेहो', गोदं स्यान् मस्तुलुङ्गकः / * अस्थिनामानि के अस्थि' सार स्तथा कुल्यं, कोकसं* देहधारकम् // 1008 // मेदस्तेज श्च मेदोज", मांसपित्तं च मज्जकृत् / भारद्वाज तथा हड्ड१, श्वदयित१२ च कर्करः१३॥१००६॥ अस्थि नामानि सर्वारिण, जानीयुः पण्डिताः सदा। करोटि' श्च करोटी च, शिरसो ऽस्थनि कथ्यते // 1010 // कपाल' कर्परौ तुल्यौ, शकल' ञ्चापि मन्यते / कशारुका, कशेरुका', पृष्ठस्याक्थिन निगद्यते // 1.11 // नलकं' कथ्यते शाखा-स्थनि वै वक्रि' पशुके / पाश्र्वास्थिन मन्यते देहा-ऽऽस्थि त्वस्थिपञ्जरः' पुनः // 1012 // करङ्क श्चापि कङ्काल', कोविदः कथ्यते किल / * मज्जानामानि * अस्थिस्नेहो' ऽस्थितेजो ऽस्थि, सम्भवः कौशिकः पुनः // 1013 // मज्जा शुक्रकर' श्चेति, मज्जा-नामानि मन्यते। Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालायां शुक्रनामानि * .. शुक्र वीर्य बलं बोज, पुंस्त्वं' मज्जसमुद्भवम् // 1014 // प्रानन्दप्रभवं किट्ट-वजितं रेत इन्द्रियं / प्रधानधातु:११ पौरुषं१२, चेति शुक्रस्य कथ्यते // 1015 // * रोमनामानि * रोम' लोम परित्राणं, तनुरुह तनूरुहम् / कूपजो मांसनिर्यासः, त्वग्मलं बालपुत्रकः // 1016 // के त्वङ्नामानि * असृग्धरा' ऽजिनं चर्म, त्वक् कृत्तिः छादनी छविः / अजिनं' चर्म कृत्ति स्तु, नामानि मृगचर्मणः // 1017 // . * स्नायुनामानि * स्नायुः स्नसा नसा स्नावा, वस्नसा' सन्धिबन्धनम् / तन्त्री तथा नखारुप श्च, स्नायु नामानि मन्यते / / 1018 // ॐ नाडीनामानि * सिराः शिरा श्च नाड्य श्च, धमनयो भवन्ति वै / नाटिका' च नडि डि, रित्यपि मन्यते बुधैः // 1016 / / ॐ महास्नायुनाम . कण्डरा' च महास्नायु, महानसा निगद्यते। . Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्यविभागः 157 * मलनाम * कथ्यते तन् मलं' किट्ट, दूषोका' दूषिका ऽक्षिजम् // 1020 // जोह्वामलं कुलुकं स्याद्, दन्त्यमलं तु पिप्पिका' / कर्णमलं हि पिञ्जूषः', शिवाणो' नासिकामलम् // 1021 // शिवाणकर श्च सिङ्घाणं, सिंहारणं सिंहानं तथा। सर्वाण्येतानि नामानि गीतानि पण्डितैः जनैः // 1022 / / * स्यन्दिनीनामानि 8 सृणीका' सृरिणका लाला', ऽस्यास्रवः स्यन्दिनी' तथा / वै कफकूचिका चेति, नामानि प्रथितानि हि // 1023 // .. * मूत्रनामानि * प्रस्रावो' नृजलं मूत्रं, मेहो बस्तिमलं स्त्रवः / कथ्यन्ते मूत्रनामानि, लिङ्गमलं तु पुष्पिका' // 1024 // * विष्ठानामानि 8 - उच्चारो' ऽवस्करो' व!3, वर्चस्क शमलं शकृत् / विट" विष्ठा ऽशुचि गूथं वै, . पुरीष 1 चेति मन्यते // 1025 // * वेषनामानि 8 वेषो' नेपथ्य-माऽऽकल्पः३, वेशो ऽपि च प्रयुज्यते। Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 158 सुशीलनाममालायां परिकर्मा'-ऽङ्गसंस्कारः, उद्वर्तन' मुत्सादनम् // 1026 / / उच्छादन मपि ज्ञेय-मङ्गरागो' विलेपनम् / / स्यात् समालभनं' चर्चा, चिक्यं चन्दनादितः // 1027 / / * मण्डननामानि * प्रसादनं' मण्डन 2 श्व, प्रतिकर्मा ऽपि ज्ञायताम् / 8 मार्जनानामानि 8 मृजा' च मार्जना माष्टि:3, देहस्वच्छ क्रिया भवेत् // 1028 // * चूर्णनामानि * वासयोग' श्च चूर्ण स्यात्, पिष्टात-पटवासको / गन्धमाल्यादिना यस्तु, संस्कारः सो ऽधिवासनम् // 1.26 // निर्वेश' उपभोग श्च, स्त्र्याधुपभोग उच्यते। . * स्नाननामानि * प्राप्लाव' प्राप्लवः स्नानं, सवनं चापि मन्यते // 1030 // ___ * यक्षकर्दमनाम * कर्पूरा-ऽगुरु-कवकोल, कस्तूरी-चन्दन द्रवैः / स्याद् यक्षकर्दमो' मिश्चै, ईत्ति' गात्रानुलेपनी // 1031 // Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्य विभागः 156 चन्दना-ऽगरु-कस्तूरी,-कुङ कुमै स्तु चतुःसमम् / स लेपः कथितः शास्त्रे, प्रसिद्धोऽपि महीतले // 1032 // * अगरुनामानि ॐ अगु'-वंगरु लोहं च, कृमिजग्धं च जोङ्गकम् / वंशकं वंशिका शृङ्ग, वंशाभं शोर्षकं तथा // 1033 // अनार्यज११ च राजर्ह 2, कृमिजं 13 च वरद्रुमः१४ / प्रकर 15 प्रवरं१६ गन्ध-दारु१७ च मृदुलं'८ लघु 16 // 1034 // तथा परमद२० श्चेति, नामान्यपि भवन्ति हि / / मल्लिगन्धि' च मङ्गल्या२, विशिष्टमगुरुः पुनः // 1035 // कालागरु:' काक तुण्ड:२, कथ्यते ऽप्यगुरु बुधैः / * चन्दननामानि * एकाङ्ग' गन्धसार श्च, भद्रश्री:3 फलको तथा / मलयज' श्च श्रीखण्डं 6, चन्दने रोहरण द्रुमः // 1036 // गोशीर्ष' स्तैलणिकः२, प्रख्यातं हरिचन्दनम् / कुचन्दनं ' तु पत्राङ्ग,- रञ्जनं रक्तचन्दनम् // 1037 // तिलपर्णी ताम्रसारं , पतङ्ग तिलपरिणका। सर्वाण्येतानि नामानि, जानीयाच्चन्दनस्य हि // 1038 // Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 160 सुशीलनाममालायां * जातिफलनामानि है जातिफलं जातीफलं', पुटकं मदशौण्डकम् / कोशफलं' तथा जाति-कोशं सौमनसं° पुनः // 1036 / / * कर्पूरनामानि 8 कर्पूरो' घनसार२ , सिताभ्रो हिमवालुका / चन्द्रः कर्पूरवाची वै, प्रयोगे दृश्यते सदा // 1040 / / * कस्तोनामानि * कस्तूरी' गन्धधूली च, कथ्यते मृगनाभिजा' / मृगनाभि पुनश्चैव, मृगमदो ऽपि मन्यते // 1041 / / * केशरनामानि * केशरं' कुङ कुम२ रक्त 3. कालेयं करटं५ वरन् / कुसुमान्त कुसुम्भं च, सङ्कोचपिशुनं तथा // 1042 // जपापुष्पं१० जवापुष्पं 1, पिशुनं१२ वासनीयकम् / कुसुमान्तं१४ च संकोचं१५, काश्मीरजन्म'६ जागुडम् 1 // 1043 // प्रियङ्गु१८ पीतकाबेरं१६, पीतनं चापि दीपनम् / वालीक 22 वाह्निक२३ वर्ण्य 24, वर्ण२५ लोहितचन्दनन्२६ / / 1044 // Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्यविभागः घोरं२७ च धुसृणं२८ धीर, पुष्परज० श्च गौरवम् 1 / असृक्संज्ञ३२-पर्याये33 ऽपि, वह्निशिखं३४ च कथ्यते // 1045 // * लवङ्गनामानि के श्रीसंज्ञ' स्यात्लवङ्ग श्री-पर्याय देवकुसुमम् / * कोलकनामानि * कक्कोलकं' च कोलकर, कोशफलं च कथ्यते // 1046 // ॐ कालीयकनामानि 8 कालयक' तु कालानु-सार्य जायक-जायके / * विशिष्टधूपनामानि है रालः' स्यात् सालवेष्ट इच, यक्षधूपो ऽग्निवल्लभः // 1047 // सर्जमणि बहुरूप:६, सर्जरसः सर्वरसः / सिल्ह' स्तु सिल्हकर श्चापि, तुकको यावन स्तथा // 1048 // वृकधूप श्च कृत्रिम-धूप श्च पिण्डकः' पुनः। विशिष्ट गन्धवस्तुकं, प्रसिद्ध कथ्यते बुधैः // 1046 // . . . Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 162 सुशीलनाममालायां * विविधधूपनामानि . .. पायसो' क्षीरधूप इच, दध्याह्वयो घृताह्वयः / क्षीराह्वय श्च श्रीवासः, श्रीवेष्टः सरलद्रवः // 1050 // स्थानांत् स्थानान्तरं गच्छन्, धूपो गन्धपिशाचिका' / * हस्तबिम्बनाम * स्थासको' हस्तबिम्बं च, कथ्यते हस्तथापकः // 1051 // * अलङ्कारनामानि * प्राभरण'-मलङ्कारः२, परिष्कार' श्च भूषणम् / ज्ञायतां भूषणं विश्वे, विभिन्न भूषणं पुनः // 1052 // * विभिन्नभूषणनामानि * चूडारत्नं चूडामणि:२, शिरोरत्नं शिरोमणिः / तरलो' नायक श्चापि, हारान्तमरिण उच्यते // 1053 // . * मुकुटनामानि * उष्णीष' मुकुटं मौलिः, किरीट मकुट५ स्तथा। कोटीरं चेति नामानि, मन्यते मुकटस्य हि // 1054 // ॐ मालानामानि * मूनि माल्य' च माला च, सक् तथा पुष्पदाम च / Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्य विभागः केशमध्यगत माल्यं, गर्भकं' कथ्यते किल // 1055 // प्रभ्रष्टकं शिखाम्बि, पुष्पमाला निगद्यते / ललामकं पुरोन्यस्तं, पुष्पमाला हि मन्यते // 1056 // वैकक्षं वक्षसि तिर्यक्, सापि माला हि कथ्यते। प्रालम्ब'-मृजुलम्बि च, माला हि मन्यते बुधैः // 1857 // सन्दर्भो' श्रन्थनं गुम्फो, ग्रन्थनं रचना' पुनः। . प्रतियत्नः५ परिस्यन्द:६, पुष्पमाला विशेषकः // 1058 // . ॐ तिलकनामानि 8 चित्रं च चित्रकं पुण्डः3, तिलकं च विशेषकः / पुन स्तमालपत्रं स्यात्, केशरादिसमाञ्चितन् // 1056 // * अवतंसनामानि * अवतंसो' वतंस श्चा-ऽऽपीड' चं शेखर 4 स्तथा / उत्तंसो पि च नामास्ति, शिरस: सजि कुत्रचित् // 1060 // के कर्णपूरनामानि * उत्तंस' श्चाऽवतंस श्च, कर्णपूरः श्रुतेः सजि / . * पत्रलेखानामानि * . . . पत्रभङ्गिः' पत्रभङ्गी२, पत्रलेखा पत्रलता // 1061 // Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 164 सुशीलनाममालायां पत्रवल्लि.५ पत्रवल्ली, पत्राङ्गुली पत्राङ्गुलिः / . स्तनादिभूषणे पत्र-वल्लरी पत्रमञ्जरी' // 1062 / / * पत्रपाश्यानाम * प्रोक्ता ललाटिका' पत्र-पाश्या च भालभूषणे। * वालपाश्यानामानि 8 . पार्यातथ्या' पारतथ्या, वालपाश्याच कथ्यते // 1063 // पुनः पर्यवतथ्या हि, केशबन्धनभूषणम् / ॐ कणिकानाम है कथ्यते कणिका' किल, कोविदः कर्णभूषणम् // 1064 // . * कुण्डलनामानि के कुण्डल' ताडपत्रं च, ताडङ्क: कर्णवेष्टकः / कर्णादर्श' श्च सोवर्णः 6, कर्णयोः स्वर्णभूषणे // 1065 // उतिक्षप्तिका' च कर्णान्दुः२, कन्दुः कर्णभूषणे। बालिका' वालिका चाऽस्ति, भूषणं कर्णपृष्ठगा // 1066 // __* कण्ठभूषानाम * प्रैवेयक' कण्ठभूषा, ग्रीवायाः भूषणं भवेत्। ललन्तिका लम्बमाना', हेम्ना प्रालम्बिका' कृता / 1067 // Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्यविभागः मोक्तिक श्च कृता माला, स्यादुरः सूत्रिका' किल / * हारनामानि 8 हारो' मुक्ता प्रालम्बर श्च, मुक्तालता तथैव च / मुक्तावली च मुक्तास्त्रक, मुक्ताकलाप उच्यते / / 1068 // देवच्छन्दः' शतमिन्द्र-च्छन्द:२ साष्ट सहस्रकान् / तस्या) विजयछन्दो', हार श्चाष्टोत्तरं शतम् // 1066 // रश्मिकलाप५ स्तस्याध, द्वादश स्त्वर्धमारणवः / चतुर्विशत्यर्धगुच्छः, पञ्च हारफलं लताः // 1070 // चतुः षष्टि रहारः, गुच्छः१• स्यात् षोडशद्वयम् / माणवः'' षोडश श्चैव, मन्दरो'२ ऽष्ट युत स्तथा // 1071 // चत्वारो गोस्तन13 श्चैव, गोपुच्छो 14 ऽपि द्विक: किल / यष्टि भेदादिमे हाराः, चतुर्युक्ता दशस्मृताः // 1072 / / एकावली' कण्ठिका च, लतकात्वेकष्टिका / कथ्यते ऽप्यत्र नक्षत्र-माला' तत्सङ्ख्यमौक्तिकैः // 1073 // * केयूरनामानि * अङ्गदं केयूर' चव, बाहुभूषा' च मन्यते / ____* वलयनामानि * प्रवापः परिहार्य श्च, परिहाय:3 प्रतिसरः // 1074 // Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 166 सुशीलनाममालायां कङ्कणं हस्तसूत्रं च, कटक: करभूषणम् / वलयं चेति नामानि, वदन्ति विबुधाः सदा // 1075 / / * ऊर्मिकानाम के भवेदलि भूषाया, मङगुलीयक' -मूर्मिकार / पुनश्च साक्षरा सापि, भवत्यङ्गुलिमुद्रिका' / / 1076 / / ... के कटिसूत्रनामानि * कटीसूत्रं कलाप श्च, काञ्ची च कटमालिका / रशना रसना चैव, सारसनं च सप्तकी // 1077 // मेखला लालिनी' चेति, स्त्रीटिस्था हि कथ्यते / पुनः सा पुंस्कटिस्था वै, शृङ्खलं मन्यते बुधैः / 1078 / / .. * घर्घरोनामानि * किङ्कणी' किङ्कणि' विद्या, किङ्किणी किङ्किरिण' स्तथा / विद्यामणि घर्घरो" स्यात्, कङ्कणी क्षुद्रघण्टिका / / 1076 / / के नूपुरनामानि 8 पादाङ्गदं' तुलाकोटि:२, नूपुरं पादनालिका / शिजिनी पादशीली च, पादशाली च हंसकम् / / 1080 / / मन्दीरं चापि मजीर', वै पादकटक ११.पुनः / नूपुरस्येति नामानि, विज्ञायन्ते सदा बुधः / / 1081 / / Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्यविभागः 167 * पादपालिकानामानि * पादाङगुलीयकं' पाद-पालिका पादकीलिका। चरणाङ्गुलि भूषायां, नामवयं च ज्ञायताम् // 1082 / / के वस्त्रनामानि 8 अम्बर' मंशुक वस्त्रं, वास श्च वसनं५ पटः / प्राच्छादनं च सिक् सत्र', चीरं चेलं ' च कर्पटम्१२ // 1083 // पाच्छाद:१३ सिचय 4 श्चापि, वस्नं१५ निवसनं१६ पुनः। प्रोत'७ श्चैतानि नामानि, वस्त्रस्य कथ्यते बुधैः // 1084 // प्रञ्चलं' वस्त्रप्रान्त स्याद्, वति' वस्ति दशाः पुनः / वस्त्रपेशी च प्रख्याता, शोभायाः वर्द्धनी शुभा // 1085 / / पत्रोण' धौतकौशेयं२, क्षोमवस्त्रं हि कथ्यते / मूर्धवेष्टन'-मुष्णीष:२, ख्यातं शिरसि वेष्टनम् // 1086 // धौतयो वस्त्रयो युग्म,-मुद्गमनीय' मुच्यते। त्वक-फल-कृमि-रोमेभ्यः, सम्भवात् तच्चतुर्विधः // 1087 // सौम'कार्यास-कौशेय, रावादिविभेदतः / Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 168 सुशीलनाममालायां ॐ शणादिवस्त्रनामानि * ... दुकूलं' स्याद दुगूलं च, क्षौमं शणादिजं पटम् / कासिं' बादरं 2 फालं', कार्पासोत्थं हि कर्पटम् // 1088 // कौशेयं' कृमिकोशोत्थं, कथ्यते क्षोमवखकम् / मृगस्य रोमजं वस्त्रं, राङ्कवं' मृगरोमजम् 2 // 1086 // * कम्बलनामानि * ऊर्णायु' राविक श्चैव, रल्लक:3 कम्बल स्तथा / औरभ्र श्चति नामानि, मन्यन्ते कम्बलस्य हि // 1060 // * अनाहतनामानि * तन्त्रक' निष्प्रवाणि स्या-नवं वस्त्रं त्वनाहतं / * प्रावरणनामानि * प्रच्छादनं च संव्यानं२, प्रावरणो -तरीयके // 1091 // * उत्तरासङ्गनामानि के वैकक्ष' मुत्तरासङ्गः२, स्यात् प्रावारो बृहतिका / . * स्थूलशाटनाम * वराशिः' स्थूलशाट च, कथ्यते स्थूलवस्वकम् // 1062 // Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्यविभागः * परिधाननामानि * अधांशुक'-परिधाने , उपसंव्यान:-मित्यपि / निवसनं चान्तरीय',-मधोवस्त्रं निगद्यते // 1093 // के नीवोनाम * उच्चय' श्चापि नीवी वै, तद्ग्रन्थिः कन्चत बधः / * चण्डातकनाम * वरस्त्य/रुकांशुकं, चलनक' चण्डातकम् // 1064 // चलनी' वितरखियाः, अभ्यतेऽर्धारकांशु / * कञ्चुकनामानि * कञ्चुलिका' च कूर्यास',-श्चाथिका खलु कञ्चुके // 1065 // चोलः कूर्पासक श्चेति नामानि कञ्चुकस्य हि / * शाटोनामानि * शाटो' च शाटकर श्चोटी, कथ्यते शाटकस्य वै // 1066 // * नीशारनामानि * . द्विखण्डक' श्च नीशारो', हिमवातापहांशुकम् 2 / घरक श्चेति नामानि, मन्यते वरकस्य वै // 1067 // Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 170 सुशीलनाममालायां * कच्छानामानि * . .. कच्छाटिका' च कच्छाटी२, कच्छा कक्षा च कथ्यते / * कौपीननामानि * कक्षापट' व कोपोनं२, कक्षापुटो ऽपि मन्यते // 1068 / / ॐ नक्तकनाम ॐ नक्तकः कर्षट श्चैव, प्रोक्त वस्खस्य खण्डकम् / * उत्तरच्छदनामानि के निचुलकं' च प्रच्छद-पटर स्तथोत्तरच्छद. // 1066 / / निचोलो निचुल चोक्तं, शय्याङ्गस्य वस्त्रकम् / ...... ॐ पूर्णपात्रनाम है / बलदाकृष्य सुहृद्धि, यदुत्सवेषु गृह्यते // 1100 // वस्त्रमाल्यादि तत् पूर्ण पात्रं' पूर्णानकं पुनः / * प्राप्रपदीननाम * तत् स्यादाप्रपदीन' ञ्च, व्याप्नोत्याप्रपदं हि यत् // 1101 / / * भिक्षुसङ्घाटीनाम . चीवरं' भिक्षुसङ्घाटी', भिक्षो वस्त्रं हि मन्यते / Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्य विभागः ___ 171 ॐ जीर्णवस्त्रनाम ॐ पटच्चर' तथा जीर्ण-वस्त्रं वदन्ति पण्डिताः // 1102 // के छिद्रवस्त्रनामानि के छिद्रवस्त्र' तथा शाणी२. गोणी चेति निगद्यते / * क्लिन्नवासनाम * जलार्द्रा' क्लिन्नवासो ऽपि, प्रार्द्रवस्त्रं निगद्यते // 1103 / / * पर्यङ्कनामानि * पर्यस्तिका' च पर्यङ्कः२, पल्यङ्कः श्चावसयिका / परिकर' श्च नामानि, पर्यङ्कस्य हि मन्यते / / 1104 / / * परिस्तोमनामानि के वर्णो' वरणपरिस्तोमः२, परिस्तोन: कुथ स्तथा / प्रास्तर' प्रास्तरञ्च, प्रवेणी नवतं पुनः // 1105 // .. 8 जवनीनामानि * अपटी' प्रतिसीरा' च, जवनी काण्डपट स्तथा / स्यात्तिरस्करिणी' नाम,-ज्ञायतां यमनो पुनः // 1106 / / . * विताननामानि ॐ चन्द्रोदयो' वितानं स्या-दुल्लोचः कदक स्तथा। Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 172 सुशीलनाममालायां * दूष्यनाम * दूष्यं' स्थूलं च वस्त्रस्य, गृहं प्रोत्तं विशालकम् // 1107 / / लघुगृहं तु तस्त्रस्य, केडिका' पटकुटो पुनः / गुणलयनिका नाम, बुधै विज्ञायते तथा // 1108 // * संस्तरनामानि ॐ स्रस्तरः' संस्तर श्चैव, प्रस्तरः शयितुं भवेत् / * शय्यानामानि # शयनं' शयनीयं च, तल्पं च तलिम तथा // 1106 / / शय्या' चैतानि नामानि, मन्यते हि महोतले / * खट्वानामानि * खट्वा' पर्यङ्करे. पल्यौ , मञ्चः स्यान् मञ्चक:५ पुनः // 1110 / / * उच्छोर्षकनामानि ॐ उपधान' मुपबह, श्चोक्त मुच्छीर्षकं तथा। . * पतद्ग्रहनामानि * पाल:' पतद्ग्रह श्चापि, पतद्ग्राहः प्रतिग्रहः // 1111 // Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्यविभागः 173 प्रतिग्राह' श्च नामास्ति, थूत्पात्रं पञ्चनामकम् / * दर्पणनामानि * प्रादर्श' श्चात्मदर्श इच, दर्पणो ऽपि प्रयुज्यते // 1112 // मकुरो मुकुर 5 श्चेति, नामानि दर्पणस्य हि / * वेत्रासननाम * वेत्रासन' माऽऽसन्दी' च, वेत्रेण निर्मितं भवेत् // 1113 / / * प्रासननामानि * प्रासनं विष्टर:२ पीठ, चेति नामानि मन्यते / * कसिपुनाम * कसिपुः' कशिपुरे श्चापि, वस्त्र-भोजनयोः स्मृतः // 1114 // *ौशीरनाम * प्रौशोरं' शयने प्रोक्त,-मासने चापि कथ्यते / * लाक्षानामानि * लाक्षा' राक्षा क्षतघ्ना' च, रङ्गमाता द्रुमालयः // 1115 // प्रोक्त पलङ्कषा' नाम, जतु वै कृमिजा तथा। . * अलक्तनामानि * प्रलक्तो' ऽलक्तको यावो', यावक श्चापि तद्रसः // 1116 // Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 174 सुशीलनाममालायां . * अञ्जननाम * अञ्जनं 1 कज्जलं चेति, ख्यात सर्वत्र दृश्यते / * दीपनामानि * प्रदीपो' दीपको दीपो, दशाकर्षो दशेन्धनः // 1117 // स्नेहप्रिय श्च कज्जल-ध्वजो गृहणि स्तथा। * व्यजननामानि के कथ्यते तालवृन्तं' तु, व्यजनं२ वीजनं पुनः // 1118 // मृगस्य चर्मणो नाम, वित्रं ' मन्यते खलु / पालावतं तु वस्त्रेण, निर्मिते व्यजने भवेत् // 1116 // * केशमार्जननामानि * प्रसाधनः' कङ्कत श्च, केशमार्जन' मुच्यते / * गुडनामानि * गिरिगुडो' गुडो गिरिः3, गिरिक श्च गिरोयकः // 1120 // गिरियक स्तथा बाल-क्रीडनक" च कथ्यते / * कन्दुक नामानि * कन्दुको गेन्दुक चैव, गन्दुकोऽपि प्रयुज्यते // 1121 // Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्यविभागः 175 8 नृपनामानि (r) भूभृत् भूप' श्च भूपालो', लोकपाल श्च पार्थिवः / मूर्धाभिषिक्त -मूर्धाव-सिक्तौ राजा च राट् तथा // 1122 // महीक्षित् 0 मध्यलोकेशो'१, नरपालो'२ नृपः१३ पुनः / प्रजापः१४ पृथिवीशको१५, मण्डलाधोश' -मध्यमौ२ // 1123 // सम्राट' तु शास्ति यो भूपान्, यः सर्वमण्डलाधिपः / योऽयजत् राजसूयं च, स सम्राट् मन्यते जनैः // 1124 // * चक्रवत्तिनामानि * चक्रवर्ती सार्वभौम:२, सैवाधीश्वर उच्यते / प्रस्यामवसपिण्यां ते, द्वादश भारतेऽजनि // 1125 // के द्वादशचक्रवत्तिनामानि * भरत' पार्षभिरे स्तत्र, सगर' श्च सुमित्रभूः / वैजय' मघवा चाथा-श्वसेननृपन दनः // 1126 // तथा सनत्कुमारो ऽथ, शान्तिः' कुन्थु' ररो' जिनाः। .. कार्तवीर्य' सुभूमो ऽथ, पद्मः पद्मोत्तरात्मजः // 1127 // हरिसुतो' हरिषेणो२, विजयनन्दनो जयः / 'ब्रह्मदत्तो' ब्रह्मसूनुः२, सर्वेऽपीक्ष्वाकुवंशजाः // 1128 // जैनागमेषु प्रोक्तानि, नामानि चक्रवर्तिनाम् / Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 176 सुशीलनाममालायां * नवार्द्धवत्ति-वासुदेवनामानि * .. प्राजापत्य' खिपृष्ठो ऽथ, द्विपृष्ठ'-ब्रह्मसम्भवो // 1126 // स्वयम्भू रुद्रतनयः२, सोमभूः' पुरुषोत्तमः / शैवः' पुरुष सिंहोपि महाशिरस्समुद्भवः' // 1130 // पुकषपुण्डरीक स्तु, दत्तो' ऽग्निसिंहनन्दनः / दाशरथि' नारायणः२, कृष्ण' स्तु वसुदेवभूः // 1131 // वासुदेवा-नवैतानि, कृष्णवर्णाजितानि वै / * नवबलदेवनामानि * बलदेवाः नव शुक्लाः, कथ्यते पुन रत्र हि // 1132 // प्रचलो' विजयो भद्रः३, सुप्रभो ऽपि सुदर्शनः / आनन्दो नन्दन श्चैव, पद्मो राम स्तथा किल // 1133 // ___ * नवप्रतिवासुदेवनामानि * प्रथ विष्णुद्विषः' प्रोक्ताः तन्नामानि नवाऽत्र हि। अश्वग्रीव' श्च तारक२,-स्तथा वै मेरको मधुः // 1134 // निशम्भो बलि-प्रह्लादौ , लङ्केशः रावणोऽष्टमः / नवमस्तु जरासन्ध: , कथ्यते मगधेश्वरः // 1135 // शलाका पुरुषो शास्त्रे, सजिनेन्द्राखि षष्टिकाः / तथैव मुत्सपिण्यां हि, नाम भिन्नस्तु जानताम् // 1136 // Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतोयो मत्यं विभागः 177 शास्त्रे हि भाषिताः सर्वे, ख्याता: लोकेऽपि सर्वदा / * प्रादिराजनामानि * प्रादिराज:' पृथु वैन्यो, मान्धाता' युवनाश्वज.२ // 1137 // कुवलाश्वो', धुन्धुमारो२, हरिश्चन्द्र' खिशङकुजः / उर्वशीरमरण' श्चैलो२, बोधः पुरूखा स्तथा // 1138 // सर्वदम' श्च सर्वद-मनः२ शकुन्तलात्मजः / दौष्यन्ति भरत: ख्यातः, कार्तवीर्य' स्तु हैहयः // 1636 // अर्जुनो दोः सहसमृद्, कौशल्यानन्दन' स्तु वै / राम श्च रामचन्द्र श्च रामभद्रो ऽपि मन्यते // 1140 // पुन सिरथिः प्रोक्तः ख्यातो जगति सर्वदा / * सोतानामानि * रामप्रिया हि नामास्ति, वैदेही' धरणीसुता // 1141 // मैथिली जानकी सीता', प्रख्याता पृथिवोतले / * कुशीलवनाम्नी * रामसुतौ कुश' लवा-वेकयोक्त्या कुशीलवौ // 1142 // . . * लक्ष्मरगनाम्नो * सौमित्रि' लक्ष्मणो नाम, कथ्यते लक्ष्मणस्य हि / Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 178 सुशोलनाममालायां * वालीनामानि * वाली' वालि श्च सुग्रीवा-ग्रज श्चेन्द्रसुतो' भवेत् // 1143 // * सुग्रीवनाम्नी ॐ सुग्रीव स्तथाऽऽदित्य-सूनु नाम निगद्यते / के हनुमाननामांनि * हनूमान्' हनुमान् चैव, मारुति वज्रकङ्कटः // 1144 // पुनः स्यात केशरीसुत', प्राञ्जनेयो ऽर्जुनध्वजः / * रावणनामानि * , लङ्कापति' स्तु लङ्कशः२, पौलस्त्यो दशकन्धरः // 1145 // दशशिराः५ दशास्य 6 श्च, दंशकण्ठ श्च रावणः / राक्षसेशो रक्षईश' ', श्चेति नामानि मन्यते // 1146 // * इन्द्रजित्ना मानि के इन्द्रजित्' शक्रजित चैव, मेघनाद श्च रावरिणः / मन्दोदरीसुतः प्रोक्त, नाम रावणनन्दनः // 1147 // ॐ युधिष्ठिरनामानि (r) अजमीढ' स्तथाऽजात-शत्रु युधिष्ठिरः पुनः। धर्मपुत्र श्च शल्यारि:५, कङ्क' श्च कथ्यते किस // 1148 // Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्य विभागः 176 ॐ भीमसेननामानि # भीम' च भीमसेन इच, बकनिषूदन स्तथा। किर्मीरारि श्च किर्मीर-निषूदनो वृकोदर.६ // 1146 / / स्याद् हिडिम्बनिषूदनः", वै कीचकनिषूदनः / मरुत्पुत्र श्च नामानि, भीमस्य कथितानि वै / / 1150 / / * अर्जुननामानि 8 अर्जुनः' करणजित पार्थः३, राधावेधो धनञ्जयः / सध्यासाची सुभद्रेशः, किरीटी च कपिध्वजः // 1151 // ऐन्दि१० धन्वी११ नरो१२ योगी१३, जिष्णु:१४ चित्राङ्गसूदनः१५ / बीभत्स श्च बीभत्सुधैं७, गुडाकेशो'८ बृहन्नट:१६ // 1152 // विजय२० श्चित्रयोधी२१ च, कृष्णपक्ष:२२ श्च फाल्गुन 23 / श्वेतहय 24 इच कर्णारि२५, श्चेति नामानि मन्यते // 1153 // पुन स्तस्य रथो नन्दि-घोषनाम' निगद्यते / धनु स्तु गाण्डिवं' चैव, गाण्डीव मर्जुनस्य हि // 1154 / / प्रथिकः' सहदेव श्च, नकुलः' तन्तिपालक:२ / माद्रीपुत्रौ च माद्रेयौ', कौन्तेयाः' कुन्तिपुत्रकाः // 1155 // * पाण्डवनामानि * पाण्डवा! पाण्डवैया श्च तथैव पाण्डवायनाः / Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 180 सुशीलनाममालायां * द्रौपदोनामानि * सैरन्ध्री' द्रौपदी कृष्णा, वेदिजा नित्ययौवना५ // 1156 / / याज्ञसेनी च पाञ्चाली", नामानि सप्त सन्तिवै। * कानामानि * राधेय' श्चाङ्गराट् चैव, कर्ण,चम्पाधिप' स्तथा // 1157 // राधा-सुता-ऽर्कतनयः कर्णनामानि सन्ति वै / पुन स्तस्य धनु र्नाम, कालपृष्ठ' हि मन्यते // 1158 // * श्रेणिकनाम है प्रख्यातः श्रेरिणको' भूपो, भम्भासारो ऽपि कथ्यते / * सालवाहननामानि * स्यात् सालवाहनो' राजा, हाल 2 श्च सातवाहनः // 1156 // * कुमारपालनामानि ॐ कुमारपाल भूपाल', श्चौलुक्यः परमार्हतः / राजर्षि श्चापि धर्मात्मा', मारि व्यसनवारकौ // 1160 // तथा मृतस्वमोक्ता वै, कथ्यते पण्डित रिह। * राजवंश्यनाम * .. राजबीजी' राजवंशी, राजवंश्योऽपि कथ्यते // 1161 // Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्य विभागः __ 181 ॐ वंशजनामानि 8 वंश्य' श्च वंशजो बोज्य', श्चेति नामानि मन्यते / # राज्यस्य सप्ताङ्गनामानि 8 स्वाम्य' ऽमात्य२ स्तथा सुहृत्, . कोशो' राष्ट्र' दुर्गो बलम् // 1162 // एतानि सप्त नामानि, राज्याङ्गविनिरूपणे। प्रकृतय' स्तु प्रख्याताः, पौराणां श्रेणयश्चताः // 1163 // तन्त्रं वै निजराष्ट्रस्य, चिन्ता प्रोक्तं महीतले / प्रावाप: परराष्ट्रस्य, चिन्ता लोके हि कथ्यते // 1164 // . . * परिवारनामानि * परिवार:' परिस्यन्दः, परिकरः परिच्छदः / तन्त्रं च परिबर्ह ' श्च, परिजनः परिग्रहः // 1165 // तथोपकरणंपरि-बर्हणं' परिवहणम् / नामान्येतानि जानीयाद्, राजभृत्यस्य सर्वदा // 1166 // * राजशय्यानामानि ॐ राजशय्या' महाशय्या, नृपशय्या' ऽपि मन्यते। .. Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 182 सुशीलनाममालायां * राजसिंहासननामानि * सिंहासनं' सुवर्णस्य, रूपादे स्तु नृपासनम् ' // 1167 / / भद्रासनं पुनः प्रोक्त, नृपयोग्यं हि भूतले / * राजछत्रनामानि * प्रयोष्णवारणं' नृप, लक्ष्म चाऽऽतपत्रं पुनः // 1168 // प्रातवयारणं छत्रं', राजछत्रं हि कथ्यते।' * चामरनामानि * चमर' श्चामरं रोम-गुच्छ श्च वालव्यञ्जनम् // 11 // प्रकीर्णक' श्च नामानि, मन्यते चामरस्य वै / के स्थगीनाम के स्थगी' ताम्बूलकरङ्क, स्ताम्बूलपात्रमुच्यते // 1170 // ___ * भृङ्गारनाम * भृङ्गारः' कनकालुका, हेमकुम्भो हि कथ्यते / . * पूर्णकुम्भनाम * पूर्णकुम्भो' भद्रकुम्भोरे, जलयुक्तो निगद्यते / / 1171 // . * पादपीठनाम के पदासनं' तथा पाद-पीठं प्रोक्त महीतले। Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्यविभागः के मन्त्रिनामानि के अमात्यः' सचिवो' बुद्धि, सहाय: सामवायिकः // 1172 / / प्रधानो धोसखो' मन्त्री', नियोगी' व्यापृत' श्च सः / कर्मसहाय आयुक्त , कमसचिव उच्यते // 1173 // * न्यायाधोशनामानि * न्यायद्रष्टा' तथा प्रावि-वाको ऽक्षदर्शकः पुनः / स्थेय श्चैतानि नामानि, न्यायाधीशस्य सन्तिवै // 1174 // * मुख्यप्रधाननामानि * महामात्र.' प्रधान 2 ३च, मुख्यमन्त्री हि मन्यते / . * पुरोहितनामानि * पुरोहितः' पुरोधा श्च, सौवस्तिको ऽपि कथ्यते // 1175 / / * द्वारपालकनामानि * उत्सारकः' प्रतीहारो, द्वारस्थो द्वारपालकः / द्वाःस्थितिदर्शको दण्डी, ... द्वा स्थ° श्च द्वाःस्थित स्तथा // 1176 // . क्षता वेत्रधरो वेत्री'१, प्रोक्तो दौवारिक:१२ पुनः / Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालायां के रक्षिवर्गनाम के रक्षिवर्ग' ऽनिकस्थ श्च, कथ्यते ह्यङ्गरक्षकः // 1177 // * अधिकृतनामानि * अधिकृत' स्तथाऽध्यक्ष, श्चाधिकारी हि कथ्यते / * पाचकनामानि * पौरोगवः' सूदाध्यक्षो', वरिष्ठः पाचको जनः // 1178 / / प्रौदनिको' गुणः सूपः, सूपकार' श्च वल्लवः / सूद पारालिक श्चैव, भक्तकार श्च कथ्यते // 1176 / / * कनकाध्यक्षनामानि * भैरक:' कनकाध्यक्षोर, हेमाध्यक्ष श्च हैरिकः / * रूपाध्यक्षनामानि * रूप्याध्यक्ष' स्तुस एव टङ्कपति हि नैष्किकः // 1180 // * स्थानाध्यक्षनाम * कथ्यते स्थानिकः' स्थाना-ध्यक्ष श्च साक्षरैः किल / * शुल्काध्यक्षनाम * शुल्काध्यक्ष' श्च शौकिक:२, कथ्यते विबुध रिह // 1181 // Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ततीयो मर्त्य विभागः ___ 185 * शुल्कनाम * शुल्क' घट्टादिदेयं स्वं, ख्यातं विश्वे हि सर्वदा / 8 धर्माध्यक्षनामानि 8 धर्माधिकरणी' स्याद् वै, धर्माध्यक्ष श्च धार्मिकः // 1182 // के हट्टाध्यक्षनाम * प्रथा ऽधिकमिको' हट्टा-ध्यक्ष श्च कथ्यते पुनः / .. * दण्डनायकनामानि * चतुरङ्गबलाध्यक्षः', सेनानी२ दण्डनायकः // 1183 / / ग्रामेषु भूरिषु गोपौ', कथ्यते जगती जनैः / . स्थायुको' ऽधिकृतो ग्नामे, मन्यते ऽपि महीतले // 1184 // * अन्तःपुराध्यक्ष नामानि 8 अथ चाऽन्तः पुराध्यक्षो', ऽन्तर्वशिका२-ऽऽन्तर्वशिकौ / * * तथाऽन्तर्वेश्मिक: प्रान्त-श्मिकः५ प्रावरोधिक:६ // 1185 // प्रान्तःपुरिक शुद्धान्ता-ध्यक्ष स्तथा ऽवरोधिक: / अन्तःपुराध्यक्षस्यात्र, नामानि नव मन्यते // 1186 // * पारिकर्मिकनाम * पति स्तूपकरणानां, कथ्यते पारिकर्मिकः' / Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालायां * पुराध्यक्षनामानि * कोट्टपतिः' पुराध्यक्षः२, पौरिको दाण्डपाशिक:४ // 1187 // * अन्तःपुरनामानि * शुद्धान्तो' ऽन्तःपुरं प्रोक्त, मवरोधो ऽवरोधनम् / * अन्तःपुररक्षकनामानि * सौविदाः सौविदलाः२ स्यात्, स्थापत्या' श्च कञ्चुकिनः // 1188 // पण्डो' वर्षवर: प्रोक्तः, क्लोबे ऽन्तःपुररक्षकः / ॐ शत्रुनामानि 8 शत्र' श्च शात्रवो ऽमित्रः, प्रत्यनीक: पर५ स्तथा // 1186 // विपक्षः६ प्रत्यवस्थाता", सपन्थः परिपन्थकः / प्रत्यर्थी परिपन्यो'१ च, प्रतिपक्ष:१२ रिपुः१३ पुनः // 1160 // असहनो'४ ऽनुहृद्१५ दुहृद्१६, द्वेषो१७ दस्यु स्तथा द्विषन् / अराति:२० अभिमाति२' श्चा, ऽभियाति२२ द्विट् तथाऽहित:२४ // 1161 // अरि२५ वैरी 26 जिघांसु२७ इच, रिपो नामानि मन्यते / Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मत्य॑विभागः 187 * वैरनामानि 8 विरोध' श्चापि विद्वेषो', वैरं चेति निगद्यते / / 1162 / / * मित्रनामानि * मित्रं' सखा सहाय ३च, वयस्यः सवया स्तथा / सुहत साप्तपदीन" श्च, स्निग्धः सहचरो भवेत् // 1163 // * मैत्रीनामानि छ सौहार्द ' सोहदं सख्य', मजय -सङ्गतं तथा / मैत्री' साप्तपदीनं च, मित्रता नाम कथ्यते // 1164 / / ..सभाजननामानि 8 प्रानन्दनं' सभाजन, माप्रच्छनं स्वभाजनम् / विषयानन्तरो भूपः, शत्रु' रित्युच्यते सदा // 1195 // प्रतः परं मित्र' मूदा-सीनः परतरः पुनः / पृष्ठतः प्राष्णिग्राहो' ऽस्ति, भिन्नभिन्नार्थवाचकः // 1196 // अनुरोधो' ऽनुवृत्ति' श्च, यथेच्छावर्तनं भवेत् / . * चरनामानि * चर' श्चारो२ ऽवसर्प इच, मन्त्रविद् गूढपूरुषः / / 1167 / / स्पशो' यथाहवर्ण श्च, वार्तायन श्च हेरिकः / प्रणिधि१० श्चेति नामानि, कथयन्ति चरस्य वै // 1198 // Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 188 सुशीलनाममालायां प्राप्त'-प्रत्ययितौ तुल्या-वविसंवादिवाक् तथा। गृहपति' स्तु सत्रिणी, नाम व कथ्यते बुधैः // 1166 // सन्देशहारको' दूतः२, ख्यातः सन्धि स्तु विग्रहः' / यानं' तथाऽऽसनं' द्वैध'-माऽऽश्रय' श्चेति षड्गुणाः // 1200 // उक्ताहि शक्तय स्तिस्रः, प्रभुत्वो'-त्साह-मन्त्रजाः / साम दाम भेद दण्डा , उपायाः शासने स्थिताः // 1201 // प्रियभाषादयो यत्र, प्रोक्त तत् साम' सान्त्वनम् / उपजाप' स्तु भेदः स्याद्, दण्ड' स्तु साहसं दमः // 1202 // * दाननामानि * उपहार' उपग्राह्यर, उपचार उपायनम् / उत्कोच उपदा लञ्चा , प्राभृत ढौकनं पुनः // 1203 // उपप्रदान' -माऽऽमिषं', कौलिकं१२ तथैवच / एतानि दाननामानि, वदन्ति विबुधाः जनाः // 1204 / / * मायानामानि * इन्द्रजाल '-मुपेक्षा च, माया' ऽपि कथ्यते पुनः / क्षुद्रोपाया त्रयश्चते, प्रख्याताः पृथित्रोतले // 1205 // * मृगयानामानि * मृगया' ऽक्षा:२ स्त्रियः पानं, वाक्पारुष्या-ऽर्थदूषणे / दण्डपारुस्यं चेत्येतद्, धेयं व्यसनसप्तकम् // 1206 // Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्यविभागः 186 प्रादान' सर्वतो लोकाद्, अदानं च निषेधकम् / परित्यागो विनाश च, चतुर्विधार्थदूषणम् / / 1207 / / ॐ पराक्रमनामानि 8 शौण्डीर्य' पौरुषं शौर्य 3, विक्रम श्च पराक्रमः५ / * प्रतापनाम * यत् कोशदण्डजं तेजः, स प्रभावः' प्रतापवान् // 1208 / / धर्माद च कामा च, भित्यादे श्च पुनः खलु / अमात्यादेः परोक्षा या, सोपधा' कथ्यते बुधैः // 1206 // मन्यते ऽषडक्षीणं' वै, मन्त्रणं रहसि द्वयोः / . * मन्त्रनाम * : लोके हि कथ्यते मन्त्रो', रहस्यालोचनं किल // 1210 // ॐ एकान्तनामानि ॐ एकान्तं केवलं२ छन्नं 3, विविक्त विजनं तथा / / उपह्वरं रह श्चैव, निशलाकं८ निगद्यते // 1211 // ___* गुह्यनाम * - रहस्यं चापि गुह्य वै, गुप्तयोग्यं हि मन्यते / Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालायां ॐ न्यायनामानि * नीति' यायो नयः कल्पो', देशरूपं समञ्जसम् // 1212 // अभ्रष श्चेति नामानि, प्रथितानि महीतले। * न्याय्यनामानि * चित' चाभिनोत च, युक्त प्राप्त च साम्प्रतम् // 1213 // न्याय्य -मोपयिक लभ्यं, भजमान मपि मन्यते / * अधिकारनाम * अधिकारः' प्रक्रिया च, व्यवस्था कार्य मुच्यते // 1214 / / * मर्यादानामानि * मर्यादा' धारणा संस्था, स्थितिः स्यान्यायसस्थितिः / * अपराधनामानि * व्यलोकं विप्रियं मन्तुः, प्रागा ऽपराध उच्यते // 1215 / / * करनामानि * करो' बलि२ र्भागधेयो', द्विपाद्यो' द्विगुणो दमः। * सेनानामानि के अनीक कटक तन्त्र, सेना सैन्यं -मनीकिनी // 1216 / / Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्यविभागः 161 वरूथिनी चमू श्चक्र, पृतना'' च पताकिनी''। शिबिरो१२ ध्वजिनी'3 दण्ड:१४, स्कन्धावार 15 श्च वाहिनी१६ // 1217 // बल'७ श्चैतानि नामानि, विजानन्ति मनीषिणः / * शिबिरनाम * विश्वे सैन्यस्थितिः प्रोक्ता, प्रख्यातं शिबिरं' चतत् // 1218 // * व्यूहनाम * दण्डादिको युधि व्यूहः', सेनाया रचनासु वै / प्रत्यासारो' व्यूहपाष्णि', यूंह पश्चात् स्थलं भवेत् // 1216 // सैन्यस्य पृष्ठभागः स्याद्, सैन्यपृष्ठः' प्ररिग्रहः / एकेभकरथास्यश्वाः, पत्तिः' पञ्चपदातिका // 1220 / / सेना सेनामुखं गुल्मो', वाहिनो' पृतना चमूः / * अनीकिनी च पत्तेः स्याद्, कराये खिगुणैः क्रमात् / 1221 // तास्तु दशानोकिन्यो वै, कथ्यते ऽक्षौहिणी' किल / . . सैन्यस्य रक्षणं प्रोक्तं, सज्जनं' चोपरक्षणम् // 1222 // * पत्त्यादिक सैन्यसंख्यायाः कोष्टकम् * .. ' नाम हस्तिसंख्या रथसंख्या अश्वसंख्या पदातिसंख्या पत्तिः 1 1 3 . 5 सेना 3. 3 15 Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 162 सुशीलनाममालायां नाम हस्तिसंख्या रथसख्या अश्वसंक्या पदातिसंख्या सेनामुखम् / 45 गुल्मः 27 2781 135 वाहिनी 81. 81 243 . 405 पृतना 243 243 726 1215 चमू . 726 726 2187 3645 अनीकिनी 2187 2187 6561 10935 अक्षौहिणी 21870 21870 '65610 106350 * पताकानामानि * , पताका' केतनं केतुः3, पटाका च ध्वजः पुनः / वैजयन्ती जयन्ती च, ध्वजनामानि सन्ति वै / / 1223 / / क्वचित् पताका दण्डोऽपि, पताका कथ्यते पुनः'। ध्वजोर्वभाग उच्चूलो', ऽवचूलो ऽस्याध उच्यते // 1224 // पत्ती' रथो गजो वाजी, स्यात् सेनाङ्ग चतुर्विधम् / ॐ रथनामानि * युद्धार्थे चक्रवद्याने, शताङ्ग: स्यन्दन स्तथा। रथ श्चाथ पुष्परथः, क्रीडार्थो यश्च क्रियते // 1225 // मरुद्रथो' ऽपि देवार्थः, प्रोक्तो योग्यारथः पुनः। स च शाखाध्ययनार्थो, वैनयिको ऽपि कथ्यते // 1226 // अध्वरथ' श्च पारिया-निक:२ पान्थार्थ उच्यते। .. पुनः प्रवहणं' को-रथरे श्च रथगर्भक: // 1227 // Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्य विभागः डयन ञ्चेति नामास्ति, स्कन्धे धार्यते नरैः / प्रथानः' शकटो' नाम शकटं चापि कथ्यते // 1228 // यानं वृषभसंयुक्तं, गन्त्री' कम्बलिवाह्यकम् / काम्बलाच्छादितो रथः, काम्बलः' कथ्यते पुनः // 1226 // ववादाच्छादितो वाखो', दौगूलोऽपि निगद्यते / यः पाण्डुकम्बली' स स्यात्, संवीतः पाण्डुकम्बलैः // 1230 // द्वैपो' रथ स्तु वैयाघ्रोरे, यो वृतो द्वीपिचर्मणा / * चक्रनामानि के अरि' चक्र रथाङ्ग च, रथपादो ऽपि कथ्यते // 1231 // भ्रमद् भागस्तु चक्रस्य, नेमि' र्धारा' तथा प्रधिः / प्रक्षाग्रकोले त्वण्या'-ऽऽणी, प्रोक्तो नाभि' स्तु पिण्डिका' // 1232 // स चकमध्यभागोऽस्ति. कूबरं वै युगन्धरम् / उक्त युगस्य काष्ठं तद्, युग'-मीशान्तबन्धनम् // 1233 // युगकोलक'-शम्येऽथ भवेयुगस्य कोलकः / युगान्तरं तु प्रासङ्गो, धुरो भागो निगद्यते // 1234 // प्रधः स्थितं तु यद् काष्ठ-मनुकर्षो' निगद्यते / यानमुखं च धूर्वो धूः, रथाग्रभाग उच्यते // 1235 // Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 164 सुशीलनाममालायां वरूथो' रथगुप्तिः स्याद्, लोहावृत्तं रथोपरि / अपस्करा' रथाङ्गानि', नामानि विदितानि वै // 1236 / / * शिबिकानामानि के झम्पानं' याप्ययानं स्याद्, झम्फानं शिबिका पुनः / के दोलानामानि * दोला' हिण्डोलक:२ प्रेङ्खा', कथ्यते च शयानकः // 1237 // वैनीतिक परम्परा वाहनं शिबिकादिकम् / ___ॐ वाहननामानि है, यानं' युग्यं तथा पत्रं, वाह्य वह्य च वाहनम् // 1238 // धोरणं चेति नामानि, यानस्य विदितानि वै। * सारथिनामानि , सव्येष्ठा' सारथिः' सादी, क्षत्ता रथकुटुम्बिक: // 1236 // सव्येष्ठो दक्षिणस्थ श्च, प्रवेता प्राजिता तथा। यन्ता'' सूतो'' नियन्ता'२ च, नामानि प्रथितानि वै // 1240 // के रथरोहिनामानि * .. रथरोही' रथारोही२, रथी योद्धा रथस्थितः। . Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्यविभागः 195 195 * रथिकनामानि के पुनश्च रथवान् पोक्तो, थिको' रथिरो रथी // 1241 // * अश्वारोहनामानि के अश्वारोहो' ऽश्ववार: स्यात् सादी' च तुरगी पुनः / . * हस्त्यारोहनामानि के हस्त्यारोहो' महामात्र:, सादी यन्ता तथैव च // 1242 // निषादी चेति नामानि, कथ्यन्ते च निषादिनः / * हस्तिपकनामानि * प्राधोरणा' गजाजीवा', हस्तिपके -भयालकाः // 1643 // मण्ठो मण्ठ' च नामानि, कथयन्ति मनीषिणः। * भटनामानि * भटा' योधा' च योद्धारः, सेनारक्षा' तु सैनिकाः२ // 1244 // प्राहरिका' श्च नामानि, प्रहरिणां भवन्ति च / सेनासु नियुक्तजनाः, सैन्या:' स्युः सैनिका स्तथा // 1245 // * सेनाभेदाः * सहखिरण' श्च साहसाः, सहसूस्य निरीक्षकाः। Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 166 सुशीलनाममालायां छायाकर' श्छत्रधारः२, छत्रधारी पुमान् भवेत् // 1246 // पताकी' वैजयन्तिकः२, सचिह्न छत्रधारकः / परिचरः परिधिस्थः 2, सेनासंरक्षको भवेत् // 1247 / / प्रामुक्त:' परिमुक्त' इच, पिनद्धो ऽपिनद्ध' इति / भवेत् कवुकधारी यः, संभवेत् सैनिको जनः // 1248 // सन्नद्धो' वम्मित:२ सज्जः३, दंशितो व्यूढकङ्कटः / पुनः कवचितो' भेदो, युद्धाय गन्तुमुत्सुके / / 1246 / / * कवचनामानि के पन्नाहः कङ्कटो' वर्म, तनुत्रं कवच' तथा। दंश श्च दंशनं त्वक्र, तनुत्राण-मुरश्छद:१० // 1250 / / माठि'' श्च जगरो'२ माठो१३, नामानि कवचस्य वै / कूर्पास:' कञ्चुक श्चापि, वारबागो निचोलक.४ // 1251 // भवेदाघातसन्त्राणे, लौह निर्मित वस्तु नि। सारसन'-मधिकाङ्ग 2, ऽधियाङ्ग धियाङ्ग मिति // 1252 / / कञ्चुकोपरि येनाऽसौ, बध्नाति तत्र कथ्यते / शिरखारणं' शिरस्क२ च. शीर्षकं खोल मित्यपि // 1253 / / शीर्षण्यं चेति वै प्रोक्तं, शिरस्त्रे लौह निमिते / . नागोद'-मुदरबारणं, येनोदरस्य रक्षरणम् // 1254 // Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्यविभागः 197 जङ्घात्रारणं' च मत्कुरणं, जङ्घयो रक्षणं स्मृतम् / हस्तत्राणं करे ख्यातं, बाहुत्राणं' च बाहुलन् // 1255 / / प्रायसी' जालप्राया स्याद्, जालिका चाऽङ्गरक्षणो / प्राख्यातं विविधं नाम, विभिन्नाङ्गस्य रक्षणे // 1256 / / * शस्त्रजीविनामानि * प्राधिका' -ऽयुवीयौ' च, काण्डपृष्ठ स्तथैव च / शखजीवी च नामास्ति, शस्त्रद्वाराय जीवति // 1257 // * कौन्तिकनाम * कौन्तिकः। प्रासिक इचैव, कुन्तावान् कथ्यते भुवि / ॐ पारश्वधनामानि * परश्वधायुध' श्चत्र, पारश्वध स्तथा किल // 1258 / / पारश्वधिक प्राख्यातः, परशुवान् निगद्यते / * नैस्त्रिशिकनाम * मैखिशिको' ऽपि खड़गवान्, शाक्तिकः' शक्तिशखवान् // 1256 / / * याष्टोकनाम * याष्टीको' यष्टिवान् लोके, कथ्यते हि मनीषिणा / धनुर्धरनामानि * धनुर्धर' श्च धानुष्को, धनुष्मान् पुनरुच्यते // 1260 / Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 198 सुशीलनाममालायां तूपी धन्वी धनु ' च, निषङ्गी मन्यते पुनः। .. 8 काण्डीरनाम * . काण्डीर:' काण्डवान् चापि, काण्डधारी हि कथ्यते // 1261 // * कृतहस्तनामानि ॐ कृतपुङ्खः' कृतहस्तः२, सुप्रयुक्तशरो जनः / समवेद्य श्च जानाति सम्यग्वाण प्रक्षेपणम् // 1262 // * लघुहस्तनाम * लघुहस्तः' शीघ्रवेधी२, लक्ष्यं वियति शीघ्रतः / * भ्रष्टबारगनाम * भ्रष्टबाणो' ऽपराद्धेषु, यो लक्ष्यं नैव साधयेत् // 1263 / / * दूरवेधीनाम * दूरवेधो दूरापाती२, दूराल्लक्ष्यं यो विति / * शस्त्रनामानि * प्रायुध' हेति' रख ञ्च, शस्त्र प्रहरणं पुनः // 1264 // . पाणिमुक्त' च शक्तिः स्यात्, यन्त्रमुक्त शरादिकम् / अमुक्त शखिका प्रोक्ता, मुक्तामुक्त यष्टि रिति / / 1265 // Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्यविभागः ___ 166 * धनुर्नामानि * धनु' धनु र्धनू धन्व, कोदण्ड कार्मुकं दुरणम्" / इष्वासो ऽस्त्रं तथाऽऽस' 0 श्च, चाप:११ स्याच शरासनम् 2 // 1266 // लस्तक' स्तु धनुर्मध्य-भागो हस्तेन गृह्यते / अटनि' रटनी चैव, मत्तिः स्याद् धनु रग्रभाक् // 1267 // . . ॐ द्रुणानामानि * गुणो' गव्या. द्रुणा मौर्वी, जीवा' शिजा च शिञ्जिनी / ज्या च बाणासनं चेति, जीवारज्जु निगद्यते // 1268 // ...* गोधानामानि ॐ ज्याघातवारणं' चैव, गोधी तलं' तथा तला। एतस्य कथ्यते लोके, चर्मणो बाहुबन्धनं // 1269 // स्थानान्यालीढ'-वैशाखे, प्रत्यालीढं च मण्डलम् / समपाद व विज्ञेया, धनुः क्षेपण संस्थितिः // 1270 // ॐ लक्ष्यनाम * - लक्ष लक्ष्य निमित्त ञ्च, वेध्यं स्याच शख्यकम् / Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 200 सुशीलनाममालायां के बाणनामानि * . . बारणः' काण्ड:२ कलम्ब श्च, - कादम्ब श्चोऽखकण्टक:५ // 1271 // कङ्कपत्रः पृषत्क" श्च, वीरशङकु श्च सायकः / प्राशुगो' जिह्मगो' रोपो'२, गार्ध पक्ष:१३ शरः१४ खग:१५ // 1272 // लक्षहा'६ मार्गणो१७ वारो१८ विशिख' श्च शिलीमुखः२० / चित्रपुङ्ख' श्च पत्री-पुः२३, . प्रदरो'४ मर्मभेदनः२५ // 1273 / / पत्रवाहरेश्च नामानि, कथ्यन्ते विबुधै रिषोः / बाणविशेषनामानि 8 .. एषणः' सर्वलौह श्च, लोहनालो ऽवसायक: // 1274 // प्रक्ष्वेडन' श्च नाराचो', लोहवणानिधानि च / / निरस्त:' प्रहितः क्षिप्त.3, क्षिप्तबाणो हि कथ्यते // 1275 // विषाक्तो' लिप्तको दिग्ध, श्चोक्तं वै विषवान् शरः / बारणमुक्ति' र्व्यवच्छेदः२, धनुसङ्गात् प्रयाति यत् // 1276 // तीव्रता बाणवेगस्य, कथ्यते दीप्तिनामतः'।. . धारवान् लोहबारणस्तु, क्षुरप्रो' विनिगद्यते // 1277 // Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्यविभागः 201 तबलो' मूषकपृच्छ-समानो बारण उच्यते / प्रद्धेन्दु' वै स लोहेषु-रर्धचन्द्रेण यः समः // 1278 // त्रिशरश्चैकलोहश्च. तोरीबाणो' निगद्यते / दण्डासनो' उर्द्धनाराचो२, तोमरो गरुड स्तथा // 1276 / / वावलं' श्चापि भल्ल' इच, भेदा: ज्ञेया: शरस्य वै / पक्ष' श्च पत्रपाली स्याद्, वाज' श्छदावलि स्तथा // 1280 / / बाणस्कन्धे पक्षन्यासः, पत्रणा' कथ्यते ऽत्र वै। कत्तरी' कर्तरिः पुङ्खः, बाणमूले. प्रयुज्यते // 1281 // * तूणनामानि ॐ तूणीरो' बाणधि स्तूरणः, शरधि श्च शराश्रयः / उपासङ्गो निषङ्ग श्च, कलाप८ श्चेषुधि रपि // 1282 // * कृपारण नामानि * करपाल:' कृपाण श्च करवाल: करालिकः / तीक्ष्णधार' श्च धाराङ्गो, धाराधरो दुरासदः // 1283 // श्रीगर्भ स्तीक्षणकर्माच, शख:११ कौक्षेयको१२ ऽक्षर:१३ / व्यवहार 4 श्च देवो'५ ऽसिः१६. . . विजय 17 श्च विषाग्रज:१८ // 1284 // मण्डलानो मनुज्येष्ठो, धर्मपाल:२१ प्रजाकरः२२ / / Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 202 ममालायां निस्त्रिंश२३ श्चन्द्रहासो२४ ऽपि, ___ चन्द्रभास२५ श्च सायक:२६ // 1285 / / ऋष्टि२७ रिष्टि२८ स्तथा रुद्र-तनय 26 स्तरवारि३० हि। खड़गो३१ धर्मप्रचार 2 श्च, ___ प्रसङ्गो ऽपि शिवङ्कर:३४ // 1286 // शाता३५ विशसन 6 श्चेति, नामानि विलसन्त्यसेः। खड्गमुष्टि स्त्सरु:' ख्यातः, कोश' स्तु खण्डधारकः // 1287 / / परिवारः२ परोवारः३, प्रत्याकार तथैव च / खड्गपिधानक खड्ग-पिधान मपि मन्यते // 1288 / / * फलक नामानि * प्रावरणं खेटकं खेट:3 फलक मडुनं स्फुरः / स्फूरक: फरकं चर्म , नामानि फलकस्य वै // 1286 // ॐ समाहनाम चर्ममुष्टौ हि सङ्ग्राहः, व्यवहारे तु कथ्यते / ___* छुरीनामानि * प्रवी' शखी' क्षुरी पत्रं, क्षुरिका छुरिका'छुरो // 1260 // धेनुका चाऽसिधेनु श्चा, ऽसिपुत्री' कोशशायिका'। कुपाणिका'२ कृपाणी' च, कथ्यन्ते नाम संग्रहे // 1291 / / Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्यविभाग: 203 पत्रफला' पत्रपालः२, कुट्टन्ती हुलमातृका / * लम्बाया श्छुरिकाया हि, विजानन्ति मनीषिणः / / 1262 / / * यष्टिनामानि * दण्ड' स्तथापि यष्टि इच लगुडः कथ्यते पुनः / * ईलोनामानि * ईलि' रोलो' तथा तर-वालिका करवालिका // 1263 // * सृगनाम * सृग' श्च भिन्दिपालो' ऽपि, करक्षेप्यम थोच्यते / * कुन्तनाम * कुन्तः' प्रासरे श्च नामास्ति, प्रख्यातं शखमत्र वै // 1264 // * घननामानि * द्रुघणो' मुद्गर इचव, घनो ऽपि मन्यते पुनः। पशुनामानि * पव॑धः' परशुः पशुः, स्वधिति ३च परश्वधः // 1265 // कुठार' श्च कुठारस्य, नामानि सन्ति षट् पुनः / * परिघनामानि * परिघः' पलिघर श्चैवं, परिघातन उच्यते // 1296 / / Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .204 ............ सुशीलनाममालायां लौहबद्ध काष्ठदण्डे, नामत्रयं प्रकीर्तितम् / के सर्वलानाम के दधिमन्थकवद् बाणः, स तोमर' श्च सर्वला२ // 1267 // * शल्यनाम *. किल बाणाग्रभागो वै, शकुः' शल्यं च कथ्यते / * शूलनाम * . त्रिशीर्षक' तथा शूलं', त्रिशूलं मन्यते जनैः // 1298 // * चक्रनामानि * शक्ति' श्चक्रं च दुःस्फोट:, पट्टिशः पट्टिस: पुनः / दुस्फोट' श्चेति नामास्ति, शतघ्नी' तु महाशिला // 1266 // मुषुण्ढी' चिरिका चैव, वराहकर्णकः पुनः / / विभिन्नाखस्य नामेदं, विभिन्न ज्ञायता मिह // 1300 // . कासूः' महाफला चैव, मष्टताला ऽऽयता पुनः / शक्ति शस्त्रस्य नामानि, मन्यन्ते सुधिया सदा / / 1301 / / पट्टिसो' लोहदण्ड श्च, तीक्ष्णधार: खुरोपमः / स्याच्छस्त्रं ह्यखवल्लोके, ऽराफलो' ऽराफल 2 स्तथा // 1302 // दुःस्फोट: श्चेति दुःस्फोट-नाम शस्त्रं हि कथ्यते। चक्र' वलयप्राय चा,-रसञ्चित मिह पुनः // 1303 / / Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्यविभागः 205 .............. शतघ्नी' च चतुस्तालार, लोहकण्टक सञ्चिता / -प्रयःकण्टकसंछन्ना', महाशिला च कथ्यते // 1304 // कणयो' लोहमात्र श्च, कथ्यते लोहशस्त्रकम् / हुलाग्रका' नामशस्त्रं, चिरिका नामवद् भवेत् // 1305 / वराहकर्णको' नाम, शस्त्रसंज्ञा विशेषतः / प्राक्त वै मुनिना' चैतद्. हुलं तथा ऽस्त्रशेखरम् // 1306 // * शस्त्रकलाभ्यासनामानि * उपासनं' शराभ्यासो', योग्या च खुरली श्रम: / प्रोक्तः शस्त्रकलाभ्यासो, ऽभ्यासो ऽपि पुनरुच्यते // 1307 // के शस्त्राभ्यासस्थलनामानि * शस्त्राभ्यासस्थलं तद्भः', स्यात् खलूर: खलूरिका। * सवौचनामानि के सर्वाभिसार:' सर्वोघः२, सर्वसनहनं पुनः // 1308 // युद्धार्थ किल सेनायाः, प्रयाणे कथ्यते भुवि / ॐ लोहाभिसारनामानि * लोहाभिसार.' श्च नीरा,-जनं२ निराजनाविधिः // 1306 // एतत् कथ्यते दशम्यां, विधि !राजनात् परः / Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 206 सुशीलनाममालायां युद्धयात्रा पूर्वकाले, शस्त्रपूजा विधौ किल // 1310 // * प्रस्थाननामानि * प्रस्थान' मभिनिर्यारणं२, यात्रा' व्रज्या प्रयाणकम् / गमनं चेति नामानि, कथ्यन्ते गमनस्य वै // 1311 // * अभिषेणननाम * स्याद ऽभिषेणनं' शत्रौ, सेनयाऽभिगमः खलु / , . .. .. * सुहृद्बलनाम * सुहृद्दलं' तथा ऽऽसार:२, मित्रबलं हि कथ्यते // 1312 // ___ प्रचक्रनाम * पुनः प्रोक्त हि लोकेऽपि, प्रचक्र' चलितं बलम् / * प्रसारनाम * प्रसरणं प्रसारः' स्यात्, तृणकाष्ठादिहेतवे // 1313 // * अभिक्रमनाम * रणे यानमभीतस्य, रिपून प्रति ह्यभिक्रमः' / * अभ्यमित्र्यनामानि 8 अभ्यमित्रो' ऽभ्यमित्रीगो, 'ऽभ्यमित्रीयो ऽभ्यरि वजन् // 1314 // Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्यविभागः 207 * उरसिलनाम * उरसिल' उरस्वान२ स्याद, विशाल उरवान् स हि / * ऊर्जस्वलनामानि ॐ ऊर्जस्व्यूर्जस्वलौ प्रोक्त-मूर्जस्वान् पुनरुच्यते // 1315 // सांयुगीननाम * सांयुगोनो' हि संग्रामे, कुशल: कथ्यते बुधैः / ___ * जेतृनामानि के जेता' च जित्वरो जिष्णुः, जैत्र श्च विजयी पुन: // 1316 // जेतृनामानि प्रोक्तानि, विजयिनो जनस्य हि / .... * जय्यनाम * . लोके यः शक्यते जेतु, स जय्यः' कथ्यते जनः // 1317 // * जैयनाम ॐ पुन श्च मन्यते लोकः, जेयो' जेतव्यमात्रके। * वैतालिकनामानि * सौखशायनिकः' सौख,-शाय्यक: सौखसुप्तिकः // 1318 // प्रथिक श्चापि वैतालि-क' श्च बोधकरः पुनः / Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 208 सुशीलनाममालायां बन्दोजनोऽपि नामानि-षटसन्ति व्यवहारतः // 1316 // घाण्टिका' चाक्रिकाः२ बन्दो', सूतो' मङ्गलपाठकः / मगधो' मागधो मङ्खः, इति नामानि स्युः पुनः // 1320 // * स्तुतिव्रतनाम * स्तुतिवत' स्तथा नग्नः२, स्तुतिपाठक उच्यते। ___ * भोगावलीनाम * , स्तुति पाठकग्रन्थस्तु, भोगावली' निगद्यते // 1321 // ॐ पराक्रम नामानि 8 शुष्म' शुष्मं सहः शौर्य, बलं' प्राणः पराक्रमः / ऊर्ज८ ऊम् द्रविणं' द्युम्नं 1, स्थाम'२ शक्ति' 3 स्तथा तरः१४ // 1322 // प्रोज:१५ पराक्रमस्येति, नामानि संभवन्ति वै / * युद्धनामानि 8 युद्धं' सङ्ख्यं च सङ्ग्राम:, संमर्द श्च समाह्वयः // 1323 // संङ्गरः संयुगं संयत्८. समितिः साम्परायिकम् / समुदायः'' समाघातः१२. समुदयः१३ समित्१४ मृधम्१५ // 1324 // Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्यविभागः 206 समीक१६ मऽभिसम्पात:१७, प्रघात:१८ प्रविदारण१६ / संस्फेट 20 श्चापि संफेट:२१, संस्फोट:२२ समरो२3 रणः२४ // 1325 // प्राजि२५ रास्कन्दनं२६ द्वन्द्वं२७, प्रधनं२८ प्रविदारणम्२६ / पाहवः३० सम्प्रहारो३१ युत्३२, प्रहरणं 3 कलहः 4 कलिः३५ // 1326 // प्रायोधनं 36 तथा राटि:३७, . समिति८ श्चापि विग्रहः / तथाऽऽकन्द्रो० ऽप्यनीक४१ श्चा, भ्यामर्दो 2 ऽभ्यागमः४३ पुनः // 1327 // एतन्नामानि. कथ्यन्ते, युद्धस्य विबुधैः किल / . * नियुद्धनाम * नियुद्ध' बाहुयुद्ध च, कथ्यते तद् भुजोद्भवम् // 1328 / / * युद्धपटहनाम पटहा -ऽऽडम्बरो प्रोतो, युद्धस्य पटहे सदा। .... तुमुलनाम के युद्ध कोलाहले युक्त, तुमुलं' रणसङ्कुलम् // 1326 // Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 210 सुशोलनाममालायां * नासीरनाम * अग्रयानं च नसीरं२, युद्धाने गमनं भवेत् / * पीडननाम है पीडन' मवमर्दः२ स्याद्, शत्रुतो देशपीडने // 1330 // * प्रपातनांमानि * अवस्कन्दो' ऽभ्यवस्कन्दो२, ऽभ्यासादनं तथैव च / धाटि आंटी' प्रपात श्चा-ऽऽक्रमणं छलतो भवेत् // 1331 // * सौप्तिकनाम * सौप्तिक' छलतो रात्रा-वाक्रमणं हि कथ्यते। * वोराशंसननामानि * प्राजिभीष्मभू श्च वीरा-शंसनं वीराशंसनी // 1332 // संहार कारिणी युद्ध भूम्या ताम त्रयं सदा / * नियुद्धभूनाम * नियुद्ध' भूरक्षवाहा', मल्लयुद्धस्थलं भवेत् // 1333 // . मूर्छानामानि के . मूर्छा' मोहः कश्मल श्व, नाम मूच्छितजन्तुनः। . Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्यविभागः ___ 211 * वीरपारणकनाम से वोरपाणं' तथा वीर,-पाणकर व निगद्यते // 1334 // वृत्त भाविनि वा युद्धे, मद्यपानं निगद्यते / * पलायन नामानि 8 अपयान' श्च संदाव 2, सद्रावो विद्रवो द्रवः // 13 5 // - उद्राय श्चापि प्रद्रावः७, पलायन मपक्रम: / नशनं चेति नामानि, युद्धात् पलायनस्य वै // 1336 / / . * जयनाम * जय' श्च विजयो नाम, जयार्थे वर्तते युधि / * पराजयनाम के पराजयो' रणे भङ्गो, विज्ञायते मनीषिणः // 1337 // * विप्लवनामानि * - विप्लवो' डमरो डिम्बः३, शृगाली' लुण्टने भवेत् / . ॐ वैरशुद्धिनामानि * वैरनिर्यातनं वैर,-शुद्धिः र्वैरप्रतिक्रिया // 1338 // ... * बलात्कारनामानि * बलात्कारो' हठ श्चापि, प्रसभं पुनरुच्यते। . Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 212 सुशीलनाममालायां * स्खलितनाम के छलं' च स्खलितं नाम, मार्गच्यतः स कथ्यते // 1336 // * परिभूतनामानि के अभिभूतः' पराभूतः२, परिभूतः पराजितः / जितो भग्नश्च नामानि, पराभवस्य मन्यताम् // 1340 // * पलायितनामानि * पलायितो गृहीतदिक् 2, नष्ट स्तथा तिरोहितः / पलायितस्य नामानि, विजानन्ति मनोषिणः // 1341 // _* जिताहवनाम * जितकाशी' जिताहवो', जयवान् कथ्यते युधि। * पतितनाम * प्रस्कन्न.' पतित श्चैव, पतितार्थे स मन्यते // 1342 // * चारकनामानि * चार' श्च चारको गुप्तिः, कारा कारागृहे भवेत् / ॐ बन्दिनामानि के प्रग्रहो' ग्रहको बन्दी', चोपग्रहो ऽपि कथ्यते // 1343 / / Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मत्यं विभाग: 213 * चातुर्वर्ण्यनाम * चातुर्वर्य' विप्र-क्षत्र-वैश्य-शुद्रा नृणां भिदः / ब्रह्मचारी गृही वान-प्रस्थो भिक्षु रिति क्रमात् / / 1344 // चत्वार प्राश्रमा:' सन्ति, तत्राद्यो ब्रह्मचारिणी' / वर्णो स्याद् गृहमेवी' तु, गृहस्थः' स्नातकोरे गृही // 1345 // जेष्ठाश्रमी द्वितीयो वै, प्रोक्त प्राश्रम ऊह्यताम् / वैरवानसो' वानप्रस्थ, स्तृतीयाश्रमवतिान // 1346 / / यति:' सान्यासिको 2 भिक्षुः, तपस्वी पारिरक्षकः / पारिकांक्षी च कर्मन्दी', पाराशरी च मस्करी // 1347 / / स्याद् रक्तवसन' ' श्चेति, चतुर्थाश्रमवतिनः / * स्थाण्डिलनाम * स्थाण्डिलः' स्थण्डिलशायी२, भूमिसुप्तो व्रती भवेत् // 1348 // __* दान्तनाम * तपः क्लेशसह' श्चैव, दान्तो ऽपि कथ्यते किल / ... .. . शान्तनामानि 8 . .. ... . शान्तो' जितेन्द्रियः श्रान्तः3, नामानि संभवन्ति वै // 1346 // Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 214 सुशीलनाममालायां * शुद्धकर्मनाम है अवदान' कर्मशुद्धं२, शुद्धाचरण मुच्यते / * ब्राह्मणनामानि 8 भूदेवो' ब्राह्मणो ब्रह्मा, षट्कर्मा मुखसम्भवः // 1350 // अग्रजन्मा द्विजन्मा च, द्विजाति डिवा द्विजः / वर्णज्येष्ठ:११ शमीगर्भो 2, ' - वेदगर्भो१३ विप्रः१४ पुन:१४ // 1351 / / एतस१५ श्चाग्रजो' मैत्र'", श्चाग्रजाति 8 स्त्रयोमुखः१६ / सावित्र२° सूत्रकण्ठ२१ श्च, नामानि ब्राह्मणस्य वै // 1352 // के बटुनामानि के माणवको' वटुरे श्चैव, बटु' बटुक उच्यते / * भिक्षानाम के अन्नादियाचनं भिक्षा', ग्रासमात्रक मुच्यते // 1353 // * उपनयनामानि * उपनय' श्चोपनायो, वटूकरण' मानयः / .. यज्ञोपवित संस्कारः, कथयन्ति मनीषिणः // 1354 / / Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मयविभागः 215 ___ॐ अग्नोन्धननामानि * अग्नीधनं' तथाऽग्निध्रा, चाऽऽग्नीध्री' चाऽग्निकारिका / अग्निकार्य च नामादि, होमाग्नि-ज्वलने भवेत् // 1355 / / * दण्डभेदाः प्रोक्तावाषाढ'-पालाशौ, व्रत पालाशदण्डके। राम्भ' स्तु वैणवो ऽपि स्यात्, दण्डो वंशस्य वै व्रतेः // 1356 // रौच्यः' सारस्वतो बैल्वः3, बोल्वदण्डो हि कथ्यते / पैलव' श्चौपरोधिकः२, पोलुदण्डो हि मन्यते // 1357 // प्राश्वत्थो जितनेमिः श्च, व्रते पीप्पलदण्डकः / प्रौदुम्बर' उलूखलोरे, दण्ड उदुम्बरस्य च // 1358 / / ॐ जटानाम * तापसादेः शिरः केशे, जटा' सटा' च कथ्यते / * वृषीनामानि * वृषो' वृसी तथा पीठ, तस्य दर्भासनं पुनः // 1356 / / * कमण्डलुनाम * कमण्डलु' श्च कुण्डिका, तस्य पानीय पात्रकम् / * श्रोत्रियनाम * श्रोत्रिय' छान्दसो विश्वे, वेदज्ञातरि मन्यते / / 1360 / / Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 216 सुशीलनाममालाया * यजमाननामानि * प्रादेष्टा' च व्रती यष्टाः, यजमान श्च याजक:५।। एतन्नामानि कश्यन्ते, यज्ञकर्तरि पुंसि वै / / 1361 // * दीक्षितनाम * दीक्षितः' सोमयाजी च, स्यात् सोमयोज्ञकारकः / के इज्याशोलनाम * , इज्यशीलो' यायजूको, यज्ञकर्मस्वभाववान् // 1362 // ____* यज्वनोनामानि 8 सोमरसाकृष्य यज्ञ-कर्ता यज्वा' ऽऽसुतीबलः / * सोमपनामानि 8 सोमप' स्तु सोमपीती२, सोमपीथी' तथैव च // 1363 // सोमपीवी च यज्ञे स्यात्, स सोमरसपीबकः / * स्थपतिनाम ॐ बृहस्पति यज्ञकर्ता, स्थपति' गीः पतीष्टिकृत् // 1364 // ॐ सर्ववेदा नाम है सर्ववेदाः स एवास्ति, यज्ञे सर्वसमर्पति / Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्यविभागः 217 .. .. * यजुविदोनाम * यजुर्वेदस्य च ज्ञाता, यजुर्विद'-ध्वर्यु रुच्यते // 1365 / / * ऋविन्नाम * ऋग्वेदस्य पुन र्शाता, ऋविद्' होता सदोच्यते। के सामविदोनाम * उद्गाता' च सामविद् वै, सामवेदस्य ज्ञानवान् // 1366 // ___ * यज्ञनामानि * यज्ञो' यागो मखो .मन्युः, स्तोम' श्च संस्तरः सवः / सप्ततन्तुः८ क्रतुः सत्रं, वितानं 1 बहि१२ रध्वरः१३ // 1367 // अध्ययनं' ब्रह्मयज्ञो', ब्रह्मज्ञानं स कथ्यते / देवयज्ञो' वषट्कारो, होमो' होत्रं तथाऽऽहुतिः // 1368 // एतन्नामानि कथ्यन्ते, देवयज्ञस्य पण्डितैः / . * श्राद्धनामानि 8 . श्राद्धं तथा पिण्डदानं२, पितृयज्ञ श्च तर्पणम् / / 1369 / / एतन्नामानि मन्यन्ते, पितृयज्ञस्य कोविदः / नरयज्ञस्य नामास्ति, नृयज्ञो' ऽतिथिपूजनम् // 1370 // Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 218 सुशीलनाममालायो भूतयज्ञस्य नामाऽस्ति, भूतयज्ञ' स्तथा बलि: / प्रोक्ता एते महायज्ञाः', पञ्चापि वै महीतले // 1371 / / यज्ञोयः शुक्लपक्षान्ते, स पौर्णमास उच्यते / दर्शो ऽपि कृष्णपक्षान्ते, प्रामावास्यश्च मन्यते // 1372 / / सौमिकी' दीक्षणीयेष्टिः२, स्याद् दीक्षा' व्रतसङ्ग्रहः / सुगहना वृतिः कुम्बा', वेदो' भूमिः परिष्कृता // 1373 // चत्वरं' स्थण्डिलं यज्ञा ऽसंस्कृत भूमि रुच्यते / पशुहिंसायज्ञस्तम्भः, स्याद् यूपो' यज्ञकोलक: // 1374 // चषाल' चापि वै यूप-कटक:२ कथ्यते किल / यजयूपाग्रभागे यद्, वलयाकार वस्तु तद् // 1375 // घृतावनि' स्तथा यूप-कर्णो वै कथ्यते सदा। घृतस्पर्शयज्ञस्तम्भ-स्यैकभागः स मन्यते // 1376 // यूपस्याग्रविभागो वै, यूपाग्रभाग' उच्यते / तर्म वै कथ्यते नाम, निर्मन्थदारु' चाऽरणिः // 1377 // * अग्नि भेदा: * दक्षिणो' गार्हपत्य' श्चा,-ऽऽहवनीय स्त्रयोऽग्नयः / इदमग्नित्रयं विश्वे, त्रेता' हि कथ्यते बुधः // 1378 // मन्त्रादिसंस्कृतोऽग्नि वै, प्रणीतो' मन्यते पुनः / / ऋग धाय्या' सामोधेनी च, समिदाधीयते यया // 1376 // Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्यविभागः 214 * समिन्नामानि (r) 'समिदिन्धन मेधे-म-तर्पण-धांसि सन्ति षट् / के भस्मनामानि * भसितं' भस्म भूति' श्च, रक्षा क्षार -इच कथ्यते // 1380 // पात्रं' स्त्र वादिकरे प्रोक्त, स्रक्' स वर चापि मन्यते / अधरा सोपभृत्' स्याद् वै, जुहू हि पुनरुत्तरा // 1381 // ध्र वा' स्यात् सर्वसंज्ञार्थ, यस्यां घृतं निधीयते / हन्येत योऽभिमन्यात्र, स स्यात् पशुरुपाकृतः // 1382 // शमनं' शसनं चैव, मखे वधो हि प्रोक्षणम् / पुनः परम्पराक' वै, विजानन्ति मनीषिणः // 1383 // अभिचारो' हि हिंसार्थ, कर्म यत् क्रियते च तत् / स्याद् यज्ञयोग्यकार्य वै, यज्ञार्ह' चापि यज्ञियम् // 1384 // हवि' स्तथैव सान्नाय्यं२, बलिदानं हि कथ्यते। . क्षीरशरः पयस्या२ च, शृतोष्णक्षोरमं दधि // 1385 // प्रामिक्षा ऽपि पुनः प्रोक्त, तन्मस्तुनि तु वाजिनम्'। . हव्यं सुरेभ्यो दातव्य;-मग्निद्वारा हि कथ्यते // 1386 // विप्रद्वारा प्रदत्तं च पितृभ्यः कव्य'-मोदनम् / घृते हि दधिसंयुक्त, पृषदाज्यं' पृषातक:२ // 1387 // Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 220 सुशीलनाममालायां दध्याजं च दधिप्राज्य, कथ्यते पण्डितै जनैः / / बध्ना स्यान् मधुसंपृक्त, मधुपर्क' महोदयः // 1388 // हवित्री' होमकुण्ड२ ञ्च, होमाधारस्थले द्वयम् / हव्यपाक' श्चरु' श्चैव, हव्यान्नेन विरच्यते // 1386 // . अमृतं' यज्ञशेष श्च, यज्ञशिष्टे हि वस्तुनि / विधसो' भृक्तशेषको२, यज्ञे भुङ्क्ते हि योऽधिकम् // 1390 // यज्ञान्ते क्रियते स्नान, यज्ञान्तो' ऽवभृथो हि सः / प्रोक्त पूर्त' पुन प्या,-दोष्ट' तथा मखक्रिया 2 // 1391 // इष्टापूर्त' तु पूर्वोक्त,-मुभयं कथ्यते पुनः / , विष्टरो' बहिर्मुष्टि इच, दर्भासने प्रयुज्यते // 1362 // प्राहिताग्नि' रग्निहोत्री चाऽऽग्न्याहितो ऽग्निचित् तथा। अग्न्याधान' मग्निहोत्र, माऽग्निरक्षण-मित्यपि // 1363 // दर्वी' दवि स्तथैवाऽस्ति, नामेह घृतलेखनी।। महाज्वालो' महावीरो, होमाग्नि श्च प्रवर्गवत् // 1394 // निगणो' होमभस्म श्च, होमधूमे प्रयुज्यते / वैष्टुतं वै होमभस्म, ख्यातं होमजभस्मनि / / 1395 // . प्राचमन' मुपस्पर्शो२, जलेन मुखस्पर्शने। सेक' श्च सेचनं धारो, घृतादे रग्निर्नासचने // 1366 // Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्यविभागः ध्यानयोगासनं ब्रह्मा-सनं ख्यातं महीतले / स्वाध्यायादि क्रियाजातं, ब्रह्मवर्चस' मुच्यते // 1397 // वृताध्ययद्धि' श्चापि, तदेव कथ्यते बुधैः / / ब्रह्माञ्जलि' स्तु वेदस्य, पाठकाले कृताञ्जलिः // 1398 // पाठे स्थान मुखनिष्क्रान्ता, विषो ब्रह्मबिन्दवः / ॐ पारायणनाम है साकल्यवचनं' पारा-यणं' सम्पूर्णवाचने // 1366 // * * कल्पनामानि * क्रमः' कल्पो विधि 3 श्चापि, कल्पसंज्ञा त्रयं भवेत् / प्रङ्गुष्ठमूलं ब्राह्म' स्यात्, तीर्थ कायं' कनिष्ठयोः // 1400 // तर्जन्यङगुष्ठान्तः पित्र्यं', दैवतं त्वगुलीमुखे / हस्तस्य च मध्यमात्रे, सौम्यं तीर्थं निगद्यते // 1401 // ब्रह्मत्वं' ब्रह्मसायुज्यं२, ब्रह्मभूयं च मन्यते / देवत्वं' देवसायुज्यं२, देवभूयं च कथ्यते // 1402 // मूर्खत्वं' मूर्खसायुज्यं२, मूर्खभूयं च मन्यते / ग्रहणं वेदपाठस्य, उपाकरण' मुच्यते // 1403 // स्वाध्याय' श्च जप:२ प्रोक्तो, वेदस्याऽध्ययने किल। प्रौपवस्तं' चौपवखरे,-मुपवस्व तथैव च // 1404 // Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 222 सुशीलनाममालायां उपवासो निगद्येत, व्रते भोजन रोधके। कृच्छ्र' चान्द्रायणं सान्त,-पनं पापविनाशके // 1405 // संन्यास्यनशने ख्यातः, प्रायः' शब्दः प्रयुज्यते / नियम:' पुण्यकं चैव, व्रतं तपो ऽपि कथ्यते // 1406 // ___ * चरित्रनामानि * चरित्रं' चरितं वृत्तं', चारित्रं चरणं तथा / प्राचार श्चापि शीलं च, मन्यते पण्डितैः जनः // 1407 // जप्ये ऽघमर्षणं' सर्वै-नोध्वंसि च प्रयुज्यते / . * पादग्रहणनामानि * पादयोः स्पर्शने पाद,-ग्रहण' मभिवादनम् // 1408 / / तथोपसंग्रह' श्चेति, कथ्यते कोविदः किल / यज्ञसूत्रनामानि के प्रोद्धृते दक्षिणे स्कन्धे, यज्ञोपवीत' मुच्यते // 1406 // उपवीतं पवित्रं च, यज्ञसूत्रं तथैव च / ब्रह्मसूत्रं पुन श्चैव, प्रख्यातं व्यवहारतः // 1410 // . प्राचीनावीत' माऽऽवीतं२, वामे स्कन्धे हि प्रोदधृते / / कथ्यते कण्ठमालेव, निवीत' कण्ठलम्बितम् / / 1411 // Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्य विभाग: 223 * वाल्मीकिनामानि * प्राविधि' श्च वाल्मीकिः२, वाल्मीक श्च कविः कुशी' / मैत्रावरुणि' वल्मीकः", मैत्रावरुण उच्यते // 1412 // . * व्यासनामानि * वेदव्यास' स्तथा व्यासो२, माठरो बादरायणः / द्वैपायन' श्च कानीन:६, पाराशर्यो ऽपि कथ्यते // 1413 // .. * व्यासमातृनामानि के सत्यवती' च शालङ्का, यनजारे गन्धकालिका। तथा योजनगन्धा वै, गन्धवती' च वासवी // 1414 // मत्स्योदरी च दाशेयो', नामान्यष्टौ भवन्ति वै // 1415 // * परशुरामनामानि है रामः' परशुराम श्च, पशुराम श्च भार्गवः / जामदग्न्य' स्तथा रेणु, केय श्च रेणुकासुतः // 1416 // ॐ नारदनामानि (r) नारदो' देवब्रह्मा च, पिशुनः कलिकारकः / Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 224 सुशीलनाममालायां * वशिष्ठ ऋषिनामानि * ख्यात स्त्वरुन्धतीजानि', वशिष्ठ:२ कथ्यते पुनः / / 1417 // अस्य भार्या ऽक्षमाला' च मन्यतेऽरुन्धती पुनः / * विश्वामित्रऋषिनामानि * प्रोक्तः त्रिशकुयाजी' सः, गाधेयो गाधिनन्दनः // 1418 // विश्वामित्र श्च प्रख्यातः, कौशिको ऽपि हि कथ्यते / * दुर्वासा ऋषिनाम है ऋषिः कुशारणि' श्चैव, दुर्वासा अपि मन्यते // 1416 // ॐ गौतमऋषिनाम * गौतम' श्च शतानन्दोरे, नामऽस्ति गौतमस्य वै / * याज्ञवल्क्यनामानि * योगीश' श्चापि योगेशो२, ब्रह्मरात्रि स्तथैव च // 1420 // याज्ञवल्क्य श्च नामारिन, यज्ञवल्कसुतस्य हि / * पाणिनिनामानि * दाक्षीपुत्र' स्तु दाक्षेयः२, सालातुरीय इाप // 1422 // पाणिनि श्चेति नामापि, पाणिनीयस्य कथ्यते / ... Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्यविभाग: ___ 225 * पतञ्जलिऋषिनाम गानःयः' पतञ्जलिः२, प्रोक्त नाम पतञ्जलेः // 1422 // ॐ कात्यायननामानि 8 कात्यः' कात्यायन२ श्चैव, मेवाजिव पुनर्वसुः / वररुचि श्च नामानि, कात्यायनस्य सन्ति वै // 1423 // : * व्याडिमुनिनामानि (r) विन्ध्यवासी' तथा व्याडि:२, नन्दिनीतनयः पुनः / व्याडिमुने श्च नामानि, कथयन्ति हि कोविदाः // 1424 // * स्फोटायन ऋषिनामानि * कक्षिवान्' स्फोटनः२ स्फोटा-यनः स्फौटायन च वै। स्फोटानयरय नामानि, कथयन्ति हि पण्डिताः // 1425 // के पालकाप्यऋषिनामानि * प्रोक्त नाम पालकाप्यः', कारेणवः२ करेणभूः / . ॐ वात्स्यायनऋषिनामानि * . . वात्स्यायनो दामिल श्च, चाणक्यः चणकात्मजः // 1426 / / कौटल्य श्चापि कौटिल्यो', मल्लनाग स्तथाऽगुलः। पुन श्च पक्षिलस्वामी', विष्णुगुप्तो'• ऽपि कथ्यते // 1427 // Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 226 सुशीलनाममालायां . * क्षतव्रतनाम * क्षतव्रतो' ऽवकीर्णी च, क्षतव्रतस्य नाम / स व्रतभङ्गकारक-ब्रह्मचारी निगद्यते // 1428 / / संस्कारवजिलो' व्रात्यः२, संस्काररहितो द्विजः। शिश्विदानो' दुराचारः', कृष्णक 3 ऽपि कथ्यते // 1426 // ब्रह्मबन्धु' श्च नामाऽस्ति, द्विजो ऽधमोऽपि मन्यते / नष्टाग्नि' विरहा विप्रो, विनष्टाग्निहोत्राग्निवत् // 1430 / / विप्रो विजन धो' जाति,-मात्रजीवी च मन्यते। ..... धर्मध्वजी' लिङ्गवृत्तिः, पाखण्डो वेषवान् स वै // 1431 // वेदहीनो' निराकृतिः२, स्वाध्याय रहितो द्विजः / .. वार्ताशी' भोजनार्थ यो, ब्रूते गोत्रादिकं निजम् // 1432 // उच्छिष्ट भोजनो' देव-नैवेद्य बलिभक्षकः / पुन श्च कथ्यते देव-नैवेद्य लभोजन: // 1433 // ॐ अजपनाम * अजप' स्त्वसदध्येता२ कुपाठकजनः स्मृतः / .. . . . . ॐ शाखारण्डनाम * अन्य शाखा कर्मकर्ता शाखारण्डो' ऽन्यज्ञाखक:२ 11434 // Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयों मत्यविभाषा 227 . * शस्त्रजीविनाम * शखाजीव स्तथा काण्ड-स्पृष्टः शस्त्रेण बौबिते। * गुरुघ्ननाम * गुरु हत्याकर्तृ नाम-गुरुहा' नरकीलक: / / 1435 // * मलनाम * देव पूजां विना यः स्यात् स मला' कथ्यते बुधः / . * मलिम्लुचनाम, मलिम्लुचः पञ्चयज्ञ परिभ्रष्ट स्तन हि स: // 1436 // . खस्नाम निषिद्धक रुचिलोंके खरु' रित्यभिधीयते / . * अभ्युदितनाम * अम्युक्तिस्तु' : शेते सूर्योदये च सत्यपि // 1437 // ॐ अभिनिर्मुक्तनाम * सूर्यास्त समये शेते सोऽ िनर्मुक्त' नामवान् / * वीरोज्झनाम है वीरोगक' 'स्तु स ख्यातो न नुहोति कदापि यः // 1438 // Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 228 सुशीलनाममालायां * वीरोपजीवनाम * वीरोपजीवकः ख्यातो यो होम-नाम याचकः। * वीरविप्नावकः * शूद्र वित्त धनोता-बोरविसावको भवेत् // 1436 // ___ॐ पार्हतनाम * प्रार्हतः' स्यादाद वादी जैनो ऽनेकान्तवादिनि / * सौगतनाम * शून्यवादी' सौगतस्तु वौद्धः एव निगद्यते // 1440 // ॐ नैयायिकनाम है प्राक्षपाद' स्तथा नाम यौगो नैयायिको ऽपि च / ___* सांख्यनाम * सांख्य' स्तु कापिल:२ प्रोक्तः सांख्य शाखस्य ज्ञारि // 1441 // * वैशेषिकनाम * वैशेषिक:' काणाद: स्या दौलुक्यो न्याय ज्ञातरि। . * चार्वाकनाम के . . वार्हस्पत्यो' नास्तिक: स्यात् लोकायतिक' इत्यपि // 1442 // Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्यविभागः 226 लोकायिंतिक नामापि चार्वाका' श्चारु भाषणात् / * क्षत्रियनाम * क्षत्र' तु क्षत्रियो' राजा-राजन्यो बाहुसंभवः // 1443 // * वैश्यनाम प्रर्यो' भूमि स्पृशो वैश्या उरच्या उरुजा विशः / * वृत्तिनाम * वारिणज्यं पशुपाल्य च कर्षणं नाम च स्मृतम् // 1444 // ..* आजीविकानाम * प्राजीवो' जीवनं वार्ताः जीविका' वृत्ति वेतने / * उञ्छनाम है उञ्छो' धान्य कणादानं२ कणिशाघर्जनं शित्यम् / / 1445 / / * ऋतनाम * ऋत' मुञ्छशिलं प्रोक्तमुभयोर्ग्रहणे सदा। * कृषिनाम * अनृतं' प्रमृतं लोके कृषि रेव निगद्यते // 1446 // ... ॐ याचितनाम * याचित' च मृतं प्रोक्त भिक्षया लब्धवस्तुनि / Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालायां * प्रयाचितनाम .. . अविनश्वर' ममृतं' स्यावयाचित मिति त्रयम् // 1447 / / .. * सेवानाम * श्वजीविका' च सेवा" च सेवावृत्ति' रिहोच्यते / * वाणिज्यनाम * सत्यानृतं' वणिज्या च वाणिज्य : मिति ज्ञायताम् // 1448 // 8 वणिङनाम * वाणिज:' सार्थवाह' श्च वरिण क्रय विक्रयिकः / पण्याजीव प्रापणिको वैदेह' च प्रापरिणक: // 1446 // ॐ क्रयिनाम 8 ऋयिकः' क्रायको' लोके क्रयी' च कथ्यते पुनः / ॐ विक्र यिनाम * विऋयिको' विक्रयी' च विक्राय: कोविज्ञायताम् // 1450 // * मूल्यनाम * मूल्य'म?ऽवक्रय च भाटको वस्न' मित्यपि। . . . ___* नीविनाम * मूलद्रव्यं' परिपणो नोवी नोविश्च ज्ञायताम् // 1451 / / Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्यविभागः * लाभवाम * 'लाभ:' फल ञ्च व्यापारे मूलावधिकप्रापस्ने / * विनिमयनाम * व्यतिहारो' विनिमयो नैमेयो नियम स्तथा // 14525 . परिदानं परावर्तों वैमेयः परिवर्तनम् / ॐ निक्षेपनाम से उपानिधि' श्च प्रख्यातो निक्षेपो न्यास इत्यपि // 1453 / / ... प्रतिदाननाम ॐ परिदानं' प्रतिदानं न्यासार्पण मपिस्मृतम् / . . क्रेयनाम * : क्रेतव्ये कथ्यते क्रेयं क्रय्यं न्यस्तं क्रयाय यत् // 1454 // पण्यनाम विक्रय परितव्यं च पण्य मित्येव कश्यते / ॐ सत्यापैननाम है सत्यापन' सत्यकार:२ सत्याकृति रिति पुनः // 1455 / / * विक्रयनाम के विपणो' विक्रयः' शब्दः प्रख्यातो बस्तु विक्रये। Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 232 सुशीलनाममालायां * गण्यनाम * गरणनीयं गणेय व गण्यं संख्येय मित्यपि // 1456 / / . * संख्यानाम है संख्या नाम्ना प्रसिद्धोऽस्ति-एक द्वि त्रि क्रमाद्दश / एक दश शत ञ्चैव सहस्त्र मयुतं पुनः // 1457 // / लक्षश्च नियुतञ्च प्रयुतं कोटिरित्यपि। .. सर्व दशगुणं पूर्वात् ज्ञायते गण्यते जनः // 1458 / / अर्बुद दशकोटि श्चा,-ब्ज' च खर्व१ दशाब्जकम् / निखर्व 2 दशख वै, पुनः सङ्ख्यं महाम्बुजम् 3 // 1456 // अग्नेऽपि दशनिखर्व, शकु१४ दशमहाम्बुजम् / तथा वाद्धि:१५ समुद्रोऽपि, दशशङ्कु निगद्यते // 1460 // अन्त्यं 6 दशवाद्धिमान, मध्यं 7 दशान्त्यमानकम् / दशमध्यप्रमाणं च, पराद्धं '8 सङ्ख्यकं किल // 1461 / / कथ्यते पण्डितै लॊके, लॊके ऽस्मिन् गणनाक्रिया। असङ्खय' द्वीप-वार्डो-न्दु-सूर्यादिकं प्रवर्तते // 1462 // पुन श्च वर्तते विश्वे, पुद्गलाऽत्माद्यनन्तकम् / * नाविकभेदाः ॐ सांयात्रिक' स्तथा पोत-वणिक् च कथ्यते बुधैः // 1463 // . Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्यविभागः 233 बोहित्थं चापि वोहित्थं, वहनं च वहित्रकम् / यानपात्रं तथा पोत:६, प्रोक्तं प्रवहणं पुनः // 1464 // पोतवाहो' नियामको, निर्यामो मार्गदर्शकः / * नाविकनाम के नाविकः' कर्णधार श्च, नौसञ्चालक उच्यते // 1465 // .. * नौकानामानि * नौका' नौ' श्च तरी बेडा', तरणी तरणि स्तरिः / मङ्गिनी चेति नामानि, नौकायाः मन्यतां जनः // 1466 // . * द्रोणीनाम * काष्ठाम्बुवाहिनी' द्रोणी, जलीयदारुपात्रकम् / . . * नौकादण्डनामानि * क्षेपणिः क्षेपणी नौका दण्ड3 श्च क्षिपणी पुनः // 1467 // नौसञ्चालकदण्डस्य, तन्नामानि संभवन्ति वै। कूपको' गुणवृक्ष श्च, प्रोक्तो नौकूपस्तम्भकः // 1468 // पोलिन्दा' श्चान्तरादण्डाः२, नौकायाः मध्यदण्डकाः / प्रोक्तो नौकाग्रभागस्तु, मङ्ग' श्च मङ्गिनीशिरः२ // 1469 // अभ्रि' श्च काष्ठकुद्दाल:२, नावो ऽवकारक्षेपके। सेचनं' सेकपात्रं नौ-जलक्षेपरणमात्रके // 1470 // Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 234 सुशीलनाममालायां कर्ण' श्च केनिपातः च, कोटिपात्र स्तथैव च / अरित्रं चेति नौकायाः, सुकानः कथ्यते बुधैः // 1471 // * लघुनौनामानि * . उडुप' श्च तरण्ड२ इच, कोलो' भेल स्तथा प्लव: / . एनन्नामानि कथ्यन्ते, लघुनौवस्तुनो बुधैः // 1472 // प्रातर' स्तरपण्यं च, नौशुल्क मुच्यते जनः / . * कुसोदकनामानि * . वृद्धयाजीवो' वाधुषिः२, वार्धषिक: कुसोदकः // 1473 // द्वगुणिक' श्च नामाऽपि, प्रोक्त कुशोद ग्राहिणः / * कुशीदनामानि * कुशीदं' कुषीदं चाऽर्थ,-प्रयोग: वृद्धिजीवनम् // 1474 // कुपीदं चेति नामानि, कुसीदस्य भवन्ति वै / .... * वृद्धिनाम * वृद्धिः कला र नाम, मूलधनस्य वर्द्धने // 1475 // * ऋणनामानि * पर्युदञ्चन' मुबार', ऋणं' नाम त्रयं भवेत् / Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्यविभागः 235 * याचितकनाम * यावितकं तु नामेदं, याच्त्रयाप्ते प्रकथ्यते // 1476 // * प्रापमित्यक नाम * यद् वस्तु परिवृत्या वै, नीयते चाऽऽपमित्यकम् / * अधीमानाम * ग्राहक' श्चाऽधम! वै, ऋण नेत्र कथ्यते // 1477 // . ___ * उत्तमर्णनाम * दायक' श्चोत्तम! वै, ऋण दातरि मन्यते / * प्रतिभूनाम * प्रतिभू' लग्नकः प्रोक्तः प्रतिनिधि र्जनस्य वै // 1478 // ॐ साक्षिनामानि * मध्यस्थः' प्रानिक:२ साक्षी, स्थेयः सत्यं वदेत् सदा / कथ्यते कूटसाक्षी' च, मिथ्याभाषी निगद्यते // 1476 // दुष्टसाक्षी' तथा सूची२, दुष्टतयाऽन्यथा वदेत् / * बन्धक नाम * प्राधि' स्तु बन्धको लोके, तत्र स्याात्र रक्ष्यते // 1480 // .. Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 236 सुशीलनाममालायां * पौतवनाम (r) पौतवं' यौतवं' नाम, तुलादौ मापने स्मृतम् / * मापननाम * द्रुवयं पाय्य मित्यादि, मापनं स्याद् विभिन्नकम् // 1481 // तुलादौ पौतवं मानं, द्रुवयं ' कुडवादिभिः / पाय्यं हस्तादिभि नि,-मिति भेदोऽत्र ज्ञायताम् // 1482 // ___* सुवर्णमापननाम * गुजा लताफलं किञ्चिद्, रक्तिका सैव कथ्यते / पञ्च गुजाः माषक: ' स्यात्, स्वर्णकारस्य तोलने // 1483 // षोडशः माषकारणां तु, कर्षः स्यादऽभ एंव वा। चतुः कर्षाः पलं' ज्ञेयं, पुनः कर्षचतुष्टयम् // 1484 // प्रोक्तः सुवर्णो' हेम्नोऽक्षे, विस्तो ऽप्यशिति रक्तिकाः / कथ्यते कुरुविस्त' स्तु, पलमेकं सुवर्णकम् // 1485 // ला' पलशतं ज्ञेयं, सुवर्णादिक मापने / शलाट' चितो भारः3, शाकटीन श्च शाकट:५ // 1486 // विशति तुलामानं त, द्विसहसूपलानि च। . . दशभारप्रमाणन्तु, ज्ञातव्यः प्राचितः खलु // 1487 // . Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मत्यविभागः 237 * धान्यादिमापननाम * उभयाञ्जलिमानं वै, प्रसृतं' कुडवो ऽथवा / चतुभिः कुडवैः प्रस्थः', प्रोच्यते हि महीतले // 1488 // माढक' श्चतुभिः प्रस्थः, द्रोण' श्चतुभि राढकैः / खारी' षोडशभि ोणे, मन्यते व महीतले // 1486 // चतुविशत्यङगुलानां, हस्तो' भवति मापने / चतुर्हस्तस्तु विज्ञेयो, दण्डो' मापन कमणि // 1460 // दण्डानान्तु द्विसहस्र, कोशो' गव्यूत' मुच्यताम् / गव्यूतं' गोरुतं गव्या, गव्यूति श्च द्विक्रोशकः // 1461 // योजनं' तु चतुष्क्रोशर, . .. मार्गमापन कर्मणि // 1462 // * पाशुपाल्यनाम * पाशुपाल्यं' जीववृत्ति:२, पशुपालन कर्मणि / ____गोपालकनामानि * गोपालन कार्यरतो, गवीश्वरो' गवेश्वरः // 1463 // ... गोमान् गोमी च गोधुक्' तु गोसङ्खयः श्च वल्लवः / प्राभोर श्चापि गोपालो', गोप श्चेति हि मन्यते // 1464 // प्रसिद्धो ऽधिकृतो गोषु, गोविन्दः' कथ्यते बुधः / जाबाल' स्त्वजजीविको, बर्करस्य च पालकः / / 1465 // .. Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 238 सुशीलनाममालायां * कृषिकनामानि * कर्षक:' कार्षक:२ क्षेत्रो, कृषिक: कृषको हली। कृषीबल: कुटुम्बी च, क्षेत्राजोवो ऽपि कथ्यते / / 1496 // * हलिनामानि * जित्या हलि' - नामाऽस्ति, महाहलं हि मन्यते / गोदारणं' हलं. सो.. स्तथा लघुश्च लाङ्गलम् / 1467 // ईषा' नाम तथेषा२ ऽपि, हलदण्डो हि कथ्यते / सीता' शीता च धे- हि, हलरेखा निगद्यते // 1498 // निरीशं' च निरीषं वै, कुटकं कूटकं पुनः'। हलदण्ड विना मात्रः, फालो यत्र च ध्रियते // 1466 // ॐ फालनामानि (r) कुशिक:' कृषक:२ फालः, फलं क्षेत्रविदारकम् / . वात्रं' तथा लवित्रं . तन्, मुष्टौ वष्ट' श्च मन्यते // 1500 / / मत्यं' ख्यातं कृषः कर्म-हलकृष्ट समीकृतौ। गोदारणं च कुद्दालः२, नित्रं' त्ववदारणम् // 1501 // . * प्रतोदनामानि के प्रतोद' स्तोदनं तोत्रं, प्रबयणं च प्राजनम्। पञ्चनामानि दैण्डस्य, येन सञ्चाल्यते वृषः // 1502 // Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्य विभागः 236 * योत्रनामानि * योत्र' ञ्च योक्त्र माऽऽबन्धः३, रज्जुचर्म-कृते भवेत् / * लोष्ठभेदननामानि * कोटीशः' कोटिश चैव, लोष्ठभेदन मत्र तु // 1503 // काष्ठस्य मुद्गरो नाम, कथ्यते लोष्ठभेदके / मेथि' मधि: खलेवाली, खलशङकु निगद्यते // 1504 // * शूद्रनामानि ॐ अन्त्यवर्ण' स्तथा शूद्रः२, पद्य 3 पजो जघन्यजः५ / वृषल श्चेति नामानि, शूद्रस्य संभवन्ति वै // 1505 // * विभिन्नशूद्रजातिनामानि * तेऽपि मूर्द्धावसिक्तादौरथकृन् मिश्रजातयः / क्षत्रियायां द्विजाज्जातो, मूर्धावसिक्त' उच्यते // 1506 // द्विजाद् वैश्यस्त्रियां जातो, ऽम्बष्ठी हि कथ्यते पुनः। पारशवो निषाद श्च, जातः शूद्र त्रियां द्विनात् // 1507 // क्षत्राद् वैश्यखियां जातो, माहिष्यो मन्यते स वै / उग्र इच कथ्यते क्षत्रा-दुत्पन्नो विखियां भुवि // 1508 // वैश्यात् शूद्रखियां जातो, करणः कथ्यते किल / पायोगवो ऽपि जातो वै, शूद्राद् वैश्यखियां पुनः // 1506 // Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 240 सुशोलनाममालायां क्षत्ता शूद्रात् प्रविज्ञेयो, जातो वै क्षत्रिय खियाम् / चण्डाल: कथ्यते शूद्राद्, जातो वै ब्राह्मण खियाम् // 1510 // मागधः१० क्षत्रियायां वै, वैश्याद् जातो हि मन्यते / पुनः वैदेहको' वैश्याद्, द्विजखियां हि कथ्यते // 1511 // सूत१२ स्तु क्षत्रियाज्जातः, द्विस्त्रियां हि मन्यते / इति च द्वादश भेदाः, कथ्यन्ते शूद्र कस्य वै // 1512 // माहिष्येण हि जातः स्यात्, करण्यां रथकारकः / * शिल्पिनामानि * शिल्पी' च प्रकृति:२ कारी, कारु' श्चेत्यपि कथ्यते // 1513 // शिल्पिनां समुदायो ऽपि, श्रेरिण' श्च मन्यते बुधः / * शिल्पनामानि * शिल्पं' कला व विज्ञानं, नाम शिल्पस्य कथ्यते // 1514 / / * मालाकारनामानि * मालाकारो' मालिकश्च 2, पुष्पाजीवो ऽपि मन्यते। * पुष्पलावीनाम * प्रोक्त नाम पुष्पलावी', पुष्पाणामवचायिनि // 1515 // Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्यविभागः 241 ॐ कल्यपालनामानि* गारिवास ' सुराजीवी२, कल्यपाल श्च शौण्डिक: / तथा पानवणिक् मण्ड-हारक श्चा ऽऽसुतोबलः // 1516 // कलालस्येति नामानि, प्रोक्तान्यथ ध्वजो ध्वजी। * मदिरानामानि ॐ सुरा' स्वादुरसा शुण्डा, परिस् त् च परित्र ता // 1517 // देवसृष्टा प्रसन्ना च, गन्धोत्तमा परिप्लुता / माझेकं० मदिरा, मद्यं२, मदिष्ठा' 3 मदना'४ ऽधिजा'५ // 1518 / / कल्यं कश्यं च माध्वीक'८, कापिशं१६ कापिशायनम्२० / / कादम्बरी 21 वारुणी२२ हाला२३, हारहूरं२४ हलिप्रिया' 5 // 1516 // इरा२ मधु२७ च मन्यन्ते, मद्यनामानि वै पुनः / ..., .. मध्वासवो' माधवको मधुमिश्रसुरा भवेत् // 1520 // मीरादेशसमुत्पन्ना, मैरेयः' शीधु' रासवः / जगलो' मेदक श्चैव, मद्यपङ्कः सुरा भिदः // 1521 / / किण्वं' कण्वं मद्यबोज', नग्नहु' श्चापि नग्नः / मद्यनिर्माण हेतूनां, बोजानां कथने भवेत् // 1522 // Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 242 सुशीलनाममालायां प्रासवो' ऽभिषवो मद्य-सन्धान माऽऽसुति श्च वै / प्रकसम्पादनः कार्यः, मद्यनिर्माणिका क्रिया // 1523 / / मन्यते मद्यमण्ड' श्च, कारोत्तम२ स्तथैव च / मद्यस्य स्वच्छभागो वै, पुनः मद्यतरोः भवेत् // 1524 // * मद्यपात्रनामानि * अनुतर्ष' श्च गल्वर्कः२, चषक: श्चानुतर्षणम् / कथ्यते सरक' श्चेति, मद्यपानस्य पात्रकम् / / 1525 // मद्यपानमपि प्रोक्त, सरक' चानुतर्षणम् / शूण्डा' पानमदस्थानं२, मद्यपानस्थलं भवेत् // 1526 / / मधुक्रमाः' मधुवाराः२, मद्यपानस्य पद्धतिः / सहपान' सपोति' श्च, सहपानक्रिया विधौ // 1527 // प्रापानं' पानगोष्ठिका', समूहमद्यपस्थलम् / उपदंशो' ऽवदश श्च, चक्षणं मद्यपाशनम् // 1528 // . भुङ्क्त मदिरया सार्द्ध, तस्मिन् खाद्ये च मन्यते / * स्वर्णकारनामानि * स्वर्णकार:' कलाद श्च, नाडिधम इच मुष्टिकः // 1526 // एतन्नामानि मन्यन्ते, स्वर्णकारस्य साक्षरैः / . . तैजसावर्तनी' मूषार, मूषायाः नाम वर्तते // 1530 // Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 243 तृतीयो मर्त्यविभागः चर्मप्रसेविका' भखारे, प्रोक्त श्चर्मप्रसेवकः / प्रास्फोटनो' वेधनिका', मौक्तिक छेदशस्त्रकम् // 1531 // निकष' स्तु कषः' शाणः२, कषपाषाण उच्यते / कङ्कमुख' श्च संदंशः२, संदंशस्य हि कथ्यते // 1532 // यन्त्रकं च भ्रमः२ कुन्दं', मद्यभ्रामकयन्त्रकम् / * मरिणकारनाम * प्रोक्तं नाममणिकारो', वैकटिकोरे ऽपि कथ्यते // 1533 // ___ के शौल्विकनाम के शौल्विक स्ताम्रकुट्टको', मन्यते शौल्विकस्य हि / ___ - * शाङ्खिकनाम के काम्बविक' श्च शाङ्खिकः२, कथ्यते शाङ्खिकस्य वै // 1534 // ___ * सौचिकनाम * सौचिक' स्तुन्नवायरे श्च, नामोक्त सोचिकस्य हि / . * कतरीनामानि * कर्तरी' कर्तरि श्चैवं, कृपाणी कल्पनी पुनः // 1535 // वस्त्रादि कर्तनं कतु, शक्त लोहकृतं भवेत् / Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 244 सुशीलनाममालायां * सूचीनामानि के सूची' सूचि 2 श्च सेवनी', वस्त्रं येन च सीव्यति / / 1536 / / * सूचिसूत्रनाम * पिप्पलकं' सूचिसूत्र, सूचिसूत्रस्य नाम वै / * कर्त्तनसाधन नाम के कर्तनसाधनं' त'२, स च त्रागो हि कथ्यते // 1537 // * पिञ्जननामानि है तुलस्फोटनकार्मुक', विहननं च पिञ्जनम् / एतन्नामानि कथ्यन्ते, यन्त्रके पिञ्जनस्य वै / / 1538 / / * सीवन नामानि * सोवनं' सेवनं स्यूतिः, सूचीकारस्य कर्माण / * स्यूतनाम * स्यूतः' प्रसेवक 2 श्चैव, स्यूतं वस्त्रादि कथ्यते / / 1539 / / * तन्तुवायनामानि * तन्तुवायः' कुविन्द इच, तन्त्रवायो ऽपि मन्यते / / असरः सूत्रवेष्टनं२, वानस्य साधनं भवेत् // 1540 // Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्यविभागः 245 व्यूति' वाणि' स्तथा वानं, चेति वानस्य कथ्यते / वानदण्डो' वापदण्डो, वेमो वेमा च मन्यते // 1541 // सूत्राणि' तन्तवश्चैव, सूत्रसंज्ञा द्वयं भवेत् / * रजकनामानि * निर्णेजक' ३च धावको, रजको वखशुद्धिकृत् // 1542 // * चमेकारनामानि * धर्मकृत्' पादुकाकृत् च, कथ्यते चर्मकारकः / * पादुकानामानि * उपानत्' पादपीठो 2 च, पादवीथी' पदत्वरा // 1543 // पादरथी' च पन्नद्धा', पादुका पादरक्षणम् / पेशी प्राणहिता'• पादू:'', पदायता'२ पदायिका१३ // 1544 // .. पादत्राणं१४ च कथ्यन्ते, नामानि पादजधु१५ च / ॐ पादुकाविशेषनाम * पुन श्चाऽनुपक्षीना' ऽबद्धा, ऽनुपदं मन्यते बुधैः // 1545 // * बरत्रानामानि * नद्बो' वद्धी वरत्रा' च, चर्मकृत् पादु सूत्रकम् / .....: Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ..........................." 246 सुशीलनाममालायां * पारानामानि # धर्मछिच्छखमाऽऽरा' स्यात्, तथा चर्मप्रभेदिका // 1546 / / धर्मसीवनी सैवास्ति, येन चर्मादि छिद्यते / * कुम्भकारनामानि * दण्डभृत्' कुम्भकार' श्च, कुलाल श्चक्रजीवकः // 1547 // * शस्त्रघर्षकनामानि , शखमा|' भ्रमासक्त:२, शाणाजीवो ऽसिधावकः / के तैलिकनामानि, चाक्रिक' स्तैलिक स्तैली, तिलंतुब श्च धूसर:५ // 1548 / / * खलनाम * पिण्याक' श्च खलो' नाम, तिलादि नामसार भाक् / * रथकारनामानि * रथकृत्' रथकार श्च, तक्षा त्वष्टा च बर्द्धकिः // 1546 // काष्ठतट्' रथपति श्चेति, सर्व नामानि वर्द्धकेः / प्रामतक्षः पुनः नाम, ग्रामायत्तो हि मन्यते // 1550 // . Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्य विभागः 247 कथ्यते कौटतक्षो' पि, स्वतन्त्रो वर्द्धकिः पुनः / ___ के वासीनामानि के तक्षणी' वृक्षभिद् वासी, तस्यास्त्रं येन छिद्यते / / 1551 / / * कचनाम कचं' करपत्रक, काष्ठादे स्तु विदारके। * उद्धननाम * निक्षिप्य तक्ष्यते काष्ठं, यत्र काष्ठे स उद्धनः' // 1552 // * वृक्षादन नाम 8 वृक्षभेदी' वृक्षादनः', स्थात् कुठारस्य नाम वै / * टङ्कनाम * पाषाणत्रोटकं वस्तु, टङ्कः' पाषाणदारकः // 1553 // ___ * लोहकारनामानि ? कर्मारो' लोहकार श्च, व्योकारो' लोहकर्मकृत् / * अयोधननाम * कूट' मज्योधनो नाम, लोहमुद्गरकस्य वै // 1554 // Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनामालायां * प्रश्चननाम * .. व्रश्चनः' पत्रपरशु,२ नामोक्त व्रश्चनस्य वै। . * तूलिकानामानि ॐ काष्ठ-लौह शालाकास्या दोषीका' तूलिके-षिका? // 1555 // ॐ कान्दविकनाम * कथ्यते भक्ष्यकारो' हि, कान्दविको बुधैर्जनः / (r) कन्दुनाम * कन्दुः' स्वेदनिका चैव, लौहभाजन मुच्यते // 1556 // ___* चित्रकारनामानि 8 तौलिकिको' रङ्गाजीव चित्रकार चित्रकृत् नामान्येतानि कथ्यन्ते. चित्रकारस्य कोविदः // 1557 / / * कूचिकानाम * कूचिका' तूलिका चैवं, चित्रकारस्य साधनम् / * चित्रनाम * मालेल्यं चापि चित्रं वै, चित्रस्य नाम मन्यते // 1558 / / Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मय॑विभागा 246 * लेपकनामानि * लेप्यकृत् लेपको नाम, पलगण्डो' ऽपि कथ्यते / * पुस्तनाम 8 लेप्यादि कर्म पुस्तं' स्यात्, खेलनार्थं मुदां कृतम् // 1556 / / * नापितनामानि * नापितो' ऽन्तावसायी च, भण्डियाह' श्च भाण्डिकः / भण्डिवाही दिवाकोतिः, ग्रामणी' श्रण्डिलः पुनः // 1560 // क्षुरी च क्षुरमर्दो' च, क्षौरिको'' मुण्डक 12 स्तथा / नामान्येतानि कथ्यन्ते, नापितस्य हि पण्डितैः // 1561 // मुण्डननामानि 8 मुण्डनं' वपनं क्षौरं, भद्राकरण मित्यपि / परिवापरणं संप्रोक्त, केशच्छेदन कर्मणि // 1562 / / .. ॐ नाराचीनाम * नाराची' चषणी नाम, व्रणशोधकशस्त्रके। ॐ देवलनाम * देवाजीयो', देवलश्चर, कथ्यते देवपूजकः // 1563 / / Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 250 सुशीलनाममालाया * मादंङ्गिक नाम * मौरजिको' मार्दङ्गिकर, श्चोक्तो मृदङ्गवादकः / - ॐ वैणिकनाम * धोरणायाः बादकः प्रोक्तो, वीणावाद च वैरिणक: // 1564 // * वांशिकनामानि * वणविक' श्च वेणुध्मो, वांशिको वेणुवादकः / ___* पाणिवादकनाम है तालं ददाति हस्ताभ्यां, पारिणघः' पारिणवादक:२ // 1565 / / * इन्द्रजालिकनाम * स्यात् प्रातिहारिको माया-कार श्चेवेन्द्रजालिकः / * मायानाम * इन्द्रजालादि विद्याया, नाम माया' च शाम्बरी२ // 1566 / / ॐ इन्द्रजालनामानि * इन्द्रजालं' तथा जालं', कुहकं कुहुकं पुनः। . कुसृति' श्चेति नामानि, कथ्यन्ते कुहुकस्य वै // 1567 // Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्य विभागः 251 ॐ कौतुकनामानि ॐ कौतूहलं' च कौतुकं२, कुतुक ञ्च कुतूहलम् / विनोद' श्चेति नामानि, कथ्यन्ते कौतुकस्य वै // 1568 // * व्याधनामानि * व्याधो' मृगवधाजीवी, मृगयु' लुब्धकः पुनः। नामान्येतानि चत्वारि, मन्यन्ते लुब्धकस्य वै // 1566 // * पापद्धिनामानि * प्राच्छोदनं' तथाऽऽखेटो, मृगव्यं मृगया' पुनः / .. पापद्धि' श्चेति नामानि, कथ्यन्ते पण्डित जनैः // 1570 // ___ * जालिकनाम * वागुरिक' श्च जालिको, जालेन मृगहन्तरि / * मृगजालिकानाम * वागुरा' मृगजालिका, मृगजालस्य नाम स्यात् // 1571 / / * रज्जुनामानि * गुणो' रज्जु स्तथा शुम्बं', शुल्वं वटारको वटी' / . तन्त्री तन्त्रि* श्च नामानि, मन्यन्ते रज्जु वस्तुनः // 1572 // Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 252 . सुशोलनाममालायां * कैवर्तनामानि * कैवतॊ धीवरो' दाशो', मत्स्यग्राही भवेत् पुनः / . * मत्स्यवेधननामानि * घडिशं' बडिश चैव, मत्स्यवेधन मित्यपि // 1573 / / मत्स्यवेधक लौहास्त्रं, कथ्यतेऽत्र सदा जनैः / * मत्स्यजालनाम मानायो' मत्स्यजाल' ञ्च, मत्स्यानां ग्राहको भवेत् // 1574 / / * मत्स्यबन्धनीनाम * गृहीत मत्स्यपात्रन्तु, कुवेणी' मत्स्यबन्धनी / ॐ शाकुनिकनाम * पक्षिणा घातकः प्रोक्तः शाकुनिको' जोवान्तकः // 1575 / / ॐ मांसिकनामानि * कौटिकः' खट्टिक श्चैव, वैतंसिक श्च मासिकः / सौनिक' श्चेति नामानि, मन्यन्ते मासिकस्य वै // 1576 / / . सना' पशुवधस्थानं, पशुबन्धनसाधनम् / / वीतंस' श्च वितंसो' वै, कथ्यते विबुधै रिह // 1577 / / Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयो मर्त्य विभाग: 253 ॐ पाशनाम 8 पाशो' बन्धनग्रन्थिरे श्च, मृगादिबन्धसाधनम् / * अवटनाम * प्रवटह्यवपात' श्च, मृगादि पातखातकम् // 1578 / / * कूटयन्त्रनाम * उन्माथः कूटयन्त्रं च पाशयन्त्रं पुन: खलु / नामान्येतानि कथ्यन्ते, पश्वादेग्रहणे सदा // 1576 / / ॐ नीचनामानि 8 इतरः' पामरो नीचः, प्राकृत श्च पृथग्जनः / विवर्णो बर्बर * श्चेति, नामानि विलसन्ति वै // 1580 / / __* चण्डोलनामानि * चण्डाल' श्चैव चाण्डाल:२, श्वपच: पुक्कस: प्लवः / पुष्कसो' बुक्कस श्चापि, निषाद' श्च जनङ्गमः // 1581 // मातङ्गो ऽन्तावसायी'' वै, दिवाकीति:१२ पुनः किल / अन्तेवासी'3 ति नामानि, मन्यन्ते पण्डितै जनैः // 1582 // ___ डोम्ब' च श्वपचो' नाम, डोम्बजाते हि कथ्यते / बुक्कसो' मृतपः२ प्रोक्तः श्मशानकार्यकारकः // 1583 // Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 254 सुशीलनाममालाया * म्लेच्छ जातिनामानि * .. मालाः' भिल्ला: पुलिन्दा श्च, किराता: वकटा: भटाः / शबरा: नाहला: निष्ट्या, श्चेत्युक्ता म्लेच्छजातयः॥१५८४।। इति श्रीतपोगच्छाधिपति - सूरिचक्रचक्रवत्तिः - भारतीयभव्यविभूतिचिरंतनयुगप्रधानकल्प-सर्वतन्त्रस्वतन्त्र-श्रीकदम्बगिरि प्रमुखानेक- प्राचीन तीर्थोद्धारक-पञ्चप्रस्थानमयसूरिमन्त्रसमाराधक-शासन-सम्राट - जगद्गुरुभट्टारकाचार्य महाराजाधिराज - श्रीमद्विजय - नेमिसूरीश्वर - सुप्रसिद्ध पट्टालङ्कार - व्याकरणवाचस्पति-शास्त्र-विशारद कविरत्न-साहित्यसम्राटसाधिकसप्तलक्षश्लोक प्रमाण नूतन संस्कृत साहित्यसर्जक * परमशासन प्रभावकाचार्य देवेश - भीमद्विजयलावण्यसूरीश्वर- पट्टधर-व्याकरणरत्नशास्त्रविशारद-कविदिवाकर-देशनादक्ष - शासनप्रभावकाचार्यदेव - श्रीमद् / विजयदक्षसूरीश्वर * पट्टधर-साहित्यरत्न-शास्त्रविशारद-कविभूषण-पञ्चप्रस्थानमयसूरिमन्त्रसमाराधक-शासनप्रभावकाचार्य श्रीमद् विजयसुशील सूरिणा विरचितायां सुशीलनाममालायां तृतीयो मर्त्य विभागः समाप्त / / 3 / / Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थस्तिर्यगविभागः // चतुर्थस्तिर्यविभागः // तत्र * पृथ्वोकायनामानि * विश्वा' विश्वम्भरा भूमि, वसुमती वसुन्धरा / उर्वी' धात्री धरित्रीच, धरणी धरणि धरा'' // 1585 // स्थिरा१२ क्षमा 3 च क्षमा१४ क्षान्ता 5, क्षोणी१६ क्षोणिः१७ क्षिति१८ महो / मेदिनी२० पृथिवी२१ पृथ्वो२२, . काश्यपी२३ कु.२४ श्च केलिनी२५ // 1586 // भूतधात्री२६ घनश्रेणी२७, मौलि२८ मेद्रिकणिका२६ / मध्यलोका महांकान्ता,रत्नगर्भाउ२ऽचला33रसा३४ // 1587 // सागरमेखला३५ ज्या३६ वै, वसुधा सागराम्बरा 8 / समुद्रवसना३६ भू० श्च, समुद्ररशना 1 तथा // 1588 // गोत्रा 2 सागरनेमी 3 च, गोत्रकीला 4 जगद्वहा५ / प्रवनि४६ श्चावनो४७ गो४८, . गौ:४६ बीजसूः५० रत्नसू' स्तथा // 1586 / / रत्नवती 2 महास्थाली५३, जगती५४ चाम्बरस्थली५५ / विपुला५६ पर्वताधारा५७ गन्धमाता५८ च देहिनी 56 // 1560 // Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 256 सुशीलनाममालायां इला० समुद्रकाञ्चि' श्चा, ऽनन्ता 2 सर्वसहा 63 तथा / नामान्येतानि सर्वारिण, कथ्यन्ते विबुधैः क्षितेः // 1561 // * स्वर्गभूम्यो मानि * द्यावापृथिव्यौ' रोदस्यौ, द्यावाभूमी' च रोदसी / . तथा दिवस्पृथिव्यौ वै, द्यावाक्षमे च रोदसी // 1562 // दिवः पृथिव्यौ नामापि, स्वर्गभूम्यो हि कथ्यते / * भूविशेषनामानि * . उर्वरा' सर्वसस्या क्ष्मा, विश्वे हि मन्यते जनः // 1563 // .. इरिणं' चोषरं नाम, प्रोक्त मूषरभूषु वै। स्थल' स्थली२ च सा भूमि, जलं यत्र न तिष्ठति // 1564 // स्थला' कृत्रिमभूमिः स्यात्, मरु' र्धन्वा जलं विना। अप्रहतं' खिलं२ क्षेत्रं, कृतं यत्र न कर्षणम् // 1565 // * मृत्तिकानामानि * मृद्' मृत्तिका च सामान्या, क्षारा भूमि रुषः स्मृतः / मृत्सा' मृत्स्ना च सा ख्याता यत्र मृच्छोभना भवेत् // 1566 // __* लवरगनामानि * रुमा' लवरणखानिः२ स्यात्, सामुद्रं लवणं पुनः / वशिरो ऽक्षीव' माख्यातं, सामुद्रे लवणे सदा // 1597 // Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थस्तिर्यविभागः 257 * सैन्धवनामानि ॐ सैन्धवं' माणिबन्धं च, माणिमन्थं च सिन्धुजम् / माणिमन्त' तथा शीत-शिवं चोक्त नदीभवम् // 1598 // ॐ वसुकलवणनामानि ॐ रोमक' ञ्च रुमाभवं', वसूक' वसुकं वसु' / * विडलवणनामानि * . पाक्यं' विडं२ बिडं 3 पक्व लवणं कृत्रिमं भवेत् // 1566 // * सौवर्चलनामानि * सौवर्चले' ऽक्ष दुर्गन्धं 2, रुचक ञ्च शूलनाशनम् / प्रोक्तं तु तिलकं' नाम, निर्गन्धं कृष्णवर्णकम् // 1600 // * यवक्षारनामानि के यवाग्रजो' यवक्षार:२, पाक्य 3 श्च यवनालजः / नामान्येतानि मन्यन्ते, यवक्षारस्य साक्षरः // 1601 // .. . * टङ्कणनामानि * टङ्कण' स्टङ्कनो' लोह-श्लेषणो रसशोधनः / मालतीतीरज' श्चैव, प्रोक्तः पाचनकः पुनः // 1602 // Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 258 सुशीलनाममालायां * स्वजिकाक्षारनामानि * . कापोत:' स्वजिकाक्षार:२, सृजिकाक्षार' इत्यपि / सुखवर्चक ३च लोके, साजो सज्जीति वा भवेत् // 1603 // * स्वजिकानामानि के स्वजिका' स्वजि. श्च स्रग्घ्नो, योगवाही सुचिका / लवणस्यैव भेदाः स्यु, गुण रूप विभागतः // 1604 // * भरतादिक्षेत्रनामानि * *भरता' न्यैरावतानि२, विदेहा श्च विना कुरून् / क्षेत्राणि कर्मभूम्यः' स्युः, पञ्चदशैव नामतः // 1605 // शेषाणि सर्ववर्षाणि, मन्यन्ते फलभूमयः' / तन्नामानि कथ्यन्ते, त्रिंश संख्यानि चात्र हि // 1606 // हैमवतानि पञ्च स्युः, हरिवर्षाणि पञ्च च / रम्यकायपि पञ्चैव, हैरण्यवतान्येव हि // 1607 // देवकुरववर्षारिण, पञ्च संख्यानि तानि वै / उत्तरकुरव श्चापि पञ्च,-संख्यकाः सन्ति नामतः // 1608 // * 'पञ्च भरतक्षेत्राणि' यथा'जम्बूद्वीपे भरतक्षेत्रमेकमेव, पातकीखण्डे भरतक्षेत्रं द्वयमेव पुष्कर- ... वरद्वीपाऽपि च भरतक्षेत्र द्वयमेव वसंते / Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थस्तिर्यविभागः 256 * देशनामानि* वर्ष वर्षधराद्य, क्षेत्रसंज्ञा निगद्यते / देशो' जनपदो राष्ट्र, नीवृत् निर्ग' श्च मण्डलम् // 1606 // 'पञ्चैरावतक्षेत्राणि' यथाजम्बूद्वीपे ऐरावतक्षेत्रमेकमेव, धातकीखण्डे ऐरावतक्षेत्रं द्वयमेव, पुष्करवरद्वीपाऽपि चरावतक्षत्र द्वयमेव वर्तते / 'पञ्महाविदेहक्षेत्रारिण' यथाजम्बूद्वीपे महाविदेहक्षेत्र मेकमेव, धातकीखण्डे महाविदेहक्षेत्र द्वयमेव, पुष्करवरद्वीपार्धे ऽपि च महाविदेहक्षेत्रं द्वयमेव वर्तते / तानि सर्वाणि मिलित्वा पञ्चदश क्षेत्राणि कर्मभूम्यां वर्तन्ते // . 'पञ्च हैमवतक्षेत्राणि' 'यथाजम्बूद्वीपे हैमवतक्षेत्रमेकमेव, घातकोखण्डे हैमवतमेशं द्वयमेव, पुष्करवरद्वीपाऽपि च हैमवतक्षेत्रं द्वयमेव वर्तते। 'पञ्च हरिवर्षक्षेत्रारिण' यथाजम्बूद्वीपे हरिवर्षक्षेत्रमेकमेव, धातकीखण्डे हरिवर्षक्षेत्र द्वयमेव, पुष्करघरद्वीपाद्धेऽपि च हरिवर्षक्षेत्र द्वयमेव वर्तते। . 'पञ्च रम्यकक्षेत्राणि' तद्यथाजम्बूद्वीपे रम्यकक्षेत्रमेकमेव, धातकोखण्डे रम्यकक्षेत्र द्वयमेव, पुष्करवरद्वीपाद्धेऽपि च रम्यकक्षेत्र द्वयमेव वर्तते / Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 260 सुशीलनाममालायां तथोपावर्तनं चापि, विषय चोपवर्तनम् / .. नामान्येतानि मन्यन्ते, देशस्य विबुधै भुवि // 1610 / / पार्यावर्त' स्तथाऽऽचार-वेदी च पुण्यभूः पुनः / जिनचक्रय चक्रियां, जन्मभूमि हि मन्यते // 1611 // विन्ध्यहिमागयो मध्य-प्रदेशो कथ्यते स च / पूर्व-पिश्चमयोः सिन्धो, मध्यभागोऽपि मन्यते / / 1612 / / 'पञ्च हैरण्यवतक्षेत्राणि' यथाजम्बूद्वीपे हैरण्यवतक्षेत्रमेकमेव, धात कोखण्डे हैरण्यवतक्षेत्र द्वयमेव, पुष्करवरद्वीपाद्धऽपि च हैरण्यवतक्षेत्र द्वयमेव वर्तते / 'पञ्च देवकुरुक्षेत्रारिण' यथाजम्बूद्वीपे देवकुरुक्षेत्रमेकमेव, धातकोखण्डे देवकुरुक्षेत्र द्वयमेव, पुष्करवरद्वीपाद्धेऽपि च देवकुरुक्षेत्र द्वयमेव वर्तते / 'पञ्चोत्तर कुरुक्षेत्रारिण' यथाजम्बूद्वीपे उत्तरकुरुक्षेत्र मेकमेव, धातकीखण्डे उत्तर कुरुक्षेत्र द्वयमेव, पुष्करबरद्वीपाद्धऽपि च उत्तरकुरुक्षेत्र द्वयमेव वर्तते / तानि मिलित्वा विशवक्षेत्राणि वर्तन्तेऽकर्मकभूम्याम् / तत्र युगलिक. मनुष्याः निक्सन्ति // [इति जिनागमेऽपिकथितम्] Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थस्तिर्यविभागः 261 प्रयागाद् हरद्वारान्त-गङ्गायमुनयोः खलु / प्रोक्तमध्यप्रदेशं तद्, चाऽन्तर्वेदि:' समस्थली // 1613 // ब्रह्मावत' इदं नाम, प्रख्यातं सर्वदा किल / सरस्वत्या दृषद्वत्या, मध्यभागे बुध रिह // 1614 // विख्यातो ब्रह्मवेदि' स्तु, पश्वरामहृदस्य वै / मध्यभागो कुरुक्षेत्रे भूगोलस्य कोविदः // 1615 // धर्मक्षेत्रं' प्रसिद्ध यत कुरुक्षेत्रं तदेव हि / निश्चितं कुरुक्षेत्रस्य, द्वादशयोजनावधि // 1616 // हिमवद् विन्ध्ययो मध्यं, यत् प्राग् विनशनादपि / प्रत्यगेव प्रयागा च्च, मध्यदेश:' स मध्यमः // 1617 // प्राच्यः प्रागदरिगणो देशो, नदो यावच्छरावतीम् / उदीच्यः' कथ्यते विजैः, देशो हि पश्चिमोत्तरः // 1618 // प्रोक्तो म्लेच्छस्य देशो हि, प्रत्यन्तो' म्लेच्छमण्डलः / श्वेतमृत्तिकवान् देशः, पाण्डुमृत्तिक' उच्यते // 1616 // . पाण्डुभूम:२ स एवास्ति. देशोऽयं शुभदः सदा। . . .. उदगभूम' च प्रख्यात, उदङ्मृत्तिक उच्यते // 1620 // कृष्णभूमिवान् देशः, कृष्णमृत्तिक' उच्यते। कृष्णभूमः स एवात्र, कथ्यते कोविदैः किल // 1621 // Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 262 सुशीलनाममालायां मङ्गलो' जाङ्गलो देशो, जलं विना च निर्जल: / .. अनूप' श्चाऽम्बुमान् देशः, स स्याद् यत्र जलं बहु // 1622 // प्रोक्तः पुनः जलप्राय, -देशः कच्छो'ऽपि तद्विधः / कुमुद्वान् ' कुमुदावासः२, कुमुद्वान् देश उच्यते // 1623 // प्रदेशो बहु वेतस्वान्, वेतस्वान्' भूरिवेतसः। नड्वान् ' तु नडकीय इच, नडप्राय 3 श्च नड्वलः // 1624 / / नलर्तृणाधिके देशे, सर्वमेतत्प्रयुज्यते / शाड्वलः' शादल' श्चैव, शादहरित' इत्यपि // 1625 // हरिततृणवान् देशः प्रोक्तः प्रायेज्ञा पण्डितः / नद्यम्बुजीवनो' देशो, नदीमातृक इत्यपि // 1626 // वर्षाभि र्जीवनं यत्र, स देशो देवमातृक:' / तत्रैवार्थे बुधरत्र, वृष्टिजीवन' उच्यते // 1627 // प्रदेशः कामरूपाः वै, तथा प्राग्ज्योतिषाः पुनः। अवन्तयश्च विख्याताः, मालवा: अपिसर्वतः / / 1628 / / पुरा:' डाहला' श्चंद्याः, चेदयः पूर्वभारते। बङ्गा' श्च हरिकेलियाः२, प्रोक्ता बङ्गाल नामनि // 1626 // . चम्पोपलक्षिता अङ्गाः', ऊक्ता बिहारदेशके / साल्वा' च कारकुक्षीयाः२, साल्वदेशे हि कथ्यते // 1630 // Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थस्तिर्यविभागः 263 मरुदेशाः हिं विजेयाः, मरव' श्च दशेरका: / जालन्धरा' स्त्रिगर्ताः स्युः, लाहोरस्यैक देशकाः // 1631 // तायिका' स्जिका:२ देशा, स्जिकस्य समीपतः / सारस्वता' च कश्मीराः२, विणिका' श्च नाम वै // 1632 // माधुमता: पुनर्नाम, काश्मीरस्य चतुष्टयम् / टक्का' स्तथैव वाहोकाः२, प्रोक्ता वाहीक देशकाः // 1633 // वाह्रोका' वाह्निका ख्याता, अरबस्तानदेशकाः / तुरुष्काः' साखय' श्चोक्ता, तुर्कस्तानप्रदेशकाः // 1634 // वृहद्गृहा' श्च कारूषा, उक्ता कारूषदेशकाः / लम्पाका' श्च मुरुण्डा: हि, लम्पाकदेशकाः सदा // 1635 // कुमालका' श्च सौधोराः', प्रोक्ता सौवीरदेशकाः / प्रत्यग्रथा' अहिच्छत्रा, श्चा अहिच्छत्रप्रदेशकाः // 1636 // कोकटा:' मगधाः प्रोक्ता, ज्याता मगधदेशकाः / प्रोण्डा'श्च केरला उक्ता, देश केरल नामनि: // 1637 // नामस्यात् कुन्तलेदेशे, कुन्तला' उपहालका: / एतानि देशनामानि, बहुवचने प्रयुञ्जते // 1638 // * ग्रामनामानि * ग्रामः' संवसथ श्चापि, स्यात् प्रतिवसथ स्तथा। पर्यपव सथौ४.५ प्रोक्तो, निवसथ श्च निगद्यते // 1636 // Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 264 सुशीलनाममालायां 8 पाटकनाम * ग्रामस्यार्द्धविभागो वै, पाटकः कथ्यते जनः / * सीमानामानि ॐ प्राघाटो' ऽन्तो ऽवसानं च, मर्यादा चाऽवधि' घट: // 1640 // सीमा सीमा च नामानि, मन्यते पण्डितोजनः / ख्याता ग्रामस्य मर्यादा, ग्रामसीमा जनै सदा // 1641 // उपशल्यं 2 पदं चापि- तस्यैवार्थस्यवाचकम् / . माल' च मालकं प्रोक्त, ग्राममध्यस्थितं वनम् // 1642 // परिसरः' पर्यन्तभूः२, ग्रामान्तस्थल मुच्यते / कर्मान्तः' कर्मभूः२ शब्दऽकृष्टक्षेत्रस्य नाम वै // 1643 // ___ * गोष्ठनाम के गोस्थानं' स्यात् तथा गोष्ठ, गोष्ठीनं' भूतपूर्वकम् / पाशितंगवीनं प्रोक्तं, गावो यत्राशिताः पुरा // 1644 // ॐ क्षेत्रनामानि * क्षेत्रं वप्र श्च केदार३, श्चोक्त क्षेत्रस्य नाम वै। * सेतुनामानि (r) प्रालि' चाली तथा पालिः, पाली सेतुश्च संवरः // 1645 // Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थस्तिर्यविभागः 265 * विशेषक्षत्रनामानि * विज्ञेयं शाकशाकिनं', शाकशाकट मित्यपि / उत्पाद्यन्ते यत्र शाका स्तस्य नाम द्वयमिदम् // 1646 // वहेयं चापि शालेयं२, कथ्यते व्रीहिक्षेत्रकम् / षष्टिक्यं' षष्टिकस्य, क्षेत्रमेव हि मन्यते // 1647 // प्रख्यातं क्रौद्रवीणं' तद्, क्रोद्रवक्षेत्रमेवतु / मौद्गोनं' चापि क्षेत्रं, मुद्गस्य मन्यते खलु // 1648 / / प्रणव्यं' चाऽऽणवीनं च चीनकस्य हि क्षेत्रकन् / पुनः भङ्गय च भाङ्गीनं२, क्षेत्रं शणस्य कथ्यते // 1646 // प्रोमीनं' चोक्त मुम्यं वै, क्षुमायाः क्षेत्रकं भुवि / यवक्यं चैव यव्यं तत्, क्षेत्रं यवस्य मन्यते // 1650 // तैलीनं' चापि तिल्यं तत्, क्षेत्रं तिलस्य कथ्यते / माषीणं चैव माध्यं तस्, क्षेत्रं माषस्य मन्यते // 1651 // कष्टुं योग्यं क्षेत्रमस्ति, सोत्यं' हल' ञ्च नामतः / त्रिहल्यं चापि त्रिप्तोत्यं२, तदेव त्रिगुणाकृतम् // 1652 // तृतीयाकृतं तत्क्षेत्रे, त्रि:कृते हलकर्षणे। द्विगुणाकृतं द्विहल्यं, शम्वाकृतं सम्बाकृतम् // 1653 // द्वितीयाकृत' द्विसीत्यं', द्विवार यत्र कर्षणम् / उप्तकृष्टं' बीजाकृत, यत्राद्यवप्य कर्षणम् // 1654 // Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 266 सुशोलनाममालाया द्रौणिको' द्वोणवापर श्च, यत्र द्रोणमित वपेत् / द्रौरिणका' ऽऽढकिका' नाम, पात्रस्यापि भवेत् पुनः // 1655 // द्वितीयं नाम विद्वद्भि, राढकवापर उच्यते। खारीक स्तस्य नामास्ति, यत्र खारीमितं वपेत // 1656 / / खलधान' खलं' नाम, यत्र धान्यादि चूर्ण्यते / * धूलीनामानि * , चूर्ण' क्षोद श्च नामापि, चूर्णे रजसि कथ्यते // 1657 // धूलि' धूलो रजो रेणु, पांशुः पांशु' श्च मन्यते / के लेष्टुनामानि * लोष्टो'लोष्टुरेश्च लेणुश्च, दली दलिश्च मृद्घनः // 1658 // __ॐ वल्मीकनामानि * वल्मीको' वामलूर' श्च, नाकु' श्च कृमिपर्वतः / शक्रशीरो' वम्रीकूटः, षड् नामानि भवन्ति वै // 1656 // के नगरनामानि के पुरी' पुरि इच पू. इचवं, पट्टनं पुटभेदनम्। अधिष्ठानं पत्तनञ्च , निवेश' श्च निवेशनम् // 1660 // Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थस्तिर्यविभाग: 267 उद्रगो' निगमो''द्रङ्गः१२, स्थानीयं 3 नगरी१४ पुनः / - नामान्येतानि मन्यन्ते, पण्डित नगरस्य वै // 1661 // * नगरभेद: * स्थानीयं' नाम तस्यास्ति, वह्वायत ञ्च यत् पुरम् / द्रोणमुखं कर्वट ञ्च, स्थानीयात लघुयत् पुरम् / / 1662 / / कवुटिक' नाम तस्यास्ति, कर्वटाद्धं यदायतम् / विज्ञेयं कार्वर्ट' यच्च कवुटिकार्द्धकं पुनः // 1663 / / कार्वटस्याद्ध तुल्यं, पत्तनं' पुटभेदनम् / निगमः' पत्तनाद्धं स्यात्, निगमार्द्ध निवेशनम्' / / 1664 / / द्रङ्गो' निवेश' उद्रङ्गः, पत्तनाच्छेष्ठ मुच्यते / शाखापुरं' चोपपुरं२, राजधानी पृथक् पुरम् // 1665 // पुरार्द्धभाग तुल्यं वै, खेट' नाम्ना प्रसिद्धयति / * राजधानीनाम है अथ वै राजधानी' च, स्कन्धावारो ऽपि कथ्यते // 1666 // * कोट्टनाम * दुर्ग' कोट्ट' श्च नामापि, दुर्गस्य मन्यते बुधैः / * गयानाम 8 गयनामक राजर्षेः, पुरं गया' प्रसिद्धचति // 1667 / / Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 268 सुशीलनाममालाया * कन्नोजनामानि * कन्याकुब्जं' तथा कौशं', कन्यकुब्ज कुशस्थलम् / गाधिपुरं' महोदयं, चेति कन्नोज उच्यते // 1668 // * काशीनामानि * काशी' काशिरे श्च प्रख्याता, वाराणसी वराणसी / शिवपुरी च नामानि, मन्यन्ते पण्डितै जनैः // 1669 / / * अयोध्यानामानि * अयोध्या' कोशला ख्याता, साकेत कोसला' च सा। ___* मिथिलानाम * ' 'प्रसिद्धा मिथिला' प्रोक्ता, विदेहारे ऽपि पुनश्च सा // 1670 // * त्रिपुरोनाम * . चेदीदेशस्य त्रिपुरी', स्याच चेदिनगरी पुनः / * कौशाम्बीनाम * वत्सदेशस्य कौशाम्बी', पुरी च वत्सपत्तनम् // 1671 / / * उज्जयनीनामानि 8 उज्जयनो' तथाऽवन्ती, पुन: पुष्पकरण्डिनी। .. विशाला' चेति नामानि, प्रसिद्धानि भुवस्तले // 1672 // . Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थस्तिर्यविभाग: 266 ॐ पाटलीपुत्रनाम * ख्यातं पाटलिपुत्रं' च, कुसुमपुर' मुच्यते / * चम्पापुरीनामानि * *कर्णपूः' मालिनी चम्पा, लोमपादपुरी च सा // 1673 // लोमपादपूः५ सैवास्ति, कर्णपुरोति' नामिका / * बाणपुरनामानि * देवोकोट:' कोटिवर्ष, शोणितपुर मित्यपि // 1674 // बाणासुरस्य पूः स्याच्च, बाणपुर मुमावनम् / के मथुरानामानि * मथुरा' मधुरा ख्याता, मधूपघ्नं च मन्यते // 1675 // ॐ हस्तिनापुरनामानि 8 प्रख्यातं हस्तिनापुरं', हस्तिनीपुर मित्यपि / हास्तिनपुरं प्रोक्त च, गजपुरं गजाह्वयम् // 1676 // *1. अधुना 'पटना' कथ्यते लोकः / *2. अधुना 'मागलपुरं' कथ्यते जनः / Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 270 सुशीलनाममालायां * तामलिप्तनामानि *. दामलिप्तं' तामलिप्तं, तामलिप्ती तमालिनी / स्तम्बपू स्तम्बपूरी' च, भवेद् विष्णुगृहं पुनः // 1677 / / * कुण्डिननपुरनामानि * विदर्भा' कुण्डिनापुरं२, कुण्डिनं कुण्डिनपुरम् / * द्वारकानामानि * .. प्रोक्ता तु द्वारका' द्वारा, वती द्वारवती पुरी // 1678 / / नगरी निषधा' ख्याता, ज्ञायते नलभूपतेः / * प्राकारनामानि (r) , प्राकारो' वरण: सालः, स्याद् दुर्ग परितः खलु // 1676 // वप्र' इचयोऽपि कोट्टस्य, मूलभूमौ निगद्यते / प्राकाराग्रं' कपिशोर्ष२, प्राकारोपरि क्रियते // 1680 // अट्ट चट्टालक:२ क्षौमम्', सालोपरि समस्थलम् / सैन्यगृहं कोट्टोपरि, प्रोक्त तूपरिमालके // 1681 // * नगरद्वारनाम * पूरिं' गोपुरं चेति, नगरद्वारमुच्यते / * रथ्यानामानि ॐ प्रतोलो' विशिखा रथ्या, रथ्यानाम त्रयमिदम् // 1682 // . . Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थस्तिर्यविभागः 271 * परिकूटनामानि * नगरद्वारकूट ' इच, नगरद्वारकूटक: / . परिकूट' हस्तिनख:२, पूर्धाराऽरोहरणस्थलम् // 1683 / / * मुखनाम * मुखं' निःसरणं प्रोक्त', गृहप्रवेशद्वारकम् / ॐ वाटनामानि * वाटो' वृत्ति श्च प्राचीन,-माऽवेष्टक श्च नाम वै // 1684 / / गृहस्य नगरस्यापि, क्रियते रक्षणाय यत् / * मार्गनामानि * पदविः' पदवी पद्या, पथः पन्था श्च पद्धतिः // 1685 // एकपदी च मार्गो ऽध्वा , वर्तनी वर्तनि:११ सृति:१२ / सरणिः१३ सरणी१४ वर्म१५, शरणी' निगम स्तथा॥१६८६॥ . अयनं 8 चेति नामानि, मार्गस्य संभवन्ति वै। / सत्पथनामानि * प्रतिपन्थाः' सुपन्था श्च, सत्पथः सुन्दरो भवेत् // 1687 / / * उन्मार्गनाम * अपन्थाः' श्चाऽपर्थ' नाम, भवेदुन्मार्ग एव हि / ....... Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 272 सुशीलनाममालायां * कुमार्गनामानि * कदध्वा' कापथं व्यध्वो', दुरध्वो विपथं पुनः / / 1688 / / प्रान्तरं' दूरशून्योऽध्वा, कान्तारो' दुर्गमः पथः / / सुरङ्गा' च सुरुङ्गा च, सन्धिला सन्धि रेव सः / / 1686 / / 8 चतुष्पथनामानि 8 चतुष्पथ' ञ्च संस्थानं२, चतुष्क' च भवेत् पुनः / / ॐ त्रिपथनाम * त्रिदिक्षु लग्नो मार्गस्तु, कथ्यते त्रिपथं' त्रिकम् / / 1660 // * . द्विपथनाम है। द्विपथं चारपथ' श्च, द्वि दिशोः प्रायकं पथम् / * राजमार्गनामानि * घण्टापथो' महापयः, श्रीपथो राजवर्त्म च // 1691 // संसरणं चाऽसंकुल, उपनिष्क्रमण मित्यपि / उपनिष्कर माख्यात, देशे राजविनिर्मितम् // 1692 // * विपरिणनामानि * विपणी' विपणि:२ पण्य-वीधी च पण्यवीथिका / ' णिग्मार्ग' श्च नामानि, कथ्यन्ते विपणेः किल // 1693 // Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थस्तिर्यविभागः 273 * स्थाननामानि * प्रास्पदं' स्यात् पदं स्थानं 3, सर्वसाधारणं स्थलम् / श्लेषस्त्रिमार्गाः शृङ्गाट', बहुमार्गी' च चत्वरम् / / 1664 // * श्मशाननामानि * श्मशान' करवीरं च, प्रेतवनं पितृवनम् / पितृगृहं तथा प्रेत-गृहं चेति प्रसिद्धकम् // 1665 // * गेहभूनाम * गृहनिर्माण योग्या भूः, गेहभू' वास्तु कथ्यते / ___ * गृहनामानि अगार' च गृहं गेहं, सदनं सद्म' मन्दिरम् // 1666 // पावसथ स्तथाऽऽवास८, प्रालय प्राश्रयः१० क्षयः / निवासो 2 वेश्म 3 निशान्त१४, निकाय्य 15. श्च निकेतनम् 6 // 1697 // स्थान'७ञ्च निलयो पस्त्यं 6 संस्त्याय:२० शरणं 'सभा२२। उदवसित२३ माऽऽवासो२४, भवनं२५ वसति२६ स्तथा // 1698 // प्रोक२७ श्च धाम२८ धाम२६ श्व, शाला3°कुलं 1 तथा कुट:३२ / नामान्येतानि कथ्यन्ते, गृहस्य साक्षरैः किल // 1666 // इष्टिका प्रस्तरैबद्धं, कुट्टिम' स्थलमुच्यते / सञ्जवनं' चतुःशालं२, चतुर्दिक्षु कृतं गृहम् // 1700 // Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 274 सुशीलनाममालायां राज्ञां गृहन्तु प्रख्यातं. सौधं वै नृपमन्दिरम् / उपकारिको'-पकार्या, चोपकर्याऽपि कथ्यते // 1701 // * विभिन्नगृहाणांनामानि (r) सोधान्त: प्रवेशाय, सिंहद्वारं' प्रवेशनम्। . प्रसादन' व प्रासाद, धामोक्त देव-भूपयोः / / 1702 / / हयं' स्याद् धनिनां गेहं, मठ' पावसथ स्तथा / पावसथ्यं भवेन्नाम, छात्राणां वतिनाञ्च वा / / 1703 / / पर्णशाला' पर्णशाल२, -मुटजो घास निर्मित / लोकेऽपिपर्णकुटोर, नामापि मन्यते पुनः // 1704 / / * जिनमन्दिरनामानि ॐ जिनसद्मा विहार' श्चं, चैत्य मायतनं पुनः / जिनालयं च प्रख्यातं, जिनमन्दिर मुच्यते // 1705 / / * गर्भागारनामानि * अपवरक' श्च वासौक:२, पुन श्च शयनास्पदम् / गर्भागारं च नामानि, मन्यन्ते पण्डित रिह // 1706 // * भाण्डागारनाम * भाण्डागार' ञ्च कोशोऽपि, द्रव्यं रक्षति तद् भवेत् / Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थस्तिर्यविभागः ___275 275 * शिरोगृहनाम * सौधादे रुर्व भागः स्याद्, चन्द्रशाला' शिरोगृहम् // 1707 // * कुप्यशालानाम * सन्धानी' कुप्यशाला' च, भाण्डपात्रादि कार्य भूः / * तृणोकनाम * तृणौकः' कायमान ञ्च, काष्ठवंशादि निर्मितः // 1708 // * * होत्रीयनाम * होमादि कार्य हेत्वर्थ, होत्रीय' च हविर्गृहम् / होत्रीयस्याग्रभागे तु, प्राग्वंशः' क्रियते गृहम् // 1706 // * शान्तिगृहनामानि * प्राथर्वणं' तथा शान्ती-गृह' शान्तिगृहं पनः / यज्ञस्थलसमीपस्य, शान्तिगेहं हि नाम स्यात् // 1710 // . * प्रास्थानगृहनाम * प्रास्थानगृह' मिन्द्रकं 2, सभागृहस्य नाम स्यात् / .* तैलिशालानामानि * तैलिशाला' तैलिशालं', यन्त्रगृहं निगद्यताम् // 1711 // . Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 276 सुशीलनाममालायां * सूतिकागृहनाम के पुत्रादि प्रसव स्थान- मऽरिष्टं सूतिकागृहम् 2 / * महानसनामानि ॐ रसवतो' पाकस्थानं२, सूदशाला महानसम् // 1712 // * हस्तिशालानामानि * चतुरं' हस्तिशालं२ च, हस्तिशाला' ऽपि कथ्यते / ॐ अश्वशालानामानि ॐ वाजीशाला' ऽश्वशाला' स्याद्, वाजीशालं च,मन्दुरा // 1713 // ॐ गोशालानाम * सन्दानिनी' च गोशाला', यत्र गावो वसन्ति सा। * चित्रशालानामानि * जालिनी' चित्रशालं च, चित्रशाला ऽपि कथ्यते // 1714 // * कुम्भशाला नामानि है कुम्भशाला' कुम्भशालं', प्रोक्त पाकपुटी पुनः। . * तन्तुशालानामानि (r).. तन्तुशाला' तन्तुशालं', गत्तिका वनकार्यभूः // 1715 / / Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थस्तियंगविभागः 277 * नापितशाला 8 शिल्पा' नापितशाला' च, नापितशाल मुच्यताम् / वपनी खरकुटी' च, केशानां वपनस्थले // 1716 // * शिल्पशाला * प्रावेशनं शिल्पशाला, शिल्पिशाला ऽपि कथ्यते / * सत्रशाला के सत्रशाला' सत्रशालं', प्रतिश्रय श्च मन्यते // 1717 // ॐ पाश्रमनाम * प्राश्रम' श्च मुनिस्थान -माश्रमस्य हि नाम वै। * अन्तिकाश्रयनाम * उपघ्न' श्चाऽन्तिकाश्रयः२, समीपाश्रयवान् भवेत् // 1718 // * पानीयशालानामानि ॐ प्रपा' पानीयशाला' च, पानीयशाल मुच्यते / .... मदिरागृहनाम * मद्यपानगृहं प्रोक्त, गजा' च मदिरागृहम् // 1719 // Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 278 . सुशीलनाममालायां * शबरावासनाम ॐ पक्वणः१ शबरावासो', भिल्लानां स्थल मुच्यते / ॐ आभीरपल्लिकानाम है प्राभीराणां स्थलं प्रोक्त, घोष' श्चाऽऽभीरपल्लिका // 1720 // . * पण्यशालानामानि 8 निषद्या' पण्यशाला च, विपणी विपरिण' स्तथा। प्रापण: पण्यशालं' च, हट्टो भट्टः कथ्यते पुनः // 1721 // * वेश्याश्रयनामानि * पुरं वेश्याश्रयो वेश्यो', वेश्यानां स्थल मुच्यते / * मण्डपनाम * मण्डप' च जनाश्रयः२, सन्मङ्गलगृहं भवेत् // 1722 // * भित्तिनाम के भित्तिः' कुड्य गृहापारे, चेडूक' तत्र कोकसम् / * वेदिकानामानि * वितः विदि श्चैव, वेदी वेदि श्च वेदिका // 1723 / / चतुष्कोणवती भूमिः, काष्ठसंस्कारिता हि सा। . Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थस्तिर्यविभागः 276 ___ॐ अङ्गणनामानि 8 चत्वरं' प्राङ्गणं प्रोक्त, चाऽङ्गणं पुनरङ्गनम् // 1724 // प्रजिरं चापि प्रख्यातं, गृहाने शोभितं स्थलम् / ___ * द्वारनामानि * द्वारि प्रतोहार श्च, वलज' चापि कथ्यते // 1725 // * अर्गलानांम * परिघ' चाऽर्गला नाम, महार्गलायाः हि मन्यते / * अर्गलिकानामानि (r) अर्गलिका' सूचिः२ सूची', लध्वर्गला सु कथ्यते // 1726 // * कुचिकानामानि * कुश्विका' कूचिका चोक्ता, साधारणी तथाऽङ्कुट: / (r) तालकनाम (r) तालकं' द्वारयन्त्र' ञ्च, नामोक्तं तालकस्य वै / / 1727 / / ... तालीनाम * तदुद्घाटनयन्त्रं स्यात्, ताली' च प्रतिताल्यपि / Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 280 सुशीलनाममालायां * उत्तरङ्गनाम * उत्तरङ्ग तिर्यग्द्वारो-ख़दारुः कथ्यते किल // 1728 // * कपाटनामानि * कपाट' श्च कवाटर श्च, कुवाटो ररं पुनः / अररि५ श्चेति नामानि, कथयन्ति हि कोविदाः // 1729 // ॐ पक्षद्वारनामानि है पक्षक:' पक्षद्वारं च, खटक्किका ऽपि कथ्यते। ॐ अन्तारनाम 8, अन्तरं च प्रच्छन्नं', गुप्तद्वारं हि मन्यते // 1730 // 8 बहिरनाम * प्रोक्त पुन बहिरिं', प्रसिद्ध तोरणं तथा। * वन्दनमालिकानाम * मङ्गल्यं तोरणोर्चे च, दाम वन्दनमालिका' // 1731 // ॐ शिलानाम , स्तम्भादीनामघोदारी, शिला' संज्ञा प्रसिद्धयति / Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थस्तिर्यविभागः 281 * नासानाम * स्तम्भादे रुपरि स्थाप-यितुनासा' च दारुणि // 1732 / / * गोपानसीनाम है पुन र्गोपानसिः' शब्दो, गोपानसी तथैव च / बलभीच्छादने वक्र दारुणि कथ्यते किल // 1733 // * उम्बरनामानि * उदुम्बर' उम्बुर२ इच, भवेदुम्बर' इत्यपि / गृहावग्रहणी चापि, देहली विदिता खलु // 1734 // * अलिन्दनामानि * प्रघाणो' ऽलिन्द प्रालिन्द, उपालिन्दक उच्यते / प्राघाण: प्रघण' श्चेति, बहिरिप्रकोष्ठके // 1735 // * कपोतपाली नाम * प्रोक्त कपोतपाली' च, विटङ्क:२ पक्षिणां गृहम् / * पटलनाम * छदि' श्च पटल' श्चैव, तद् गृहच्छदने भवेत् // 1736 // .... .ॐ वलीकनाम * वलोक' चापि नीव्र स्यात्, पटलस्यान भागकः / Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 282 सुशीलनाममालायां * तमङ्गनामानि 8 इन्द्रकोश' स्तमङ्ग श्च, प्रोक्त स्तमङ्गकः पुनः // 1737 / / * वलभोनाम * वलभी' बलभि२ श्चापि, छदिराधार उच्यते। . * दन्तकानाम * दन्तकाः' नागदन्ताः स्याद्, भित्तिस्थे काष्ठनिमिते // 1738 // ॐ प्रग्रीवनामानि * प्रगीवो' उपाश्रयो मत्ता- लम्बः स्यात् मक्तवारणः। * गवाक्षनामानि (r) गवाक्षो' जालकं चैव, ख्यातो वातायन: पुनः // 1736 // * अन्नकोष्टकनामानि . कुशूल' श्चा ऽन्नकोष्टक:२, कुसूलो ऽपि निगद्यते / * कोणनामानि 8 कोणो' ऽश्री कोटि रश्रि श्च, पाली' पालि रणी पुनः // 1740 // परिण:८ कोटी तथाऽत्र श्च, नामानि कथितानि हि। Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थस्तिर्यविभागः 283 * सोपाननाम * प्रारोहणं' च सोपानं, स्यात् सोपानस्य नाम वै // 1741 // * निःश्रेणीनामानि है अधिरोहरणी' निःश्रेणी:, निःश्रेणि श्चाऽधिरोहिणो / . . ॐ स्तम्भनाम * स्थूणा' स्तम्भ श्च प्रख्यातो, गृहाधारे हि मन्यते // 1742 // * पुत्रिकानामानि 8 पुत्रिका' सालभञ्जीः च, प्रोक्ता पञ्चालिका च सा / काष्ठादि निमिता लेप्य-मयो' त्वञ्जलिकारिका // 1743 // . . ॐ स्वस्तिकनामानि 8 नन्द्यावतः स्वस्तिक इच, सर्वतोभद्र' इत्यपि / विच्छन्दा' नाम रचना, भवेद् धनाढ्य वेश्मनि / / 1744 // ॐ सम्पुटनामानि * समुद्गः' सम्पुट:२ पुटो, वस्तु किञ्चिद् गृहे भवेत् / ___* मञ्जूषानामानि * मञ्जूषा' पेटक:२ पेटार, तथा पेडा' ऽपि नाम स्यात् / Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 284 सुशोलनाममालायां * सम्मार्जनीनामानि * सम्मार्जनी' च वर्धनो२, शोधनी पवनी पुनः // 1745 // बहुकरी तथा ख्याता, गृहशोधक वस्तुनि / ॐ सङ्करनाम *. गृहप्रकीर्ण धूल्यादि सङ्करो' ऽवकरो' भवेत् // 1746 // * उदूखलनाम * . . धान्यादि कुट्टकं प्रोक्त,- मुदूखल'- मुलूखलम् / के प्रस्फोटननाम * . . पुन: प्रस्फोटनं' चैव, पवनं मन्यते किल // 1747 / / * कण्डननाम * धान्यादि कुट्टन कार्य,- मऽवघात' श्च कण्डनम् / * कटनाम उपवेशन कार्याय, किलिञ्जः' कथितः कट: // 1748 // ___ * मुमलनामानि * मुशलो' मुषल२ श्चैव, प्रसिद्धो मुसलो ऽपि वै। .. प्रायोग्रं चाप्ययोनिः स्तुः, नामापि मुसलस्य च // 1749 / / Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थस्तिर्यविभागः 285 * कण्डोलकनामानि 8 वंशादिपात्रके पिटं', कण्डोलकर श्च पिटकः / के चालनीनाम * प्रख्यातं चालनी' नाम, तितउ रपि मन्यते // 1750 / / * शूर्पनाम * शूर्प' सूर्प२ ञ्च प्रख्यातं. प्रोक्त प्रस्फोटनं पुनः / * चुल्लोनामानि 8 अन्तिका' मन्तकं चाऽन्ती, तथाऽधिश्रयणी किल // 1751 // चूल्ली' बूल्लि' स्तथोध्मान , मुद्धानं नाम संग्रहे / . * स्थालीनामानि * उखा' चरु रुषा स्थाली', कुम्भी' कुण्डं च पिठरम् // 1752 // * घटनामानि * घट:' कुम्भ:२ करीर3 श्च, कलश: कलस:५ कुटः / निप श्चेत्यादि नामानि, मन्यन्ते पण्डितै जनैः // 1753 // ____* अङ्गारशकटीनामानि * अङ्गारशकटी' चाऽङ्गा-रधानी हसनी पुनः / हसन्तिका तथाऽङ्गार, पात्रो' नाम सु संग्रहे // 1754 // Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालायां * अम्बरीषनाम * अम्बरीष' स्तथा भ्राष्ट्रः२, कटाहस्याभिषा भवेत् / * ऋचीषनाम * ऋचीष' मृजीषं चैव, मन्यते पिष्टपाकभृत् // 1755 // * दर्वीनामानि * कम्बिः' कम्बी खजाका' च, दर्वी दवि इच कथ्यते / * तर्दूनाम * . तर्दू' श्च दारुहस्तक:२, काष्ठदव्या निगद्यते // 1756 // * वार्धानीनामानि * पालु' रालू गलन्तो च, कर्करी करकः पुनः / वार्धानी चेति प्रोक्त वै, जलस्य लघुपात्रकम् // 1757 / / * नालिकेरजनाम है किरको' नालिकेरजः२, कथ्यते कोविदः पुनः / * कटाहनाम * कटाहः' कर्परो' लौह-कटाहस्य च नाम वै // 1758 // Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थस्तिर्यविभाग: 287 * मणिकनाम * महत्पात्रं जलस्योक्त, मरिणको' लिजरों द्वयम् / __* गर्गरीनामानि * कलशी' गर्गरी दनो, मन्थनी प्रथिता सदा / / 1756 // ॐ मन्थदण्डकनामानि * मन्थो' मन्था२ श्च मन्थान स्तथा च मन्थदण्डकः / खज' श्च खजक: क्षुब्धो , वैशाख श्च प्रसिद्धयति // 1760 // एतन्नामानि मन्यन्ते, दधिमन्थनसाधने / * दण्डकटकनामानि * अस्य च दण्डकटक', स्तथा दण्डकरोटकम् // 1761 // विष्कम्भः कुटक* इचैव, कुटर:५ कुठर स्तथा। मजोर" चापि मन्दीरं, नामान्यष्टौ भवन्ति वै // 1762 // ॐ शरावनामानि * . वर्धमान:' शराव इच, शालाजीरो ऽपि कथ्यते / . * पानभाजननामानि * कोशिका' मल्लिका कंसः, पारी' च पानभाजनम् // 1763 // चषक श्चापि कथितो, लघौ जलादिपात्रके / Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 288 सुशीलनाममालायां ................... * कुतूनाम * घृततैलादि पात्रस्य, ख्यातं नाम कुतू' रिह // 1764 // कुतुपो' लघुपात्रं स्याद्, घृताद्यानयनाय यत् / * खल्लनाम * . दृतिः' खल्ल२ श्च पानीय,-भरणाय च चर्मणः // 1765 / / * करकपात्रिकानाम * . मालूकरकपात्रिका', चर्ममयो हि मन्यते / * भाण्डनाम * भाण्ड' माऽऽवपनं प्रोक्त, सर्वप्रकारभाजनम् // 1766 // पात्रा' ऽमत्रे च भाजनं 3, त्रिण्यपि भाण्डनामनि / स्थालं' विशालभाण्डं स्यात्, तत् पिधान' मुदञ्चनम् // 1767 // * पर्वतनामानि के शैलो' ऽद्रिः२ शिखरी शिलो-चयो ऽचल५ ३च सानुमान् / अगो नगो गिरि वा', गोत्र'१श्च कन्दराकरः१२ // 1768 // कुध्रो' भूध्रो महीध्र'"श्च, धरो' भूभृद्१७महीधरः१८। . प्रपाती' पर्वतोऽहार्य 1 उर्वङ्गो भूधर: पुनः // 1766 / / Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 289 चतुर्थस्तिर्यविभागः कुट्टार 24 श्चेति नामानि, मन्यन्ते पर्वतस्य हि / * उदयाचलनाम * प्रथोदय' श्च पूर्वादिः, श्चोदयाचल उच्यते // 1770 / / के अस्ताचलनाम * प्रस्तो' ऽपि चरमाद्रि श्च, मन्यतेऽस्ताचलः किल / _* हिमालयपर्वतनामानि * उदगद्रि' स्तथाऽद्रिराट्, हिमप्रस्थो हिमालयः // 1771 // हिमवान् मेनकाप्रारणे-शो भवानीगुरुः पुनः / नामान्येतानि मन्यन्ते, हिमालयस्य पण्डितैः // 1772 // * हिमालयपुत्रनामानि , मैनाक' श्च सुनाभ' श्च, हिरण्यनाभः इत्यपि / हिमालयसुतस्येति, नामानि प्रथन्ति वै / / 1773 / / * अष्टापदपर्वतनामानि ॐ कैलासो' धनदावासो२, ऽष्टापद:3 स्फटिकाचलः / रजताद्रि हराद्रि श्च, हिमवद्धस उच्यते // 1774 // . . * क्रौञ्चपर्वतनामानि * कञ्चः' क्रौञ्च स्तथा कौञ्ज', खयोऽपि क्रौञ्चवाचकाः / Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 290 सुशीलनाममालायां * मलयाचलपर्वतनामानि * चन्दन गरि' राषाढो२, मलयो दक्षिणाचलः // 1775 // * माल्यवत्पर्वतनामानि * प्रश्रवण' स्तु माल्यवान्', प्रोक्तः प्रस्रवणो नगः। * विन्ध्याचलपर्वतनाम के विन्ध्याचलगिरे नाम, विन्ध्य' स्याद् जलवाहक:२ // 1776 // के शत्रुञ्जयपर्वतनाम * शत्रुञ्जयगिरे र्नाम, विमलाद्रिः शत्रुञ्जयः / / ॐ मन्दराचलपर्वतनाम ॐ नामोक्त मन्दराचल-स्य विन्द्रकोल' मन्दरौ // 1777 // * त्रिकुटाचलनामानि * त्रिमुकुट ' स्सुवेल इच, त्रिकूट खिककृद् पुनः / त्रिकुटाचलशैलस्य, नामानि प्रथितानि वै // 1778 // ___ॐ गिरनारपर्वतनाम * गिरनारगिरे र्नाम, उज्जयन्तः' प्रसिद्धयति / लोके रैवतक: प्रोक्तो, गिरनारगिरि पुनः // 1776 // Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थस्तिर्यविभागः 261 * कुलाचलपर्वतनाम * कुलाचलगिरे र्नाम सुदारु:' पारियात्रिकः / * लोकालोकपर्वतनाम * चक्रवालो' गिरे नाम, लोकालोक श्च कल्पितः // 10 // * मेरुपर्वतनामानि * रत्नसानुः' सुमेरु२ श्च, मेरु' श्च कणिकाचलः / स्वगिगिरि श्च स्वगिरिः६, काञ्चनगिरि रुच्यते // 1781 // * शिखरनामानि * शृङ्ग' च शिखरं' कूटं त्रीणि नामानि सन्ति वै / . * भृगुनामानि ॐ भृगोर्नामानि प्रोक्तानि, प्रपात' श्चाऽतटो भृगुः // 1782 // ॐ मेखलानामानि / नितम्बो' मेखला नाम, कटको गिरिमध्यभाक् / ' * कन्दरनामानि ॐ प्रोक्तं कृत्रिमो गृहा, दरी' च कन्दरो ऽपि वै // 1783 // __* गह्वरनाम के गुहा' च गह्वरं मामा,-ऽखातबिले हि कथ्यते / Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 262 सुशीलनाममालायां * द्रोणीनाम * . द्रोणी' च शैलयोः सन्धिः, साक्षरः मन्यते सदा // 1784 // * पर्यन्तपर्वता:नाम * पर्यन्तपर्वता:' पादाः२, मुख्याने लघुपर्वताः / * दन्तकाःनाम * स्याद् दन्तकाः' बहिस्तिर्यक् -प्रदेशा निर्गता गिरेः // 1785 // * अध्यतिकानाम * पर्वतस्योर्ध्वभूमि , मन्यतेऽध्यतिका' बुधैः / / * उपत्यकानाम है अधोभूमि नंगस्यात्र, उपत्यका' हि कथ्यते // 1786 // 8 प्रस्थनामानि 8 सानुः' प्रस्थं तथा स्नुः स्याद्, शैल शृङ्ग च तुल्यभूः / * पाषाणनामानि * पाषाणः प्रस्तरः ग्रावार, चाऽश्मा दृषद् तथा शिला // 1787 / / उपल' श्चेति नामानि, मन्यन्ते प्रस्तरस्य वै। कथिता गण्डशैला' श्च, स्थूलोपलाश्च्युताः खलु // 1788 // Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ................. चतुर्थस्तियंगविभागः 263 .................. के आकरनामानि के प्राकर' श्च खनिः२ खानिः', गजा' श्चेत्यपि कथ्यते / ॐ पर्वतोत्पन्नधातुनामानि 8 स्वर्णरौप्यादयो लोके, धातु' र्वा गैरिकं भवेत् // 1786 // ___ * खटीनामानि के पाकशुक्ला' तथा शुक्ल-धातु श्च खटिनी खटी / कठिनी चेति नामानि, खटिन्याः कथयन्ति वै // 1760 // * लोहनामानि * लोहं' शस्त्रं तथा तीक्ष्णं, धीनं च धीवरं धनम् / गिरिसारं शिलासारंप, पिण्डं पारशवं° पुनः / / 1791 // कालायसं तथाऽय१२ श्च, कृष्णामिषं च भूतले / नामान्येतानि लोहस्य, कथयन्ति हि कोविदाः // 1762 // * लोहकिटकनामानि * मण्डूरं' सरणं धूर्त सिहानं लोहकिट्टके / सर्वं च तेजसं लोहं', सर्वलोकः हि कथ्यते // 1763 // के कुशोनाम * विकारस्त्वयसः फालः', कुशी' चेत्यपि मन्यते / . . ॐ ताम्रनामानि * ताम्र 'रक्त२पवित्रञ्च,द्वयष्टं द्विष्ट मुदुम्बरम् // 1764 // Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 264 सुशीलनाममालाया कांस्यं कनीयसं शुल्वं, वरिष्ठ१० ब्रह्मवर्धनम् 11 / म्लेच्छमुखं '2 तथा म्लेच्छ'3-मौदुम्बरंच शावरम् // 1795 // मर्कटास्यं च नामानि, ताम्रस्य कथयन्ति वै / * सोसकनामानि के सीसं' च सीसकं नागं३, स्वर्णारि: सीसपत्रकम् // 1796 / / सिन्दूरकारणं कृष्णं, समोलूकं' सुवर्णकम् / . योगेष्टं यवनेष्टं च, व 12 च पुबन्धकम् 13 // 1767 // वप्रं४ पट्ट१५ तथा चीनं 6, चीनपट्ट१७ महाबलम् / गण्डूपदभवं१६ चेति, नामानि कथर्यान्त वै // 1768 / / __* पुनामानि ?' वङ्ग' रङ्ग' च मृदङ्ग, नागज नाग जीवनम् / स्वर्णजं' श्वेतरूप्यं च, मधुकं मुखभूषणम् / / 1766 // पालीनक' तथाऽऽलीन", सलवणं१२ च सिंहलम् / परासं१४ गुरुपत्रं 15 च, तमरं 6 त्रपु' पिच्चटम् // 1800 // कस्तीरं१६ चक्रसंज्ञ२० च, घनं ' ज्येष्ठं 2 शठं२३ रज:२४ / एतन्नामानि सर्वाणि, मन्यन्ते पण्डित स्त्रपोः // 1801 / / * रूप्यनामानि के रूप्यं रूपं तथा श्वेतं, त्रापुष रजतं' सितम् / दुर्वर्णक ञ्च दुर्वर्ण, जीवनं बङ्गजीवनम् // 1802 // Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 265 चतुर्थस्तिर्यविभागः _ 265 हंसाह्वयं' हिमांशु१२ श्च, वङ्ग१३ चन्द्राह्वयं१४ वसु१५ / - कलधौत 6 तथा तारं१७, भीरुकं कुमुदाह्वयम् // 1803 // खजूर२ 0 भीरु२१ शुभ्र२२ ञ्च, शोध्यं२३ सोध्य२४ जवीयसम२५ / सौम्यं सर्वाणि नामानि, रूपस्य कथयन्ति च // 1804 // . सुवर्णनामानि 8 ..... स्वर्ण' शुक्र सुवर्ण श्व, वसु वेणुतटोभवम् / करं कर्बुरं रुकम, कचूंरं करं' deg पुनः // 1805 // कनकं 1 काञ्चनं 12 कार्त्त-स्वर: 3 चामीकरं तथा / कल्याणं कर्णिकारच्छा-यं' गाङ्ग य' "ञ्च गरिकम् // 1806 / / शातकुम्भं श्रीमद्कुम्भं 20, शातकौम्भं२१ शिलोद्भवम्२२ / . गारुडं 23 भूत्तमं भर्म२५, लोहोत्तम२६ञ्च लोभनम्२७ // 1807 // . प्रोजस२८ मर्जुन२६ चन्द्रो०, दाक्षायण १ञ्च वैरणवम्३२ / रक्तवर्ण हिरण्यं च, हेम हेमञ्च हाटकम् // 1808 // राः३८ महारजतं भूरि४०, रजतं४१ तारजीवनम् 42 / निष्क 3 श्चाऽष्टापदं 4 जाम्बू-नदं४५ जातरूपं "पुनः // 1806 / / कलधौत तथा वह्नि-बीज 8 तापनीयं च वै / नामान्येतानि मन्यन्ते, स्वर्णस्य पण्डितैः सदा / / 1810 / / कुप्यं' कोशो हिरण्य ञ्च, स्वर्णे रूप्ये ताकृते / कुप्यं' स्यात् तद्वयादन्यद्, रूप्यं तु द्वयमाहतम् / / 1811 / / Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 266 सुशीलनाममालाया अलङ्कारसुवर्ण' स्यात्, शृङ्गीकनक माऽऽयुधम् / रजत ञ्च सुवर्ण ञ्च, मिलितं धनगोलकम् / / 1812 / / - पित्तलनामानि (r) प्रार' श्च पित्तला शब्दो, विशेषपित्तले भवेत् / पुनः पित्तल नामानि, कथ्यन्ते पण्डितै रिह / / 1813 // कपिलोहं' सुलोहं च, पोतलोहं सुलोहकम् / प्रारकूटो रितिः रीती , रिरी रीरी सुवर्णकम् ' / / 1814 / / ब्राह्मी' तु ब्रह्मरीति श्च, कपिला' महेश्वरी' तथा / राज्ञी' नाम्ना भवेदेक,-प्रकारस्य हि पित्तलम् / / 1815 / / * कांस्यनामानि * कंस' कांस्य प्रकाश ञ्च, घोषो विद्युप्रियं मलम् / रवण मसुराच, लोहजं वङ्गशुल्वजम् / / 1816 / / घण्टाशब्द११ च नामानि, कांस्यस्य संभवन्ति / * पञ्चलोहनाम * सौराष्ट्रक' पञ्चलोह, पञ्चधातुमयं च तद् // 1817 // ॐ वर्तलोहनाम 8 . वर्तकी वर्तलोह च, लोहधातुभिदा भवेत् / / Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थस्तिर्यविभागः 267 ॐ पारदनामानि * पारत:' पारदः२ सूत', श्चल श्च चपलो रसः // 1818 // हरबीजं च नामानि, मन्यन्ते पारदस्य वै / ___ * अभ्रकनामानि * अभ्रक' स्वच्छपत्रं च, गमना-3ऽम्बुद वाचकम् // 1816 // अमल गिरिज' चैव, गिरिजामल मुच्यते / ॐ सौवीरनामानि 8 स्रोतोजनं तु सौवीरं२, कापोतं कृष्ण-यामुने' // 1820 // ॐ तुत्थनामानि * तुत्थाजनं' तथा तुत्थं, शिखिग्रीवं मयूरकम् / पुनस्तुत्थविशेषो वै, मूषातुत्थं' वितुन्नकम् // 1821 // कांस्यनीलं हेमतारं , तन्नोलाजन मुच्यते। पुनः कपरिकातुत्थं',चाऽमृतासङ्ग मऽजनम् // 1822 // . * रसाञ्जननामानि (r) रसगर्भ रसाग्न ञ्च, रसजातं रसाञ्जनम् / कथ्यते तायशैलं च, तूत्थे दारिसोद्भवे // 1823 // Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 268 सृशोलनाममालाया * पुष्पाञ्जननामानि * पुष्पकेतु ' च प्रख्यातं, पुष्पाञ्जन' ञ्च पौष्पकम् / रोतिपुष्पं च नामापि, कुसुमाञ्जन मुच्यये // 1824 // ___* माक्षिक (धातु)नामानि ॐ कदम्ब' श्चक्रनामाच, माक्षिकं चाऽजनामकः / वैष्णव श्चेति नामानि, कथ्यन्ते माक्षिकस्य वै // 1825 // * विटमाक्षिक (हीराकसी) नामानि 8 कामारि' विटमाक्षिक, स्ताप्य स्तारारि रेव च / नदीज' श्चेति नामानि, ताप्यस्य सम्भवन्ति वै // 1826 // * सौराष्ट्रदेशमृत्तिकानामानि 8 काक्षी' काच्छी च सौराष्ट्री', पार्वती पर्पटी सती / आढकी तुवरी मत्स्ना ,मृत्सा' 'मृद्''च मृदाह्वया'२ // 1827 // मृत्तिका' 3 कालिका१४ चैव, कंसोद्भवा१५ पुनः किल / सौराष्ट्रमत्तिकाया इच, नामानि कथितानि वै // 1828 // ____ * रक्तमाक्षिकनामानि* कासीसं' खेचरं' धातु-कासीसं धातुशेखरम् / कंसकं' पुष्पकासीसं 2, नयनौषध' मित्यपि // 1826 // माक्षिकस्यैव भेद: स्यात्, ख्यातो गुणादि भेदतः / Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थस्तिर्यविभाग: 264 * गन्धकनामानि * गन्धाश्मा' गन्धक श्चैव, सौगन्धिक श्च गन्धिक:४ // 1830 // शुल्वारिः५ शुकपुच्छ श्च, पामारिः पुनरित्यपि / कुष्ठारि श्चेति नामानि, मन्यन्ते गन्धकस्य वै // 1831 // * हरितालनामानि * पालं' तालं च वङ्गारिः३, हरिताल बिडालकम् / विस्रगन्धि' च गोदन्तं", गोपित्तं वंशपत्रकम् // 1832 // खर्जूरं पिजरं चापि, लोमहृद्'२ नटमण्डनम् / पीतनं 4 चेति नामानि, तालस्य सम्भवन्ति वै // 1833 // * मन:शिलानामानि * मनःशिला' मनोगुप्ता, मनोह्वा नागजिबिका / नागमाता तथा गोला, शिला च रसनेत्रिका // 1834 // करवीरा च नेपाली', नेपाली'' कुनटी 12 तथा। रोचनी१३ चेति नामानि, शिलायाः सम्भवन्ति वै // 1835 // . * सिन्दूरनामानि * सिन्दूरं' चीनपिष्टं च, नागरक्त च नागजम् / शृङ्गारभूषणं चैव, शृङ्गार मपि मन्यते // 1836 // Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 300 सुशीलनाममालायां * हिगुलनामानि * हङगुलो' हिङगुलु श्चैव, हंसपादः प्रसिद्धकः / कुरुविन्दं च नामानि, कथ्यन्ते हिङगुलस्य वै // 1837 // * शिलाजतुनामानि * गैरेयं' गिरिज२ चाऽर्थ्य, शिलाजतु तथाऽश्मजम् / * काचलवणनाम * काचः क्षारो द्वयं नाम, काचलवण उच्यते // 1838 // * चक्षुष्यानामानि * चक्षुष्या' दृक्प्रसादा स्यात् कुलाली च कुलस्थिका / ___ॐ गोपरसनामानि है बोलो' गोपरसोगोपो, गन्धरसो रस: शसः // 1836 // पिण्ड: प्राण श्च नामाऽपि, बोलस्य कथ्यते बुधै। . * रत्ननामानि के वसु' रत्नं मरिण श्चैव, माणिक्य मपि मन्यते // 1840 // * रत्नविशेषनामानि * हीरक मौक्तिक स्वर्ण, रजतं चर्म चन्दनम् / . शङ्खो वस्त्रं च नामानि, विशेषरत्नकानि वै // 1841 // . Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थस्तिर्यविभागः 301 * वैडूर्य रत्ननाम है प्रसिद्ध रत्नभेदेषु, वैडूर्य' वालवायजम् / / * मरकतनामानि * अश्मगर्भ त्वश्मयोनि', मरकतं' हरिन्मणिः // 1842 // गारुत्मतं च नामानि, मन्यन्ते हि हरिन्मणेः / ॐ पद्मरागमणि (माणेक) नामानि 8 लक्ष्मीपुष्पं तथा पद्म-रागो लोहितक: पुनः // 1843 // ख्यातो ऽरुणोपल श्चैव, शोणरत्नं तथैव च / एतन्नामानि मन्यन्ते, पद्मरागस्य पण्डितैः // 1844 // * नीलमणिनामानि * इन्द्रनीलो' महानोलं?, नीलमणि' श्च कथ्यते / ॐ हीरकनामानि * होरको' रत्नमुख्यं च, सूचीमुखं वरारकम् // 1845 // .. वजं तदर्थशब्द इच, नामाऽस्ति होरकस्य वै / वैराटो' राजावत' श्च, राजपट्टो' विराटजः // 1846 // विराटदेश सम्भूतं, नाम स्याद् होरकस्य च / Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 302 सुशीलनाममालायां * प्रवालनामानि ॐ प्रवालो' रक्तकन्द श्च, रक्ताङ्को हेमकन्दलः // 1847 // . विख्यातो विद्रुम' श्चापि, कथ्यते विबुधैः खलु। .. * सूर्यकान्तमणिनामानि * सूर्याश्मा' सूर्यकान्त इच, सूर्यमणि स्तथैव च // 1848 // दहनोपल श्च नामाऽपि, सूर्यकान्तस्य कथ्यते / ॐ चन्द्रकान्तमणिनामानि ॐ चन्द्रकान्त' स्तथा चान्द्र, चन्द्रमणि स्तथैव च // 1846 // चन्द्रोपल श्च नामाऽपि, चन्द्रकान्तस्य मन्यते / क्षीरवत् श्वेतवर्णो वै, क्षीरस्फटिक' उच्यते // 1850 // पुनश्च तैलवर्णवान्, तैलस्फटिकनाम' वै। प्राकाश'-रवस्फटिकौ च, सूर्यचन्द्रमणी इह // 1851 // अन्योऽस्ति क्षीरस्फटिक, स्तैलस्फटिक इत्यपि / ___ मौक्तिकनामानि मुक्ता' मुक्ताफलं मौक्ति-कं शुक्तिनं रसोद्भवम् // 1852 // हस्तिनः शिरसि दन्तौ, दंष्ट्रा शुन-वराहयोः / मेघो मत्स्यो भुजङ्गमो, वेणु ौक्तिकयोनयः // 1853 // // इति पृथ्वीकायः समाप्तः // Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थस्तिर्यविभागः 303 * अथाऽपकायनामानि * * जलनामानि 8 वारि' वारं जलं क्षोरं, नोरं नारं कुलीनसम् / जोवनं जीवनीयं च, भुवनं भवनं वनम् 12 // 1854 // पानीयं 3 प्राणदं 4 पाथो'५, मेघपुष्पं च पुष्करम् / शंवरं ८संवरंतोयं., कोलालं२१सलिलं२२ कुशम्२३ // 1855 // कबन्ध२४ कमलं२५ चाऽम्भ: 26, कमन्ध२७ शम्बर 28 दकम्२६ / अर्णो३० ऽम्बु३१ चाऽमृतं 32 कं33 वाः3४, प्रापो३५ ऽ३६ च सर्वतोमुखम् // 1856 // पयो3८ यादोनिवास 6 श्च, घनरस४० स्तथोदकम् / इरा४२ दिव्यं४३ विष४४ सेव्यं 5, . षड्रसं४६ घृत मऽरङ्कुरम् 8 // 1857 // पिप्पलं 6 पिष्पलं५० चैव, नलिनं५१ मलिनं५२ तथा। पातालं५३ पावनं५४ चापि, कृपीटं५५ कम्बलं५६ पुनः // 1858 / / एतन्नामानि नीरस्य, मन्यन्ते पण्डितै जनैः / विशेषनाम पल्लूरं', श्वेतजलस्य कथ्यते // 1856 // क्षारं जलं किट्टिमं' स्यात्, शालूकं' गन्धयुग जलम् / समलन्तु भवेवन्ध, मतिस्वच्छन्तु काचिमम् // 1860 // Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 304 सुशीलनाममालायां अस्ताघ मतलस्पृक चा,-स्थाघ मऽस्थाग' मित्यपि / .. अगाध मपि तन्नाम, यत् तलं न जनः स्पृशेत् // 1861 // गभीरं' गम्भोरं निम्न', मस्ताधार्थस्य वाचकम् / उत्तान' मुच्यते तत्र, यत्र किञ्चद् जलं भवेत् // 1862 // प्रच्छं' जलं प्रसन्नं स्या-दनच्छं' कलुषा२ ऽविले / * हिमनामानि 8. प्रवश्याय'स्तु प्रालेयं, तुषार स्तुहिनं हिमम् // 1863 // धूमिका धूमरी धूम-महिषो महिका तथा / मीहारो० मिहिका 1 चेति, नामानि तुहिनस्य वै // 1864 // .. * हिमानीनामानि ॐ हिमसन्तति' हिमानी', हिमराशी प्रयुज्यते / * समुद्रनामानि * समुद्रः' सागर: सिन्धु', स्तिमिकोशो महाशयः // 1865 // जलधि जलराशि इच, जलनिधि स्तथोदधिः / महोप्रावार उर्वङ्गो 1, वारिनिधि'२श्च वारिधिः 3 // 1866 // वारीशो'४ वारिराशि१५ श्च, सरस्वान् धरणीप्लव:'। प्रकूवारो' महाकच्छो१६, ऽकूपारो२० मकरालय:२१ // 1867 // Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थस्तिर्यविभागः 305 नदोशो२२ यादईश 3 श्च, स्रोतईश२४ श्च दारद:२५ / यादःपति२६ उदन्वान्२७ वै, मितद्रु२८ मकराकर:२६ // 1868 // पारावार३० स्तथाऽवार -पारो 1 रत्नाकरो३२ ऽर्णव:33 प्रसिद्धो रत्नराशि३४ ३च, वीचिमाली३५ किल पुनः // 1866 // एतन्नामानि मन्यन्ते, समुद्रस्य च साक्षरैः / द्वोपान्त। असङ्ख्या स्ते, सप्तैवेति तु लौकिकाः // 1870 // विभिन्न समुद्रनामानि ॐ लवणवारि' नामैव, लवणोदो निगद्यते / क्षीरवारि' श्च क्षीरोदे२, दधिवारि' श्च दध्युद:२ // 1871 // प्राज्योद' प्राज्यवारि श्व, सुरावारिः' सुरोदक:२ / इशूद' श्चेषुवारिः२ स्याद्, स्वादूदः' स्वादुवारिकः' // 1872 // नामान्येतानि मन्यन्ते, समुद्रस्य विशेषतः / *अन्यत्र लावरणादयो, नामान्यपि प्रसिद्धकाः // 1873 // तरङ्गनामानि * ऊमि' उत्कलिका भङ्गो, वोचि श्च तरङ्गः पुनः / उल्लोलो' लहरी चैव, कल्लोलो महति विह // 1874 // *सप्तसमुद्रनामानि[१] लावणः, [2] रसमयः, [3] सुरोदकः, [4] सापिषः, [5] दधिजलः, [6] पयःपयाः, [7] स्वादुवारि श्चेति सप्तसमुद्रनामानि सन्ति / / Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 306 सुशीलनाममालायां * आवर्तनामानि (r) प्रावतॊ' बोलकर श्चासौ, तालूरः पयसां भ्रमः / . के वेलानाम * वेला' नामाऽपि विख्यातः, कथ्यते वृद्धिरम्भसः // 1875 // ॐ अब्धिकर्फनामानि * अब्धकफ' स्तथा फेनो, हिण्डोरो हिण्डिरः पुनः / डिण्डोर' श्चापि प्रख्यातः, सागरमल उच्यते // 1876 / / ___* जलस्फोटनामानि, बुबुदः' स्थासकर श्चैव, जलस्फोटो ऽपि कथ्यते / ॐ मर्यादानाम * मर्यादा' कुलभू' नाम, समुद्रपार्श्व भूमयः // 1877 // ॐ समुद्रतटनामानि 8 कुलं' कच्छ:२ प्रपात' श्च, रोधः प्रतीर' मित्यपि / तट तीरं च विज्ञेयं, नादध्यो स्तटं सदा // 1878 / / (r) पुलिननाम * पुलिनं' सैकतं नाम, जलहीनं तटस्थलम् / Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थस्तिर्यग विभाग: 307 * द्वीपनाम * अन्तरीपं' तथा द्वीपं२, ब यादन्तर्जले तटम् // 1876 / / यत्र स्थित स्तत् परं च, पारं' भवति ज्ञायते / यत्र स्थित स्तदऽवारं', उभान्तः स्यात् पात्र' मिति // 188 // . * नदीनामानि ॐ नदी' धुनी धुनि: सिन्धुः , ह्रदिनी' ह्रादिनी' वहा / स्रोतः स्रोतस्विनो कर्पू:१०,स्रोतस्वती'' सरस्वती१२॥१८८१॥ शवलिनी' 3 स्रवन्ती१४ च, समुद्रदयिता'५ सरित् / जलधिगा ऽऽपगा' कुल्या'६, . कूलङ्कषा२ 0 च निम्नगा२१ // 1882 // निर्झरिणी२२ च वाहिनी२३, जम्बालिनी२४ तरङ्गिणी२५ / रोधोवक्रा२६ तथा द्वोप-वती२७ पर्वतजा२८ पुनः // 1883 // ख्याता हिरण्यवर्णा२६ वै, तटिनी च तथैव हि / एतन्नामानि मन्यन्ते, नद्या श्च पण्डित जनैः // 1884 // . ॐ गङ्गानदीनामानि है गङ्गा' भागीरथी ख्याता, त्रिपथगा त्रिमार्गगा। त्रिस्रोताः खापगा स्वर्गा-पगा' स्वरापगा तथा // 1885 // त्रिदशदोधिका सिद्धा-पगा' * सरिद्वरा'' पुनः / Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 308 सुशीलनाममालायां विष्णुपदी'२ च स्वर्वापो५३, मन्दाकिनी'कुमारसूः१५ // 1886 // भीष्मसूः१६ ऋषिकुल्या' च, जनुकन्या' च जाह्नवी / हैमवती२० तथा हर-शेखरा२१ चेति नामानि ज्ञायताम् // 1887 / / * यमुनानदीनामानि के यमुना' सूर्यजा चैव, कलिन्दतनयाँ यमी / कलिन्दपुत्री' कालिन्दी', स्यु र्यमभगिनी पुनः // 1788 // ॐ नर्मदानदीनामानि ॐ नर्मदा' मेकलाद्रिजा२, तथा मेकलकन्यका / इन्दुजा पूर्वगङ्गा' च, रेवा' च मेखलाद्विजा // 1886 // पुन मैकलकन्या ऽपि, नर्मदाया श्च नाम वै / * गोदावरीनदीनाम * गोदा' गोदावरी नाम्नी, नदी ख्यातैव वर्तते // 1860 // के तापीनदीनामानि * तापी ' च तपनी नाम्नी, प्रख्याता तपनात्मजा / * शतद्रुनदीनाम * .. शतQ' श्च शुशुद्रिः स्यात्, लोके सतलजो नदी // 1861 // Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 309 चतुर्थस्तिर्यविभागः ....................... * कावेरीनदीनाम * तथा ख्याता हि कावेरी', स्यादऽर्धजाह्नवी पुनः / * करतोयानदीनाम * करतोया नदी ख्याता, सदानीरा' ऽपि कथ्यते // 1862 // . * चन्द्रभागानदीनामानि * चन्द्रका चन्द्रभागा च, चान्द्रभागा ऽपि मन्यते। .. ॐ गोमतीनदीनामानि (r) गोमती' गौतमी चैव, वासिष्ठी कथ्यते ऽपि वै // 1863 // * सरस्वतीनदीनाम * ब्रह्मपुत्री' नदी स्याद् वै, प्रसिद्धा ऽपि सरस्वती / * विषाशानदीनाम * पुनर्नदो विपाशा' च, विपाड्२ नामाऽपि मन्यते // 1864 // ..ॐ बाहुदानदीनामानि 8 प्रार्जुनो' तटिनी स्यान्च, बाहुदा सैतवाहिनी / ... * वैतरणीनदोनाम * वैतरणो' नदो नाम, नरकस्था२ ऽपि कथ्यते // 1895 // Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 310 सुशीलनाममालायां * मुरलानदोनाम * मुरला' निम्नगा नाम, मुरन्दला ऽपि मन्यते / * सुरवेलानदीनाम * सुनन्दिनी' नदी नाम, सुरवेला ऽपि कथ्यते // 1896 // * चर्मण्वतीनदीनाम * रन्तिनदी' नदी नाम, चर्मण्वती च मन्यते।' * सिन्धुसङ्गमनाम * सिन्धुसङ्गमः' सम्भेदः२, नद्याः सङ्गम उच्यते // 1897 // 8 स्रोतनाम ॐ स्रोतो' भवति तल्लोके, यत्राऽम्भः सरणं स्वतः। . ॐ प्रवाहनामानि * प्रोपो' धारा रयो वेणी', पुन: प्रवाह उच्यते // 1898 // * घट्टनामानि * अवतार' स्तथा तीर्थो', घट्टो ऽपि कथ्यते पुनः। ___ * पूरनामानि * .. अम्बुवृद्धिः प्लव:२ पूर, श्चेति नामानि मन्यते // 18 // Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थस्तिर्यविभागः 311 के वक्राणिनामानि के वक्राणि' पुटभेदार श्च, चक्राणि' कथ्यतेऽपि वै / ___ * भ्रमानाम * जलनिर्गमन स्ताभ्य, भ्रमा' श्च जलनिर्गमाः२ // 1600 // * जलोच्छ्वासानामानि * परिवाहाः' परीवाहा:२, जलोच्छ्वासाः पयोगमाः / ___. * कूपकानाम * जलार्थमिह खन्यन्ते, कूपका' श्च विदारकाः // 1601 // * प्रणालीनाम * प्रणाली' जलमार्ग स्तु, मकरास्य निभो भवेत् / * नीकानामानि के नोका' कुल्या२ तथा पानं, सारणी सारणिः पुनः / / 1602 / / जलस्य खातकाया श्च, तन्नामानि सम्भवन्ति हि / . वालुकानाम 8 वालुका' सिकता' नाम, वालुकाया श्च कथ्यते // 1903 // Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 312 सुशीलनाममालायां * बिन्दुनामानि 8 पृषत्' च पृषतो विगुट्, बिन्दु श्च मन्यतेऽपि वै / * कर्दमनामानि 8 कर्दम' श्चिकिलः पङ्क, श्चिकखल्ल श्च निषद्वरः // 1904 // विस्कल श्चापि जम्बालः, ख्यातः शाद 8 स्तथा किल। कर्दमस्येति नामानि, कथ्यन्ते पण्डितै जनैः // 1905 // * शोरणनामानि 8 शोणो' हिरण्यबाहु इच, हिरण्यवाहोऽपि मन्यते / * नदनामानि * उद्ध्यो' नदो वहो भिद्यः, सरस्वान् बृहती नदी // 1606 // __ * ह्रदनामानि * ह्रदो' ऽगाधजलो द्रहो, नद्यगाधा च कथ्यते / - कूपनामानि * कूपो' ऽन्धु रुदपान इच, प्रहि नामाऽपि मन्यते // 1907 // #त्रिकानामानि * नेमी' नेमि स्त्रिका कूपे, जलं भर्तु च क्रियते। ' Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 313 चतुर्थस्तिर्यग विभागा ___ _313 * नान्दोमुखनामानि ॐ नान्दीमुखो' विनाह इच, वीनाहो' मुखबन्धने // 1908 // पुन नन्दिीपटो' नाम, तस्यैवार्थेऽपि कथ्यते / ___* पाहावनामानि 8 प्राहाव' इच निपानं' स्या,-दुक्कूप जलाशये // 1906 // __* वापीनामानि * वापि' पो दोधिका च, महाकूपो हि कथ्यते / * लघुकूपनामानि * क्षुद्रकूप' श्चुरी' चुण्डी', 'बूतको लघुकूपकः // 1610 // * घटोयन्त्रनामानि * उद्घाटक' घटीयन्त्र२, मुद्धाटन मुद्धातनम् / / * अरघटकनाम * पादावर्तो ऽरघट्टक:२, घटीयन्त्र विशेषकम् // 1911 / / .. . 8 अखातनाम * प्रखातं' देवखातं चे, त्यकृत्रिमसरः किल / Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 314 सुशीलनाममालायां * खातकनामानि ? कथ्यते खातकं चैव, पुष्करिणी स्तडागिका // 1912 // के तडागनामानि * पद्माकर' स्तडाग श्च, कासार: सरसी महान् / सर:५ ख्यात स्तटाक इच, तडाको.ऽपि हि कथ्यते // 1913 // के लघुतडागनामानि * - * वेशन्तः' पल्वल स्तल्ल', स्तडागो लघु रेव सः / / * खातिकानामानि * , खातिका' परिखा खेयं, प्रसिद्ध मतिवर्तते // 1914 // ॐ प्रावालनामानि ॐ पावालं' चाऽऽलवालं चा, ssवाप:3 स्थानक मुच्यते। * प्राधारनाम के प्राधार' रम्भसा बन्धो, मन्यते पण्डित जनैः / / 1915 // * निर्भरनामानि * उत्सः' प्रस्रवणं स्रवः, स्याद् निझरो झरो सरि: / . Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थस्तिर्यविभागः 315 (r) जलाशयनाम * प्रोक्ता जलाशयाः" स्याताः, जलाधाराः२ स्तथा सदा // 1916 // // इत्यप्कायः समाप्तः // ___ * अथ तेजस्कायनामानि * * अग्निनामानि ॐ अग्नि' वह्निः स्वनिः शिखी', शुक्रः शुष्मा शुचि र्वसुः / प्राशयाश: शमीगर्भ:१०, शोचिष्केश' 'स्तथाऽऽशिरः 2 // 1917 // प्राश्रयाश:१३ कृशानु'४ श्च, वैश्वानरो१५ वृषाकपि:१६ / कृष्णवर्मा तथाऽचिष्मान्', .. कुषाकु:१६ प्राशुशुक्षणिः२० // 1618 // सप्ताचि:२१ सप्तजिह्वर 2 इच, ज्वालाजिह्वश्च जागृवि:२४ / ज्वलनो जातवेदा२६श्च, जुहुराणो भुजि२८ मिः२६ // 1919 // उचि. श्चित्रभानु श्च, बृहद्भानुः३२ समन्तभुक् / घृताचिर्घसुरि३५ सि 6, धूंमध्वजो धनञ्जयः3८ // 1920 // तनूनपात्३६ तमोघ्न४० श्च, कृपीटयोनि४१ रञ्चतिः४२ / उषर्बुधः४३ पृथुः४४पुष्ट:४५, वीतिहोत्र ४६३च वञ्चतिः४७ // 1921 // बहिकको 8 बहिर्कोति:४६, बहिरुत्थ५० स्तथाऽनल:५' / Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशोलनाममालायां बर्हिःशुष्मा५२ च हिरण्य-रेता:५3 पवनवाहन:५४ // 1622 // . पीथो५५ ऽनिलसखो५६ हव्य,-भुग हविरशनो 8 हवि:५६ / हवनो * हव्यवाह 1 श्च, हव्याशनो 2 हुताशनः६३ // 1923 // बहुलो 4 मन्त्रजिह्वष 5 इच, रोहिताश्वो विभावसुः / दमूनाः६८ दमुना: दीप्र:०, पृदाकुर्दहनः७२ पविः // 1924 / / भरथो 4 नाचिकेत ५३च, पर्परीक 6 श्च पावकः७७ / / पृष्ठ.७८ छागरथो ऽपित्तं ,हुतवहो-१ विरोचन:८२ // 1925 // अपित्तं चापि बहि४ ३चे, त्यग्ने र्नामानि सन्ति वै / ॐ स्वाहानाम * पुन रग्नेः प्रिया भवेत्, स्वाहा' ऽग्नायी च नामतः // 1926 / / ___ * वडवानलनामानि * ऊर्व' श्चौर्व स्तथाऽध्यग्नि, वडिवो वडवानलः / वडवामुख: पुनर्नाम, भवेत् संवर्तक स्तथा // 1927 // * दावानलनामानि * दावानलो' दवो दावो, वनवह्नि रपि स्मृतः / * मेघवह्निनामानि है मेघवह्निः' मेघज्योति', विद्युताग्नि रिरम्मदः // 1928 // Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थस्तिर्यविभागः 317 * करोषाग्निनाम * छागरण' श्च करीषाग्निः२, नाम स्याद् छागरणस्य हि / ॐ तुषान लनाम है तुषानल:' कुकूल इच, तुषाग्ने नाम हि द्वयम् // 1926 // . * संज्वरनाम * सन्ताप:' संज्वरो नाम, वह्निजो दाह उच्यते / . * बाष्पनाम * ऊष्मा' बापरे श्च नाम वै, बाष्पस्य कथ्यते बुधैः // 1930 // * जिह्वानाम * विश्वे स्युरचिषो जिह्वाः, तन्नामतः प्रसिद्धकाः / _* ज्वालानामानि * अचि वाला शिखा कोला, हेति:५ स्याच्चेति वह्निजः // 1931 // झलक्का' झिल्लको-लक्का, महाज्वालार्थके च वै / ॐ अग्निकरणनाम है स्फुलिङ्गो' ऽग्निकणो वह्न, निःसरन् लघुभागकः // 1932 // Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 318 सुशीलनाममालायां * अलातज्वालानाम * उल्का' ऽलातज्वाला द्वापि, निर्वालोग्निः हि मन्यते / * अलातनाम (r) प्रलात' मुल्मुकं नाम, प्रसिद्धं बहुवर्तते // 1933 // * धूमनामानि * धूमो' जीमूतवाही च, दहनकेतनं स्तरीः / अम्भस्सू रग्निवाह श्च, वायुवाहः प्रसिद्धकः / / 1934 // करमाल' श्च नामापि, धूमस्य मन्यते खलु / * विद्युत्नामानि * विद्युत् तडित्तथा शम्पा, सम्पा चलाऽचिरप्रभा // 1935 // चञ्चला चपला चैरा-वती च जलवालिका। शतहदा'१ऽशनि:१२ सौदा-मनी' सौदामिनि' 4 तथा // 1936 // प्राकालिको 15 च ह्रादिनी 16, क्षणिका' च क्षणप्रभा / एतन्नामानि मन्यन्ते, विबुधै विद्युतः सदा // 1937 // 11. // इति तेजस्कायः समाप्तः॥ Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 316 316 चतुर्थस्तिर्यविभागः __ * अथ वायुकायनामानि * * वायुनामानि (r) वायु' हो वहो' वात:, प्रकम्पन.५ प्रभञ्जनः / पवनः पवमान श्च, दैत्यदेवः सुरालयः१० // 1938 // जगत्प्राण' श्चलः१२ प्राण:१३, पृषदश्व:१४ समीरणः१५ / समीर:१६ समिर 7 श्चैव, मातरिश्वा'८महाबल:१६ // 1936 // संभृतः 20 समरो२१ मर्को२२, मेघारि:२३ मारुतो२४ मरुत्२५ / उत्तरदिपति:२६ शुचिः२०, पश्चिमदिपतिः२६पुनः // 1940 / / अङ्कति:२६ क्षिपति 0 श्चापि, नित्यगतिः। सदागतिः३२ / शोतलो33 जलकान्तार:७४, स्पर्शनोजलभूषणः३६ // 1941 // पाशुगः३७ क्षिपण३८ श्चाऽहि-कान्तोऽ६ गन्धवह स्तथा / गन्धवाहो' नभःश्वासो, ___ नभस्वान्४३ श्वसनो 4 ऽनिलः४५ / / 1942 / / ध्वजप्रहरणो लोल,-घण्टो 7 लोलपट:४८ पुनः / कम्पाक४६ श्चेति नामानि, मन्यन्ते पवनस्य वै // 1943 // .. * झञ्झावातनाम * झञ्झावात' श्च झज्झारे ऽपि, सवृष्टिवायु रुच्यते। .. Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 320 सुशोलनाममालायां .................... . * प्राण वायुनाम® प्राणो' नासाग्रहन्नाभिपादाङ्गुष्ठान्तगोचरः // 1944 / / * अपानवायुनाम * वातोऽपान:' पुनर्मन्थापृष्ठपृष्ठान्तपाणिगः / * समानवायुनाम है समानः' पवनः सन्धि-हृन्नाभिषु च वर्तते // 1945 // * उदानवायुनाम * उदान' पवमान श्च, वर्तते हृच्छिरोन्तरे। , ॐ व्यानवायुनाम * सर्वत्वगषु स्थितो व्यान', इत्यङ्ग पञ्च वायवः // 1946 // // इति वायुकायः समाप्तः // * अथ वनस्पतिकायनामानि * * वननामानि * वनं' वार्फ दवो दावो', विपिन' गहनं झषः / अरण्य मटवी' सत्रं, कान्तारं काननं 2 पुनः // 1947 // कक्षः१३ षण्डं 14 च नामानि, मन्यन्ते विपिनस्य वै। . Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थस्तिर्यविभागः 321 * महारण्यनाम है महारण्य' मरण्यानो', विशालं वन मुच्यते // 1948 // * तृणाटवीनाम * तृणाटवी' च प्रस्तारो', झष स्तु बहुघासवत् / * आरामनामानि 8 पारामो' ऽपवनं' स्याच्च, वेल मुपवनं पुनः॥१९४६॥ निष्कुट' स्याद् गृहारामो, बाह्याराम' स्तु पौरक: / प्राकीडः' स्याद् तथोद्यान, राज्ञांत्वन्तः पुरोचितम् // 1950 // प्रमदवनं' राजीना, प्रमोदाय कृतं भवेत् / पुष्पवाटी' वृक्षवाटी, मन्त्रिवेश्यागृहस्थिता // 1951 // राज्याः क्रीडाकृते सैव, क्षुद्राराम:' प्रसोदिकारे / ॐ वृक्षनामानि ॐ वृक्षो' रूक्षो द्रुमो ऽद्रि इच, हरिद्रु ? महीरुहः // 1952 // पारोहक: कुट: कुठ:१०, कारस्करः'' करालिक:१२ / अगो'3 ऽगमो१४ नगो१५ गच्छः१६, . सीमिको हरितच्छदः१८ // 1953 // पादप:१६ पुष्पद:२० पर्णो२१ विटपो२२ विष्टर२३ स्तरु: 24 / Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 322 सुशीलनाममालायां शाल:२५ साल:२६ पलाशी च, पुलाकी२८ फलदी२६ वसुः // 1954 // शाखीच शिखरी३२ स्कन्धी 3, क्षितिरुह 4 श्च वह्निभू३५ / अंहिप३६ श्चाघ्रिपो३७ जन्तु 8, र्जीर्ण चरणप:४० कुजः४१ // 1955 // अनोकह२ उरु श्चैव, नन्द्यावर्स स्तथैव च / * एतन्नामानि मन्यन्ते, वृक्षस्य विबुधै जनैः // 1956 // * कुञ्जनामानि * ख्यातः कुञ्जो' निकुञ्ज श्च, कुडङ्गो ऽपि हि कथ्यते। त्रिणि नामानि मन्यन्ते, वृक्ष वृतान्तरे स्थले // 1957 // पुष्पं फलं क्रमात् पत्रं, वानस्पत्य' स्तु स द्रमा। वनस्पति स्तु स द्रुमः, फलमेव च पत्रकम् // 1958 // का फलेग्रहिनाम * ... फलेग्रहिः' फलावन्ध्यो, यः फलत्येव स. द्रुमः। - फलवन्ध्यनामानि (r). * फलवन्ध्यो' बँकेशी ची, -ऽवकेशो कथ्यतेऽपि वै / / 1956 // त्रिरिण नामानि वृक्षाणि, नार्पन्ति फलंकदा / 6 . .. Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थस्तिर्यविभागः 323 * फलवत्नामानि 8 .. 'फलयुक्त तरो नाम, फलवान्' फलिन: फली 11960 // ___ * ओषधीनामानि * फलपक्वानन्तर श्व, यस्य नाशः स औषधीः / "प्रोषधिर रोषधी चापि, नामत्रयं जवादिके // 1961 // / * क्षुपनाम * क्षुपो' लघुशिफा शाखो, व्यवहारे,निगद्यते / / * लतानामानि स . प्रतति' बतति वल्ली, वल्लि लता' ऽपि कथ्यते // 1962 // ख्यातः प्रतानिनी वीरुत्', उलपो' गुल्मिनी पुनः / ' एतन्नामानि मन्यन्ते, गुच्छवत्यां लतार्थके // 1963 // . . * अङकुरनामानि * अङ्कर', श्चाऽङकुरो रोहः, प्ररोह श्चाऽपि कथ्यते। - : * बलिशनाम के बलिशं' नाम तस्याऽस्ति, पर्वणो यः समुत्थितः // 1964 // / Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 324 सुशीलनाममालायां * शाखानामानि * शाखा' शिखा लता नाम, वृक्षाङ्ग च लघौ स्मृतम् / शाला' साला स्कन्धशाखा, बृहद्भाग स्तरो भवेत् // 1965 // * स्कन्धनाम * प्रकाण्डमस्तकं स्कन्धो', वृक्षस्य कथ्यते बुधैः / प्रकाण्डो' गण्डिका गण्डि; {लात् शाखावधि द्रुमः // 1966 // * शिफानाम * जटा' शिफा द्वयं नाम, वृक्षमूले हि मन्यते / ॐ स्तम्बनामानि * प्रकाण्डरहिते गुल्मो', विटपः२ स्तम्ब' उच्यते // 1967 // * शिरोनामनामानि * शिरो' ऽयं शिखरं शिरो-नाम वृक्षोलभागके / * वृक्षमूलनामानि * वृक्षाधोभागके मूल', श्चांहि स्तथाह्रिनाम वै // 1968 // अध्नो बुध्न' श्च नामापि, मन्यते पण्डितै जनैः / * वृक्षमज्जानाम * . सारो' मज्जा द्वयं नाम, वृक्षसत्वे निगद्यते // 1966 // . Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थस्तिर्यविभागः ___ 325 * वृक्षत्वग्नामानि 8 त्वचा' त्वक् वल्कलं वल्क, छल्ली चोचं च कथ्यते / * वृक्षस्थाणुनामानि (r) शुष्के वृक्षे स्थाणुः' शकु, ध्रुवश्च ध्र वको भवेत् // 1970 // .. ॐ काष्ठनामानि (r) दारु' दलिक मित्येवं, काष्ठ' नामापि कथ्यते / ___. * कोटरनाम 8 निष्कुहः' कोटर श्च, वृक्षान्त र्जायते स्थलम् // 1971 // * मञ्जरिनामानि * मञ्जा' च मञ्जरिः२ स्यु , वल्लरि' श्चापि वल्लरी'। . . ॐ पत्रनामानि ॐ पत्रं' पर्ण पलाशं च, छदनं चापि छदं दलम् // 1972 // बह चेति हि मन्यन्ते, पत्रनामानि पण्डितैः / * किसलयनामानि के किशलयं' नवे पत्रे, किसलयं च पल्लवम् // 1973 // किसलं चेति नामानि, कथ्यन्ते किसलस्य वै। Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 326 सुशीलनाममालाय अत्यन्तनूतने पत्रे, प्रवाल' श्च कथ्यते बुधैः // 1974 // : कोशी' शुङ्गा प्रवालन-भागो भवति निश्चयात् / * दलस्मसानाम * माढि' लस्नसा पत्र-नाडी बोधाय युज्यते // 1975 // ' * विटपनाम * विस्तारो' विटपरे श्चापि, वृक्षप्रसार बोधवान् / * पुष्पनामानि कुसुम' प्रसव: पुष्पं, सून सुमनस: सुमम // 1976 // मणीवकं प्रसून चे-ति नामानि सुमस्य वै / जालकः' क्षारका' नाम, नूतनकलिकार्थकः // 1978 // ' . कलिका' कोरक स्याच्च, कुसुमर्कालकार्थकः / कुड्मलं' मुकुल 2 चैत-दऽर्धस्फुटित कोरके // 1978 // * गुच्छनामानि * गुच्छो' गुञ्छो गुलुञ्छ इच, गुलुञ्छु गुत्सकः पुनः / गुत्स श्च स्तबको लुम्बी, नामान्यष्टौ च सन्ति वै // 1976 // ॐ परागनाम है परागो' नाम प्रख्यातः, पुष्परजो हि कथ्यते / Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थस्तिर्यविभाग: * मकरन्दनामानि 8 - मकरन्दो' मरन्द श्च, मधु' पुष्परसः पुनः // 1980 // " पुष्परसार्थक: काव्ये, कथ्यते कोविद किल / * वृन्तनाम * प्रसवबन्धनं वृन्त', फलपुष्पावलम्बने // 1981 // * विकसितपुष्पनामानि * विकसितं' विनिद्र' उच, विमुद्र विकचं स्मितम् / उन्निनं हसितं स्मेर', व्याकोशं स्फुटितं स्फुटम् // 1982 // उन्मि षतं.२ तयोज्जृम्भं१३, प्रबुद्ध विजृम्भितम् 15 / संकुल्लं'" फुल्ल' मुत्फुल्लं', __ प्रफुल्ल 6 दलितं पुनः // 1983 // उच्छवसितं२१ च नामानि, स्फुटपुष्पस्य सन्ति वै। ॐ सङ्कुचितपुष्पनामानि 8 . सकुचितं' च निद्राणं२, मुद्रितं मिलितं भवेत् 11984 // ' * फलनामानि' फलं सस्य तथा शस्यं , वान' शुष्कं फलं भवेत् / शलाद' कथ्यते ऽपक्वं, फलं तद् ग्रन्थि रुच्यते 1985" Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 328 .. सुशीलनाममालायां प्रन्थिनामानि परुः' पर्व तथा ग्रन्थिः२, त्रीणि नामानि सन्ति वै। * बीजकोशीनामानि * शिम्बा' शिम्बीर शमी शिम्बिः४, बीजकोशी तथा शिमिः // 1986 // एतन्नामानि मन्यन्ते, बीजकोशस्य साक्षरः। , * पिप्पलवृक्षनामानि * अश्वत्थः' पिप्पल: 2 ख्यातः, श्रीवृक्षः कुञ्जराशनः // 1987n कृष्णावासो' बोधिसत्त्वो', बोधितरु स्तथैव च / चलदल च नामानि, मन्यन्ते पिप्पलस्य वै // 1988 // पुन र्नामाऽपि तद्भेदः, प्लक्ष' श्च पर्कटी जटी। . ___ * वटवृक्षनामानि * न्यग्रोध' स्तु बहुपा स्याद्, वटो' वैश्रवणालयः // 1986 // * उदुम्बरनामानि * जन्तुफल' श्च यज्ञाङ्गः२, उडुम्बर: उदुम्बरः / मशकी' हेमदुग्धक, स्तभेदो जघनेफला' // 196on . . काकोदुम्बरिका फल्गु, मलयु रपि मन्यते। Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थस्तिर्यविभागः 324 * आम्रवृक्षनामानि * पाम्र' चूत इच माकन्दः, सहकारो ऽपि कथ्यते // 1961 // पुनः प्राम्रतरो नाम, रसालो' ऽपि प्रसिद्धकः / . * सप्तपर्णनामानि * शारदः' शारदी सप्त, -वर्ण श्च विषमच्छद. // 1992 // प्रयुक्छदो विशालत्वक', षड् नामानि सन्ति च / * शोभाञ्जननामानि * शोभाजन' स्तथाऽक्षीवो', मोचक स्तीक्ष्णगन्धक:४ // 1963 // शिग्रुः५ सोभाजनो नाम, सौभाञ्जनः शौभाञ्जनः / पुन नम्निोऽत्रभेदे, श्वेतमरिच: उच्यते // 1964 // ___ * पुग्नागनाम * पुन्नाग' नाम प्रख्यातः, कथ्यते सुरपरिणका / ___ के बकुलनामानि * बकुलः' केसरः२ ख्यातः, केशरो ऽपि प्रयुज्यते // 1995 // .... * अशोकवृक्षनामानि * कङ्केल्लि' व लो ऽशोको', शोकवृक्षस्य नाम वै / Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालायो * अर्जुनवृक्षनामानि * अर्जुन' श्च नदोसर्जः२, इन्द्रद्रुः ककुभः पुनः // 1966 // वीरतक' श्चेति नामानि, कथ्यन्ते ककुभस्य वै / * बिल्वनामानि * शाण्डिल्यः' श्रीफलो विल्वः, शैलूंष श्च प्रसिद्धकः // 1667 // मालूर' श्चेति नामानि, मन्यन्ते श्रीफलस्य वै।। ॐ कुरण्टकनामानि ॐ किङ्किरातः कुरुण्टक:२ कुरण्टक: कुरण्डकः // 1998 // * पलाशनामानि * पलाशः' किंशुक.२ पर्णः३, वातपोथ खिपत्रकः / ब्रह्मपादप नाम्नाऽत्र, पलाशः प्रथितो बुधैः // 1966 // ' * तालवृक्षनामानि 8 तृणराज' स्तल' स्तालः, सर्वत्र ख्यात एव च / ॐ कदलीनामानि 8 कदलः' कदली रम्भा , काष्ठीला चांशुमत्फला // 2000 / ' मोचा वै वारणबुसा", वारणबुषा ऽपि ज्ञायताम् / Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थस्तिर्यविभागः ____ 331 * करवीरनामानि * चण्डातो' हयमार श्च, करवीरः प्रसिद्धकः // 2001 // प्रतिहासः' प्रतीहास.५, शतप्रासो' ऽपि कथ्यते / * कुटजनामानि * कुटजो' वत्सकः शक्रः, स्यात् तथा गिरिमल्लिका // 2002 // * वेतसनामानि * वेतसो' वजुल: शीतो, विदुरो विदुलो' रथः / अभ्रपुष्प श्च वानीरो', श्चेति नामानि सन्ति वै // 2003 // * बदरीफलनामानि ॐ कोला' कोली तथा कोलिः3, कुवली बदरी किल / कर्कन्धु श्चापि कर्कन्धूः", श्चेति नामानि सन्ति वै // 2004 // * कदम्बनामानि , कदम्बः' प्रियको नीपो, हरिप्रियो हलिप्रियः / धाराकदम्ब नामाऽपि, राजकदम्ब उच्यते // 2005 // ____ॐ सालवृक्षनामानि ॐ साल:' श्याल' स्तथा सर्जः३, कार्य: कार्यो ऽश्वकर्णकः / सस्यसंवर नामा सः, शस्यसंवर' इत्यपि // 2006 // Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 332 सुशीलनाममालाया * अरिष्टवृक्षनाम * अरिष्टः१ फेनिलो नामा, -ऽरिष्टवृक्षस्य कथ्यते। ॐ निम्बवृक्षनामानि 8 ख्यातो निम्ब' स्तथाऽरिष्ट:२, पिचुमर्द' श्च मालकः // 2007 // पिचुमन्दः५ पुन हिङगु-निर्यास" नामं वै द्र मः / सर्वतोभद्र' नामापि निम्बवृक्षस्य मन्यते // 2008 // ___ पिचुलवृक्षनामानि * पिचुलो' झाबुकर श्चैव, भावुकः कथ्यते पुनः / * कर्पासनामानि * कर्यास' श्चैव कसी, कार्पासी चापि बादरः // 2006 // पिचव्यो' बदरा चेति, नामानि बादरस्य वै / पिचु' श्च तूलकं नाम, पिचो नै कथ्यते बुधैः // 2010 // * कृतमालनामानि * शम्याक:' कृतमाल' श्चा -ऽऽरग्वधो ऽरग्वधो ऽर्वधः / राजवृक्ष' श्च शम्पाक., सम्पाक श्चतुरगुलः // 2011 // अरेवतः सुपर्णको'', व्याधिधातः१२ सुवर्णकः१३ / एतन्नामानि कथ्यन्ते, कृतमालस्य कोविदः // 2012 // Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थस्तिर्यग विभागः 333 * वाशिकानामानि के वासको' वाशिका वाशा', वासा' च वाजिदन्तकः / वैद्यमाता वृषः सिंही, सिहास्यः प्रसिद्धकः // 2013 // पाटरूषो' ऽटरूष 1 श्चा, ऽटरूषको१२ ऽटरूषक:१३ / एतन्नामानि मन्यन्ते, वृषस्य विबुधै भुवि // 2014 / / * करञ्जवक्षनामनि के करजो' नक्तमाल' श्च, रक्तमाल स्तथैव च / करज श्चिरबिल्व' च, चिरिबिल्वो ऽपि कथ्यते // 2015 // * स्नुहिनामानि के स्नुहा' स्नुहि व्रज' श्चैव: महातरु स्तथैव च / पुनः सिहुण्ड'-सीहुण्डौर, स्नुक्' तु स्नुही गुडा' तथा // 2016 // समन्तदुग्धा' ऽपि भेदः, स्नुहोवृक्षस्य मन्यते / * किम्पाकवृक्षनाम * महाकाल' श्च किम्पाक:२, किम्पाकस्याऽस्ति नाम वै // 2017 // __* मन्दारनामानि * मन्दारः पारिभद्रक:२, प्रख्यातः पारिजातक: / चेति नामानि कल्पस्य, मिष्टनिम्बस्य वै पुनः // 2018 // . ... Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालायां ॐ मधूकनामानि (r). .. गुडपुष्पो' मधुष्ठीलो', वानप्रस्थो मधुद्र मः। मधूको मधुक' श्चेति, नामानि मधुकस्य वै // 2016 // . ___ * पोलुवृक्षनामानि * पोलुः' नसो' सिन' श्चैव, गुडफलो ऽपि कथ्यते / ॐ गुग्गुलवृक्षनामानि * गुग्गुलो' गुग्गुलुः कुम्भः, कौशिक श्च पलङ्कषः // 2020 // पुर' श्चोलूखलक ञ्च, नामानि गुग्गुलस्य वै। * राजादननामानि * राजादनः' पियाल' श्च, प्रियाल' श्च धनुः पट: // 2021 / / राजातनो धनु" श्चैव, सन्नकद्र पट: पुनः / . एतन्नामानि मन्यन्ते, राजादनद्र मस्य वै // 2022 // ॐ तिनिशवृक्षनामानि 8 तिनिशः' स्यन्दनो नेमी३, नेमि' स्तथा ऽतिमुक्तक:५। . रथद्र मो रथद् " श्च, वजुल' श्चापि चित्रकृत् // 2023 / . . . . एतन्नामानि कथयन्ते, रथमेद्रुमस्य वै / Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थस्तिर्यविभागः -335 ॐ नारङ्गवृक्षनामानि (r) ऐरावत' श्च नारङ्गो, नागरङ्गः प्रसिद्धकः // 2024 // नार्यङ्ग श्चेति नामानि, नागरगनगस्य वै / * इङ्गुदीनाम * : इङगुदी' तापसद्रुमः२ ख्यात श्च कथ्यते बुधैः // 2025 // * काश्मरीवृक्ष नामानि * काश्मयः' काश्मरी' चैव, कन्भारी मधुपरिणका / श्रीपर्णी सर्वतोभद्रा, भद्रपर्णी तथैव च / / 2026 // * गम्भारी चेति नामानि, काश्मरीविष्टरस्य वै.। . . . * आम्लीकावृक्षनामानि * * प्राम्लोका' चाऽम्लिका चिञ्चा, चाऽम्ब्लिका तिन्तिली' तथा // 2027 // तिन्तिडी' चेति नामानि, मन्यन्ते तिन्तिडोतरोः / * शेलुनामानि.* .शेलुः' श्लेष्मातक: सेलु, स्तरु भेद उदाहृतः // 2028 // .. . .. अशनवृक्षनामानि ॐ प्रसन'.श्चाऽऽसन २.३चैव, बन्धूकपुष्प जीवको। . / Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशोलनाममालायां प्रियक: पीतसाल इच, सर्जक: पीतसारक: / / 2026 // . एतन्नामानि मन्यन्ते, प्रियकपादपस्य वै। . . * पाटलिनामानि * पाटला' पाटलि२ श्चैव, मोघा ऽमोघा फलेल्हा // 2030 // कृष्णवन्ता कुबेराक्षी', कालास्थाली तथैव च। काचस्थाली च नामानि, पाटलेः सम्भवन्ति वै // 2031 // * भोजपत्रवृक्षनामानि * भूर्ज' श्चर्मो बहुत्वको', मृदुत्वक् च मृदुच्छदः / भोजपत्रवृक्षस्य च, नामान्येतानि सन्ति वै // 2032 // ___के कणिकारनामानि के करिणकारः' परिव्याधो, द्रुमोत्पलो ऽपि मन्यते / * निचुलनामानि * इज्जलो' ऽम्बुजो हिज्जलो, निचुलो ऽपि हि कथ्यते // 2033 // * आमलकीनामानि * प्रामलको' शिवा धात्री, तिष्यफला तथाऽमृता' / वयस्था चेति नामानि, शिवायाः सम्भवन्ति वै // 2034 // Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थस्तिर्यविभागः 337 * बिभीतकनामानि के कर्षफलो' कलिद्र मो२, बिभीतको बिभेदकः / / भूतावास 'स्तुषो ऽक्ष श्चे-ति नामानि तुषस्य वै // 2035 / / * हरीतकीनामानि 8 हरीतकी' च कायस्था', ऽव्यथा शिवा ऽभया' ऽमृता / वयस्था पूतना पथ्या', चेतको श्रेयसी'' तथा // 2036 / / हैमवती'२ च नामानि, हरितक्या श्च सन्ति / . * त्रिफलानाम ... प्रसिद्धा त्रिफला' नाम, फलत्रयस्य योगतः // 2037 // * तमालवक्षनामानि / कालस्कन्ध' स्तमाल' श्च, तापिञ्ज श्च प्रसिद्धकः। तापिच्छ श्चापि तापिञ्छ', श्चेति नामानि सन्ति वै॥२०३८॥ - चम्पक नामानि . हेमपुष्पक' नामायं, चम्पार-चाम्पेय'-चम्पका: / सिन्दुकनामांनि * निर्गुण्डी' सिन्दुवार' श्च, सिन्दुकः सिन्धुकः पुन: // 2036 / / इन्द्रसुरस रिन्द्रसु-रिस रिन्द्राणिका तथा / ग... Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 338 सुशीलनाममालायां निर्गुण्टी चापि निर्गण्ठी , चेति नामानि सन्ति वै / / 2040 // . . * वासन्तीनामानि 8 वासन्तो' माधवी चापि, पुण्ड्रा स्तथाऽतिमुक्तकः / .. लता चेति हि नामानि, वासन्त्या: सम्भवन्ति वै // 2041 // . __ * जपापुष्पनामानि * प्रौड़पुष्पं' जपापुष्प मोड़पुष्पं जपा जवा। * मालतीपुष्पनामानि * जाति' स्तु मालती जाती, सुमनाः सुमना तथा // 2042 // * मल्लिकापुष्पनामानि ॐ मल्लिका' तृणशून्यं च, विचकिल श्च भूपदी / ... शतभीरु स्तथा शीत-भीर नामानि सन्ति वै // 2043 // ॐ सप्तलानामानि * सप्तला नवर्माल्लकार, तथैव नवमालिका' / * मागधीपुष्पनामानि * मागधी' यूथिका ऽम्बष्ठा, गरिणका पि च तद्भिदा // 2044 // हेमपुष्पिका' च पितायाः, यूथिकाया भिदा स्मृता। Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थस्तिर्यविभागः 333 ___ * पियङ्गुनामानि (r) पिथगुः प्रियक: श्यामा, गुन्द्रा गोवन्दनी' तया // 2 45 // विश्वक्सेना' च कारम्भा , लता च महिलाह्वया। / गन्धफली' फली' नाम-गणनायां फलिनी१२ पुनः // 2046 // - ॐ बन्धूकनामानि 8 रक्तको' बन्धूक 2 श्चैव, बन्धुको बन्धुजीवकः / * करुण नाम * करुणो' मल्लिकापुष्पः२, पुष्पस्यैव भिदा स्मृता // 2047 // * जम्बोरनामानि * जम्बीरो' जम्बिरो जम्भो, जम्भीरो जम्भर स्तथा / दन्तशठो ऽपि जम्बल', श्चेति नामानि सन्ति वै // 2048 // * मातुलुङ्गनामानि * रुचको' मातुलिङ्ग श्च, मातुलुङ्ग स्तथैव च / बीजपूर श्च नामास्ति, फलपूरो' ऽपि मन्यते // 2046 // * करीरनामानि ॐ करीरः' ऋकर' इचव, ग्रन्थिलो ऽपि हि कथ्यते। Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . 340 सुशोलनाममालायां ___ * एरण्डनामानि के एरण्डो' व्याघ्रपुच्छर श्च, चञ्चुः पञ्चाङ्गुलः पुनः // 2050 " गन्धर्वहस्तको मुण्डो', व्यडम्बको व्यडम्बनः / हवूको रूवुक' श्चव, वर्द्धमान'' श्व चित्रक:१२ // 2051 // रुचक' 3 उरुवूक 14 श्च, ख्यात उरुवुकः१५ पुनः / .. एतन्नामानि मन्यन्ते, पञ्चाङ्गुलस्य पण्डितः / / 2052 / / * धातकीनामानि * अग्निज्वाला' सुभिक्षा च, धातको धातुपुष्पिका। नामान्येतानि कथ्यन्ते, पुनश्च धातृपुष्पिका" // 20.3 // " * कपिकच्छूनामानि / कण्डूरा' कण्डुरा' ऽव्यण्डा, कपिकच्छू जहा' ऽजहा। ऋष्यप्रोक्ता ऽऽत्मगुप्ताच, मर्कटो प्रावृषायणो * // 2054 // शूकशिम्बा 1 तथा शूक-, शिम्बि'२ श्च कपिकच्छुक नामान्येतानि मन्यन्ते, कण्डुरायाश्च कोविदः / / 2055 // * धत्तरनामानि * ' धत्तूरो' धुतुरो धूर्ती, धुस्तुरो धुस्तुर स्तथा / / / धूस्तूरो मातुल श्चैव, धुत्तूर: कनकायः / / 5 / 2056 / / Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 341 ....... .... चतुर्थस्तिर्यविभागः उन्मत्तः१० कितव' 1 श्चापि, प्रख्यातो मदनः पुनः / 'नामान्येतानि कथ्यन्ते, धत्तूरस्य हि पण्डितैः // 2057 / / ॐ कपित्थनामानि * कपित्थो' मन्मथो ग्राहो', कबित्थो ऽपि तथैव च / दधिफलो' दधित्थ' श्च, पुष्पफलः प्रसिद्धकः // 2058 // दन्तशठ८ श्च नामानि, मन्यन्ते मन्मथस्य वै / * नालिकेरनामानि * नालिकेरो' नारीकेलो, नारिकेल' श्च लागली // 2056 / / नारिकेरो' नारीकेली, नारिकेलि स्तथैव च। एतन्नामानि कथ्यन्ते, नालिकेरस्य कोविदः // 2060 // अाम्रातकनामानि * पोतनो' ऽम्रातक श्चैव, वर्षपाको कपीतनः / प्राम्रातक ३च नामानि, मन्यन्ते ऽम्रातकस्य वै // 2061 // * केतकनाम * केतक:' केतको नाम, कथ्यते ऋकचच्छदः / ... * कोविदारनामानि * कुद्दालः: कोविदारः स्याद्, युगपत्र श्चमरिकः / / 2062 / / Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालाया * सल्लकोनामानि * . . शल्लकी' सल्लको श्चापि, सिल्लकी सुवहा रसा। सुरभी सुरभि श्चापि, ह्लादिनो ह्रादिनी' तथा // 2063 / / कुन्दुरुको गजप्रिया'', महेरुणा 2 महेरणा / गजभक्ष्या१४ गजभक्षा१५, श्चेति नामानि सन्ति वै // 2064 / / * वंशनामानि (r).. वंशो' वेणु' च कर्मारः३, शतपर्वा च मश्करः। तृणध्वजो ऽपि त्वक्सार, स्त्वचिसार श्च तेजनः // 2065 // यवफल'श्च नामानि, वंशस्य कथयन्ति वै। . * कीचकनाम. * प्रसिद्धः कीचको' नाम, स्वनन् वातात् स कथ्यते // 2066 // * वंशक्षीरीनामानि (r) वंशक्षीरी' तुकाक्षीरी', त्वक्षीरी वंशरोचना / एतन्नामानि मन्यन्ते, बुध श्च वंशलोचना // 2067 / / * पूगनामानि * पूगो' घोण्टा गुवाक' श्च, गूवाक: खपुरः५ पुनः / क्रमुक श्चेति नामानि, पूगद्र मस्य सन्ति वै // 2068 // - Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थस्तिर्य विभागः ....... 34 * उद्वेगनाम * उद्वगं' नाम प्रख्यातं, पूगफलस्य मन्यते // 2066 // * नागवल्लीनामानि * ताम्बूली' ताम्बूलवल्ली२, नागपर्यायवल्ल्यपि / नागवल्ली सर्पवल्ली', फणिलता' ऽपि कथ्यते // 2070 // * तुम्बीनामानि * तुम्बी' तुम्बि रलाम्बू श्च, तुम्बा ऽऽलाबु स्तथैव च / लाबु लाबू स्तथा ऽलाबू, श्चाऽऽलाब्ः सन्ति वै पुनः // 2071 * गुञ्जानामानि 8 गुञ्जा' च कृष्णला काक-चिञ्चो काकाचिञ्चि स्तथा। कार्काचञ्चां च नामानि, गुञ्जायाः कथयन्ति वै // 2072 / / . * द्राक्षानामानि * द्राक्षा' मधुरसा स्वाद्वी', गोस्तना' गोस्तनी तथा। मृद्वोका हारहूरा च, द्राक्षानामानि सन्ति वै // 2073 / / ॐ गोक्षुरनामानि ॐ गोक्षुर' इक्षुगन्धा च, श्वदंष्ट्रा' स्वादुकण्टकः / तथा स्थलशृङ्गाट' श्च, गोकण्टक स्त्रिकण्टक: // 2074 // Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .. 344 सुशीलनाममालायां प्रसिद्धो वनशृङ्गाट:', पलङ्कषा' पुनः खलु। एतन्नामानि मन्यन्ते, गोक्षुरस्य महोतले // 2075 // : . . . * गिरिकर्णीनामानि 8 विष्णुक्रान्ता' तथा ऽऽस्फोटा२, ऽऽस्फोता' चाप्यपराजिता / प्रसिद्धा गिरिकर्णी' चा, -ऽप्रतिहता पुन भवेत् / / 2076 / / . व्याघ्रीनामानि * कुली' व्याघ्री स्पृशी' क्षुद्रा, निदिग्धिका निदिग्धिका / प्रचोदनो' च दुःस्पर्शा, राष्ट्रिका कण्टकारिका'• // 2077 // बृहती" चेति नामानि, कोविदाः कथयन्ति वै / * गडूचीनामानि के गडूची' गडुची छिन्न-रुहा जीवन्तिका पुनः // 2078 / / अमृता सोमवल्ली' च, वत्सादनी' च तन्त्रिका। विशल्या मधुपर्णी' च नामानि दश सन्ति वै // 2076 / / * इन्द्रवारुणीनामानि * चित्रा' गवाक्षी गोडुम्बा, विशाला चेन्द्रवारुणी / एतन्नामानि मन्यन्ते, विशालाया श्च साक्षरः // 2060 // * उशीरनामानि * . उशीरं' वोरणोमूलं', लामजकं जलाशयम् / . Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थस्तिर्यगविभागः 36 अभय-ऽममृणाल' ञ्च, नलद मिष्टकापथम् // 2081 // सेव्यं तथाऽवदाह' च, ख्यातं लघुलयं' पुनः / नामान्येतानि मन्यन्ते, सेव्यस्य विबुधैः खलु // 2082 // वीरतरं च वीरणं', नामापि कथ्यते पुनः / ॐ ह्रीबेरनामानि * केशाम्बुनाम' चोदीच्यं, ह्रीबेरं वालकं जलम् // 2083 // बहिष्ठं चापि प्रसिद्धं, केशजलं क्वचिद् भवेत् / . * प्रपुन्नाटनामानि * प्रपुन्नाट:' प्रपुन्नाड.२, प्रपुन्नाल स्तथैव च // 2084 // पद्माट: प्रपुनाड इच, प्रपुनालः प्रपुनडः / उरणाख्यश्च दद्रुघ्नो', दद्र्धन' श्चक्रमर्दक: 1 // 2085 // एडगज'२ स्तथैव स्यादेलगज 3 श्च व्याहृतौ / नामान्येतानि कथ्यन्ते, प्रपुन्नाटस्य पण्डित // 2086 // . * कुसुम्भनामानि * . लट्वा' वह्नि शिखं चैव, कुसुम्भं कमलोत्तरम् / महारजनं नामाऽपि, कथ्यते कुसुम्भस्य वै // 2087 / / ... .. * लोध्रनामानि * लोध्रो' रोध्र स्तिरीट' श्च, शावर: साबर' स्तथा। Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 346 सुशीलनाममालाया मार्जनो गालव स्तिल्वः, श्चेति नामानि सन्ति वै // 2088 // के कमलिनीनामानि * कमलिनी' मृणालिनी, नलिनी नडिनी तथा। पुट किनी' च पद्मिनी', पङ्कजिनी सरोजिनी // 2086 // बिसिनी चेति नामानि, मन्यन्ते पण्डित जनैः / * कमलनामानि * कमल' मऽरविन्दं च, नालीकं नलिनं पुनः // 2060 // पद्म५ बिसप्रसूतं च, सरोजन्म सरोरुहम् / कुशेशयं सरोरुट' च, सरोजं सरसोरुहम्'२ // 2061 / पुष्करं१३ शतपत्रं१४ च, पङ्कजं१५ पङ्कजन्म१६ च / पङ्करुट' पङ्करुहं च, तामरसं१६ महोत्पलम्२० // 2062 / / ख्यातं विसप्रसूत२१ च विसप्रसून 2 मित्यपि / जलजं२३ जलरुट 24 चैव, जलरुहं२५ च वारिजम्२६ // 2063 // जलजन्म 27 च राजोवं२८, सहस्रपत्र 26 मित्यपि / एतन्नामानि मन्यन्ते, सामान्य कमलस्य वै // 2064 // . 8 विशेषकमलनामानि * पुण्डरीक सिताम्भोज', श्वेतं कमल मुच्यते। . . कोकन' रक्तोत्पलं२, भवेद् रक्तसरोरुहम् // 2065 // . Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थस्तिर्यविभागः 347 कुमुदिनी' कुमुद्वती', कैरविणी' च तल्लता। कुवलयं' कुवेलं' च. कुवं च कुवलं पुनः // 2066 / / उत्पलं चेति नामानि कुवलय हि सन्ति वै / श्वेते तु तत्र कैरवं', कुमुदंर गर्दभाह्वयम् // 2067 / / कुमुद् चेति नामाऽपि, चन्द्रोदयेन फुल्लति / नीले विन्दिवरं चेन्दी-वारं चेन्दोवरं तथा // 2068 // नीलाम्बुजन्म नामापि नीलकमल मुच्यते / रक्तोत्पलं' च हल्लक, तदेव रक्तसन्ध्यकम् // 2066 // एतत् पद्म रक्तवर्ण, सायङ्काले प्रफुल्लति / सौगन्धिक' ञ्च कल्हार, शुक्लं सायं विकाशि तत् // 2100 // . कणिकानामानि * करिणका' बीजकोश श्च, वराटको' ऽपि कथ्यते / ॐ पद्मनालनामानि के पद्मनालं' मृणाल' ञ्च, प्रख्यातं तन्तुलं तथा // 2101 // विशं बिसं विसं चेति, नामानि तन्तुलस्य वै / .. केसरनामानि * किजलकं' केसरं नाम, केशरः करिणकान्तिके // 2102 // Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 348 5. 'सुशीलनाममालाया * संवर्तिकानामानि * .. संतिका' नवं पत्रं, कथ्यते पण्डित जनैः / * पुन नैवदलं' नाम, शरयन्त्रिक मित्यपि // 2103 // . * कन्दनामानि * करहाटः शिफा कन्दः', शिफाकन्द श्च मूलभाक् / . * शालूकनाम * , शालूक' मपि भेदोऽस्ति, पद्ममूलस्य नामनि // 2104 // . . . ॐ शेवालनामानि 8 शेवालं' जलशूक च, शेषालं जलनोलिका' / शेफालं५ जलनीली'च, शेवलं शैवलं तथा // 2105 / / शैवालं चापि नीली' 0 स्यु,-नामानि शैवलस्य वै। . * धान्यनामानि * धान्यं ' सस्य तथा सीत्यं, वीहिः स्तम्बकरिः५ पुनः।। 2106 // पाटलो' व्रीहि राशुः स्याद्, गर्भपाको' च षष्टिकः / शालयः' कलमाद्याः स्युः, कलमच कलामकः // 2107 // . पुनः ख्यातो महाशालिः', सुगन्धिको ऽपि कथ्यते / . लोहितो' रक्तशालि:२ श्च, नामतः प्रथितं भुविः // 2108 / / Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थस्तिर्यविभागः 346 * विभिन्नधान्यनामानि * : - . यवो' हयप्रियो लोके, तीक्ष्णशूक श्च स स्मृतः / ..... / स एव हरित स्तोक्मः', कथ्यते कोविदः किल / / 2106 // .... / मङ्गल्यको' मसूर: स्यात्, सातीन' स्तु:सतीनकः / . . . . . कलायः खण्डिक इचैव, हरेणु स्त्रिपुटः पुनः // 2110 // / ... प्रसिद्ध श्चणक' श्चक, हरिमन्थक उच्यते। . . . . माष' श्च मदनो 'वृष्यो, नन्दी बीजवरो' बली' / / 2111 // / ' एतन्नामानि मन्यन्ते, माषस्य हि महीतलें / . . . पुन मुद्गो' 'बलाट श्च, प्रथनो हस्तिो हरिः / / 2112 // 1. लोभ्यः श्चेति हि नामानि, पुनरत्र विशेषतः / / / / पोते ऽस्मिन् शारद' चैब, खण्डोर' श्च ज़यो- वसुः // 2113 / / प्रवेल' श्च पुनः कृष्णे, प्रवरों' हरिमन्थनः / 5 / / वासन्तः शिम्बिक श्चैव वनमुद्गे, निगूढक:' / / 2114 / / : 14 कुलीनक स्याखण्डी, तुबरक्रः असिद्धकः / / 8 / एतन्नामानि सर्वाणि; मुद्गस्य प्रथ्यन्ति वै।।२.११५॥ . 1: / प्रथ व राजमुद्गश्च, मकुष्ठको मयुष्ठकः / 8... / मकुष्टकोण काकूष्टको मुकुष्टको मयुषटकः // 2116 // // 11 // मयष्टकोम मपाठ इच, मंगष्टकोने सपुष्ठकका '' / मपुष्ठति नामानिनमपुष्ठस्य मुवन्तिा लि . Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 350 सुशीलनाममालायां गोधूम' नाम प्रख्यातः, सुमनो ऽपि कथ्यते। .. वल्ल' स्तु शितशिम्बिकः२, सितशिम्बिक उच्यते // 2118 // निष्पाव' इति नामापि, वल्लस्य मन्यते बुधैः / कुलत्थ' कालवृन्त श्च, ताम्रवृन्ता' कुलत्यिका // 2116 // . . प्राढको ' तुवरी ख्याता, वर्णाः चेत्यपि मन्यते / कुल्मासो' यावक श्चैव, कुल्माषो. ऽपि कथ्यते // 2120 // नीवार' श्च वनव्रीहिः२, स्यातां श्यामाक' - श्यामको / कॉ' ३च कङ्गुनी क्वगुः, कङ्ग् श्च पिततण्डुला // 2121 // प्रियङ्गु श्चेति नामानि, कथ्यन्ते पण्डितः पुनः / / मधुका' कृष्णकगुः स्यात्, शोधिका' रक्त कङगुनी // 2122 // मुसटी' श्वेतकङ्गु स्याद्, माधवी' पीतकङ गुनी। उद्दालः' काद्रव स्यान्च, कोद्रवः कोरदूषकः // 2123 // चीनक:' काकगु श्च, भेदः कङ्गो रिह स्मृतः / के यवनालनामानि के विख्यातो यवनाल' श्च, योनलो' बोजपुष्पिका // 2124 // जूर्णाह्वय ३च, जोन्नाला', देवधान्यं तथैव च / मातुलानी' शरणं' भङ्गा', भवेदुमा' क्षुमारे ऽतसी // 2125 // गवेडु' स्याद् गवेधु श्च, गवीधूका गवेधुका। / Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थस्तिर्यविभागः 351 अरण्यज स्तिलः ख्यातो, जत्तिलः' कथ्यते बुधैः // 2126 // वन्ध्यं षष्ढतिल:' स्याच्च, तिलादी पिञ्ज'-पेजको / तन्तुभ' स्तुन्तुभो लोके, सर्षप: स्यात् कदम्बकः // 2127 // श्वेतवर्णः सर्षप स्तु, सिद्धार्थः' श्वेतसर्षप:२ / शमीधान्य' मनेकस्य, मुद्गादे नाम मन्यते // 2128 // शूकधान्यं' यवादीनां, नाम प्रख्यापितं किल / सस्यशूक' च किंशारु:, धान्यानो भाग उच्यते // 2126 // करिणशं' कनिश चैव, करिगष: सस्यशीर्षकम् / सस्यमञ्जरी नामांपि, कथ्यते कनिशस्य वै // 2130 // स्तम्बो' गुच्छो धान्यमूले, नालं' काण्डो भवेत् पुनः / पलाल' श्च पलो ऽफलः, स्यात् तु वै धान्यत्वक् तुषः // 2131 // बुसे' कडङ्गरो' बुषं३, चेति नामानि सन्ति वै। प्रावसितं' तथा धान्यं 2, रिद्ध माऽऽवासितं पुनः // 2132 // ऋद्धं सिद्ध सुसम्पन्नं ; चेति नामानि सन्ति हि। शूर्पादिना स्वच्छभूतं, पूतं' स्यान्निर्बुसीकृतम् // 2133 // धान्ये परिष्कृते लोकः, कथ्यते वहुलोकृतम् / _____* मूलादिनामानि के मूलं' पत्रं हि वृक्षादेः, प्रसिद्ध फलमित्यपि // 2134 // करीर' मस्ति वंशस्यां-कुरे ऽयं पूर्वभागतः / Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 352 सुशीलनाममालाया ..................... काण्ड' मेरण्डवंशादौ, विरूढः' स्यात् फलाकुरे // 2135 // विरुद्धका ऽपि प्रख्यातं, तदर्थे कथ्यते बुधैः / / तालबीजे ऽविरूढकं', त्वक् कदल्या निरीक्ष्यताम् // 2136 // करोरादिद्रुमपुष्पं, पुष्पं हि कथ्यते पुनः / भूच्छत्राकस्य कन्दं वै, कवकं मन्यते बुधैः // 2137 / / शाकं' च शिकं चेति, दशधा खाद्य वस्तुनि / * शाकविशेषनामानि *. मेघनाद' स्तण्डुलीय, स्तण्डुलेरो ऽल्पमारिषः // 2138 // रक्तफला' तथा तुण्डि-केरो' च तुण्डिकेरिका / . तुण्डिकेशी तथा बिम्बो', पोलुपर्णो च सन्ति वै // 2136 // जीवन्ती' जीवनीया' च जीवा च जीवनी पुनः / मधु' मधुस्रवा श्रवा', चेति नामानि सन्ति वै // 2140 // वास्तूकं' वास्तुकर चैव, क्षारपत्र प्रसिद्धकम् / क्षीरपत्र पुन श्चेति, नासानि कथयन्ति वै // 2141 // ' पालक्या नाम प्रख्यातं, तथैव मधुसूदनो। * लशुननामानि * लशून' लशुनो ऽ रिष्टो', महाकन्दो' महौषधम् // 2142 / / रसोनो' म्लेच्छकन्द" श्च, सप्त नामानि सन्ति वै / Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थस्तिर्यविभागः दीर्घपत्रक' नामापि, रसोनो गृजनो भवेत् // 2143 // __* भृङ्गराजनामानि * भृङ्गरजो' भृङ्गरागो, मार्कवः केशरञ्जनः / * विभिन्नशाकनामानि * वायसी' काकमाची च, शाकार्थेषु विशेषतः // 2144 // प्रसिद्धः कारवेल' इच, कटल्लक स्तथैव च / कटिल्लक: कठिल्लकः, सुषवी' सुसवी पुन: // 2145 // कूष्माण्डक' श्च, कर्कारु:२, कोशातकी' पटोलिका। चिर्भटी' चिभिटी' चैव, वालुङ्को कर्कटी तथा // 2146 // एवारु' नपुसो चोर्वा ह° श्चोर्वालु पुनः खलु / एलु श्चेति नामानि, कर्कटयाः कथयन्ति वै // 2147 // सूरणः' सुरणः२ कन्दो', भवेदर्शोघ्न इत्यपि / प्रसिद्धमाऽऽर्द्र कं' चैव श्रृङ्गाबेरक मुच्यते // 2148 // तिक्तपत्रः' किलासघ्नः२, कर्कोटक: सुगन्धक: / सेकिम' हरिपरणं च, मूलक हस्तिदन्तकम् // 2146 // ॐ तृणादिनामानि 8 तृणं' नडादि नीवारा-दिकं शष्पं तु तन्नवम् / कसृणं शैहिषं पोरं, देवजग्धं सौगन्धिकम् // 2150 // Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 354 सुशीलनाममालायां दर्भ:' कुथः कुशो' बहिः, पवित्रं नाम पञ्चमम् / तेजन' स्तु शरो गुन्द्रो', मुजो नाम चतुर्थकम् // 2151 // हरिताली' रुहा' ऽनन्ता', दूर्वा च शतपरिणका / तथा सहस्रवीर्या च, भार्गवी शतपविका // 2152 // पोटगल' स्तु प्रख्यातो, घमन इच नडो नलः४। मेघनामा' स्तु वै मुस्ता, कुरुविन्द श्च मुस्तकः // 2153 // : गुन्द्रा' तु सोत्तमा ख्याता, स्यादपि भद्रमुस्तकः / उलपो' बल्वजारे चैवं, भवेत् कोमलघासकं // 2154 // * इक्षुनामानि ॐ प्रथेक्षुः' स्याद् रसाल' श्च, प्रख्यातोऽप्यसिपत्रकः / * इक्षुभेदनामानि * कान्तारः' कोषकार इच, पुण्ड-पुण्ड्रक -पौण्डकाः // 2155 // ईक्षो मूलस्य नामात्र, मोरटं' मन्यते बुधः / काशः' कासरे मिषोका च, तृणभेदोऽपि कथ्यते // 2156 // यवस' चापि घास: स्यात्, तृण' मर्जून मेव च / * विषनामानि * विष' स्तीक्ष्णं रसः क्ष्वेडो, गरलो ऽपि च नाम वै // 2157 // Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थस्तिर्यविभागः 355 ॐ स्थावरविषविशेषनामानि 8 ... कालकूट ' इच काकोल:२, कर्दम:' करवीरकः / शृङ्गिकः' शौल्किकेय श्च, सक्तुको मधुसिक्थकः // 2158 // मकटो मुस्तक:१° कुष्ठो'', मेषशृङ्ग१२ श्च13 मूलक:१४ / गौराद कश्च कालिङ्गो, कराटक "श्व गौतमः१८ // 2156 // इन्द्र१६ श्चाङ्कोल्ल सार२०३च, लागुलिकर' श्च पिङ्गल:२२ / वालूको२३ वत्सनाभ२४ श्च. विस्फुलिङ्ग२५ श्च दालव:२५ // 2160 // हालहलं२७ चाऽहिछत्रो२८, हालाहलं२६ हलाहल:3° / सर्षपो 1 ब्रह्मपुत्र ३२.३च, प्रदीपन 33 श्च नन्दनः३४ // 2161 // सारोष्ट्रिकः३५ सौराष्ट्रिक:३६, हैमवत: स्तथैव च / एता सर्वा हि मन्यन्ते-स्थावरा विषजातयः // 2162 // कुरण्ट: परिभद्रादि'-रग्रबीजेषु गण्यते / उत्पल: सुरणादि श्चरे, मूलजेषु च मन्यते // 2163 // इक्षु-वंश-तृणेत्यादिः. पर्वयोनिज उच्यते / सल्लको वटवृक्षादिः, स्कन्धजेषु विभाज्यताम् // 2164 // शालि-पष्टिक-मुगादि-बीज रुत्पद्यते सदा। तृण-भूच्छत्रनामादिः, सम्मूर्छज' उच्यताम् // 2165 // षडेताश्च वनस्पति-कायस्य मूलजातयः / Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 356 सुशीलनाममालायां प्रसिद्धाः सर्वदा लोके, कोविदाः कथयन्ति वै // 2166 // / / इति वनस्पतिकायः समाप्तः // // इति एकेन्द्रियजीवाः समाप्ताः / / * अथ द्वीन्द्रियजीवनामानि * * कायाभवाःकीटनामानि 8 कृमि' !लाङगु-नोलगू, शरीरान्तर वर्तिनः / क्षुद्रकोटो' बहिश्चारी, पुलका' उदरे बहिः // 2167 // कोकसाः' लघुकाया स्ते, काष्ठकीटो' घुणः स्मृतः / ॐ पृथ्वीभवाकीटनामानि ॐ कुसूः किञ्चिलक:२ किञ्चु-लक: किञ्चुलुकः पुनः // 2168 // ख्यातो गण्डूपदः स्यु 1, भूलता' ऽपि महीलता। शिली' गण्डूपदी नाम, गण्डुलः कथ्यते बुधैः // 2169 / / ॐ जलौकानामानि * जलौका' च जलालोका', जलूका जलसपिणी / जलौकसो ऽवपाः सन्ति, रक्तपाः विचकाः पुनः // 2170 // * शुक्तिनामानि 8 शुक्तिः' स्यादब्धिमण्डूकी२, मुक्तस्फोटो ऽपि मन्यते। . Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थ स्तियंगविभागः 357 ALKisneakAANI avikaashantakmini * शङ्खनामानि * त्रिरेखः' षोडशावत:२, शङ्खो भवति वारिजः // 2171 // क्षुल्लका:' क्षुद्रशङ्खा श्च, शङ्खनखा स्तथैव च / शङ्खनका स्तथा क्षुद्र-कम्बव: संभवन्ति वै // 2172 / / शम्बवः' शम्बुका श्चैव, शम्बूका: शाम्बुकाः पुनः / नामान्येतानि मन्यन्ते, जलमात्र भवानि वै // 2173 // * कपर्दनामानि * वराटको' हिरण्य श्च, कपर्द3 श्च कपर्दकः / श्वेतः५ परणास्थिक श्चेति, नामानि कथयन्ति वै // 2174 // * जलूकासदृश जलचरजन्तुनामानि (r) दीर्घकोशा' च दुःसंज्ञा, दुर्नामा ऽपि कथ्यते / दुर्नाम्नी चेति नामापि, पण्डित रिह मन्यते // 2175 // . . // इति द्वीन्द्रियजीवा: समाप्ताः // * अथ त्रीन्द्रियजीवनामानि ॐ . अथ वै त्रीन्द्रियानाह, पीलकः' स्यात् पिपोलकः। होनाङ्गी पोपिलीका स्यात्, ब्राह्मणी 'स्थूलशीषिका // 2176 / / घृतेली' नाम प्रख्यातं, पिङ्गकपिशा तथैव च / Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालाया उपजिह्वो'-पदोका स्यात्, वम्री तयोपदेहिका // 2177 // . . रिक्षा' लिक्षा' प्रसिद्धा ऽस्ति, यूका' तु षट्पदी पुनः। ख्यात नाम महाभीरः', गोपालिकारे ऽपि नाम वै // 2178n गर्वभो' गोमयोत्था' स्यात्, मत्कुण' स्तु प्रसिद्धकः / ... उद्दशः२ किटिभ: श्चापि वै, कोलकुण स्तथोत्कुणः // 2176 // अग्निको' ऽग्निरज श्चैव, वैराट' स्तित्तिभः पुनः / इन्द्रगोप श्च नामानि, मन्यन्ते तित्तिभस्य वै // 2180 / / ख्याता कर्णजलूका' च, कर्णकोटा ऽपि कथ्यते / तथा कर्णजलौका: स्यात्, शतपदी च मन्यते // 2181 // पुनः कर्णजलौकाः५ ऽपि, कथ्यते कौविद किल। एते त्रीन्द्रियजीवा स्तु, वर्तन्ते हि महीतले // 2182 // // इति श्रीन्द्रियजीवाः समाप्ताः / / * अथ चतुरिन्द्रियजीवनामानि * * लूतानामानि (r) कर्णनाभः' क्रिमि: कृमिः, मर्कटक' स्तथा अष्टपाद / लालास्त्राव श्च लूता च, जालिको जालकारकः // 2183 // प्रख्यात स्तन्त्रवाय' श्च, तन्तुवाय'' स्तथैव च / सर्व नामानि लूतायाः, मन्यन्ते पण्डितै जनैः // 2184 // Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थस्तिर्यविभागः 356 356 * वृश्चिकनामानि 8 वृश्चिक' श्च गुणो द्रोण', श्चाऽऽलि राली' ह्यलि' व॑तः / प्रलं' वृश्चिक पुच्छामे, कण्टकं विषवाहकम् // 2185 / / * भ्रमरनामानि * भ्रमरो' भसलो भृङ्गो, द्विरेको मधुकृत् पुनः / मधुकर श्च रोलम्ब, श्चञ्चरीक:८ शिलीमुखः // 2186 // पलि१० रिन्दिन्दिर'' इंचाऽली१२, षट्चरण' 3 श्च षट्पदः१५ / षडंहि'५ श्चेति नामानि, मन्यन्ते भ्रमरस्य वै // 2187 / / तद्भोज्यं पुष्प-मधुनी, तस्मान् मधुव्रत' श्च सः / पुष्पन्धय श्च पुष्पलिट्', मधुपो मधुलिट् तथा // 2188 // . . खद्योतनामानि * खद्योतो' ध्वान्तचित्र इच, ज्योतिर्माली तमोमणिः / कोटमणि स्तथा ज्योति -रिङ्गण श्च परार्बुदः // 2186 / / पुननिमेषद्युत् चेति, नामानि कथयन्ति वै। * पतङ्गनाम 8 . . पतङ्गः' शलभः 2 ख्यातो, दीपज्योतिषि भ्राम्यति // 2160 / / ___* मधुमक्षिकानामानि * मधुच्छत्रे बसेत् क्षुद्रा', सरधा मधुमक्षिका / Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 360 सुशोलनाममालायां * मधुनामानि * माक्षिक भ्रामरं दालं , क्षौद्र मोद्दालक मधु' // 2191 // छात्रक पौत्तिक- चाऽध्य, चेति नामानि सन्ति वै। .: * मधूच्छिष्टनामानि * सिक्थक ' च मधूच्छिष्ट, मदनं नाम बुध्यताम् // 2162 // वर्वरणा' मक्षिका नीला, कृष्णाऽपि कथ्यते पुनः / पतङ्गिका' च पुत्सिका, मन्यते लघुमक्षिका // 2193 // वनमध्येऽधिका जाता -दंश' स्तु वनमक्षिका / तजाति रल्पिका दंशी', कथ्यते कोविदः सदा // 2164 // तैलाटी' वरटारे सैव, गन्धोली वरटी' भवेत् / * झिल्लीकानामानि , चोरी' च चीरुका चैव, झोरिका झिरिका तथा / / 2165 / / झिरीका झीरका' चैव, झिरूका झिल्लका पुनः / झिल्लीका झिल्लिका' भृङ्गा-रिका'वर्षकरी तथा / / 2196 // भृङ्गारी 3 चेति नामानि, मन्यन्ते पण्डितै जनैः / इत्युक्ता श्चतुरिन्द्रिया., जीवाः येऽत्र महीतले // 2197 / / // इति चतुरिन्द्रियजीवाः समाप्ताः / / Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थस्तिर्यविभागः 361 * अथ पञ्चेन्द्रियजीवनामानि * तत्र * स्थलचरपञ्चेन्द्रियजीवनामानि * पशु' स्तियं चरि हिस्र, ऽस्मिन् व्यालः' श्वापद इच वै / ___ * गजनामानि * गजो' मतङ्गजो गर्जो', मातङ्ग श्च महामृगः // 2198 // हस्ती' दन्ती जटी नागो', महाकायो' महामदः''। इभ: 12 कुम्भी' 3 जलाकाङ्क्ष:१४, सिन्धुरः१५ षष्टिहायनः१३ // 2166 // द्विप१७ चाऽनेकप:'८ पद्मो१६, पुष्करी२० पेचको२१ कपि:२२ / पेचिल:२३ सूर्पकर्ण२४ श्च, करेणुः५ सूचिकाधरः२६ // 2200 // अन्तः स्वेद२७ स्तथा दीर्घ-पवनो२८ वारणो२६ ऽसुरः / स्तम्बेरम 1 ३च शुण्डालो३२, दन्तावल 3 श्च कुञ्जर:३४॥२२०१॥ पीलु३५ विलोमजिह्व३६ इच, करि३७ श्च करटी३८ करी / द्विरद:४० सामयोनि 1 श्च, नामानीति गजस्य वै // 2202 // .करिणी' हस्तिनो कर्ण-धारिणी धेनुका वशा' / गणिका' वासिता चेति, नामानि हि गजस्त्रियाः // 2203 // भद्रो' मन्दो' मृगो मिश्र, श्चेति चतस्रोजातयः / Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालाया महाकायस्य मन्यन्ते, विश्वे च वलयन्तिताः // 2204 // . काले ऽप्यजातदन्त श्च, स्वल्पाङ्गः स्यात् च मत्कुणौ / पञ्चवर्षो द्विपो बाल:' पोतः' स्याद् दशवर्षकः // 2205 // पिक्को' विक्क' च मातङ्गो. विशतिवर्ष उच्यते / कलभो' ऽपि त्रिंशद्वर्षः, कथ्यते कोविदः किल / / 2206 / / यूथनाथ' स्तथा यूथ-पतिः२ स्याद् यूथनायकः / प्रभिन्नो' गजितो मत्तो, मदोन्मत्तोऽपि मन्यते // 2207 // ख्यातो मदोत्कटः स्याच्च, मदकलो ऽपि वै पुनः / उद्वान्तो' निर्मद श्चोक्तो , मदशून्यगजो हि तद् // 2208 // कल्पित ' सज्जित श्चैव, युद्धाय चलिते गजे / परिणत स्तिर्यग्धाती, तिर्यक् प्रहारकर्तरि // 2206 // व्याडो' दुष्टगजो व्यालः३, उपद्रवकरे गजे / तथा गम्भीरवेदी' स्याद्, चाऽवमताकुशः किल // 2210 // प्रध्यात उपवाह्य श्च राजवाह्य स्तथैव च / प्रौपवाह्यो ऽपि कथ्यते, नृपस्यारोहरणाय वै // 2211 // सन्नह्य ' समरोचित:२, सङ्ग्राम योग्य कुञ्जरे। ईषादन्त' उदग्रदन्२, लम्बदन्तो गजो भवेत् // 2212 // गजानां समुदाये तु, हास्तिकं' गजता घटा। मदो' दानं प्रवृत्ति स्तु, उन्मत्तगजगण्डनम् // 2213 // Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थ स्तिर्यविभागा गजशूण्डजलबिन्दौ-वमथुः' करशोकरः / हस्तिनासा' करो हस्तः, शुण्डा च गजनासिका // 2214 // शुण्डाग्रं पुष्करं' ज्ञेयं. कणिका' तु गजाङ्गुलिः / विषाणो' गजदन्तौ स्तां स्कन्ध प्रासन' मुच्यते // 2215 // चूलिका' कर्णमूल स्याद्, गजकर्णस्य मूलके / इषाका' चेषिका चाऽक्षि-कूटकं नेत्रगोलके // 2216 // ईषिका पुन रोषोका, चेति नामानि सन्ति / अपाङ्गदेशो निर्याणं', स्यात् गण्ड' स्तु कट 2 स्तथा // 2217 // करट' श्चेति नामापि, गण्डस्थलस्य वर्तते / अवग्रहो' 5 ग्राह इच, द्वयमिदं हि भालके // 2.18 // कुम्भयोरध प्रारक्षो', नाम वै कथ्यते किल / कुम्भौ' तु शिरस: पिण्डौ. विदुः' कुम्भयोर्मध्यकम् // 2216 // तस्याधो वातकुम्भः स्यात्, वाहित्थं च ततोऽप्यधः / प्रतिमानं' वाहित्याधः, पेचकः' पुच्छमूलकम् // 2220 // गजस्य तु पुरोभागो, दन्तभागो' हि कथ्यते / पार्श्वक: पक्षभाग' श्च, मन्यते पण्डितैः पुनः // 2221 // पूर्वो जङ्घादिदेशो हि, गात्रं' गजम्य कथ्यते / तस्य स्यात् पश्चिमे भागे. ह्यपरा' चाऽवरा२ वरम् // 2222 // गज चर्मणि रक्तबिन्दुः, पद्म' पद्मक मुच्यते / Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालाया मातङ्गस्य पुनः प्रोक्त, चरणबन्धनमत्र // 2223 // . .. अन्दुको' ऽन्दू 2 श्च हिजीरो, निगडो निगलः पुनः / प्रसिद्धः शृङ्गल श्चैव, पादपाशो ऽपि मन्यते // 2224 // गजस्य बन्धनस्थान, वारि' रीि निगद्यते / त्रिपदी' गात्रयो बन्ध, एकस्मिन्नपरे ऽपि च // 2225 // वेणुक' वणुक तोत्रं, वेणुकस्येति नाम वै। पालानं' नाम मातङ्ग-बन्धस्तम्भ श्च मन्यते // 2226 // सृणिः' शृणि२ रङकुश इच, स्यादऽपष्ठं' तदग्रभाक् / अङकुशवारणं यातं', कथ्यते पण्डितः पुनः // 2227 // यतं नाम प्रसिद्ध स्यात्, पादकर्म निषादिनाम् / वीतं' पुन स्तदेवास्ति, निषादिपाद चालनम् // 2228 // कक्ष्या' दूष्या वरत्रा च, चूष्या' स्याच्चर्म रज्जुका। गजगले बन्धनं स्यात् कण्ठबन्ध:' कलापकः // 2.26 // ___ अश्वनामानि * अश्व:' सप्ति हयो हेषी', हरि हि च हंस इति / अर्वा वाजी तथा किण्वो', क्रमण:११ सिंहविक्रमः 12 // 2230 // केशरी केसरी१४ कुण्डो१५, कुटर:१६ पालक:१७ पुनः / घोटक' स्तुरग स्ताय , स्तुरङ्ग२१३च तुरङ्गम:२२ // 2231 // गन्धर्व 3 इचामरी२४ प्रोथी२५, माषाशी२६ च मरुद्रथः२७ / Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थस्तिर्यविभागः मुद्गभुग मुद्गभुज्२६ चैव, मुहुर्भुग° गूढभोजन:3१ // 2232 // परुलः३२ शालिहोत्र३३ ३च, लक्ष्मीपुत्र:३४ प्रकोर्णकः५ / एकशफ स्तथा वासु-देव० श्च ग्रहभोजन.3८ // 2233 // प्रश्वस्य सर्व नामानि, कथितानि मयोपरि / के अश्वानामानि के प्रश्वा' ऽर्वती प्रसू वामी, वडवा संभवन्ति वै // 2234 // * अश्वभेदानां नामानि * अल्पावस्थः किशोर:' स्याज्जवन: स जवाधिक: / रथवोढा स रथ्यः स्यादा ऽऽजानेयः कुलीन' इति // 2235 // सैन्धवाः सिन्धुदेशीया स्तथान्ये देश देशजाः / वानायुजा:' पारसीकाः', काम्बोजा' श्च वालिकाः // 2236 // बाह्रीका' अपि तद्भदाः, तुषारा:' सन्ति तद्भिदाः / साधुवाही' विनीत: स्याद्, दुविनीत स्तु शूकलः' // 2237 / / कश्य ' नामा कशाहः स्यात्, पुनः श्रीवृक्षको' हयः। / हृद्वक्त्रावतॊ२ चापि, कथ्यते कोविदः किल // 2238 / / पञ्चभद्र' स्तु हृत्पृष्ठ-मुखपार्वेषु पुष्पितः / पुच्छोरः खुरकेशास्यः, सितैः ख्यातोऽष्टमङ्गलः' // 2236 // श्वेताश्वे कर्क' कोकाहौ२, खोङ्गाहः' श्वेतपिङ्गले। .. Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालायां सुधावणे व सेराहः', स्यात् पोते हरियो' हये // 2240 // खुङ्गाहः' कृष्णवर्णे स्यात्, क्रियाहो' लोहिताश्वके / पुनः श्च नीलको' नामा, ऽऽनीलाश्वे मन्यते बुधैः // 2241 // कपिलवणे त्रियूहो' ऽश्वः, कथ्यते कोविदः खलु। वोल्लाह' स्त्वयमेवस्ति, पाण्डुकेशरवालधिः // 2242 // उराहो' ऽश्वो मनाक पाण्डुः, कृष्णजनो भवेद् यदि / पुनः सुरूहकः कोऽपि, गर्दभाभो हि मन्यते // 2243 // पाटलो वोरुखानः' स्यात्, कृष्ण स्तु यदि जानुनि / मनाक् पीतः कुलाहाख्यः', कथ्यते पण्डितैः किल // 2244 // उकनाहाभिधः पीत-रक्तच्छायः स एव हि / कृष्णरक्तच्छवि: प्रोक्तः, क्वचिदिति बुध रिह // 2245 // कोकनदच्छवि: शोणः', स्याद् हरिक' श्च हालकः / पीतरितच्छायो वै, कथ्यते पण्डित रिह // 2246 // पगुल:' श्वेतकाचाभो, हलाह' श्चित्रितो हरिः। श्वेतनयनवानश्वो, मल्लिकाक्षः' प्रकथ्यते // 2247 // इन्द्रायुधो भवेन्नाम. श्याम नेत्रवतः किल / ककुदी' ककुदावर्तो, विशिष्टावर्त्तवान् हयः // 2248 // इन्द्र वृद्धिके' नामास्ति, निर्मुष्को घोटकः पुनः। . अश्वमेधयज्ञस्याश्वो, ऽश्वमेधीय' स्तथा ययुः // 2246 // . Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थस्तिर्यविभागः 367 प्रश्वस्य नासिका प्रोथं', कश्यं' तु मध्यभागकम् / गलोद्देशो निगालः' स्यात्, खुराः' शफा:२ भवन्ति वै // 2250 // अथ पुच्छं च लागूलं२, लाङ गुलं लूम वालधिः / वालहस्त' श्चेति नामानि, पुच्छस्य संभवन्ति वै // 2251 // अपावृत्तं' परावृत्तं', लुठितं वेल्लितं पुनः / भूमावलोटनं तस्य, श्रमो येन विनश्यति // 2252 // धोरितं' वल्गितं प्लुतो -त्तेजितो तेरितानि च / गतयः पञ्च धारा' ख्याः, घोटकानां क्रमादिमाः // 2253 // गमनं नकुलस्येव, धौरितकं' निगद्यते / कस्येव गमनं-धौर्य भवति ज्ञायताम् // 2254 // गमनं मयूरस्येव, धोरणं नाम जायते / गमनं डुक्करस्येव, धोरितं च निगद्यते // 2255 // पुन श्च वालिगतं' नाम, कथ्यते यत्र कोविदः / अग्रकायसमुल्लासात् कुञ्चितास्यं नतत्रिकम् / / 2256 // पक्षिमृग समं यानं, प्लुतं भवति लङ्घनम् / उत्तेजितं' रेचितं च, मध्यवेगेन या गतिः // 2257 // उत्तेरित'-मुपकण्ठं, तथाऽऽस्कन्दितकं खलु / * उत्प्लुत्योत्प्लुत्य गमनं, क्रोधादिवाखिलैः पदैः / / 2258 / / प्राश्वीनो' sध्वा स यो ऽश्वेन, दिनेनैकेन गम्यते / Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालायां * खलिननामानि * खलीनं ' खलिनं चैव, कवियं कविका कवी // 2256 / / भुखयन्त्रणं पञ्चाङ्गी, नामानि सप्त सन्ति वै / मुखबन्धाश्रितं चर्म, तलिका' तलसारकम् / / 2260 // दामाञ्चनं पादपाश:२, पदबन्धन रज्जुषु / प्रक्षरं' प्रखरः स्याच्च, कवचं घोटकस्य वै / / 2261 / / चर्मदण्ड: ' कशा चैव, ताडनायास्य जायते। वल्गो' वल्गा कुशा वागा, रश्मि स्तथाऽवक्षेपणी // 2262 // पल्ययनं च पर्यारणं', पर्याणस्याऽस्ति नाम वै / वोतं नाम पुनः प्रोक्त, तच्च फल्गु हयद्विपम् // 22:3 // * अश्वभेद [खच्चर] नामानि * वेसरो' ऽश्वतरो वेगसरो ऽश्वस्य भिदा भवेत् / * उष्ट्रनामानि * उष्ट्रो' मयो महाङ्ग श्च, खप्पः कण्टकाशनः // 2264 // कुलनाशः शल: भोलि:. कुलनाशः क्रमेलक:१० / विककुद्' 'दीर्घग्रीव१२ श्च, दाशेरो' दुर्गलङ्घन:१४ // 2265 // . वासन्तः१५ शिशुनामा 6 च, मर्यो 7 मरुप्रियः१८ पुनः / भूतघ्न 1 श्चेति नामानि, मन्यन्ते रवणस्य वै // 2266 // Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थस्तिर्यविभागः करभाख्य' विहायणो, बाल उस्ट्र इहोच्यते / स तु शृङ्खलकः' काष्ठमयः स्यात् पादबन्धनः // 22671 गर्दभनामानि 8 गर्दभो' रासभरे श्चैव, वालेय' श्च खरः पुनः / चक्रीवान् चिरमही'च, सङकुकर्णो ऽपि कथ्यते / / 2268 / / .. वृषभनामानि है ऋषभो' वृषभो ऽनड्वान् 3 भद्रो बलीवर्दो' वृषः / शक्कर: शाकर उक्षा', सौरभेय'• श्च शाङ्करः // 2266 // ककुमान् 2 वाइवेयो गौ'४, श्चेति नामानि सन्ति / उक्षा यस्य समुत्पन्नः स' नातोक्षो. युवा वृषः // 2270 / / / / शकटौ वाहने योग्यः, स्कन्धिकः स्कन्धवाहकः / उक्षतरो' महोक्षः स्यात्, वृद्धोक्ष' स्तु जरद्गव:२ // 2271 / / पार्षभ्यः' षण्ढतोचितः, कूटो' भग्नविषाणक:२ / - .. * षण्डनामानि * शाण्ड:' षण्ड स्तथा सण्डो, गोवृषो गोपतिः पुनः // 2272 // इटचर' इत्वर" श्चैव प्रसिद्धो मदकोहल:८ / एतन्नामानि मन्यन्ते, षण्डस्य पण्डितः किल // 2273 // Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 370 सुशीलनाममालायां * वत्सनामानि 8 तर्णः' शकृत्करि' श्चैव, ख्यातो वत्स ' पुनर्भुवि / वत्सतर' स्तु दम्यो , महावत्सो निगद्यते // 2274 // 8 वृषभभेदनामानि * नस्योतो' नस्तितश्चैव, नस्तोतः कथ्यते पुन / प्रष्ठवाट्' हलवोढा स्यात्, षष्ठबाट युगपार्श्वगः // 2275 // वोढारः स्युर्युगादीना, प्रासङ्गय'-युग्य'-शाकटाः / सब सर्वपुरीणो' वे, सा वहति यो धुरम् // 2276 // 'एकधुरीणैक 'घुरावुभावेकधुरावहे / ' धुरन्धरो' धुरीणः स्याद्, धुर्योधौरेयकः पुनः // 2277 // धोरेयो पूर्वह श्चेति, नामानि कथयन्ति वै / गलि' र्दुष्टवृष श्चैव, प्रोक्तः शक्तोऽप्यपूर्वहः // 2278 // पृष्ठवाह्य' स्तथा पृष्ठ्यः, स्थौरी' नामापि मन्यते / . द्विवन्' षोडन् द्वि-षड्यन्ती वहः' स्कन्धोऽस्य बन्धनम् // 2276 // ककुछ' चांऽशफूटं स्यात, ककुदं कुकुदं पुनः / मैचिक' नैचिको तस्य, शिरो लोकेषु कथ्यते // 2280 // . विषाणं' कूणिका शुङ्ग, प्रोक्तं वृषस्य शृङ्गकम् / गलभागोऽस्य सास्ना', कथ्यते गलकम्बलः // 2281 // . Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थस्तिर्यविभागः ____ 371 गोनामानि * अर्जुनी' रोहिणी गौ न, शङ्गिणी सुरभि स्तया। उना' ऽन्या सौरमेयाच, तम्मा तम्पा' निलिम्पिका // 2282 // अनड्वाही'२ च माहेयो'३, माहा'४ चाऽनडुहो५ पुनः / उषा माता सप्तदश-नामानि प्रथितानि वै // 2283 // ॐ गो भेदनामानि 8 कृष्णा' च धवला२ चैव शबला' शबली' तथा / प्रष्ठोहो' स्याच पष्ठीहोर, भिणी' बालभिणो // 2284 // वन्ध्या' वशा२ च सा मौः स्यात्, या न गर्भ दधाति वै। वेहद' वृषोंपगा' याति गर्भ धारयितुं वृषम् // 2285 // प्रवतोका' स्रवदगर्भा', वतोका गर्भनाशिनी / सन्धिनो' च वृषाक्रान्ता२: शण्ड संयोगकारिणी // 2286 // प्रौढवत्सा' तथा बकायणी बष्कयणी पुनः / / ख्याता चिरप्रसूता सा, धेनु मेदा स्मृता भुवि // 2287 // नवसूतिका' तथा 'धेनुर्दुग्धं यच्छति या बहु। बहुसूतिः' परेष्टुः२ स्याद् गृष्टिः' सकृत् प्रसूतिका // 2288 // उपसर्या च काल्या पि, प्रजने कथ्यते बुधः / सुव्रता सुखदोह्या' च, या दुह्यते सुखेन सा // 2286 // Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 372 सुशीलनाममालार्या करटा' दुःखदोह्या सा, दुःखेन दह्यते सदा। वञ्जुला' बहुदुग्धा सा, या बहुदुग्धप्रदा भवेत् // 2260n द्रोणक्षीरा' तथा द्रोणदुग्धा द्रोणदुधा' भवेत् / पीवरस्तनी' पोनोनी', कथ्यते पण्डितैः पुनः // 2261 // .. धेनुष्या' पोतदुग्धा च, संस्थिता दुग्धबन्धके। नैचिकी' स्यादुत्तमा गौः मलिनी' बालगभिणी 22627 पलिको मन्यते सैव, बालगर्भवती च या।'' समांसमीना' गौः स्याद्या, प्रतिवर्ष प्रसूयते // 2263 // सुकरा' कोपना ऽचण्डी, गौः स्याच्छान्तस्वभाविका।.. वत्सला' वत्सकामा' स्यात्, या वत्सं बहु सेवते 12264 // चतुर्वर्षा' तथा चतुर्हायणी कथ्यते पुन / त्रिहायणी' त्रिवर्षा' च, स्याद् द्विवर्षा' द्विहायनी // 2295 // 'एकवर्षाभिधा एक हायनी कापि गौर्भवेत् / पापीन' मूधो दुग्धधारक मङ्गमुच्यते // 2266 // * गोमयनाम * गोविट' गोमय माख्यातं, पवित्र भूमिलेपनम् / गोग्रन्थिः' छगणं चैव, करोष शुष्कगोमयम् // 2267 // गव्य' स्याद् वै गर्वा सर्वं, दुग्धं दधि घृतादिकम् / व्रजो भवति गो स्थान, गोकुल गोधनं धनम् // 2268 // Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थस्तिर्यविभागः प्रजनः' स्यादुपसरो, गर्भ गृह्णाति सा यदा। - शिवः' पुष्पलक:२ कोलः, शकु र्गो बन्धनाय पः // 2266 // गोबन्धनाय रज्जुः स्यात्, संदानं' दान' बन्धनम् / दामनी' पशुरज्जु श्च, यत्राऽनेकस्य बन्धनम् // 2300 // * अजनामानि ॐ प्रजो' बस्त:२ छगः छागः, छगल' श्च स्तभः स्तुभः / तुभः शुभः पशु'• वस्त', श्चेति नामानि सन्ति वै // 2301 // * अजानामानि* प्रजा' मजा तथा छागी', छागिका च गलस्तनी। सर्वभक्षा च नामानि, मजायाः कथयन्ति वै // 2302 // बर्करो' वर्करो' यूनो मञ्जस्य नाम कथ्यते। (r) मेषनामानि *... मेण्ट' श्च मेण्डको मेषः, संफालः शृङ्गिलः पुनः // 2303 // - उरभ्र' उरणो वृष्णिः, ऊर्णायु श्च हुडो' हुड:"। - एडको'२ रोमशो' 3 भेडो'४, ......... - वि१५ श्च नामानि सन्ति वै // 2304 // 8 मेषीनामानि (r) मेषी' स्यात् कुररी वेणी, जालकिनी रुजा ऽविला'। Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 374 सुशोलनाममालायां * वनबर्करनामानि (r).. पृष्ठशृङ्ग' स्त्विरित प्रच, वनाज: शिशुवाहकः // 2305 // प्रविबुग्ध' मविसोढ२, मविदूस' तथैव हि / पुन श्चाविमरीसं स्यान्, मेषोदुग्धस्य नाम वै // 2306 // * श्वाननामानि 8 श्वा' श्वान: सारमेय इच, स्वजातिद्विट् शुनः शुनिः / रतशायी रसापायी, रसनालिट् रतान्दुक: // 2307 // कुकुरः कुर्कुरः१२ क्रोधी' 3, कौलेयक' श्च कुक्कुरः१५ / शालाकः" कृतज्ञ"३च, कपिलो ववालधि:१६ // 2308 // इन्द्रमहर * श्चन्द्र मह", स्तथेन्द्रमहकामुक:२२ / वनंतप:२३ पुरोगामी२४, मृगदंश२५ श्च मण्डल:२६ // 2306 // अस्थिभुक्२० भल्लहर८श्चैव, भषको 26 भषणो3 deg रुरु:3' / शिवारि:३२ सूचक:33 रात्रि जागर 34 श्च रतव्रण:३५ // 2310 // रतकील 6 स्तथा ग्राममृगो गृहमृगः3८ पुनः / दीर्घनाद श्च नामानि, श्वानस्य प्रथयन्ति वै // 2311 // अलर्कोः' रोगितः श्वानः, कथ्यते कोविदः किल / मृगव्ये कुशलः श्वानो, विश्वक' श्च मन्यते // 2312 // * शुनीनामानि * देवशुनी' शुनी चव, सरमा कथ्यते पुनः / Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थस्तिर्यविभागः * शूकरनाम * विदचर.' शूकरे ग्राम्ये, वन्योऽपि शूकरो भवेत् // 2313 // * महिषनामानि * महिष: ' स्कन्धशृङ्ग इच, धीरस्कन्ध' श्च सैरिभः / रक्ताम: कृष्णशृङ्गश्च, कलुषः कासर:' पुनः // 2314 // कटाहो हंसकालीतनय'. श्च यमवाहनः / हेरम्बो१२ दशमीक्षकः१३, जरातो१४ गदगदस्वरः१५ // 2315 // लुलापो लालिंक' चैव, लुलाय'८ श्च रजस्वलः" / वाहरिपु स्तथा पिङगुः २१,पिङ्ग२ श्च यमरथस्तथा२७॥२३१६॥ अयोविंशति नामानि, मन्यन्ते महिषस्य वै / गवलो' जङ्ग जातो, महिष: कथ्यते बुधैः // 2317 // * सिंहनामानि (r) सिंहो' हरि' श्च हर्यक्षः, शृङ्गोष्णीषः सुगन्धिकः / पञ्चशिख' श्च पञ्चास्यः, पञ्चनखः पलङ्कषः // 2318 // पारिन्द्रः पुण्डरीक' श्च, मृगपति'२ गाशनः / . . मृगदृष्टि' मृगार'५ श्च, मृगद्विट् नखरायुधः // 2316 // महानादो 8 नभःकान्तः१६, कण्ठारव२० इच केसरी"। इभारिः२२ रक्तजिह्व२३ श्च, वनराजो२४ गणेश्वरः // 2320 // Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . . सुशीलनाममालायां शैलाट:२६ श्वेतपिङ्ग२० श्च, व्यादीस्य२८ स्तथैव च / . . पारीन्द्रः श्चित्रकाय३० श्च, सिंहनामानि सन्ति वै // 2321 // * व्याघ्रनामानि * व्याघ्रो' द्वीपी च शाईल, श्चित्रकाय श्च चित्रक:५। . पुण्डरीक श्च नामानि, व्याघ्रस्य प्रथयन्ति वै // 2322 // लधुव्याघ्र स्तरक्षुः स्यात्, तरक्ष' श्च मृगादनः / ॐ अष्टापदनामानि * शरभः' कुञ्जराराति', श्चाष्टापद स्तथाऽष्टपाद // 2323 // .. उत्पादक श्च नामानि, मन्यन्ते शरभस्य वै। * गवयनामानि 8 गवयो' गोसदृक्षः स्याद्, वनगवो ऽश्ववारणः // 2324 // * खड्गिनामानि 8 खड्गो' वाध्रीरणस:२ खड्गी कथ्यते गण्डको ऽपि वै / * सूकरनामानि 8 सूफरः' सुकरः२ कोड:३, पङ्कक्रीडनकः पुनः // 2325 // . किरः५ किटि: किरिः कोल:८, कुमुख श्च तलेक्षणः१० / कामरूपी'' शिरोमर, स्तब्वरोमा' 3 बहुप्रजः१४ // 232 // 6 Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थस्तिर्यविभागः 377 वराहो'५ वक्रदंष्ट्र'६ श्च, भूदारः सलिलप्रियः' / गृष्टि पुष्टि२० स्तथा घोणो', : दंष्ट्री२२ स्तथाऽऽस्यलागल:२३ // 2327 // पाखनिक२४ स्तथा पोत्री२५, स्थूलनाश स्तथैव च।। इति सूकरनामानि, मन्यन्ते पण्डितः किल // 2328 // * भल्लकनामानि (r) ऋक्ष' स्तथाऽच्छभल्ल श्च, भल्लूको भल्लुकः पुनः / भालूक' श्चापि भाल्लूक', श्चेति नामानि सन्ति वै // 2326 // ॐ शृगालनामानि * शृगाल' श्च सगालो' वे, शकुनावेदनी शिवः / फेरण्डः फेरवः' फेर: , जम्बूक. जम्बुकः पुनः // 2330 // गोमायु' |रवासी' च, क्रोष्टा'२ च मृगधूर्तक:१३ / भरुजो मूरिमाय च, वञ्चुको वञ्चक:'"पुनः॥२३३१॥ हूखो' ऽष्ठादश नामानि, मन्यन्ते जम्बुकस्य वै। किखिः' कोऽपि भवेत् प्राणी, शृगालसदृशो वने // 2332 // लोपाको' गुण्डिवः कोऽपि, शृगालाकृति सदृशः / * वृकनामानि 8 परण्यश्वा' वृकः कोकः', ईहामृगो ऽपि कथ्यते // 2333 // Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालाया * मर्कटनामानि ॐ शाखामृगः' कपिः कोश 3, प्लवङ्गः (लगः५ पुनः / प्लवङ्गमः प्रवङ्ग इच, बलिमुखो बलीमुखः // 2334 // मर्कटो वानर'' इचव, वनौकाश्च' 2 तथा हरिः१३। / एतन्नामानि मन्यन्ते, मर्कटस्य महीतले // 2335 // श्याममुखो गोलागूलो' लोके लङगूर उच्यते। * मृगनामानि 8 ख्यातो मृगः' कुरङ्ग च सारङ्गो हरिणः पुन: // 2336 // वनायु' श्चैव वानायु, वातायु: श्चापि कथ्यते / पुनश्चान्नियोनि ई, मृगनाम हि मन्यते // 2337 // * मृगभेदनामानि है मृगभेदा न्यकु'-रङकु-हरु -रोहिष-रोहिषाः / / चमूरु'-चमर चीनाः ,समूरै -ण' -र्य''-रोहिता: // 2338 // ऋष्य' 3.समूरु१४.गोकर्णा:१५, प्रियकः पृषत'" स्तथा। शम्बर: 8 शंवर१६ श्चैव, संवरः२० कदली२१ पुनः // 2336 // कन्दलो 22 कृष्णशार२ 3 इच, कृष्णसारो२४ ऽपि कथ्यते / दक्षिणेसमृगः सोऽस्ति, यो व्याधक्षिणे क्षतः // 2340 // वातमृगो' वातप्रमी२, वायुवेग समो मृगः / Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थस्तिर्यविभागः 43 // ॐ शशनामानि * लोमकर्णः' शश: स्याटे, शूलिक: मृदुलोमकः // 2341 // * शल्यकनामानि 8 शल्यक:' शलल: शल्यः', श्वाविच्चेत्यपि कथ्यते / मन्यते तच्छलाकायां, शललं' शललो शलम् // 2342 // * गोधानामानि 8 गोधा' नाम निहाका'ऽपि कथ्यते कोविदः किल / गौधारो' नाम गौधेरो, दुष्टे तन्नन्दने खलु // 2343 // गोधेयोऽन्यत्रचप्रोक्तो, गोधायाः शुभनन्दने / * पल्लीनामानि 8 मुसली' मुशली पल्ली', माणिक्या गृहगोलिका' // 2344 // गृहोलिका तथा कुड्य-मत्स्य इच गृहगोधिका / भिसिका चेति नामानि, माणिक्याणां भवन्ति वै // 2345 // तथाऽञ्जनाधिका' हालिन्यञ्जनिका' हलाहलः / स्थूलाऽजनाधिकायां स्याद, ब्राह्मणी' रक्तपुच्छिका // 2346 // ॐ सरट नामानि * सरटः प्रतिसूर्य: स्यात्, प्रतिसूर्यशयानक: / Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 380 सुशोलनाममालायां कृकलासः कृकुलासः, कृकलाशः शयानक: // 2347 // .., ...ॐ मूषक नामानि (r) मुषको' मूषक श्चैव, मूषिको वृषलोचनः / सूच्यास्यः खनको वज्रदशन उन्दरो वृषः // 2348 // उन्दुर'• उन्दुरु'' राखु१२, रिति नामानि सन्ति वै: छुछुन्दरी' गन्धमूषी, सैवास्ति गन्धमूषिका // 2346 // गिरिका' व खटाखुरे इच, कथ्यते बालमूषिका। 8 मार्जारनामानि ॐ मार्जार' श्च बिडालः स्याद् विडालो वृषदंशकः // 2350 // प्राखुभुक् चाऽऽखुभुग' ह्रीकु', रोतु रित्यपि कथ्यते। वनबिलाडो' नामापि मन्यते पण्डितैः पुनः // 2351 // मण्डली' गात्रसङ्कोची, जाहक श्चापि ज्ञायताम् / * नकुलनामानि 8 नकुलः' पिङ्गलो बभ्रः सर्पहा प्रथितः सदा // 2352 // * सर्पनामानि * पहिः' सर्पः२ पृदाकु श्च, पन्नगः पवनाशनः / . उरगो' भुजगो भोगी, भुजङ्ग श्च भुजङ्गमः // 2353 / / Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थस्तिर्यविभागः 381 - द्विजिह्वो' दीर्घजित 2 श्च, दीर्घपृष्ठ:१४ सरीसृप:१४ / टक्क!१५ दन्दशूकरच. दकिरो बिलेशय: 8 // 2354 // हरिश्चक्षुःश्रवा२०३चक्रो", कुम्भीनस२२ इच कञ्चुको। जिह्मगो२४ लेलिहान२५ इच, , . . . व्याडो" व्याल२० श्च कुण्डली२८ / / 2355 // माशीविष२६ च गोकर्णः, प्राशीविष३१ श्च गूढपात् / विषधर स्तथा भोग-धर:३४ फणधर:३५ पुनः // 2356 / / द्विरसन स्तथा काको-दर३७ श्च फरणभृत्३८ किल / अष्टाविंशद्धिनामानि सर्पस्य सम्भवन्ति वै // 2357 // ॐ सर्पभेदा: * विमुखो' हीरणी राज-सर्प३ ३चाहीरण स्तथा। भुजङ्गभोजीति पञ्च सर्पभेदाः स्मृताः'पुनः // 2358 // * अजगरनामानि * अजगर:' शयु चैव, पारोन्द्र चक्रमण्डली / , वाहस' श्चेति नामानि, मन्यन्तेऽजगरस्य वै // 2356 / / ...ॐ जलसर्पनामानि * . प्रलगर्दो' ऽलगर्द्ध इच, जलव्याल स्तथैव च / / अलीगई' श्च नामाभि, जलसर्पस्य सन्ति // 2360 / / Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 382 सुशील नाममालायां दुण्डुभो' दुन्दुभ२ इचव, राजीलो राजिल: पुमः / .. डुण्डुभ' श्चेति नामानि, निविषस्यैव तस्य वै / / 2361 // तिलित्सो गोनसो नाम, गोनासो' नाम, घोणसः / कुक्कुटाहिः' कुक्कुटाभोर, वर्णेन रूपेण च // 2362 // ... काद्रवेया' स्तथा नागा -स्तेषां भोगावती' पुरी। * शेषनागनामानि * पुन नांगाधिप:' शेष, एककुण्डल' पालुकः // 2363 / / अनन्तो द्विसहस्राक्षः षण्णामानि सन्ति वै / स च कृष्णोऽथवा शुक्लः, सितपङ्कजलाञ्छनः' // 2364 / / ___ वासुकिसर्पनामानि वासुकिः' सर्पराज श्च, नीलोत्पललाञ्छनः स च / त्रीण्येतानि नामानि, श्वेते नीलसरोजवति // 2365 // तक्षकः' स्याल्लोहिताङ्गः, स्वस्तिकाङ्कितमस्तकः / महापो' ह्यतिश्वेतो, दशाबिन्दुकमस्तकः / / 2366 / / शङ्खः' स्यात् पोतो बिभ्राणो, रेखां चन्द्रसितां गले / कुलिको' ऽर्द्वन्दुमस्तक , ज्वालाधूमसमप्रभः / / 2367 // प्रथ कम्बला'-ऽश्वतर-धृतराष्ट्र-बलाहकाः / . महानोलो'ऽपि नागोऽस्ति, विशिष्ट कुल सम्भवः / / 2368 / / Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थस्तियंग विभागः 383 .................................... प्रत्रोक्ता विविधाः सस्तित्तत्कुलसमुद्भवाः / .निर्मुक्तो' मुक्तनिर्मोको२, मुक्तकञ्चुक' इत्यपि // 2366 / / सविषा:' भुजगारतेस्युनिविषा: वाहसादयः / सर्पाः स्यु ई विषा' लूमविषा स्तु वृश्चिकादयः / / 2370 / / पुन र्लोमविषा:' केचिद् ध्याघ्रप्रमुखजन्तवः / तथा नखविषा: ख्याता:, नरप्रमुखप्राणिनः // 2371 / / पुन लालाविषा: लोके लूताद्याः प्रथयन्ति वै / कालान्तरविषाः' स्यु 4 मूषिकाद्याश्च जन्तवः // 2372 // दूषोविषं' तु तज्ज्ञेय-मवीर्यमौषधादिभिः / कृत्रिमं च विषं चारं', गर' श्चोपविषं भवेत् / / 2373 // अहिकाय' स्तथा भोग:२, सर्पकायश्च कथ्यते। प्राशी' स्तथा ऽहिवंष्ट्रा' स्यात् सर्पदंष्ट्रा तथैव च // 2374 // ___ॐ सर्पफणनामानि * फरणः' फट:२ स्फटो भोगो', दर्यो दवा स्तथैव च / इति नामानि मन्यन्ते, सर्पगरणस्य साक्षरैः / / 2375 / / . सर्पकञ्चुकनामानि के महिकोश' श्च निर्मोको२, निल्वयनी इच कञ्चुक: / महित्वक चेति नामानि, सर्वस्य कञ्चुकस्य वै // 2376 // // इति स्थलचरपञ्चेन्द्रियजीवाः समाप्ताः // Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 384 सुशीलनाममालाया . अथ खेचरपञ्चेन्द्रियनामानि * विहगनामानि * विहगो' विकिरो 'वाजी', विहङ्ग' श्च विहङ्गमः / बारङ्गश्चव वारङ्गिः, विष्किर श्च विविधिकरः // 2377 // पक्षी' पत्री पतत्रि१२श्च, पतत्री पतग:१४ पतन्५ / : : पत्ररथः" पतङ्ग'"श्च, ... .... पित्रान्? 8 वयो' द्विजः पुनः॥२३७८॥ शकुन:२' शकुनि२२ श्चैव, गरमान चञ्चुमान्२४ खाः२५ / शकुन्तश्च शकुन्ति२७ इच, नगौका:२८ नमसङ्गसः२ // 2376 / / गौका * श्चाऽण्डजो' नाडीचरणो३२ रसनारद.33 |. नोडोभव 4 इच कण्ठाग्निः३५, नोडजो" लोमको पुन: // 2380 // ख्यातं नाम विहायाश्च, कोकसमुख इत्यपि / सर्वाण्येतानि नामानि मन्यन्ते पक्षिणां बुधैः / / 2381 // चञ्चु' श्चञ्चू स्तथा त्रोटि:3, सपाटी' च सपाटिका / पत्र' पिच्छं पतत्र' ञ्च, वाजः तथा तनूरुहम् // 2382 / / पक्षो' गरु च्छदः पिञ्छ', मिति नामान्यपि क्वचित्। / पक्षिचचो हि मन्यन्ते, पक्षमूलं' तु पक्षतिः // 2383 // प्रडीनो'-ड्डीन'-सण्डोन'-डयनानि नभोगतो।: . Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थस्तिर्यविभागः 385 ॐ अण्डनामानि 8 अण्डं' पेशि स्तथा पेशी', पेशीकोशः पुनः खलु / कोशः५ कोष 6 श्च विज्ञेयं नामषट्कं सुकोविदः / / 2384 // * पक्षिगृहनामानि ॐ नीड' स्तथा कुलायर श्च, पक्षिणो गृहमुच्यते // 2385 // * मयुरनामानि * मयूरो' मयुकश्चैव, मयूको मरुकः पुनः / बो' मार्जारकण्ठ इच, मेघनादानुलासकः // 2386 // नीलकण्ठो नगावासों, नृत्यप्रिय' श्च चन्द्रको / बहिणो'२ बहुलग्रीवः'३, खिलखिल्लो१४ गरवतः१५ // 2387 // शुक्लापाङ्गः:१६ शिखी१७ चापि, स्थिरमदः१८ शिखाबल:१६ | केकी२० मेघसुहृद्' नाम सर्पभुक्२२ चित्रपिङ्गल:२३ / / 2388 // एतन्नामानि मन्यन्ते, मयूरस्य बुधै रिह। केका' ऽस्य वाक् तथा पिच्छं', शिखण्ड' श्च शिखण्डकः // 236 // कलापः प्रचलाक' इच, केकिपिच्छस्य नाम वै / मयूरपिच्छचन्द्रस्य, नाम्नी चन्द्रक'-मेचकौ // 2360 // ... .. ॐ कोकिलनामानि 8 कोकिलः' कोकिलारे चैव, कलकण्ठः कुनालिकः / Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 386 सुशीलनाममालाया मधुकण्ठः सुधाकण्ठः', काकपुष्ट: कुहूमुखः // 2361 // .. ताम्राक्ष: कामतालो' वै, काकजात'" स्तथैव च / / मदोल्लापी'२ पिक' 3 श्चापि, परपुष्टो'४ वनप्रियः१५ / / 2362 / / परभृतो ऽन्यभृत' श्च, मधुघोषो' रतोद्वहः / / घोषयित्नुः२० पोषयत्नु२१ श्चेति नामानि सन्ति वै // 2363 // (r) काकनामानि 8. काको'ऽरिष्टो द्विको ध्वाङ्क्षो', घूकारिः करटो ऽन्यभृत् / एकहकर चिरजीवी च, वायसः परभृत्'' पुनः / / 2364 // बलिभुक्१२ बलिपुष्ट१३ श्च, मौकुलि१४ श्च सकृत्प्रजः१५ / प्रात्मघोष श्च नामानि, कथ्यन्ते काकपक्षिणः // 2365 / / प्रथज्ञेयो वृद्धक को', द्रोणकाको ऽतिहिंसकः। दग्धकाक: कृष्णकाकः', पर्वतकाक' इत्यपि // 2366 // वनाश्रय' श्च काकोल: सप्त भेदाः प्रकीत्तिताः / काकभेदे पुनर्जेयो-मद्गु' श्च जलवायसः२ // 2367 / / * उलूकनामानि 8 उलूक:' कौशिको घूकः३, काकारि: पेचक:५ पुनः। दिवान्धश्च दिवाभीतो', निशाट: कथ्यते तथा // 2368 / / Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थस्तिर्यविभागः 387 8 कुक्कुटनामानि 8 कुक्कुट:' कृकवाकु श्च, नन्दीको मरिणकण्ठक: / उषाकोलो' महायोगी कलाधिक: शिखण्डिकः // 2366 // रणेच्छु रारणो' बोधि११, श्चित्रवाज'२ श्च स्वस्तिक:१३ / विवृताक्षो'४ निशावेदी'५, विशोक.१६ पुष्टिवर्धन:१७॥२४००।। मयूरचटक 8 श्चर्मचूड'६ श्च चरणायुधः२० / शौण्ड२' श्च दीर्घनादो२२ वै, ताम्रचूडो२३ नखायुधः२४ // 2401 // विष्किर२५ श्चेति नामानि, कथ्यन्ते कुक्कुटस्य वै / प्राजः' स्याद् ग्रामकुक्कुटो, यो ग्रामे दृश्यते जनः // 2402 // ॐ हंसनामानि * हंसा: सितच्छदाः२ श्वेतगरुतो मानसौकसः / चक्राङ्गा श्चाथ वक्राङ्गाः, मरालाः पुनरत्र वै // 2403 // राजहंसा' स्त्वमी चञ्चुपादाभ्यां ये च लोहिताः। मलिना मल्लिकाक्षाः' स्यु, र्धार्तराष्ट्राः' सितेतराः // 2404 // कलहंसा' श्च कादम्बाः२, प्रतिधूसरपक्षकाः / ॐ हंसपत्नीनामानि ॐ वरटा' वारटा' हंसी', वरला वारला' च सा // 2405 // दाघाट: शतपत्रः२, काष्ठ कुट्टनकारकः / Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 388 सुशीलनाममालाया खञ्जनः' खञ्जरीट' श्च, लघुपक्षी कवेः प्रियः // 2406 // * सारसनामानि . सारसो' लक्ष्मण:२ कामी, मैथुनी रक्तमस्तक: / .. श्येनाक्ष श्चापि श्येनास्यो', गोनो दीर्घजानुक: // 2407 // कुरङ्करः पुष्कराख्यो', नामानि सारसस्य वै / * सारसीनामानि (r) सारसी' लक्ष्मणा प्रोक्ता, लक्षणा लक्ष्मणी च सा // 2408 / / ॐ क्रौञ्चनामानि (r) कञ्चः' क्रौञ्च' श्च क्रुङ पुंसि, क्रुञ्चा' क्रौञ्चो स्त्रियां भवेत् / * चाषनामानि के चापः' किको दिवि:२ एचैव, किकि: किको दिवो दिविः // 2406 // किकिदिवि: किकोदीवि:, किकीदिवीः किकीदिवः / किकिदिव'' श्च नामानि, चाषस्य संभवन्ति वै // 2410 // * चातकनामानि ॐ चातकः' स्तोकक:२ ख्यातः, पप्पोह श्च नभोऽम्बुपः / / तोकक' श्चैव सारङ्गः', शारङ्गो ऽपि च कथ्यते // 2411 // Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थस्तिर्यविभागः 386 चक्रवाकनामानि 8 चक्रवाको' रथाङ्गाह्वः२, कोको द्वन्द्वचरो' ऽपि सः। ॐ टिट्टिभनामानि * उत्पादशयनः' संज्ञा, कटुक्काण श्च टिट्टिभः // 2412 // टिटिभक स्तथा टिट्टिभक श्च टोटिभो' ऽपि च / * चटकनामानि (r) चटक' स्तु कुलिङ्ग श्च, कलविङ्कः' कुलिङ्ककः // 2413 // स्यात् गृहबलिभुक्' चेति, नामानि चटकस्य वै।। चटका' तस्य योषिद् वै, स्त्र्यपत्ये चटका' तयोः // 2414 // चाटकरस्तु विज्ञेयः, पुमपत्ये बुध जनैः / __(r) दात्यूहनामानि 8 वात्यूह' श्चैव दात्योहोरे, दात्यौहः कालकण्टकः // 2415 // जलरङ्कु जलरञ्ज', स्तथा वै कालकण्ठकः / नामान्येतानि सप्तव, मन्यन्ते पण्डित जनैः // 2416 / / (r) बकनामानि (r) बकः' कहो' धकोट श्च, स्याद् बलाको बलाहकः / बकेरुका' बकेरु स्तु, बलाका बिसकण्ठिका // 2417 // Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 360 सुशीलनाममालायां विसकण्टिका' पि नाम तथैव विसकण्ठिका। . बकपत्न्या श्च नामानि षडेव पठितानि वै // 2418 // - ॐ भृङ्गनामानि * कलिङ्ग' श्चाथ धूम्याटः२, भृङ्गो नामानि त्रीणि वै। ___* कङ्कपक्षिनामानि 8 कङ्कः' स्याल् लोहपृष्ठ इच, कर्कटः कमनच्छदः // 2416 / / दीर्घपाद स्तथा स्कन्धमल्लकः कथ्यते पुनः / __ॐ चिल्लनामानिस प्रातापी' शकुनि श्चिल्ल?, स्तथाऽऽतायी च मन्यते / / 2420 // ॐ श्येनपक्षिनामानि * श्येनः' शशादन:२ पत्री, नामानि श्येनपक्षिणः / / ___* गृध्रस्यनामानि ॐ गृध्र' श्च पुरुषव्याघ्रः२, शकुनिः कूणितेक्षणः // 2421 // प्राम:' सुदर्शन श्चैव, दाक्षाय्यो दूरदृक् पुनः / कामायुश्चेति नामानि, गृध्रस्य संभवन्ति वै // 2422 // . * कुररस्यनामानि ॐ .. . उत्क्रोशः' कुररो' नाम, तथा च मत्स्यनाशनः / Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थस्तिर्यविभागः 361 * शुकस्यनामानि ॐ रक्ततुण्डः' शुक:२ कोरः, श्रीमान् वै प्रियदर्शनः // 2423 // मेधातिथि श्च मेधावी , वाग्मी फलादनः पुनः / शुकस्य नवनामानि, कथ्यन्ते कोविदः किल / / 2424 / / (r) सारिकानामानि (r) शारिका' सारिका चैव, गोराटी गोकिराटिका / पीतपावा च नामानि, सारिकायाः भवन्ति वै // 2425 // (r) चर्मचटकानामानि 8 जतूका' जतुका' चर्मचटका' ऽजिनपत्रिका / प्रजिनपत्रा' नामाऽपि, जतुकाया श्च कथ्यते // 2426 / / __ वल्गुलिकानामानि (r) वल्गुलिका' परोष्णी च, मुखविष्टा निशाटनी / तैलपायिका' नामाऽपि, जतुकाभेद उच्यते // 2427 // * करेटुनामानि ॐ करेटुः' कर्करेटु' श्च, करटुः कर्कराटुकः / कर्कराटु' श्च नामानि, करटोः संभवन्ति वै // 2428 // - ॐ शरारिनामानि * माटि राटो शराटि इच, शराडि: शरारि स्तथा। Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 362 सुशीलनाममालायां प्राति राडी शराति श्च, शरालिः शराली' पुनः // 2426 / / ॐ क्रकर नाम * करः' कृकणो नाम-द्वयं ककर पक्षिणः / ___(r) शकुन्त नाम है भास' स्तथा शकुन्त' श्च, भासनाम द्वयं स्मृतम् // 2430 // 8 जलकुक्कुभ नामानि (r) कोयष्टि:' शिखरी चैव, जलकुक्कुभ उच्यते। 8 कपोतनामानि 8 पारापतः कपोत श्च, ख्यातः पारावतः पुनः / / 2431 // कलरव स्तथा रक्तलोचनो ऽपि च कथ्यते / * चकोरनामानि . चकोर' श्चलचञ्चु' श्च, तथैव विषसूचकः // 2432 // नाम ज्योत्स्नाप्रियो लोके चकोरस्य चतुर्थकम् / * गुन्द्रालनामानि (r) जीवंजीव' श्च गुन्द्रालोरे, विषदर्शनमृत्युकः // 2433 // * व्याघ्राटनामानि 8 व्याघाट' श्च भरद्वाजो, भारद्वाजो ऽपि ज्ञायताम् / Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थस्तिर्यविभागः * प्लवनाम (r) प्लव' श्च गात्रसंप्लवो२, नाम द्वयं निगद्यते // 2434 / / * तित्तिरि नाम है तित्तिरिः' खरकोण न, नाम तित्तिरिपक्षिणः / ___ हारीत नाम * हारीतस्य द्वयं नाम, हारित' इच मृदङकुरः२ // 2435 // * मरुल नाम है मरुलो' मरुलस्य स्याद्, नाम कारण्डवः पुनः / . * सुगृह नाम , सुगृहः' प्रथमं नाम, द्वितीय ञ्चञ्चुसूचिक:२ // 2436 // ... कुक्कुभनामानि 8 कुक्कुभः' कुहकस्वनः२, स्यात् कुम्भकारकुक्कुटः / ॐ दीपकपक्षि नाम * गृह्यन्ते पक्षिणा येन, पक्षिणोऽन्ये स दीपक: // 2437 // - छेक-नाम * छेका' गृह्या श्च ते प्रोक्ताः, ये भवन्ति गृहस्थिता।। पञ्चन्द्रियाः पक्षिमेदाः सर्वे इमे तु खेचराः // 2438 // // इति खेचरपञ्चेन्द्रियजीवनामानि // Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 364 सुशीलनाममालायो अथ जलचरपञ्चेन्द्रियनामानि / ॐ मत्स्यनामानि * मत्स्यो' मोनो मूको मत्सः४, शम्बर:५ शंवर स्तिमिः / प्रात्माशी शकली शल्को'', विसार::' स्वकुलक्षयः१२ // 2436 // अण्डजः१३ स्थिरजिह्न 4 एच, पृथुरोमा'५ जलाशयः१५ / झषः१७ वैसारिणः१८ शेव:१६, प्रात्माशो२° जलपिप्पक:२१ // 2440 / / सङ्घचारी२२ च नामानि, सामान्यानि भवन्ति / ॐ मत्स्यविशेषनामानि 8 वदाल:' सहस्रदंष्ट्रो, वादाल' एतनः पुनः / / 2441 // जलवाल' श्च नामानि, वादालस्य हि सन्ति वै / पाठोन' श्चित्रवल्लिको, मृदुपाठक इत्यपि // 2442 // शकुले' कलक:२ स्याञ्च, गडके' शकुलार्भक:२ / उलूपी' शिशुके 2 स्याच शफरे' श्वेतकोलक:२ // 2443 // प्रोष्ठी नामाति विख्यातं, वर्तते शफरस्य वै। नडमीनो' नलमीन२, श्चिलिचिम श्चिलिचिमिः // 2.444 // रोहितो' मत्स्यराजः२ स्थान् राजशृङ्ग' स्तु मद्गुरः२। Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालायां जलसर्पो ऽवहार श्च, वरुणपाश उच्यते // 2452 // .. मकर' श्च फरणी२ शङ्ख 3, मकरस्येति नाम वै / अन्येऽपि यादो भेदाः स्यु, बहवो मकरादयः / / 2453 / / ॐ कुलीरनामानि (r) .. कुलीर:' कुलिर' श्चैवं कर्कट: कर्कड पुनः / करकट स्तथा पिङ्गचक्षुः पार्योदरप्रियः // 2454 // कुरचिल्लो बहिश्चरः, षोडशांहि विधागतिः / एतन्नामानि मन्यन्ते, कुलीरस्य हि पण्डित. // 2455 / / __* कच्छपनामानि 8 उहारः' कच्छपः२ कूर्मः, कमठो जीवथ स्तथा / कोडपाद श्च दौलेय”, श्चतुर्गति स्तथैव च / / 2456 // पुनः पञ्चाङ्गगुप्तोऽपि, कच्छपस्याभिषा स्मृता। * कच्छपीनामानि 8 खियां तु कच्छपी' ज्ञेया, कमठी च डुली दुली // 2557 / / ॐ मण्डूकनामानि (r) मण्डूको' वर्दुरो भेक:, प्लवग: श्च प्लवङ्गमः / प्लवो व्यङ्ग स्तथा ऽजिह्वो, वर्षाभू श्च हरिः पुनः // 2458 // Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालायां मान* जलसर्पो ऽवहार ३च, वरुणपाश उच्यते // 2452 // .. मकर' श्च फरणी२ शङ्ख , मकरस्येति नाम वै। अन्येऽपि यादो भेदाः स्यु, बहवो मकरादयः // 2453 / / ॐ कुलीरनामानि 8 कुलीरः' कुलिर' श्चैवं कर्कटः कर्कडः पुनः / करकट' स्तथा पिङ्गचक्षुः पार्बोदरप्रियः // 2454 / / कुरचिल्लो बहिश्चर.६, षोडशांहि द्विधागतिः / एतन्नामानि मन्यन्ते, कुलीरस्य हि पण्डिते. // 2455 / / * कच्छपनामानि ॐ उहारः' कच्छपः२ कूर्मः३, कमठो जीवथ स्तथा / कोडपाद श्च दौलेय', श्चतुर्गति स्तथैव च / / 2456 / / पुन: पञ्चाङ्गगुप्तोऽपि, कच्छपस्याभिधा स्मृता। __कच्छपीनामानि (r). खियां तु कच्छपी' ज्ञेया, कमठी च डुली दुली // 2557 / / * मण्डूकनामानि * मण्डूको' दर्दुरो मेकः, प्लवग श्च प्लवङ्गमः / प्लवो व्यङ्ग स्तथा ऽजिह्वो, वर्षाभू श्च हरिः पुनः // 2458 // Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थस्तिर्यविभागः 367 शालूर' ' श्चाथ सालूरो'२, द्वादशैतानि संख्यया। मण्डूकस्य हि मन्यन्ते, सर्वदा साक्षरै जनैः // 2456 // स्थले नरादयो ये वै. ते जले जलपूर्वकाः' / जलनरो जलहस्ती, जलतुरङ्ग उह्यताम् / / 2460 // . // इति जलचरपञ्चेन्द्रिय जीवनामानि-समाप्तानि / / . * अण्डजादयोऽष्टनामानि है अण्डजाः' पक्षिसाद्याः, मन्यन्ते पण्डित रिह। पोतजाः कुञ्जराद्याश्च, कथ्यन्ते कोविदः खलु // 2461 / / रसजा मद्यकीटाद्या स्तथा जरायुजा अपि / नरगवादयः प्रोक्ताः, यूकाद्याः स्वेदजाः पुनः // 2462 // संमूर्च्छनोद्भवाः प्रोक्ता, मत्स्यादयो बुधैर्जनैः। उभिदः खञ्जनाद्या श्च, जन्तवो बहवो भुवि // 2463 / / सथोपपादुका: प्रोक्ताः, देवा श्च नारका अपि / सयोनय इत्यष्टावुद्धि'दुद्भिज मुद्भिदम् / / 2464 // Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 398 सुशीलनाममालाय इति श्रीतपोगच्छाधिपति - सूरिचक्रचक्रवत्ति - भारतीयभव्यविभूतिचिरंतनयुगप्रधानकल्प-सर्वतन्त्रस्वतन्त्र-श्रीकदम्बगिरि प्रमुखानेक- प्राचीन तीर्थोद्धारक-पञ्चप्रस्थानमयसूरिमन्त्रसमाराधक-शासन-सम्राट - जगद्गुरुभट्टारकाचार्य महाराजाधिराज - श्रीमद्विजय - नेमिसूरीश्वर - सुप्रसिद्ध पट्टालङ्कार - व्याकरणवाचस्पति-शास्त्र-विशारद-कविरत्न-साहित्यसम्राटसाधिकसप्तलक्षश्लोक प्रमाण नूतन संस्कृत साहित्यसर्जक - परमशासन है प्रभावकाचार्य देवेश - श्रीमद्विजयलावण्यंसूरीश्वर- पट्टधर-व्याकरणरत्न- 1 शास्त्रविशारद-कविदिवाकर-देशनादक्ष - शासनप्रभावकाचार्यदेव - श्रीमद् विजयदक्ष सूरीश्वर * पट्टधर-साहित्यरत्न-शास्त्रविशारद-कविभूषण-पञ्चप्रस्थानमयसूरिमन्त्रसमाराधक-शासनप्रभावकाचार्य श्रीमद् विजयसुशील सूरिणा विरचितायां सुशीलनाममालायांचतुर्थस्तिर्यक विभागः समाप्तः॥४॥ Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पञ्चमो नारकविभागः 366 * अथ पञ्चमो नारकविभागः * नैरयिकनामानि * नैरयिका' स्तथा यात्याः२, नारका प्रतिवाहिकाः / परेता: नाकीयाः स्युः, प्रेता: नारकिकाः पुनः // 246 // * विष्टि नाम * प्राजू विष्टि नाम द्वयं, कथ्यते कोविदः किल / * यातनानामानि * कारणा' यातना तीववेदना सहशाथिका / / 2466 / / * नरकनामानि * . नरको ' नारकर श्चैव, निरयो दुर्गति स्तथा। नरकस्येति नामानि, कश्यन्ते पण्डितः किल / / 2467 / / घनोदधि-घनवात-तनुवात -नभः स्थिताः / तदाधारे तु नरकावासाः सन्ति महीतले / / 2468 // * नरकभूमिनामानि * . धर्मा' रत्नप्रभा स्याद् वै, वंशा' च शर्कराप्रभा। स्याद् वालुकाप्रभा शैला, पङ्कप्रभाऽञ्जना भवेत् / / 2469 // रिष्टा धूमप्रभा स्याद् वै, माधध्या च तमःप्रभा। महातमः प्रभा नाम, चरमं माधवी भवेत् // 2470 // Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 400 सुशीलनाममालायां इत्यधोऽधो क्रमाज्ञयाः, सप्तनरकभूमयः / विख्याता. सर्वदाः सर्वाः, नरकभूमयो भुवि // 2471 // सन्ति रत्नप्रभायां वै, त्रिशल्लक्षारिण संख्यया / द्वितीयायां शर्करायां, लक्षाणां पञ्चविंशतिः // 472 // बालुकायां तृतीयायां. पञ्चदशलक्षाणि वै। सन्ति पङ्कप्रभायां तु, दशलक्षारिण संख्यया // 2473 / / पञ्चम्यां धूमप्रभायां, त्रीणिलक्षारिण संख्यया / षष्ठ्यां तमःप्रभायां तु, पञ्चन्यूनमेकं लक्षम् // 2474 // महातमः प्रभानाम्न्यां, भूमौ पञ्चैव निश्चिताः / सन्ति वै नरकावासाः, सीमन्तकादयः किल // 2475 / / एतासु स्युः क्रमेणैव, तन्तन्नरकवासिनः। शास्त्रेषु कथिताः प्राज्ञः, लोकेऽपि सन्ति सर्वदा // 2476 // * पातालनामानि * पातालं' नागलोक श्च, बलिवेश्म रसातलम् / वडवामुख' माख्यात मधोभुवन मित्यपि // 2477 / / * बिलनामानि * निम्न' निर्व्यथनं 2 रन्ध्र, विवरं च वपा ऽन्तरम् / रोक रोपं बिलं छिद्र, सुषिरं 'शुषिरं'शुषिः१३॥२४७८॥ Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पञ्चमो नारक विभागः 401 कुहरं 4 च सुषिर'५ श्चेति, नामानि विवरस्य वै। कश्यन्ते कौविदै रत्र, पुन र्वे खात मुच्यते // 2476 // गर्ता' वटो ऽवटि:3 श्वभ्र दरो' ऽगाध इच खातकम् / एतन्नामानि गर्तस्य, मन्यन्ते हि महीतले / / 9480 // इति श्रीतपोगच्छाधिपति - मरिचक्रचक्रवत्ति . भारतीयभव्यविभूतिचिरंतनयुगप्रधानकल्प-सर्वतन्त्रस्वतन्त्र-श्रीकदम्बगिरि प्रमुखानेक- प्राचीन तीर्थोद्धा रक-पञ्चप्रस्थानमयसूरिमन्त्रसमागधक-शासन-सम्राट - जगद्गुरुभट्टारकाचार्य महाराजाधिराज - श्रीमद्विजय - नेमिसूरीश्वर - सुप्रसिद्ध पट्टालङ्कार - व्याकरणवाचस्पति-शास्त्र-विशारद-कविरत्न-साहित्यसम्राटसाधितसप्तलक्षश्लोक प्रमाण नूतन संस्कृत साहित्यसर्जक * परमशासन , प्रभावकाचार्य देवेश - श्रीमद्विजयलावण्यसूरीश्वर- पट्टधर-व्याकरणरत्नशास्त्रविशारद-कविदिवाकर-देशनादक्ष - शासनप्रभावकाचार्यदेव - श्रीमद् विजयवक्षसूरीश्वर - पट्टधर-साहित्य रत्न-शास्त्रविशारद-कविभूषण-पञ्चप्रस्थानमयसूरिमन्त्रसमाराधक-शासनप्रभावकाचार्य श्रीमद् विजयसुशील , सूरिणा विरचितायां सुशीलनाममालायां नारक: पञ्चमोविभागः समाप्तः।।५।। Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 402 सुशीलनाममालायाः अथ सामान्यविभागः षष्ठः / . ॐ लोकनामानि * लोकः' स्याद् भुवनं विश्वं', विष्टपं पिष्टपं जगत्।। जगती चेति नामानि, लोकानां सप्त सन्ति वै // 2481 // जीवाजोवाधारक्षेत्रं, स लोकः कथ्यते खलु। . प्रलोकोऽपि जिनेन्द्रेण, कथ्यते हि ततोऽन्यथा // 2482 // * पात्मनामानि ॐ क्षेत्रज्ञः' पुरुष प्रात्मा, चेतन: कश्यते तथा। * जीवनामानि , जीवो' जन्तुरे स्तथा जन्युः, देहभाक् देहभाग्' भवी // 2483 // प्रसुमान् चापि संसारी, शरीरी देहभृत् तथा। प्राणी११ सत्त्वं 12 च नामानि, द्वादशैव भवन्ति वै // 2484 // * जन्मनामानि * जन्म' जन्मो जनि इचैव, जननं अनु' रुद्भवः / / उत्पत्ति श्चेति नामानि, प्रयोगे प्रचलन्ति वै // 2485 // Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षष्ठः सामान्य विभागः 403 ॐ प्राणनामानि 8 जीवातु' र्जीवित प्राणाः, जीवो ऽसवोऽपि पञ्चमम् / जीवनरक्षणोपायो, जीवातु' र्जीवनौषधम् // 2486 // * श्वासनामानि * सामान्यं श्वसितं' श्वास:२, सोऽन्तर्मुखो हि प्राहरः' / उच्छ्वास श्चापि भेद, प्रानो ऽपिमन्यते बुधैः // 2487 // * निश्वासनामानि है बाह्यश्वासस्य नामास्ति, पानो' निःश्वास एतनः / ॐ आयुर्नामानि , प्रायु' जर्जीवितकाल' स्तु, पुंल्लिङ्ग प्रायु रिष्यते // 2488 // ___ * मनोनामानि 8 मनोऽन्तःकरणं स्वान्तं, हच्चेतो हृदयं तथा। - उच्चलं मानसं चित्तं', गूढपथ' -मनिन्द्रियम् // 2486 // - एतन्नामानि चित्तस्य, मन्यन्ते च मनीषिभिः / . मानसं कर्म सङ्कल्पो' विकल्पोऽपि भिदा भवेत् // 2460 // . . सुखनामानि 8 सुखं' सातं तथा शातं', शर्म शर्म५ च निर्वृतिः / Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 404 सुशीलनाममालायां सौख्य चेति प्रसिद्धानि, सप्त नामानि सन्ति वै / / 2461 / / . . * दुःख नामानि के दुःखं ' व्यथाऽसुखं पीडा, बाधा बाधा श्च वेदना / प्रामनस्य ममानस्य , प्रगाढ 10 ञ्च प्रसूतिजम्११ / / 2462 / / अत्तिः१२ कृच्छ्र१३ तथा कष्टं१४ वैमनस्यं 15 प्रयुज्यते / प्राभोलं१६ चापि नामास्ति, स्यादाऽऽधि' मनिसीव्यथा / / 2463 // सपत्राकृति'-निष्पत्राकृती' स्यातां प्रपीडने। क्षुज्जाठराग्निजा बाधा, व्यापादो' द्रोहचिन्तनम् 2 / / 2464 / / पाद्यं ज्ञान मुपज्ञा' स्यात्, सङ्ख्या' चर्चा विचारणा / च! ऽपि च विचारार्थे, वाक्ये विज्ञ: प्रयुज्यते / / 2465 / / पूर्वाऽनुभूत स्मरणे, वासना' भावना भवेत् / संस्कारोऽप्यनु भूतार्थ-स्मरणेऽत्र प्रयुज्यते / / 2466 // ॐ निर्णयनामानि * अन्त' श्च निर्णय श्चैव, निश्चय: कथ्यते ऽपि वै / ॐ समर्थननामानि 8 प्रोक्तं समर्थन ' नाम, तत्रार्थे सम्प्रधारणा // 2467 / / . * अज्ञाननामानि * . अहमति' रविद्या च कथ्यतेऽज्ञानमित्यपि / Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षष्ठः सामान्य विभागः 405 405 * भ्रमनामानि * भ्रमो' भ्रान्ति स्तथा मिथ्यामति नि भ्रमात्मकम् / / 2468 / / ॐ सन्देहनामानि के सन्देहः संशयः श्चैव, विचिकित्सा च द्वापरम् / पारेक' श्चेति नामानि, मन्यन्ते संशयस्य वै // 2466 // __ॐ गुणोत्कर्षनाम से कथ्यते हि गुणोत्कर्षः', परभागोऽपि पण्डितैः / ॐ दोषनामानि 8 मास्रव' प्राश्रवो दोष, स्तथाऽऽदीनव उच्यते // 2500 // * स्वरूपनामानि * . स्वरूपं' रूपतत्त्व ञ्च, सतत्त्वं च स्वलक्षणम् / / प्रात्मा' राति श्च संसिद्धिः प्रकृतिः सहज स्तथा // 2501 // धर्म:१० शोलं'' स्वभाव' 2 ३च, सर्गी 3 श्चापि निसर्गवत् / एतन्नामानि मन्यन्ते, स्वरूपस्य बुधै भुवि // 2502 // ... अवस्थानामानि * दशा' स्थिति स्तथाऽवस्था, त्रीणि नामानि सन्ति वै। ... Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 406 सुशोलनाममालायां * स्नेहनामानि * प्रीतिः' प्रेम तथा स्नेहो', हाद' नामापि मन्यते // 2503 // * दाक्षिण्यनाम * सरलता हि दाक्षिण्यं', कथ्यते चाऽनुकूलता / पश्चात्तापनामानि * पश्चात्तापो' ऽनुताप श्च, प्रसिद्धोऽनुशयः पुनः // 2504 // बुधश्च विप्रतीसारो', विप्रतिसार उच्यते।। 8 समाधाननामानि (r). समाधान' समाधि श्च, प्राणिधानं तथैव च // 2505 // प्रवधान पुन नमि, समाधे मन्यते बुधैः / * धर्मनामानि * धर्म:' श्रेयो वृषः पुण्यं, सुकृतं' नाम पञ्चमम् // 2506 // * भाग्यनामानि ॐ भागधेयं तथा भाग्यं२, दिष्टं देवं पुन विधिः / नियतिश्चेति नामानि, मन्यन्ते नियते बुधैः // 2507 // अतिशुभमयः प्रोक्तं, निर्ऋतिः' कालकरिणका। .. Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षष्ठः सामान्यविभागः 407 अलक्ष्मी श्चाथ दारिद्रय, कथ्यते कोविदै रिह / / 2508 // * पापनामानि * पापं' च पातकं पाप्मा, पङ्कः किण्वं च किल्विषम् / कल्मषं कलुषं कल्क, दुष्कृतं दुरितं तमः 2 // 2506 // अंह' 3 श्चाऽङ्घ 4 स्तथाऽधं१५ वै, वृजिन'६ मशुभं पुनः / एनोऽष्टादशं नाम, मन्यतेऽधस्य साक्षरैः // 2510 // 8 धर्मचिन्तननाम * त्रिचतुर्वर्ग नाम्ना स्या, दुपाधि' धर्म चिन्तनम् / त्रिवर्गो' धर्मकामार्था श्चतुर्वर्ग: ' समोक्षकाः // 2511 // बलतुर्याचतुर्भद्र', कथ्यते कोविदः किल / प्रमादो' नवधानत्व मविकार्यकृतं भवेत् // 2512 // ॐ अभिप्रायनामानि * अभिप्राय' स्तथा भाव, प्राकूत माऽऽशये मतम् / छन्द श्चेति हि नामानि, मन्यन्ते विदुषां गणे // 2513 // ॐ इन्द्रियनामानि ॐ. हृषीक' करणं स्रोतो', ऽक्षं खं विषयो'-न्द्रियम् / * 'बुद्धीन्द्रियं' स्पर्शनादि, धोन्द्रिय मपि कथ्यते // 2514 // कर्मेन्द्रियं क्रियेन्द्रियं२, पाण्यादे नाम कथ्यते / Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 408 सुशीलनाममालायां * विषयनामानि , इन्द्रियार्था' स्तथा ऽर्था' इच,गोचरा विषया' अपि // 2515 // स्पर्शो' रस' श्च गन्ध' श्च, रूपं शब्द च पञ्चमः / ॐ शीतनामानि 8 तुषार:' शीतलः२ शीतः', सुषोमः सुषिमो हिमः // 2516 // सुशीमः शिशिर श्चैव, जडो ऽपि कथ्यते पुनः / * उष्णनामानि * अथोष्णा' श्च क्टु स्तीक्ष्ण', स्तिग्म स्तोत्र स्तथा खरः // 2517 // चण्ड श्चेति हि नामानि, मन्यन्ते पण्डतः पुनः / ईषदुष्णः' कदुष्ण श्च, कोष्णः कवोष्ण" इत्यपि // 2518 // तथा मन्दोष्ण' नामापो,-षदुष्णस्य हि कथ्यते। * कर्कशनामानि * कक्खटः' खक्खट: 2 करः, कर्कशो निष्ठुरो' दृढः // 2516 // कठारः कठिनो' मूर्त , मूर्तिमत् परुष''स्तथा / जठर जरठी 3 श्चव, जरढ" श्च खरः१५ पुनः // 2520 // एतन्नामानि कथ्यन्ते, कर्कशस्य हि कोविदः / Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षष्ठः सामान्य विभागः 406 * कोमलनामानि 8 कोमल:' सुकुमार श्च, सोमालो ऽकर्कशो' मृदुः // 2521 // मृदुल श्चेति नामानि, कथ्यन्ते कोमलस्य वै / ॐ मधुरनामानि 8 मधुरो' मधुल:२ स्वादुः, गुलयो मधूलक' स्तथा // 2522 // रसज्येष्ठ श्च नामानि, मन्यन्ते मघुरस्य वै॥ __अम्लनामानि के अम्लो' दन्तशठः प्रोक्तः,पाचनो ऽहम्ल स्तथा स्मृतः // 2523 // * लवणनामानि 8 प्रसिद्धो लवण' श्चैव, रसः सर्वरसर स्तथा। * कटुनामानि * कटुः' स्यादोषणो' लोके, स एव मुखशोधनः // 2524 // * तिक्तनाम * वक्त्रभेदी' तथा तिक्तो, नाम तिक्तरसस्य वै। .. ... ॐ कषायनामानि (r) कषाय' स्तुवर इचव, तूवरो' ऽपि निगद्यते // 2525 // Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 410 सुशीलनाममालायो * सुगन्धनामानि 8 सुरभि' श्च समाकर्षी', गन्ध' च घ्राणतर्पणः / तथा जनमनोहारी', निर्हारी' नाम विद्यते // 2526 / / विदूरग' स्तथाऽऽमोदः स्याद्रगतगन्धवान् / परिमलो' विमर्दोत्थः, कथ्यतेऽत्र सुगन्धवान् // 2527 // सुगन्धि' रिष्टगन्धर श्चैवाऽऽमोदी मुखवासनः / ॐ दुर्गन्धनामानि * . दुर्गन्धः' पूतिगन्धि' श्च, पूतिगन्धिक मुच्यते // 2528 // प्रामगन्धि' स्तथा विस्र 2, कथ्यते कोविदः पुनः / / * श्वेतवर्णनामानि ॐ ख्याता: श्वेतादिकाः वर्णा, स्तेषां वर्णनमस्त्यधः // 2526 // शुक्ल:' श्वेत:२ सित:3 स्येतः, शुभ्र श्च विशदः शुचिः / अवलक्षो वलक्ष श्चा,ऽवदातो' धवल'' स्तथा // 2530 // पाण्डरः पाण्डुरः पाण्डु'४, गौर'५श्च हरिणो१६ऽर्जुनः१७ / सप्तदशैव नामानि, ईषत्पाण्डु' स्तु धूसरः२ // 2531 // . के विभिन्नवर्णनामानि ॐ कापोत' श्च कपोताभः२, कपोतवर्णवान् भवेत्। . Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षष्ठः सामान्य विभाग: 411 पोत' श्च पीतलो गौरो', हारिद्रः सितरञ्जनः // 2532 // पलाश:' पीतनील श्च, पालाशो हरितो हरित् / तालकाभः पुन मि, मन्यते हरितस्य वै // 2533 // रोहितो' लोहितो रक्तो, माञ्जिष्ठः शोरण' इत्यपि / पाटल: ' श्वेत रक्त श्च, श्वेतरक्तस्य नाम वै // 2534 // अरुणो' बालसन्ध्याभ:२, नामाऽरुणस्य वै खलु / कपिल: कपिश: कद्रुः3, पोतरक्त श्च पिञ्जरः // 2535 // पिशङ्गः पिङ्गल: पिङ्गः, श्यावो बभ्रस्तथा हरि::। कडार१२ श्चेति नामानि, कथ्यन्ते कपिलस्य वै // 2536 // कृष्णः' काल' स्तथा नील:3, श्याम श्च श्यामलोऽसितः / शिति श्च मेचको रामो', नव नामानि सन्ति वै // 2534 // रक्तश्याम' स्तथा धूम्रो, धूमल श्चापि मन्यते / कल्माष:' कर्पर श्चैव, चित्रश्च चित्रल: पुनः // 2538 // एतः कर्मीर किर्मीरौं, न श्च शबलो भवेत्। . श्वेताच्छबल पर्यन्तं, सर्वे शब्दा श्च पुंसि स्युः // 2536 // ॐ शब्दनामानि 8 . शब्दः' स्वरो ध्वनि नादो', निनादो निनदो रणः / निःस्वानों निःस्वन: स्वान:१०, निस्वानो' निस्वनो'२ स्वनः 3 // 2540 // Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 412 सुशीलनाममालाया निवारणो' निक्करणः१५ करणः१६ क्वण' श्च क्वणनं१८ पुनः / ध्वानो घोष२० श्च निर्घोष२', पारावर 2 पारयो रव:२४ // 2541 // विराव२५ श्चापि संरावो२६, ह्रादो२७ राव२१ स्तथा स्वनिः२८ / निदि० श्चेति त्रिशन नामानि शब्द बोधने // 2542 // .. * सप्तस्वरनामानि * षड्ज'- ऋषभरे- गान्धारा 3, मध्यमः पञ्चम स्तथा। धैवता निषधः सप्त, तन्त्रीकण्ठोद्भवाः स्वराः // 2543 // * स्पष्टीकरणम् है षड्ज रौति मयूरस्तु, गावो नर्दन्ति चर्षभम् / प्रजाविको तु गान्धारं, क्रौञ्चो नर्दति मध्यमम् // 2544 // पुष्पसाधारणे काले, कोकिलो रौति पञ्चमम् / अश्वस्तु धैवतं रौति, निषादं रौति कुञ्जरम् // 2545 // उरो जातः स्वरो मन्द्रो, मध्यः कण्ठज उच्यते। तारो मस्तकजः प्रोक्तः, स्बरज्ञ : पण्डित जनैः // 2546 // ॐ शब्दभेदाः ॐ ऋन्दितं' रुदितं चैव, ऋष्ट त्रिविधमुच्यते। .. तदपुष्टन्तु विद्धि गह्वरं' मन्यते सदा // 2547 // . Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षष्ठः सामान्य विभागः शब्दो गुणानुरागोत्थः, प्ररणाद: सीत्कृतं नृणाम् / जयजयकारशब्दो, ऽयं क्रियते जगजनैः // 2548 // पर्दनं' गुदजः शब्दः, कर्दनं' कुक्षिजः पुनः / क्ष्वेडा' तु सिंहनादोऽस्ति, भटानां गर्जना युधि // 2546 // युद्धाह्वाने निगद्येत क्रन्दनं' सुभट ध्वनि: / कलकलः कोलाहलो, युगपद् बहुभाषरणम् // 2550 // व्याकुलो येन लोकः स्यात, तमुल: स च उच्यते / मर्मरो' वस्त्रपर्णादे. भूषणानां तु शिञ्जितम् // 2551 // हेषा' हषा हि वाजीनां, गजानां गर्ज'- बंहिते- / गर्जा ऽपिगज शब्दोऽस्ति, विस्फारो' धनुषो रवः // 2552 / रम्भा' हम्भा च गोशब्दे, स्तनितं' स्वनितं द्वयम् / ध्वनितं गजितं : गाँव:५, रसितं' मेघगर्जने // 2553 // पुनः प्रोक्त विहङ्गाना, कूजनं कूजितं द्वयम् / / तिरश्चां वाशितं चैव, प्रसिद्धं वासित रुतम् // 2554 // वृक शब्दो रेषणं' स्याद्, रेषा च पुनरुच्यते / बुक्कनं' स्याच्छुनः शब्दे, भषणं च प्रयुज्यते // 2555 // पीडितानां रवो लोके, करिणतं' करिणति स्तथा / दम्पत्यो रतिकाले तु, शब्द स्तु मणितं' भवेत् // 2556 // वीणा शब्द स्तु प्रकारणः', प्रक्वरण:२ कथ्यते बुधैः / Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 414 सुशीलनाममालाया मृदंगजो हि गुन्दलो', गुन्दुलोऽपि हि मन्यते // 2557 // . क्षीजनं' कोचकानां स्याद्, भेर्या नाद स्तु दद्रुरः' / तथाऽत्युच्च र्ध्वनि स्तारः', कथ्यते पण्डितः किल // 2558 // मन्द्रो' गम्भीर शब्दः स्यान, मद्रोऽपि मन्यते बुधैः। कल.' स्यान् मधुर शब्दः, मन्दे मिष्टे च काकली' // 2556 / / काकलि' श्चेति नामापि, कथ्यते कोविदः पुनः / लयानुग' एक तालो', गीत वादित्र संयुते // 2560 // काकु' निविकार' इच, स्वरस्य विकृतौ भयात् / प्रतिध्वनिः प्रतिश्रुच्च', शब्दभेदोनिगद्यते // 2561 // ___* समूहनामानि ॐ समूहः' समुदाय' श्च, समुदयो ऽपि सञ्चयः / समवाय श्च सङ्घातः , सन्दोहः संहति स्तथा // 2562 // पाकर उत्करः१० कूटं'' कलाप१२ श्च कदम्बकम्'३ / निकरो'४ निकुरम्ब'५ञ्च,प्रकरः 6 पेटकं गणः // 2563 / / चक्रवाल'६ श्चय२० श्चक २१,जातं२२ जालं२३ च मण्डलम्२४ / निवहो२५ विसरो२६ वारो२७, वातो२८ वृन्दं२६ तथा व्रजे:३१ // 2564 // व्यूहो। राशि३२ स्तथा स्तोम:33 ,पुञ्ज३४ श्च पटलं 35 पुनः / प्रोघ3 श्चेति हि नामानि, समुदायस्य सन्ति वै // 2565 // Page #466 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षष्ठः सामान्य विभागः 415 खगवाते तु यूथं' स्यात्, सङ्घः' सार्थ श्च देहिनाम् / सजातीनां कुलं' तेषां, निकाय' स्तु समिरणाम् / / 2566 / / वर्ग' स्तु सदृशां ज्ञेयो, जड-चेतनयो द्वयोः / स्कन्ध' स्तु समुदायो वै, नर-कुञ्जर-वाजिनाम् // 2567 // ग्रामो' विषय-शब्दोक्त-भूतेन्द्रिय-गुणाद्गरणे / समजः' स्यात् पशूनां वै, समाज' श्चान्यदेहिनाम् // 2568 / / शौक' शुकसमूहे स्यात्, मायूरं तु शिखिवजे / तैत्तिरं' तेत्तिर वाते, कथ्यते पुनरत्र वै // 2566 // कपोतसञ्चये प्रोक्त कापोतं' पण्डित रिह। भक्षं भिक्षासमूहे स्यात्, साहस्र' दशशतव्रजे // 2570 // गाभिणं' गर्भिणसमूहे, यौवतं' युवतिव्रजे / गोत्रार्थप्रत्ययान्तानां, स्यु रौपगवकादयः' // 2571 // उक्षादे रौक्षक' मानुष्यकं तु मनुष्यबजे / वार्द्ध कं' वृद्धवृन्दे स्या, दौष्ट्रक' मुष्ट्रकव्रजे // 2572 // राजपुत्र समूहे वै, राजपुत्रक'-मुच्यते / नृपाणां समुदाये स्याद्, राजन्यकं' च राजकम् // 2573 // प्राजकं' कथ्यते लोके, ऽजकानां प्रकरे बुधैः / वात्सकं' वत्सकव्यूहे, मन्यते साक्षरैः पुनः // 2574 // उरभ्रकस्य सङ्घाते, प्रोक्त मौरभ्रक' किल / Page #467 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 416 ममालायां कवचिकचये चैव, कावचिक' हि नाम वै // 2575 / / .. हास्तिकं' हस्तिवृन्दे स्या दापूपिका'-द्यचेतसाम् / धेनूनां धेनुकं' नाम, मन्यते पण्डितैः पुनः // 2576 / / धेन्वन्तानां हि शब्दानां, कथ्यन्ते गोधेनुकादयः / तेषां गोधेनुकानां वै, प्रोक्ता गौधेनुकादयः // 2577 // केदारक' च केदार्यर, केदारिक हितगणे / ब्राह्मण्यं ब्राह्मणादे श्च, माणव्यं२ माणव व्रजें // 2578 // वाडव्यं वाडवव्यूहे, कथ्यते कोविदः पुनः / गाणिक्य' गणिकानां तु, केशानां कश्य'-कशिके // 2576 / / प्रश्व'-मश्वीय-मश्वानां, पशूनां पार्श्व'-मुच्यते / वातूलो' वायु संघातो-वात्या ऽपि कथ्यते पुनः // 2580 // गवां तु समवाये स्याद् गव्या' गोत्रा द्वयं पुनः। . पाश्या' च पाश संघाते, खल्या' खलनरव्रजे // 2581 // तृण्या' तृणसमूहे स्याद्, धूम्या' तु धूमवृन्दके / खलादेः खलिनी' तुल्या, कुटुम्बिनी' तु तद्गणे // 2582 // जनता' जनवृन्दे स्याद्, बन्धुवृन्दे तु बन्धुता / प्रामता' ग्रामवृन्दे वै, गजोधे गजता' तथा // 2583 // सहाय मित्रवृप्दे हि, सहायता' च कथ्यते। स्थानां च समूहः स्यात् रथ्या' च रथकट्यया // 2584 / / Page #468 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षष्ठः सामान्य विभाग: 417 ॐ श्रेणीनामानि ॐ प्रालि' श्वाऽऽलाततिः पङ्क्तिः ,श्रेणो श्रेरिण' श्च धोरणी। वीथीवीथिस्तथा राजि' रावलि' 'रावली'२ पुनः // 2585 // माला' 3 लेखेति१४ सर्वाणि, श्रेणिनामानि सन्ति वै / * युगलनामानि 8 उभा' -भे च द्वौ " च, द्वैतं' द्वन्द्वंद्वयं तथा / / 2586 / / यमलं यामलं युग्मं, युगलं' जकुटं१२ युगम् / यमं४ च द्वितयं 15 चेति, नामानि युगलस्य वै // 2587 // पशु युग्मे गोयुगं' स्यात्, गोयुग्मेऽपि च गोयुगम् / प्रश्वगोयुगमुच्येत अश्वद्वयं तथैव च / / 2588 // षडगवं' स्यात् षट्त्वेऽर्थे, गोषड्गवमित्यपि / हस्तिषड्गवमश्वषड्गव चेति विधीयताम् // 2586 // शतादिभ्यः परा सख्या पर:पूर्वा प्रयुज्यते / परःशताः कुञ्जरास्ते, परःसहस्राः हस्तिनः // 2560 // .. परो लक्षा: सभालोका: पर: कोट्यश्च सन्ति वै / - पुनः परोऽर्बुदा ज्ञेया, परः खर्वादयोऽपि वै // 2561 // प्रचुरनामानि ॐ प्रभूत' प्रचुरं प्राज्यं', पुष्कलं पुरहं पुरु। . Page #469 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 418 सुशीलनाममालायां पुरुहं पुरुहू श्चव, भूयिष्ठं बहुलं'• बहु'' // 2562 // .. मदन भूरि' भूय'४ श्च, स्फिरं५ स्फारी तथैव च / एतन्नामानि मन्यन्ते, प्रचुरस्य हि पण्डितः / / 2563 / / * अल्पनामानि 8 अल्प' तुच्छं तनु स्तोक, क्षुद्र क्षुल्ल तथा कृशम् / / अणु च तलिनं दम्र१०, दश नामानि सन्ति वै / / 2564 // * सूक्ष्मनामानि ॐ श्लक्ष्णं च पेलवं सूक्ष्म, सूक्ष्मनामानि त्रीणि वै / * लेशनामानि 8 , कणो' मात्रा लवो लेश, स्त्रुटी त्रुटि' निगद्यते // 2565 / / ___* लघुनामानि (r) ह्रस्वं' लघु च प्रख्यात, लघुकार्ये प्रयुज्यते / * अत्यल्पनामानि. * अत्यल्प'-मस्पिष्ठ च, स्यादल्पीयो ऽणीय स्तथा // 2566 / / कनिष्ठ' ञ्च कनोय' श्च, लिङ्गभेदो विशेष्यवत् / * दीर्घनाम 8 . . दोघ'-माऽऽयतमाख्यातं. लम्बार्थस्य हि वाचकम् / / 2567 / / Page #470 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षष्ठः सामान्यविभागः 419 __उच्चनामानि 8 उद्धर'-मुन्नतं तुङ्ग , स्यादुल्न -मुच्छ्रितं तथा। उच्च प्रांशु च नामानि, तुङ्गार्थे संभवन्ति वै // 568 / / * नीचनामानि * न्यग्' नोचं मन्थनं कुब्ज, खवं च वामनं पुनः / ह्रस्वं च सप्त नामानि, नीचार्थे प्रथयन्ति वै // 2566 / / * विशालनामानि * विशङ्कटं विशालं च, विस्तीर्ण विकटं महत् / वरिष्ठं विपुलं' 'व्यूढं 8, वड ततं'• तथा बृहत् // 2600 // उरु१२ गुरु१ 3 बहु'४ स्फारं'५, पृथु 1 च पृथुलं पुनः / - एतन्नामानि मन्यन्ते, विशालस्य बुधैः सदा / / 2601 // ॐ दैर्घ्य नामानि ॐ दैर्घ' प्रसिद्धमाऽऽयाम, प्रानाह' श्चापि मन्यते / ___ * प्रारोहनामानि * प्रारोह' श्च तथोत्सेध:२, उच्छ्रय' श्च समुच्छ्रयः // 2602 / / उच्छ्राय उदयो नाम उच्चतायां प्रयुज्यते / .... * विशालतानाम * परिणाहो' विशालतारे, महदर्थे प्रयुज्यते // 2603 / / Page #471 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 420 ममालाया विस्तारनामानि ॐ .. प्रपञ्चा'-ऽऽभोग विस्तार व्यासाः विस्तारवाचकाः / विस्तरो' विग्रहः शब्दे, समस्तपदस्फोटने // 2604 / / .. * समासनामानि * समास' श्च समाहार:२ संक्षेप श्च संग्रहः / * संमस्तनामानि ॐ विश्व' सर्व समस्त ञ्च, समन सकलं समम् / / 2605 // अशेष मथ निःशेष, निखिल -मखिलं' तया। अनूनं 1 न्यक्ष'२-मऽन्यूनं३,कृत्स्नं ४पूर्ण निगद्यताम् / / 2606 // प्रखण्डं१६ चेति नामानि, मन्यन्ते निखिलस्य वै / ॐ शकलनामानि 8 . अध' श्च शकलं शल्कं 3, खण्ड' श्च खण्डलं५ दलम् // 2607 // मित्तं' नेम' श्च नामानि, कथ्यन्ते शकलस्य वै / * अंशनामानि * अंशो' भाग२ श्च वण्टो, वण्टक श्चापि मन्यते // 2608 / / ॐ मलिननामानि * . मलीमसं' तथा म्लानं२, मलिनं मलदूषितम् / Page #472 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षष्ठः सामान्य विभागः 421 कच्चरं कल्मषं चैव, कश्मलं कथ्यते तथा // 2606 // ___* पवित्रनामानि 8 पवित्रं पावनं पुण्यं, पूर्व मेध्यं तथैव च / * उज्ज्वलनामानि * उज्ज्वलं' विमलं' वोध्र, विशुद्धं विशदं शुचि // 2610 // अवदात'-मनाविलं, मामान्यष्टोज्ज्वलस्य वै। निःशोध्यं' वनवस्करं२, चोक्ष शोधितवस्तु च // 2611 // * शोधितनामानि * निर्णिक्त' शोधितंरे धौतं', मृष्ट क्षालित-मित्यपि / . . ॐ अभिमुखनाम 8 मभिमुखं' प्रसिद्ध वै, सम्मुखीनं निगद्यते // 26121 ॐ पराङ्मुखनाम * पराचीनं' च प्रख्यातं, प्रोक्त पुनः पराङ्मुखम् / * मुख्यनामानि * मुख्य'-मऽग्रेसरं चाऽन, प्राग्यो ऽबरणी स्तथाऽग्रिमम् // 2613 // Page #473 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 422 सुशीलनाममालायो प्रग्रीय इचाग्रियो ऽयं वै, प्रष्ठ' प्राग्रहरं परम् 12 / प्रकृष्ट प्रमुखं'४ चैव. पुरोग१५ प्रवर' 6 वरम्१७ // 2614 // प्रधानं 8 चोत्तम 6 जात्य२० मनुत्तमः १-मनुत्तरम्२२ / बर्य२३ चाऽनवराय 24 वै, परार्थ२५ ग्रामरणी:२६ पुनः // 2615 // प्रवह२७ च प्रवेक 28 वै, वरेण्यं च प्रसिद्धकम् / एतन्नामानि मुख्यस्य, सर्व विशेषणार्थकम् // 2616 // * श्रेष्ठनामानि ॐ धेयः' श्रेष्ठं पुष्कल न्च, सत्तम -मऽतिशोभनम् / तथोत्तरपदे व्याघ्र'-पुङ्गव-र्षभ-कुजरा. // 2617 // ... सिंह-शार्दूल-नागाद्या', उत्तमार्थे भवन्ति वै। वृन्दारक स्तल्लज'च, मतल्लिका मचचिका // 2618 // उद्धः११ प्रकाण्ड 12 शब्द श्च, प्रशस्यार्थे प्रयुज्यते। ॐ गौणार्थका:शब्दा: * . गुणो'-पसर्जनो-पान-मप्रधाने -प्रयुज्यते // 2616 // * अधमनामानि 8 अधम-मरणक' गर्दा, निकृष्ट काण्ड' कुत्सिते' / अवद्य-मपकृष्ट ञ्च, प्रतिकृष्टं ब्रुवं पुनः // 2620 // रेफो" रेपो 2 ऽवमं पापं१४, याप्यं 5 याव्यं तथा ऽर्व 17 वै। Page #474 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षष्ठः सामान्यविभागः 423 कपूय'८ श्च कुपूर्व च, खेट२० चेलं२१ निगद्यते // 2621 // अपशब्द२२ ञ्च द्वाविंशाः, शब्दा: सन्त्यधमार्थकाः / विशेषणार्थका: सर्वे, रेफ विना भवन्ति ते // 2622 // तदाऽऽसेचनक' यस्य, दर्शनाद दृग् न तृप्यति / के सुन्दरनामानि 8 सुन्दरं' शोभनं 2 कान्तं, मञ्जुल ञ्च मनोहरम् // 2623 // मनोज्ञं मधुरं रम्य,-मऽभिराम मनोरमम् / कमनीयं प्रिय'२ काम्यं ,कम्र'४ ञ्च सुषमं५ पुनः // 2624 // रुचिरं१६ चारु 17 रुच्य८ च, लडहं' 6 हारि२° वल्गु२१ च / रमरणीयं२२ तथा सौम्यं२७,पेशल 24 साधु२५ बन्धुरम् 2612625 // मञ्जु वाम२८ तथा हृद्य 26, नामानि सुन्दरस्य वै। विशेषणार्थका एते, शब्दा प्रायन्ति प्रायशः // 2626 // * फलनाम है फलं' व्युष्टिरे यञ्चैतत्, कथ्य ते फलनामानि / .* असारनाम * प्रसार' फल्गु निस्तत्त्वे, वस्तुनि प्रतिपाद्यते // 2627 // - शून्यनामानि ॐ शून्य' तुच्छं रिक्तकं च रिक्त , वशिक मियाप / Page #475 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 424 सुशीलनाममालायां पञ्च नामानि शून्यस्य, व्यवहरन्ति कोविदाः // 2628 // . . * निबिडनामानि * निबिडं निबिरीसं च. नोरन्ध्र 3 च निरन्तरम् / घन' सान्द्र दृढं गाढं, वहलं बहलं' तथा // 2626 // अविरलं'' पुनर्नामकादशं प्रयुज्यते / * विरलनामानि 8 विरलस्य तु नामानि, पेलवं' विरलं' तनु // 2630 // * नूतननामानि * अभिनवं' नवं' नव्यं नवोनं नूत्न -नूतने / प्रत्यग्रं चैव सद्यस्क, नामान्यष्टौ भवन्ति वै // 2631 // * पुराणनामानि * . जरत्' जीर्ण पुराण ञ्च, पुरातनं चिरन्तनम् / . प्रत्न' ञ्च प्रतन" मिति, नामात्र संप्रयुज्यते // 2632 // * मूर्त्तनाम * साकारवस्तु मूत' स्यान्मूत्तिमच्२ च प्रयुज्यते / * नैकभेदनामानि * उच्चावचं' नेकमेवं२, नानाप्रकार मित्यपि // 2633 // . Page #476 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 425 षष्ठः सामान्यविभागः .............. * अधिकनामानि * अधिक' मऽतिरिक्त च, ख्यातं समधिकं पुनः / / त्रोणि नामानि मन्यन्ते, समधिकस्य पण्डितः / / 2634 // * समीपनामानि है समीपं' सविध पाव३, ससीम मऽन्तिकं पुनः / सनोड 6 सन्निकर्ष" श्च, सन्निकृष्टं च सन्निधिः // 2635 // प्रासन्नं सन्निधान'' च, सदेशो१२ ऽभ्याश' 3 मित्यपि / प्रभ्यन' -मऽभितो ऽभ्यर्ण', . -मभ्यासो' निकटं 8 पुनः // 2636 // उपकण्ठं तथोपान्तं२., समर्याद' पुनस्तथा। सवेश२२ इति नामानि, मन्यन्ते शब्दशास्त्रिणः // 2637 // ॐ संसक्तनामानि * अनन्तर' मव्यवहितं तथैवापदान्तरम् / संसक्त चैव संलग्न', संभवत्यपटान्तरम् // 2638 // * नेदिष्ठनामानि * नेदीयो' नाम नेदिष्ठं२, भवेदन्तिकतम पुनः / प्रतिसमीपतार्थानि, त्रीणि नामानि सन्ति वै // 2636 // . Page #477 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 426 सुशोलनाममालाया * दूरनामानि * विप्रकृष्टं' परं' दूरं, दूरार्थे संप्रयुज्यते। . . __* अतिदूरनामानि 8 प्रतिदूरे' दविष्ठं स्याद् दवीयो ऽपि प्रयुज्यते // 2640 // * शाश्वतनामानि है सनातनं' ध्र वं नित्यं, शाश्चतिक' ञ्च शाश्वतम् / अनश्वरं प्रसिद्धं वै, सप्तमन्तु सदातनम् // 2641 // * स्थेयनामानि प्रतिस्थिरं' भवेत् स्थेयः२, स्थेष्ठं स्थास्नु तथाऽचलम् / एतन्नामानि मन्यन्ते, बहुस्थिरत्वबोधने // 2642 // . * कूटस्थनाम * नभ इत्यादि कूटस्थं, कालव्याप्येकरूपतः / * स्थावरनाम * स्थावरं' जङ्गमान्य ञ्च, भूम्यादिकं निगद्यते // 2643 // * जङ्गमनामानि ॐ इङ्ग' चराचरं ज्ञेय, चरं चरिष्णुः इत्यपि / Page #478 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षष्ठः सामान्यविभागः 427 सं जगत् जङ्गम च, सप्तनामानि सन्ति वै // 2644 // * चञ्चलनामानि 8 चञ्चलं' चपल ज्ञेयं, चलन चटुलं चलम् / लोलं चलाचल' कम्प्रं, कम्पनं तरलं तथा // 2645 // ज्ञेयं परिप्लव' पारिप्लव१२ मऽस्थिर 3 मेव च / त्रयोदशव नामानि, चपलस्य भवन्ति वै // 2646 // * सरलनामानि 8 ऋजुः' स्यात् सरलो ऽ जिह्नः, प्रगुणो ऽपि निगद्यते / * अधोमुखनामानि * अवान' माऽऽनत चवमऽवगत-मऽधोमुखम् // 2647 / / * . वक्रनामानि * प्राविद्ध' वेल्लिते वक्रं, कुञ्चितं कुरिल' नतम् / . . अराल भगुरं भुग्न, __ वृजिन' जिह्न' -भूमिमत्१२ // 2648 // द्वादशैतानि नामानि, वक्रस्य संभवन्ति वै / - अनुगनामानि 8 प्रन्वक्ष' मनुग मन्वक्३, ज्ञेय मनुपदं पुनः // 2646 // Page #479 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 428 सुशीलनाममालायां * एकाकिनामानि * ... एकाको' चककर श्चकः, कथ्यते ऽवगरणोऽपि च / ___ * एकाग्रनामानि है एकतान'-मेकायन-मेकसर्ग ञ्च तद्गतम् // 2650 / / एकायनगतं'-चैकान मैकाग्र -ञ्च वै पुनः / एकाग्र्यो ऽनन्यवृत्ति श्च, स्थिरचित्तस्य बोधने / / 2651 / / ॐ आदिनामानि (r) प्राद्य'-मादिम-मादि: श्च, पौरस्त्यं प्रथम पुनः / पूर्व -मग्रं तथा प्राक्च , वाक्ये प्रथमवाचकः // 2652 // * अन्तिमनामानि* अन्त्य' मन्तिम २-मन्त इच; पाश्चात्यं पश्चिम पुनः / जघन्यं चरमं चेति, नामानि चरमस्य वै // 2653 // * मध्यमनामानि 8 मध्यम' मध्यमीयं च, मध्यन्दिनं च माध्यमम् / माध्यन्दिनं च नामानि, मन्यन्ते मध्यमस्य वै // 2654 // * अभ्यन्तरनामानि ॐ अन्तराल' विचाल' ञ्च, ज्ञेयमभ्यन्तरं पुनः। Page #480 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षष्ठः सामान्यविभागः ____ 426 * अन्तरनाम से अन्तरं चैव मध्यं चाऽवकाशार्थे हि कथ्यते // 2655 // * समाननामानि * समान:' सन्निभ स्तुल्यं, सहक्षः सदृशः सह / साधारण: सधर्माच, सवर्णः सरूप:१० समः // 2656 / / स्यादत्तरपदे भूतः', प्रख्य२ श्च प्रतिमो निभः / प्रकाश: प्रतिकाश च, प्रतीकाश स्तथोपमा // 2657 // प्रकार श्चाथनीकाशः१., सङ्काशो रूपमेव च / तदापि सदृशार्थकत्वमायात्येव न संशयः // 2658 // * उपमावाचका: * प्रौपम्य' मुपमान मुपमिति स्तथोपमा / अनुकारो ऽनुहार श्च, साम्यं कक्षा तथा तुला // 2656 // उपमा वाचका एते, सर्वे शब्दा भवन्ति / . * प्रतिमानामानि * प्रतिमा' प्रतिमान ञ्च, प्रतिकायः प्रतिकृतिः // 2660 / / प्रतिच्छाया प्रतिच्छन्दः६, प्रतिरूपं प्रतिनिधिः८। / प्रतिबिम्ब प्रसिद्धं वै, तथाऽर्वा' प्रतियातना // 2661 / / Page #481 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 430 -------------------- सुशीलनाममालाया ......................................................... एतन्नामानि मन्यन्ते, प्रतिमायाश्च पण्डितः / सूर्मो' सूमि स्तथा स्थूणा, स्यादऽयः प्रतिमा पुनः // 2662 // सुवर्णप्रतिमा नाम, हरिणी' स्याद्धिरण्मयी / .. प्रतिकूलनामानि / प्रतिकूल' प्रतिलोम-मपसव्य -मपष्ठुरम् // 2663 // विलोम ञ्च प्रसव्य ञ्च, प्रतीपं चाप्यपष्ठुवै। वामंच नव नामानि, प्रतिकूलस्य सन्ति वै // 2664 / / * सव्यापसव्यनाम * वाम' सव्यं शरीरेऽङ्ग-मपसव्यं तु दक्षिणम् / * अबाधनामानि * उच्छृङ्खल '-मबाधं स्यादनगल-मयन्त्रितम् / / 2665 / निरङकुश स्तथोहामं, निरर्गल व ज्ञायताम् / * स्पष्टनामानि * स्फुट' स्पष्टं प्रकाश ञ्च, प्रव्यक्त प्रकटं पुनः // 2666 // व्यक्त तथोल्वरणं सप्त, नामानि संभवन्ति वै / * वर्तुलनामानि के वर्तुलं' निस्तल वृत्तं, परिमण्डल -पुच्यते / / 2667 // . Page #482 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षष्ठः सामान्य विभागः के बन्धुरनामानि * बन्धूरं' बन्धुरं२ नाम, प्रोक्त तथोन्नतानतम् / * विषमोन्नतनाम * विषमोन्नतं भवेन्नाम, स्थपुट कथ्यते पुनः // 2668 / / ॐ भिन्ननामानि * अन्यद'-न्यतरत् त्वं च, भिन्न मन्यतर' स्तथा / एक मेकतर श्चैव मितरत् कथ्यते पुनः // 2666 // * मिश्रनामानि के करम्ब: कबरो२ मिश्रः3, सम्पृक्तः४ खचित. पुनः / पञ्चैतान्येव नामानि, मिश्रितार्थे भवन्ति वै // 2670 // * विविधनामानि 8 बहुविधो' बहुरूप:२, पृथगरूपः पृथगविधः / 'नानारूपो नानाविधो 6, विविध श्चापि मन्यते // 2671 // ॐ शीघ्रनामानि * शीघ्र क्षिप्रं द्रुतं' तूर्णं, त्वरित सत्वरं लघु / प्राशु' नङ्घ तथाऽह्नाय, चपल' -मविलम्बि म्१२ // 267 // Page #483 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 432 सुशीलनाममालायां अजसा' 3 झटिति' 4 स्राक" च, सपदि द्राग: 218 पुनः / अष्टादशव नामानि, शोधार्थे सभवन्ति वै // 2673 // * झम्पानामानि 8 झम्मा' झम्प श्च सम्पातपाटवं कूर्दने भवेत् // ॐ नित्यनामानि # असक्त'-मनिशं नित्यं , संसक्त सततं पुनः / / 2674 / / अनवरत'-माधान्त :मऽविरत मऽनारतम् / अजस्र सन्ततं' चेति, नित्यनामानि सन्ति वै // 2675 / / * सामान्यनाम * साधारण' प्रसिद्ध वै, सामान्य-मपि मन्यते / * संहतनाम * नाम द्वयं बुध यं, संहतं' दृढसन्धि' च / / 2676 // * गहननाम है कलिलं' गहनं नाम, दुःखैः प्रवेष्टुमर्हति / * सङ्कीर्णनामानि ॐ सङ्कीर्ण' सकुलं२ कीर्ण-माकीर्ण माकुल पुनः // 2677 // Page #484 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षष्ठः सामान्यविभागः 433 * पूर्णनामानि * पूर्ण' ञ्च पूरितं ध्याप्तं 3, छन्न उच छादित तथा। प्राचितं निचितं चैव, भरितं चापि कथ्यते // 2678 / / * निरस्तनामानि * अपविद्धं' प्रतिक्षिप्तर, प्रत्यादिष्टं निराकृतम् / प्रत्याख्यातं निरस्त ञ्च, षई नामानि हि सन्ति वै // 2676 / / * परिवेष्टितनामानि * परिष्कृत' परिक्षिप्त२, परीत परिवेष्टितम् / निवृतं वलयित ञ्च, सर्वत प्रावृते भवेत् // 2680 / / . * व्यक्तनामानि है त्यक्त'-मुज्झित-मुत्सृष्टं३, धूतं विधूत-मित्यपि / होनं' चेत्यभिधेयानि, त्यक्तस्य संभवन्ति वै // 2681 // ___* विचारितनामानि * वित्त विचारित विन्न नामत्रय निगद्यते / ... अवध्वस्तनामानि 8 अवकोप'-मवध्वस्त, पतिते यत्रतत्र हि // 2682 // Page #485 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 434 सुशीलमामभालायां (r) संवृतनामानि * संवीतं' संवृतं रुद्धं, स्थगित -मपवारितम् / / प्रावृतं पिहितं. छन्न-मपिहित ञ्च छादितम् // 2683 / / अन्तहितं 1 तिरोहितं', द्वादशैतानि सन्ति वै / * अन्तर्धाननामानि ॐ अन्तर्धा च तिरोधान'-मन्तद्धि श्च पिधान मिति // 2684 // व्यवधा व्यवधान' च, छदन -मपवारणम् / स्थगनं चेति नामानि, ह्यन्तर्धानस्य सन्ति वै // 28 // * प्रकाशितनामानि के प्राविष्कृतं दशित ञ्च, प्रादुष्कृत प्रकाशितम् / प्रकटितं भवेन्नाम, प्रकाशितस्य वस्तुनः // 2686 // ॐ अवलम्बितनामानि * . अवलम्बित'-मुच्चण्ड-मविलम्बित-मित्यपि / एतन्नामानि मन्यन्ते, सालम्बन वस्तुनि // 2687 // * अनाहतनामानि ॐ अवमत'-मवज्ञातं', परिभूत-मनादृतम्। .. प्रवगणितं भवेन्नामावमानित -मित्यपि // 2688 // .. Page #486 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षष्ठ: सामान्य विभाग: * अनादरनामानि * अवज्ञा' ऽनादरो रीढा', ह्यसूक्षण-मसूक्षरणम् / अवगणना वमानन तिरस्क्रियाच नाम स्यात् // 2686 / / परिभवः परीभावो' दश नामानि सन्ति वै। * उन्मूलितनामानि 8 उन्मिलित' मुद्धृतञ्च', भवेदुत्पाटितं खलु // 2660 / / प्रावहितं तुर्य नाम, समूलोत्पाटने स्मृतम् / * कम्पितनामानि ॐ कम्पितं' चलित धूत -मान्दोलन उच वेल्लितम् // 2691 // लुलितं प्रेखितं प्रेसोलितं तरलितं धुतम् / नव नामानि मन्यन्ते, कम्पितस्य हि कोविदः // 2662 // * दोलानामानि 8 प्रेङ्खा' प्रेङ्खोलनं दोला', दोली चाऽऽन्दोलन पुनः / प्रयत्नेन कृतं फाण्टे', मधःक्षिप्त न्तु न्यञ्चितम् // 2693 // उर्ध्वक्षिप्त'-मुदस्तं स्यादुदञ्चितं तदेव हि / * क्षिप्तनामानि * माविद्धं चोदितं ह्यस्तं, निष्ठूतः क्षिप्त'-मीरितम् // 2694 // Page #487 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ममालाया नुन्न नुत्तम् ञ्च निष्ठ्यूतं, नव नामानि सन्ति / .. ॐ लिप्तनाम * दिग्धं लिप्तं द्वयं नाम, लेपनस्य प्रयुज्यते // 2695 // . * रुग्णनाम * रुग्णं' भुग्न द्वयं नाम, वक्रे भग्ने च पीडिते। * रूषितनाम * रजोलिप्ते विजानीयाद्, रूषितं' गण्डितं द्वयम् // 2696 // * गुप्तनाम , गूढ' गुप्त द्वयं नाम, गुप्तार्थे कथ्यते बुधैः / ॐ मुषितनाम 1 मुषितं' मूषितं' नाम, चोरितार्थे प्रयुज्यते / / 2697 // . * गुरिणतनाम 8 पाहतं' गुणितं नाम, गुरिणतार्थे निगद्यताम् / * निशातनामानि * निशात निशितं शातं, शोतं क्ष्णुत' ञ्च तेजितम् // 2668 // Page #488 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षष्ठः सामान्यविभागः 437 * व्यावृत्तनामानि * वृतो' वृत्त श्च वावृत्तो', व्यावृत्तो ऽपि प्रयुज्यते / * लज्जितनामानि * ह्रोणो' होतो लज्जित श्च, नाम त्रयं निगद्यते // 2666 // . * संकलितनाम * सङ्कलित' श्च संगूढो', द्वयं नाम प्रसिद्धयति / * संयोजितनामानि * संयोजित' उपाहित:२, संयोगित' श्च ज्ञायताम् // 2700 // . * परिणतनाम * पक्व परिणतं२ नाम, परिणतस्यं मन्यते / क्षीराज्य हविषां पाके, शतमित्यमि धीयते // 2701 // * कथितनाम * निष्पक्व क्वथितं ख्यातं, बहुकाल सुपाचिते / * दग्धनामानि * दग्धः' स्यादुषित:२ प्लुष्ट:३, पृष्ट' इत्यपि मन्यते // 2702 // Page #489 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 438 सुशीलनाममालायां * त्वष्टनामानि * .. .. तनूकृत' स्तथा तष्ट:२, स्वाष्टो ऽपि कथ्यते पुनः। ... * छिद्रितनामानि * छिद्रितो' वेधित श्चैव, विद्धो ऽपि मन्यते बुधैः / / 2703 // * निष्पन्ननामानि * निष्पन्न' मथ निर्वृत्तं', सिद्धं नामापि कथ्यते / * विलीननामानि * विलीनो' विद्रुत 2 श्चैव, द्रुतो नामापि मन्यते / / 2704 // __* प्रोतनाम * उतं' प्रोतं द्वयं नाम, कथ्यते कोविदः सदा। * स्यूतमामानि * स्यूत'-मूत'-मुतं चैव, प्रख्यातं तन्तुसन्ततम् // 2705 // * दारितनामानि * दारितं' पाटितं भिन्न मिति नामत्रयं भवेत् / * विदरनामानि * विदर: ' स्फुटनं 2 भिन्वै, भिदा नाम चतुर्थकम् // 2706 / / Page #490 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षष्ठः सामान्यविभाग: 439 - * स्वोकृतनामानि * अङ्गीकृतं' प्रतिज्ञातं, स्वीकृत -मुररीकृतम् / ऊरीकृत'-मुरीकृतं, कक्षीकृतं तथाऽऽश्रुतम् // 2707 / / उपगत -मुपश्रुतं', प्रतिश्रुत'' ञ्च संश्रुतम् 12 / विदितं चैव सङ्गीण, तथाऽभ्युपगतं५ खलु // 2708 / / पञ्चदशेति नामानि, मन्यन्ते पण्डित जनैः / * छिन्ननामानि * छित' छातं तथा छिन्नं', छेदितं खण्डित' पुनः // 2706 // कृतं वृषण दितं दात, लून' मित्यपि मन्यते / __. * प्राप्तनामानि * प्राप्त' लब्ध२ भूतं विन्ने -प्रासादित ञ्च भावितम् / प्राप्तार्थकानि नामानि, कथ्यते विबुधै रिह // 2710 // : * पतितनामानि * पतितं गलितं ध्वस्तं३, स्कन्न स्रस्त' तथा च्युतम् / पन्न भ्रष्टं च नामानि, कथयन्ति हि पण्डिताः // 2711 // .. * सुनिश्चितनाम * सुनिश्चितं' संशितञ्च, कृतोऽस्ति यत्र निश्चयः। Page #491 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 440 सुशीलनाममालाया * गवेषितनामानि * .. अन्वेषितं' तथाऽन्विष्ट, मागितं मृगित पुन: // 2712 // गवेषित ञ्च नामानि, पञ्चव प्रथयन्ति वै / * आर्द्रनामानि * ... पाः' सार्द्रः समुत्त इच, तिमितः स्तिमित स्तथा // 2713 // उन्नः क्लिन्नः समुन्न' श्च, नामान्यष्टौ भवन्ति वै। __ * प्रेषितनामानि * प्रहितं' प्रेषितं चंव, ख्यातं प्रस्थापितं तथा // 2714 // प्रतिशिष्ट भवेन्नाम, चतुर्थ प्रेषितार्थके। * प्रसिद्धनामानि * . प्रतीतः' प्रथितः 2 ख्यातः३, वित्त इच विश्रुतः पुनः // 2715 // विज्ञात श्चैव प्रज्ञातः , प्रसिद्धो ऽपि प्रसिद्धकः / एतन्नामानि मन्यन्ते, प्रथितस्य बुधै रिह // 2716 // * सन्तापितनामानि * सन्तापित' च सन्तप्त, धूपायित' श्च धूपितः / . दून स्तप्त श्च नामानि, सन्तप्तस्य भवन्ति वै // 2717 // Page #492 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षष्ठः सामान्यविभागः 441 * स्त्याननाम * 'शोनं' स्त्यान घृतादीनां, स्थिरत्वे कथ्यते बुधैः / 48 उपस्थितनामानि * भवेदुपनत' स्तूपसन्न उपस्थित स्तथा // 2718 // * निर्वातनाम * गते वाते च निर्वातो', वायुर्वहति नो यदा / * निर्वाणनाम #. पावकादिषु निर्वाणः', प्रयोगः क्रियते बुधैः // 2716 // ___ॐ प्रवृद्धनामानि * प्रवृद्धं'-मेधित चैव, प्रौढं नामापि कथ्यते / * बिस्मृतं नामानि (r) विस्मृतं' प्रस्मृतं चैव, प्रोक्तमन्तर्गतं पुनः // 2720 // ___ * उद्वान्तनामानि है उद्वातं' स्यात् तथोद्वान्त-मुद्गतं वमने सदा। * गूननाम * गून' हन्न मलत्यागे, कथ्यते. पण्डितः यम् // 2721 // Page #493 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 442 सुशीलनाममालायां ॐ मूत्रितनाम (r) मीढ' ञ्च मूत्रितं नाम, मूत्रितस्य हि मन्यते। ॐ विदितनामानि * बुद्ध' च बुधितं ज्ञात', मनितं विदित' पुनः // 2722 // अवसितं' प्रतिपन्नं, तथाऽवगत-मित्यापः। नामान्येतानि सर्वारिण, मन्यन्ते विदितस्य वै // 2723 // ॐ स्यन्ननाम ॐ स्यन्न' स्नुतं स तं रोणं, पतिते निर्भरे स्मृतम् / ___* गुप्तनामानि * , गुप्तं' गोपायित त्रातं, पारणं तथाऽवितं खलु // 2724 // रक्षितं चेति नामानि, गुप्तस्य प्रथयन्ति वै / * कर्मनाम * कर्म' क्रिया विधा' नाम त्रयमत्र निगद्यते // 2725 // * विलक्षणनाम * हेतुशून्यं वस्तु जातमप्रतिपत्ति' विलक्षणम् / * कार्मणनाम * स्यान्मूलकर्म' कामरणं द्वयं कार्मरण बोधकम् // 2726 // . Page #494 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षष्ठः सामान्य विभागः ॐ वशीकरणनाम * स्याद् वशीकरणं' नाम, संवननं वशक्रिया। * प्रतिबन्धनाम ॐ प्रख्यातः प्रतिबन्ध' इच, प्रतिष्टम्भोरे ऽपि कथ्यते // 2727 // 8 स्थितिनाम ॐ स्थिति' रास्था२ भवेदास्या तथैवाऽसना किल / ॐ परस्परनाम * परस्परं' मिथो ऽन्योन्य -मितरेतर-मित्यपि // 2728 // * आवेशनाम * प्रावेश'-स्तथा ऽऽटोप:२, संरम्भः कथ्यते च सः / ____रचनानाम ॐ निवेशो' रचना चैव, स्थिति नामापि मन्यते // 2726 // ॐ निर्बन्ध नाम * निर्बन्धो' ऽभिनिवेश इच, स्यादाग्रह क्रियाविधौ / * प्रवेशनाम * अन्तर्विगाहम' विज्ञ:, प्रवेश: कथ्यते पुनः // 2730 // Page #495 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालाया * विहार नाम * इर्या' वीङ्खा विहार श्च. परिसर्पः परिक्रमः / गतिश्चेति विहारस्य, नामानि प्रथन्ति वै // 2731 // . * पर्यटन नाम * पर्यटन'-मटाट्या' च. व्रज्या ऽटाटा भवेदटा। अट्या नामास्ति षष्ठ, पर्यटनस्य बोधकम् // 2732 // * चर्यानाम * ईर्यापथस्थिति' ३चर्या, स्यादोर्या साधुसङ्गती। ॐ विपरोतनाम * ' / व्यत्यासो' ध्यत्ययः श्चैव, विपर्यायो विपर्ययः // 2733 // विपरीत विपर्यासो, वैपरीत्यं प्रसिद्धयति / / सप्त नामानि मन्यन्ते, विपरीतार्थ बोधने // 2734 // * वृद्धिनाम . स्फाति' भवति वृद्धि इच, यत्र कुत्रापि वर्द्धने / * तपणनाम * प्रवनं' तर्पणं चैव, प्रोणन व निगद्यते // 2735 // Page #496 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षष्ठः सामान्यविभागः 445 * परित्राणनाम है पर्याप्ति' च परित्राणं२, तृतीयं हस्त धारणम् / चतुर्थ नाम विज्ञेयं , हस्तस्थापन -मित्यपि / / 2736 / / ॐ प्रणिपातनाम * प्रणतिः' प्रणिपात श्च, कथ्यते ऽनुनयः पुनः। 8. उपशायनाम * उपशायो' विशाय इच, क्रमशयन-मुच्यताम् / / 2737 / / . अनुक्रमनाम है अनुपूर्वी' च पर्याय श्चाऽनुपूर्व्य-मनुक्रमः / परिपाटि स्तथा ऽऽवृत्तिः', परिपाटी पुनः क्रमः // 2738 // प्रावृत् च नवम नाम, मन्यते ऽनुक्रमस्य वै। * अतिक्रमनाम * उपात्ययो' ऽतिपात:२ स्याद ऽतिक्रम श्च पर्ययः // 2736 // * संबाधनाम , . संबाध ' सङ्कट श्चैव, यत्र स्थानं न लभ्यते / - निकामनाम है कामं तथा निकाम च, प्रकाम च यथेप्सितम् // 2740 // Page #497 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालायों पर्याप्त मिष्ट-मप्येवं, कामनाम निगद्यते / * अत्यर्थनाम * प्रत्यर्थ' मऽतिमर्याद-मतिमात्रं हद तथा // 2741 / / ... उत्कर्षो ऽतिशय स्तोत्र, नितान्तं निर्भरो भरः' / एकान्त'' मतिवेल'२ञ्च, गाढं१ 3 बाढं१४ भूशं'५ पुनः // 2742 // उद्गाढं षोडशं नाम, नितान्तस्यात्र मन्यन्ते / ___ * जृम्भणनाम है जम्भरणं' स्यात्तथा जृम्भारे, मुखं व्यादाय वर्तने // 2743 / / * आलिङ्गननाम * प्रालिङ्गन' परिष्वङ्गः२, संश्लष' उपगृहनम् / परिरम्भः५ परीरम्भः', ख्यातः क्रोडीकृति स्तथा // 2744 / / अङ्कपालि श्चाङ्कपाली, नव नामानि सन्ति / * उत्सवनाम * मह' उद्धव उद्धर्षः, क्षणः स्यादुत्सवे सदा // 2745 // . . ॐ सङ्गमनाम 8 मेलकः' सङ्गमः सङ्ग, स्त्रयं नामात्र वर्तते। Page #498 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षष्ठ: सामान्य विभागः ॐ अनुग्रहनाम 8 स्वीकारे ऽनुग्रह' श्चैवाऽभ्युपपत्ति स्तथोच्यते // 2746 // * निग्रहनाम * अस्वीकारे निरोध' इच, निग्रहो ऽपि निगद्यते / * अन्तरायनाम * अन्तराय' च प्रत्यूहो, व्यवायो विध्न इत्यपि // 2747 / / * समयनामानि * समयो' ऽवसरो वारो, वेला च प्रक्रमः क्षणः / प्रस्तावो ऽन्तर मित्यष्टौ, क्षणनामानि सन्ति वै // 2748 // . * प्रारम्भनामानि * अभ्यादानं' तथा ऽऽरम्भः२; उपक्रम ३च प्रक्रमः / उपोद्घात स्तथोद्घातो नामधेयानि सन्ति वै // 2746 // * प्रत्युत्क्रमनामानि * - प्रत्युत्कान्तिः' प्रयोग 2 इच, प्रत्युत्क्रमो युधे गमः / . . आरोहणनामानि * प्रारोहण'-मभित्रमः२, पर्वतादौ पदस्थितिः // 2750 / / Page #499 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 448 मिमालायां * अाक्रमणनामानि * प्राक्रमो' ऽधिक्रमः कान्ति-राऽऽक्रमणे प्रयुज्यते। * उत्क्रमनामानि * क्रमं विना कृते कार्ये, व्युत्क्रम' उत्क्रमो ऽक्रमः // 2751 // * विरहनामानि * वियोगो' विप्रयोग२ श्च. विप्रलम्भ स्तथैव च / विरह श्चेति चत्वारि नामान्यत्र भवन्ति वै // 2752 // ॐ शोभानामानि * प्राभा' ऽभिख्या विभूषा च, शोभा कान्ति' श्च विनमः / राढा छाया छवि लक्ष्मीर्', ' द्युतिः'' श्री'२ रपि कथ्यते // 2753 / / एवं नामानि मन्यन्ते, शोभायाः साक्षरैः सदा। सुषमा' परमा शोभा, नाम विज्ञायतां पुनः // 2754 // * परिचयनाम * परिचय: संस्तव श्च, नाम द्वयं निगद्यते / * प्राकारनामानि * . इङ्ग' इङ्गित माऽऽकारो', मनोभाव प्रकाशने // 2755 / / Page #500 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षष्ठः सामान्यविभागः 443 * निमित्तनामानि है निमित्तं' कारण योनि निदान ञ्च निबन्धनम् / बोज हेतु श्च नामानि, सप्त व प्रथयन्ति वै // 2756 / / ॐ कार्यनामानि 8 कार्य'-मर्थ स्तथा कृत्यं, प्रोक्तं प्रयोजनं पुनः / * निष्ठानाम : * निष्ठा' निर्वहणं नाम, समाप्त्यर्थेहि मन्यते // 2757 / / . * प्रवहनाम * प्रवहो नाम विज्ञेयं, जलादे र्गमने बहिः। 8 सामान्यनामानि * नाति' जर्जात ञ्च सामान्यं, . ‘त्रीणि नामानि सन्ति वै // 2758 / / ॐ विशेषनामानि * विशेषो' नाम व्यक्ति श्च, तथा स्यात् पृथगात्मिका / .. * तिर्यक्नाम * तिर्यक् ' साचि स्तथा साचि , नामत्रयं निगद्यते // 2756 // Page #501 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 450 सुशीलनाममालायां * स्पर्धानाम सङ्घर्ष' श्चैव संहर्षः२, स्पर्धा नामाऽपि कथ्यते / * अपक्रियानाम * द्रोहो' उपकारनामस्यादपक्रिया ऽपि मन्यते / / 2760 // ___ व्यर्थनामानि * बन्ध्यं' वन्ध्यं मुधा मोघ, व्यर्थे स्यादऽफलं पुनः। * निरर्थकनामानि * ख्यातं निरर्थक' नाम, तदेवान्त र्गडु' इति // 2761 / / * संस्थाननाम * प्रसिद्ध नाम संस्थानं', सग्निवेशो ऽपि मन्यते। * व्ययनाम , अर्थस्यापगमो लोके व्ययः' प्राज्ञेन कथ्यते // 2762 // ॐ अभिव्याप्तिनाम * संमूर्छन'-मभिव्याप्तिः२, सर्वथा ध्यापने भवेत् / ॐ भ्रशनाम * भ्रषो' भ्रशो द्वयं नाम निपतने हि मन्यते // 2763 // . Page #502 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षष्ठः सामान्य विभागः 451 * नाशनाम * नाशो' ऽभावो द्वयं नाम, नाशस्य कथ्यते बुधैः / * संक्रमनाम * . संक्राम:' संक्रम' श्चैव, दुर्गसञ्चर' उच्यते // 2764 / / * नीवाकनाम ॐ प्रयाम' श्च निवाको अपि, नाम द्वयं प्रकीर्तितम् / * अवधाननाम * प्रवधाने ऽवधानं' स्यादवेक्षा प्रतिजागरः // 2765 / / * विश्वासनामानि ॐ विश्रम्भ' श्च विश्वासो', विनम्भो ऽपि कथ्यते / ___* विकारनामानि ॐ परिणामो' विकार' श्च, विकृति विक्रिया पुनः // 2766 // * चक्रावर्तनामानि * चक्रावर्तो प्रमो भ्रान्ति भ्रमि पूंणि' श्च घूर्णनम् / एतन्नामानि मन्यन्ते, शब्दप्रयोग कारिणः // 2767 // Page #503 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 52.... . सुशीलनाममालायां विप्रलम्भनाम * विप्रलम्भो' विसंवादो', मिथ्या वाक्कृत वस्तुनि। * समर्पणनाम * समर्पणं' विलम्ब:२ स्यादतिदाने ऽतिसर्जनम् // 2768 / / ॐ अनुभवनाम ॐ अनुभवो'-पलम्भौर च, साक्षात्कारार्थ दायिनी। ... * प्रतिलम्भनाम * लम्भनं' प्रतिलम्भ इच, प्राप्त्यर्थे मन्यते द्वयम् // 2766 / / * नियोगनामानि , विधि नियोग'-सम्प्रेषौ 3, त्रीणि नामानि सन्ति वै / * विनियोगनाम * विनियोग' इच नामेदं, प्रोक्त तत्फलदायिनि // 2770 // * लवननामानि ॐ लवन'-मभिलावर श्च, लबो ऽपि लवनार्थके / * निष्पावनामानि के निष्पाव: पवन चैव, पयो नाम तृतीयकम् // 2771 // . Page #504 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षष्ठः सामान्य विभागः 453 - थूत्कृतनामानि 8 थूत्कृतं' ष्ठेवनं 2 ष्ठ्यूतं, निष्ठेवः ष्ठीवनं' पुनः / निष्ठेवन ञ्च निष्ठ्यूति निष्ठीवनं प्रयुज्यते // 2772 / / * निवृत्तिनामानि (r) निवृत्ति' राऽऽरति२ श्चैवाऽवरति विरति स्तथा / उपरम उपरतिः' षष्ठं नाम प्रयुज्यते // 2773 // .. * विधूनननामानि है . विधुननं' विधूननं', स्याद् विधुवन -मित्यपि / _* स्खलननाम * रिडणं' स्खलनं चैव, स्खलनार्थे भवेद् द्वयम् // 2774 / / ॐ रक्षानामानि (r) त्राणं' रक्षा च रक्षण इच, त्रीणि नामानि सन्ति वै / ग्रहणार्थे ग्रहो' प्राहः२, स्याद् वेध' स्तु व्यधो ऽपि च // 2775 // क्षयः' क्षियाक्षयार्थे हि, कथ्यते कोविदः किल / . * स्फुरणनामानि * स्फरणं' स्फारणं चैव, स्फुरणं स्कुलनं पुनः // 2776 // स्फुरणा स्फोरणं नाम, षष्ठं विज्ञः प्रयुज्यते / Page #505 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 454 सुशीलनाममालायां * जीणिनाम * ज्यानि' जिर्णो द्वयं नाम जोर्णतार्थे प्रयुज्यते // 2777 // * वरनाम * वरो' वृति२ श्चतुर्दिग्भ्यो रोधने वरदानके / * समुच्चयनामानि ॐ समुच्चयः' समाहारः, समूहार्थे प्रयुज्यते // 2778 / / * अपहारनामानि * अपचयो' उपहार' श्च, हानि हाँसे प्रयुज्यते / * प्रत्याहारनाम * प्रत्याहार' उपादान, वयं नामास्य बुध्यताम् / / 2776 // * बुद्धिशक्तिनाम / निष्क्रमो' बुद्धिशक्ति' श्च द्वयं नामास्य मन्यते / उपर्युक्ताः क्रिया शब्दा, लक्ष्या धात्वर्थ संबलात् // 2780 // - अव्ययप्रकरणे - अथाऽव्ययानि वक्ष्यन्ते, तत्रादौ तस्य लक्षणम् / .. श्रीसिद्धहेमचन्द्रादि-व्याकृतौ प्रतिपादितम् // 2781 // . Page #506 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षष्ठः सामान्य विभागः 455 सदृशं त्रिषु लिङ्गषु, सर्वासु च विभक्तिषु / 'वचनेषु च सर्वेषु, यन्न व्येति तदव्ययम् // 2782 // * अव्ययसंग्रहनामानि * स्व:' स्वर्गभू' स्तु भूलोके, भुवो' व्योम्नि विहायसा। . द्यावाभूम्यो स्तु द्यावाभूमो' स्याद् रोदसी तथा // 2783 // उपरि' तथोपदिष्टान् द्वय मूर्ध्वं प्रयुज्यते / प्रधो ऽधस्तात तथा ऽवाक च, सन्ति त्रयोप्यधा स्थले // 2784 // वर्जने त्वन्तरेण'-र्ते, नाना विना-हिरुक् पृथक् / सहार्थे स्यात् सह' सत्रा, - साकं सार्द्ध-मऽमा' समम् // 2785 // प्रल'- मऽस्तु कृतं कि ञ्च, भवतु' कथ्यते पुनः / भवान्तरे ह्यमुत्र' स्यात्, प्रेत्या२ ऽपि मन्यते किल // 2786 // तूष्णी' तथैव तूष्णीकां', जोषं मौने हि मन्यते / दिष्ट्या' समुपजोषं वै, सम्मदे कथ्यते द्वयम् // 2787 // समन्तात् ' सर्वतो विष्वक् 3, परित' श्च समन्ततः / स्यादऽग्रतः' पुरस्तात्रे च, पुर श्च पुरतः पुनः // 2788 // प्रायो' भूमनि भूमन् स्यात्, सम्प्रति' साम्प्रतं तथा / एतहि च तथेदानों, तत्काले कथ्यतेऽधुना' / / 2786 // Page #507 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 456 सुशीलनाममालायां अञ्जसा' झटिति द्राक् साक, सपदि' सत्वरं पुनः / . प्राशु मक्षु तथाऽह्नाय नामाऽर' दशमं भवेत् // 2760 // अनिशं सर्वदा शश्वत, सदा सना सनत् सनात् / भूयो' ऽभीक्ष्णं मुह चैव, __ स्यादऽसकृत् पुनः पुनः // 2791 // सायं शब्दो दिनान्ते स्याद्, दिवा' तु दिवसे भवेत् / 'सहसंकपदे ऽकस्मात् , सद्यः सपदि तत्क्षणे // 2762 / / चिरस्य' चिररात्राय चिराय' च चिरा-च्चिरम् / चिरेण दोर्घकालार्थे, कोविदः संप्रयुज्यते // 2763 // कदाचित् ' जातु कहिचित्, समयस्यानिश्चये / रात्रौ नक्त'-मुषा दोषाः, प्रगे' प्रात-रहमुंखे / / 2764 / / तिर्यगर्थे तिर:' साचि२, निष्फले च मुधा' वृथा / मिथ्या' स्याच्च मृषा२ ऽसत्ये, ऽभ्यर्णे तु निकषा' हिरुक् / / 2765 // समया' पि समीपार्थे, शं' सुखार्थे हि मन्यते / सु' प्रति किमुता' ऽतीव, बलवत् सुष्ठु निर्भरे // 2796 / / प्राक' पुराने प्रथम स्याद् वै, संवत्' संवत्सरे तथा। मिथः' परस्परं प्रोक्तं, निशान्ते ज्ञायता मुषा' // 2767 / / ईषत किञ्चिन्' मना२, गऽल्पे, किञ्चन' कथ्यते पुनः / Page #508 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षष्ठः सामान्य विभागः उसाहो' किमुतारे हो च, किम -त५ कि वितर्कके // 2768 // इतिह' संप्रदाये स्यात्, हेतौ यत्' तद् यत स्ततः / येन तेना ऽपि हेत्वर्थे, कथ्यते पण्डितै रिह // 2766 // सम्बोधतेऽङ्ग' रे२ रेरे, ररे ऽरे भो स्तथाऽयि च / हे है हंहो' तथा हो' च, . पाट२ प्याट् पुन निगद्यते // 2800 // श्रौषट्' वौषट् वषट् स्वाहा , स्वधा' देवहविहुं तो। देवतार्थे तु स्वाहा स्यात्, स्वधा स्यात् पितृकर्मणि // 2801 // भवेदुपांशु' गुप्तार्थे, शब्दोऽयमिति ज्ञायताम् / मध्येऽन्त' -रन्तरेण स्यादऽन्तरा च तथाऽन्तरे // 2802 // प्रकाशे प्रादु'-रावि:' स्याद ऽभावे त्व' न नो नहि / बलात्कारे प्रसह्य' स्याद् मा.तु मास्म हि वारणे // 2803 // प्रस्त'-मऽदर्शने कामरे, त्वकामानुमतौ भवेत् / प्रों' प्रां तथा च परमं संमते संप्रयुज्यते // 2804 // . कचिदिष्टपरिप्रश्ने, कथ्यते कोविदः किल / अवश्य' मथ नूनं च, निश्चये हि निगद्यते // 2805 // बहिर्भवे बहिः' स्याद् ह्य-स्त्वतोतेऽह्नि श्व' एष्यति / नीचे'-रऽल्पे एनः प्रोक्तं, महत्युच्च' स्तु मन्यते // 2806 // Page #509 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 458 सुशीलनाममालाया अस्ति' सत्त्वे तथा दुष्ठु', निन्दने हि निगद्यते। .. स्यान् ननुच' विरोधोक्तौ, पक्षान्तरे तु चेद्' यदि // 2807 // शनै' मन्दे ऽवरे त्वक् कथ्यते कोविद स्तथा / रोषोक्ता' पुनः प्रोक्तं, नतो नमश्च मन्यते // 2808 // प्राध्वं' स्यादनुकूले ऽर्थे, चित्' चन किश्चिदर्थकम् / पद्यानां पूरणार्थे स्यात्, तु' हि च स्म ह वै सदा // 2806 // 'अति' सुरे शोभने वाच्यं, तुल्यार्थे च यथा' तया / वद् वा एव' एवं चापि, सदृशाथस्य ज्ञापने // 2810 // निश्चयार्थे पुन' रिति, एव' एवं तु वा च वै। प्रहो' ही विस्मयार्थे स्याम्' च प्रश्नार्थवाचकः // 2811 // प्राक्' शब्दो पूर्वकाले स्यान्, निश्चये ऽद्धा' ऽसञ्जा' पुनः / प्रतो' ऽस्मात स्यात तत' स्तस्माद, महः' प्रारम्भवाचकः // 2812 // स्वय'-मात्मनि जानीयात् प्रशंसार्थे हि सुष्ठु' इति / श्व:' कल्ये कथ्यते लोके. परश्वः तत्परे ऽहनि // 2813 // अस्मिन् दिने ऽद्य' शब्दः स्यात्, पूर्वेयुः पूर्ववासरे। अागामिनि दिने शब्द उत्तरेछु' श्च कथ्यते // 2814 // . द्वितीयदिवसे श्व: परेद्यु' मन्यते बुधैः। .. गते दिने ऽपरेयुः' स्यादऽन्येधु' स्त्वन्यवासरे // 2815 // Page #510 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षष्ठः सामान्यविभागः 456 अन्यतरेधु' शब्दः स्यादुभयोरेकवासरे। इतरेयु' श्च शब्दोऽयं, द्वितीय दिवसे भवेत् // 2816 // समादिवसे सद्यः', परेव' दिनान्तरे। उभया' भये द्युः, द्वयो स्तु दिनयो भवेत् // 2817 // एकस्मिन् समये युगपद, चैकदा पि प्रयुज्यते / तहि' तदा तदानी3 च तत्काले कथयन्ति वै // 2818 // यदा' यहि च यत्काले, गत वर्षे परुत्' भवेत् / परुत् पूर्वे परारि' स्यादऽस्मिन् वर्षे तथैषमः // 2816 // अन्यरीत्या ऽन्यथा' स्यादितरथा ऽपि कथ्यते / कथं केन प्रकारेण, कथ्यते कोविदः पुनः // 2820 // इत्थ'-मऽनेनरीत्या स्यात् यया' तथा प्रकारके / द्विधा' द्वेधा द्विप्रकारः, कथ्यते पण्डित रिह // 2821 // त्रिप्रकारे स्त्रिधा' त्रेधार, मयते विबुधैः पुनः / / चतुर्द्धा' पञ्चधा' द्वैधं',धं चापि च ज्ञायताम् // 2822 / / द्वि' स्त्रि' श्चतु' स्तु वारार्थे, पञ्चकृत्वः' प्रयुज्यते। . षोढे त्यादयः शब्दाः, ज्ञेयाः शब्दानुशासनात् // 2823 // उदक' प्रत्यक' तथा प्राक्' च, सर्वे दिगवाचकाः स्मृताः / विभिन्न प्रत्यय रेते, शब्दा: सिद्धयन्ति शव्ययाः // 2824 // Page #511 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालाया इति श्रीतपोगच्छाधिपति - सूरिचक्रचक्रवत्ति * भारतीयभव्यविभूतिचिरंतनयुगप्रधानकल्प-सर्वतन्त्रस्वतन्त्र-श्रीकदम्बगिरि-प्रमुखानेक प्राचीन तीर्थोद्धारक-पञ्चप्रस्थानमयसूरिमन्त्रसमाराधक-शासन सम्राट् - जगद्गुरुभट्टारकाचार्यमहाराजाधिराज - श्रीमद्विजय - नेमिसूरीश्वर * सुप्रसिद्ध पट्टालङ्कार - व्याकरणवाचस्पति-शास्त्र-विशारद-कविरत्न-साहित्यसम्राट्-१ साधिकसप्तलक्षश्लोक प्रमाण नूतन संस्कृत साहित्यसर्जक * परमशासन प्रभावकाचार्य देवेश - श्रीमद्विजयलावण्यसूरीश्वर- पट्टघर-व्याकरणरत्नशास्त्रविशारद-कविदिवाकर-देशनादक्ष - शासनप्रभावकाचार्यदेव - श्रीमद् विजयदक्षसूरीश्वर * पट्टधर-साहित्यरत्न-शास्त्रविशारद-कविभूषण-पञ्चप्रस्थानमयसूरिमन्त्रसमाराधक-शासनप्रभावकाचार्य श्रीमद् विजयसुशील सूरिणा विरचितायांसुशीलनाममालायांषष्ठःसामान्य विभागःसमाप्तः।।६।। Page #512 -------------------------------------------------------------------------- ________________ mnmormolti 3 प्रशस्तिः inommonman mms 87 [ उपजाति-वृत्तम् ] श्री प्रादिनाथं जिनशान्तिनाथ, श्रीनेमिनाथं प्रभु पार्श्वनाथम् / देवाधिदेवं विभुवर्द्धमानं, स्तुवे सदाऽहं जिनपञ्चकं वै // 1 // [ अनुष्टुब्-वृत्तम् ] श्रीधोरस्य जिनेन्द्रस्य, शासनाधिपतेः प्रभोः / विजयते सदा विश्वे, पट्ट धर्मधुरन्धरम् / / 2 / / तत्र स्वामी सुधर्माख्यो गणोन्द्रः श्रुतकेवलो। निम्रन्थ नामकं गच्छ-मतनोद् भुवि निर्मलम् / / 3 / / कोटिशः सूरिमन्त्रस्य, जपात् सुस्थितसूरिभि / कोटिगच्छमतिस्वच्छं, स्थापितं तन्महीतले // 4 // चन्द्रं चन्द्रोज्ज्वलं भूयः, सद्यशो रश्मि शोभितः। अनुचकार गच्छ-श्री-चन्द्रसूरीश्वरो महान् // 5 // Page #513 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालायो समन्ताद् वनवासोति, सामन्तभद्रसूरिपः / स्वच्छं गच्छं वितेने सः, तदनु भद्रकृद् भुवि // 6 // सर्वदेवाख्य सूरीशः, सर्वश्रयस्करं कलम् / वटगच्छं पवित्रं च, विशालं तदनु व्यधात् / / 7 / / श्रीमेदपाट भूपाल महातपापदै भुवि / श्रीजगच्चन्द्रसूरीशै स्तपागच्छः प्रवत्तितः / / 8 / / परम्परागते स्वच्छ, तपागच्छे ऽत्र भूतले। यवनाकबरे लेश-प्रतिबोधकरा: वरा: / / 6 / / धीर वोरत्व हीरत्व-गभोरत्वादि भूषिताः / जगद्गुरुवराः विज्ञाः सजाता होरसूरयः // 10 // प्रतापि सेनसूरीश दक्षः श्रीदेवसूरिभिः। वादीभैः सिंहकल्पः श्रो-सिंहसूरीश्वरैः क्रमात् / / 11 // उल्लासिते तपोगच्छे, वृद्धिविजयकारकाः / श्रीवृद्धिविजया जाता, वृद्धिचन्द्रादयः परे / / 12 / / तेषा ञ्च शान्तमूर्तीनां, पादाब्जमधुपोपमाः। सर्वशासनसम्राजो, विभ्राजो ज्ञानरश्मिभिः // 13 // सत्तोर्थोद्धारकाः प्रौढा, सर्वतन्त्रस्वतन्त्रकाः / सूरिमन्त्रकप्रस्थान-पञ्चकाराधकाः किल // 14 // सद्ब्रह्मचारिणः श्रीमन्नेमिसूरीश्वरा वराः / क्षमाधराचिंता जातास्तत्पट्टाम्बर भास्कराः // 15 // Page #514 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रशस्तिः 463 सप्तलक्षाधिकश्लोक-मितस्य संस्कृतस्य च / साहित्यस्य सुकर्तारः, कृतीशा ब्रह्मचारिणः / / 16 / / शान्ता: साहित्यसम्राजो, विभ्राजो ज्ञानज्योतिषा। ख्याता व्याकरणे वाच-स्पतयः कविरत्नकाः // 17 // शास्त्रविशारदा जाता, लावण्यसूरिशेखराः / तेषां पट्टधरा मुख्याः, ख्याताः शास्त्रविशारदाः / / 18 / / कविदिवाकरा दक्षाः, सद्व्याकरणरत्नकाः / दक्षसूरीश्वरा जाताः, सरला ब्रह्मचारिणः / / 16 / / सेषां पट्टधरेणाथ, सहोदरेण साधुना / देवगुरुप्रसादात् श्रीसुशीलसूरिणा मया / / 20 / / जम्बूद्वीपे प्रसिद्धेऽस्मिन्, रम्ये भरतक्षेत्रके / भरते दक्षिणार्द्ध श्रो-मध्यखण्डे विराजिते / / 21 / / राजस्थाने हि विख्याते, मरुधर प्रदेशके / पालीपुरे हि प्रख्याते, वर्षास्थिति प्रकुर्वता / / 22 / / अश्व नेत्र नभो बाहु [2027] मिते वैक्रमवत्सरे / सुशोलनाममालेयं, विज्ञ बोधाय संस्कृता / / 23 / / / यावन्मेरुस्वयम्भू श्री-सूर्यचन्द्रग्रहाः स्थिताः / भूयात् तावदियं विश्वे, सर्वजनोपकारिका / / 24 / / ॐ शुभं भूयात् ॐ // इति 'सुशोलनाममाला' समाप्ता / / Page #515 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशोलनाममालायाः परिशिष्ट भागः yrrrrrrrrrrrror 1 एकाक्षर कोशमाला time-nary 977 : वद्धमानं जिनं नत्वा, कोशार्थे वधनेच्छया / , प्रकाराद्यक्षरणाञ्च, दश्यतेऽर्थः क्रमादिह // 1 / / . अ पुमान् विष्णुरूपार्थे, स्वल्पार्थेऽव्यय उच्यते / आ कारो धातरि ख्यात, या वाक्ये स्मरणेऽव्ययः / / 2 / / मन्तापार्थक प्रावर्णः, प्रयोगे दृश्यतेऽव्ययः / हः कामः पठ्यते पुसि, क्वीवे इ कोप खेदयोः / / 3 / / ई रिति ज्ञायते पुसि, लक्ष्मीबोधन हेतवे / प्रत्यक्षे दुःख भावे च. ई भवेदव्ययः सदा // 4 // प्रकोपार्थे समीपार्थे, ई अव्ययः प्रयुज्यते / उ महादेव प्राख्यातः, पुल्लिङ्गः पण्डितैः सदा / / 5 / / रोपार्थे मन्त्रणार्थे च, उं भवेदव्ययः पुनः / प्रश्न स्वीकारयो रोष, ऊ रस्ति रक्षणे पुमान् / / 6 / / ऊ मव्ययः प्रकर्षोक्तौ प्रश्ने ऋदेव मातरि। . कुत्सायां वचनार्थे च, ऋ वर्णोऽव्ययः स्मृतः // 7 // . Page #516 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रशस्तिः 465 ऋः पुमानुच्यते छागे, दानेऽर्थेऽपि च कथ्यते / ऋः पुंसि देवजननी, वाराह्यामः प्रयुज्यते // 8 // ए विण्णौ युज्यते पुंसि, वृषभध्वज ऐः स्मृतः / ओ रूर्व लिङ्ग; ग्राहूतावव्ययः स्यादनन्त प्रोः // 6 // पर ब्रह्मणि शम्भौ च ओं शब्द उच्यतेऽव्ययः / सूर्ये मित्रेऽनले वायो ब्रह्मात्मयम केलिषु // 10 // कः पुमानुच्यते विशैः प्रकाशे वदने पुनः / जले सुखे मस्तके कं नपुंसके प्रयुज्यते // 11 // भुवि कुत्सित शब्दार्थे पापीयसि निवारणे। कः पुंसि पण्डितैः प्रायः प्रयोगः क्रियते सदा // 12 // ईषदर्थे च किं शब्द: कुत्सने क्षेप प्रश्नयोः / विताश्चर्य निन्दासु कि शब्दोऽव्ययः स्मृतः / / 13 / / ख मिन्द्रिय स्वर्गशून्य भूषाऽकाशमुखे स्मृतम् / शून्ये संविदि खं प्रोक्तं सूर्यार्थे पुंसि खः स्मृतः / / 14 / / ... गन्धर्वार्थे गणेशे च गः पुमान् ग श्च गातरि / गीते गं कोवलिङ्ग मुच्यते पण्डितैरिह // 15 / / वाग् वाण भूमि रश्मि वज्र स्वर्गाक्षि वारिषु / दिशि धेनौ श्रुतेश्वर्यां गणेशे गौ: सदा स्मृतः / / 16 / / Page #517 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 466 सुशीलनाममालाया कुम्भे तथा च हनने घोषान्तर्भाव किङ्किणीषु घः। .. विषयो भैर वो ङार्थः, चस्तरौ चन्द्र चौरयोः // 17 // किन्तु निम्नार्थ बोधेषु चमारोऽव्यय इष्यते। अन्योन्याऽर्थे विकल्यार्थे सेमास पाद पूरणे / / 18 / / पक्षान्तरे समूहार्थे हेताववधृतावपि / अन्वाचये पुनस्तुल्य योगितायान्तथैव च / / 16 / / चुश्चकोरे प्रयुज्येत पुमानेव सदा बुधैः / छेदके छस्तथा सूर्ये संवरणेऽपि छः पुमान् / / 20 / / तडिन्निर्मल छन्दस्सु छमिति संप्रयुज्यते / जनने जेतरि ज: स्यात् विगतेऽपि प्रकीर्तितः / / 21 / / जेतरि केवलं जिः स्यात् पुमानेवेति निश्चयः / जू विहायसि विगते पिशाच्यां जवने तथा / / 22 / / झः पुंसि गायने नष्टे घर्वर ध्वनि नामनि / व्यूहने गूढ पादे झः चारु वाक् चरणे पुनः / / 23 / / ध्वनौ वायो पृथिव्यां टः करके भुवि टं स्मृतम् / चकोरेऽब्दे तथा ठः स्यात् घटे शून्ये बृहध्वनी / / 24 / / डः स्याद् ध्वनौ वृषाङ्कऽपि रुद्र चन्द्रस्य मण्डले / बन्दिवृन्देऽपि डः प्रोक्तो यामिनी पति मण्डले / / 25 / / Page #518 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रशस्तिः 467 ढक्कायां डः समाख्यात स्तथाऽयं निर्गुणे ध्वनौ / प्रकटे निष्फले णः स्यात् ज्ञाने बन्धे च प्रस्तुते / / 26 / / तः पुमान् तस्करे कोड़े युद्ध पृच्छे च ता स्त्रियाम् / तुः स्यात् पूर्वे निवृत्तीच पूर्वस्मादवधारणे / / 27 / / भये च रक्षणे थः स्यात् विकल्पेऽपि विलक्षणे / दः पुंसि दायके दाने दं कलत्रं नपुंसकम् / / 28 / / दा दातरि तथा दाने छेदने बन्धनेऽपि दा / धं नपुंसकमाख्यातं धीरे. च धनदे धने / / 26 / / चित्रेऽश्ववारे घः पुंसि धी बुद्धाविषुधावपि / धा विरञ्चौ गुह्यकेशे भारे कम्पेऽपि धूः स्मृता // 30 // . धूते धुरा कम्पने धू: नो बुद्धौ ज्ञान बन्धयोः / अस्मानस्मभ्यमस्माक मेषां स्थाने भवेच्च नः / / 31 / / नो निषेधेऽव्ययो न नरे ना पुंसि कथ्यते / निः क्षेपे स्यादथ नित्यार्थे भृशार्थाश्रयराशिषु / / 32 / / बन्धने संशये मोक्षे, कौशले दारुकर्मणि / प्रधो भावोपरमयोः, संनिधानेऽव्ययो मतः॥३३॥ नुः स्तुती नेतरिस्यात्, निःश्रुते पुंसि कथ्यते / नुः प्रश्ने च वितर्के च, विकल्पेऽनुशयेऽव्ययः / / 34 / / Page #519 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 468 सुशीलनाममालाया नौ स्तरण्यां समाख्यातः प: पाने पवने पथि। वर्णके पस्तथा प्रौढे, पा श्रुते पातरि भवेत् / / 35 / / निष्फले पुष्करे जल्पे, फकारो भय रक्षणे / फंफा वाते फले फेने, फूत्कारे फूरिरिति स्मृतः // 36 / / कलहे विगते कुम्भे बः पद्म वरुणेऽपि स्यात् / भः शुक्ले भ्रमरे दोप्तो, भये भी रितिकथ्यते / / 7 / / विण्णे भं भुवि भू शब्द:, चन्द्रे शिवे विधी च भः / मौलौ च बन्धने भी: स्यात, मा माने वारणेऽव्ययः / / 3 / / प्रस्मच्छन्द द्वितीया मा, मे षष्ठो कथ्यतेऽस्मदः / लक्ष्म्यां मातरि मा शब्दः, यः स्याद् वाते यमेऽपिच / / 3 / / रवौ धातरि यः पुंसि, याने या मातरि श्रियाम् / खटाङ्गेऽपि या शब्द:, कथ्यते पण्डित रिह / / 40 / / रः स्यात् कामे नरे तीक्ष्णे, रामे वैश्वानरेऽपि रः / रा द्रव्ये कनके प्रोक्तः, आश्रये नीरदेऽपि रा / / 41 / / ह: सूर्ये रक्षणे शब्दे. भयेऽपिच प्रयुज्यते / री भ्रान्तौ प्रयुज्येत, लकारश्चलने भवेत् / / 42 // ला दाने लवणे लूश्च, लश्च लूश्च विडोजसि / . दिशायाममृते लः स्यात्, लोः श्लेषे बलयेऽपिच / / 43 / / . Page #520 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रशस्तिः 466 सान्त्वने बरुणे ताते, रुद्रे वः पुसि कथ्यये / अव्ययो व विकल्पेऽर्थे, उपमाने समुच्चये / / 4 / / वि:शकुनो श्रेष्ठे भीते, नानार्थे व्योम्नि कथ्यते / हेत्वर्थे पाद पूर्णे च, वै शब्दोऽव्ययः सदा // 45 / / द्वितीयायां च तुझंञ्च, षष्ठ्यां युष्मद्वहुषु वः / अासामेव विभक्तीनां, द्वित्वे वा युष्मदः सदा / / 46 / / कल्याणे शं सुखार्थेऽपि, सास्नायां शान्तिमति शः / शीः शये हिंसनेऽर्थऽपि, शुश्चन्द्रेर्थे प्रयुज्यते / / 47 / / षः सदारे जने प्रोक्तः, तथेष्ट प्रसवे च धूः / सः पुमान् सूर्यंतात्पर्ये, परोक्षेऽपि प्रयुज्यते / / 4 / / सङ्कोचे कबोक लिङ्ग सं, संयोगे शोभनेऽपि सः / प्रकृष्टार्थे समर्थे च, समू संदा कथ्यतेऽव्ययः / / 4 / / प्रथमान्त तदः स्थाने, स्मृतौ लक्ष्म्यां च सा भवेत् / क्रोधे नीरे करे शम्भौ, निवासे गर्भ भाषणे / / 5 / / हः पुमानव्ययः प्रोक्तः, संबुद्धौ पाद पूरणे / हा शब्दोऽव्ययः प्रोक्तः शोके दुःख विषादयोः / / 51 / / विशेषे पाद पूत्तौं हि, हेतौ स्फुटेऽवधारणे / दानार्थेऽव्ययो हि स्याद्, ही विषादे च विस्मये / / 2 / / Page #521 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 470 सुशीलनाममालायो हेतो दुःखेऽपि ही शब्दो, ज्ञायतेऽव्ययः पुनः / अव्ययो हम् नये काये, भाषणेऽपि प्रयुज्यते / / 53 / / परिप्रश्ने वितर्के हुम्, वचने हौ प्रयुज्यते। हेतौ हूतौ च कुत्सायां, हे है संबोधने वदेत् / / 54 / / क्षः क्षेत्रे राक्षसे प्रोक्त स्तथाऽल्पे द्वयक्षरादयः / व्यञ्जनान्ताः स्वरान्ताश्च, ज्ञायन्तामन्य पुस्तकात् / / 5 / / भिन्नभिन्न प्रकारेण, शब्दानामर्थसंग्रहम् / शास्त्राभ्याससुशोलेन सूरिणा दशितं पठेत् // 56 // / Page #522 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॐ ह्रीं अहँ नमः अथ श्री सुशील नाममाला (कोश) स्थितानां शब्दानाम् अनुक्रमणिका अा. अंशः 2280 अंशकूटम् / अशलः अशुः अंशुकम्: अंशुमत्फला अंहः अंहतिः अह्निः अहिपः अंहिस्कन्धः प्रकम्पितः अकम्पनः कर्कश. अकस्मात मकिञ्चनः अकूपारः. मकूबारः . . . प्रकोपनाः 2803 | प्रक्षजः 206 2608 प्रक्षपादः 755 अक्षमाला: 1418 .682 प्रक्षमः 1600,753,2214 85 1484,2034 1083 अक्षरम् 46.1984 2000 प्रक्षरचञ्चुः 747 2510 अक्षरचरणः 747 प्रवरजीविकाः 747 .661,16,68 अक्षरदेवी 752 1955 अक्षरधूतः 696 प्रक्षरदर्शकः अक्षषणः 733,053 762 प्रक्षान्तिः 581 अक्षि 922 2762 प्रक्षिकूटकम् 2216 अक्षिगतः 1867 अक्षि 1020 -1867 अक्षिणम् 2266 / अक्षि विकूडितम् 1174 2511 682 1020 / Page #523 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 402 सुशीलनाममालायां 834 2613,777 प्रक्षीवः अक्षीवं अक्षौहिणी प्रखण्डम् अखिलम् अगः प्रगजः 1926 1363. 1917 2176 1632 1355 1355 मगदः अगस्त्यः अगस्तिः अगाषः अगाधतल: अगुः अगौकाः अग्रम अग्रः 1993 | अग्रीन्धनम्: 1597 प्रनेदिधीषुः 1222 अग्रेभूः . 2607 अग्रेसरम् 2606,1943 अग्नयः 1768 अग्न्यायी 1943 पग्ल्याहितः 227 अग्निः 114 | अग्निकः . अग्निकणः . . 1861,2480 अग्निकार्यः 1907 अग्निकारिका 2033 अग्निचित् / 2380 अग्निजन्मा 2613,1968 अग्निज्वाला 1353 अग्निद: 1352 अग्निदेवाः अग्निबल्लभः 1353 अग्निभूः 2613,1668 अग्निभूतिः 2788 अग्निमारुतिः 6330 अग्निरजः 777 अग्निवाहः 355 | अग्निसंभवः 2614,882 | अग्निसंघानम् 2614 अग्निसिंहनन्दनः 265 2053 552 64 अग्रजः अग्रजन्मा अग्रजातिः . 1047 265 15 भग्रणी अग्रतः भग्रयानं 113 2176 1934 666 अग्रसरः प्रग्रायणीयम् अग्रिनम् अग्रियः 1332 Page #524 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 473 अग्निहोत्र: 1363 / अङ्गली 953 अग्नीन्ध्रा 1355 प्रङ्गारकः अग्नीध्री 1355 / अङ्गारधानी 1754 अघः 2510 / | अङ्गारपात्री 1754 अघमर्षणः | अङ्गारशकटी 1754 प्रधांशुकः 1083 | अङ्गिका 1065 अय॑म् 2191 अङ्गिरा अङ्क: 411,60.372,662 | अङ्गीकार 403 अङ्करम् - 1857,1727,1664 | अङ्गीकृत 2707 अङ्कुरः 1964 मङ्गरिः (लिः) 953 पकुशा अङ्गरी अकोल्लसारः .. 1964 मङ्गलीमुद्रा प्रयः प्रा.लीयकं 2074 अङ्कपालिः 2745 अङ्गष्ठम् 954 अङ्ग | अङघः 2510 अङ्गम् 101 अध्रि 663 अङ्गजः 12,882,864 अघ्रिपः 1955 अङ्गजा अतिः 1941 अङ्गदम् 1074 प्रचलः 1133,2642,1768 मङ्गनम् 1724 प्रचलभ्राता मङ्गना मचला 1587 अङ्गमर्दः 765 | प्रचण्डी 2266 अङ्गरमणी 1256 / अचिरप्रभा 1635 * 'अङ्गरागः अचिरा 27 अङ्गलः 654,1427 | अच्छम् 1863 अङ्गलिः 953 / अच्छमल्लः 2326 280 Page #525 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 474 सुशीलनाममालायां 2647,1017 1272 2458 461 521 1621 1085 1822,1117 2346 2760,2812 अच्छुप्ता 341 प्रजिह्मः मच्युतकल्पनाः 78 प्रजिह्मगः अच्युताग्रजः 307.185 अजिह्वः अजः 275,287,2301 अज्जुका प्रजकावा 244 अज्ञः अजगरः 2356 अञ्चतिः अजजीविकः 1465 मृञ्चलम् प्रजदेवाता अञ्चितः अजनामकः 1925 अञ्जनम् अजमीढः .1148 अञ्जनाधिका अजयः 1434 / मञ्जया अनर्यम् अञ्जल: अजस्त्रम् 2675 | अञ्जलि: अजहा 2054 अञ्जलिदारिका प्रजा अजस: प्रजाजी 636 प्रजसा अजातशत्रुः 1148 अटया अजितः 11,282 अटवी प्रजितबला __32 अटा 1017 अटाटा अजिनपत्रा 1017 अटाट्या अजिनपत्रिका 2426 अट्टः अजिनयोनि 2337 अट्टहासः अजिरम् 1725 / अट्टहासी 962 1743 2302 2673 अजिनम् 2732 2732 2732 2732 2732 1721,1681 44. 242 Page #526 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 2742 2741 2741 2023,2041 2634 2465 2742 2768 704 2642 प्रणकम् 262. / अतिबलम् अगव्यम् 1646 प्रतिभी अरिणः 1741 अतिमर्यादः अरणी 1740 अतिमात्रम् अरणीयः 2566 अतिमुत्तकः अणुनः 238. अनिरिक्तम् अतिवादिता भण्डम् 2384,2594 अतिशयः अण्डकः 987 अंतिशोभनम् अण्डकोष 987 प्रतिसर्जनम् मण्डजाः 2380,2421,2440 अतिसारकी अण्डवर्धनम् / 722 प्रतिस्थिरम् प्रतः 2812 प्रतिहास: प्रतट: अतिहिंसकः प्रतर्पणः 729 अतीव मतलः 241 प्रत्ययः प्रतसी 2125 अत्यन्तकोपनः अतलस्पृक् 1861 प्रत्यन्तगामी 2766,2810 प्रत्यर्थम् अतिक्रमः 2736 प्रत्याचारः मतिकामीनः 772 अत्यूग्रा प्रतिजवः 766 अत्रिः अतिथि: 778 अत्वन्तीन अतिथिपूजनम् . 1370 ! अदभ्रम् प्रतिपस्थाः 1687 | प्रदानम् प्रतिपातः 2736 | पदिष्टम् 1782 2366 2766 476 482 अति . 772 2741 670 116 772 2563 1207 610 Page #527 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 476 सुशीलनाममालायां अदृष्टम् 1026 प्रद्धा अद्भ तं अमरः 528 1125 2786 अद्य . अद्वयः अद्रिः अदिजा अदिराट् अधः अधःक्षिप्त मधमः अधमर्णः अधरः अधस्तात् अधिकरणं अधिकारः अधिकारी अधिकाङ्ग अधिकार्मिक अधिकृतः अधिक्षयणी मथिक्षिप्त अधिपः अधिभूः अधिरोहिणी 441 | अधिवासनं 2812 प्रधिवित्ता 432 अधीन: अधीश्वरः 2814 अघुना | अधृष्ट: 1768 अधोक्षजः : 255 . अधोभुवनम् . 1771 अधोमुखः 2784 अघोमर्म 2663 | अधोवस्त्रम् 262.. अध्न्या . 1477 अध्यक्षः अध्यतिका 2784 अध्ययनम अध्यानं 1214,366 अध्यायः . 1.178 अध्याहार 1252 अध्यूषः 1183 अध्येषरणः अध्वगः 1751 अध्वन्यः 666 अम्वनोन: 531 अध्वरः 531 / अध्वरथः 1042 अध्वर्यु: 276 : 2477 666,2647 988 2063 2282 1178 1786 1368 1660,453 372 474 837 587 765 765 1367 1227 Page #528 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 477 1686 2641 2626 730 954 2675 1034 2611 685 1061 2486 अध्वा अनश्वरम मनः 1228 अनादरः प्रनगार: अनामयम् अनङ्गः मनामिका अनच्छम् 2675 अनारतम् अनही 2283 अनार्यजः अनड्वान् 264 अनावलम्बी अनड्वाही 2283 अनाविलम् अनन्तः. 2364, 13, अनासिकः 306, 164 अनाहतम् अनन्तक: 207,1463 अनिन्द्रियम् अनन्तवीर्यः अनिमिषाः अनन्तरम् * 2638 अनिरुद्धः अनन्ता 255,1561,2152 अनिलः अनन्यज: - 312 - अनिलसखः अनन्यवृन्तिः .. 2651 | अनिशं मनमः . अनिष्टबुद्धिधीः अनर्थकम 397 अनीकम् अनर्गलम् 2665 अनीकः अनल: 1622 अनीकनी अनवरतम् 2675 अनीकस्थः अनवराध्यम 2615 अनुकः अनवधम् 1863 / अनुकम्पा * अनवधानत्वम् 2512 | अनुकर्षः अनवस्करम् 2611 अनुकारः प्रयवस्थितिः 465 | अनुक्रमः 324 41,1942 1923 2673 664 1216 1327 1221 1177 657 1235 2656 2738 Page #529 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 478 सुशीलनामालाया 1997 367 1167 2504 570 2659 अनुकोशः अनुगः अनुगतम् अनुगामी भनुग्रहः अनुचरः अनुजः अनुजीवी अनुतर्षः मनुतर्षणम् अनुतापः अनुत्तरः अनुत्तमम् अनुत्तरः अनुत्तरोपपातिक: अनुपदम् अनुपदी अनुपदीना अनुपूर्वी अनुप्लवः अनुभवः अनुभावः अनुमतिः अनुयोगः अनुयोगकृत् अनुयोजन 546 अनुरागः 2646 अनुराधा 424 773/ अनुलापः 2746 अनुवृत्तिः 773 | अनुशयः 883 अनुष्णः 773 | अनुहारः 1525 अतूकः 1526 अनूचानः 2504 अनूपः 513 2615 अतृतः अनृतम् 158 अनेकपः 347 अनेकमूडः 1545,2646 अनेकलोचनः 762 अनेकान्तवादी 1545 अनेडः 2738 773 / अनेहा: 2726 अनोकहः 48. मन्जम 142,433 मन्तः 381 अन्तःकरणम् 380 / अन्तकृद्दशा 53 1692 558 383,1446 2000 514 238 1340 522 668 120 1956 2802 1640,2653 .. 2486 , 346 Page #530 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 476 54,2572 54 2653.1461 2224 2224 136 236 1907 563 अन्तःपुरम् 1166. | अन्ती अन्तःपुराध्यक्षः 1185 / अन्तेवासी अन्तरम् 2655,2478,2748 अन्तेषद् अन्तरा 2802 अन्त्यम् अन्तरादण्डः 2466 अन्दुकं अन्तरायः 2747 अन्दः अन्तरालम् 2655 अग्ध अन्तरीक्षम् . अन्धकार: अन्तरीयः 1063 1876 अन्धकारि: अन्तरे 2802 अन्धतमसम् अन्तरेण 2725,2802 अन्धुः प्रन्त्रम् 976 - अन्नम् अन्तर्गडुः * 2761 | अन्नकोष्ठकः अन्तरम् 1730 अन्यत् अन्तर्धा 2604 अन्यतरेधुः अन्तधिः 2684 भन्यथा अन्तर्वश्किकः अन्यभृत् अन्तरिमकः 1185 प्रत्यभृतः अन्तर्मनाः अन्य शाखकः अन्तर्विगाहनं 2730 अन्येद्य : अन्तहितम् 2684 अन्योक्तिः . अन्तावसायी 1560 अन्योन्यम् प्रन्तिकतम् - 2326,3635 अन्तिका 462 अन्वयः अन्तिकाश्रयः 1718 | अन्ववायः अन्तिमम् 2653 | अन्वेषितम् 1740 2666 916 1185 659 अन्यशाला 2820 2384 2363 1434 . 2015 368 2728 2646 785 785 अन्वक 2712 Page #531 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 480 सुशीलनाममालायां अन्वेष्टिम् अन्वेष्टा अपकारः 297.6 1225 1263 2815 .366 1646 अपकमः अपकिया अपकृष्टं प्रपगतः अपधनः अपचयः अपचितिः अपटान्तरं अपटी 262,4.1 2685 2683 अपराजिता 762 अपराध: 2760 अपराद्धेषुः 1336 प्रपरेद्य 2760 अपलापः 2620 अपवन 554 अपवरक: 105 अपवादः 2776 अपवारण . 676 अपवारितं 2638 / अपविद्ध 1106 | अपशब्दः 867 अपष्ठं 982 अपष्ठ 576 अपष्ठुरं 458 अपसर्पः अपस्कराः 176 अपस्नानम अपस्मारः 1688 अपहार: 46 अपहितं 2676 अपत्यम अपत्यपथ: प्रपत्रपण्ड: 2622 2227 2664 2663 1167 1236 प्रपत्रपा अपदान्तरं अपदिशं xm अपध्वस्तः प्रपन्था अपवर्गः अपभ्रस: अपमानं अपर्णा अपररात्रः अपराजितः 2776 2684 1856 187 295 205 1565 1335 अप्सर पतिः | अपमरस: अप्सराः 276 अप्रकृतम् 250 Page #532 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 481 अप्रतिकृता अप्रतिपत्तिः प्रपाक अपाङ्ग अपाङ्गदर्शनं अपाची अपाचीनं अपाटवं 462 1518 2171 1927 2001 174 500 2764 अपान .217 658 1314, 2751, 2753, 365 2252 प्रपानाथः अपारवारः अपावृतः अपावृत्तं अपाश्रयः अपासन अपित्तं अपिनद्ध: 2027 / अब्धि: 2726 प्रब्धिजा अब्धि मण्डूकी 626 अभ्यग्निः 627 अभयः अभयाः 176 अभया. 706 प्रभाव: 988, 1945 प्रभाषणं मभिकः 1866 अभिक्रमः 226 अभिख्या 1736 अभिचरः 548 अभिचारः 1926 अभिजः 1248 अभिजनः 1963 | अभिजातः 48 अभिज्ञः 562 मभिज्ञानं 457 अभितः 761 / अभिधा अभिध्या 516 / अभिनयः 786 | मभिनन्दनः 462 / अभिनिर्माणं 773 1384 784 785 784 अपुनच्छदः अपुनर्भवः अपूपः . अपोहः प्रफलम् ar.4 0 ~ urur Mm - अजम् 408 प्रवद्धमुखः प्रबला . . . मब्रह्मण्यं Page #533 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 482 सुशीलनाममालायां . . . माक. 658 2761 .625 2655 2636 27 1314 778 1327 अभिनिर्मक्तः अभिनिवेशः अभिनीतं अभिप्रायः अभिभवः अभिभूतः भिमन्त्रण अभिमानः अभिमुखं अभियातिः अभिरामम् अभिरूप: अभिलाषः अभिलाषुक: अभिलाव: अभिवादकः अभिवादनं मभिव्याप्तिः भभिशस्त: अभिषवः अभिषस्तिः अभिषुतं अभिषेणन अभिसंगः अभिसंपात: अभिसारिका 1438 / अभीक: 2730 प्रमीक्ष्ण 1213 | अभ्यग्रम .2513 अभ्यञ्जन 670 अभ्यन्तर 667, 1340 अभ्यर्णम् 377 प्रभ्यमर्दी प्रम्यमित्रीयः 2612 अभ्यवहार: 1161, 2763 अभ्यागतः 2624 अभ्याजगाम अभ्यान्तः प्रभ्यादानं 648, 651 अभ्याशः 2771 अभ्यास: 517 अभ्यासादनं 1400 अभ्युत्थानं 2763 अभ्युदितः अभ्युपगमः 1523 अभ्युपगतः 577 अभ्युपपतिः अभ्युपायः अभ्रक 363 | अभ्रपुप्प 1325 | अभ्रम् 841 अभ्रमाङ्गः 1383, 2746 2636 2636. 1307 1331 781 1436 403 2708 2746 403 1816 2006 Page #534 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 483 2061 . 521 256, 2030 : 623 67 1507 2044 1755 862 2071 2523 1856 1934 2462 मभ्रमुप्रियः 186 | अमेघाः प्रभातक: अमोषाः प्रभ्रिः 1470 अम्बक प्रमत्र 1767 अम्बर अमराः अम्बष्ठः अमरावती अम्बष्ठा अमलं . | अम्बरीष: प्रमाः 68 अम्बा अमर्षः 472 | अम्बालूः अमर्षणः 581 | अम्बूलः प्रमा 143 | अम्भः अमात्यः 1162 | अम्भस्सूः अमानस्यं मम्रः प्रमां 2785 अम्लः भमांसः 683 प्रम्लवेतसः प्रमावश्या अम्बिका अमावास्या 143 | अम्बु अमावासी 143 | अम्बुकुर्मः प्रमित्र: : 1186 अम्बुधनः अमुत्र 2786 | अम्बुजः अमुष्यपुत्र: 783 / अम्बुदः अमृतम् . 1856, 70, अम्बुपः 1360, 1447.48 अम्बुमान् अमृता . 2034, 2036. 2006 | अम्बुकृतं अमृतद्युतिः . अयः ममृतासङ्गः 1822 | मयः कंटकच्छना 2523 627 2027,34 1816 2426 1733 2023 1819 2426 1622 366 1762, 2507 . 1304 Page #535 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 484 सुशीलनाममालायां मयनम् प्रयःप्रतिमा अयाचित अयि अयुतम् अयोधनः अयोध्या अयोनिः अरम् अरग्वधः अरघट्टः परजाः मरणिः अरण्यं अरण्यजः अरण्यानी अरत्रिः परम्मदः अरबिन्दम् प्रररम् अररिः परवातं परसञ्चित: मरा अराति: अराफल: 156, 1787 | मरालयम् / 2648 -2662 अरिः 1162, 1231 1447 प्ररित्रम् 1471 2800 औरष्टम् 116,2364,2007 1457 298,610,1712,2142 1554 | अरिष्टताप्तिः 1670 अरुणः 81, 87, 2535 1746 325 2780 मरणोपत्यः . 1844 2021 अरुन्नुदः 781 1911 अरुन्धती 1418 766 | अरुन्धतीजानि: 1411 1377 2012 2126 अर्क: 76, 81 अकजी 203 अकसोदरः 166 1628 अर्कबान्धवः 316, 2060 अर्कतनयः 1158 1726 अर्घः 1451 1729 780, 2161 1912 | अर्गला 1726 13.3 अर्गलिका 1726 121 अर्चा 676 1191 अर्यः 678 1302 / अर्णवः 1866 1947 परेवतः / 1848 964 Page #536 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 485 अर्णवमन्दर: अर्थः अर्थवाद: अर्थदूषण प्रर्थना अर्थप्रयोगः अर्थाः 235 215 | प्रशः 225, 2757 | अर्शशः 705 190 अहंन् 8,330 1206 अहंगा 676 576 महंवर्णः 1168 1474 महमतिः 2468 2115 अचिः 85, 1631 1838 अचिष्मान् अतिः 2463 2608 अधिक: 1336 अर्थी 136 अर्थी .826 . 1862 अर्जुनः 140,1151,2156, 2531, 1966 .. 1070 अर्जुनध्वजः 1145 1071 अर्जुनी 2282 अर्बुदः 725, 1456 प्रद्धन्दुः . 1278 पर्शोघ्नं 2661, 2230 अर्घायुक् . 705 467 अलकः 444, 531 मलका अलङ्करिण्णुः 832 अलङ्कारः 10,52 2808 / अलक्तः 1116 अर्थ्यम् प्रर्दना ... अद्धः प्रर्द्धकाल: अर्द्धरात्रः अर्धः प्रर्द्धपानीयं अर्द्धतूर अर्द्ध मारणवः अर्द्धहारः अर्द्धवीक्षणं अर्ब अवती प्रर्बा पर्जुका 420 G. 0 0 2621 2234 अर्भः 223 अर्यः . 'पर्या 832 अर्याणी अर्वाक् Page #537 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 456 सुशीलनाममालायां अलक्तक: अलगर्दः अलगद्ध: अलं भूण्णुः प्रलम् अलसः 1451 2262 2650 2686 2723, 2647 2688 170, 2218 170, 2218 1748 1224 अलसक्षणा अलात 1933 प्रलातज्वाला 2686 2684 अलाबू अलिः अलीकं मलीगर्दः अल्पम अल्पतनुः अल्पमारिषः अल्पिष्ठम् मल्पीयः अवकरः प्रवकटिका अवकीर्णः अवकीर्णीः प्रवकुटारिका अवकुठारिका अवकृष्ट अवकोशी 1916 / अवक्रयः 2360 प्रवक्षेपणी 2360 अवगणः 763 अवगणना 2786 अवगत 570 प्रवगणितं 761 अवग्रहः अवग्राहः 1633 अवघातः , 2071 अवचूलः 2185 अवज्ञा 617 अवज्ञातं 2360 प्रवट: 2564 अवटिः 661 अवटीट: 2138 अवतंसः 2566 प्रवतमसं 2596 अवतारः 1746 अवतोका अवदंशः 2682 अवदातः 1428 अवदानं अवदारण प्रवदाहः अवद्य 1656 , अवद्धम् 464 2480 686 1060 137 1866 2286 1525 2530, 2611 1350 1501 2082 2620 . 37 463 Page #538 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 487 1986 प्रवधानं अवधि: प्रवध्वस्त प्रवध्वस्तः 2530 978 प्रवनं 2687 2506. 2765 | प्रवरोधिकः 1640 / अवर्णः 2682 प्रवलक्षः अवलग्न 2735 | प्रवलम्वितं 416 अवलिः 686 प्रवलिसता 1586 अवश्यं 840 अवश्यायः 1628 अवसरः 624 प्रवसक्थि 1672 | अवसादः 1578 अवसानं 1361 अवसितं 686 अवस्करः अवस्कन्दः अवस्था 1330 अवष्वारगः प्रवहस्तः 2688 अहित्था 2686 मवहारः अवाक् 1083 | प्रवाग्रम् प्रवाङ 2773 | अवाची 2222 | अवाच्यम् .1586 467 - 2805 1863 2748 1104 456 476, 1640 2723 1025 प्रवनद्ध प्रवनाटः अवनी अवनीता. अवन्तिः प्रवन्तिसोमः प्रवन्ती प्रवपातः अवभृतः प्रवभ्रष्टः प्रवमम् अव मतं प्रवमर्दः अवमतां शुका अवमानितं अवमाननं अवयवः. प्रवरं 'अवरजः अवरतिः प्रवरा . سه 2621 2688 2503 س 0 2452 2774 0 694 174 385 Page #539 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 488 सुशीलनाममालाया अवापः 1966 प्रविः 316 1846 1838 1787 अविजयः प्रवितं अविदुग्धम् अविद्सम् अविद्या अविनश्वरं अविनीतः अविमरीसं अविरल अविरूढम् अविलम्बितं / प्रविला अविसोठं अवेक्षा 1751 1842 1740 1040 452 1076 | अशोकः 2304 अशोकम् अशोका 2724 | अश्म: 23.6 अश्मगर्भ: 2306 अश्मजं 2468 अश्मरी 144.7 प्रश्मा 653 अश्मन्तकं , 2306 अश्मयोनिः 2630 अधिः 2136 | अश्रीः 2672 2304 23.6 | अश्लेषाभूः 2765 | प्रश्वः 2036 अश्वकिनी अश्वग्रीवः 187 अश्वगोयुगम् 583 अश्वतरः 582 अश्वत्थ: 200, 1966 प्रश्ववारः 643 अश्ववारण: 1065 अश्वषड्गवं 2510 प्रश्वशाला 2606 ! স্বঘা 113 2230 अव्यथा 2027 258 अव्यष्ठा अशनं अशनाया अशनायितः प्रशनिः अशितः अशुचिः अशुभं अशेषम् 2324 1242 2324 2586 1713 __. 2234 Page #540 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 486 अश्वारोही अश्विनः अश्विनी अश्विनी पुत्री अश्विनी अषडक्षीणं असकृत् असक्त असत्यम् प्रसत्या असतीसुतः प्रसदध्येता प्रसनः प्रसुरी असुहृत 1242 | प्रसिधावकः 1558 प्रसिधेनुः 1261 843 असिपत्रकः 2155 103 असिपुत्री असुखम् 2462 1210 असुमान् 2484 2761 असुरः 1002 2673 383 प्रसुराह्वय 1816 असुरा 71, 337 877 626 1434. 1161 2026 प्रसूया 471 670 असूक्षणम् 2686 1161 असृक् 186 असृक्संज्ञः 1045 1662 प्रसृक्करः 969 प्रसृपः 214 383 असृग्धरा 762 असौम्यम् 261 अस्त्रम् 314, 1264 2627 अस्त्रसंकट: 1271 1284 | अस्तम् 477, 1771, 2004 अस्त्रशायकः 2537, 111 / अस्त्रशेखरः 1306 असवः असहनः 411 असहन्महा असंकुलः असंख्य असंबद्धम् असभवकारः असंमतः असंयतः प्रसारम् ' असिः असिवनी असितः 825 | 1274 Page #541 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 460 सुशीलनाममालायां 125 657. 468 468 . प्रस्तांगः 41 | अस्वरः अस्ताचल: 1771 अहः अस्थाघमः 1861 | अहङ्कारः प्रस्ताघः 1861 / अहङ्कारी अस्ति 2807 अहङ्क्तः अस्ति नास्ति प्रवादक 355 | अहं पूर्विका अस्त्री 1260 | अहं प्रथमिका प्रस्तु 2786 | अहंयुः अस्तेयं 58 | महमग्रिका , अस्थि 1008 | अहर्मरिणः अस्थिकृत् 1007 | अहर्मुख अस्थितेजः 1013 | प्रायः अस्थिधन्वा 232 | अहार्यः , अस्थिपञ्जरः 10.12 अहिः 2310 / अहिकायः अस्थिमान् 735 महिकोशः अस्थिरः 663 / अहिच्छत्राः अस्थिर पहितः अस्थिविग्रहा 268 | अहितुण्डिक: 384 अहित्वक अस्फुटं 384 / अहिदंष्ट्रा अस्रः 608, 1741 पहिपयंङ्कः अस्र 1000, 452 अहिभृत् प्रस्र, 452 अहिमहिमका प्रस्रणः 2171 अहिर्बुघ्न: प्रस्वप्नाः 67 . अहिंसा 460 83 125 2672, 2760 1766 287, 2353 2374 2376 2161 1161 756 2376 अस्थिभुक् अस्पष्ट 2374 236 234 468 . .102, 236 Page #542 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 461 2346 262 2351 155,1570 1225 . 344 778 - 2677 / प्रहो 2800, 2811 / पाखनिक: महोरात्र: 124 आखुः प्रा. प्राखुगः प्राकरा 1789,2563,1851 आखुभुक् माकल्पः 1026 प्राखेट: प्राकल्यम् 706 प्राख्या प्राकार: 2755 पाख्यातं. प्राकारणं 378 प्रागः आकारगृहनं 463 | पागतः प्राकारगोपनं 463 | मागन्तुः प्राकाशः पांगिरसः प्राकीर्णम् .मागूः .1950 आग्नेयं प्राकुलः 2677 आग्नेयी आकूतः 2513 आग्रहायणी प्राक्रोशः 363 प्राग्रहायणिकः प्राकन्द: 1327 प्राघाट: प्राक्रमः 2751 प्राघ्रांण: प्राक्षकरः प्राघ्रातः प्राक्षपादः 1441 प्राचमनीयं प्राक्षपालिकः .40 प्राचाम: प्राक्षारणा 364 प्राचारः प्राक्षारितः . प्राचारवेदी 'पाक्षेपः आचाराङ्गम् प्राक्षोदः / 1872 आचार्यः प्राखण्डलः 282 | प्राचार्या 402 1000, 113 178 142 143 mr .1366 586 1403 m 1611 345 m. . rm. Page #543 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 462 सुशीलनाममालाया प्राचार्यो .1486 1656 1665 प्राचित: माचितं प्राच्छादः आच्छादनं प्राच्छुटितं प्राच्छोदनं प्राजः प्राजक 1827, 2120 529 1646 1232 987 440, 7.6 552 भाजगवः 85 आजगाव: प्राजानेयः भाजिः प्राजिभीष्मभूः अजीवः 1472 787 / प्राढ कम् 1487 | अाढकवाप: 2678 प्राढकिका 1084 अाढकी 1083 / प्रायः 437 आरपवीनं 589, 1570 प्राणी 2443 | पाण्डः 2574 प्रातङ्कः , 244 आततायी 244 प्रातप: 2235 आतपत्रम् 1326 / प्रातरः 1332 | आतापी 1445 प्रातायी 2466 / प्रातिः 608 मातिथेयी 1972 आतिथ्यम् 1145 प्रातुरः 400 प्रातोधम् आत्तगन्धः 2013 प्रात्मजः 2426 प्रात्मजा 2426 प्रात्मदर्शः 2726 प्रात्मगुप्ता 1326 / आत्मघोषः 2420 2420 2426 776 माजू: प्राज्यम् 778 1326 प्राज्यवारि प्राज्जनेयः प्राज्ञा प्राटवः पाटरूषः आटि: पाटी पाटोपः भाडम्बरः 702 414 356 864 865 1112 2054 2365 Page #544 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 1243 2487 426 303 2647 415 616 पानद्धम् 854 77 1133, 466 1015 प्रात्मप्रबोधः 356 / आषोरणा मात्मभूः 273, 260, 321 मानः अत्मयोनिः 273. 321 प्रानक: मात्मसंकल्पः 321 आनकदुन्दुभिः मात्मा 2483, 2501 पानतम् मात्रेयः REE प्रात्रेयी | प्राननम् पाथर्वरणम् 171 प्राननकल्पजा पादर्शः 1112 प्रानन्दः प्रादानं 1.207 पानन्दथुः पादिः 2652 प्रानन्दप्रभवं आदिकविः 1412 प्रानन्दन आदित्यः प्रान हः पादित्यो ___66 मानिली आदितेयाः 66 | प्रानुपूर्व्यम् प्रादित्यसूनुः पानेयः आदिमम् 2652 . मान्तःपुरिकः प्रादिराजः 1136 प्राग्वीक्षिकी मादीनवः 2500 प्राम्दोलन प्रादेशः प्रापः प्रादेशी 746 प्रापगा प्राद्यम् 652 पापरणः माधूनः प्रापरणपारण प्राधारः 608, 1615 / प्रापरिणक: प्राषिः . . 460,2463,1480 आपत् प्राधीनः 526 | प्रापन्ति 1144 2602, 724 68 2738 1574 1986 377 2661, 2683 1856 1852 1721 1166 1448 736 736, 163 401 Page #545 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 464 सुशीलनामालायां प्रापन्नः प्रापन्नसत्वा पापमित्यक प्रापानं आपीडः आपीन: आपृच्छनं प्रापृच्छां आप्रोक्तिः प्रातः आप्रपदीनं प्राप्लव: प्राप्लाव: प्राबधः आवतः प्रावलिः 736 / आभीरी 856 भाभील: 1477 प्राभोगः 1526 ग्राम . 1060 प्रामगन्धी 2266 आमनं 1165 आमनस्यं | आमन्त्रणं 345 | मामयः 1166 आमयावी 1061 / आमलकी 1030 | आमावास्या 1030 आमिषं 1503 प्रामीक्षा' 1975 | आमाल 2585 | प्रामुष्पायण: 2585 आमोद: 2661 | ग्रामोदी 1915 | आम् 2863, 1440 | आम्नायः 487 776 प्रानं 1052 | प्रामेडित 2753 आयतम् आयतनं 1720 / प्रायत्तः 781 2463 2604 -706 . 2526 .709 2462 377 '706 702 2034 1372 1205, 1002 1386 443 पाबली आवहितं आबालं 783 . 2527, 466 2528 - 2804 359,56 1961 आबिलं - 387 आबुत्तः प्राबेशिक: प्राभरण प्राभा आभीर: भाभीरपल्लिका :2567 1705 - 527 Page #546 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 465 413 2746 1547 1303 1178 1646 2541 2464 730 प्रायुधीयः प्रायता 1301 / प्रारभटी प्रायल्लक 462 प्रारम्भः प्रायःशूलिकः 524 प्रारवः प्रायसी 1256 पारा प्रायामः 2602 माराफल: प्रायास: 471 पाराप्लिक: प्रायुः / 2488 पारामः पायुक्तः 1148, 1173 / पाराव: प्रायुधं 1264, 1812 | पारेक: प्राधिक: 1257 प्रारोग्यम् 1257 | प्रारोहः प्रायुर्वेदी | अारोहक: आयुर्वेदिक: 726 | आरोहणः प्रायुष्मान् 738 | आर्जुनी प्रायोगवः 1506 आर्तवं प्रायोग्रम् 1746 आर्द्रः प्रायोधनं 1327 आर्द्रक प्रार: 106, 1816 प्रा पारकूट: . 1814, 2773 प्राय: . प्रारक्ष: 2219 आर्यपुत्र: मारग्वधः 2011 | आर्यावर्त्तः आरटम् 1003 आर्या प्रारणकल्पना 77 आर्याणी प्रारणी 2400 प्राप्रारतिः . . . 462 | पार्षभिः प्रारनालं 624 | आर्षभ्यः 680,2602 1953 1741, 2750 1895 855 2713 2141 86 330, 563, 489 461 1611 246, 832 832 726 1126 2272 Page #547 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालायां मालम् पालम्भ: प्रालबालं 1703 1164, 1615 1667 ...2132 प्रालयः प्रालस्यं पालानं पालाप: पालावावत: प्रालि: . 1060 2648, 2664 2686 764 | प्रावीतं . 1411 487 2585 1832 | प्रावसथ्यम 549 पावाप: 1615 प्रावासः / 1667 आवासित 570, 465 प्रावि: 2226 प्राविकः 397 प्राविद्धं 1116 / आविष्कृतं 2585. 842, प्राविष्टः 2185. 1685 प्रावी 2744 1735 ग्रावुक: आवृत् 1270 आवृत्त" आवृत्तिः 1800 आवेगः आवेश: 2363 / आवेशनं 1757 आवेशिक: 552 आवेष्टक: आवेष्टा प्राशयः प्राशयाश: 1185 आशङ्का 2132 आशंसुः 1667 / प्राशंसा 2738 474 आलिङ्गम् आलिन्दः आली: अालीढम् आलीनं अालीनक पालुः पालुकः आलू: आलेख्यशेष: पालोकः प्रावपनं प्रावरणं प्रावरोधिक: आवसितं पावसथ 1757 874, 2726 1717 772 1684 1289 2513 2513 441 417 Page #548 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 467 c Mmm - प्राशु 2107 प्राशा 173, 650 आसन्दी .1113 प्राशितः 586 | पासना 2628 प्राशितङ्गवीनं . 1644 प्रासनिः प्राशिरः 586 / आसन्न प्राशीः 2374, 364 प्रासवः 1521 पाशीविषः 2356 प्रासंशिता 517 2660, 2652 प्रासादितं 2610 प्राशुः प्रासारः 1312,166 माशुगः 1942, 1272 आसीनः आशुशुक्षणी 1618 मासुतिः 1523 अाश्चर्यम् 444 प्रासुतीबलः 1516, 1363 प्राधमः 1616, 1345 | प्रासुरी 637 प्राश्रयः ___EE, 1200, 1667 / | मासेचकं 2623 प्राश्रयाशः आस्कन्दनं 1326 प्रापवः . 402, 654 प्रास्कन्दितं 2258 प्रश्रान्तः 2675 प्रास्तरः 1105 अश्रुतं 2607 | प्रास्तिकः अश्वत्थः 1358 . प्रास्था 2028, 743, 402 अश्विनी 60, 63 प्रास्थानं 743 आश्विनेयो 204 प्रास्थानगृहम् 1711 आश्वीनः 2256 प्रास्थानी 743 प्राषाढः 150, 1356 / प्रास्पदम् 1664 प्राषाढभूः आस्फोट: 2076 पासक्तः प्रास्फोटनी 1531 प्रासङ्गिकः . . . 408 प्रास्फोता 2076 प्रासन्दः . 281 | प्रास्यम् 616 1618 560 Page #549 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 468 सुशीलनाममालायां .2755 651 / 222 2023 1361 2273 2305 566 1580 1820 2728 2816 प्रास्यलाङ्गलः मास्यलोम प्रास्या भास्याक्षतः पाहतं पाहतलक्षणः श्राहर: पाहवनीयः माह्वयः पाहारः पाहार्यः श्राहावः आह्वा आह्वानं आहितः आहिताग्निः अाहितुण्डिकः पाहूतिः पाहोपुरुषक: इक्षुः इक्षुगन्या इक्षुरसक्वथः इक्षुवारि इनुदः 2327 | इङ्गितः 937 2728 इच्छावसुः 1023 | इज्वलः 2668 इज्यशील: 662 इटचरः 2487 इडिकिकः 1375 इण्डेटिका 376 इतरः ,. इतरथा 406 इतरेतरम् 1906 इतरेयुः 376 | इति 377 इतिह 1440 इतिहास: 1363 इत्थम् 756 इत्वरः 1368 इत्वरी 468 इदानीम् 2155,2156 इद्म 2070 इन्द्रः इन्द्र कम् 1872 इन्द्रकोलः 1872 | इन्द्रकोशः 2755 | इन्द्रगोपः 2055 | इन्द्रजालं 2766 2816 374 2821 2273 836 2726 1380 1160.278,182 1711 1777 1737 2160 1205,1567 इङ्ग इङ्गदी Page #550 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 416 2216 69 2216 1282 इन्द्रजालिकः इन्द्रनील इन्द्रभूतिः इन्द्रलुप्तकं इन्द्राग्निदेवता इन्द्राणी इन्द्रानुजः / इन्द्राणीमहः इन्दिन्दिरः इन्दिरा इन्द्रियम् इन्द्रियार्था इन्दीवर इन्दीवारं 2081 2528 2266 2085 1566 / इल्वला 1845 | इषः इषुः - 717 इषाका इषिका 162 इषुधिः 287 इष्यः 815 इष्टकापथम् 2167 इष्टगन्धः 309 इष्टापूर्त 1015,2514 / इष्वासः . 2515 ईडा ईप्सा 2068 | ईरिणम् ईरितं 1889 ईमम् 234 132 ईर्ष्यालुः 2030 | ईलि 1380 ईली 2166, 89 ईशः 529 ईशसखः 2320 ईश्वरः 1857,1520 ईश्वरा 2731 / ईश्वरी 1561 / ईशानः 1564 2664 '713 इन्दुजा इन्दुभृत् ईर्या 2733 इन्दुमत्ता इन्दुस रसः इन्धनम् इभः इभ्यः इभारिः 1263 1263 231,531 222 234,226 257 257 178,234,532 इर्या इला Page #551 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालायां ईशान्तबन्धनं ईशिता ईषत् ईषत्ताण्डुः ईषदुष्याः ईषा ईषादन्तः ईषिका ह ईहामृगः उक्षतरः 1752 84 उक्षा उखा उखाकीलः उख्यम् उग उग्रः उग्रवा 1233 | उच्चारः , 1025 532 / उच्चावचं. 2663 2762 उच्चूल: 1224 2531 उच्च 2806 2518 उच्चभ्रुष्ट 386 1462 उच्चैःश्रवाः 164 2212 / उच्छ्रयः 2602 1555 उच्छायः 2602 651 उच्छादनं 1027 2333 उच्छासः 372 2271 उच्छिरः 146 2266 उच्छ्रितं 2162 उच्छवासितः . 2366 उच्छवासः 2487 उच्छृतम् 2487 1008 उच्छसितम् 2665 240 उज्जयन्तः 1776 187 उज्जयन्ती 1672 470 उज्ज्वलम् 2610 2562 उज्जृम्भम् 82 2687 उज्झितं 2681 उञ्छः 1445 उञ्छशिलं 1446 106, 1064 उटजः 1704 1224, 2482 | उड्डीनः .. 2384, 133 981 उडुः EEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE उग्रलम् 506 उच्चम् उच्चण्डम उच्चताल उच्चन्द्रः उच्चयः उच्चल: उच्चलिङ्गो Page #552 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 501 1640 '1728 1066 1610 175 2062 1061 2814 174 1862 उत उत्तानं उडुपः 1472 | उत्तरदिक्पतिः उडुपथः | उत्तरफल्गुनी उडुम्बरः | उत्तरभाद्रपदः उण्णः 571, 2517, 155 उत्तरङ्गः उण्णकः 571 उत्तरच्छदः उण्णवीर्यः 2450 उत्तंसः उण्णिका उत्तरा उण्णीष 1054 | | उत्तरासङ्गः 2666, 2762 | उत्तरीयकम् उतम् 2705 | उत्तरेयुः उताहो 2762 उत्तरोत्तरः उत्कट: उत्कण्ठा उत्तानपादजः उत्कण्ठितः उत्तानशयः उत्करः 2563 उत्तेजितं उत्कर्षः 2582, 2785 उत्तेरित उत्कलिका 462, 1874 उत्पतिण्णुः उत्कुणः 2076. उत्पतिता उत्कोचः / 1203 उत्पलम् उत्कमः 2751 उत्पश्यः उत्क्रोशः 2423 उत्पाटितं उत्क्षिप्त 1066 उत्पातः उत्तप्तम् उत्पादकः उत्तमाङ्ग . ..907 उत्पादपूर्वः उत्तरम् . . 38. उत्पादशयनः उत्तरकुरवः 1608 उत्पिअलः 467 2257 2258 577 2087 586 266. 116 2324 355 2412 543 Page #553 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 502 सुशोलनाममालायां उत्मः उत्सङ्गः उत्सादनं 2745 2008 उद्धानम् उद्धाम उत्सारक: उत्साहः उत्सूरः उदक 1752 216 2592 . 214 2124 376 585 1838 1907 उदक्या उदगजातं उदगद्रिः उदग्रदन् उद्गतम उद्गमीयं उद्गमभूमः उद्गारं उद्गाढं उद्घातः उद्घातक उद्घातनं उद्घाता उद्घषणं उदङ्मृत्तिका उदञ्चित उदधिः 2485 45, 1770 1770 1916 / उद्धनः 962 | उद्धवः / 1027 उद्घान्तः 1176 447,1201,436 127 उध्दुरम् उद्धरः * 853 उदन्तः 177 उदभ्या 1761 उदन्वान् 697,2212 उदपानः 2721 उद्भटः 1087 उद्भवः उदयः 2562 उदयाचलः 2743 उद्यमः 2746 उदरः 1621 उदरत्राणं 1611 उदरग्रन्थिः | उदरपिशाचः 450 उदरंभरिः 1620 | उरिकः 2684,1767 | उदरिणी 1836 | उदरी .. 1673 / उदर्कः 436 973 1254 722 645 645 685 856 685 उद्धतः Page #554 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 503 उचिः उदवसितः 1920 उद्रङ्गम् उद्वहः उद्वर्त्तनं उदानः उदान्तः 1774 2690 2176 2066 436 85 1752 1906 2348 2348 2614 2568 226 उदारः . - उदावतः 1326 उदूखलं 1668 उद्धृतं उद्देशः उद्वेगः 1023 उद्योगः 1646 उद्योतः 544 उध्मानम् 572, 544 उध्यः 722 उन्दरः 376 उन्दुरः 2023 उन्नः उन्नतं 2721 उन्नतिशील: 2721 उन्नयन 665, 50 उनसः 550 उन्नाहं 812, 865. उन्निद्रम् * 343 | उन्मत्तः 2424 उन्मथ: 2463 उन्मदिरगुः 175 उन्मनाः 277 उम्माथः 1618, 2083 / उन्मादः 544 उन्मिषित 60, 1734 | उन्मीलितं उदाहारः उद्दालः उद्रावः उद्वातम् उद्वान्तं उद्वानम् उद्वासनं 474 686 625 उदितम् उद्भिज्ज उद्भिद् उदीची उदीचीनं उदीच्यः . उदीर्णः . . उदुम्बरः 82 2027 546 648 660 1576 82 627, 690 Page #555 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 504 सुशीलनाममालायां 686 | उन्मुखः उन्मेष: उपकण्ठः उपकरणं उणकरणं उपकुल्या उपकर्या उपकारिका उपकार्या उप्तकृष्ट उपाकृतः उपक्रोश: उपेक्षा उपगतम् उपगृहनं उपग्रहः उपाग्रम् उपग्राह्यः उपघ्नः उपचर्या उपचारः उपचितः उपजाप: उपजिह्वः उपज्ञा उपत्यका 627 उपात्ययः / 2258, 2637 उपदा उपादानं 1303 उपद्रवः उपदेहिका 1701 उपोद्धतः 1701 उपोद्धातः 1701 उपदश:. 1654 उपधानं 1382 उपधा 362 / उपधिः 1205 | उपाधि; 2708 उपाध्यायः 2744 | उपाध्यायी 1343 उपाध्याया 2616 उपनतं उपनयनं 1718 उपनयक 728 उपनराभिधा 728 उपनोया 683 उपनाहः 1202 | उपनिषत् 2177 उपनिष्करः 2465 | उपनिष्क्रमणं .. 210 / उपानहः * 1786 2736 1203 2779 116 2177 2045 376 1528 1111 561 2511, 561 2511, 661 53 828 831 2718 1354 2718 2245 1354 376 1203 1682 1682 1543 उपताप: Page #556 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 505 1650 2808 उम् 1734 उपान्तम् उपानिधिः उपेन्द्रः उपपत्तिः उपपादुका उपप्रदानं उपप्लव: 813 813 1203 1223 उपपुरम् उपबरण उपबहः उपविष्टः उपबाहुः उपबीतं उपाबर्तनं उपभोग: उपमा उपमाता उपमानं उपमितिः उबलं उभौ 2637 | उम्पं 1453 182 उम्बुरः 820 / उपयमः 2465 उपयामः 1204 उपायनं 112, 118 | उपरक्षणं 1665 उपरक्तः 1166 उपरमः 1111 उपरागः उपरि 950 उपरिष्टात् 1410 उपर्णवं उपल: .2030 उपलब्धिः 2656 उपलम्भः .864 उपलिङ्गम् 2656 उपालिन्दकः 2656 उपवस्त्र उपवाह्यः 2586 उपव्यानं 2566 उपवन 2817 उपवास: 2817 | उपशल्यं 256, 2025 / उपश्रुतं 241 / उपश्रुतिः 2773 112, 118 2784 2784 118 1788, 2154 454 2766 116 1735 1304 2111 1063 1646 1405 1642 2708 381 उभे उभयद्यः उभयेद्युः उमा उमापतिः Page #557 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 506 सुशोलनाममालायां . 2304, . 671 उपाशका उपांशु उपसरः उपसर्गः उपसर्जन उपसर्जा उपसूर्यकम् उपसग्रहः उपसंपन्नः उपसेचनं 1282 उपासना उपासङ्गः उपासन उपस्कर: उपस्थितः 346 | उरभ्रः 2802 / उरव्यः 1444 2266 | उरस्य: 880 116 उरसिजी 2616 | उरसिल: 1315 2286 उगहः 2243 86 | उ रुः 2147 1408 उरीकृतं 2705 555, 620 563 उरुक्रमः 287 2774 उहगायः 287 उरुवकः . 2120 1307 उरू: , 2601, 689 उरूज: 1444 2718 उरोज: 971 985, 668 उणनाभः 2183 1366 उपायुः 1060 2774 उर्वः 1210 उर्वङ्गः 1866, 1766 680.1203 उर्बग 1563 1638 उर्बशीरमणः 1138 666 उलन्द: 1250 | उलयः 2304 उलूकः 2363 | उलूखलः 1358,2021,1747 2353 / उलूपी 2443 226 1627 उपस्थः उपस्पर्शः उपास्तिः उपहरं उपहार: उपहालकः उरः 240 उरच्छदः उरण: उरणाख्यः उरभः 2065 Page #558 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 2075 उलूलुः उल्मकम् उस्व उल्वणं 816 / ऊतम् ऊधः 862 ऊधस्यं 2667 ऊरीकृतं 2266 604 2707 उल्लसनं mr U " mex mmu 2 9 mr 152, 436 1322 1101 287 425 2694 665 685 उशीरं 2081 उषः उपबंधः 766 1246 उल्का 1633 ऊर्जः उल्लाघः 730 ऊर्जः उल्लास: 398 ऊर्ध्वः उल्लोचः / ऊर्ध्वकर्मा उल्लोल: 1874 ऊर्वकः उशना 110 ऊर्ध्वक्षिप्त उशा 132 ऊर्ध्वजानुकः ऊध्वंशुः 126, 1596 ऊर्वन्दमः 1921 ऊर्ध्वनाराचः उषा ___.2283, 13 ऊर्ध्वशः उषारमणः ऊमिः उषितः 2702 ऊमिका उषेशः 324 मितम् उष्मः ऊर्वी उष्मा 1930 ऊषणा उष्ट्रः 2264 ऊण्णीषः 2282 ऊष्मकः उहार: ऊष्मागमः 1322 ऊष्मायण: ऊढा 803 / ऊषरम् 2704 . 324 685 1874 2074 2648 154 1086 उस्रा . 2456 ऊग 155 630, 1594 Page #559 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 508 सुशीलनाममालायां ऊहः ऋक 1887 1286 2336 ऋकरणम् ऋक्षः ऋक्पथम् ऋविद् ऋग्वेदः ऋचीषं ऋजीर्ष ऋजुः ऋणम् ऋतम् एकदृक् . 457, 474 | ऋषिः / ऋषिकुल्या 225 ऋष्टिः 2326, 62 | ऋष्यः 225 एकम् 1365 एककः 360 / एककुण्डल: 1755 | एकगुरवः 1755 | एकतालं 2647, 557 एकदा 1476 एकदन्तः 383 1446 | एकधुरः 856 एकधुरीणः 853 एकपत्नी 2785 एकपदे 2133 एकपाद: एकपिङ्गः 186 एकब्रह्मवताचाराः 2338 एकवर्षा 324 एक मूडः 2054 एकष्टिका 324 | एकशफः 2543, 2266, | एकशृङ्गः 2617, 11 एकसर्ग: 2560 306, 2363 55 2560 2818 262 0, 3364 2277 2277 832 1686 2762 276 ऋतुः ऋतुमती ऋते एकपदी ऋद्धः 529 526 221 ऋद्धिः ऋभुक्षाः ऋश्यः ऋश्यकेतुः ऋश्यप्रोता ऋश्याङ्कः 2266 513 1073 2233 ऋषभः * 265 2560 Page #560 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 506 689 1952 176, 99 2024,180,166 1936 एकाकी एकाक्षः एकाग्रयः एकागारिक: एकाङ्गः एकान्तम् एकानशी एकाबली एकायनं एड: / 2746 221 180 एडकः एडगजः 2811 1666 361 एतः 2560 | ऐन्द्रजालिक: 660 ऐन्द्रिः 2651 ऐन्द्री ऐरावतः 265, 1056 ऐरावती 121 ऐरावरणा: 256 ऐवलिः 1073 ऐशानजाता 2560 ऐशानी 662 | ऐषमः 2304 प्रोकः 2066 प्रोङ्कारः 2536 मोघः 2786 ओजः 2441, 2488 प्रोतुः 1352 प्रोदनं 1380 '2050 प्रोषणः 2147 पोष्ठः 2147 औक्षकम् 2056 औड्रपुष्पं 2811 प्रोत्सुक्यं 1274 प्रौदरिकः 576 प्रौदश्वितं 2811 प्रौदश्विक्त 275 | औदानक: 2565 1133 .. 2351 प्रोम् एहि एतनः एतसः एधः एरण्डः एवरुः एलुः एलगजः एव एषणः एषणा 585 2804 2524 933 2572 2024, 2042 462 646 एवम् / 615 1976 ऐतिह्य Page #561 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 510 सुशीलनाममालायां औदार्यम् प्रौद्दालक प्रौदुम्बरः प्रोग्ड्रा प्रोपपत्तिकं प्रौपम्यं प्रीपयिकः प्रौपरोधिकः प्रोपवल्ला प्रौपवस्त्र 767 | ककुदावर्तः 2161 ककुन्दरः 1358 | ककुप 1637 | ककुभः 348 ककेदिकः 2656 कक्षः 1224 कक्षा 1357 कक्षाकृता 1404 / कक्षिवान् 1404 कङ्कः 2211 कङ्कपाः 1650 | कङ्कतः 1010 कङ्कपत्र: 2575 | कङ्कल: 880 | कङगुः 556 | कङ्गनी 1627 कपः कच्चर प्रौपवाह्यः ओमीनं औरभ्यं मौरभ्रक औरस: प्रौर्द्धदेहिक प्रौर्बः मौर्व शेपः प्रौलूक्यः मौशोरं प्रौषधिः औषधी .. 2248 . . 976 173 421,1966 2146 1948 1068,947 2707 1425 ,2121 1075 1120 1272 1013 2121 2121 .608 2606 2805 2878 2656,226 2457.417 1068 1066 1442 कच्चित् कः कच्छः 1661 कच्छपः 1961 कच्छपा 223 कच्छाघाटी 2280 कच्छाटिका 676 | कच्छुरः 2248 | कच्छूः ककुत् ककुद्वती ..702 ककुदी Page #562 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 511 1305 633 1445 M 2556 2556. 1445 2130 446,1250 2264 / 2077 145 416 कज्जलम 1117 | कणय: कज्जलध्वजः 1118 / करणा: कञ्चुकः 1251,2376,1065 कणादानं कञ्चुकिका 1065 कणान्दुः कञ्चुकी 2355 करिणत कट: 1748,2217,876 करिणति: कटक: 1216,1785 कणिशाद्यर्जनं कटप्रः 236 कणिष: कटाक्षः 625 कण्टकः कटाहः 1758,2315 कण्टकनाशनः कटिः 979 कण्टकारिका कटिपोथः 182 कण्ठः कटिल्लकः 2145 कण्ठकूणिका कटीकूपः कण्ठबन्धः कटीसूत्रम् 1077 कण्ठभूषा कटु 2524,2517 कण्ठरोग: कटोलवीणा 420 कण्ठाग्निः कटवरं * 612 कण्ठिका कठिन: 2520 कण्ठेकाल: कठिनी 1760 कण्डरा कठिल्लकः कण्हन कठोरः 2520 कण्डूः / 2132 कण्डूतिः कडारः 2536 | कण्डूत्रा कडिन्दिको कण्डूयनं करणः 2565 / कण्डूरा 981 2226 1067 718 2380 1073 236 1020 1748 712 712 713 2145 कडङ्करः 373 713 2054 Page #563 -------------------------------------------------------------------------- ________________ '512 सुशीलनाममालायां कण्डूरा कण्डोलकः कण्वं कत्तणम् कथम् कथङ्कथितं कदका कदध्वा कदनं कदम्ब: कदम्बकः कदर्यः कदर्यक: 1107 2340 313 34 2054 | कनिष्ठः .. 2597, 88.3 1750 कनिष्ठा 655 1522 कनी 761 2150 कनीनिका . 2820 कनीयः 2567 380 कनीयसं 1765 कनीयान् 883 1688 -कन्तुः 312 कन्दनी 1271, 1825 कन्दरः / 1783 2127, 2563 कन्दराकरः / 1768 2174, 544 कन्दर्पः 2174 कन्दर्पा 2000 कन्दुः 1556 2000,2336 कन्दुकः 2104,2146,1121 कन्धरा 642 2518 कन्धरामध्यं 644 2535 कन्यः 883 513 कण्या 104,766 517 कन्यपालः 1516 1806 कन्यसा 883 1180 कपटम् 1171 | कपर्दः 243 . 2056 272 कपाट: 1026 2130 / कपाल: 1011 2764 कदल: कदली कदाचित् कदुण्णम् कद्रुः कद्वदः कद्वरः कनकम् कनकाध्यक्षः कनकालुका कनकायः कननः कनिश: कपदी Page #564 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 513 2137 1556.904 2137 612 642 1726 2058 2416 2456 272 2623 1556 कपालभृत् 234 | कवक कपालिनी 260 कबन्धः कपिः 2334, 264,2000 कबरः कपिकच्छः 2054 कबरी कपित्थः 2058 कबल: कपिध्वजः 1151 कबाट: कपिल: 262.2308,2535 कबित्थं कपिलाञ्जन: 236 कमच्छदः कपिलातुत्थं 1822 कमठः कपिलोहं 1814 कमन: कपिश: 2535 कमनीयं कपिशीष '1680,168 कमन्धम् कपीतनः 2061 कमरः कपुषं 675 कमलं कपूर्य 2621 कमसजन्मा कपोरिणः 948 कमलयोमिः कपोतः 2431 कमला : कपोताभः 2532 635, 1736 कमलिनी 690 कमलोत्तरं कफ: कमिता कफकूचिका 1023 कम्पनं कफरिणः 148 कम्बलः .कफारिणः . 948 कम्बला 704 कम्बलिवाह्यक: कफोणिः 146 / कम्बी 658 2060,2067 272 سه 306 कपोल: कपोली 2086 2086 م 705 2645 1080 2368 कफी 1258 1756 Page #565 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 514 सुशीलनाममालायां करः कम्युग्रीवा 642 | करमलं कम्बोजा: 2236 करमालिका. 1077 कम्भाग 2036 करमाल: 1635 कम्रः 657, 2622 करम्ब: 564, 2005 651, 1216 | करम्बम् 2606, 2670 करकः 1075,1216,1757 करम्भ: 564 करकम् 1042 | कररुहः करकट: 2454 करवीर 2001 करकपत्रिका 1766 करवीरा , 1835 1013 करवीरकः . 266, 2158 करङ्गः 1758 करशीकर: 2214 करज: 655, 2015 करशूकः करअः 2015 | करहारः , 2104 करट: 416,2218,2364 करालिक: 1953, 1283 करटा 2260 करालिका 253 करटी -2202 करिः 2202 करटुः 2428 करिणी 2203 करण: 747, 1506 करी 2202 करणं 60,603,817 2524 करीरः 1753,2135 2050 करणत्राणं | करीषाग्निः करतोया 1863 करुणः 2070,431 करपत्र 1552 करुणापर: 543 करपाल: 1283 करेण भूः 14.26 करबालः 1283 | करेणुः करमः | करोटिः 1010 करभूषण 1075 | कर्कः . 2240 m 1926 2200 Page #566 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 1906 2217 551 2004 1281 1281 2548 1604,2158 1083 1066 1011,1758 2006 2006 करं - 260 कर्कट: 104,2416,2454 | कणिकारच्छायं केटी 2146 | कीरवः ककंड: 2454 कर्णेजपः ककंन्धुः 2004 कर्तनम् कर्कन्धः कतरि कर्करः 1008 कतंरी करान: 910 कर्दनम् कर्कर टुक: 2428 कर्दमः कर्करी .. 1757 कपंटम् 1805 कपंट: कर्णः 618,875,1157,1471 कपरः करणंकोटा 2181 कर्पासा कर्णकोटी कासी करणंजलूका 2181 | कर 1151 कबर कर्णधारः 1465 कापूर: | करम् कर्णप्रान्तः 920 कर्णमूलं 621,2216 कर्मकरी कर्णलतिका 920 कर्मकार: कर्णवेष्टक: 1065 कर्मक्षयः करणंशाकुली 616 कर्मण्ड: कर्णादशः . 1065 कर्मभूमिः कर्णादिः 1154 कर्मप्रवादः कन्दूः कर्मवाटी करिणका 2215,1064,2101 / कर्मशीलः कर्णजित् 1060 212 2538 1805 2725 523 523 523 523 1605 356 140 524 Page #567 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालाया 1350 ऋय्यं 523 | क्रयी. . 1450 1173 15yy कर्मशुद्ध कर्मशूरः कर्मसचिवः कर्मसहायः / कारः कतिः कर्मी कर्मेन्द्रियम् कर्मोद्यतः कर्षः ...2556 . कर्षक .. . . "कर्षणम् 1454 | ऋयिकः 1450 1173 क्रव्यं 4,2065 क्रव्यात् 2146 कव्यादः 2536 कलः 2515. कलक: 2443 कलकल: 2550 1484 कलकंठः . . . 2361 1466 कलङ्कः 1444 कल कूरिणका 2035 कलक्षः। 1881 कलट्टक: 2794 * कलत्रम् 676,803 1552 कलधौत 1803,1810 | कलभः 2206 | कलमः / . 2107 कललं 546 कलविकः ...2413 2550 कलम्विका 144 2547 कलशः 1753 1400,668 कलशी 2230,863 कलशीमुखः 2068 कलशीसुतः . . . . . . 1446 / कलहः 1326 कर्षफलं कर्पू: "कहिचित् कचं क्रकच्छदा ऋतु: ऋतुभुजः क्राथ: - 1753 2145 334 116 862 वादनम् ऋन्दितं क्रमः क्रमण: 1756 .426 यविक्रयिकः Page #568 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका. 2366 641 कलहंसः .. 2405 कल्क 2506 फैला 1414 कल्पम् 730,1400,1212 कलाटक: 236 कल्पकः कलादः 1526 कल्पनम् कलाधिक: कल्पनी 1535 कलान्तरम् 1475 | कल्पसंज्ञा 3,62 कलाप: 610,1282 कल्पातीत: कलापक: 2110,2390.2563 कल्पावतंसिका कलापूर: 10,430 कल्पान्तः कलामकः . 2107 कल्माष: 2538 कलार्मूक: कल्यम् 126.1516 कलायक: 2226 कल्यवतः कलाचिका कल्या कलावती . 416 कल्याण 64,1806 काल्पम् कल्याणप्रवादः 1326 कलिका 422,1678 कल्हार कलिकारकः कंलिङ्गः 2156,2416 'क्लेशः कलिन्दतनया कवकः 1816 कलिन्दपुत्री कवचम् 1250 कलिद्रमा 2035 कवचितः .1246 कलिलः कविः 272,106, 1412,502 2677 2314,1863 कविका कलुषं . 2506 कविता * कलेवर 600 / कविय 2226 कल्लोलम् / 1874 / कवी 2206 कलिः mom.25. or.. dox.2.2 ... 1417 क्लमः कलुषः 2258 . 504 2256 Page #569 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालायां 945 2072 कव्यम् करणः करानं कधितं 2368 2262 1011 कशारुका कशिपुः कशेरुका कश्मलं कश्मीरः कश्यः 2072 945 640 641 398 2357 1961 2367 1046 कषायः 1358 काकलक: 2541 काकाचिञ्च: 2541 काकारिः 2702 | काकिञ्चः काकीलकः काकुः 1114 काकुद 1011. काकुबाट: 2606 काकोदरः . 1632 काकोदुम्बिरिका 2238. काकोल: 1532 काकोलक 2525 काक्षः 2463 काक्षी 296 1114 काचः 1801 कावस्थाली 1401 काच्छी | काचिमम् 2364 काञ्चनः काञ्चनगिरिः काञ्चनी | काञ्चिक 615 | काञ्चीपदं 2144 | काञ्ची 945 काञ्जिकं 625 1827 कष्टम् कंसः कसिपुः कस्तीरं कस्तूरी 526,1838 2031 1827 . 1860 334,1806 1771 2417 काकः 627 2124 2072 काङ्क्षा काकगु काकचिञ्चा काकपक्षः काकमाची काकल: 623 671 1077 623 Page #570 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 516 2155 7672753 1556 542 1688 1516 1516 2532.1603 2570 310,650 2740 काठः 718 कारण: 690 कारणाद: 1442 काण्डः 2131,2135,1271 काण्डधारी 1261 काण्डवान् 1261 काण्डवट: 1106 काण्डवीणा 420 काण्डस्पृष्ट . 1435 काण्डीरः . कातरः 536 कात्यः 1423 कात्यायन: 1423 कात्यायनी 246,846 काथः 546 कादम्ब: 1271 कादम्बा 2405 कादम्बिनी 1566 कादम्बिका - 1534 काद्रवः . 2123 काद्रवेया काननम् 1947 कानीन: 1413,875 कान्तः 810 कान्ता .. 887,806,1666 कान्तारं कान्तार: कान्ति: कान्दविकः कान्दीशिक: कापथम् कापिशम् कापिशायनं कापोतः कापोतं काम: कामम् कामकेतनः कामकेलिः कामङ्गमी कामताल: कामध्वंसी कामनः कामना कामपाल: काममित्र कामयिता कामरिपुः कामरूपः कामरूपी कामलता कामलेखा 317 857 772 2362 242 657 304 330 658 1623 2326 1947 488 Page #571 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 520 सुशीलनाममालायां कामसखः कामाकुशः कामायुः कामावसायित्व कामी कामुकः कामुका कामुकी काम्यम् काम्बलः कायः कायमानं कार्पासम् .. कायस्थ: कायस्था क्रायक: कावेरी 146 / कारेणवः . 656 कारोत्तमः 1524 2422,325 कार्तवीर्य: 1136 247 कार्तस्वरः 1806 2407 कार्तिकः . 151 657 कातिकिकः 837 कान्तिक: 745 कार्पण्यम् 470 64,2623 1088 1226 कार्मणम् 2726 101,2364 कार्मारः 1826 कार्मायसं 1088 742 कामुक 1266 2035 कार्यम् 2727 1450 काटम् 1663 1962 कार्यः 2006 1630 2756 कार्षक: 1466 2006 2466 काय 740 कालः 111,206,2537 2436 228,240 667,674 1953 कालकः 1343 कालकण्टक: 2415 2415 373 कालकण्ठक: 1513 कानकुण्ठः 1513 कालकूटः / 207,2158 1635 / कालख 674 कारकुक्षीय। कारणम् कारणा कारणिकः कारण्डवः कारस्करः कारा कारिका कारी कारुषः Page #572 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 521 1002 325,87 1586 2026 2026 2168 1470 1550 2000 173,123 2156,711 कालखण्ड 974 / काशी कालङ्गमा 253 काश्यपः कालतुण्डः 2036 काश्यपम् कालधर्म: 476 काश्यपिः कालपृष्ठः 1158,1257 काश्यपी कालरात्रिः 254 काश्मीरी कालवृन्त: 2126 काश्मयः कालवेल: 2145 काष्ठकीटः कालसेयं . काष्ठकुद्दाल: कालस्कन्धः 2028 काष्ठतटः कालहः कालागुरुः 1036 काष्ठली: काष्ठा कालानुसर्यः / 1046 कासः काल्पम् कास्पितः कासरः 2208 कालायः 1077 कासार कालास्थायी . 2031 कासीनं कालायकं 1046 कासूः कालायसं 1792 | कास्ती कालिका 451,1828,168 | कांस्यम् कालिम्दी 96,1888 काहला कालिन्दीसोदरः किङ्कणः कालियः . 201 किङ्किणिः 340,32 किङ्किणी: कालीन्दीकर्षणः 305 | किञ्च .... कालेयम् .. 1042,974 | किञ्चन .. काशिः 1666 किञ्चिलिकः . 2314 1913 1826 1301 803 207 1765 426 427 1076 1076 2786 2768 . 2168 . काली Page #573 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 522 सुशीलनाममालाया 2102 2176 714 0 किञ्चुलुक: किञ्चित् किअल्कम् किट्टम् किरिभः किटिमम् किरण: किणालातः किण्यं किण्वी कितवः किन्नरः किन्नरा: किन्नरी किन्नरेशः किंपचानः किंपाक: किंपुरुषाः किंपुरुषेश्वरः किमुत कियदेतिका क्रियाविशालपूर्वः क्रियाहः किरणः किरात: किरिकिश्चिका 2168 / किरीटम् .. 1054 2768 किरीटी किमिरारि: 1146 ..1020 त्रिमिः 2183 किर्मीर: 1146 किल: 160 किलकिश्चित 785 किलाटी 606 188 किलामी 717 1522 किलिजः .. 1748 2230 किन्नवासः 1066 751,2557 किन्ननेत्र 705 किंवदन्ती 375 किशलयः 1973 किंशुक: 1966 किंशारु: 2126 544 किशोरः 2235 2017 किसलं 1673 73,226 किसलयः 1673 276 कीकट: 1637,530 2766 कीकसं 1008 कीकाहः 2240 कीचकः 2241 कोचकनिषूदनः 1150 84.80 कीनाशः 545,208,21-1 661,1584 कीमणिः 2186 430 / कीर्तिः .. 365 500G ME 23 WG 436 358 Page #574 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 523 कुजलं कीला कीलाल: कीलालय कीलित: कीषिक: क्लीवः 1931 कुजः 1957 1012 कुजर: 2201 623 कूटः 1735,1653, 1666 कुटकम् 1466 866 कुट्टक: 1557 304 | कुट्टकस्वनः 2437 017 क्लीष्टं . mx कुटजः 2002 कुट्टनी 850 | कुट्टमितं 2362 681 % कुङ्कुमम् 101 कुक्कुटः 2366 कुक्कुटारिः कुटहारिका कुक्कुटी कुट्टारः कुकुन्दरः कुटिलः कुटिलकेश: कुक्कुमः कुट्टिमम् कुक्कुरामः 2362 कुटुम्बी कुक्कुरः 2308 कुटुम्बिनी कुकुरः 2308 कुठरः कुडङ्गः कुक्षिभरिः कुडवा 971 कुड्मलम् 1040 कुख्यम् 514 कुड्यमत्स्यः कुश्वः . . 1775,2409 कुरणपम् कुञ्चितं 2648 कुरिणः कुञ्चिका .. 1727 1655,106 / कुण्डम् 1770 514 611 1700 1466 805,2582 1762 1957 1486,1482 1978 कुक्षिः w w कुवन्दनं 1723 2345 603 682 881 1752 कुण्डः Page #575 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 524 सुशीलनाममालायां . कुण्डलम् कुण्डारः कुण्डिनम् कुण्डिन पुरं कुण्डी कुतः कुतपः 1065 / कुन्दुरुको 1286 कुपूर्व 1676 कुप्यशाला 1678 कुवलम् कुवलयम् कुवलयाश्वः कुंबली 2236 2064 2621 1708 2066 2066 1138 2004 : 1716 1540 * 1575 217,178 868,128 कुतपी 1565 कुबाट 1568 1764 कुतुकम् कुतूः कुतूहलं कुत्सा कुविन्दः कुबेणी कुबेरः' कुबेरकः . कुबेराकी 438 2151.1105 2162 2004 2066 कुत्थः कुबेलं कुद्दाल: 661 कुजः / कुम्जम् कुध्रः 1736 / घा 8 कुम्बा 2596 1373 488,266,30 कुनटो कुनाभिः कुनालिकः 467 1835 / कुमारः . 226 कुमारक: 2361 कुमारी 1638,608 कुमारभूः कुमालक: कुमुखः कुमुदः 1533,227 कुमुदं कुमुद 1127 / कुमुदत्ती . 766,247 1886 1636 2326 कुन्तला: कुन्ती कुन्तीपुत्रकाः कुन्थुः कुन्दम् कुन्द्रा कुन्दुः 13 181 257 2068 2068 2066 Page #576 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 525 कुर्परः 2306. 1048 1666,785 750 2437 AL. . : 1715 2446 कुम्भी कुमुदिनी 2066 / कुरुम्बपालका कुमोदकः 226 कुर्कुर: कुम्भः 2020,105,1753 कुम्भकारकुक्कुटः कुलम् कुम्भकारः 1547 कुलकः कुम्भदासी कुलघातकः कुम्भराट 23 कुलत्थः कुम्भशालं कुल देवता कुम्भशाला 1715 कुलनाशः कुम्भी 2166,2448,752 कुलपालिका कुम्भीनस: 2354 कूलबालिका कुम्भीरः कुलर: 2216 कुलश्रेष्ठी कुरङ्करः 2408 कुलस्त्री कुलाय: कुंरचिल्लः 2455 कुंलारः कुरण्टक: कुलालः 622 कुलाली 682,2423 1762 | कुलिकः कुररी 2231,2305 | कुलिङ्गः 611 कुलिस्थिका 2648 कुलिशः 678 कुलिशाङ्कुशा कुरुक्षेत्र कुली कुरुण्टकः 1968 कुलीनकः कुरुबिन्द: 2153, 1837 / कुलीनस x 4m WWW.GANAGA:0W.NAG Smi..... KucS... .9.2 कुरलः 2126,1836 कुरिलं . . . कुरीरं. 2. 1616 Page #577 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 526 सुशीलनाममालायां कुलुक कुसुम्भ कुसुमान्त कुनीरः 2454 , कुसोदक: 1473 कुसुमं . 26.855,1676 कुलमाष: कुसुमधवा कुल्मास: 2120 कुसुमपुर 1673 कुल्यः 784 कुसुमबान्धवः 315 कुल्यम् 1042 कुल्या 1822 1042 कुवीणा 420 कुसुमायुषः 315 कुश: 2151,1142,1855 कुसूः , कुशलम् कुसूल: 1740 कुशलस्थल कुसृतिः 560,1567 कुशा 2262 कुस्तुम्बुरुः कुशाग्रीयमतिः 508 216 कुशारणिः ..1416 216,556,1567 कुशिक: कुहनः 581 कुशी 1412 कुहना 562 1474 कुहाबती 257 कुशीनवः 483 कुहाला 828 कुशूल: 1740 कुशेशयम् 2061 कुहूमुखः 2361 कुष्ठम् 714 कूकुदः कुष्ठः 2156 कूचम् 895 714 कूचिका 1727,1558 कुष्माण्डम 2146 2554 1851 कूजितं 2554 1474 | कूट 2272 कुशीदं कुष्ठक कूजनं कुष्ठारिः कुसीदं Page #578 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 527 कूटकृतः 2421 कूटम् 1554,2563.560 | कुकरण: 2430 कूटकम् 1466 कृकवाकुः 2366 236 कृकलास: 2347 कूटयन्त्रम 1576 कृकालिका 843 कूरिणका 422,2281 | कृकुलास : 2347 कूणितेक्षणः कृच्छ्रम 1405 1907 कृष्णा : 284,1131,2537 कूपक: . 1468 कृष्णम् 630,1767 कूपका: 1601 कृष्ण कर्मा 1426 कूपज 1016 कृष्णक गुः 2122 कूपदः कृष्णकाकः 2366 कूबरम् 1233 / कृष्णवन्ता 2031 कूरम् कृष्णतण्डुला कूर्चः 930 / कृष्णपक्षः 1153 कूचिका कृष्णपिङ्गलः कूर्दनम् 886 कृष्ण पिष्ट -1729 कूपम् कृष्ण वर्मा 1618 648 कृष्णला 1251,1065 कृष्णाशृङ्गः 2314 कूसिकः 1066 कृष्णासारः 2340 2456 कृष्णस्वसा 258 रात्मा 111 कृष्णा 250,2284,1156,633 1878 कृष्णावासः 1988 कूलङ्कषा. 1882 कृष्णिका 626 1602 कृतम् 2786 कृकः . 144 | कृतकृत्यः 506 246 630 2072 कूपरः कूपसिः कूर्मः कूल्या Page #579 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 528 सुशीलनाममालाया 1014 1116 1033 863 661 2564 561 . 1618 482 4 कृतज्ञः कृतपुङ्खः कृतमानः कृतमुखः कृतवर्मा कृतलक्षणः कृतसापत्निका कृतहतकः कृतहम्तः कृतान्तः कृतार्थः कृत्तिः कृत्तिका कृत्तिवासा कृत्तिकासुतः कृती कृत्रिमधूमः कृत्तम कृत्यम् कृत्स्नम् कृपरणः कृपारण: कृपालुः कृपीट कृपीटयोनि: कृमिः 2308 | कृमिजं 1262 / कृमिजा 2011 कृमिजग्धं 507 कृमिपर्वत: कृमिला कृश: 867 कृशम् कृशरः 1262 | कृशल: 208 कृशानुः 42,507 कृशाश्वी 1017 कृषक: कृषाकुः , / कृषिः 265 कृषिकः .502 | कृषीवल: 1046 कृष्टिः केका 2606 केकी 2606 केडिका 544 | केतक: 1283 | केतकी 544 केतनं 1858 | केतुः 1621,2021 / केदार: 2117,2183 | केलि: 232 1466,1500 1618 1446 1466 1466 502 2326 2388 1108 2062 2062 1223 113,1223 .. 1645 . 888 Page #580 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 529 2578 2578 2578 1586 2067 471 1211 2066 2156 1774 218 34 कंवल्यम् 48 कैश्यम् केलिकिल: 266, 487 / केदारक केलिकुञ्जिका 887 कदारिक केलिनी कंदार्यम् केली किल: 487 करवम् क्लेशः. करविणी केवलम् कराटकः केवली. कलासः केवलज्ञानी कैलासौकाः केवलीश्वरः केश: 608 कंवर्त्यः केशन: 717 कैशिकम् केशपाशी 915 केशभारः 906 कोकः केशमार्जन 1120 कोकनदम् केशरम् 1042, 2102, 1965 कोकाहः केशरअनः 2144 कोकिलः केशरीसुतः 1145 कोकिला कशवः 284, 700 कोञ्चदारणः केशवान् / . 700 कोटरः केशवेशः 612 1346 कोट्टपतिः केशिकः 700 कोटि: केसी 298, 700, 615 कोटिपात्रः कैटभः . 269 कोटिवर्षम् कैटिमः . . . . 201 कोटिशः कतवम् 560 | कोटी 1573 2576 2571 2412 2065 2440 2333, कोट्टः केशसहः 2361 264 1971 1667 1187 1740, 1466 1471 1474 1503 1741 Page #581 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालायां 2004 कोटीरं कोटीशः कोड: क्रोडम् कोणफलम 1054 / कोला .. 1503 | कोलाहल: 2550 868, 2325 कोलिः 2004 969 कोली 2004 2456 कोविदः कोविदारः 2062 1740, 421 कोशः 1162, 1811, 2384 235 1036, 1046 2518 कोशला 1670 2123 कोशायिका 1297 446, 348 कोशातकी. 2146 580 कोशिका 1763 581,2308 कोशी 1975 कोषः / 2384 | कोषकारः 2155 कोष्टा 2331 768 कोसला 1670 2521 श्रीश्च: 1775, 2401 क्रौञ्चारिः 264 2441 क्रौञ्ची 2401 1978 कौटतक्षः 2551 2023 कोटल्यः 1427 2326 कौटिका 1576 1046 कौटिल्यः 1427 631 | कौणप: 211 2176 | कौतुकं 1568 कोडपादः कोडा कोण : कोणवारी कोण्णः कोद्रवः कोष: क्रोधन: क्रोधी कोपः कोपन: कोपन कोपना कोमल: क्लोमम् कोयष्टिः कोरकः कोरदूषक: कोलः कोलकं कोल्लक कोलकुरण 581 563 975 Page #582 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 531 713 1001 1115 1428 1443 1177 580 826 कौतूहल 1568 | क्षतम् -कौन्तेयः 1155 क्षतजम् कोपीनं 1068 क्षतध्ना कोमारी 245 क्षतव्रतः कौमृदः 151 क्षत्तः कौमुदी 151 क्षत्ता : कौमोदकी 301 क्षत्राः कोलटिनेयः 878 | क्षन्ता कोलटेय: 877 क्षत्रिणी कोलटेरः . 877 क्षत्रियाणी कौलीनं 361 क्षत्रियाः कोलेयकः . 2308, 784 क्षप: कौवेरी 176 क्षपा कौशम् क्षमः कौशल्यानम्दनः 1140 क्षमा कोशलिक 1204 क्षमिता कौशिकः 2021, 1416 2368. क्षमी कौशिकी 413, 250 क्षयः कौशीतकी क्षरी भणः - 2745, 2748, 124 क्षवः मरणकम् 426 क्षवथुः 130 क्षादितः भणनं 551 क्षान्ता क्षरणप्रभा 1937 शान्तिः क्षणिका . 1637 क्षामः भगिनी 132 | क्ष्मा 831 160 130 GG 111" U om my w my w SS 780 52, 580 2776, 710 156 628, 711 711 683, 561 1586 580 क्षणदा 1586, 1583 Page #583 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 532 सुशीलनाममालाया 364 क्षारका क्षारणा क्षारपत्रं क्षालितं क्षितिः थितिरुहः क्षिपणः क्षुण्णक 711 क्षिपणी क्षिपतिः क्षिपिविष्टः क्षिप्रम् भिप्तम् 1977 क्षीरोदतनया क्षीब: 2141 क्षुण्ण: 510 2612 428 1586 क्ष्णुतम् 2668 1955 711, 583 1642 क्षुतम् 14.67 क्षुताभिजन 607 1941 530,564,687 237 / क्षुद्रम् 2564 665, 2672 / क्षुद्रकूप: . 1610 2664 | क्षुद्रकोट: 2167, 2117 2776 क्षुद्रघण्टिका 1076 2558 क्षुद्रनासिका 683 क्षुद्रशङ्खा 2172 1871 क्षुदशम्बवः 2172 1385 क्षुदा 2077. 848, 2161 1850, 603 / क्षुद्राराम: 1652 क्षुधा 711 1050 / क्षुधित: 582 468 क्षुपः 1965 2141 क्षुब्धः 1850 क्षुमा 2125 ___306 क्षुरी 1561 1050 क्षुरमर्दी 1561 1871 / क्षुल्लकाः 2172 क्षिया क्षीजनम क्षीणः क्षीणवारि क्षीणसरः क्षीरम क्षीरकण्ठः क्षीरधूप: मीरप: क्षीरपत्रम् क्षीरस्फटिकः मोराब्धिमानस: क्षोराह्वयः क्षीरोदः 567 Page #584 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 662 क्षेमम् क्षुल्लम् 2564 | खजक: क्षेत्रम् 1645, 803, 601 | खजाका 1756 क्षेत्रजः 876 / खजित् 330 क्षेत्रज्ञः 506, 275. 2483 खजः 664 क्षेत्रहर: 552 / खञ्जका 664 क्षेत्राजीव: 1466 खजनः 664 क्षेत्री 1466 | खजरीट: 2406 क्षेपक: 363 खटः 708 क्षेपणी 1467 खटक: क्षेपरिण 1467 खट्टकः खटनी क्षेमकरः 756 खटाखुः 2350 क्षेमङ्करी 252 खट्वाङ्गः 243 क्षेमा 248 खट्वाभृत् क्षरेयी खट्टिक: क्षोणि: 1586 खटी 1760 क्षोणी 1586 / खटुः 943 * क्षोदः 1657 खङ्गः 1286, 2607, 2325 क्षीमं 1681, 1086, 1088 खङ्गपिधायक 1288 1565 खङ्गी 2325 क्षौरिकः 1561 खण्डपरशुः खगः . 21, 1272 2376 खण्डलम् 2607 खगालिका . 848 खण्डशीला 840 .खङ्गरः / खण्डास्यः 282 खाचितं 2670 खण्डिकः 2110, 647 1760 / खण्डित 2006 607 क्षौरम् r 610 Page #585 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालायां 338 1504 1765 686 1501 खम् 2156 2582 2156 840 1308 1504 1666 खण्डी खलधानं खण्डीरः 2113 | खलपूः . खदिर: 188 खलशङ्कः खद्योतः 2186 खल्लः / खनक: 2328 खल्वाट: खनिः 1786 खलिनं खनित्र खलिनी 164 खलीनं खप्पः 2264 खलुः खपुर: 266, 2066 खलूरिका 2517, 2268 खलेवाली खरक: 146 खशापुत्रः खरकुटी / खस: खरकोण: 2435 खातकम् खरकोमल: 146 खातिका सरट्टिका 1730 खादन खरणस: 687 खादना खरणा खानिः खरुः 1437 खापगा खरूलः 1308 खर्जः 712 खजूतिः 712 खारीकः खबः 662, 1456, 2566 खिदिरः खलः 164, 1546, 1657 / खिलं खलतः 686 खुङ्गाः खलतिः 686 | खुडाङ्गी 712 1612, 2480 1914 687 ख्यातः खारी 936 1786 1885 2715 1486 1656 188 1565 2141 . 420 Page #586 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 535 सुरसास: or गडूची खेदः 714 गजी 2168 सुरणा 688 गा 1716 दुरली 1307 गडुः खुरोपमः 1302 गडुलः 662 खेटः 1286, 1666, 2621 2078 खेटकं 1286 गडोलः गरणः 515, 2533 खेलनी गरणका 746 खेला 888 गणनाथ: 241 खोड: 694 | गणनीयं 1456 खोर: 664 गणरात्रः 133 खोलम् 1253 गणिः 53 गगनम् . 164 गयिका 2203, 537 1885 गणिकापतिः 620 गङ्गामृतः 234 गणिपिटक 356 गङ्गासुतः 285 गणेरुका 851 गच्छः 1653 गणेशः 261 गज: 2168, 1225 गणेश्वरः 2320 गजता 2213 गण्ड: 2217,1456,635,715 गजपुरम् 1676 गण्डकः 2325 गजप्रिया 2064 गण्डमाल: गजभक्षः 2064 गण्डशैलः 1788 गजभक्ष्या 2064 गण्डि : 1636 गजाजीवा 1243 गण्डितं 2666 गजास्यः गण्डूपद: 2166. 1768 गजाह्वयम् / 1676 | गण्डूपदी 2166 261 Page #587 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालायो गन्धवहः 2051 1046 1642 631 1942 1036 गन्धवाहः 913 1830 1830 1226 1556 गदितम् 2165 50 गण्डूष: 662 | गन्धर्वहसकः गण्डोल: 642 | गन्धवस्तुकं गताक्षः 668 मत्तिका 1715 गन्धवहा गदः 670 गद्गदस्चरः . 2315 गग्धसारः गदाधरः .. 262 गन्धहत् गदान्तको 203 गन्धाश्मा गदाभृत् 284 गन्धिकः . 343 गम्धी गन्धः .2116, 2526 / गन्धोत्तमा गन्धकः 1830 गन्धोली गन्धकालिका 1414 गभस्तिः गन्धजाः 613 | गभीरं' गम्पदासः 1034 गमनम् गन्वधूली 1041 / गम्भीर गन्धनालिका 631 गम्भीरवेदी . गन्धपिशाचिका 1051 गम्भारी गन्धफली गया गन्धमाता 1560 गर: गन्धमूली 1041 गरदः गन्धमूषी 2775 गरभः गन्धमूषिका 2346 गरल: गन्धरसः 1836 गरखतः गन्धर्वः 30, 404, 2232 गरुच्छ: गन्धर्वजातिका 73 | गरुडः 1832 1311 1862 2210 2027 1667 2373 2046 552 865 2157 2383 2383 30, 1276 Page #588 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 537 गरुडाडुः गहरण: गहरणाग्रजः 67 2775, 62 1343 456 714 2233 385 645 2281 718 1757 2553 गरुत्मान् गरुला गर्गरी गर्जा गजिः गजितम् गजितः मर्द्धः गर्दभः गर्दभाह्वय गर्धनः मः गर्भः गर्भकम् गर्भपाकी गर्भागारं गर्भाशयः 292 ग्रहः 325 ग्रहकः प्रहरण 325 ग्रहणीरुक 327 ग्रहभोजन: 1759 ग्रस्तम् 2552 गल: 2553 गलकम्बलः मलगण्डः 2207 गलन्ती गलरोगः गल्लः 2067 गल्वकः 646 गलशुण्डिका 467 गलाङ्कुरः .. 861, 673 गलिः 1055 गलितं : 2107 ग्ललिः 1706 गवयः गवल: 362 गवाक्षः गवाक्षी 362 / गवीधुका 1058 | गवीश्वरः 635,1115 / गवेबुः 2050 / गवेषुः 935 1525 941 861 2278 2711 753 2324 2317 1736 2080 2126 1463 2126 2126 362 गर्हणा गर्दा प्रत्यनम् . ग्रन्थिक: प्रन्थिल:. Page #589 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशोलनाममालायां . 1560, 2615 2311 782 782 782 384 0 1787, 1768 गवेधुका 2126 ) ग्रामणी गवेश्वरः 1463 | ग्राममृगः गवेषितं 2713 | ग्रामीण: गव्यम् 602, 2268 | ग्रामेयक: गव्या 1268, 2581, 1461 ग्राम्यः गव्यूतं 1466 ग्राम्यम् गव्यूति: 1461 ग्राम्यधमः गहनम् 1647, 2627 ग्रावा गह्वरम् 1784, 2587 ग्रासः .. ग्लहः 714 ग्रासमात्र गाढम् 2628, 2782 ग्रामसीमा गाणिक्यं 2576 ग्राहः 2222, 601, 606 ग्राही गात्रसंप्लव: गिरिः गानम् 404 गिरिक: गान्धारी गिरिकी गान्धेयः 1418 गिरिका गारुडम् 1807 गिरिगुडः गार्गी 252 गार्धपक्षः 1272 गिरिजामलं गालवः 2088 गिरिशः गालि: 364 गिरिसार ग्रामः 2568, 1636 गिरीशः ग्रामकुक्कुट: 2402 गीः ग्रामतक्षः 1550 | गीतम् ग्रामता 2183 | गीतिः 2434 34 1353 1641 2775 2452 2058 112 1120 2350 2350 1120 1820, 1838 1820 231 1761 गिरिजं 231 342 404 404 Page #590 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका गीर्वाणः ग्रीवा 642 गुप्तम् 1343 2016 56 67 / गुन्द्रा 2045 2154 गीपतिः 108 गुन्द्राल: 2433 गुन्दुल: 2557 ग्रीष्मः 155 2697, 2724 गुच्छः 1771, 1976, 2031 गुप्तचरः 307 गुआ 1483, 2072 / गुप्तिः गुञ्छ 1979 गुबाकः 2068 गुडः . 600, 1220, 642 गुम्भः 1058 गुडकः 2020 गुरुः 50, 108, 2601 गुडवृक्षः गुरुक्रमः गुडग 2016 गुरुदेवत: गुराकेशः .. 1152 गुरुपरम्परा गुडेरक: 642 गुरुपत्रम् 1800 गुणः 1176, 1266. 1572 | गुरुपादाः 465 गुणलयनिका 1108 गुरुहा 1435 गुणवृक्षः 1468 गुर्वी 857 गुणाधिष्ठानक गुर्विणी 856 2688 गुल: 186 गुण्डिवः 2333 गुलयः 2522 गुत्स: 1976 गुलुच्छः - 1976 1976 गुल्मः 1221,676,1667,722 गुदम् 988 गुल्मिनी 1963 मुदकीलः 721 गूढम् 2697 'गुदरोगी 705 गूढपात् 2356 गुदाकुरः 721 गूढपुरुष: गुन्द्रः 2151 / गूनम् 2721 971 गुरिणत गुत्सकः 1167 Page #591 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 540 सुशीलनाममालायां गृहम् गृहगोलिका गृहगोधिका गृहनालिका . . . .734 1786, 1806 1838 1067 2074 2356, 2336 2425 गृहपतिः 1666 | गेहेशूरः 2344 | गरिकम् . 2345 / गरेयम् 463 वेयक 1166 गोकण्टक: 1118, 2311 | गोकर्णः 1345 गोकिराटिका गोकुलं 1345 | गोकुलोद्भवा | गोग्रन्थिः गोचरः 803 | गोडम्बकः 1343 गोणी . | गोत्र: 673 2268 252 . गृहमणिः गृहमेधी गृहयालु: गृहस्थ: गृहारामः गृहाम्बु गृहिणी गृही गृहीता गृहीतदिक् गृहोलिका गृध्रः गृध्नुः गृह्यकः गृह्यकाः गेन्दुकः 1950 673 2267 2515 3080 1003 1768 785, 316 1586 2581, 1586 गोत्रम् .2345 / गोत्रकीला 2421 / गोत्रा 646 गोदम् गोदन्तः गेयम् 527 2438 गोदा 1122 गोदारणं 404 मोदावरी 1666 गोधन 804 | गोधा 1666 मोधारः ___734 | गोधिः 1832 1860 1467 1860 2268 1266, 2343 2343 11. गेहम् गेहनी मेहभूः मेहेनर्दी Page #592 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 541 गोधुक् 1863 2267 2176 1463 2331 1463 गोमान् गोमायुः 26 ~ 2272 1464 / गोमती गोधूमः 2118 गोमयम् गोधूमचूर्णः 600 गोमयोत्था गोधेरः 2343 गोनर्द 2407 गोनर्दीयः 1422 गोमी गोनसः 2362 गोमुखः गोनाशः 2362 गोमेधः गोप: 1184, 1464, 1836 | गोयुगम् गोपतिः गोरसः गोपरमः 1823 गोरुतं गोपानसिः 1723 गोलक: गोपानसी . 1723 गोला गोपायितं 2724 गोलाङ्ग्ल: गोपाल: 1464 गोपाली 814 गोशाला गोपालिका 2171 गोशीर्ष गोपित्तं 1832 गोषडगवं गोपुच्छः 1072 गोष्ठ. गोपुरम् 1682 गोपेन्द्रः गोष्ठीनं गोप्य: 2724 गोसः गोवन्दिनी . 2045 गोसर्गः गोबर्धनः 291 | गोसहक्षः गोबर्धनधरः - 281 | गोसंख्यः गोबिन्दः ..1465 | गोस्तनः गोविट 2288 607, 603 1461 880 1834, 257 2336 2267 1714 1037 2589 735 1644 744, 1644 126 126 2324 1464 . 1072 गोष्ठम् 291 Page #593 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 542 सुशीलनाममालावां 1587 1040 165 246 171 434 446, 1076 446 1920 125 धर्मः . गोस्तना 2073 / घनश्रेणी .. गोस्तनी 2073 घनसारः गोहरम् 664 घनाघनः / गौः 1586, 342, 2270 घनाअनी गौतमः - 2166, 1420 घनात्ययः गौतमम् 1017, 1007 घनोत्तम गौतमी 250, 1863 घनोपल: गौतमान्वयः घर्षरः गौरः 2532, 2531 घर्घरी गौरवम् 1045, 781 गोरकम् 2160 घसुरिः . गौरवास्कन्दी 186 घस्रम् गौरी 766 घाटा गौरीदेवी घाटिः , गौरीनाथ: * 241 | घाटी घट: 1753, 1640 घातकः घट्टः - 1866 घातुकः घटा 2013 / घानः घटिका 123 | घानोद्यतः घण्ट: 1943 घासः घण्टाशब्दः 1661 घासिः घण्टिका 1320, 941 / घ्राणतर्पणः घनः 1265, 602, 165 घुरणः घनम् 616,2626,415,1791 | घूकः धनरसः 1857 घूकारिः घनवाहनः 237 , घूर्णनम् 340 1331 1331 546 547 552 1620 2526 2168 2398 2364 2767 Page #594 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___......... अनुक्रमणिका 543 1547 1825 264 1125 284 वृष्टिः चकसंज्ञं 2767 | चक्रजीवकः - पूरिणतः 672 चक्रनामा घृणा 443 | चक्रपाणिः वृरिणः चक्रवर्ती वृतम् 1857 चक्रभृत् घृतलेखनी 1364 चक्रभेदनी घृताचिः 1920 चक्रमर्दकः घृताह्वयः 1050 चक्रवाल: घृतेली / 2177 चक्रवाक: 2327 घोटक: चक्राङ्गः घोणसः 2362 चकावतः घोगा चक्री घोणी 2327 चक्रीवान् घोण्टा चक्रेश्वरी 442,1045 चक्षणं घोरा घोषः 1816. 1720, 2521 | चक्षुर्विकलः घोषणा 386 चभुःश्रवा घोषयित्नुः 2363 चक्षुष्मान् घोषवती 416 चक्षुष्यः 2808 चञ्चलम् . चकितः 541 | चञ्चरीकः चकोरः 2452 चञ्च: च .. 1238, 1266 | चम्चुमान् 1303. 2564 | चक्षुसूचिक: 632 घोरं 131 2005 2564, 178 2412 1801 2403 2767 2355 2268 32, 436 . 1528 622 698 2355 1836 681 2645 2186 2050 2376 2436 Page #595 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 544 सुशीलनाममालायां 635 2511 चञ्चू: 2382 चतुर्भुजः . 276 चटक: 2413 / चतुर्वर्ण: - 2265 चटका 2414 / चतुर्मुख: 270 चटकाशिरः चतुरः 571, 506 चट्टालकः . 1681 चतुरम् 1713 382 चतुरङ्गः 2011 चटुलम् 2645 चतुरङ्गवलाध्यक्ष: 1383 चरणक: 2111 चतुवर्ग: चरणकात्मजः 1426 चतुर्दूहः 281 चण्डः 210, 583, 2518 चत्वर , 1347, 1724, 1664 चण्डकोलाहलः 328 चतुःशाखः 602 चण्डता 470 चतुश्शालं चण्डमुण्डा 256 | चतुष्कः चण्डा 33 / चतुष्कोशः, 1462 चण्डातः 2001 चतु:समः चण्डातरूं 1064 चतुस्त्रिंशः 331 चण्डालः 1520, 1581 चतुम्पथ: 1660 चण्डिल: 1560 चन्दनः 1036, 1841 चण्डी 247 चन्दनगिरिः . 1775 2823 | चन्द्रः 88, 1040, 1808 चतुर्गतिः 2556 चन्द्रका 2360 चतुर्दन्तः 196 चन्द्रका चन्द्रकान्तः 1846 चतुर्दा 2822 | चन्द्रकी 2387 चतुर्दष्ट्रः 289 चन्द्रगोलिका चतुर्भद्र: 2512 / चन्द्रप्रभजिन: चतुः 1863 चतुर्दशी 144 Page #596 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका बमभागा चन्द्रमणिः चन्द्रमा चन्द्रमास: चन्द्रहासः 1863 | चम्पा 2306 चम्पाभिषः 1846 चयः 88 चर: 1285 चरणः 1285 चरण युधः 2026 1157 2564 616 1167 963,1407 2401 802 चरण्टी चन्द्रातयः पन्द्रात्मजः चन्द्राह्वयम् पन्द्रिः पन्द्रिका पन्द्रिमा पन्द्रोत्पलः चन्द्रोदयः चपल: चरणग्रन्थिः 107 चरणपः 1803 चरमम् 1846 चरमादिः चरितम् चरित्रम् 1850 घरी 1102 चरुः 732,1818 चर्चः 2645,2662 चर्चा 1935,634 * चर्चरी 656 चर्बरणम् 2338,1168 चर्भटी 2062 चर्म चर्मकारकः .565 चर्मकृत् 1217 | चर्म चटका 2338 चर्मचूडः 2026 / चर्मवती 1956 2653 1771 1407 57,1407 800 713,1752 2465 227,2465,1027 366 640 366 1017 पपलं चपला अपंटः नमः चरिक: पमसः चमसी चमूः चमार 1543 1543 2426 2401 1867 पम्पकः Page #597 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 546 सुशीलनाममालायां 420 2411 चर्मदण्डः चर्मप्रभेदिका चर्मप्रवेशिका चर्ममुण्डा चर्मसीवनी चर्षणी चषिक्यं 1983 चल: चलम् 2432 चलचञ्चुः चलदल: चलनः 1266.314 465 107 1168 2231 1806 256,245 2026 1343,1167 1343 483 540 1407 2262 | चाण्डालिका 1546 चातक: / 1535 चातुर्वर्ण्यम् 256 च न्द्र भागा 1546 चान्द्रमसं 836 चाप: 1027 चापल: . 1636 चापिकम् 2645 चामर: चामरी 1988 चामीकरं 663 चामुण्डा 264.5 चाम्पेयः 1065 चारः 1065 चारक: 2661 चारणम् चार भट: 1525 1764 चारितम् 1375 चारित्रम् 1548 चारित्री चारु 2415 चारुधारा 381 चार्वाक: 1426 चाषः 300 चिक्का 1581 / चिककरणम् . चलनम् चलनकम् चलनी चलितम् चलुकः चषक: चषाल: चाक्रिक: चाक्रिका चाटकरः चातुः चाणक्यः चाणूर: चाण्डाल 2625 163 2416 634 620 Page #598 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 547 2442 2400 1714 1714 557 2080,98 1152 510 472 568,686 634 चिक्कसः 600 / चित्रवल्लिकः चिक्खलः 16.4 चित्रवाजः चिकित्सकः 728 चित्रशालं चिकिला 1604 चित्रशाला चिकुरः . 753,608 चित्रशिखण्डिनी चिश्चा 2027 / चित्रा चित् . 2808 चित्राङ्गसूदनः चिता | चिद्रूपः चितिः 557 / चिन्ता चित्तप्रसन्नता 465. चिपिट: चित्तविप्लवः 471 चिपिटिकः चित्तोन्नतिः . 467 चिबुकमसिका चित्या 557 / चिरम् चित्रम् 444,1046,1558 चिरक्रियः 2538 चिरञ्जीवी 2322,2051 चिरण्टी चित्रक 1056 | चिरन्तनम् चित्रकार: 1557 / चिरप्रसूता चित्रकायः . 2321 चिरबिल्वः चित्रकृत 1557 चिरमेही चित्रगुप्तः 46 211 चिररात्राय - 2388 चिरस्य चित्रपुङ्खः 1273 चिराय चित्रभानुः . 1935.82 चिरिका चित्रलः .. 2538 चिरेण चित्रयोधी 1153 / चिभंटी 2763 522 2364 801 चित्रक: 2632 2287 2015 2268 2763 2763 चित्रपिङ्गलः 1300 2763 2146 Page #599 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 548 सुशीलनाममालाया . चिभिटी चिल्ला चिलचिमा चिह्नम् चीनः 2146 | चूडामणिः 705 | चूतं . 2444 | चूतः चूर्णम् 2338 चूर्णकुन्तला 1768 चूर्णनम् 1961 1026 610 चीनम् चीनकः चूर्णा चीनपट्टम् 2124 .1798 चीनपिष्टम् चीवरम् पीरम् चीरिल्ल: चोरी चोरुकी सुक्रम् सुण्डी चेतकी 622 चूलिका 1838 1102 चेटः . 1083 | चेटी 2446 चेत् 2195 | चेतः, . 2165 चेतनः . 1600 चेतना 850 चेतोभवः 983,681 चेदिः 1600 चेदिनगरी चेलम् 1752 चैत्रः 1752 चैत्ररथः 962 |चंत्रसखः 972 चैत्यम् 615 | चैत्रिकः 1053 640 1657 354,2116 2226 534 534 2807 2248 2036 2483 454 321 1626 1671 1083,2621 323,148 222 . 323 1705 . 148 1138 च्युतिः सुरी चुल्ला चुल्लिः चुल्ली चुलुकः चुलूका .. पुडारनं Page #600 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 549 चोचम् 84 चोदितम् 2301 1926 1925 2302 2302 चोरः चौरः 566 2706 चौर्यम् 1017 2678 1970 / छविः चोटी 1066 छागः 2664 छागण। घोबम् 444 छागरका 565 छागिका चोरः 565 छागी पोलः . 1066 छातः छातम् चौरिका 568 छात्रः 568 | छादनं छइल्ला 507 वादित छगः 2301 छान्दसः छगरगम 2267 छायासुतः छगल: 2301 छिक्का छत्रधारः 1226 | छितम् पत्रधारी 2226 छिद्रवस्त्रं 2383 | छिद्रितम् छदम् 1972 * छिन्नम् 2685.1972 / छिन्नरहा छदापलिा 1280 छुछुन्दरी छदि 1736 छुरिका छप 561 / छुरी छन्नम् 2678,2683 1211 | छेका छन्दः . 356,362 छेकालः छलम् .. 560,1339 छेकिला छल्ली . 1970 | छेदः 111 2703 2706 छदनं 2076 2346 Page #601 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशोलनाममालाया छेदितं जगच्चक्षुः जगत्कर्ता जगती / 240 1988.2166 187,2520 2517,515,522 667 1636 2426 2426 जगत् जगत्प्रारणः जगतप्रभुः जगत्स्रष्टा जगद्वहा जगद्रोरिणः जग्धिः जगन्नाथ: जघनं जघनेफला जघन्यम् जघन्यजः 235 782 638 861 2706 जटाधरः 83 | जटी 270 जठरः 1560 जडः 2481 जडुलः जतुः | जतुकम् 232 जतुका 1586 जतूका जन: जनकः 276 / जनङ्गमः जनता 1960 जननम् 2653. जननी 83,1503 जनपदः 2644 जनप्रवादः 2643 मनमनोहारी 1003,1622 जनयिता 766 जनयित्री जनश्रुतिः 766 जनार्दनः 1255 680 1581 2583 2485,785 862 1606 . जङ्गमम् जङ्गमान्य जङ्गलम् जङ्घलः 2526 861 862 374 276 .2485 861 862 803 जङ्घाकारः जङ्घावारणम् जङ्घारिः जटा जटाजूट: जनिः / जनित्रः 1356,667,2054 जनित्री 235 / जनी . . Page #602 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 551 जनुः. 2632,2642 501 2271 812 | 501 2315 312 860 2462 जपा जमनम् जरी. 2485 | जरत् जन्तुः 846,2483,1685 जरत्तर: जन्तुफल: 1660 जरद्गवः जन्म 2484 जरन् जन्या जरा जन्यू. 2483 जरातः जपः 1404 जराभीरुः 2042,2113 जरायुः जपापुष्पं . 1043,2042 जदायुजाः 638 जरासन्धः जम्पती 821 जम्बलः 2048 जतिलः जम्बवाल: 1605 जलम् जम्बरिः 2048 जलकन्तारः जम्बुकः 2330 जलकान्तारः जम्बूस्वामी जलकपिः जम्भः 938 162,2046 जलकुक्कुटः 'जम्भीरः 2048 जलजम् . जयः 18,1128,1337 जलजन्म जयदत्तः 163 जलद: जयन्तः 164 जलधरः जयन्ती . 164,1223,242 जलधिः जया 26,255,247 जलधिगा जय्यः - 1317 जलनरः जरठः 2520 जलनिधिः परंणः 636, जलनिर्गमाः 2126 1854,2083 216 215,1641 2450 2431 2063 2064 167 1866 1882 2460 1866 1600 Page #603 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालायां 2161 2446 1916 2105 | जलाकाङ्क्षा 2105 / जलाण्डका 217 जलाधारा जला 2440 जलालोका 2442 | जलाशयं 1636 जलेशयः 1602 | जलोच्छवासाः 1941 | जलौका 2451 जवनः . 2170 2051,2440 277.262 1601 2170 638,770 770 1919 276 1888 673 673 673 2416 जल नीली जलनोलिका जलपतिः जल्पाक: ज़लपिप्पल: जलबाल: जलबालिका जलभागः जलमूषः जलमार्जारः जलमुक् जलरज्जः जलरण्डा जलराशिः जलरुट जलरुहः जललोहितः जलवाहः जलवाहकः जलवाहिनी जलव्यालः जलशमः जलशूकः जलशूकरः जलसर्पः बलसपिरमी उबलनः 673 2416 | जह नुः, - 1866 जह नुकन्या 2063 जागरः 2063 जागरणं 214 जागरा 167 / जागरिता 1776 / जागरी 162 जागरूकः 2360 जागर्या 277 जागुडम् 2105 | जागृतिः 2448 जाङ्गलः 2452 जाङ्गलिकः .. 2170 | जाङ्गली 671 673 1043 .1916 1622 726 248 Page #604 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका जाङयम् 1047 1047 जातम् 804 जातकक्षः जातरूपं जातवेदाः जातापत्या जातिः जाति कलं जातीफलं 483 821 728 1269 2777 जाती 820 जातोक्षः जात्यः मात्यम् जानकी जानी जानु जानुदध्नं 446 | जायकम् 2564,2758 जायका 331 जाया 1806 जायाजीव: 1919 जायापती 860 जायु: 2758 ज्याघातवारणं 2036 ज्यानिः 1036 ज्यायान् 2042 जारः 2270 जारपुरुषः 784 जावितं 2615 ज.लं 1142 जालक: 892 जालक जालकारका 966 जालकिनी जालन्धरः 966 जालप्राया जालिकः 1416 जालिका 816 जालिनी जाल्मः 868 जावितं 1801 ज्वाला 813 / ज्वालाजिहः जानुद्वयसं जानुमात्र जाबालः 820 2486 1567.2546 1977 1736 2183 2305 1631 1256 1.571,2183 1256 1714 522 2486 1931 1911 जामदग्न्यः 668 जामाता जामि . जामेयः जाम्बूनदं जाम्बूलमालिका Page #605 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालाया जाहक : जाह्नवी जिघत्मा जिघत्सुः जिघांसुः 1934 जिण्डः जिण्णुः 21 21 जित: जितनेमिः जितमन्यु जितशत्रुः जिताकाशी जितारिः जिताहवः जितेन्द्रियः जित्या जित्वरः जिनः जिनमन्दिरं जिनसद्म जिनालयः जिनेन्द्रः जिनेश्वरः जिहानकः जिह्मगः जिह्वगः 2352 / जिह्वाम्वादः 640 जीन: 500 583 जीमूतः . 583 जीमूतवाहनः 1162 जीमूतवाही 1634 1152 जीरः . 1316,162,276 जीरकः 458 1340,26 जीरणः 458 1358 जीर्णः 1655,500 ... 282 जीर्णम् 2632 जीणिः 2777 1342 जीवः - 106.2483,2486 जीवकः / 1626 1342 जीवत्पतिः 843 जीवत्पत्नी 843 1467 जीवथः 2456 1316 / जीवन्तिका 844 276,8,337 , जीवनं 1766,1854,1802 जीवन 587 1705 जीवनीयं 604,1854 1705 जीवन्जीवः 2433 जीवा 1268 8,41 जीवातुः 2486. जीवान्तकः 1575 2646 जीवान्तिकः 2078 2355 / जीवाभिगमनं . : 346 1705 13 Page #606 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 555 जुगुप्सनं जुगुप्सा जुहुराणः 2186 744 62 612 2743 जूटकः जूर्णाह्वयः जृम्भरणं जृम्भा . जेता .. जेमनं जेयः ज्येष्ठः ज्येष्ठश्वश्रू ज्येष्ठा ज्येष्ठामूलीयं ज्येष्ठाश्रमी . 107 403 454 868 455 356 868 1640 887 1944 362 | ज्योतिरिङ्गणः 443,362 ज्योतिषिक: 1916 ज्योतिषी 1381 ज्योत्स्ना ज्योत्स्नी 2125 ज्ञः ज्ञाप्तिः 2743 ज्ञाति: 1316 ज्ञानम् 638 ज्ञानप्रवादपूर्वः 1318 ज्ञानी 146,882. झंझा झंझावातः 654,66 झटिति 146 झम्पः - 1346 झम्पानं 1316 झम्पा झम्फानं 738 झरः झझरः 240 झनक्का 240 / झषः झष:ध्वजः 2787 | झावुकः 36284 | झिरिका 2186 झिल्लका 2760.2673 2674 जंत्रः 1237 2674 1237 1616 مہ जैनः जैवातृकः जोङ्गकम् जोटी जोटीङ्गः जोन्नाला जोषम् ज्योतिः ज्योतिर्माली 2125 430 1932 1647,2440 318 2006 2165 2166,1632 Page #607 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालाया 2366. झीरिका झीरुका टक्का 1602 . टकरणः रङ्कनः टङ्कपतिः टिटिभः टिटिभिक: टिट्टिभिक: टीका रक्कारी डमरः उमरुकं व्यनम् डाहला 2413 2165 | तक्षकः 2196 / तक्षणी 1663 तक्षा 1553 तत्रम् तक्रतारः 1602 | तटः 1180 तटाक: 2413 तटिनी 2413 तडाक: तडागः 370 तहागिका 416 / तडित् 1338 | तडित्वान् 426 तण्डुः 1228 तण्डुलीयः तण्डलेरः तत् 426 | ततः 1876 ततम् ततिः तत्काली। 1549 611 606 1878 1913 1884 1913 1913 1912 1635 269 2138 1628 2138 532 सिण्डिमः डिण्डी डिमा डिम्बः डिम्भः 2766 2796,2812 415,2600 2585 506 571 2464 467 1583 तत्परः तत्रभवान् तत्वज्ञानं तथा तथागत: ढक्का 425 2890,2821 टोकनम 1202 Page #608 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका तन्त्रम् 2650 तन्त्रिः 2705 227,1164 1061 1540,2184 1272 2076 1572 460 460,1018 58,1406 864 तथ्यम् 383 | तन्तुसंततम् 2818 तदानीम् 2818 तन्त्रकम् तन्त्रवायः तद्धनः 545 तदलः 1278 तन्त्रिका तनयः तन्त्री तनया 866 तन्द्रिः तनुः 683,2630,601,2564 | तन्द्री तनुत्रम् 1250 तप: तनुभाणं 1250 | तपन: तनुपृष्ठं . तपनात्मजा तनूः तपनी तनूकृतं 2703 तपस्तक्षः तनूतल्पः तपस्या तनूनपात .. 1921 तपस्यवत् तनूरहम 1016 तपस्या तनूरुहम् 1016,2382 | तपस्वी तन्तुः 1541 तपा: तन्तुण! 2452 तपिच्छ: तन्तुनाग: 2452 तप्तः 2101 तन्तुवाता 2468 तमङ्गका तन्तुवायः 1540,2184 | तमरम् तन्तुशालम् 1715 | तमस्विनी तन्तुशासा 1715 | तमा 1861 1861 185 147 664 107 1347 147 तन्तुलं तमः 2038 2717 123 1737 1800 126,136,2506 126 Page #609 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालाया 466 तमाल: तमालपत्रम् तमालिनी तमिः 474 तमिस्रम् बमिना तमी तमोध्नः तमोमणिः 575,1537 640 2274 1756 1366,2735,1380 .1377 584 तम्पा तम्बा तरः तरक्षः तरक्षुः तरङ्गः तरङ्गिणी तरणिः तरलः तरलम् तरललोचनः तरला तरलितं तरवारिः तरबालिका तरिः 2038 तरुणः 1056 तरुणी 1677 तर्क: 126 / तर्कविद्या 136 त': 133 तजिनी 126 तर्णः : 226,1621 त: 2186 तर्पणम् 2282 तमः 2282 तर्षितः 700,1332 तल: 2323 तलम् 2327 तलसारकं 1472,1874 तल हृदयं 1883 तला. 1466 तलिका 1053,569 तलिन: 2645 तलिनं 761 तलुनी 586 तलेक्षण: 2662 तल्लक: 1286 तल्लजः 1263 तल्पम् ताविषी 1654 / तष्टः 656,666,1266 2260 866 1266 . 2260 684 2564,1106 800 2326 1674 2618 1106 184 2703 तरुः Page #610 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 1065 674 2038 1861 तस्करः 5.66 / ताम्राक्षः 2362 ताटङ्कः 1065 तायिकः 1632 ताडङ्कः तारम् 1803 ताडपत्रं 1065 तार: 25582546 साण्डम् तारकः 1134 ताण्ड 505 तारकारि: 266 तात: 860 तारका - 75 तान्त्रिक: 746 तारकान्तक: तापनः / तारजीवनं 1806 तापनीयं 1810 'ताररिण: 1466 तापिच्छे तारा 62,623 तापी तारारिः 1826 ताप्यः 1826 तारिका 623 तामरसं 2062 तारुण्य 466 तामलिप्ती 1677 तार्य: 325 2231 तामसी 132,460,247 ताक्ष्यध्वजः ताम्बूल करक ताल: 958,2000,2560,422 ताम्बूलपत्रं 1170 तालम् 1832 ताम्बूलबल्ली 2070 तालक: 1727 ताम्बूली 2070 तालकामः 2533 1764 | तालमर्दक: 427 ताम्रकुक्कुटः . 1534 | ताललक्ष्मा 305 ताम्रचूड: - 2401 तालवृन्तं ताम्रलिप्तम् 1677 तालिका 958 ताम्रवृन्ता. 2116 ताली 1728 ताम्रसारं 1038 | तालुः 641 1170 ताम्र Page #611 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 560 सुशीलनाममालाया तालुजिह्वः तालूर: तिकलं तिक्तं तिक्तपत्रः तिग्मा तिता तितिक्षा तितिक्षुः तित्तिरिः तिथि: सिनिश: तिन्तिडी तिन्तिडीक तिन्तमः तिन्तिली तिमिङ्गिलगिलः तिमिरम् तिमिरारिः तिमिला तिरः तिरस्करिणी तिरस्क्रिया तिरस्कृतः तिरीट: तिरोधानं 2446 | तिरोहितः 1341 1875 तिरोहितम् 2684 1600 तियंक 2756,21-6 2524 तिर्यगघाती . 2206 2146 तिर्यङ् 2517 तिल: - 2126 1750 तिलका 667 580 तिलक 675,1056 580 तिलकारक: 666 2435 तिलन्तुदः 1548 140 तिलपर्णी 1038 2023 तिलपरिणकः 1038 2027 तिलापः 556 627 तिल्म 1651 2180 तिलित्स: 2362 2027 तिस्यः 2447 तिस्यफला 2034 136 तीक्ष्णम् 1761,2157,2517 तीक्ष्णकर्मकृत् 524 430 तीक्ष्णकर्मा 1284 2765 तीक्ष्णगन्धकः 1963 1108 तीक्ष्णतण्डुलाः 2686,670 तीक्षणधारः 1283.1302 तीक्ष्णशूकः 2058 1878 2684 | तीरीवाणः 1276 82 2106 तीरम् Page #612 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 561 तीर्थः .. तीर्थङ्करः तीथंपाद: तीर्थबाकाः 264 908 2517 | तुम्बा तुमुलं तीब्रः | तुरगः तीब्रवेदना तुकाक्षीरः तुङ्गम् तुङ्गी . तुच्छम् तुण्डम् तुण्डिकेरिका तुण्डिकेरी तुण्डिकेशी तुत्यम् तुन्तुभः तुन्दम् तुम्दपरिमृजः तुन्दिः तुन्दिकः तुन्दिभः तुन्दिलः तुम्दी. तुन्नवायः 1866 | तुबरी 2120.1827 8 तुभः 2301 तुमुलः 2551 1326 2071 2466 तुम्बिः 2071 2067 तुम्बी 2071 2568 तुम्बुरु 26 126 2131 2564,2628 तुरगी 1242 तुरङ्गः 2231 2138 | तुरङ्गमः 2231 2136 | तुरङ्गवदनः 230 2136 तुरुष्कः 1048 1821 तुलस्फोटनकामुक 1538 2127 2656,104 613 2656 तुषः 2035 113 तुषारः 2237.1863,2516 684 तुषाराट् 185 685 तुषोदकम् 623 684 | तुहिनम् 1863 684 | तूक 867 1535 | तूणः 1282 2525 / तूणी 1261 2115 / तूणीरः 1282 तुला तुल्यम् 570 तुबरः तुबरकः Page #613 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 562 सुशीलनाममालायां तूण्णीम् तूष्णीकः तूण्णीका तूष्णींशील: तूबर तूलक तूलिका 2787 | तेमनं 663 तेरम् 2787 तेजसावत्तिनी 663 तैत्तिरिः 2525 | तलम् 2010 तैलपरिणकः 1555.1556 तेलस्फटिक 584,651 तलाही 646,584 | तैलिकः 2065 | तनिशालं , 2000 | तैलिशाला . 2043 | तेली 1646 तैलीनं 650,584 तोत्रम् 1708 2582 | तोमरः 1653 तोयम् 584 तोयडिम्भः 643 | तोरणम् | तौर्यत्रिक: 584 | तौलिकिकः __ 85 | प्रपा 2151 / त्रपु 2151 | त्रपुषी 2668 / त्रपुबन्धकः तृण्णक तृणध्वजः तृणराजः तृणशून्य तृणाटवी तृष्णा तृष्णाक्षयः तृणोकः तृण्या तृतीयाकृतं तृप्तः तृप्तिः 563 616 1530 2566 626 1037 1851 2166 1548 1711 1711 1548 1651 867 1502,2226 1502 1276,1267 1855 172 1731 403 157 तोकम् | तोदनम् तृषा 585 तृषितः तेजः तेजनम् तेजनः तेजितं 1800 2147 1767 .. Page #614 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 563 सम् वसरम् त्रस्तः त्रस्नुः 286 2225 1660 1999 त्राणम् त्रातम त्रापुषं. त्रायस्त्रिशत्पतिः त्रास: त्रासदायदायकः त्रासदासी त्रिः त्रिकम् 2644,970 | विधामा 1540 त्रिपदी 541 त्रिपथम् 541 त्रिपथगा 2724,2775 त्रिपुरः 2724 त्रिपुरान्तः 1802 त्रिपुरी 186 त्रिफला 473 त्रिबश्नीक 736 | त्रिमार्गगा 736 त्रियामा 2823 त्रिरेखः 1660,981 | त्रिलोचना त्रिवर्षा 2074 त्रिविक्रमः 332 त्रिविष्टप त्रिशङ्कुजः 329 | त्रिशकुयायी त्रिशाला: 1652 त्रिशीर्षम् त्रिसन्ध्यं 1885 त्रिसरः त्रिसीत्य | त्रिस्रोता: 2822 | त्रिहल्यं 262 / त्रिहायणी 233 1671 2027 188 1885 126 2171 836 2296 226 त्रिकटु विकण्डकः त्रिकायः त्रिकालज्ञः त्रिकालवित् त्रिकुटकम् त्रिगुणाकृतं विदशं त्रिदशंदीपिका त्रिदिवाधीशः त्रिदिवं 'त्रिधा . . . विधातुकः 1138 1418 28 1268 126 561 1652 1885 1652 2265 Page #615 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 564 सुशीलनाममालायां '1250 धम् दशी . त्रोटि: त्र्यम्बका त्र्यूषणं त्यत्तम् त्यागः त्यागी त्वक 717 त्वक्षीरा स्वकपुष्पं त्वक्सारः स्वगमलं स्वचा त्वचिसारः त्वजदेवता lllllmlon 2565 / दंशः ... 638 2565 दंशनं 28 दंशभीरुकः / 2315 2822 .2164 2382 / दंष्ट्रा 638,1853 250 द्रष्ट्री 2327 - दकम् 1856 2681 दकलावणिक 573 दक्षः 505 दक्षजा , 255 1620,1017,968 दक्षता . 86 2067 दक्षिणः 1378 दक्षिण स्थः 1240 2065 दक्षिणा, 174 1016 दक्षिणाचलः 1784 1970 दक्षिणापतिः 206 2065 / दक्षिणायन: 157 101 दक्षिगाहः 677 दक्षिणीयः 677 474 दक्षिणीयष्टिः 1373 474 दक्षिणेर्मा 2340 2662,770 दक्षिण्यः 677 दग्धः 2702 दग्धकाक: 2.366 2722 दग्धिका 1112 | दण्ड: 1217, 1263 1202,1460 त्वरः स्वरा त्वरिः स्वरितम् त्वष्टा स्वाष्ट्री 67 थूत्कृतं थूत्पात्र Page #616 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 565 दण्डकरोटकं दण्डधरः 638 1738,1785 2221 2042,2523,2059 दण्डधारक: दण्डभृतः दण्डपारुस्यं दण्डाहतं दण्हासन: 2001 2164 2594 52 दण्डितः दण्डी 821 दत्तः दत्ततीर्थपः 40 दद्रुघ्नः 2274 562 200 दद्रुघ्नः 1761 | दन्ताः 208 दन्तका: दन्तभागः 1547 दन्तशठः 1206 दन्तालयः दन्तावल: 1276 दन्ती 677 | दभ्रम् 1176 / दमी 1131 | दम्पती दम्भः 2085 / दम्भचर्या 2085 दम्भोली 702 दया 702 | दयाकूर्चः 607 दयालुः 588 दयितः 2050 दयिता 1388 दरः 2058 दरितः 1871 | दरिद्रः 564 दर्दरम् 609 दणः 1388 दर्दुरम् 1871 | दर्दु रोगी 337 / दर्पः X 333 545 811 808 दद्रुणः दगुरोगी दधि दधिज दधित्य: दधिप्राज्य दधिफलः दधिवारि दधिसक्तु दधिसार दध्याज्यं . दध्युदः . . . दनुजा 440 541 530 415 702 2558,2458,225 702 467 Page #617 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 566 सुशोलनाममालायां दी दर्भः दस्रो दर्पकाः 312 | दशभूमिगः / दर्पणः 1112 | दशमी . दबिः 1756,1364 दशमीस्थः 502 1756,1364,2375 दशशिराः 1146 दबीकरः 2354 दशा 227,604,1085 2151 दशास्यः 1146 दर्शः 1372,143 दशाहः 330,284 दर्शनं 622,625 दशेन्धनः 1117 दर्शयामिनी 133 दशेरुक : , 1631 दशितम् 2686 | दस्युः 565,1161 दलम् 1972 दलस्रसा 1975 दहन्नः 1624 दलि 1658 | दहनोपलः 1846 दलिक 1971 दाक्षायणः 1808 दलितं 1983 दाक्षाय्यः 2422 दली दाक्षिण्यं 2504 दल्भिः 184 दाक्षीपुत्रः 1451 दव: 1647 दाक्षेयः 1451 दविष्ठम् 2640 दाण्डाजिनिकः 556 दवीयः 2640 दाढा 638 दशकण्ठः 1146 दाढिका दशकन्धरः 1145 दातम् 2710 1117 दाता दशत्र 636 दात्यूहः दशनोच्छिष्ठः दात्यौहः 572 दशभारमिताधारः 326 / दात्रम् 1500 दशकर्षः 2415 633 Page #618 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 567 1573 1131 1415 532 851 876 876,2565 173 614 दामिनी 800 1276 2665 दारकः दानम् 2300,2213,573 / दाशः दानवाः 337 दाशरथिः दानवारयः दाशेयी दानशौण्डः 572 दासः दाधिक दासी दापितः 677 दासेयः दाम 2261,1731,1201 दासेरः - 2300 दिक दामोदरः 40,262 दिक्कराः दायः 822 दिग्ध: दायकः 1478 दिग्धम् दायादः 865 दिगम्बरः 864 दितम् दारदः दितिजाः दारहरः दारा 557 दाराकर्म 815 दिनम् दिनकेशरः दारितं 2706 दिनमलः दारु 1971 दिनाण्डम् दारुणं 442 दिनात्ययः दारुहस्तकः 1756 दिनावसानं दालम 2161 | दिनाह्वयः * दालव: 2160 दिनेशः दालुः / 638 दिवम् दावः 1637 | दिवःपृथिव्यो 1868 दिधिषुः दिधीषुः 2710 337 833 813 125 131 दारिका 866 145 135 139 125 Page #619 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 568 सुशीलनाममालायां 1610 84 1117 1117,2437 1044 767,1277 1088 1086 दुगलं दिवसः दिवाः दिवाकरः दिवाकीर्तिः दिवान्धः दिवापुष्ट: दिवाभोतिः दिवामध्यम् दिव्यम् दिशः दिष्टम् दिष्ट्या दीक्षा दीक्षितः दीर्घम् दीघंग्रीवः दीजिह्वः दीर्घज्वरावतं दोघदर्शी दोघनादः दोघपत्रकः दीघपवनः दीघंपादः दीर्घपृष्ठः दीर्घसूत्री 125 | दीपिका 2762 दीदितिः दीधितिः 1560 दोनः 2368 दोपः दीपकः 2368 | दीपनं 12.7 | दीप्तिः 1857 दुकूलं 72 2507 दुग्धम् 2787 दुन्दुभः 571373 1362 दुराचारः 2567 दुरासदः 2265 दुरितम् 2354 | दुरितारिः 200 दुरोदरं 506 दुली 2311 दुश्च्यवनः दु खम् 2001 दुःखदोह्या 2420 दु शृङ्गी 2354 दु स्थ: 522 738 / दुःस्फोट दुन्दुभिः 216 1426 1283 2506 2143 752 2457 182 2462 2260 841 530 2266,1303 . 1261 عرس لس दुःस्फोट: दीर्घायुः Page #620 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 566 दुर्ग: ढुंगा दुर्गतः दुगंति: दुर्गन्धिः दुर्जनः 564 दुर्दिनम् दुर्मामा दुर्नाम्नी दुबलः दुर्मनाः दुर्लङ्घन: दुर्वचन: दुर्वणम् दुर्वणकम् दुर्वाक् दुर्वासाः . विधि: 1162 | दूरम् 2640 246 दूरदर्शी 530 दूरदृक 2422 2467 | दूरवेधी 1264 2528 दूरापाती 1264 दूर्वा 2152 द्वितः 721 2175 | दृष्यम् 1107 2175 दुष्या 2226 683 दृक 623 656 दृक्कर्णः 2354 2265 दृक्प्रसादा 1636 . 516 दृढः 2516,2626,2741 1802 | दृढमुष्टिः 442 1602 दृढ रथः / 22 513 दृतिः 1765 1416 दृषत् 1787 दृष्टम् 442 2457 दृष्टरजा: 800 2506 दृष्टि: 622 2210 देवः 47.486.1284 2278 देवकीसूनुः 282 1480 | देवकुसुम 1046 1200 देवखातकं 1612 825 | देवच्छन्दः 1066 / 2717 देवजग्ध 2150 दुली दुष्कृत दुष्टगजः दुष्टवृक: दुष्टसाक्षी . दूतः .. दूती . . दून: Page #621 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालायो देवत्वम् 1401 / देवाधिदेवः 67 देवान्नम् M0 61 6 देवी 522 186 -70 27,460 1674 1246 753 1212 767 1246 711 देवता देवताप्रणिधानं देवदत्तप्रजः देवदुन्दुभिः देवद्रयङ् देवनः देवन देवमन्दी देवप्रश्न: देवपादाः देवब्रह्म देवभूयं डेवभोज्य देवयोनयः देवरः देवलः देवलीयः देवलोकः देवशुनी देवश्रुतः देवस्रष्टा देवसायुज्यं देवसुनी देवाः देवाजीवी ~ देवानांप्रियः देवायुधः देवाहारः 674 753 देवीकोटः "देशः 166 | देशक: 381 देशरूपः 464 देशिक: 1417 देशितः 1401 देश्या 70 देहः 207 देहधारक 885 देहभाक् | देहभी. 622 देहभृतः | देहलक्षणं 2313 | देहली देहसञ्चारिणी 1518 | दैतेयः 1401 दैत्यगुरुः 2313 त्यदेवः 67,73 885 | दैन्यम् 1563 / दय॑म् 1008 2483 1560 2484 605 1734 337 110 1. G 1938 470 2602 Page #622 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 571 देवम् 2507 | द्यावापृथिवी 744 | द्यावाभूमी 1401 | द्युः 566 द्युतिः 566 द्युम्न 2783 1562 125,65 84,2753 1322,225 752 751 751 द्यूत द्यूतकरः यूद्यूतम् द्योः द्योतनं 625 947 947 1237 .2663 2500 504,726 2764 1555 दो : 6.5,164 द्रकट: द्रगडः दवज्ञः दैवतम् देवपरः देवप्रमाणकः देववादी दो दोलं दोला दोमूली दोषः दोषज्ञः दोषा दोषीका दोषकहक दोहदम् दोहदलक्षणं दोहदान्विता दौगूलः दोन्दुभि दौहृदं दौलेयः दौष्यन्तिः दौहित्रः .. द्यावापृथिव्यो 428 428 M. 0 0 0 x77 *UUU or or me 0 ". द्रप्सम द्रप्स्यम् द्रवः द्रविण द्रव्यम् द्रंष्ट्रिका 608 608 886,1335 224,1322 224 637 1907 2773 2073 द्रह 862 द्राक 2456 द्राक्षा 1136 द्राढिका ८६६द्रुघणः 1562 / द्रुणः 272.1865 * 2185 Page #623 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 572 सुशीलनाममालायां द्रुणा द्रुतः 1266 2185 | द्वा:स्थितः 1268 द्वादशाक्षः 422,2704 द्वादशाङ्गो 422 द्वादशाचिः 1156 267 352 108 2466 द्रुमः 1952 द्वापरम् 1224 1678 1727 1678 1678 द्वारवती - 2823 द्विकः 1072 ' 2265 1067 द्रुमालयः 1115 द्वारम् द्रुमोत्पल: 1933 द्वारका द्रुवयं 1481,1482 . द्वार यन्त्रं द्रोण: 1486,2185 द्वारावती द्रोणक्षीरा 2261 द्रोणदुधा 2261 द्रोणदुग्धा 2261 द्विः द्रोणा मुखं 1662 द्रोणवापः 1655 द्विककुत् द्रोणिकः 1653 द्विखण्डक: द्रोणी 1467.1784 | द्विकाः द्रोहः 2760 द्विगुणाकृतं द्रोहचिन्तनम् 2464 द्विजा: द्रौणिका 1655 | द्विजन्मा द्रौपदी 1156 द्विजब व: द्वन्दम् 2686.1326 858 | द्विजाति: 2686 द्वयष्टम् 1760 द्वा: 1725 द्वितयम् द्वा:स्थः 165.1176 | द्वितीय: द्वा:स्थितिदर्शक 1176 / द्वितीयाकृत 1653 638,2378.1311 द्वयम् द्विजिह्वः 1431 1311 564 2354 1161 2587 864 1654 Page #624 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 573 द्विदन् द्विधा द्विधागतिः द्विपः द्विपथम् द्विपद्यः 2276 | द्वेषा 2821 / द्वेषी 2455 | द्वष्यः 200 तम् विपृष्टः द्विवर्षा द्विमातृकः द्विमुखः द्विरजः द्विरसनः द्विरूढाः द्विरेफः द्विविधम् 2821 1161 682 2586 1200 1231 1413 262,873 2586 2056 224,2268 218 1551,1920 217 1774 735 1861 द्वं धम् 1216 द्वपः 1126 | द्वं पायमः 2265 द्वं मातुरः 873 2358 धन्तूरः धनम् 2357 घनके लिः घनञ्जयः 2186 धनदः 2373 धनदावासः 1161 धनवान् 2276 धनाया 1764 धनावहः 2364 धनिष्ठा 1684 1653 धनुः .2265 धनुर्भूत 72,1878 धनुष्मान् 1883 . 2322 घनेश्वरः 2686 / धन्यः 26 2003 द्विषन् 650 धनी द्विषड्दन्ती दिष्टम् द्विसहस्राक्षः द्विसीत्यं * द्विहल्यम् द्विहायनी द्वीपः द्वोपवती द्वीपी . . . द्वे. 552 101 635526 1266,105 2021 1260 1260 1266 218 758 धनू Page #625 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 574 सुशीलनाममालायां धन्या 630 | धर्मराजः . 208,334 धन्याकं 626 धर्मशास्त्रम् '362 धन्वतः धन्वाः 1565 धर्षिणी 838 घम्बी 277,1261,1152 धर्मात्मा 1160 धमनः 2153 धर्माधिकरणं 1181 धमनिः 612 धर्मोपदेशः 50 धमनी 1016 धवः 811 धरः 21.1768 धवल: 2530 धररिणः 1585 धवला , 2284 घरणी 1585 धवित्र 1126 धरणी 171 धाता 272 धरणीधरः 261 धात्री 864,1585,2084 धरणीप्लवः 1867 | धातुध्नं , 625 धरणीसुता 1141 धातुपुष्पिका 2053 धर्मः 13,2502 धातुशेखर 1826 धर्मक्षेत्र 1616 घातपुष्पिका 2053 धर्मचिन्तनम् 2511 धानकी 2053 धर्मधातुः धाना 568 धर्माधिकरणं 1182 धानुष्कः धर्मध्वजी धान्यम् 2106,2132 धर्माध्यक्षः 1182 धान्यक 626 धर्मनाभः 288 धाभ्याक 626 धर्मपालः 1285 धान्याम्लम धर्मपुत्रः 1148 धाम 1664 धर्मप्रचारः 1286 / धामम् r 1260 " 624 Page #626 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 575 धार: 2026 2026 1881 1881 1138 2277 2277 2277 2056 1235 2681,2661 453 26 1.1366 धुतुरः धारणा 1215 धुत्तूर! धारा 620,1232,1898 2253 | धुनिः धाराङ्गः 1283 | धुनी धाराधरः 1283 धुन्धुमारा घराधार: 167 धुरन्धरः धारासंपात: 168 धुरीण धार्तराष्ट्रः 2404 | धुर्यः धावक: 1542 धुस्तुरः धिक्रिया ___362 | धूः धिक्कृतः 668 | घूतम् धियाङ्ग / 1252 / धूपा धिषणा धूपायितः धिष्णः 106 धूपितः 1761 धूमः धीदा धूमल: धीनं 1761 धूमध्वजः धोन्द्रियं 2514 धीरः . 277,503 | धूमरी 1045 घूमल: * धीरत्वं 767 धूमिका धीरस्कन्धः 2314 | धूमोर्णा घोवरः 1553,1761 घूम्रः धीसखः 1173 धूम्या धोषणा 106 धूम्याट: धुतम् 2662 / धूर्जटि: धी: 2717 2717. 1834 428 1620 1864 धोरम् 1864 428,2538 1864 206 238,2538 2582 2416 Page #627 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 576 सुशीलनाममालायां धूर्तः धूर्त्तम् धूर्वहः धूर्ण धूलिः धूली धूलिभक्तं धूसरः धूस्तूर: धृष्णक धृष्णुः धृष्ण्यम् धृतिः धृष्टः धेनुः 62 2056.552 | धौरेयः 1763 धौरेयक: 2278 धौर्यम् 1235 ध्यानम् . 1658 ध्र वः 1658 ध्र वकः 816 ध्रवा 1548,2531. ध्र वाख्य 2056 ध्वजः 655 ध्वजनी . 655 ध्वजप्रहरणः . ध्वजी 453 ध्वनिः ध्वनिग्रहः, 2288 ध्वनितं 266 ध्वनि विकारः 1261.2203 2262 2556 नकुलः 2543 नकुना 1236.2255 नक्तम् 2585 नक्तक: 2253 नक्तमाल 2612 नक्ता 1086 नक्रम् 2254 / नक्षत्रम् 2278 2277 2254 61,472 270.1670 1670 1382 113 1223,1517 1217 1943 1517 2540 612 2553 2561 385 2803 2352,1555 248 2764 1066 2015 130 631,2448 62,75 धेनुका ध्वस्त धेनुका धेनुष्या धनुक धवतः धोरणं धोरणी धोरित धौतम् घौतकोशेयं धौरतिक Page #628 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 577 RIALLLLLLLLLLLLisinlandanabikane 2648 1826 मक्षत्रमाला नक्षत्रयोनिदेवता मक्षत्रवसुदेवता नक्षत्रवारुणी नक्षत्रेशः नखः नखरः / मखविषा: नखायुधः 1661 1073 / नतम् __67 नदः 1906 नदी 1881 101 | नदीजः 88 | नदीष्णः 507 नदीमवं 1588 नदीमातृकः 1626 2371 नदीशः 1868 2401 | नदीसर्जः 1653,1768 | नद्धः / नद्धी 1546 1683 ननन्दा 886 2387 ननान्दा 886 2376 ननु 2807 1522 | नन्दक: 852 नन्दनः 2161,1133,864 766,552 नन्दन 188 682 नन्दपुत्री 248 305 नन्दयन्ती 246 1833 नन्दा 26,248 नन्द्यावर्त 1956,1744,2446 1624 नन्दिधी 1154 1624 | नन्दिनी 866 नन्दी : 266,486,2111 1624 | नन्दीकः 2366 1624 / नन्दीमुखी 460 नगः नगरी नगरद्वारकूटक नगावासः नगोकाः नग्नहुः नग्ना नग्निका -नट: नटनं नटमण्डलं. नड: नडकीयः नडप्रायः / नहमीन: नड्वल: . . . 301 2153 . 2444 नड्वान् Page #629 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 578 सुशीलनाममालाया नन्दीशः नरमालिनी नप सक: 217 1018 215 238 नभः नभ.क्रान्ता नभश्वास: नभसितः नभसंगमः नभःस्थितः नभस्यः नभस्यितः नर्म 631 305 886 1886 2153 661 150 नभाव नभस्वान् मभोध्वजः नभोमणि: नभ्राट नमः नमिः नमुचिः नयनं नयनमीलनं नयनौषध 600 नरवाहनः . 164,2643 नरवारु: 2320 नरविष्णव: 1642 नराधार: नरायणः 2376 नरी 2468 नर्कुटं 151 / नर्त्तनं . 666 नर्मदा 1942 मलः 167 नलकीनी 83 नलकील नलकूवर: 2808 नलमीनः नलिनम् 181 नवम् 125 नवनवेयकाः 125 नवत 1826 नवनीत 1152 466 नवमल्लिका 2467 नवव्यूट: 1435 नवशक्तिः 34,336 नवसतिका 1123 / नर्वाचिः 223 2444 1858 76 1105 नरः नरक नरकीलक: 316,2044 281 281 नरदत्त: 2288 नरपाला Page #630 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 576 2070 2363 1254 587 मध्यम् मशनं नवीनं 2631 मागवल्ली नवोद्धृतं नागाधिपः नागोदं नाजः नष्ट: 1343 नाटक नमा 631 नाटिका नसीर 1330 नाटेयः मस्तितः 2275 नाटेर: मस्येतः 2275 नाट्यं मस्तोतः 2275 नाट्यप्रियः नहि 2803 नाडिः ना नाडिका नाकिनः नाडिन्धमः नाकुः 1656 नाडीचरणः नाकेशः 186 नाथ. नाग: 2186,2618,2363 मादः नागा: नानक नाराज 1766 नाना नागजिह्विका नानाप्रकारः नागदन्तः नानारूप: नांगमः नानाविधः 'नागमाता नान्दीपट: . नागरम् नान्दीमुखः नागरक्तक 1838 नापितः नागरङ्ग .. 2024 नापितशाला नागलोक: 2477 / नाम 510 1016 817 817 305 2380 1016 123 1526 2380 466 2540 1013 2785 2633 2671 2671 mr wr "1606 1608 .1716 .377 Page #631 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 580 सुशीलनाममालायाँ 202 नामधेयं नामवजितः नामसंग्रहः नामशेषः नामिः 374 760,1442 403 1584 नायकः नारं 1854 1532,212 नारकः नारकिका नारकीयक्ष 377 नासिक्यो 521 नास्तिक: नास्यं नाहला. 1232 निकटं 531,1053 निकरः निकषः 2467. निकषा 2465 निकर्षात्मज 2465 निक्करणः / 2024 निःक्वणः / 1417 निवारण: 1275 निकाम: 1563 निकाय / 281,1131 निकाय्यं 2060 निकारः 2060 निकुञ्जनं निकुरम्बः 2024 निमः 1778 निकृतिः 1758 निकृष्टं 1465 निकेतन 2764,477 निखर्वः 203 निखिल 631,1732 निगड : 631 / निगडित: 212 2702 2541 2541 2740 2566 1667 नारङ्गः नारदः नाराचः नाराची नारायण: नारिकेर: नारिलि: नारी नार्यङ्गः नालिकेरः नालिकेरजः नाविकः 1657 2563 0 560 2620 1667 662 नाश: नासत्यदत्री नासा नासिका 2224 Page #632 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 581 निगणः निगमः निगर निगलः निगसः निगम स्थितिः निगाल: निघण्टुः निघ्नः निघसः निचित निनुल निचुलं निचुलक निचोल निचोलः निजः नितम्बः नितम्बिनी नितान्तं नित्यम् नित्यगतिः नित्ययौवना 'निदाघः .. निदानं 1365 | निद्रा 1661 निद्राण 645 निधनं 2224 निधानं 1686 निघानेशः निध्यान 2250 निधिः 374 निधीश्वरः 528 निधुवनं 638 निनदः निनादः 2033 निन्दा 1096 निन्दुः 1066 2678 460 1994 476 226 218 925 226 218 858 2540 2540 362 845 1753 1906 505 371 457 ... 2680 ' 557 2771,828 1660,2726 1660 2657 निपः 1066 निपानं 1066 निपुणः 862 निबन्धः . 1783 निबन्धनं 867 निवृत्तं 2742 निवृत्तः 2674 1940 निबेशः 1156 निबेशनं 154,446 निभः 2756 निभं 2071 / निभालनं 125 निदिग्धिका Page #633 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 582 सुशोलनाममालायां 2676 निभृतः 653 / निरस्त निभति 525 / निरवग्रहः निमिः 41 निराकृत निमित्तं 2756 निराकृतिः निमित्तवित् 744 निरीशं निमीलनं 476 निरीषं निमेषः 628 निरुक्तिः निमेषा 122 निलयः निम्नम् 2478 निलिम्पा: निम्नगा 1882 निर्गण्टी नियमः 56,1406,1452 निर्गण्ठी नियन्ता 1240 निर्गुण्डी नियतिः 2507 निग्रन्थः , नियामकः 1505 निर्ग्रन्थदारु नियुद्धं 1338 निर्घोषः नियोगी 1173 निर्जरा नियोजकः 400 निर्जल: नियोज्यः 531 निर्वालाग्निः निरङ्कुशं 2666 निर्णयः निरञ्जना 248 निर्णिक्तम् निरगलं 2666 निर्दग्धः निरर्थकम् 2761 निदिग्धिका निरन्तनम् 2626 निर्देशः निरयः 2467 निर्बन्धः निरयावलिकोपाग 350 निर्वृत्तं निरस्तः 1275,386 / निर्वृत्तिः 2674 1432 1466 1486 368,362 1668 2282 2040 2040 2036 51,547 1377 2541 1622 1633 2467 2612 682 2077 2730 2704 46,2461 Page #634 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 583 625 130,627 133 2398 2427 2467 2668 1667 125 134 निर्वेशः निर्भरः निर्भावः निर्मदः निर्मल: निमुक्तः निर्मोकः निर्याणम् निर्यातनं निर्लक्षणः निर्वर्णन निर्वपणं निर्व्यथनं निर्वहरणं निर्वाणं निर्वाणी निर्वादः निर्वापणं निर्वासनं निर्वेदः निवसनं निवटः निवाकः निवास: निविडम् 88 536,1030 / निशमनं 2008,2742 निशा 46 / निशाकरः 2008 | निशाकारण निशाटः 2478,2476 निशाटनी 2376 | निश्चयः 1465, ,2217,46 निशातं 550 निशात्ययः 662 | निशान्त 626 निशामनं 574 निशामुखं . 2478 निशारत्नं 2757 निशावर्म 46 निशाह्वयः 34 निशितं 363 . निशीथ्या 550,574 निशीथः 551 निशीथिनी 473 निशुम्भः 1084 निशुम्भमथिनी 2564 निशेशः 2765 1667 निशौषधी 2626 निःशलाक 1411 निःश्रेयसं 2626 / निःश्रेरिण 137 136 2668 131 135 130 546,1135 or 251 88 1211 48. निवीतं निवीरसं. 1742 Page #635 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 584 सुशीलनाममालायां 2664 2664 2772 2772 2772 निःश्रेणी निःशोध्यम् निषङ्ग निषङ्गी निषद्वरा निषद्यः निषद्या निषादः निषादी निषाध: निपूदन निष्कः निष्कण्टकः निष्कषायः निष्क्रम: निष्कासितः निष्कारण 1742 / निष्ठूतः 2611 निष्ठ्य तः 1282 निष्ठ्य ति: 1261 निष्ठेवः 1604,131 निष्ठेवनं 2443 निष्णातः 1721 निष्पन्न 1507,15.81 निष्पाव: 1243 निष्प्रवारिणः 2545 निष्फल: 547 निष्फला 1808 निस्तरण 645 निस्त्रिशः, 2704 2771 1061 765 854 निस्राव: 547 558,1285 588 2540 2540 530 2540 2540 135 1684 निष्कनाथ; निष्त्रियः 2780 निस्वनः 667 निस्वानः 546 नि:स्व: 616 निस्वनः 536 निःस्वान: 1950 नि:संयाता 1971 नि:सरण नि:सारित: 2757 निह्नव: 563 नीका 2516 नीकाश: 386 नीच: निष्कुटः निष्कुटः निष्टयः 1584 निष्ठा निष्ठान निष्ठुरः 366 1602 2658 530,1580,564 निष्ठुरम् Page #636 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 585 1864 380 2665 2665 661 2631 2631 1080 2005 1606 214 2024 305 2387 नीचम् नीचा नीडः नीडोद्भवः नीतिः नीप: नीबारा नीबी नीबृत् .. नीबम नीरं नोरन्ध्रम् नीराजनं नीराजनविधिः नील: नीलकः नीलकण्ठः नीलगुः नीलागु नीलपङ्कः नीलमणिः नीलवस्त्रः नीलवस्त्रा नीलवासा * नीलीरोगः नीलोत्पलः नीलोत्पल लाञ्छनः 2566 नीहारः 461 , नुतिः 2385 नृतम् 2380 नुन्नम् 1212 भ्युब्जः नूतनम् 2121 नूत्नम् 1067 नूपुरं नृचक्षा: 1737 | नृजलं 1854 नृत्यम् 2626 नृत्यप्रियः 1306 नृदघ्नं 1306 तृधर्मा 2537,227 नृपः 2241 नृपलक्ष्म 2387.231 नपशय्या 2167 नपासनं 2167 नृपमन्दिरं 137 नृयज्ञः 1845 नवेष्टकः 306 246 नृशंसकः नेकी 733 नेता 318 नेत्र 2365 / नेत्राम्बु 217 1123 1168 1167 1167 1701 1370 235 558 187 531 122 452 Page #637 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 586 सुशीलनाममालायां 270 745 . नेदिष्ठं 2636 न्यञ्चितं 2663 नेदीयः 2636 न्यादः नेपथ्यं न्यायः 1212 नेपाली 1635 न्यायः 1212 नेमः 2608 न्याय्यं 1213 नेमिः 1232,13,1608,2023 न्याय द्रष्टा 1174 नेमी 1608 न्यासः नैऋत 212 भ्यासार्पण 1474 नैऋती 176 पक्व 617,270 नैकसेयः 213 पक्वलवणं 1566 नेपाली 1835 पक्वणः 1720 नैमित्तः पक्वान्न 617 नैमितिकः 744 पक्ष: 110,2383.1280 नमेयः 1452 पक्षकः 1730 नैयायिका: 1441 पक्षतिः 140,2383 नरयिका: 2465 | पक्षद्वार नैसर्पः 227 पक्षभागः नस्त्रिशकः 1256 | पक्षमूलं 2383 नंषिक: 1180 | पक्षान्तो 140 नोः 1507 पक्षिणी 134 नौकादण्डः 1567 पक्षिसिंह 327 2566 पक्षिस्वामी 327 न्यक्कारः 666 | पक्षिलस्वामो 1427 न्यकृतं 668 पक्षी 2378 न्यक्षम् 2606 पङ्क .. 1604,2506 न्यग्रोधः 1986,664 | पङ्कक्रीडनकः . 2325 1730 2221 न्यक Page #638 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 587 पङ्कजन्य पङ्कजः पट: 370 1083,2021 1768 पङ्कजिनी पङ्घरुट 2565 1008 पङगुः 1102 567 पगुलः पङ्क्ति पञ्चकृत्वः पञ्चत्वं पञ्चदस्यो पञ्चधा 471 पञ्चनखः पञ्जिका 2062 2086 पट्टम् 2062 2062 | पट कुटी 686 पटःचर 686,2247 पटचोरः 2585 पट्टनं 2823 पटलः पटवासवः 140 पटहः 2822 - पटाका '2318 पट्टिशः पटुः 2543 पटोलिका 242 1436 पण्डा 466 पण्डित: 107 पण्डुः 1817 परणः 316 पणाङ्गना 651 परणवः 2318 परणास्थिकः 76 पण्यम् 1743 पण्यवीथिका 1505 ' पण्यवीथी 1660 1736 1026 1326,425,426 1223 1266 505.570 2146 752,886 455 502 658 पण्ड: W पञ्चभद्र. पञ्चमः पञ्चमुखः पञ्चयज्ञः पञ्चयक्षः पञ्चर्षिः पञ्चलोहः पञ्चवारणः पञ्चशाखः पञ्चशिखः 'पञ्चानुत्तरगा पञ्चालिका पञ्जः x 846 427 2174 1455 1663 1663 Page #639 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 558 सुशीलनाममालाया 1160 पण्यशालं বহাল पण्याजोवः 1260,2382 1281 1262 1280 1063 1262 पतगः पतङ्गः पतङ्गिका पतञ्जलिः पतत्रि पतत्रो: पतद्ग्रहः पतद्ग्राहः पत्तनं 1062 1062 1062 2378 608 1721 | पत्यर्थी 1721 पत्रम् 1446 पत्रणा 662 पत्रपरशुः 2378 पत्रपाल: 1038,2378 पत्रपाली 2168. पत्रपाश्या 1422 पत्रकला 2378 पत्रबल्लि: 2378 पत्रबल्ली 1111 पत्रभूषणं 1111 पत्ररथः 1660 पत्रलं . 2378 पत्रलता 2383 पत्रवाहः * 676 पत्राङ्गम् 1233 पत्राङ्गली 1217 पत्री 1247 पत्रोण 2131 पथिक: 806.531 पथिसार्थः 1342,2111 पदम् 843 पदग: 601 पदाचरा 886 पदभञ्जनं 776,1220,1224 / पदभञ्जिका पतन 1061 1274 1037 1062 2378 1086 पतत्रम् पतयालुः पताका पता किनी पताकी पताल: पतिः पतितः पतिपत्नी पतिम्बरा पतिसोदरा पत्ति: 768 344,963,1664 776 1543 344 370 Page #640 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 586 KAMALAiiiike 2711 2353 1544 2411 1857,605 607 671 1186 2614,2640 534 1665 527 पदाजिः 776 | पन्नम् पदाति: 775 पन्नगः पदागिः 775 पन्नद्धा पदायता 1544 पप्पीहः पदायिता 1544 पयः पदिकः 776 पयःपक्वं पदेद्यवि. 2817 पयोधरः पङ्गः 776 पयस्य पद्धतिः 371 परः पद्मः 1127,1133,155,226 परम् पद्मगर्भः 264 परजातः पद्मनाथ: परत्यं पद्मनाभः .276 परतन्त्रः पद्मनालं 2101 पर पिण्डदः पद्मनी 2086 पर पुष्ट: पद्मप्रभः परब्रह्मधारिणी पद्मभूः 273 परभागः पद्मरागः 1843. पद्मवासा:. परमम् पद्मा 280,306 | परमदः पद्माकरः 1913 पामरस: पद्माट: 2085 परमानं पद्मात्मजः 1127 परमार्हतः पद्मावती 355 परमेश्वरः पद्मी 2000 परमेष्ठी पद्म शयः 287 / परम्परः x 534 2362 | परभृतः 254 2500 2363 2804 1035 612 w 0 1160 0 44 870 477 Page #641 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालाया 527 . 1461 2615.2640 2186 278 2252 परम्पराक 1383 परायणः परलोकगमः 477 | परायत्तः परवशः 527 परावतः परवान् 527 परार्द्धम् पर:शतः 2560 परराय॑म् * परशुः 1265 पराबुर्दः पराविद्धः परशुरामः 1416 परावृत्त परश्वधः परास परश्वधातुकः परासने परश्वः 2813 परारकन्दी परस्परं 2728 परिकरः परस्वेहो | परिकम पराक्रमः 276,1322 1207 | परिकर्मा परागः 80 परिकर्मी पराङ्मुख 2613 परिकूट पराचित: परिक्रमः परिक्षिप्तः पराचीनं 2613 परिखा पराजयः 1337 पराजितः 1340 परिचयः पराधीनः 527 परिचर्या परान्न: 533 परिचर: पराभवः परिवारक: पराभूतः 1340 / परिच्छन्दः परायण 1366 | परिजनः 1800 1172.546 565 10041163 353 1026 652 x m m u m ur 9 mr - 2731 2731.2660 909x परिग्रहः 2755 774 1247 Page #642 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भनुक्रमणिका 2603 810 2686,1340 2527 1242 565 3744 157 161 1453 1166 363 परिणतं परिणयः परिणायः परिणाहः परिणेता परित: परित्यागः परिवाणं परिदानं परिदेवनं परिधः परिघातं परिधान परिधिः परिधिस्थः परिपरण: परिपन्थः परिपन्थिः परिपाटी परिप्लुता परिबर्हः परिब्रज्या परिभद्रादिः . परिभवः. परिभावः / परिभाषणं 2701,2207 / परिभूतं 613 | परिमल: 755.2766 परिमुक्तः परिमोषी परिरम्भः 2788 परिवत्सरः 1207 परिवर्तः 2736,1016 परिवर्तन 4,1453 परिवहणः 398 परिवसथः परिवाद: 1266 परिवापर्ण .1063 परिवार: परिवाहः 1247. परिवढ: . 1451 परिवेष्टितं 1160 परिवेषः 116 परिव्रता 2738 परिशिष्टम् 1518 परिश्रमः 1163 / परिष्कृत 57 परिष्कारः 2163 परिसरः 666 | परिसर्गः 666 परिस्कन्द: 396 / परिस्तोम: 1562 1163,1288 1601 531 2680 838 371 471 2680 1052 2131 533,1163 1105 Page #643 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालाया . 1517 / पर्पटी 1074 पपरी 586 पर्परीटः 1912 612 1625 740 परिस्र ता परिहार्यः परिहास: परीक्षक: परीत परीरम्भः परीवारः परीवाहः परीहास: परु: 1288 परुत् पष: 2680 पर्बणी 140 2744 पर्बतः 1767 पर्बतजा 1883 1601 पर्बताधाग 1560 886 पबमूल 141 86 पर्बयोनिजी 2164 2816 पर्वसन्धि . 141 2520 पर्यङ्कः 386 पर्यञ्चन 554,2465 पर्यन्तम् / 2815 पर्यन्तपर्वत: 1785 533 पर्यनुयोग. 381 2427 पर्यन्यः 86 पर्यवतथ्या 72, 1666 | पर्यस्तिका 1004 1704 पर्येषिणा 1704 1265 | पशुक 1012 2546 पशुपाणि: 262 567 पशुरामः 1416 1827 पलम् 1002,72.1484.2131 86 पलकः 2233 परुष परेत: परेद्यवि परंधित: परोष्णी पकंटी पर्ण. पर्णशालं पर्णशाला पर्णीः पर्दनम् पर्पट: पर्पटीः 1064 775 पर्व Page #644 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 563 واهو 487 1336 पलाशी 54 1566 पलगण्डः 1556 | पवित्रं 1410,2151,2610,1764 पलकषः 2020,2318 | पशु 2301,241,2168 पल कषा 2075,1116 | पशुक्रिया पललं 1002 पशुधर्मः 857 पललज्वरः पशुनाथः 241 पल्लवक: पश्यं 1519 पलाग्निः / 707 पश्यतोहरः पलायनं पष्ठीही 2284 पलायितः 1341 पाकः पलाशः 2533.1666,72 पाककुटी 2715 पाकशुक्ला 1760 पलिक्नी 852,2363 पाकस्थानं 1712 पलितम् प्राक्यं पाक्यः पलिया 1601 1295 पाखण्डी 1431 पल्ली पाचनः 2523 पल्यङ्कः 1904,1110 पाञ्चाली पल्ययनं 1157 2253 पाञ्चजन्यः 333,300 पल्वल: 73 पाट् 2800 पल्वलां 1914 पाट: पब: 2771 पाटकः 1640 पवनः 1932 पाटचरः 2771 पाटल: 2107.2444,2533 पवनवाहनः - 1922 पाटला 203. पवनी . . 1745 पाटलिः 2030 पवमानः . . . 1632 | पाटलिपुत्रम् 1673 पवि: 200,1624 | पाटित 2344 पवनं Page #645 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशील नाममालायां 768 66.663 1081 1082 775 1545 1545 1080 1230 54 पाठक: 53 / पात्रीयं पाठीन: 2442 / पाथ: पाणिः 815 पाथेयं पाणिग्रह पादः पाणिग्रही: 610 पादकटक कारिणग्राहः पादकीलका पारिसहीती पादग्रहणं पाणिजः 656 पादचारी पारिणः 1565 पायज : पाणिपीडनं पादत्राणम् पादनालिका पाण्डरः 2531 पादपः पाण्डकम्बली पादपाशः पाण्डरपृष्ठः पादपालिका पाण्डवाः पादपीठं पाण्डवायना पादपीठी पाण्डवेया: 1156 पादबीथी पाण्डः पादबल्मीक पाण्डुरभूमः 1620 | पादमूलं पाण्डुरमृत्तिका 1616 पाद्यम् पात | पादरक्षणं पातकं. 2506 पादशाली पातालं 2477 पादस्फोट: पाताल: पादाः पातालोका। 337 पादाग्रज .. 1888,481,1381 पादाङ्गुलीयं . 2224 1082 1172 1151 2531 1543 714 114 780 1544 ܘܟܘ ;] . 715 1785 1080 1083 Page #646 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 776 पारगतः 776 पारतथ्या 1063 1818 775 पारदः पादाजिः पादातः पादातिग: पादावरी: पादुका पादुकाकृत् 1780 732 1761 1507 पानः पानं पानगोष्ठिका पान माजनं पानवणिक पानीयम् पानीयनकुलः पानीयशाला पान्थ: पापम् 1256 1256 . 876 2431 पारम्पय्यः पारयात्रिका 1543 / पारयितः 1544 पारश 2488 पारशवः 1602,84 पारशोभः 1528 पारश्वधः पारश्वधिकः . 1516 पारस्त्रणः पारावत: पारावारः 1716 पाराशरी 767 पाराशर्षः 2506,2661 पारिकर्मिकः 558 •पारिकाङ्क्षिः पारिकाक्षी पारिजातकः . 1580 पारिपन्थिकः 1831 पारिपार्श्वकः / 1461 पारिप्लवं पारियानिक 988 पारिहार्य 1888 पारिरक्षकः 1347 2413 पाप: 1570 1187 1347 1347 2018 567 पापद्धिः पाप्मा पामरः. पामा. पामारिः पायं पायसं पायुः पारं 486 2646 1226 1074 1347 Page #647 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 566 सुशीलनाममालापां 2316 2356 1166 1.22 पारिषद्या: 742 / पिचमर्दः .. 2007 पारिन्द्रः पिचव्यः 2010 पारीन्द्रः पिचिण्डल: 684 पारीन्द्रः पिनुः 2010 पाणिग्राहः पिचुमदः 2008 पार्थः 1151 पिपुल: 2003. पर्थिवः पिच्छः 2383,2382 पार्यातथ्या 1063 पिच्छिल 2621 पार्वती 1927 पिजः 550,2127 पार्श्वम् 2580 पिजनम् 1538 पार्श्वः पिन्जर 2435 पावकः 731 पिञ्जर 1833 पाश्र्वभक्षक: 31 पिजल: 542 पार्श्वस्थः 486 पिजूषः 1021 पार्षदाः 782 पिटकः 715.1750 2362 पिण्डः 642 601,1840,1761 पिकबान्धवः 154 | पिण्डकः 1046 पिक्कः 2202 पिण्डदानं 1346 पिङ्गः 2536,2316 पिण्डाक: 1546 पिङ्गलः 2160,2352,2236 पिण्डिका 1232,662 पिङ्गकशिपा 2177 पिण्डोलि: 644 पिङ्गुः 2316 पितरः पिने क्षणः 241 पिता 860 पिच्चटक 1800 पितामहः 270,861 पिचण्ड: 673 | पितृगणः . 255 पिचनामा 851 / पितृगृहं 1665 पिक: Page #648 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका पिसृभूः पितृतर्पणं पितृवनं 287 पितृव्यः पि पित्तलः पित्र्यः पिण्या: वित्सरः विधानं पिनद्धं पिनाकं पिपासा पिपासितः पीडनं . 128 पिशिताशी 647 556 पिशुनः 1043,564,1417 1665 पिश्निः 262 884 पिष्टक: 563 पिष्टकं 2481 1813 ष्टित्तिः 565 882,141 निष्टातः . 1026 पिहित 0673 2378 पीठं / 1356 1114 2684,1767 पीठमदः 485,689 * 1248 पीडा 2462 पीत: 2532 585 पीतकावेरं पीतत"डुल: 2121 पीतदुग्धा 2262 1021 पीतन 1833,1044 2126 पोतनीलः 2533 972.1858 पीतरक्तः 2435 1537 पीतलः 2532 पीतलोहं 1214 पतिसारक: 2026 1021 पीतसाल. 2026 2021 पीता 627 2536 पीताम्बरः 278 73 पीताब्धिः 115 1002 / पीनोनी 2044 पिपासुः 584 633 पिपीका पिपीलिका पिप्पल: पिप्पलकः पिप्पली पिप्पलीमूलं पिपिका पिपालः पिशङ्गः पिशाचा फिशित 2261 Page #649 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 568 सुशीलनाममालाया पीथः पीन: 758 2163 2163 864 866 1743 866 866 601 2761 421 681 पीवा 1923 पुण्यात्मा. 681 पुतारिका पीनस: 720 पुत्तिका पीपिलिका 2176 पुत्रः पीयूषं 606 पुत्रपुत्रः पीलकः 2176 पुत्रिका पोलुः 2020,2202 पुत्री पीलूपर्णी 2138 पुत्री प्लीहा 676 पुद्गलः पीवरः पुनः पीवरस्तनी 2261 पुनर्दण्डः 681 पुनर्नवः पुक्कसः 1581 पुखः पुनर्वसु 2565 पानाग: पुमान् पुट: 1031 पुटकिनी 2064 पुट भेदनं 1660 पुण्डरीकं 2316,2322,2065 पुण्ड्रम् 1056,2155 पुरस्तात् पुण्ड्रकः 2041 पुरस्सर: पुण्यं 2600,2506 परहम् पुण्यवान् 750 पुरा पुण्याजीक: 1515 / पुराण पुनर्भवः 1281 | पुनर्भू पुङ्गवं 2617 1745 पुट पुरः पुरोगामी पुरच्छन्दः पुरन्ध्री 656 833,65 66,1423 2761 466 601 2788,1722 2301 527 805 * 2788 777 2562 2767 2332,365 Page #650 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 569 2632 | पुष्कलं 1187 | पुष्करः 374 पुष्कसः पुरातन पुराध्यक्ष. पुरावृत्तं पुरीत परीततिः पुरीष 2562,2617 2062,1855 164 1581 2000 76.1014,855 1406 976 पुष्करी पुष्प 1672 2612 1826 1824 351 परुषः पुरुषद्वयस पुरुषोत्तमः पुरुषपुण्डरीका पुरुषव्याघ्रः पुरुहम् पुरूरवा पुरोगः पुरोगमः पुरोगामी पुरोधाः पुरोभागी पुरोहितः पुलंक: .. पुलका पुलस्त्यः पुष्पदन्ती 110 1036 पुष्पक 2562 पुष्पक: 2483 पुष्पकरण्डिन पुष्पकरिणी 10 पुष्पकाल: . 1131 पुष्पकासीन 2421 पुष्पकेतनः 2592 पुष्पकेतुः पुष्पचूणिका 2614 .777,2614 पुष्पदाम 309,777 पुष्पध्वजः 1175 पृष्पन्धयः पुष्पफल: 175 446 पुष्पमाला पुष्परजः पुष्परथः 117 पुष्पलिट 1876 पुष्पवन्ती 1584 पुष्पबन्तो 1055 6.Ci 2185 167 2058 .1056 80,1045 1225 1515 2185 पुलहः पुष्पलावी पुलाकी . पुलिनं. पुलित्ः . Page #651 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालायां 1117 2400 पूर्णकुम्भः 51 पूर्णपात्रं 675 पूर्णानकः 154 पूर्णिमा पूणिमारात्रिः पूर्त 1001 142 853 .1360 ur पुष्पवर्धन: पुष्पवीटी पुष्पसः पुष्प साधारण: पुष्पहीनाः पुष्पाञ्जनः पुष्पास्त्र: पुष्पिका पुष्पिकासज्ञिक पुष्पिता पुष्येषुः पुष्यः पुंसवनम् पुस्तम् 1014 पूर्वजः पूर्वफल्गुनी पूर्वभाद्रपदा पूर्वरङ्गः W mom is m ~ 102 507 | पूर्वा 1770 354 पूग: 175 126,2814 563 81 131 380 पूतना पूताचि: पूतिगन्धिः पूपः पूपिक: | पूर्वादिः 1556 पूर्वायोगः 1660 पूर्वेतरा 2068 पूर्वेयुः / 2133,2610 पूलिका 266,2036 पूषा पृच्छा 2528 पृतना पृथक पृथगात्मिका 1866 पृथगात्मता 466 पृथगजन: .. 2678,2606 पृथग्विधः 816 / पृथिवी 1217,1221 2785 2756 563 पूर: 1580 2671 पूर्ण पूर्णकलश 1586 Page #652 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 1745 45 'पृथवीशक्रः पृथ्वी पृथुः पृथुपः पृथुरूपः पृथुरीमा 987 2630,2565 2630 1006 570,2625 पृथुलं पृदाकुः 324, . पृश्निः पृश्निगर्भः पृषतः पृषकः / 1004 पृषत् 0 / . 1123 | पेडा 26,1586 | पेढालः 1921,2601 पेयूषं 468 | पेलकः 2671 पेलव 2440 पेलवान् 2601 पेशं पेशल: 84,701 पेशी 262,265 पेशीकोष 2336.1804 1272,1804 | पैश्या | पज्जूषः 1939 पठरं - - 1625 | पैलवः 2276 पैशाची | पोटा पोट्टिलः 2276 पोतः 2305 पोतजा 2220,2398 | पोतवरिणक 2200 2200 पोतोपानं 2127 पोलिका 1745 2563 | पोलिन्दा 1745 | पोली पृषदश्वः पृष्ठः पृष्ठ्यः . 1357 Y roar पृष्ठ मांसादनं 967 पृष्ठवंशः पृष्ठवाह्यः पृष्ट्यशृङ्गः पंचकः पेचकी 412 848,851 * 45 1465,2205 2461 1465 1465 2446 पोतवाहः पेचिल: पेजकः . पेटकः / 563 पेटकं पटा 1466 563 Page #653 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 602 सुशीलनाममालाया 1650 प्रक्रिया पोषयित्नुः पौण्णं पौण्ड्रकाः पौतवं पौत्तिक पौनर्भव: पोरः पौरकः पौरस्त्यं पौरिक: पौरुषं पौरोगवः पौर्णमासी पौलस्त्यः पोलि: पौलोमी पौलोमीशः पौषः पौष्पकं 2363 | प्रक्वणः . 257 103 प्रकाण्ड: 2616,66 2155 प्रकाम 2740 1481 प्रकार: 2658 2162 प्रकाश 2666,85,2657 875 प्रकाशित 2686 307,2150 | प्रक्वाण 2557 . 1214 2652 प्रकीर्णकः - 2233 1187 / | प्रकुरणं 41.1 1208,665,1015 प्रकुष्माण्डी 250 1178 प्रकृतिः 2501,1163 142 प्रवेणनः / 1275 216,1145 प्रकोष्ठ ... 650 प्रखलः 162 प्रख्यः 166 प्रख्यातवक्तृकः 147 प्रगण्डः . 650 प्रग्रहः 2666 प्रगल्भः 246,508 2686 प्रगल्भता 436 1938 - प्रगाढं 2462 2748 प्रग्रीवः 1736 2563 / प्रगुणः 2647 367 / प्रगे 126,2764 312 / प्रघणः 1735 783 1824 प्रकट प्रकटितं प्रकम्पनः प्रक्रमा प्रकरः प्रकरणं प्रकर्षक: Page #654 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 808 8.6 546 762 1602 1168 2737 721 620 1376 “प्रघनं प्रघारण: प्रघातः प्रच प्रचलायितः प्रचुर प्रच्छन्नं प्रच्छादनं "प्रच्छादनपट: प्रचदिका प्रजननं प्रजनुकः प्रजा प्रजाकरः प्राजाप: प्रजापतिः प्रजावती प्रज्ञः प्रज्ञप्तिः प्रज्ञा :: प्रज्ञात: 'प्रज्ञापनाह्वयं * प्रजुः . प्रटीना . प्रणतिः * प्रायः 1326 / प्रणयिनी 1735 | प्रगायी 1325 प्रणव: प्ररण सनं 672 प्रणादः 2562 प्रणाय्यः 1730 प्रणाली 1061 प्रेरिणधी: . 1066 प्रणिपात प्रणीतं 985 प्रणीतः | प्रततिः 867,782 प्रतनम् 1285 प्रतानः 1123 | प्रतारणा 272 प्रतिकर्मा 205 प्रतिकायः 686 प्रतिकाशः 336 | प्रतिकूलं 454 प्रतिकृतिः 2716 प्रतिक्षिप्त 346 प्रतिक्षिप्ता 666 प्रतिग्रहः 2384 | प्रतिग्राहः 2737 प्रतिघः 576,654 / प्रतिघातनं 2632 -956 562 1028 2660 2657 2663 2660 2678 1111 438 546 Page #655 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 604 सुशीलनाममालाया ........... प्रतिचरः प्रतिच्छन्दः प्रतिच्छाया प्रतिजः प्रतिजागरः प्रतिज्ञा प्रतिज्ञात प्रतिश्नम् प्रतिध्वनिः प्रतिनिधिः प्रतिपक्षः प्रतिपत् प्रतिपन्न प्रेतिवद्धः प्रतिबन्धः प्रत्तिनप्ता प्रतिभय प्रतिभा प्रतिभानं 534 / प्रतिरोधक: 2661 प्रतिलम्भः 2661 प्रतिलोमं 661 प्रतिवचः 2765 प्रतिवसथः प्रतिवाली 2707 / प्रतिबिम्ब 573,1454 प्रतिशासनं 2561 प्रतिशिष्टं प्रतिश्यायः / 1190 प्रतिश्रयः 140,455 प्रतिश्रव: 2723 / प्रतिश्रुतं' प्रतिश्रुत् 2727 प्रतिष्टम्भं 870 प्रतिष्ठ: प्रतिसः 454 प्रतिसर्जकः 2220 प्रतिसीरा 1478 प्रतिसूर्यः 2657 प्रतिसूर्यशयानक: 2660 प्रतिहतः 508 | प्रतिहासः 2660 प्रतीकः 2661 प्रतीची 2661 | प्रतीचीनं 2766 2663 380 1636 1728 661 401 2715 720 1717 402 2708 2561 2727 21 1074 प्रतिभूः 1106 2343 2347 प्रतिमः प्रतिमा प्रतिमाचितः प्रतिमानं प्रतियातना प्रतिरूपं 2002 605 175 177 Page #656 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका प्रतीच्यः प्रतीतः प्रतीप्रदशिनी प्रती प्रतीरं प्रतीहार: प्रतीहारी प्रलम् प्रत्यक् प्रत्यग्रम प्रत्यग्रगाथा प्रत्यनीकः / प्रत्ययितः प्रत्याकारः प्रत्याख्यात प्रवादः प्रत्यादिष्टं . प्रत्यालीढं प्रत्यासारः 678 | प्रद्युम्नः 2715 | प्रद्योतना 762 प्रद्रावः 1336 प्रधानं 2615.1173,1175 1878 प्रधानी 1767 1725 प्रधिः 1176 प्रपञ्च: 2604 2263 प्रपद 177,2824 प्रपा 1716 - 2631 प्रपात: 1870 प्रपितामहः प्रपुनरः 2025 1166 प्रपुनाडः -2065 1285 प्रघुनाल: 2065 357 प्रपुनार 2065 2678 प्रपुन्नाल: 1270 प्रपौत्रः 870 1216 प्रफल: 126,2715 प्रबन्धः 2747,2776 प्रबहम् 2352,2715 | प्रवाल: 421,74,1847 2652 | प्रबुद्धः 83,503 प्रवेशः 1123 प्रभविष्णुः 954 प्रभवस्वामी - 10 135 / प्रभ्रष्टक 83 प्रथितः प्रथमः प्रदिक प्रदीपः प्रदेशिनी प्रदोषः Page #657 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालायां प्रभा प्रभाकरः प्रभाव प्रभावती प्रभासा प्रभीत: 1331 2765 471 1458 2757 प्रभुः प्रभूतं प्रभूष्णुः प्रभृतं प्रमथनम् प्रमथा प्रमथाधिपा: प्रमदवन 85,252 / प्रयातः प्रयामः 1208 / प्रयास: 418 | प्रयुतं | प्रयोजन 554 प्ररोहः | प्रलम्बध्नः 2562 प्रलम्बभित् 763 प्रलम्बाकः, . 1446 प्रलयः 550 प्रलापी 246 | प्रह्लादः 261 प्रवरण: प्रवयरणं 786 प्रवयाः प्रवरं 550 / प्रवरवाहनो प्रवलिका 862 प्रवहः 2512 प्रवहणं 547 प्रवाक् प्रवासी 2614 / प्रवाहः 466 | प्रवाहिका 466 / प्रविदारणं 1311 / प्रवीणः 304 205 668 161,452 304 1135 571 1502 500 1034,2614 273 प्रमदा प्रमना: प्रमयः प्रमर्दनः 264 2758 1227 प्रमातामहः प्रमादः प्रमापरणं प्रमीला प्रमुखं प्रमुदः प्रमोदः प्रयाण 767 1868 - 724 1325 505 Page #658 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 607 प्रवृत्तिः 1313 2716 प्रवेकं प्रवेणिः 2224,863 प्रवेणी प्रसूतिः / 867 860 77 1488 1702 2666 661 प्रवेता प्रवेष्टव्यं प्रवेसनं प्रव्यक्त प्रशस्तं प्रशंसा प्रश्न: प्रश्नव्याकरणं प्रश्रवणः प्रश्रितः ஏன் प्रष्ठवाट प्रष्ठोही 376 | प्रसार 2720 प्रसिद्धः | प्रसीदिका 913 प्रसूः 613,1105 1240 प्रसूतिका 647 | प्रसून प्रसृतं | प्रसृता प्रसृतिः 360 प्रसेवक: 380 - प्रस्कन्नः 347 प्रस्तरः प्रस्तारः - 653 | प्रस्ताव: 2614 प्रस्थः 2275 / प्रस्थान 2284 प्रस्फोटनं 1518 | प्रस्मृतं 711 | प्रस्रवबन्धनं 1313 | प्रत्रवः 153 / प्रस्रवणं 863,76 / प्रस्रावा 1028,1702 | प्रहरः 774 | प्रहरणं 1120 / प्रहर्षल: -911 1536,421 774 1108 1948 2748.337 1486.1787 1311 1747 2720 प्रसन्नः प्रसरः प्रसरणं प्रसल: . प्रसवः * प्रसादनं प्रसादना प्रसाधनः 586 1916,1776 1021,586 135,1273 1326,1264 107 . Page #659 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालायो प्रहसनं प्रहस्त: प्रहासी प्रहिः प्रहितः प्रहेलिका प्राक 826 1174 1636,1644, 1322,2486 1001 1855 809 808 1544 प्राकाम्यं प्राकार: प्रागल्भ्यं प्राग्रयः प्राग्रहरं प्राङ्गणं प्राघारणः प्राघूरण: प्राणिकः 410 / प्राज्ञा: 656 प्राजी 486 प्राइविवाक: 1907 प्राण: 560.1275 प्राण 2652.2812,177 प्राणदं 2824,2767 प्रारणतकल्प: 246 प्राणयमः . 1676 प्राण समः 767 प्रारणसमा | प्राणहिता 2604 प्राणायामः 1724 प्राणावायप्रवापः प्रारिणधूत 778 प्रारिपघानं 778 174 प्राणेशः 177 प्रातः 1618 प्रातराशः 1502 प्रातिहारिकः 870 प्रादुः 1126 | प्रादुष्कृतं 1240 प्रादेशः 2562 प्रादेशनं 502 / प्रापरिणकः 60 1735 प्राणी प्राची प्राचीनं प्राच्यः प्राजनं प्राजाता प्राजापत्यः प्राजिता प्राज्यं 357 755 2505 2484 805 2764,126 641 1565 2803 2686 658 574 प्राज्ञः Page #660 -------------------------------------------------------------------------- ________________ মনুলফিকা 609 प्राप्त 502 प्राप्तरूपः प्राप्तिः प्राब्द प्रावृषायणी प्राभृतं प्रायः प्राया प्रारम्भः . प्रालम्ब प्रालम्बिका प्रालेयं प्रावरणं प्रावारः प्रांशुः प्राश्निका 1213,2710 | प्रियकः 2026,2336,2045 | प्रियङ्गुः 2045,1044,2122 247 | प्रियदर्शनः 2423 156 प्रियमधु 307 2054 | प्रियंवदः 519 1203 | प्रियवाक् 511 2786 प्रियवाक्यं 382 प्रियवाटिका 429 प्रियसत्वं 382 प्रिया 908 1067 प्रियाल: 2021 1863 प्रीहनं 2035 प्रीतिः 466,2503 1062 | प्रीतियः 481 2568 1237 प्रेवा 2683 1294 | प्रेखितं 2692 753 प्रेखोलनं 2623 1234 | प्रेङ्लोलितं 2612 197 प्रेतः 1702 | प्रेतवनं 1258 2465 1245 | प्रेत्य 2786 126 | प्रेम 2503 906 प्रेमवती 909 2624 / प्रेयसी 08 प्रासः प्रासकः प्रेताः .. . प्रासङ्गः प्रासादः प्रासादं प्रासिकः प्रारिकाः प्राले प्रियः प्रियं Page #661 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 610 सुशीलनाममालाया प्रेयान् प्रेषित 2375 प्रेष्ठः प्रेष्ठा 2356 533 548 प्रेष्य प्रेसगृहं प्रोक्षणं प्रोज्जासनं प्रोत: प्रोथम प्रोथी प्रोष्ठपदा प्रोष्ठी प्रौढः 2070 1286 26271685 1654 2046 1656 106 / प्सान 2714 | फट: 810 फरणः 808 फराधरः फरण भन 1665 फरिणलता 1383 फरक फल 1084,2705 फलदी, . 2250 | फलपूर: 2232 फल बन्ध्यः 102 फलभूमय: 2444 फलवान 508 फलिनः 2720 2287 फमेरुहः फलोदयः 150 फल्गु 2800 फगुनाल: फल्गुनिकः 2457,1581,1471 फाण्ट 2434 फाणित 2458,2334 / फाल 2334 / फाल्गुन 2458,2334 फाल्गुनात्मजः . 976 | फुल्ल 1660 प्रौढं फली 2030 प्रौढवस्त्रा प्रौढिः प्रौष्ठपद: 438 2627,1611 147 प्याट् प्लक्ष: 147 2663 प्लवगः 1088,1764 1153,147 प्रवङ्गमः प्लीहा 1983 Page #662 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 6111 1876 फुल्लक फैनः फेरण्ट फेरव: फैरु. . फेला फेलि. फैलिन बकः बकुल: चकेरुः बकेरुक: 444 | बन्दीजनः . वन्धः 902 2330 बन्धकी 84. 2330 बन्धनं 2330 बन्धनग्रन्थि! 1578 बन्धुः बन्धुकपुष्पं 2029 2007 बन्धुल: 878 2417 बन्धुरा 84. 1965 बम्ध्यं 2761 1965 बभ्रुः 276.60 1965 | बकरः 1965 बहम् 1673 1796,1803 बहिः 2151 1802. बहिकल्पं 1922 1618 बहिध्वजः 252 1626 | बहिशुष्मा 1922 1995 1.14,1162,1218 223 बलः 192,304 बलज 1725 255,2008 बलदेवः बलभद्रः বলমিঃ 1738 .. 1731 बलभी 1738 बकोट: बलजीवनं बङ्गशुल्वज बलं बजुल: बटबासी बदरा बदरीबासा बद्धः " 0 0 nr m 0 बन्दनमालिका बन्दारुः . . . बन्दीक: 2766 बलवत् बलवान Page #663 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालायां बलहीनता बलाका बलाहक बलाक: बलिः बलितं बलिनः बलिभः बलिर: बहुरुपः 667 बली 422 / बहुगावाक् . 2417 / बहुत्वक्कः 2032 2417 बहुपात 1984 2417 बहुप्रदः / 1216 बहुप्रसूः 863 बहुमूत्रता 723 667 285 बहुलः 1914 7601 बान्धवः 868 298.304,682 बाधिकिनेयः 977 810,1176 बाभ्रवी 248 808 बाल: 121,467 1970 बाला: 2005,608,486 1656 2063 1656 बालचर्य: 266 364,785 बालधिः 2051 1033 बालपुत्रक: 1044 1161 बालव्यजनं 1168 1832 बालसाम्य 604 422 बालिका 1263 बालिशः 520 1033 बाल्मीक: 1412 बाल्मीकिः 1412 1161 | बाल्यं 537 | बाल्हिकं 1044 1746 / बल्हिमा बल्ममः बल्लभी बल्कं बल्भीकः बल्भीकूटः बंशः बंशक बंशाजः बंशपात्रक बंशशलाका बंशानुचरितं बंशाभं बशिका बंश्यः बहुकरः बहुकरी बालक * 468 Page #664 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका पाल्हीक बाहः बाहुचापः बाहवारणं बाहुदत्रेयः बाहुदा. 1581 1005 329 1877 326,502 583 582 684 418,2077 1920 बाहुवाहः बाहुसंभवः बिन्दुः 2102 बिल्वः विसं बिसकण्ठिका बिसनो विसप्रसून 1044 बुक्कस: 947 बुक्का 965 1255 | बुख़ुदः 186 बुधः 1895 बुभुक्षा 1255 बुभुक्षितः 1934 बृहत्कुक्षिः बृहती 516,1804 वृहद्भानुः बृहन्नटः बेडा 2417 वैजयन्तिकः 2060 बंडूर्य 2081 बल्वं . .1014,2756 बोषः 2101 बोधकरः . 1982 बोधिः बोधितरुः 2046 बोधिसत्वः 432,1152 बौद्धः 1152 ब्रश्चनः 2111 ब्रह्मणदप: 1586 | ब्रह्मपुत्रः 1654 | ब्रह्मरीतिः 1005 | ब्रह्मवर्चसं mulutning 1247 1842 1357 बीज बीजकोशं बीजकोशी बीजपुष्पिका बोजपूरः बीभत्सः 2114 2310 329 1988 326,1888 326,1440 1555 193 2161 जीभत्सुः / बीजवरः 'बोजसूः बीजाकृतं बुक्कः 1815 1765 Page #665 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालायो ब्रह्मवेदी ब्रह्मा ब्रह्मावतः ब्रातीनः प्रात्यः ब्राह्मचारी ब्राह्मण: ब्राह्मणी 463 प्राह्मी बीड: ब्रीडा श्रीहिः भक्षक: अक्षणं मक्ष्यकार: भक्तकार: मक्त 63 1615 / | भग्नविपाणक: 2272 1815 भनयः / 1624 1614 भजमान 1214 741 भटा: 1244.1584 1426 भटित्र 265 भट्टः 464 1350 भट्टारकः 464 2176 भट्टिनी 460 245,342,1815 भगिणतं. 1584,343 457 भण्डिवाहः. 1560 458 भण्डिवाही 2106 भदन्त '585 भद्रः 1133,2004,2261 भद्र कपिल 265 1176 भद्रकरणं 1562 587 भद्रकाली 254 586 भद्र कुम्भा 1171 80,682 भद्रकृत् 725 भद्रगुप्ता भद्रचलनः 305 8333 | भद्रमुक्तक: 2154 1874 भद्रवाहुः 1656 / भद्राङ्गः 305 2125 भद्रसानं . 1167 2648 | भम्भासारः 1156 भक्तमग भगः 20 भगन्दर: भगवत्यङ्गः भगवान् भङ्गः भङ्गीन: भङ्गा Page #666 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 1280 2329 2310 2326 240 2786 1854 250 2772 271 भवतु भन्दुरा 1713 / भल्लः मयं 440 भहलक: भयहरं भल्लाह: भयन 1698 भालुक: भयानक 442,446 भवः भयानका 432 भालका 1243 भवनं भयावह 442 भवानी भरण: 1925 भवाने गुरुः भरणं 536 भवान्तकृत् / भरणी भविकं भरणीभूः 112 भविण्णुः भरतः 1126.482,1236 भरतकः भषकः / भषणः भरतपुत्रः भसितं भरद्वाजः 2434 भाः भरित 2678 भागः भरुज. 2331,596 भागधेयं भरुटक: भागधेयः भागिनेयः भर्ता भागीरथी भर्तृदारिका भर्तृदारक: . 486 भाजनं * भम . 1807,436 भाटक: भर्मण्या .. भाटिः भमरी 310 / भाणः 578 2310 2610,2555 1390 भरतानि 1605 482 85 भर्ग: M 2605 2507 1216 860 1885 367.2507 1767 1451 137 भाग्यं . Page #667 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालायां 2530 भाण्डागारं भाण्डिक: भानवीयं 588 622 भानुः 443 - 2 82 1707 | भास: 156. भासराः 124 भासितं 23,80,85 भासुरं 767 भास्कर 1486 भास्वान् 530 भिक्षणः 342,413 | भिक्षुः 536 भिक्षुकः 538 | भिक्षुका 538 भिक्षुणी | भिक्षु संघाटी भामिनी भारः भारः भारती भारयष्टिः भारवाहः भारिक: भार्गव: भार्गवी मार्या मार्यापत्नी मालं 1340,47 51 647 847 1416 भित् / 617 मालहक भालूकः भाव: भावना भावाः भावित भाविता भावुक भाषा भाषित भित्तं भित्तिः | भिदा 237 भिदुः 2326 भिदुरं 486,768,2513 भिद्धयः 2466 भिन्न 432 भिदिपाल: 2710 भी। 578 | भीतिः 63,487 | भीमः 342 भीम 343 / भीमसेनः 1002 2706 2608 1723,2345 2706 201 201 1906 2669,2706 1264 40. *440 . 231,1446 442 1146 Page #668 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 617 भीमा भूमिका 481 भीमः भीरुकः भीलुकः भीष्मः भीष्मः भीष्म भूः भुग्न भुग्न मुक्तसमुच्छित भुक्तशेषक: भुक्तोच्छिष्टः 252 / भुवः भुवनं 141,1804,787 541 / भूकश्यप: 541 भूच्छाया 443 भूण्डः . 443 भूतं 1887 भूतग्रस्तः 2648,2666 भूतघ्नः 2648,2696 / भूतधात्री 644 भूतनाशनं भूतनायिका 644 भूतपतिः 647 भूत्तम 947 भूतयज्ञः 235 120,2353 भूतावास: 2353 भूतिः 2358 भूदेवः 146 भूधन: 646 | भूधरः भूध्रः 1919 | भूपः 846 भूपदी 533 / भूपाल: 2783 2481 1588,2783 303 138 578 2710,2657 764 2266 1587 637 251 241 1807 . 1360 भुजकोटर: भुजगः भूताः भूदारः भुजङ्गमः भुजङ्गभोगी भुजदलः भुजशिखरः भुशशिरः भुजाकष्टः भुजिः .. मुजिष्या मुजिष्ठः 2035 618,1380 2327 1350 602 1766 656 1766 456,1112 2043 1112 Page #669 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 618 सुशील नाममालाया মুম্ব भूमन् भूमिः भूमिका भूमिलेपनं भूमिस्पृशः 535 536,537 532 176,1112 भृतक: 2786 भृतिभुक 1585 | भृतिः 481 भृत्य: 2267 भृत्या : 1444 2761,2563 2562 भेडः 1333 1806,2563 भेरी भेषज भृशं 2742 भृष्टं भूयिष्ठं भूरक्षबामा भेदः 2304 1201,1202 425 727 2331 163 भक्ष्य 2570 1180 2032 भूरिमायः भूरिवेतसः भुर्जः भूलता भूषणं भूस्पृक भकुटि: 442 240 260 726 भृकुशः 2800 | भैरक: 2166 भैरवं 1012 भरवः 466 भैरवी 21,33,626 भैप 484 भोः 110,1782 | भोगः 2146 भोगावली 2144 | भोगिन्यः 268 भोगी 2144 भोजनं 1171 भोलि: 2166 | भौती 268 / भौमः भृगुः भृङ्गः भृङ्गरजः भृङ्गरिटी भृङ्गराजः भृङ्गारः भृङ्गारिका भृङ्गी 537,2374,2375 1321 2353 2353 126 Page #670 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका . 1320 1126 103. 110 2672,2760 1320 1466 भ्रमिः ध्रष्ट - 2711 2763 816 1320 भ्रकुटिः 626 मगध: भ्रकुश 484 मगधा भ्रमः 2468,2767 / मघवा भ्रमरः 2186 मघवान् भ्रमरक: 611 मघा भ्रमरालक: मघाभव: भ्रमा 1600 मङ्क्ष 2767 मङ्ख मङ्ग भ्रसा मगु भ्राता मङ्गलध्वनि: भ्रातृजाया .. 805 मङ्गलपाठकः भ्रान्तिः 2468 मङ्गलशंसनं भ्राष्टः 1755 / मङ्गलशिरः मकटः 2156 मङ्गली मकरः 2453,105,226,317 मङ्गल्यं मकरकेतमा मङ्गल्यका मकरध्वजा मङ्गल्या मकरन्दः 1980 मचिका मकराकरः 1868 मज्जा मकरालयः मज्जसमुद्भवं मकुटः मकुण्ठकः . मञ्चः 2116 मक्षणं मञ्जरित 626 मखः 1367,1631 मजा. मख किया 13.61 मजा 1466 mr.m 318 211. 1035 2618 1014 1054 1014 1006 1972 1972 2302 Page #671 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 620 सुशीलनाममालाया . 1736 760 1255 453 1501 2436 564 246 1574 मत्सरी मजीरः 1081,1762 मत्तालवः . मञ्जु 2626 मत्तेभगमना मञ्जुलं 2623 | मस्कुरणः मरणीः 1840,652 मति मणिक: 1756 मत्य मरिणत मत्स: मणिबन्धः / 652 मरणीवक्र 1977 मत्स्यः मण्ठः 1245 मत्स्यजालः , मण्डनं 1028 मत्स्यण्डिका मण्डपः 1722 मत्स्यण्डी मण्डलं 718,1270,86,778, मत्स्य बन्धनो 65,2564 मत्स्य राज: , मण्डलक 718 मत्स्यवेधन मण्डहारक: 1516 मथन: मण्डलान: 1285 मथिनं मण्डलाधीशः मथुरा मण्डली 2352 मदः मण्डितः मदकल: मण्डूकः 2458 मदकोहल: मण्डूरं 1763 मदनं मतं 2513 मदनः मतल्लिका 2618 मदननालिका मतङ्गजः 2168 मवशीण्ड मत्तः 2207,660 मदना मत्तवारणः 1736 मदिरा 1574 2445 1573 1123 1675 .456 2213 2273 2162 2111,311 840 1036 1518 1518 Page #672 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 621 मधुरः 1388 2076 2026 2161 2522,2624 2073 1675,624 2522 2522 2188 2188 1527 मदिरागृहं 1716 मधुपर्क: मदिष्ठा 1518 | मधुपर्णी मदोत्कट: 2208 | मधुपणिकः मद्गुरः 2445 मधुमक्षिका मद्गुरप्रिया 2445 मद्य 1518 मधुरसा मद्यप: मधुरा मद्यपङ्कः 1525 मधुलः मद्यपाशनं 1228 मधुलक: मद्यमण्ड 1524 | मधुलिट मद्यवीज 1522 मधुव्रतः मद्यसन्धानं 1523 मधुवारः मधु 2140,147,268,323, मधुकोलं 1134,2161,1520,1980 मधुसिक्थं मधुक . 1796 मधुसूदनी मधुक: 2016 मधुसुहृत मधुकरः . 2186 मधुस्रवा मधुका 2122 मधूकः मधुकृत् 2186 मधूच्छिष्टं मधुक्रमा 1527 मधूपन मधुघोषः 2383 मध्यं मधुज्येष्ठ मध्यदेशः मधुदीपः 313 | मध्यन्दिनं मधुद्रुमः 2016 मध्यमः मधुधूलिः 601 मधुपः 2188 / मध्यमा 2016 2150 2142 323 2140 2016 2192 1675 424,678,1461 1617 127,2654 2543,2654 678,654,1617 800 Page #673 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 622 सुशीलनाममालाया मन्तुः मन्थः 256 मध्यमीयं मध्यलोक: मध्यलोकेशः मध्या मध्याह्न मध्वासवः मनः मनः शिला मनस्तालः मनसिशमा मनीकिनी मनीषा मनीषी मनुजः मनुष्यधर्मा मनोगवी मनोगामी मनोगुप्ता मनोज्ञं मनोजवः मनोजवसः मनोयोनि मनोभूः मनोरथः मनोरम मनोराज्य पनोहर 2654 | मनोहारी 841,311 1587 1834 1123 1215 854 मन्त्रणं 1210 127 मन्त्रवित् 1215 1520 मन्त्रहतः 2486 1760 1834 मन्थदण्ड : 1760 मन्थन 2564 314 मन्यरः 771 1216 मन्थाः 1770 453 मन्थानः 1760 505 466 मन्दः 2203,268,111, 521,57. .220 मन्दगामी 771 मन्दरः 1017,1776 . 771 मन्द्रः 2546,2556 मन्दाक्षं 457 2624 मन्दारः 161 557 मन्दिर 1666,960 322 1762 322 मन्दोषण 2516 मन्दोदरीसुतः 1147 मन्मथः 311,2058 651 मन्युः 1367,436 2623 / मम्बन्तरं 851 मन्दीरं 651 Page #674 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका मन्वन्तराणि ममता 1640 164 मयः 2264 मयष्टकः 2266 2116 मयुः मयुक: मयुष्टक: मयुष्ठकः मयूकः मयूखः मयूरः 365 | मरुत् 467 मरुत्पथ: मरुत्वान् 2116 मरुप्रियः 228 मरुदेवाः 2386 मरुद्रथः मरुलः 2116 मर्कः 2386 मकंट: मकंटक: 2386 मर्कटास्यं 1821 मकंटी 2401 मजिता 267 मतिः 478 मर्त्यः 1842 मर्मचरं 1980 मर्मभेदनः 1631 मर्मरः 2403 ममंरालः 1226,2232 2436 1640 2335 2183 * 84 मयूरक 2051 मयूरचटकः मयूर रथः मरक: मरकतं मरन्दः मरवः मरालः मरिच मरीच 602 1267 466 600 1272 2551 567 630 मर्मवरं 781 मरोचिः 2266 मरीचिका मरुः / मर्मस्पृक् 94,116 मर्यः मर्यादा 1565 मल: 2686 मलयः 2686 | मलयजः 1215 1440 146 1775 मस्क: मरतः 1036 . Page #675 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 624 सुशीलनाममालायां 620 '603 1008 1008 महत 1008 2745 2600 418 1867 286 मलयवासिनी मलयुः मलिन मलिनाम्बु मलिम्लुचः मल्लनागः मल्लिकाक्षा मल्लिका मल्लिकाक्ष: मल्लिगन्धिः मल्लिनाथः मल्लिकापुष्प मलीमस मलुकः मल्लुका मशकी मश्करः मषिः मषी मषिकूपी मषीकूपी मषिधानं मषीधानं मसिः मसी मसीधानं मसूरः 256 / मसृणं 1961 मस्तक 1858,2608 मस्तक स्नेहः 750 मस्तिकं. 566,1436 मस्तिष्क 1427 / मस्तु 2404 मस्तु लुगकः 2043,1763. महः 2247 1035 महती महाकछः . 2047 महाक्रमः 2608 महाकान्तः 673 महाकान्ता महाकायः 1960 महाकाल: 2065 महाकाली 750 महाकुलीन: महागन्धः 750 महागौरी 750 महाङ्गः महाग्रहः 750 महाचण्डः 750 महाचण्डी महाजया 2110 / महाज्वालः 1587 2168 228 32,254,340 784 260 253 2265 750 210 *260 256 1394 Page #676 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 2446 2168 236 26. مه 453 2366 1809,2087 1648 624 महाज्याला 340 / महामुखः महातपाः 285 महामगः महातहः 2016 महामंत्रः महातेजः महाम्बकः महातेजाः 266 महायक्षः महात्मा महायज्ञः महादेव: 234 महायशाः महाधातुः महायोगी महानरः 238 महारजतं महानसं 1712 महारण्य महानादा 2320,233 महारसा महानिशा * 135,253 | महाराज महानीलः 2368,1845 / महारुहः महापक्षः 325 महेरणा महापंकः 2366 | महेरुणा महापषः महाशयः 226 महाशय्या महापापः 285 महाशलिः महाफला . 1301 | महाशिला महाबल: 2450,1798.1916 / महाशूद्री महाभीरुः 2178 महेश्वरः महामत्स्य 2446 / महेश्वरी महामनाः 544 महासत्य: .महामानसिका महासत्वः / महामाभ्यः / महासेनः महामाया 256 ! महास्कन्दः 1952 2064 2064 1865,543 1167 2108 1266.1304 महाप 627 234 1815 218,326 2142 2142 Page #677 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 626 सुशीलनाममालाया महास्थाली महास्नायुः महाहलं महाहंसः महिका महिमा महिला महिषः महिषध्वजः महिषमथनी महीधरः मही महीक्षिता महीध्रः महीप्रावार: महेच्छ:महेन्द्रकल्पमा महेन्द्राणी महेरणा महेरुणा महेला महेश्वरी महोक्षः महोत्पल महोत्सव महोदय 156 | महोरगः 1020 / महौषधं 1467 मा / माकन्दः 1864 माक्षिक 246 मागधः 786 मामधी 2314 माघः 208 माजिष्ठः२६४ माठः 288 माठिः मादिः मारण: मारणवः 1866 मारणव माणिक्यं - 78 माणिबन्ध 163 मारिणमन्तं माणिमन्थ 2064 माण्ड 786 मातङ्गः 1815,234 2271 मातरिश्व। 2062 मातलि: 313 माता 1388,48 मातामहः 2142 306,2803 1612 1025,2161 1320 1511 412,634,2044 147 2534 1251 1251 1975 2111 128,1071 1825 1814 1565 1568 1568 586 26.31,2206, 2198,1582 1939 2064 165 2283 862 Page #678 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 627 466 2572 706 1481 560,1566,1205 556 335 552 559 2566 मावा . 2565 | मानुषः मातुमा . 2056,884 मानुष्यक मातुलानी 2125 मान्द्यं मातुलिङ्गः 2046 मान्धाता मातुलुङ्गः 2046 मापनं मातृमाता 258 माया 521 मायाकार: मातृशासितः 520 | मायावी मातृष्वसा. 262 | मायासुतः मातृष्वसीय 872 | मायिक: मातृष्व से यः 872 | मायी माद्रेयः 1155 / मायूरं माधवः 148,289 मारः माधवकः 1520 मारजित माधवी 2041,2123,2470 मारिवाहक माध्यम 2654 मारिष माधव्या मारी माध्वीक 1516 मारुतः माधुर्य मारुतिः माधुलता माकंवः मानं 467,762 मार्गः मानवः - 466 मार्गणः मानबी 33,347 मार्गणा 2486 मार्गशीर्षः मानसी 341 | मार्गशीर्ष्या मानसोकाः . 2403 / मागितं 1160 489 257 1840 2470 "767 . . 2144 1464,1686,95 मावसं 142 2712 Page #679 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 62 সুলনামমালাঘা माहा , माज: 276 / माष्यं मार्जनः 2068 मास: 145,1001,668 मार्जना 1028 मांसकारिका 1001 मार्जार: 2350 मास 1007 मारिकण्ठः 2686 मांसतेजः 1007 माजरकणिका 260 मांसनियर्यासः माजिता मासल: मातंण्ड: माहनः मार्दङ्गिकः 2282 मार्डीक 1510 माहिष्य, 1500 माष 486 माहेय माष्टिः 1020 | माहेयी 2283 माल 1442 माहेश्वरी मालक 1868 मालक: मितम्पच 544 मालती 2042 1163 मालवा 1628 माला 1584,1755,2586 मित्रयुः मालाकारः 1515 मित्रवायल. मालिका 1515 मिथ: 2728 2017 मालिनी मिथिला मालूर: 1968 मिथुन 858,104 माल्य 1055 मिथ्या 283,2765 माल्यवान 1776 मिथ्याभियोगः मावशी 2232 मिथ्यामतिः . 2468 মর্থ্য 165 मिलित 1984 245 442 मितद्रुः 2007 मित्र मित्रः xx Page #680 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 626 2427 2613 1174 1350 मुच मिश्रा मिषं मिहिका मिहिरः मिहिराणः मिलष्टं मोठं मीनः . मीनकेतन: मीमांसा सुकुट मुकुन्दः 2151 286 2051,700 . 847 2670,2203 | मुखविष्टाः 560 मुख्यं 1864 मुख्यमन्त्री 81,188 मुख्यसंभवः 236 मुटि 2722 | मुजः 2436,105,327 मुञ्जकेशी 317 मुण्डः मुण्ड 1054 | मुण्डा - 227 262 | मुण्डिता - .9113 | मुदच्छद: 616,1684 मुदिर: 636 2066 मुहरः 2366 मुद्रित मुधा 2068 मुनिः 1068 मुनिसुव्रतः 1068 मुनीन्द्र: 1068 मुमुक्षः मुरः 616.1664 मृरजा 976 मुरण्डाः . 2528 / मुरन्दला मुख मुखखुरः मुक्तकलाप: मुक्तकञ्चुकः मुक्तनिर्मों कः मुक्ताप्रलबः मुक्तालता 2032 165 2112 1504 1984 2061,2765 2369 13.40 मुक्तावली मुक्तास्रक मुक्तिः 48 268 425 मुख 1635 मुखखुरः नुखवासनः 1866 Page #681 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालाया मुरला 452,1334 मुचुटो मुशली ....2633 2345 मुषक: मुषित 1866 मू . मूच्छितः मुर्तः मूतिः 2667 मूत्तिमत 687 मूर्धवेष्टन मूर्धा मूर्धाभिषिक्तः 2123 मूर्धावसिक्तः 100,2120 मुष्क: मुडकर मुष्टिः मुपदी 1506,1133 308 मूल मुसल: मुसली मुस्त: मुस्ता 66.1666 2156 2726 & & & 536.1451 मुस्तु मुह 2761 2348 मूकः मूच्छली: मलक: 2153,2156 ! मूलकम : मूलधातु: 661 मुल्य मूषकः 124 मूषिक 2436 मूषित मृगः मृगजालिका मृगतृष्णा मृगदृष्टि: मृगदंशः मृगद्विट 1403 मृगधूत्तंकः 1403 मृगनाभिः / मगनाभिजा मूत्रकृच्छः मूत्रपुट मुत्राशय मुत्रित मुखः 520 मुखत्वं मूर्ख भूयं पुर्खसायुज्य / 2331 1041 1041 Page #682 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मनुक्रमणिका मृगपतिः मगमदः मृगया मृगयुः मृगवधाजीवी मृगव्यं मृगशिरः मृगशीर्ष मगाक्षी मगादनः मृगारिः मृगाशनः मृधम् मृगितं 2318 मृत्पा 1566,1827 1041 मृत्स्ना 1596 120 6.1570 मृदङ्कुरः 2435 1566 मृदङ्ग 425 1566 मृदुः 2521 .1570 मृदुत्वक 2032 64,65 मृदुपाठकः 2442 14 मृदुल: 2522,1034 मृदुलोमका 2341 2323 मृङ्गम् 1761 2316 मृद्वीका 2073 2316 1324 * 2712 मृषा. 383,2765 237 मृष्टम् 2612 . 248 / मेकलकायका 1886 2101 मेखला 1078,1783 2067 मेखलाद्रिजा 1886 554,1447 21.165 603 1583 मेघकाल: मेघज्योतिः 1628 मेघनादः 216,2138,1147 472 मेघनामा 2153 1566,1828 मेघनादानुल.सका 2686 1596,1827 मेघपुष्पं .1955 472 मेघमाला 168 मृडः मुडानी मेघः मेघकफः . 172 मृणालं मृणालनी मृतः मृतक मृतपः मृतस्नानं मृतस्वभोत्ता मृतिः मृत्तिका मृत् मृत्युः Page #683 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 632 सुशीलनाममालायां 2143 1616 1715 2303,104 2156 1940 171 मेषी मेघवह्निः 1928 म्लेच्छ मेघवाहनः 184 म्लेच्छकन्दःमेघसुहृत 2388 म्लेच्छमण्डल: मेघागमः 155 म्लेच्छमग्वं मेघारिः मेषः मेघास्थिकिञ्चिका मेषशृङ्गः मेघास्थिपिञ्जिका 172 मेचक: 972 | मेहः मेढ़ः मेहनं , मेण्ट: 2303 मंत्र: मेतार्य। मंत्रावरुण: मेथिः 1504 मंत्रावणिः मेदः . 668,1.04,1006 मैत्री मेदकः 1521 मैथिली मेदस्पृक 1004 मंथुन मेदिनी 1586 मथुनी मेदुरा मैनाक: मेदोज 1006 मनाकस्वसा 455 मोक्षः मेघाजित 1413 मोघ मेधावी 505 मेधिः 1504 मोचकः मेधित 2720 मेध्यम् 2610 मोचा मेरकः 1134 मोट यित मेरुपृष्ठ मोट्टायित 750 मोढ्य 984 1312 1412 114,1412 66,1164 1142 853 2407 1773 258 48 2761 2030 1963 2001 734 मेधा मोधा मेला Page #684 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका मोरटः 'मोरिः 1363 220 1374 - 52 मोहः मोहनं मोहनिकः मौकुलिः मौक्तिकं मोहलिक . मौन .. मौनी मौरजिक: मौख्यंम् मौर्यपुत्रः मौर्वी मोलिः मोहतः मौहूतिका यकृत पक्षराट् पक्षा। यक्षमा यक्षिणः 2156 | यजुर्वेदः 478 यज्वा 444,472,1334 | यज्ञः | यज्ञकोलकः 147 यज्ञकर्दमः 2395 यज्ञकालो 1852 यज्ञधरः 2161 यज्ञनेमिः 50 | यज्ञवही यज्ञशेषः 1564 यज्ञाह 458 यज्ञान 16 यज्ञोय 1268 यज्ञेश्वरः 638,1054,1587 यतं 745 745 यती 974 ययाजातः 26 यथाद्वयं यथास्वामी यथास्थित 557 यथोद्गता यदुनाथ: यदृच्छा 1361 यद्वदः 1365 ! यद्भविष्यः 140 265 261 204 1390 1384 1926 - 1384 220 2226 51,1347 यति: 51 526 यक्षेट् यक्षेन्द्रः यजमान: पवित् 521 284 -526 513 556 Page #685 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 634 सुशीलनाममालाया ................ 266 2124 1761 2036 560 1888 . wa Me 6 Www.. 1347.1361 1265,1263 यन्त्रक 1533 | यवक्षोद: यन्त्रगृह यवनप्रिय यन्ता 1242 यवनारिः यन्त्रिणी 888 यवनाल: यन्त्रितः 664 यवनानुजः यमः 58,206 110,178,206 यवनेष्टं यमम् 2587 यवफलः यमजित् 242 यवागूः यमभगिनी यवाग्रजः . यमदेवता यविष्ठः यमप्रिया: 206 यवीयान् यमरथः यष्टा यमराजः 206 यष्टिः यमराट् यशःशेषः यमल 2587 यशा: यमवाहनः 2315 यशोधरा यमस्वसा 253 यशोभद्रः 52 1888 याग: यमुना 1888 याचकः यमनाग्रजः 206 याचनक: यमुनाभित् 306 याचना यमनार्जुनौ 268 याचनिक 203 याज: यवः 2106 याजक: यवक्यं 1650 याज्ञवल्क्यः यवक्षार: 1601 याज्ञसेनी 242 555 यमी 1367 575 575 1476 587 यमो 1421 1156 Page #686 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 635 याञ्चा . 'यातना यातयामः यातरः यातुः यातुधानः यात्या . 2120 2621 1260 1213 1233,2587 1234 2062 2587 बात्रा 4 1234 2527,1238 2276 यादः .. यादईशा यादःपतिः यादवी यादोनिवासः यानं यानमख याप्यं याप्यमान यामः यामको यामनेमिः यामवती यामलं यामिनी यामनं याम्पा . यायजूकः 575 यावकः . 2466 याव्यं याष्टिकः 806 युक्तम् 214 युगम् 213 युगकीलकं 2465 युगपत्रं 1311 युगलं 2448 युगान्तः 1868 युगान्तरं 217,1868 युग्यं 248 युग्यः . 1857. युत् 1238.1200 युतजानिः 1235 युधिष्ठिरः 2621 युवतिः 1237 युवती 135 / युवनाश्वः ___66 युवराजः 185 युवा 132 | यू: : : 2587 | यूकः 129 ! यूकाः 1820 यूथनाथः 176,131 यूथनायक: 1362 / यूथपतिः 1326 666 1148 700 700 1137 486 46 50 2462 2178 2207 2207 2207 Page #687 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालाया यूपः यूपकरटः यूपकर्ण: यूषः येन 1481,2571 2124 469 466 -311 211 1146 2775.1380 2725 1177 रक्षः योक्त्रं योगनिद्रालुः योगवाही योगीशः योगी योगेशः योगेष्टं योग्य योग्या योग्यारथ: योजनं योजनगण्या योत्रं योधा योद्धारः योनिः योषा 1374 यौवत 1375 योनल: 1376 / यौवनं 603 यौवनिक 2786 यौवनोद्गारः 1503 283 रक्षईशः 1604 : रक्षा 1420 रक्षित 52 रक्षिवर्ग 1420 रक्षोधन 1767 रक्षणं 604 रङ्कु: 1307 रक्तः 1126 रक्तकः 1462 रक्तकन्दा 1414 रक्तग्रीवः 1503 रक्तचन्दनं 1944 रक्तजिह्वा 1244 रक्तजीव: 182,2756 रक्ततुण्डः रक्ततेजः रक्तपला 786 रक्तपा: रक्तफेनजः रक्तभवं 2775 2338 2534,1000 2047 1847 212 1037 2320 483 2423 1004 2136 2170 योषित योषिता योगः यौतर्क 675 1003 Page #688 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 2316 2300 1325,2540 462 1808 514 1326 2400 रक्तमस्तक: 2407 | रसज्वलः रक्तमातः 1115 रज्जुः रक्तमाल: 2005 रजोवलं रक्तलोचनः 2432 रण: रक्तवर्णः रणरणक: रक्तवीज: 211 रवरण: रक्तंशालि: 2106 रणसंकुलं रक्तसन्ध्यक रणेच्छु: 2064 रण्डा रक्ताक्षः 2314 रक्ताङ्ग 1947 रतकील: रक्तिका 1483 रतब्रणः रक्तात्पलं 2065 रतशायी 2335 रतान्दुक: 407 रतिः 1761 रतिपतिः रङ्गजीवः / 1483 रतियोनिः रङ्गावतारः 483 रतिवरः रचना 1058 रतोदहः 985,1801 रस्नं रजक: 1542 रत्नकरः रजतं 1841.1812,1808 रत्नगर्भः रजतादिः 1774 रत्नगर्भा रजनिः . रत्नप्रभा रजनी 131, रत्नराशिः रजस्वला: रत्नवती रजन 1037 / रत्नसानुः 856 2311 2300 2307: 2307 857.320 320 320 320 2363 221 220 1587 2469 1866 1560 Page #689 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालाया रत्नसूः 1557 1866 रत्नाकरः 2625 रमण : रमणीयं ग्मणी रमा रम्य कारिण: रय. रस्ति रत्निपृष्ठक रथः रथकुटुम्बिक: रथगर्भक: 146 1225 1607 770 1127 ररः . 0 514 0 0 रथगुप्तिः रथ द्रुमः स्थपाव: रथ रोही रथाङ्ग रथारोही रथाहिकः रथिकः 1240 1070 480,603,604 1241 रथिर: 'गल्लक: रवरण: रवणं रणना 1240 रश्मिः 1240 रश्मिकलाप: रस: रसक: रसगम 1242 रसच्छदः 1240,1241 रसजा 1235 रसजात / 1584 रसज्येष्ठः रसज्ञा रमतेजः 283 रसना 186 रसनारदः 2478 रसनेत्रिका २०००,२५५३रसमवं रथी 1 en रथ्यः रध्या रदः 1823 633 2462 1823 2523 840 1000 1077 2380 1834 रदना रन्तिदेवः रन्तिनदी 'रन्ध्रम् रम्भा Page #690 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 881 2005 रसमातृका * रसवती . रसशोधन: रमा रसाग्रं रसाजन रसादानं रसापाय: रसायनं 585 2573 1846 2573 346 2116 रसाल: 1992 710 218 रसाला रसिका रसोत्तम रसोद्भवं 640 | रागरसः 1712 राजकदम्बकः 1602 राजदत्त: 940 राजधानी 1823 राद्धान्त 1823 राज्यन्यक राजपट्टः 307 राजपुत्रक: 610 राजप्रश्नीय राजमुद्गः 602 राजयक्ष्मा 640 राजराजः 604 राजर्षिः 1852 राजवर्म राजवंश: 1212 राजवंशी 770 राजवाह्यः 255,1606 | राजवीजी 142,855 | राजवृक्षः 73,211 राजशय्या 132 / राजशृङ्गः 1146 | राजसः . 1115 | राजसर्षपः 1815 राजा 433 राजादनः राजिः 1661 1211 रहस्य रा: राका रामस: राक्षसी राक्षसेन्द्र: रोक्षा 2211 1161 2011 1167 2455 2350 628 .. राक्षी. * रागः . . 226.1443, 1122 2021 2665 .. रागरज्जुः Page #691 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालाया 2542 1146,1135 1147 राट् 1122 2565 1962,1606 2077 489 2268 524 राजिका राव: राजील: 2361 रावण: राजीवं 2064 रावणनन्दन. रावणिः / राटि: 1327 राशिः गतिः 2501 राष्ट्र रात्रिः 186 राष्ट्रिका रात्रिगण: 138 राष्ट्रियः रात्रिचरः 215,566 | रासभ: रात्रिजागर: 2310 रासमिक: रात्रिञ्चर: 214 | राहुः रात्रिबल 213 : राहुलसूः रात्री 186 | रिक्षा राघः 148 | रिक्तं राधा | रिक्तकं राधार्षधः 1151 | रिक्थम् राधेयः 1157 रिङ्खणं राध्य 617 | रितिा राम: 2537,304,1133 रिद्धं 1416,1140 रामठं रिरी रामचन्द्रः 1140 रिष्टा रामभद्र: 1140 रोडक: राम्भः 1356 / रीढा रामा 26,786 | रीणं राल: 1047 रीतिः 112,225 336 2170 2628 2628 225 2774 1214 2132 116. 1814 2470 967 2656 2724 1814 रिपुः : Page #692 -------------------------------------------------------------------------- ________________ অনুমযিকা 641 रोतिपुष्प रोल: 709 रुक्म रुक् प्रतिक्रिया रुक्मिवारणः रुक्मिभिर 1624 | रुषा 1263 | रुहा रूक्षः 1805 | प्य 728 रूप्याध्यक्षा रूपहः रूपाजीवा कषितं 438 215 1952,386 2002 118. 223 948 1600 रुचकं इचिः रुचिरं हंच्यः 2800 2555 . 1659 1316 रेण्डः .. रुजाकर रुट् 435 रेखा 2625 रेणु 111,2625 रेणकासुतः 2305 रेतः रेतीघाः रेपः रेफः 2547 रैरिहाण रेवती 267 रेवतीभवा 1130,1286 रेवतीमित्र रैबतीशः . 1000 1802 रेणुकेया 1596 रैवतक: 2310,2338 | रोक 365 रोगहारी 11 2621 2621 24. 103,240 रुदित 19 कपिल रुद्रतनयः रुद्राणी रुधिरं. . रुप्यं "रुमाभव . .. 250 1779 247 रुशितं. Page #693 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालाया रोगिता रोचक रोचन: .. रोचि रोचनी रोचिष्णः रोटः रोदनं रोदसी 702 रोहिणा४६३ | रोहिणी 2282,14,336 673 रोहिणीपतिः 89 | रोहिणीसुतः 107 1835 | रोहित: 2534,2445, 196 673 रोहिताश्च .1624 1964 रौच्यः 1356 66 1566 307 2338 1145 1135,1145 560,1271 2783.1592 1878 ! रोमकं / 1583 रोहिणेयः / 2088 रोहिषः 1272,2478 रोहिषं 1981016 | लंकापतिः लंकेशा 977 लक्ष 173 लक्षण 250 लक्षणा 2314 लक्ष्म लक्ष्मण: लक्ष्मण 177 लक्ष्मण 2186 लक्ष्मी लक्ष्मीनाथ: 481 लक्ष्मीपुष्पं 1036 लक्ष्मीवत् रोधोवस्त्रा रोध्र रोपः रोमः रोमगुच्छः रोमलता रोमलताधारः रोमविकारः रोमशः रोमहर्षणः रोमान्धः रोमावलिः रोलम्बः रोष: रोषण: रोहणमा or 070 2408 . 450 . 126.1141 2408 2408 526,306 294,287 ..: 1843 Page #694 -------------------------------------------------------------------------- ________________ পলবিকা - बक्ष्यहा लगुडः 984 लग्नकः लङ्गलं लङगलं लधिमा 1214 1635 646 1067 254 430,941 422 9. 787 1067 सधु लघुलयं लघुहस्त: লসা .. लज्जालु: लज्जाशील: लज्जिका लज्जितः 1271 | लब्धकर्णः 1273 लभ्य 1263 लभ्याका लम्पट: 1470 लम्बमाना लम्बा : 2336 लम्बिका 246 लयः 1034 ललमं 2082 ललना 1263 / ललन्तिका 458 | ललाटं 578 ललाटिकर 578 ललायक ललिता 2666 लव: 1203 | भवङ्ग 2007 / लवणं 2625 लवणखानि: 104 लवणवारि 2041,1962 , लवणोदः 261 लवित्र / 261 लशुभं ...:917 लस्तक 342 लहरी 2710 लागलं 846 1056 765 1142,2771 लञ्चा लट्वा 1567 1565 लहः . 1871 लण्डूकः लताः लतापर्ण लतावर्ण लपन . लपितं . . . 2142 21267 9874. 21467 Page #695 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालाया ................. . . 646 लाङ्गली -- लाङ्ग ल लागलं लाङ्ग लिका लाजा . लाञ्छन लाञ्छनी' . 'लान्तकल्पना लालनी, 60 ! लुम्बी 748 712,765,858 764 2252 385 642 1566 1976 2316 2316 2662 2372,2163 2710 2370 '748 747 -लालसा लालाविषः 2056 लिप्सुः 2251 लिबि 2251 लीला 2160 लीलावती 566 लुठितं लुप्तवर्णपद लुब्धः लुब्धक 1078 641 लुनाम: 2372 लुलायः 2183 | लुलितं 2316 | | लूता लूनं 2071 लूमविष . 2071 .505 लेखक: 2178 मेखा 747 लेपक: 184.425 लप्यात 1431 लेलिहानः 748 लेशः 747 लेष्टुः 2665 1276 लेहन 65. ! लोकः .लालानाव: 'लालिकः सावणक.. : लेखः लावू: : लास्थ लिक्षा लिखिता निङ्ग लिङ्गवृत्तिः 1556 1556 2355 123 1658 लिपिः लेहः लिपिकरः लिप्त. लिप्तक: लिप्या 640 Page #696 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका aumen..... 1780 ..1274 2088 लोककारः 1544 / लोलुपः 142: लोकजिद 332 लोलुमा 642 लोकनरयः 288 | लोष्टः 1656 लोकपिन्दुसारक 356 लोष्टुः लोकायतिक: 1442 | लोहं - 1791063,1033 . लोकालोकः | लोहजः . . लोकेशः 275 लोहजं. लोचनं... 222 लोहनील लोता. 452 लोहपृष्ठः 2416 लोध्रः लोहाभिसारा 1306 : लोपाक: लोहितः 2534,2106,1000 लोपामुद्रा 115 लोहिताक्ष: 261.. लोपत्र 568 लोहिताङ्ग 2366 106. 1807 | लोहितचन्दनः लोमोतमः 1907 | लोहितिक: 1843. लोभ्यः लोहदण्ड 13.02. मोम 2645,650,1016. लोहश्लेषणं 1602, लोमकरसंः 2341 चक्र लोमकी 2380 पक्रारिष 166 लोमपादपुरी 1673 वकोष्ठिका 432, लोमविषः 512: लोमहत् 1833. वक्षः पक्षोजा. लोलघण्टः 1943 वक्षणः 189 लोलपटः 1943 बगरुः / 1033 लोला 640 / बङ्गम् 2066 लोभन 916 लोलः . Page #697 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालाया . वङ्गारिः 680 . M m 520 20.8 2004 520 512 o c वङ्गा 1626 वण्ड: 1832 वण्यः 343 वत्सकः बचन 342 वत्सलः वचनीयता 2.0,1846 वदनं वज्रकंटकः 1144 वदन्यः बजदक्षिणः 187 वदरा बचशृङ्खला 336 वदरी / वत्रसज्ञकः वदान्यः 152 वदावदः वश्वक. 358 वधः वञ्चतिः 1921 वधिरः , .562 वधूः वञ्चितः 611 मधूटी वजुल: 1966,2003,2023 / वध्यः 1989 वध्वटी घटक: 565 1684 वनस्पति कटिका वनिता बडवा वनीपक: घडवानला वपन वहवामुखः 1927 : वपनो बडवासुतो 203 पा वणिकमाय 1663 वपुः परिणशं 1573 वप्ता 186,804,906 801,806 बट: 801 1954,1947 1958 पतिः 575 1007 80 Page #698 -------------------------------------------------------------------------- ________________ গলুমফিজা चंप्य वप्राः वमथुः वमनं 1659 203,761 1300 774 1765 178,21 // वभिः . चम्मितः बयस्थः वयस्था बयांति परः 1044,1616 बरकतुः 560 / वराणसी 1797,1680 वरारोहा 28 | वराहकर्णकः 721 परिवस्था 721 वरिष्ठः 721,1619 वरुणः 1246 | वरूथः 466,1263 वरूथिनी 842,2034 वर्षः वर्चस्क 2778,811 वर्जन 913,1041 वर्णम् * 184 1676 | वर्णना 741 वर्णनी 255 वर्णवरः 2034 पर्यम् . 815 वर्तलोहं 115 वर्तक 814 वतिः 811 वंतिण्डी 627,761 | तिमि 248 तिनी 607,682 | वस्म 1845,1572 वः 187 वर्धन वर्णक 614 वरण: 360 6 धरदा 118 1044 बरट्रमः परनियंत्रण वरप्रदा . घरयात्री घरयिता परणिनी 1031,730 574 1656 वराङ्ग बराटकं घराणः 1666 1645 551 Page #699 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालाया वर्धनी वर्द्धमानका अघ्र वर्म 246 वरः वर्वरी वर्षः वर्षीयान् वहिकल्पं অমি बलय बलयप्रार्य पलिस घल्लकी 1745 वशिक: 1567 1763 | वसति: .. 130,1618 1767 | वसा 1250 वसितं 801 वसित्वं 1580 वसु 224,1840,1654,1566 612 | वसुकं 1596 1606 | बसुदेवः 501 | | वसुधा , 1588 1922 वसुन्धरा 1585 1922 | वसुप्रभा वसुपूज्यः 22 1303 | वसुमती 1585 1964 वसुसारा 417 वसूकं 156 वस्तः 961 1656 वस्तिमलं 2014 1656 वस्नसा 1972 वस्वौकसारा 223 1972 1906,1938 1962 2806 1962 | वहिए हाः 1635 2154 वहिरिं 1006 / वह्निभूः 650 वह्निरेताः 232 786 / बहिबीज पल्मनं बल्मीक: बल्मीकूटं बल्लरिः बल्लरी -: पल्लि बल्ली घल्वजा वल्लुर बशा Page #700 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 646 1282 761 1675 1268 1541 1446 1446 342 1838 704 1238 | वाणधिः 2810,1656 बाणनी 342 वारणपूर वाक्पतिः वाणासनं वापारुष्यं 1206 वारिणः बाक्यं 344 वाणिजः 2062 वाणिज्य वागीशः . 511 वाणिज्या पागुरा 1571 वारणी पागुरिक: 1571 बातः वाग्मी 511 वातकी वाचंयमः 51 वातकुंभः पाचाट: * 512 | वातपोथ: वाचालः वातरोगो वाचिकं 400.406 / वातापिदिन वाचोयुक्ति 511 वात्स्यायनी वाच्यः 'दादरः वादरायण: वाजितं 1386 वादित्र वाजिदन्तकः 2013 वान वाजिशाला 1713 वानदष्ट वाजी . . 2.30,1225 वानप्रस्थ: वाञ्छा . 650 वानस्पत्यं वाट: 1684 वानायुजा वाडवः 1927,1351 | वानीरः . बाणः 300,1271 / बापदण्ड 2020 1919 704 512 2426 661 2008 1412 1541:1885 1541 1346,2016 1958 2036 . 2003 Page #701 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालामा 1867 2025 1867 176,1516 730 376,1445 536 1996 366 504 वापिः 1906 वारिनिधिः बापी 1909 वारि राशि: वामनः 180,663 वारि वासः वामलूरः 1656 वारी / बामा 28,786 वारीश: वामाझी 24 वारुणी वामी 2034 वात. वायवः 71. वार्ता वायव्या 176 वार्तावहः . . बायुः 1938 वार्तायन: वायुन: 189 वार्तिक वायुभूतिः 15 वार्द्धक वायुयुद्धं 1328 वा नी वायुवाहनः / वाद्धिः वाद्यं | वाषिक: वार: 1273 वाद्ध षिः वारण: वार्षिक। वारणा बार्हस्पत्यः वारणबुषा 2001 | वाल धि: बारवधू 850 वालिः वारवाणा 846,1251 वालिगतं वाराणसी 1669 वाली वाराही 245 वाली बारि 2025,1854 वालुका वारिजं 2161 2063,2171 वालुङ्गी बारिधिः 1866 वाल्ही 283 414 1717 1460 1473 :1473 747 2051 1143 2056 1143 1737 1603 .. 2146 Page #702 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका - 651 2013 2013 .वाबदूकः 511 | वास्तुकं 2141 बावल्ल: 1280 | वास्त्र: 1230 वाशा वाहः 647,1638,2030 बाष्प: 1930,412 वाहनं 300,1236 वासक: वाहका बासतेयी 126 / वाहित्थं 2020 बासन्तिकः | वाहिनी 1217,1883,1221 वासन्ती . 2041 विक्कः 2006 वासनीय 1043 / विकचं 1982 बासपत्तनं 1671 विकटघोण: बासरकन्यका विकम्म: 1762 वासरयोगः 1026 विकस्थनः पासवः 183 विकर्तन: बासारः 2013 | विरिणका 1632 बासिका विकरालः बासितं विकलाङ्गः वासिता 2003 विकसितं 1982 वासिष्ठ 1001 विकारः 2766. घासी . 1551 विकाल: 127 वासुदेवः 2033 विकुर्वाण! 656 वासुपूजकः . . विकृतः . वासुरा ... विकृतिः 2766 वासूः 486 विक्रमः 1208 वासोका 1706 विक्रमिकः 1450 बास्तोष्पति 184 विक्रयः .1456. बास्तु . 1666 / विक्रयी 1456 2013 253 Page #703 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 652 तुशीलनाममालाया विट विखुः विक्रान्त: 54 | विज्ञानं . 456.457,1514 विक्रायः 1456 विज्ञानदेशनः विक्रिया 2766 / विज्ञानमातृक: विक्रेयं 1025 विक्लवः 680 विटङ्क: 1736 विक्करिणता 932 विटप: 1967,1676,1986 685 | विटपी 1954 विखः 605 विटभक्षिकः 1826 विगानं विष्णुः . 276 विग्रहः 602,1200 विष्णु क्रान्ता 2076 विघ्नराजः विष्णुगुप्तः 2427 विध्नेश: विष्णगृहं 1677 विचारणा 364 विष्णुपदी 1886 656 विच्छ का: 1744 वितरणं विच्छितिः 765 वितर्कः 474 विजयः 24,47,1284,1153, विदिः 1723 1337.1211 | वितर्दी 1723 विजया 25,256 वितंसः 1577 विजनन वितस्तः 958 विजाता 860 वित्तं 224 विजियिलं वितानं 1367 विजिविलं वितुन्नक 1821 विजिलं वित्तेशः विज्जलं 621 विथुरः 214. विज्ञः 506 | विदग्ध: विचेता वितथं' 216 Page #704 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 653 विदीः 'विदारकी विदिता विदुरः विदुलः विदेहाः विद्यार्थी विद्याप्रवाव: विद्युत् विद्युत्प्रिय विद्रधि: विद्रवः विद्रुमः विद्वान् * विदेषी विधवा विधाः 653 2784 261.332 1207 1906 1982 470 1452 2770 2037 653 1816 विनेया 1676 | विनयी 1601 | विना | विनायक: 2003 | विनाशः 2003 विनाहः 1605 1670 विनिद्रः _54 | विनिद्रत्व 357 | विनिमयः 71,1635 / विनियोग: विनीतः 725 1335 विनोदा 184 | विन्ध्या 502 |विध्यवासी 1192 विपक्षः 143 विपञ्ची |विपणः 2770:1400 विपरिणा 276,85 विपणी 112 | विपत "2774 विपत्तिः 2774 विपथं 2774 विपश्यी 654 | विपश्चित् विपाकाङ्क: 653 विकाश 86,1566 1776 1424 416 1416 “विधि: विधुः - 1663 विधुन्तुदः विधुननं विधुवन विधूनने . - विधेयः विनतासूनुः विनयस्थः Page #705 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाममालाया 2035 765 13,31 1777 873 2768 विपार्ट विपादिका विपाशा विपिन विपुला बिप्रः विप्रकार: विप्रकृतः विप्रलब्धः विप्रलम्भः विप्रलाप: विप्रश्निकः विप्रियं विप्रंट विप्रष्ट विप्लव: विबन्ध: विब्बोक: विभवः विमा विभाकरः विभातं बिभाव: विभावरी विभावसुः विभीतकः 1664 / विभुः 715 विभूतिः 1864 विभेदकः विभ्रमः 1560 विमना: 685,1430 विमर्श 670 विमल: 666 , विमला दिः 670 विमातृजः विमुद्र 366 वियद्भूतिः 745 / वियातः 1215 वियाम: 1604 वियोगी , 386 विरञ्चि: - 1338 / विरतिः 724 विरलजानुकः 765 224 विरागाह 85 विराटजः विरिञ्चि: विरुद्धशंसनं 480 | विरुद्धोक्तिः 126 विरूढः 1924 82 / विरूढका 2065 | विरूपाक्षा 665 52 274 2773 / विरहा 1846 274 125 | विकत 2135 2136 Page #706 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 548 2074 2768 विरोचनः . विरोधः विनक्षः विलका विलग्न विलंब विलाप: विलापित विलास: विलुप्तः विलेपी विलेपनं विलोचनं विलोचना विलोमजिहः विवधा विवर्णः विवहण विवस्वान विवादः विवाहः विविक्त विविधिक: विवेकः . 16.1682 2756 2766 1625 / विशरण 1162 विशल्या 655 विशसन 254 विशाखी विशारणं विशारद: 398 विशालत्वक .423 विशाला 765 | विशालाक्षी ...658 | विशिख: 586 विशिखा 1027 विशेष: - 612 | विश्रम्भः | বিস্বান 2002 | विश्वकर्मा 538 विश्वकृत 521,1580 विश्व व्यङ, ... 547 .विश्व भुक् 81 विश्वभूः 416 / विश्व भेषजं 812 / विश्वम्भार: 1211 | विश्वरेताः 538 | विश्वसृट् 56 | विश्वसेनः 611 विश्वा .. 1287 / विश्वासः .204 204 674 254 1585 270 : 274 विवोढा : 1565,632 विशतसः Page #707 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालाया 1983 1455 1986 214 विषं विषण्णता विषभिषक विषमच्छदः विषमप्रार्थना विषमस्पृहा विषयः विष द्यः विषाग्रजः विषाणक: विषाणान्तः विषाणान्तकः / विषादः 1857 / विसृम्मित 458 किस्कल्ल 726 विस्त: | विस्तारः 652 / विस्फुलिङ्ग 652 | विस्फोट: विस्मयः 726. विन विनगन्धी 1276 विस्रम्भः विसमा विहङ्गमः 458 विहंङ्गिका 1392,1654 | विहननं ' 277 विहस्तः विहसित 2788 विहायसा 2042 | विहृतं 674 636 "वीक्ष्या वीचिः 2768 वीचिमाली वीणा 579 वीणावादः 576 वीतं 576 | वीतवमः 1001 1832 2766 501 540 533 1538 विष्ट 435 2783 765 680 | विह्वलः विष्रश्रवाः विष्ठा : विष्वक विष्वक्सेना विष्वद्रघङ्ग विष्वागः विसंज्ञः विसंवादः विसर्जन विसारा विसृत्वरा बिसमा 1874 573 416 2026,2063 Page #708 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मनुक्रमणिका ...................... पीतना बीन रागा बोतंसः वीतहोत्रा बीमाहः बीपध्धः वीरा . वीरजयन्तिका वीरणं धोरणामूल वीरतरुः वीरतरं वीरपाणं वीरपारणका वीरमार्या वीरमाता 944 | वृकरण 187 वृक्का 1005 1577 वृकोदरा 203,1126 1921 वृक्षः 1951 पक्षभिद 1551 539 / वृक्षवाही 431,540 वृक्षादनः 507 वृक्षाम्ल 627 2063 जिना 106 2011 1407 1997 वृत्ताध्ययन 1361 2063 वृत्तान्तः 356 1364 वत्तिः 1684,2748,1445,370 1334 137,192 807 वृथा . 2715 864 50. 864 वृद्धनाभिः 1272 वृद्धश्रवा 1332 वृद्धयामीवी 1473 1332 वृद्धिः 1475 1963 वन्तं 1981 . 1438 वृषः 2013 1436 वृषलः 1505 440,1014 वृषलाञ्छना 236 वृषस्यन्ती 836 वृषा 192 वृता वीरसूः वीरशः वीराशंसन वीराशंसनी. बीस्त वीरोज्झितः वीरोपजीवकः वीर्य वीयंप्रवादपूर्व 355 Page #709 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालाया वृषाकपिः वृषाक्ष वृषाङ्कः... वृषी वृषोत्साह वृष्यः वृसी वेगः वेगसरह 1618 | वेदहीनः 283 / वेदिका 232 | बेदिजा 13:56 वेदी . 280 / वेद्यः 2111 | वेद्य माता 1356 | वेधः / वेधनिका 2064 वेधशाला वेश्य 771 1433 1723 -1156 1723,1373 2765 2013 2771 1531 2775 1271 430 451 1541 602 1946 1875 वेध्या वेपथुः 065 वेभा . 2026 ar. .. 87 0 0 4 47 वेरं वेरिणः वेणी . घेणुः : बेणुक वेणध्नः वेणुवादकः बेण्डतटोद्भवं वेतनं वेतसः वेतस्वान् बेवधरा वेत्री: | वेलं 1565 वेल्लित 2052 608 वेला 1805 वेल्लज 1445,536 2003 | वेल्लितान:१.६२४ वेशा 1177 वेशतः वेशवार! 356 वेश्मा -1354 वेश्या 361 वेश्या 1413 / वेश्याचर्यः . . 1914 वेदः 1667 1722 वेदगर्भः वेदान्तः वेदव्यासः 549 45 Page #710 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 156 .... वेश्यालयः वेषः वेष्टनं बटवारा वैसरा धेसवारः वैकटिका पेजनः वंजयन्तः बैज्ञानिका वैडूय घणवं वंणविकः वैष्णवः वैरिणक: 1722 / वैनतेयः 300,326 1026 | वैनयिका 1226 916 | वनीतिक: . 1238 वैश्या 1137 2064 | वैमात्रेया 873 626 वैमेयः 2004,2811 वैयाघ्रः 1230 1533 1162 वैरनिर्यातनं 167,226 | वैरप्रतिक्रिया वैरवानसः . 1346 1842 वैरशुद्धिः 1808,1356 बैराट: .. 18462100 1565 वैराग्यलापक 1825 वैरिङ्गिकः 761 | वैरी ... 1162 __2026 | वैरोट्या : 34,341 535. वैश्रवण ... . 219 1576 | वैश्रवणालयः - 1986 1865 | बषिकः .. 538 . 1316 | वैश्वनरः .. 1618 वैश्यः 633 / वैशेषिक: .....1442 1365 1657 ! वैहासिकः 210 बोटा वैणुक * वैतनिकः वतंसिक: वैतरिणी वैतालिक: वैदेहः वदेही वैद्यः वैष्ट्रतं वैद्रयं बैध्यतः ... 487 Page #711 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालाया .781 बोरुखानः वोल: वोहित्थं व्यक्ता व्यग्रः व्यजकः व्यञ्जन व्यथक: व्यधः ध्यध्वः व्यपदेश: ययः ज्यली व्यवच्छेद: व्यवहारः व्यवायः ध्यसनपारक: व्यसनारी: ध्यसन न्यसनी न्याकरण म्याक्रोश व्याघ्रपुच्छ: याघ्री व्याजा 2044 | व्याडि: 1424 1836 व्याधः 1566 1464 व्याधामः 201 503,16 व्याधि, 456:665 542 व्याधित: 408 व्याधिधातः 2012 561,637 व्याधिस्थान 602 ध्याना * 2775 व्यापन्नः 1688 व्यापृतः व्यापादनं 547 2762 ज्यामक: 5621215 व्यामोह: 1276 व्यायामः 471709 1284376 व्याल: 1412,2010,2168 858 व्यालग्राही 756 व्याहारः 343 व्युत्पन्नः 510 व्युष्टं 126 658 न्यूहः 1216 म्यूहकण्टक: 1246 1982 म्यूहपाणि: 1219 2050 व्योकार: 1554 2077 ज्योषं 411 2010 'प्रज्या Page #712 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका प्रततिः . वन शकुन्तः . शकुनः 187 शठं 1962 शकुमुखः 2444 1966 शङ्खः 226,1271,1841,300 शकट: 266,1226 921,2171,2367 शकल 2011,2607 | शङ्खकः 228 शकलायकः 243 शङ्ख कनख 2172 2376 | सङ्ख मृत् 254 शकुन्तलत्मिजः 1136 शङ्खमुखः 2446 शकुन्तिः 2376 शची 2376 शचीतिः शकुनावेदीः 2330 शवीशा 187 शकुनिः 2376,2420,2421 शठः शकूवारं 988 1800 शक्तः 763 शठता शक्तिः .. 1265.1296 2125 शक्तिपाणि 264 शण्ठः शक्तिभूत 264 श : 2272 183,2002 शतकीतिः বঙ্গভির 1147 शतक्रतुः शेकशिरः 1656 शतघ्नी 1304,1219 शकारणी 193 शतद्रः 1861 शकरः . 2366 पतधृतिः 270 230,736 शतपत्र 2062,2406 464 शतपरिणका 2152 1460,1268.70, शतपदी 2181 242,214 शतपर्वा शाजकुकर्णः . 2268 / शतपविका 2152 Page #713 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालाया 2002 / शंभुः 270 शलप्रासः शतभिष शतभीरुः शतहदा: शताक्षी शताङ्गः शतानन्दः शतावरी घातावर्णः शतावरीः शत्रुः भात्रुजयः शद्रुः शनिः शनः शनैश्व 2043 शमनः 208,461,1383 1936 शमनास्तकः 130 शमी 52.1686 1225 श भीगर्भ: 1351,1617 272,2420,281, शमोघान्यं 2118 1.63 शम 444,2766 277 शम्पाकः , 2011 286 शम्पाठा 2012 2173,760 1186,1165 शम्बल: 2173 शम्बुका 1777 शम्बूका 286 शम्भली 850 110 शवरः 316,1255,2436,2336 28.8 शवरारिः शयनं 376 371 शयनास्पदं 1706 379 शय्यभव: 17 2250 शयानक:. 1237,2347 2516.2540 शयालुः 618 शय्या 1110 514 2356 618 शर: 1265,2151,1272 1720 / शरजं 606 2536 | शरजन्मा 2484 / शरणं * 110 शपा शपथः वाफा: शयुः शब्दा शब्दग्रहः शब्दनः शब्दाधिष्ठल शबरावासा शबलः शवली 265 Page #714 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका शरणाथी शरणी 2342 2160,2342 शरधि। शरभा शरभूः शरयन्त्रिक शराटिः 736 | शलम् 1666 शलभः 157 | शललं 1282 शलली 2323 शलाटो 265 शलाटुः 2103 / शल्लकी' 1985 2426 2607 राहत शल्यः शरांभ्यासः शगरिः शरांरुः शरालि शराव: शराश्रयः ANA KWMWWW Mom MM...Hum... ANG MCG . - 2426 | शल्की शल्यं. 2426 546 / शल्यकः 2426 शल्यारिः शशः .1282 / शशादनः 1266 / शशिप्रिया 903 / शशी 2484 / शश्वत् 262 600 / शसः . 2487 शसनं 'श. शरासनं शरीरः शरीरी - ... सहः | शकुली शर्करा शर्म . शर्मम् / शस्तं शर्वः .. . शर्वरी शर्वाणी 230 शस्त्रं 1264,1284,1761 126 शस्त्रजीवी 1257 251 शस्त्रपाणिः 552 . ...2265 / शस्त्रमार्ज 1558 Page #715 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालाया 2487 1807 1186 1605 1625 412.1346 शास्त्री. . शस्थ ... शस्यसंवरः शाकटः शाकदीना शाकशाकरः হাজানি शाकुनिका शाङ्क: शाक्यः शाक्यसिंहः शाकरः शाक्तिक: शाखा शाखापुर शाखामगा शाखारण्ड: शालिक शाटक: 1260 | शातं 1985 | शातकुम्भ 2006 शात्रवः 1486 शाद: 1486 शाद्वल: 1646 शान्तः. 1646 शाश्ता शान्ति! 2366 शान्ति गृहं. शान्तीगृहं 2366 शाप: 1266 शामिका - 1965 शामितः शाम्बरी शान्तिक 13,46,444 817 1710 1710 887 754 1962,556 1962 2426 माटी शारदः 1534 | शारदी . 1.16,2276 शाराहा 1066 शारि: 560 शारिका 1525 1532 शाङ्ग मृत 1548 शाीं 1003 | शार्दूलः 1987 'शार्वरी . शान्य शाइवल: शारण: शारणाजीवा शारणी शाण्डिल्यः शाङ्ग 2425 302 * 284 262 2618,2322 121 Page #716 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 665 शाल:: 1954 शिखा 615,1965 शालडा 1414 शिखाण्डका 615 शाला 1965 शिखावल: 2388 शालाजीरः शिखिग्रीवं 1821 शालिक: 263 | शिखिमृत्युः शालिफल 754 शिखिवाहनः 267 शालीनः 556 शिखी 2388,113,1617 शालूक 1860 शिङ्खनखः 708 शालूरं 2456 शिवाण 1021 शालेयं 1647 शिविणी 884 शाष्कुल: शिनः 1664 शासन शिकं 2138 शास्ता 1287,751,330 शिजनी 1280,1268 शास्त्रज्ञा 746 / शिक्षा 1268 शास्त्रजीवः 1435 | शिञ्जितं 2551 शास्त्रवित् | शितशिम्विक: 2118 शिक्षितः 505 | शितिः 2537 शिक्वं | शिथिल: 764 शिखण्ड: 2386 शिपिविष्टा शिखण्डक: 2386,615 शिफा . शिखण्डिकः 2366 शिफाकन्दः / 2104 शिखण्डिका शिबिका 1237 1782,1968 शिमिः 1986 शिखरवासनी. .257 शिम्बा 1981 शिखरिणी 602 शिम्बिक: 2114 शिखरी ......2421.1768 / शिम्बी 1986 51. / 2104 615 OTAT Page #717 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालाया 285 1253 1286 756 756 2266 1666 28,250,2034 2310 1217 शिवी | शिशुः शिरः 906,1868 | शिवकीर्तनः शिर.पीठ 642 | शिवगतिः शिरस्का 1253 | शिवङ्करः . शिरस्त्राण शिवतानि: शिरस्य: 613 शिवनामा शिरा 1016 शिवपुरी शिरोधरा 942 शिवा शिरोधि: 642 शिवारिः शिरोमरिणः 1053 शिविरः शिरोमर्म शिरोरत्नं 1053 शिला 1732,1787,1834 शिशुत्वं शिलाज 1837 शिशुपालः शिलानीहारः 326 शिशुमारः शिलासारः शिशिर शिलिकाजित: 263 शिशुवाहः शिली 2166 शिष्टिः शिलीमुखः 1273,2186 शिश्विदान: शिलोच्चयः 176. शिष्यः शिलोद्भवं 1807 शकरः शिल्पं 1514 शीघ्र शिल्पशाला 1717 शीघ्रवेधी शिल्पा 1716 शीतः शिल्पी 1513 शिवः४६,६४,२३०,२३३०,२२६६ शीत मीरुः शिवकरः शीतलः 487 468 268 2450 2517 2305 1762 1426 54 173 2672 1263 2003 2668,2516 2043 2516,1641 शीतं Page #718 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 667 शीघु शुण्ठी शीर्षक 1975 84,150,2530 1617,40 632 632 1517,2214 2201 1861 42 1188 1186 335 2307 शीतशिवं 1598 शुङ्गा शीतलास्वसा शुचिः शीता 1468 1521 शुण्ठिः शीन 2718 शीष 907 शुण्डा 1013,1253 शुण्डालः शीर्षग्छेदः 553 शुतुद्रुः शीर्षण्यं 1254,613 शुद्धमतिः शीणा ह्रिः 206 शुद्धान्तः शील 1407,2502 शुद्धांताध्यक्षः शीलकं 620 / शुद्धोदनसुतः शुकः 2423 शुनः शुकपुन्छ। 1835 शुनासीरः शुक्र 438 शुनी शुक्तं 623 शुभ 2171 - शुभयुः शुक्ति शुम्भमथिनी शुक्र 668,1805,1617 108,1014,146 शुभ्रः शुक्रक। . 1014 शुक्रजा 77 शुल्काध्यक्षा शुक्रशिष्याः शुल्वं शुक्ल .5.16,625,2364 शुल्वरित शुक्लधातुः 1760 शुश्रषा - शुक्लापाङ्गः 2388 | शुषिः शुक्तिः / 2307 63,2301 656 251 1804 1852 शुभ्र 2530 शुल्क 1182 1181 1572,1765 1831 456.747 2448 Page #719 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालाया शुषिरं शुष्म शुष्मा शूकः शृङ्गव'चं शूकधान्यं शूकशिम्वा शूकशिम्बिः शूकाः ঘূণ্য शूद्रः शूद्रा शूद्री शून्यं 415,2479 | शगाली . .. 1338 1322 | शृङ्क . 1268,1782 1917 शनः 2224,1078 श नक: 2667 2126 शृङ्ग 262,2281,1013 2055 / शृङ्गमूध 427 2055 427 457 शृङ्गवेरक: 2148 1526 शृङ्गाट, 1664,1836 1505,1344 | शङ्गार: 431 830 शृङ्गारजन्मा 322 826 शृङ्गार भूषण 1836 2628 शृङ्गारयोनिः 321 1440 शृङ्गिकः 2158 540 शृङ्गिणी 2282 शृङ्गला 2303 शृङ्गी 2445 शृङ्गीकनक 1812 शृङ्गोष्णीष: 2318 616,1298 | शरिण: 2227 2227 शतं 2701 1600 शेखरः 2060 234 शेमुखी 616 184 2341 शेपाल। 2105 2330 / शेका . 984 शून्यवादी शूरः शूरदेवः शू शूर्पका शूर्पकारी शूलं शूलकः शूलनाशनं 454 शेपः शूलभूत शूलाकृतं शूलिका शृगालः Page #720 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 669 शेफालं 1844 - शेरत पोलु है.वः 720 2122 2611 1804,1001 शैवधिः शेवालं शेष: 226 720 शेषाहिनाममृत 2623 2753 1963 . 2105 | शोणरत्नं 156 शोणितपुरं 2028 शोथः 2440 | शोधिका शोधितं 2105 शोध्य 2363 शोफ: शोभन शोभा . 553 शोमाजना 1767 शोष। 234,242 शोषणं 2469 शोषितः 2321 शोक 2321 शौक्तिकेयः | शौणः 1130 शौण्ड: 2906 | शौण्डिकः 1882 | शोण्डी शौण्डीयं 153 | शौदिः शोदोदनिः शोभाजनिः 84 शौरसेभिः शक्षः शैषच्छेदिकः शैलं शैलाघवा शैलाः शैलाटः शैलाली शैलूषः शेवः शवालं शैवालिनी शैशव शेषा शोका शोचनं शोचि! शोचिष्केशा शोणः 710 585 1001 2566 2246 . 660.2401 1516 1200 286 438 1994 शौर्य 1200,1322 59 2534,1606 | शोले Page #721 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 670 सुशीलनाममालाया 107 128 शौकिका 1181 | श्रमः 471,1307 शौल्विक: 1534 श्रमणा शौष्कः श्रवणः / 51.1.1,617,456 श्यामः 2537 श्रवणा 847 श्यामल: 2537 श्रवा 2140 श्याममुखः 2336 श्रविष्ठा 101 'श्यामा 26.33,130 | পৰিচয়াম্মু ध्यामाना 107 श्रारणा .586 श्यामायः श्राद्धः याला 884,2006 श्राद्धकाल: श्यावः 2536 श्राद्धदेवः . 207 श्येनः 2420 श्रान्त: 1346 श्लक्षणं श्रावरिणकः एलप: 764 धीः , 27,306,526,2753 श्रीकण्ठः 231 .श्लेषाः श्रीकरः 280 श्लेष्मणः .... 704 श्रीखण्डः 603,1036 श्लेष्मल: 704 श्रीगर्भः 1284,280 श्लेष्मा 706 श्रीगुप्तः श्लेष्माता 2028 श्रीधनः 607 श्लोका . 365 / श्रीदः 862 / श्रीधरः 40,200 श्रद्धानं श्रीधर्मा श्रद्धावान् 760 श्रीनन्दनः 313 . . .760,860 श्रीपतिः 276 धन्यनं 1058 श्रीपथः 2565 शिलष्ट जानुः 20 20 भद्धालु। Page #722 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 1581 .528 865 श्रीपर्णी श्रीफल: श्रीमत्कुम्भः श्रीमान् श्रील: श्रीवत्सः श्रीवत्सांक: श्रीवत्सभृत श्रीवराहः श्रीवृक्षः श्रीवाकी श्रीवेष्टः श्रीसंशः श्रुतः श्रुतदेवो ...63 2487 2026 | शः 2813,2806 1997 श्वदयितः 1006 1807 श्वदंष्ट्रा 2074 528,2423 श्वपथः श्वपथु: 720 301,280 | श्वशुरः 89.6 280 | श्वश्रः 284 | श्वःश्रेयस 280 / श्वसितं 1967 वा 2377 2238 श्वानः 2307 106. श्वास: 2487 1046 श्वासप्रश्वास: 247 श्वासहेतिः श्वावित 2342 356617 | श्वेतः . 2174,1802,612 .. 1514,2585 716,2530 | श्वेतकङ्ग 2123 2585 | श्वेतकमल 2065 2617,2506 / श्वेतकुष्ठवान् 706 2036 श्वेतकोलक: 2443 श्वेतगरुतः. 2403 689 श्वेतपत्ररयः 274 श्वेतप्रति 1360 | श्वेतपिङ्गः 1.2801 श्वेतमरिचः .. 1664 460 342 श्रुतिः श्रेणिः श्रेणिक: श्रेणी श्रेषः . श्रेयसी श्रेष्ठं श्रोणः 2617 976 - श्वतत्रात श्रोणिः श्रोत्रियः .... धौषट् Page #723 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालाया 2772 2772 . 3.6 246. श्वेतरक्तः श्वेतरस: श्वनरूप्यं श्वेतवानी वेतहयः एवोसोयसं षट् चरण: छट्पती षडङ्गक षडघ्रिः 6 भज्ञः षडह्निः षविनुः 321 २५३४/ष्ठयूतं 612 | ष्ठयेवनं 1761 सकलं 86 संकथा | संकर्षणः संकल्पः 2187 संकल्पयोनिः 2178 संकीर्ण .902 / सकृत्प्रजा 2187 संकोचः, 331 सकोचपिशुनं 2187 282 संक्षेपः 1948 सक्त , 2272 सक्त क: 869,236,1186 सक्थि . 2272 सङ्कका 30,264 सङ्कटः सक्षिप्तिः बण्ड ष : षण्ढा बण्ढोचितः षण्मुखः षष्टतिलः पष्टिकः षष्टिहायन: षामातुरः 2700,2677 2365 1043 1042 551 2605 568 2158 986 1746 2740 2659 2677 160 2764 1163 61,842 1164 2127 सङ्काशः 2186 षिङ्गः 2107 सङ्कुलं संक्रन्दनः 267 संक्रामः 487 सखा 2226 सखी 106 सख्यं 2772, सस्यक षोडन् षोडशाचिः ष्ठीवनं Page #724 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 673 20.6 1603 1630 666 376 संख्यावान संख्येचं सपर: समर्मः सगोत्रः संगत समरः संनुप्तः सग्धिः 2272 2383 2674 2501 2675 137 238,251 सग्रहः संग्राम: संतमसं संग्राहः 1457 2495 | सज्जितः 504 सज्जी 1456 संज्वरः 1126 संज्ञः 881 सज्ञा संजुः 386.1984 सण्ड: 1324 सम्हीनः 376 सततं 641 सतत्व 371,2605 संततं .1323 661,1260 सती 2566 सतीया - 2441 सत्पथा . 2562 सत्य 1172 सत्यकारा सत्यप्रचारः 186 सत्यप्रवादा 2562 सत्यवती 602 सत्यसगरा '825 संत्वकृतिः 124 सत्यानृतं 563,818 सत्यापन 1212 सत्येतगत 1700 सत्र 1687 55,382 216 436 356 356 सङ्घः सङ्घचारी सवातः सचिनः सञ्चारिण: सचीपतिः सञ्चय: सञ्चरः सञ्चारिणी सज्जः सज्जनः. सज्जन 1414 219 219 . 383 1367 1083 सज्जवन Page #725 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 674 सुशीलनाममालाया सत्रशाला सत्रा सस्वर सदनं 842 271.2761 76.1127 2761 2761 2641 861 सदशः सदस्था: सदंश 1532 सनी 576 2635 सदा सदागति: सदातनं संदावः सदानीरा सदायोगी 38 1717 / सध्रीची 2785 सनत् / 2710,2672 समत्कुमारः 1666 सना 2636 मनात् 742 सनातनं सनाभयः 2761 सनिः 1941 2641 मनीडं सनीष्ठीवं.. 1867 सन् 266 सन्तत सन्ततिः 2656 सन्तानः 2656 सन्ताप: 400 सन्तोषः 323 सन्दर्भ 2762,2011 सन्दानिनी 1335 सम्दानित: सन्देशहारकः 2656 सन्देहः 802 सन्दोहः सम्पानी 402,126 सन्धिः 214 | सन्धिक! . सदक 502.51 27.7 785867 785 1630 56.453 1057 1714 सदृक्षः सदशः संदेशवाक मद्भत सद्म संद्राव: सघमंचारिणी सधर्मा समिणी सघ्रयङ सध्या संध्याबलः 200 2466 2562 1708 1686 646 674 Page #726 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 675 m aaana-- . 377 731 | संबोधन 2286 संभवः 1686 सभा सभाजन: : 742 1165 742 742 सन्धिजीवकः सम्धिनी सन्धिला सन्धिवन्धनः सन्नद्धः सन्नाहः सनिकर्ष! सन्निधिः सन्निभ सन्निवेशः सन्यासा सपदि 751 1246 1250 2635 2635 2656 2762 सभासदः सभास्तारः सभिकः संभूतिः संभोग सभ्यः सभ्या : संभ्रमः 2673,2762, 2760 741 474 2785,2605 2656 समं / समः 676 1527 110 समख्या समग्रा समगुप्तिः समजः 1916 समज्या - संपन्नः सपर्या सपीतिः सप्तचिः सप्तजिह्वः सप्तसप्तिः सप्ततन्तुः सप्ताचिः सहार: संफाल सफुल्लः सफेट! सब्रह्मचारी 26.5 161 2568 742 365 1213 214 466 1367 1916 1326 2303 1983 1325 संमज्ञा समञ्जसं समतीपादः संमदः समधि: समन्ततः समन्नात . . . २७६ब 2788 Page #727 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 676 सुशीलनाममालापा ...1745 Amar समन्तभद्र: 331 | समाजंनी ... समन्तभुक 1920 / समालभनं . 1027 समयः 1323,2740, 120,345 / समास: 2605 समया। 2766 समांसमीना 2263 समयान . 346 समाहारः 2605 समरः 1325 | समाहारः 2778 समर्थन 2467 समाहृतिः . 371 लमधुंका 741,966 / समाह्वयः 755,1323 समर्पण 2768 समित् 1380,1324 समादः 2637 समवन सः 818 | समिति: . 1324,1327 743 समवर्ती 206 समितिञ्जयः 286 समवायः 2562 समिरः 236 समस्तं समी / 1668 समस्थाली समीचीनं समा 158 समीप 2635 समयकर्षी -2526 समीरः 1636 समाघातः 1324 समौरिणः 1636 समाजा 742,2566 समुखः 511 समाधानं 2505 सम्मुखीनं 2612 समाधिः 2505,46 समुच्छयः 2602 समानः 1945.2656 समुच्चयः 2776 समानोदर्कः 882 समुत्ता 2713 समापन 548 समुसिजः समारह 1003 समुदय 1324 समाज 537 ममुदायः 2562.1324 2605 382 Page #728 -------------------------------------------------------------------------- ________________ অনুষিক 1882 समहा समुद्रः समुद्रकाञ्ची समुद्रदयिता समुद्रनवनीत समुद्रवसना. समुद्रवित् समुन्नः समुपजोषं 1745 सम्प्रयोगः 1865 सम्प्रेष्यः 1561 सम्मेदः सम्यक् सम्राट 1588 सम्वाकृतं 24 संयतः संबमा 2767 संयमनी संयमी 2766 1897 382 1124 1652 664,1324 14 समूरः mr 2336 * 2336 / संयुगं m समूरु: 210 52 1324 2700 742.1913 1526 2347 1763 2763 2562 529 संयोगितः सरः सरकः सरट: सरणं सरणी सरमा सम्मः सामूर्च्छजः सम्मूछेनं समूहः समृद्धः समष्टं समोलूकं सम्पत्तिा सम्पदः सम्पा सम्पाक: सम्पातपाटवं . 622 1767 529 2313 526 2726 सरलः 2647 सरलद्रवः 1050 सरला 1935 2012 . 2674 1745 .. 2670 42,2786 सम्पुटः सम्पृक्तः सम्प्रति सम्प्रदायः सरस्वती सरस्वान् सरि 342,1864 1906,1867 1882 Page #729 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 678 ममालाया 302 647 120 271 250 1010 227 सर्पः 2388 सरिद्वरा 1886 / सर्वभक्ष: सरीसषः ___ 280,2354 | सर्वभुक सरूप: 2656 सर्वभूषकः सरोरुहासन: सर्वमङ्गला सर्गः 2502 सर्वरज। सर्जः 2002 सर्वरत्नक: 2353 | सर्वरस: सर्पकाय: 2374 सर्व रसाग्र सर्पभुक् | सर्वलोहः सर्पमणिः 1040 सर्वविधा सर्पराजः 2365 सर्वशः सर्पहा सर्वसहा सारातिः 2352 सर्वसहननं सपिः 608 सर्वाङ्ग सर्व 2605 सर्वार्थसिद्धा सर्व केशी 483 सन्निभक्षकः सर्वग्रन्थिक सर्वानीनः सर्वतः 2788 सर्वानुभतिः सर्वतोभद्र : 2008,2816,2026 सर्वास्त्राः सर्वदमः 1136 | सवौधः सर्वदमनः सर्षपः सर्वदर्शी सला सर्वदा 2761 / सल्लकी सर्वदुःखक्षयः 46 सलवणं सर्वधात्री 312 / संलग्नं सर्वधुरीण। 2276 / सलयः 2524,1018 588 1136 373 2637 1565 1308 .236 2352 646 646 40 340 1308 2161 951 2164 1800 2338 46. Page #730 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 676 m mmmm.............. ............. संलाप: 857 2665 1240 2466 675 2712 2708 2744 2638,2674 742 सवर्तः 369 | संवेशः सलिल प्रियः 2327 संवेशनं सवः 1367 सव्यं संवत्सरः 157 सव्यसाची सवत् 158,2767 सव्येष्ठः सवनं 1030 सशयः संवननं 2727 संशयालुः संवरः 2136,1855,1645, संशायितः 1946 संशितं . सवर्णः 2656 संश्रुतं सबतंकः 308,1627 संश्लेषः . संसक्त सवया: संसद् सवलिः 127 संसरणं संवाद्यः संसारी संवाहक: संसिद्धिः संवित् 402 सस्कारः 1999,893 संस्कृतः सविता संस्तरः संवित्तिः. 454 संस्तवः सवितृदेवतः संस्त्यागः सविध 2635 संस्था सविनी संस्थान सवीतं . 2683 | संस्थितिः 2683,215 | संस्फेटः स वेगः 4:4 / मंस्फोट 2740 2484 . . 765 सवित्री 2501 2466 510,412 1109,1367 272.5 1668 80 1660.2762 संवृत्तं 18 1325 1325 Page #731 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 680 सुशीलनाममाल या सस्य 378 510 308 सहा सहकार: सहचरः सहवरी सहचारिणी सहनः संहतलः संहतं संहतिः संहामणी सहनः सहननं सहभोजनं सहर्षः सहसा सहस्यः 1985 | सहा . . 1356,146 146,763,1322 सहायता 2594 सहिष्णु 580 संहतिः 804 सहृदयः 804 सहोदरा - 851,805 2501,882 सह्य 730 सा 2676 साकं 2785 256 साकल्पवचनं 1366 803 साक्षी 1476 सांख्यः 1441 सागङ्गः 2336,2411 641 सांग। 361895 2760 सागरनेमिः 1586 2762 सागरमल: 1876 146 सागरमेखला 1588 1457 सागम्बरा 1586 2441 साचि 2756 187 साजी 1603 1140 सातं 2411 2152 सातवाहनः 1166 सातिसारः 702 183 सातीनः 2110 80 | सात्विका . 432,410,272 1246 / सात्वतः 304 सहस्र सहस्रदष्दो सहस्रनेत्रः सहस्रभृत् सहस्रवीर्या सहस्रवेधि। सहस्राक्ष: सहस्रांशुः सहस्रिणः Page #732 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 1366 742 2676,2758 413 | सामवित 456 सामाजिकः 1236,1242 सामातुरः 2237 सामान्य 1727 सामुद्रय 846 सामुद्र 2656,2676 साम्प्रतं 677 साम्परायिकम् 51.563.2625 साम्यं 1587 2786,1213 1324 सात्वती “सादः सादी साधुवाही साधारणी साधारणस्त्री साधारणः सापिता साधुः .. साध्यः साध्वस साध्वी सानाय्य सानुः सानुमान सान्तपन सान्तापितः सान्त्वं सायं 2656 2762,128 1272,1285 1463 440,446 | सायका 838 सांयात्रिकः 1385 | सांयुगीन 1787 | सारा 1768 | सारं 1405 | सारकी 2717 | सारणं 384 ' सारणिः 1202 सारणी 2626,2713 | सारथि: 734 सारमेयः . 1163,1.194 | सारवयः 1201 | सारसः 1376 सारसी 2202 | सारसनं 1172 | सारस्वतः 1008,1966 225 2425 612 19.2 1902 1256,195 2307 सान्त्वनं सान्द्रं सान्द्रस्निग्धः साप्तपदीनं साम * सामधेनी सामयोनिः सामवायिकः 24.7 2408 1252,1077 1632,1357 Page #733 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 682 सुशीलनाममालायां सांगष्ट्रिक: सारिका सार्थवाहः सार्द्ध साध: सापः सर्वः सर्वभौमः सालः सालभजी सालवाहनः स लवेट: साला सालातुरीयः सालूर: साल्वः 2162 | सिकता . 1902 420 | सिक्थक 2162 1446 सिङ्घाणं 1022 27.85 सिचयः 1084 2566 सितं 1802 सिता 2530,664 10 / सितच्छदाः 2403 181,1125 सितपंकजलाञ्छनः 2364 2006 सितरञ्जनः 2532 1743 सितसिम्विका 2118 1166 सिता 601 1047 सित ङ्गः 233 1965 | सितांभ्रः 1040 1421 सिताम्भोज 2065 2456 सितासित: 304 300 सितोपला 600 1630 सितोदरः 220 2088 सिद्ध 618,2704,2133 744 सिद्धसेन: 1353 सिद्धान्तः 345 251.654 सिद्धार्थः 24,332 2281 | सिद्धार्था 1202 | सिद्धापगा 1886 2570 - सिद्धायिका 1252 | सिद्धिा 42,245 1083 | सिध्म साल्वा 264 सावदः सांवत्सरः सावित्रः सावित्री सास्ना साहसं साहस्र साहस्रा सिक Page #734 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 683 सिध्मला सिनङ्गः सिनीवाली सिन्दुकः सिन्दुवारं 1763 2013 706 / सिंहसेन: 601 | सिंहानं 144 सिहास्यं 2026 | सिंहासनं 2036 1838 | सीता 1612 सीत्कृत 1865,1881 | सीत्यं सिंही सिन्दूरं 2036 सीन्दूरं. सिन्धः / सिन्धू सिन्धुकः सि.धुरा सिन्धुजः सिन्धुसंगमः सिरा सिरामूलं सिल्लकी सिल्हः सिल्हकं . 1.16 2063 2013 1498.1142 2540 1652,2106 1767 914 787 1766 1642 1467 1536 : 1796 1766 2016 2766 2325 2264 575 1471 2521 64,2506 2461 2166 सीमन्तः 1566 सीमन्तिनी 1897 सीम सीमा 677 | सीरं | सीवनं 1048 सीसकं 1048 सीसपत्रक 2618,104,2318 | सीहुण्डः - 597 | सु 2016 | सुकरः 2549 सुकरा सुकलः 1712 सुकालः सुकुमार: 2230 सुकृतं 525 सुखं सिंहः सिंहकेशरः सिंहण्डः सिंहनादः सिंहतलः सिंहद्वारं सिंहलं सिंहविक्रमः सिंहसहनन Page #735 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालाया 246 1866 1773 186 184 2712,332 2623 सुन्दरी 788 461,672 1262 1687 325 2012,71 सुखवर्चकः 1603 | सुनन्दा सुखसुप्तिका 461 सुनन्दिनी सुखाकांक्षी सुनाभः सुखेप्सवः 886 सुनासीरः सुगतः 330 सुनिश्चित सुगन्धिकः 2318,2108 सुन्दरं सुग्रह 2426 सुग्रीव 21,1244 सुप्त सुग्रीवात्मजा 1243 सुप्रयुक्तशरा सुचरित्रा 838 सुपन्थाः सुतः 864 सुवर्णः सुता 865 सुपर्णकः सुतारका: सुपर्वाणः सुतेजाः 183 सुदर्शनः 2422,23,303,167, 1133 सुप्रतीका सुदायः 822 सुप्रभः सुदारुः सुप्रसन्नः सुधन्वा सुभगः सुधर्म: सुभद्रः सुभिक्षा सुधाभुजः सुधाशुः सुमतिस्वामी सुधास्रवा सुमित्र: सुधोः 502 ' सुमद्रेशः 40 12 सूत्रामा सुवः सुपार्श्वकः | सुपुंसी 2147 1133 220 सुधा 266 2053 .1127 सुभूम: 841 24 1151 Page #736 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका सुमधुरं 1689 2243 186 286 सुमनसः सुमना: सुमनः सुमित्रभू सुमेरु: सुयशा: . सुयामुना सुराः 1872 400 و 1805.1814 1767 2012 260 م 2063 सुरज सुरज्येष्ठः सुरणः सुरतः 801 384 | सुङ्गाः सुरुहक: 2042 सुरेशः 2118 | सुरोत्तमः 1126 / सुरोहकः 1781 सुवचनं 26 सुवचिका 281 सुवर्ण 68,157 सुवर्णक 1686 सुवर्णविन्दुः 10.5 सुवशा 275 सुवहा 2148 सवासिनी 856 सुविधिः 2526,154,2282, सुवीरम्लिं सुवृषः 2063 सुवेल: 183 / सुव्रतः 205 सुव्रताः 186 सुशीमः 1995 सुषमं 1866 सुषमा 108. सुषिमः | सुषिरः 1938 65 | सुषमः . 1872 ' सुषेणः م 2063 624 282 1778 सुरभी 18B सूरर्षयः सुरस्त्रिया सुरस्त्रीश सुरपरिणका सुरखेला सुराचार्यः सुराजीवी सुरालयः सुरावारि 2517 2624 2754 2515 2478 2516 282 Page #737 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालाया सु-म्पन्न सुसवी 617 761 सुहस्ती सुहद्दलं सुष्टु 2766.2813 सूत्रं 2133 सूत्रकण्ठः 2.45 / सूत्रकृत् सुमस्कृतं सूत्रकोणः सुस्मिता सूत्थानं सुसीमा सूत्रधारः सूत्रवेष्टनं सुहितः सूदः सुहत् 1312 सूाध्यक्षः सूकरः 2325 सूनं सूका सूना सूक्ष्मदर्शी सूक्ष्मनाभः 288 सूनृतं ' 2565 सूचक: 5642310,455 सूपकार: सूचिः 1536,1726 सूरः सूचिकाधारः 2000 सूरणः सूचिसूत्र सूरतः 1480 1536 / सूरसूतः सूचीमुख 1845 | सूरि: सूच्यास्यः 2348 सूर्पः सूतः 1512,1818,1240, सूर्पकर्णः 1320 सूमि! सूतिकागृहं 1712 सूतिमा 1352 345 426 485 485 1540 560 1712 1178 1976 1577 864 64382 580 1176 23 2148 सूक्ष्म 545 सूची 87 1751 2000 2662 2662 सी सूर्यः 80 Page #738 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 687 773 1539 1448,774 1448 1536 2082 सूर्यकान्ता सूर्यजाः सूर्यप्रज्ञप्तिः सूर्यमणिः सूर्यात्मा सूझेढः सक्करणः सक्किः सृविकरणी सरिणः सणीका सृतिकाक्षारं सृपाटिका 1848 / सेवक: 1888 सेवन सेवा 1848 सेवावृत्तिः 1848 सेविनी 776 सेव्यं 945 सैतवाहिनी .: 34 सैद्धान्तिकः 634 सैन्धवं 2227 1023 सै नेकाः 1603 सैन्यं 2383 सैन्यपृष्ठः 2382 सैन्याः 1308. | सैरन्ध्री 2330 | सैरिक: सम्धवाः 1895 746 1569 2236 12441576 1216 1220 1245 824,1162 सृपाटी 3 सरिभः 2314 सगाल: सेकपात्रं से किम: सेचन . सेतुः सेना सेनानी सेनामुख सेनारक्षा सोदरः सोदर्यः 880 881 1804 565 सैरी .1470 1645 25,1216,1221 सोध्य * 263,1183 | सोपधी 1221 | सोपानं 1244 सोमा 2240 सोम 2028 / सोमप: 1209 1741 86,280 603 1363 से राहः / सेलुः Page #739 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालायां 1373 सोमपीथी 1364 | सौमिकी सोममृत 1381 सौम्यः 107 सोमभूः 1130 सौम्यं 924,1401,2625,1804 सोमयाजी 1362 सौरभेया: . 2282 सोमवल्ली 2076 | सौराष्ट्र के 1817 सोमसिन्धुः 263 सौर ष्ट्रिकः 2162 सोमा 811 | सौरिः . सोमाजनः 1664 सौरीष्टी 1827 सोभ्यासः 367 सौवरणः 1065 सोमाल: 2521 1600 सौखशायकः 1318 / सौवस्तिकं 1175 सौख शायनिकः 1318 सौविदा 1188 सौखसुप्तिकः 1318 624,1820 सौख्य 2461 सौमत: 1440 सौहार्द 1164 सौगन्धिर्क 2100,1830.2150 सौहित्यं 643 सौत्रिका 1535 सौहृद सौदामिनी स्कन्दः सौदामनी स्कन्दमाता 255 सौधं 1701 स्कन्दिलार्य: सौधर्मजा: 76 स्कन्ध 1966,846 646 2567 सोनन्द स्कन्धवाहकः 2271 सौपर्णेया | स्कन्धशाला 1665 सौप्तिकं 1332 स्कन्धशृगः सौभागिनेयः 874 / स्कन्धावार: 1017 सौमनस 1036 स्कन्धिक: 2271 1184 1636 16 Page #740 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मनुक्रमणिका 686 2439 183 858 1321 स्तन्य 668 668 2411 36. 2565,1367 2685 स्कन्धी 1955 | स्तिमि। स्कन्नः 2724 स्त्रीचिह्न स्वलनं 2774 | स्त्रीपुसौ स्खलितं 1336 स्तुतिः स्तनः स्तुतिव्रता स्तन ग्रं स्तेनः स्तनन्धयः 467 स्तेयं स्तनपा 468 स्तनमुखं . 672 स्तोकका स्तनयित्नुः स्तोत्रम् स्तमवृत्तं | स्तोमः स्तमशिखा 672 स्थगनं स्तनाग्रं स्थगित स्तनान्तरं 670 स्थगी स्तनिता स्थण्डिल्यं स्तन्यं स्थपतिः स्तब्धः 'स्थलं स्तब्धसंभार: 212 स्थलशृङ्गाटः 2131,1667 स्थली स्तम्बरारि स्थविरा स्तम्बरमा 2001 स्थाणुः . स्तम्भः . 446.1742,2301 स्थाण्ड स्तवः . 360 स्थाण्डिलशायी स्तवकः 1976 स्थाण्डिल्यः स्तविष: स्त्यानं स्वाविषा स्थान 1970 1370 604 2326 2106 1564 2074 1564 * 272 1970 242 1340 1345 2718 1322,1664 Page #741 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालाया - स्थाली | स्नुक स्थानकं 1915 / | स्थेष्ठं स्थानाध्यक्ष: 1185 स्थौरी स्थानिकः 1181 स्नसा स्थानीय 1686 स्नातकः . स्थापत्या 1188 स्नानं स्थापिन: 432 स्नायु: स्थायुकः 1184 स्नावा स्थालं 1767 स्निग्धं स्थाला 1565 स्निग्धः 1752 स्थावरं 2643 स्थाविरं स्नुतं स्थासकः 1051 स्नुहा स्थास्नु 2642 स्नुहिः / स्थितिः 1215,2503,2728 स्नेहः स्थिर: 111 स्पटिकावल: स्थिरजिह्वः 2440 स्पन्दिनी स्थिरप्रेमा 273 स्पर्धा स्थिरमदः 2388 स्पर्शः स्थूगा 1742,2662 स्पर्शनः स्थूलः 681 स्पशः स्थूलनाशः 2328 स्पष्टं स्थू नभद्रः - 18 स्थूल शाटः 1092 स्फरणं स्थूलशीर्षक: 2176 स्फाति: स्थेयः 1174.2642,1476 / स्फारणं 2642 2276 1018 1345 1030 668.1018 1018 620 1163 1787 2016 2724 2016 2016 626.2503 1774 1023 2760 2516 1941 स्पृशी 2666,2375 2077 2776 2735 2776 Page #742 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 661 1539 2530 स्फिचः स्फुट स्फुरः स्फुरका स्फुरणं स्फुरणा स्फुलनं स्मा स्मया स्मरः स्मरकूपिका स्मरण स्मरध्वजः स्मरमन्दिरं स्मरवती स्मितं स्मृतिभूः स्मृतिः स्पदा स्यादनं स्यन्दना स्यन्नं स्यमन्तकः स्यादवादी स्याद्वादी .. स्यूतं - 414 983 | स्यूतः 2666,1982 स्यूतिः 1286 स्येतः 1286 स्रक् 2776 स्रग्धी 2776 स्रवा 2776 स्रवद्गर्भा 2809 स्रष्टा 467 स्रस्तं 308793 स्रस्री 983 नाक 453 स्त्र क सतं 982 स्र वा स्रोतः . 1982 स्रोतईशः 322 स्रोतस्वती 363,453 स्रोतस्विनी 771 42,1225 स्वकीयः 2023 / स्वङ्गः 2724 ! 302 स्वच्छन्दा 1440 स्वजातिद्विट स्वदनं 2705 ' स्वधा 16.4 1014,1816 2282 271 2711 2020 2760,2673 1381 2724 1381 1898,2514 1868 1881 1881 225 899 स्वं 225 स्वकुलक्षयः 2439 525 2307 2801 Page #743 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 662 सुशीलनाममालाया 1766 1165 112 स्वनः स्वनिः स्वनितं स्वप्नक स्वभाजनं स्वभावा स्वमुखभूः स्वयं स्वयंप्रभः स्वयंभूः स्वयवदा स्ववासिनी 205 स्वा 2540 | स्वर्णकारः 1526 2542,1617 स्वर्णकायः 2553 स्वर्णारिश 671 स्वतिः 1604 स्वर्भानुः 2502 स्वर्वध्वः 205 327 स्ववासिनी 802 2813 स्वर्वापी 1856 स्वर्वेश्या 2813 स्वसा . 885 601 स्वस्त्ययनं 816 802 स्वस्रीयः 868 2783,868 स्वातन्त्र: 525 2540 स्वाती , __ER 1885 / स्वादुः 2522 स्वादुकण्टकः 2074 2501 | स्वाद्वी 2073 स्वादुरसा 1517 1781 स्वादुवारिकः 1872 186 स्वादूदः 1872 205 स्वाध्यायः 356,56,1404 स्वानः 2540 स्वान्तं 2446 स्वापः 461 1885 स्वापतेयं 225 1805 स्वामी 263, 531,40,1162 स्बरा स्वरापगा स्वरुचिः स्वरूपं स्वर्ग: स्वगिरिः स्वर्गपतिः स्वर्गस्त्रियः स्वगिका स्वगि स्वर्गीयः स्वापगा स्वर्णम् 205 स्व Page #744 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 663 2238 स्वास्थ्य स्वाहा स्वीकृतं स्वेच्छा स्वेदः स्वेदजा स्वैरिता स्वरिणी स्वैरी स्वोतं हक्कारः हक्कारक: हङ्गलः 453,730 हया 2801 यप्रियः 2106 2707 हयमारः 2001 526 हयंकषः 446 231 2432 हरणं 822 526 हरवी 1816 636 हरशेखर 1887 525 हराद्रिः 1774 360 हरिः 112,208,2230,182, 378 82,2458,2536 378 हरिकः 2246 1837 हरिकेलिया 1626 461 | हरिचन्दनं 1037 1721 हरिच्छदा 1853 हरिणः 2531 हरितः 2112,2533 1006 हरित 173,2533 / हरितकी 2026 666 हरितालः 1552,1832 * 636 / हरिदेवः .. 1144 हरिद्रा 627 1144 हरिद्रागः 733 . हरिपर्ण 2146 हरिप्रियः 2005 2553 . हरिमन्थकः 2111 हट्टाध्यक्षः 1183 हठः 336 हण्डे 461 हता. हनुमान् . हनूमान् हनुषः हन्नम् हम्भा 212 2721 . Page #745 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 664 सुशीलनाममालाया हरिमान हरिवर्षारिण हरिश्चन्द्रः हरेण्ड: हम्यं हर्यक्षा हयः हर्यश्वरा हर्षमारणः हलवोढा हलाहलं 186 हव्यभुक 1623 1607 | हव्यपा 1386 1138 ! हसः 2111 | हसनं 433,437 1703 हसनी 1754 216 हसन्तिका 1754 2230 हसा 2230 18 हंसकालीतनयः 2315 466 | हंसपादा , 1837 666 | हंसाह्वयं . 1803 1652 | हसितं 435,1982 2275 | हस्तः 88,1460,2214,651, 2346,2161 610,662 461 हस्तबन्धः 818 2247 हस्तलेप: 810 1467,2343 हस्तिक 2213 2005 हस्तिदन्तं 2146 2066 हस्तिनख: 1683 506 हस्तिनापुरम् 1676 378 हस्तिनी 2203 608,1385 | हस्तिपकः 1243 1706 हस्तिमल्लः 186 1386 हस्तिशाला 1713 हस्तिशालं 1713 1923 हस्तिषङ्गवं 2586 608 हस्ती हला हलाहर हलिः हलिप्रियः हल्लक हल्लीसक हविः हविगृह हवित्री हविभुजः हविरशन: हविष्यक Page #746 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका 1876 हाटक हानि: हारहुरा हारहर हारिः हारिद्रः . हादम् हाल: हालका हालहल हाला हाली हावः हासः हासा हासिका -हास्तिक हास्य हाहा . 1808 | हिण्डोलकः 1778 | हिम 1863 2073 2516 1516 | | हिमद्युतिः 86 2625.768 | हिमराशिः 1865 2532 | हिमवद्ध सः 1774 2503 | हिवमान् 1772 1156 | हिमवालुका 1040 2246 / हिमसन्ततिः 1865 2161 | हिमागमः 153 1516 हिमानी 1865 888 हिमालयः 1771 768 हिमांशुः 1803 434 हिरण्यं 225,1811,1908 253 हिरण्यनाम: 1773 434 हिरण्यरेताः 1922 2576 हिरण्यवर्णा 1834 * 434 हिरण्यवाहः 1906 205 हिरण्यवाहुः 2765 हिंसा 547 2008 2811 हीनः 2681 हीनदेहः 665 हीनवादी 503 1876 | होनाङ्गी 2176 हिरुक् 1837 हिङ्गः हिङ्ग निर्यासः हिङ्ग लुः हिज्जलः . . . हिण्डिरः. हिडीर: 1876 Page #747 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 666 सुशीलनाममालायां हीरः हीरक होरी ह्रकु: . 656 019 1931,1264 2756 1801 ह्रीणः ह्रीतः हीवेरं 1847 1822 1910 हुतवाहः हुताशनः 243 | हल्लेखः 1841 हृल्लेस: 253 हृष्टमानसा 458 हेक्का 2351 हैतिः 2666 2668 | हेम . 2003 हेमकन्दलः 2304 हेमतारं 2304 हेमदुग्धका 1925 हेमन्तः 1923 हेमपुष्पर्क 427 हेमपुष्पिका , 1306 | हेपाध्यक्षा 1262 | हेरम्बः 13.05 | हेरिका 2332 | हेला 378 | हेलि: 2428,970,1005 | हेषा हषा 170,1005,2486 हेषी 386 हैमवत: 969 हैमवतानि 510 हैमवती | हैयङ्गवीनं 811 / हैकि : 2036 2045 1180 261,2315 हुलमात्रिका हुलाग्रका - 1968 हतिः हृत्करः 242 761 810,82 2552 2552 2230 2162 1607 2.37,253 .. 506 1180 हृदयङ्गमं हृदयस्थानं हृदयालुः हृदयेशः होगा Page #748 -------------------------------------------------------------------------- ________________ অনুষিক 667 man हहया होत्रं होत्रीयं होमः होमकुण्डं होमभस्म होमग्निः 1136 | ह्रस्वः 1368 | ह्रादा ह्रादनी 1368 ह्रादिनी ह्लादः 1365 / लादिनी 1364 ह्रीणः 1907 ह्रोतः 1881 / ह्रीवेरं 663,2586 2542 1681,300 1937,2063 466 2063 2666 2666 2053 ह्रदनी Page #749 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलनाममालायां शुद्धिपत्रम् शुद्धम् श्लोक संख्या 2647 अजिह्मः . 2712 1278 2312 1528 2512 अशुद्धम् अजिह्रः अन्योऽन्यक्तिः अन्विष्ट अभिरुपः अद्धन्दुवै अलर्को: अवदशः अविकार्य प्रष्ठादश प्रसार पाकुल आश्चर्य प्रात्तगन्ध प्रावासः प्राशयाशः इन्द्रसुरस उपन उर्ध्वक्षिप्त उस्ट्र: कथ्यते कमकर: अन्योक्तिः अन्विष्टं अभिरूपः अद्धन्दुवै अलर्को अवदंशः अविचार्य अष्टादश असारं . आकुलं ग्राश्चर्य पुनरुक्तिः पूनरुक्तिः आश्रयाशः इन्द्रसुरसुः उपनतं ऊर्ध्वक्षिप्तं 2332 2627 2677 446 .668 1668 1617 2040 2718 2664 2267 226 135 उष्ट्रः कथ्यन्ते कर्मकरः Page #750 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शुद्धिपत्रम 666 शुद्धम् कर्मसचिव कवचं कठोरः कान्यकुब्जं कादम्बश्चा श्लोक संख्या 1173 1250 2520 1271 कुटिलं 2648 1878 2265 1043 1678 अशुद्धम् कमसचिव कवच कठारः कन्यकुब्ज कादम्बाश्च कुटिल कुल कुलनाश: कुसुमान्तं कुण्डिनन कृशलः कृतहक्तः कृत कौपोदकी क्रियते खेटः . गभनामानि गव्य .. गाधा गोनर्दीयः गुः / गोरीनाथः चन्द्रपज्ञ . . . 506 1654 301 2548 कूल पुनरुक्तिः पुनरुक्तिः कुण्डिनपुर कुशलः कृतहस्तः कृतं कौमोदकी क्रियते च रवेटः मर्भनामानि गव्यं गोधा गोनर्दीयः गुणः गौरीनाथः चन्द्रप्रज्ञ चपल: चैव 2621 661 2268 2343 1422 472 241 350 732 चपल चव 64 Page #751 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 700 सुशीलनाममालाया श्लोक संख्या 1315 अशुद्धम् चापि जडः जनै जीवातुः शुद्धम् चाथ अधिक जनैः पुनरुक्तिः 1661 2486 ज्ञेय ज्ञेयं 2444 217 ज्ञेया टकस्य तथापि तधा तडाग 1066 1263 1327 1614 जैयो, शाटकस्य तथैव तथा. पुनरुक्तिः तत् तुर्य त्रिंशत् पुनरुक्तिः तस्थानं द्विवारं 1648 तुर्य নিহা दारा द्युतस्थान द्विवार धनुः ध्रमः 2661 1606 804 753 1654 धेनुः 1266 नथापि नवम नसीरं नलर्तृणा नाकीया नामस्ति धूम्रः शान्तो तथैव नवमं नासीरं नलतरणा नारकीया नामास्ति 238 1346 87 2736 1330. 1625 2465 1420 Page #752 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शुद्धिपत्रम् 701 श्लोकसंख्या 314 320 2627 2682 1455 2022 2565 2576 1354 अशुद्धम् नामानि नाम्नि नामानि नामत्रय परितव्यं पट: . पट्ट पण्डितः / पवित पञ्चमी परिष्कृत पूजितः पूर्वापश्चिम पेशल प्रविदारणं प्रसिद्धः प्रख्यातः प्राक्तं प्राणिधानं प्लव फाण्टे बंशादि शुद्धम् नामास्ति नाम्ना नामनि नामवयं परिणतव्यं पूनरुक्तिः पट्टः पण्डितैः पवीतं पञ्चमो परिष्कृतं पुनरुक्तिः पूर्वपश्चिम पेशलं पुनरुक्तिः प्रसिद्ध प्रख्यातं प्रोक्तं प्रणिधानं प्लवः फाण्टं बंशादेः भगुरं 676 1612 2625 1323 2676 2596 1306 2505 2648 2663 415 2648 भगुरं भिध . भिधः 354 भुविः.. भुवः Page #753 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 702 सुशीलनाममालायां अशुद्धम् श्लोक संख्या 1360 भृक्त शुद्धम् भृक्त मनीषिणा गम्भीर मलिनाम्बु मस्र मनीषिणः मम्भीर मलिलम्बु मस्त्रु मन्दः मानामहः मार्गच्यतः मानद्ध मित मेदरनाम योग्यकारक पुनरुक्तिः * मातामहः मार्गच्युतः पानद्ध' मित मेदूरनाम यज्ञंकारकः 2556 750 452. 522 862 1336 415 1655 734 1362 1486 ला तुला . लावणिक वषेत वैश्य 832 लावणिक वपेत वश्य वारपत्नी विसप्रसूतं विदित विशाल उरवान् स हि वीज वीरपत्नी पुनरुक्तिः विदितं विशालं यस्य स्यादुरः वीजं वृन्दे वृक्णं 2063 2722 1315 2756 वृप्ते वृक्ण व्यञ्जनं व्यूढ 2584 2710 1166 2600 व्यजनं व्यूढं Page #754 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शुद्धिपत्रम् 703 अशुद्धम् . वेकोक्तया संशितञ्च शब्द शोकः शुद्धम् वेकोक्त्या संशितेऽर्थे शब्दोऽ शोक: श्लोक संख्या 117 2710 1643 446 शा शाटी 1066 2537 462 पृष्ठे 2633 60 Four mm or or orm m mm or 2638 श्यामस्य श्रयस्करं षणामानि सप्रयुज्यते सवेश ससक्त सप्तर्षयस्तु सस्थितिः सवित्र संशितञ्च सघात साधारण साक्षरः सीमा . सोम्भाषः सौहित्य स्थपुटः स्थल . स्यजुः . . . श्यामश्च श्रेयस्करं षट्नामानि संप्रयुज्यते संवेश संसक्त सप्तर्षीणां संस्थितिः सवित्रः संशितेऽर्थे संघाते साधारणं साक्षरैः पुनरुक्तिः सम्भाषः सौहित्यं स्थपुट स्थलं यजुः स्मृतो 1215 1312 2712 2581 2676 1784 367 643 2668 1564 . 360 स्मृते. 138 Page #755 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 704 सुशीलनाममालायां अशुद्धम् स्यू स्मृतः 451 शुद्धम् श्लोक संख्या स्वर्भाणुः स्वर्भानः 112 स्थानीपात स्थानीयात् 1632 स्युः स्मृतं स्याद स्याद् स्वस्त्रीयः स्वस्रीयः : हयकषः हयंकषः हिमागमः हिमालयो हृद्य 2626 ह्रयाह्नि नकं आह्निकं 368 465 पृष्ठ संख्यातः 470 पर्यन्तं सर्वत उपरि प्रशस्ति स्थाने परिशिष्टमिति पदं बोध्यम् / / 165 1612 किमधिकं गच्छतः स्खलनं क्वापि भवत्येव प्रमादतः / सदयाः सुजनास्तत्र चिकीर्षन्त्येव शान्त्वनाम् / / 17-1-77 ई० श्रीमतांबुधजनानामाश्रवः सुरेश या आचार्यः सम्पादकः Page #756 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पञ्चमी भावुक सुशीलनाममालायां: शुद्धिपत्रम् शुद्धम् पृष्ठ पञ्चमो भावूक चवं . चैव सप्तर्षयः सप्तर्षीणां . 17 वेकोक्तया वेकीक्त्या सूर्येन्द्रो सूर्येन्दोः . . सिंहवाहना सिंहवाहनी चन्द्रपज्ञ चन्द्रप्रज्ञ 46 स्यजवंदः यजुर्वेदः . तथवै. तथैव कर्मकरनामान कर्मकरनामानि निकृतिः, तिन्तिडाक तिन्तिडीक तक्यास्ति तस्यास्ति मन्मदिण्ण उन्मदिण्णु दुष्टबुद्धिमान मलिनम्बु मलिनाम्बु धुकृत् / द्यूतकत् स्थान पान .. स्थानं नयन कामर्थक कामार्थक Gax. MG: Page #757 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुशीलमाममालाया मशुबम् एतस्मादपि यातरनाम वारपत्ना . . गभनामानि श्चप्यु मानामहः . 117 132 चिकू 142 सवदैव पूसियो भूजामध्ये चरम रोमोदमः शुद्धम् - पृष्ठ , पंक्ति एतस्मादन्य . 114 . यातुर्नाम .. 117 वीरपत्नी .. / गर्भनामानि ... श्चाप्यु मातामहः चिकश् सर्वदैव पुखियोश्च 144 भुजामध्यं 145 चरमस् . 147 रोमोद्गमः 146 वे . नाम निगद्यते 151 DI. .. राजाह 156 कस्तूरी संज्ञक पर्याये मुकुटस्य 162 12 सौवर्णः मौक्तिकश्च... 165 वनप्रान्तं . 167 वर्णनी .. . 171 वस्त्रस्य 172 प्रौशीरं 173. E2.1 x ve.orx 22mmu r 1 MAA 150 वामानि कथ्यते 157 राजहं कस्तरी : . 161 164 संज्ञपर्यायऽपि मुकटस्य सोवर्णः मोक्तिकश्च वनप्रान्त वरणपरि तस्त्रस्य भौशौरं Page #758 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शुद्धिपत्रम् , 707 कथ्यते चैव . EMPurnwr A 163 164 पातवयारणं कमसचिव नाम व कोष्टकं स्कन्धे प्रखा कवच परशुवान् यष्टिवान् तथैव च तथापि .. सबोध सयत नसीरं मार्गच्यतः ... पृष्ठ कथ्यन्ते श्चैव . . .178 पातपवारणं. 18 कर्मसचिव ... 183 नाम वै 188 कोष्ठक स्कन्धे यत् प्रेङखा - कवचं परशुमान् 167 यष्टिमान् 167. स्तथैव च तथैव सौघ .. संयत . ... नासीरं, 210 मार्गच्युतः . . 212 शूद्राः 213 चारिणः 213 सवित्र ... : 214 पवात ....214 याज्ञकारकः .. 216 इज्याशीलो अशनत्याग तात्पर्ये 222 . नामास्ति ... 224 W00.00 चारिणी सावित्र पवित योग्यकारक: इज्यशीलो सन्यास्यनशने नामस्ति .. r r Wwx, m. Page #759 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 726.. सुशीलनाममालायां शुद्धम् : . .. गोनर्दीयः सहितो. क्षत्रस्तु पृष्ठ . पंक्ति 225 . 2. 226 4. 226..... 3. 226 .:. 11. 236 / / 14 शिलम् गानीयः ... रहितो क्षत्रप्ल शित्यम् ता मद्यतरोः .. ऽवदश शालाकास्या. मादङ्गिक . नामनिः सीमा जनै तुला :: मद्यतरो ऽवदंश... शलाकास्या . मार्दङ्गिक नामनि .. शीमा 242 248 xux 3 ... 14 263 जनै... मित वपेत कुण्डिनन . .. am < < xnxx पूर्द्धा साधान्तः ... पवत मितं वपेत् ...... कुण्डिन .... पृ॰ . सौधान्तः .. पर्वत विन्ध्यःपण्डितास् जवीयसम् उदानः .... द्रुमः . . नार्पयन्ति प्रबालाग्र 266 .. 4 270 . 271 3. 274 .... 288 12 260 ...6 26416 265 3 320. 8 322... 11 322. 17 326 2. पण्डितस् .. जवीयसम . . द्रमः नापन्ति .. प्रवालय : Page #760 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शुद्धिपत्रम् A पृष्ठ-पंकि 3263 34817 350 356 . ..! 373 15 कोविंद भुविः पिततण्डुला / कायाभवः कर्णभूल पुनःश्च मेवस्ति रामशो मारिणक्यारण चतुवर्गः वटु .. कठारः मघुरस्य धैवता. प्राक्ता कदारक सेघाते श्चाला सख्या . पेशल . .. शुद्धम् . कोविदः भुवि पीततण्डुला कायभव: कर्णमलं पुनश्च मेवास्ति : रोमशो . . माणिक्यानां - चतुर्वर्गाः . कटु ... कठोरः .. . मधुरस्य / धैवतो. प्रोक्ता ... केदारकं , संघाते . श्चाली संख्या पेशलं . COMWxxc 407 408 406 .6 4165 4166 ruxor in moo 417 -2 4.7 13 423 - 10 हृद्य 423 . 12 .. पायन्ति नामानि असार सप्रयुज्यते प्रायान्ति नामनि .. असारं संप्रयुज्यते 423 423 WWW 1.6 : 13 Page #761 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 710 सुशीलनाममालाया पंक्ति 10 समर्याद ससक्त मेय चलाचल परिप्लव जिह्नः पराल शुद्धम् समर्यादं संसक्तः ज्ञेयं चलाचलं परिप्लवः जिह्मः अरलं -पृष्ठ , . 425 425 426 427 427 427 वजिन वृजिनं الم لله 430 س WO.. प्रतिलोम व्यक्त स्थपुटं साधारणं पिरष्कृतं नामत्रयं प्रतिलाम व्यक्तः स्थपुट साधारण परिष्कृत नामत्रय बमानन चलित سس . वमाननं नामत्रय विदित खण्डित प्राप्त लब्ध चलितं गुप्त नामवयं विदितं खण्डितं प्राप्त लब्ध 436 436 मेधित प्रस्मृत द्वंय . सरम्भः प्रस्मृतं द्वय सारम्भः 443 1. Page #762 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शुद्धिपत्रम् शुद्धम् षष्ठं 444 षष्ठ मुख सस्तवः कारण प्रात संस्तवः . कारण प्रति रोदसी प्रशंसार्थे 448 YE 454 ...455 रावसी प्रशसार्थ बदमानं वर्धमानं : Page #763 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्रव्यसहायक ....सद्गृहस्थों को शुभ नामावली राशि . नाम : - स्थान 1000) पादरली श्री जैन संघ (ह. शा. जवानमलजी) . पादरलो (राज.) 1000) लुणावा श्री जैन संघ , लुणावा (राज.) 751) श्री भेरूबाग तीर्थ जैन देवस्थान पेढी (ह. श्री सुखपालचंदजी भण्डारी) जोधपुर (राज.) 501) श्री राजेन्द्रसूरि जैन ज्ञान मन्दिर जोधपुर (राज.) 501) प्रोसवाल जैन संघ (ह. शा. दीपचन्दजी) कोसेलाव (राज.) 5.1) शा. सरेमलजी तिलोकचन्दजी पोरवाल कोसेलाव (राज.) 501) शा. पारसमलजी पन्नालालजी मांडवला वाले पाली (राज.) 501) संघवी राजमलजी बोरडिया एडवोकेट भीलवाड़ा (राज.) 5.1) स्व. रसालकंवर धर्मपत्नि की स्मृ त में (ह. संघवो जौहरीलालजी पटवा) जैतारण (राजः) 5.1) सिंघवी मानकचन्दजी सोजतवाले (ह. जेठीबाई) मुम्बई (महाराष्ट्र) Page #764 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्रव्यसहायक नामावली 501) शा. छोगमलजी जसराजजी. (ह. चन्दनमलजी) : ... डेण्डा (पाली) राज 351) स्व. शा. अमीचन्द नागजी भाई की धर्मपत्नि हेमकोर बाई . . (ह. शा. पानाचन्द और रतिलाल सूरत वाले) सूरत (गुजरात) 351) पू. सा. श्री दमयन्ती श्रीजी म. एवं पू.सा. श्रीदर्शन श्रीजी म. के सदुपदेश से, रिटायर्ड डिस्ट्रिक्ट एण्ड सेशन्स जज शा. शिखरचन्दजी कोचर की सुपुत्री माणेक बहिन ने प. पू. पा. श्रीमद् विजयसुशील सूरीश्वरजी म. सा, की शुभ निश्रा में बीकानेर नगर में वि. सं. 2028 फागण (महा) ....... वद सातम रविवार को समहोत्सव शासनप्रभावना पूर्वक दीक्षा पाकर नूतन साध्वी श्री मंजुला श्रीजी नाम धारण किया, इस शुभकार्य की स्मृति में। बीकानेर (राज.) / 301) णा. चन्दनमलजी गोरधनसिंहजी . सम्पतलालजी रामपुरिया: ..बीकानेर (राज.) 301) संघवी दीपचन्दजी सौभागमलजी ...... रूपावस. ............. केकड़ी (राजः) Page #765 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 714 सुशीलनाममालाया मद्रास 301) शा. दशरथमलजी मोहनमलजी मेहता . . (वि. सं. 2030 की साल में श्रीपर्यषणा महापर्व के उपलक्ष में नाडोल में की हुई 15 उपवास तपश्चर्या की स्मृति में) नाडोल (राज.) 251) लास श्री जैन संघ लास (राज.) 251) शा. रूपचन्दजी लक्ष्मीचन्दजी की धर्मपत्नि पार्वतीबाई पाली वाले 251) शा. मानकचन्दजी बेताला नागौर वाले मद्रास 251) शा. घीसूलालजी फुलफगर जैतारण (राज.) 251) शा. खुशालचन्दजी भंवरलालजी बोथरा - खापर (महाराष्ट्र) 251) शा. गुलाबचन्दजी नेमीचन्दजी कोचर पाली (राज.) 251) संघवी मांगीलालजी मोतीलालजी डांगी केकड़ी (राज) 251) शा. देवराजजी मगनीरामजी परमार नाडोल (राज.) 251) शा. रतनचन्दजी मूलचन्दजी सुन्देशा नाडोल (राज.) 251) “शा. मांगीलालजी फौजमलजी पुनमिया नाडोल (राज.) 251) शा. सम्पतराजजो चोरडिया बोरडिया एडवोकेट.. बिलाड़ा (राज.) 201) शा. चम्पालालजी सर्राफ बिलाड़ा (राज.) Page #766 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्रव्यसहायक सूची 151) मिश्रीमलजी चम्पालालजी लोढा बिलाड़ा (राज) 151) शा. रिखबदास भूरमलजी कवरात जावाल (राज.) 151) शा. सरेमलजी मगनीरामजी परमार (वि.सं. 2030 की साल में श्रीपर्युषणामहापर्व के उपलक्ष में नाडोल में की हुई 15 उपवास तपश्चर्या की स्मृति में) - नाडोल (राज.) 101) शा. कल्याणमलजी चम्पालालजी दोशी बिलाड़ा (राज.) 101) शा. पुखराजजी तेलाड़ा बिलाड़ा (राज.) 101) शा. मीठालालजी गजराजजी मुथा जैतारण (राज.) 101) संघवी सम्पतराज ऋषभचन्द सोजतसिटी (राज) 1.1) शा. मोठालाल सरदारमल नागौरी गुन्दोज (राज.) 101) शा रूपचन्द जैरूपजी शिवगंज (राज.) 101) शा. मांगीलालजी पुनमचन्दजी नाहर नाडोल(राज.) 51) शा. राजमलजी पुखराजजी छाजेड़ सावर (राज.) Page #767 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . पूज्यपाद प्राचार्यदेव . श्रीमद्विजय सुशोलसूरीश्वरजी म. सा० कृत प्रकाशित पुस्तिकाएँ मूल्य __ नाम नाम मूल्य 1. श्री महावीर स्तवनमाला...... 2. श्री महावीर छत्रीशी 3. श्रीनूतन तीर्थ स्नवनमाला 4. स्तुति चौवीशी (द्वितीयावृत्ति) 5. नूतन जिन स्तुति-स्तवनादि संग्रह (पांच विभाग में) 1.00 6. रात्रिभोजन नो निषेध 1-00 7. परमाहत महाकवि श्री धनपाल (जीवन-चरित्र) : 1.00 8... चैत्यवन्दन भाष्यनो छन्दोबद्ध भाषानुबाद (विवेचन सहित) 2-00 6. श्री वर्धमान जिनस्तोत्र दीपिका (शब्दार्थ स्पष्टार्थ सहित) 1.00 10. श्री सिद्धगिरि पंचाशिका (श्रीसिद्धगिरिजी महातीर्थना - चैत्यवदनो, स्तवनो,स्तुतियों अने दुहाअोना संग्रह सहित) 1.00 11. श्री हेमशब्दानुशानसुधा (प्रथम विभाग) (श्री सिद्धहेमव्याकरणोपयोगी अपूर्व ग्रन्थ) 7-50 12. सूरिसम्राट नो परिचय 13. तेरकाठीया 1-50 14. श्री विजयनेमिसूरीश्वर स्वाध्याय 1-50 15. ए सारा ज प्रतापे (कर्मसत्तानो चितार) 16. ए धर्मना ज प्रतापे (धर्मसत्तानो चितार) 17. श्री रत्नाकर पञ्चविंशतिका-वृत्तिः 2-00 Page #768 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -सुशीलनाममालायां 717 नाम 18. श्री गौतम स्वाम्यष्टक-वृत्तिः (स्तोत्र-स्तवन-छन्द-देववन्दन-रासादि सहिता). . 2-00 16. जैनधर्म अने तेनी प्राचीनता (गुजराती मा.) 1-50 जैनधर्म और उसका प्राचीनत्व (हिन्दी में)........ 20. प्रात्मनिन्दा-द्वात्रिशिका प्रकाशवृत्तिः . .... 2-50 21. वर्धमान-पञ्चाशिका (गुजराती) . . . . 1-00 ... ., (हिन्दी) ... ... ... 1-5 22... प्रभु महावीर जीवन सौरभ . .........2-75 (श्रीमहावीर भगवानना अजोड़ जीवननो अनुपम चितार) : 23. श्री सिद्धचक्र कुसुमवाटिका . .... 1.00 24. दीक्षानो दिव्य प्रकाश . .. 2-5 .... (विभाग 1, 2, 3 परिशिष्ट चार सहित) 25. प्रभु प्रार्थना अटक 26. . काव्यानुशासनम् (प्रवचूरिसहितम्) मा ...... 3-75 27. - प्रात्मजागृति शतक 1:25 28. प्रमीझरणां 26. श्री गुरुवन्दन भाष्यनो छंदोबद्ध भाषानुवाद ...........: .. (विवेचनादियुक्त) "] 2-75 30. मात्मिक प्रश्नोत्तरी 31. स्याद्वादविशिका-अर्थ ............. ..1.00 32.. जिनकल्याणकस्तुति चतुर्विशतिका .. .1... 33. तीर्थवन्दना-पंचाशिका . 1.01 * 34. शुभनामस्मरणस्तोत्र 35. श्री नमस्कारमहामन्त्र-द्वात्रिशिका 36. श्री नमस्कारमहामन्त्र-मौक्तिकमाला Page #769 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 718 सुशीलनाममालायां नाम - के. मूल्य 1.. .2-5. 37. संघोपमास्तव बत्रीशी 38. श्री नमस्कारमहामन्त्र-पंचाशिका 39. श्री प्रश्नोत्तर रत्नमाला 40. स्याद्वादनी सर्वोत्कृष्टता 41. सुशल साहित्यसंग्रह 42. प्रगुरुदेव विरह गीत 43. भावना सारांश 44. भावना समुच्चय * ......... 45. रत्ननीमाला (विभाग पहेलो) 46. स्थावरजीवनी सिद्धि 47. पांच भावनु स्वरूप 48. बावन बोलनी प्रश्नोत्तरी 46. चैत्यवन्दनवृत्ति 50. सम्यक्त्व रत्नदीपक (विभाग पहेलो) 51. अहंन्प्रष्टोत्तर सहस्त्रनाम स्तोत्र 52. प्रत्युत्तम सातशेत्रो 53. कालनु स्वरूप (गुजराती) काल का स्वरूप (हिन्दी) 54. तीर्थयात्रा संघनी महत्ता 55. सुशील लेख संग्रह (विभाग पहेलो) 56. मदिरा पाननो निषेष 57. सुशीलनाममाला (संस्कृत शब्दकोष) 2-50 1-25 2-75 4-75 2... 2-25 2-75 2-75 5-25 2-75 ..2-50 25... Page #770 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पू० प्रा० श्रीमद् विजयसुनीलसूरीश्वरजी म. सा.. - कृत अनुवादित पुलिकाएँ 1.. तार्किक शिरोमणि पू० प्रा० श्रीसिद्धसेनदिवाकरसूरीश्वरजी म० सा० कृत . ....... / द्वात्रिंशद द्वात्रिशिका' का मंक्षिप्त भावार्थ . . (1, 2, 3, 4, 5 द्वात्रिंशिका पर्यन्त) 2. याकिनीमहत्तराधर्मसूनु पू० प्रा० श्रीहरिभद्रसूरीश्वरजी म० सा० कृत 'शास्त्रवार्ता समुच्चय' ग्रंथ का भावार्थः / (1, 2, 3 स्तवक पर्यन्त) 3. परमार्हत महाकवि श्रीधनपाल कृत _.. तिसकमजगै' कथा का प्रति संक्षिा भावार्थः (अपूर्ण) 4. कलिकालसर्वज्ञ पू० प्रा० श्रीहेमचन्द्रसूरीश्वरजी म. सा. कृत 'काव्यानुशासन' अन्य का संक्षेपार्थः (प्रथमाध्याय पर्यन्त). 5. न्यायसमुच्चय-न्याय संग्रह अन्य का संक्षिप्तार्थः 6. परमार्हत श्रीकुमारपाल भूपाल विरचित 'प्रात्मनिन्दा-द्वात्रिशिका' का भावार्षः। 7. 'भीगौतमस्वाम्यष्टक' का प्रर्थः। 8. 'भोचत्यवचन-चौवीशी' का भावार्थः / , Page #771 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पू० प्रा० श्रीमद् विजयसुशीलसूरीश्वरजी म. सा. द्वारा सम्पादित व संयोजित ग्रन्थों की सूची 1. 'धातुरत्नाकर' अन्य का प्रथम भाग तथा (द्वितीयावृत्तिः) प्राठवां भाग 2. 'कृत्प्रत्ययानां महायन्त्रम्' 3. 'द्वात्रिंशद् द्वात्रिशिका' टीका युक्ता (प्रथमा, द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी, पंचमी) 4. शास्त्रवार्तासमुच्चयः' वृत्तिसहितः... (प्रथमविभाग, द्वितीयविभाग), 5. 'न्यायसमुच्चय' टोकायुक्तः 6. 'काव्यानुशासनम्' वृत्तियुक्तम् . (प्रथम विभाग) श्री उत्तम प्राराषवादि संग्रह Page #772 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5555555555555555555555555 5 ॐ ह्री अहं नमः // ॥श्री नेमि-लावण्य-दक्ष-सुशीलग्रन्थमाला रत्न ५०वां // 'सुशीलनाममाला, 乐乐所乐乐乐斯斯斯斯斯斯斯斯乐乐斯斯斯折折折折折乐乐乐乐坊乐乐乐斯5 ग्रन्थ की सम्मतियां sssssss. परम्परोपनहो जीवाना 卐 प्रकाशक 卐 आचार्य श्री सुशीलसूरि जैन ज्ञान मंदिर' - शान्ति नगर-सिरोही (मारवाड़) राजस्थान. 555555555555559999 55ess Page #773 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( II ) 9 ॐ ह्रीं अहं नमः // श्री नेमि-लावण्य-दक्ष-सुशीलग्रन्थमाला रत्न ५०वां // TAIT शासनसम्राट-परम पूज्याचार्य महाराजाधिराज श्रीमद्विजयनेमिसूरीश्वरजी म. सा० के पट्टालङ्कार-साहित्यसम्राटपरमपूज्याचार्यप्रवर श्रीमविजयलावण्यसूरीश्वरजी म० सा० के पट्टधर-कविदिवाकर-परमपूज्याचार्यवर्य श्रीमद्विजयदक्षसूरीश्वरजी म. सा. के पट्टधर जैन धर्मदिवाकर-परमपूज्याचार्यदेव श्रीमविजथसुशीलसूरीश्वरजी म. सा० विरचित 'सुशीलनाममाला' ग्रन्थ की सम्मतियां। // // ॐ -: प्रकाशक :आचार्य श्रीसुशीलसूरिजनज्ञानमन्दिर शान्तिनगर-सिरोही [मारवाड़] राजस्थान. Page #774 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( III ) द्रव्य सहायकपाली श्री जैन संघ शेठ नवलचन्द सुप्रतचन्द ___ जन देव की पेदी गुजराती कटला, पाली [मारवाड़] राजस्थान / श्री वीर सं० 2505 विक्रम सं० 2035 नेमि सं० 30 नकल 1500 म मुद्रकश्री प्रकाशमल भण्डारी पेकर्स इन्डिया जालोरी गेट, जोधपुर [मारवाड़] राजस्थान / Page #775 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( VI ) प्रकाशकीय निवेदन प्रातःस्मरणीय परम पूज्य कलिकाल सर्वज्ञ श्रीमद्हेमचन्द्रसूरीश्वरजी म. सा० का विरचित 'श्रीअभिधान चिन्तामणि कोष' का आलंबन लेकर समर्थ विद्वान् पूज्यपाद् प्राचार्यदेव श्रीमद्विजयसुशोलसूरीश्वरजी म. सा० ने विक्रम सं. 2027 को साल में राजस्थान के सुप्रसिद्ध पाली शहर में चातुर्मास सपरिवार रह कर 'सुशीलनाममाला' नाम से समलंकृत एक संस्कृत नूतन कोष की 2048 श्लोक में पूर्णाहुति की थी। यह ग्रन्थ प्रकाशित हो रहा है, इसकी हमको अत्यंत खुशी है। साथ में इस ग्रन्थ पर अनेक पूज्य प्राचार्य महाराजादि मुनि महात्माओं को जन-जनेतर विद्वानों प्रोफेसरों की तथा वकील-डॉक्टर-शिक्षकादि सुज्ञजनों की सम्मतियों भी पृथग् पुस्तिका रूपे यह प्रकाशित करते हुए भी हमारे हर्ष में अभिवृद्धि हुई है। सम्मतियाँ भेजने वाले सभी महानुभावों का तथा द्रव्य सहायक पाली संघ की शेठ नवलचन्द सुप्रतचन्द जैन देव को पेढी का हम सादर बहुमान पूर्वक आभार मानते हैं। धन्यवाद ! र 卐 // Page #776 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनधर्म दिवाकर-शासनरत्न-तीर्थप्रभावक है. परमपूज्य आचार्यदेव श्रीमद१ विजयसुशीलसूरीश्वरजी म. सा०९ wwwwwwwwwwwwwwwimrawr प्रापश्रो शासनसम्राट्-सूरिचक्रचक्रवत्ति-तपोगच्छाधिपति परम पूज्य प्राचार्य महाराजाधिराज श्रीमद्विजयनेमिसूरीश्वरजी म. सा. के सुविख्यात पट्टालङ्कार-साहित्यसम्राट-व्याकरणवाचस्पतिशास्त्रविशारद-कविरत्न प० पू० आचार्यप्रवरश्रीमविजयलावण्यसूरीश्वरजी म. सा. के प्रधान पट्टधर-व्याकरणरत्न-शाखविशारद-कविदिवाकर-देशनादक्ष प० पू० प्राचार्यवर्यश्रीमद्विजयदक्षसूरीश्वरजी म. सा० के सहोदर पट्टधर हैं। प्रापश्री का जन्म वि० सं० 1973 को साल में भाद्र शुद द्वादशी के दिन महागुजरात में आये हुए सुप्रसिद्ध चारणस्मा गांव में चौहाण गौत्र के वीशाश्रीमाली स्व० महेता चतुरभाई ताराचन्दजी की धर्मपत्नि स्व० चंचलबाई की कुक्षी से हुआ था। प्राप श्री की भागवती दोक्षा पूर्वभव की आराधना, इस भव में माता-पिता के द्वारा बाल्यवय में पड़े हुए सुसंस्कार और सद्गुरु के संयोगादि के कारण से दस वर्ष की अवस्था में चारित्र के पुनीत पन्थ में प्रयाण करने की शुभ भावना प्रगट हुई थी। वि० सं० 1988 कार्तिक (मागशर) वद बीज के दिन 15 वर्ष की बालवय में परमपूज्य प्रवतंक मुनिप्रवर श्रीलावण्यविजयजी म० सा० के वरदहस्ते मेवाड़ के पाटनगर उदयपुर में पिताजी की सम्मति और विद्यमानता में महामहोत्सव पूर्व हुई थी। Page #777 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रापश्री की बड़ी दीक्षा वि० सं० 1988 महाशुद पांचम (वसन्त पञ्चमी) के दिन शासनसम्राट् प० पू० प्रा० श्रीमद्विजयनेमिसूरीश्वरजी म. सा० के वरदहस्ते, महागुजरात में आया हुआ श्रीसेरीसा तीर्थ में नूतन जिनमन्दिर में प्राचीन मूलनायक श्रीसेरीसा पाश्वनाथ प्रभु के प्रवेश प्रसंग पर चलता हुआ श्रीबृहनन्द्यावर्तपूजन युक्त महामहोत्सव में हुई थी। प्रापश्री को गणिपदवी वि० सं० 2007 कात्तिक (मगसर) वद छठ के दिन साहित्यसम्राट प० पू० प्रा० श्रीमद्विजयलावण्यसूरीश्वरजी म. सा० के वरदहस्ते, सौराष्ट्र में पाया हुप्रा वेरावल बन्दरगाव में प्राप श्री के गुरुवर्य पूज्य मुनिप्रवर श्री दक्षविजयजी म. सा. के साथ में सोलह दिन के महामहोत्सव पूर्वक हुई थी। प्रापभो को पंन्यास पदवी वि० सं० 2007 वैशाख शुद त्रीज (अक्षय तृतीया) के दिन स्व० शासनसम्राट् समुदाय के पाठ पूज्यपाद प्राचार्य महाराजादि विशाल साधु समुदाय, साध्वी समुदाय और श्रावक श्राविकादि जैन-जनेतर जनता के समक्ष, स्व समुदाय के 15 गणिवरों के साथ राजनगर-अहमदाबाद में महामहोत्सव पूर्वक हुई थी। प्रापश्री की उपाध्याय और प्राचार्य पदवी वि० सं० 2021 महा शुद त्रीज के दिन उपाध्याय पदवी और पांचम (बसन्त पञ्चमी) के दिन प्राचार्य पदवी पूज्यपाद प्राचार्यप्रवर श्रीमद् विजयदक्षसूरीश्वरजी म. सा० वरदहस्ते Page #778 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 3 ] राजस्थानान्तर्गत मरुधर देश में आये हुए श्रीराणकपुरजी तीर्थ तथा श्री वरकाणाजी तीर्थ समीपवर्ती मुण्डारागांव में अभूतपूर्व शासन प्रभावना पूर्वक 61 घोड के उद्यापनादि महामहोत्सव युक्त हुई थी। उसी प्रसंग पर प्रापश्री को प्राचार्य पदवी के साथ साथ 'शाख विशारद' 'साहित्यरत्न' और 'कविभूषण' इन तीन पदों से भी समलङ्कृत किये थे। प्रापश्री मे जैन धर्म के विद्यमान 45 आगम के योगोद्धहन विधिपूर्वक किये हैं। श्रीवीशस्थानक तप की और श्री नवपदजी महाराज को अोली को भी प्राराधना विधिपूर्वक को है। श्रीवर्द्धमानतप की 36 मी अोली की आराधना हो गई है। तीर्थाधिराज श्रीसिद्धगिरीजी महातीर्थ की विधिपूर्वक 66 यात्रा और चोवीहारा छट्ठ कर के दो दिन में सात यात्रा भी कर ली है। तदुपरान्त सूरिमन्त्र के पश्चप्रस्थान की विधिपूर्वक पञ्चपोली युक्त सम्यग् आराधना की है। प्रापश्री का ... प्रतिदिन 108. बार सूरिमन्त्र का अखण्ड जाप अद्यावधिचालू है। नित्य प्रात्मरक्षा नवकार मन्त्र, सात स्मरण, जिनपञ्जरस्तोत्र, ग्रहशान्तिस्तोत्र, श्रीपार्श्वनाथ मन्त्राधिराजस्तोत्र, पोऋषिमण्डलस्तोत्र, श्रीतत्त्वार्थाधिगम सूत्र, शत्रुञ्जयलघुकल्प पौर श्रीगौतमाष्टक प्रादि का स्वाध्याय भी अद्यावधि चालू है। Page #779 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 4 ] आपश्री के वरद हस्ते श्रीमूछाला महावीर तीर्थ में, श्री कापरडाजी तीर्थ में, श्री जैसलमेर तीर्थ में, गुजरात के पाटण शहर में भी प्रतिष्ठा परम शासन प्रभावनापूर्वक हुई है। तदुपरांत जोधपुर, उदयपुर, पाली, सिरोही, सादड़ी, रानी स्टेशन, खीमेल, खुडाला, नांदणा, धणी, शिवगंज, जावाल, अनदोर, मनोरा, गूडा-बालोतान्, गुडा-एन्डला, लकडवास, गुडली, बडी-रुपाहेली आदि क्षेत्रों में भी परम शासन प्रभावना पूर्वक प्रतिष्ठाएँ हुई हैं। ____ खीमेल में और बिलाड़ा में, श्रीब्राह्मणवाडजी तीर्थ में और खौड़ गांव में तथा रानीगांव में भी अञ्जननलाका तथा प्रतिष्ठा अनुपम शासन-प्रभावना पूर्वक हुई हैं। मापश्री को शुभ निश्रा में 1. खौड़ से पैदल संघ श्री कापरडाजीतीर्थ का और श्री राणक पुरजी की पञ्चतीर्थो का निकला है। 2. बिजोवा से पैदल संघ श्रीराणकपुरजी पञ्चतीर्थी का निकला है। 3. खीमेल से पैदल संघ श्रीराणकपुरजी पञ्चतीर्थी का निकला है। - 4. सिरोही से पैदल संघ श्री पाबूजीतीथं का निकला है। .. 5. पाली से पैदल संघ श्री कापरडाजीतीर्थ का निकला है। 6. पीपाड़ से पैदल संघ श्री फलवृद्धिपार्श्वनाथजी तीर्थ का निकला है। Page #780 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 7. केकड़ी ने पैदल संघ श्रीचंबलेश्वरजीतीर्थ का निकला है। 8. उदयपुर से पैदल संघ श्री केशरियाजीतीर्थ का निकला है। 6. सादड़ी से पैदल संघ श्रीकेशरियाजीतीर्थ का निकला है। 10. जोधपुर से पैदल संघ श्रीगांगाणीजीतीर्थ का निकला है। 11. उदयपुर से पैदल संघ श्रीराणकपुरजीतीर्थ का निकला है। प्रापपी को 1. श्रीजैसलमेर तीर्थ में प्रतिष्ठा प्रसंग पर श्रीसंघ ने समारोह पूर्वक 'जैनधर्मदिवाकर' पद से विभूषित किया है। (वि० सं० 2027) 2. रानी स्टेशन में प्रतिष्ठा प्रसंग पर श्रीसंघ ने समारोह पूर्वक ... 'मरुधर देशोद्धारक' पद से समलंकृत किया है। (वि सं० 2028) 3. श्रीचंवलेश्वरतीर्थ में संघमाला प्रसङ्ग पर श्रीकेकड़ी संघ ने समारोहपूर्वक 'तीर्थप्रभावक' पद से विभूषित किया। (वि० सं० 2026) 4. पाली शहर में प्रतिष्ठा प्रसंग पर श्रीसंघ ने समारोहपूर्वक . 'राजस्थान दीपक' पद से समलंकृत किया है (वि.सं. 2031) 5. जोधपुर नगर में प्रतिष्ठा प्रसंग पर श्रीसंघ ने समारोह पूर्वक - शासनरत्न' पद से विभूषित किया है (वि० सं० 2031) / मापश्री के सदुपदेश से (1) श्रीकापरड़ाजी तीर्थ में 'समवसरण मन्दिर' का निर्माण (2) खीमेल में 'श्रीपावापुरी मन्दिर' का निर्माण हुआ। (3) जोधपुर में 'शाश्वतजिन समवसरणमन्दिर' का निर्माण हुआ। Page #781 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 6 ] (4) नाडोल में 'श्रीसिद्धचक्र मन्दिर', 'श्रीपावापुरी मन्दिर' का तथा लघुशान्ति के कर्ता श्रीमान देवसूरिजी म. सा० का जीवन-चरित्र पारस के पट्ट में तैयार हो रहा है। (5) श्रीजैसलमेर पञ्चतीर्थी में जिनमन्दिरों का जीर्णोद्धार का काम चल रहा है। (6) जावाल में 'श्रमण भगवान महावीर कीत्तिस्तम्भ' का कार्य शुरू कराया है। (7) खिमाड़ा में 'स्व० प्रा० श्रीमद्विजयलावण्यसूरीश्वरजी समाधिसद्गुरुमन्दिर' का काम हो गया है। (8) यूरगांव में जिनमन्दिर के पास श्रीसुशील जैन श्वेताम्बर धर्मशाला जिला-उदयपुर तैयार हुई है। (E) सिरोही में प्राचार्य श्रीसुशीलसूरि जैन ज्ञान मन्दिर' बन रहा है। प्रापश्री का ग्रंथ सर्जनादि / संस्कृत मेंतीर्थङ्कर चरित्र, षड्दर्शन दर्पण, सुशील नाममाला (संस्कृत शब्दकोश) छन्दोरत्नमाला, काव्यानुशासन टीका, शीलदूतवृत्ति, अर्हन अष्टोत्तरसहस्रनाम स्तोत्र, आत्मनिन्दा द्वात्रिशिका टीका, धीरत्नाकर पञ्चविशिका टीका इत्यादि हुए हैं। गूर्जर भाषा मेंश्रीहेमशब्दानुशासन सुधा, रत्ननीमाला, सम्यक् रत्न दीपक, प्रभु महावीर जीवन सौरभ, तीर्थयात्रा संघनी महत्ता, सुशील लेख संग्रह, सुशील साहित्य संग्रह इत्यादि हुए हैं। . [छोटे-बड़े 108 प्रयों को रचना प्रापश्री ने की है, और अनेक ग्रन्थों का सम्पादन कार्य भी प्रापश्री के द्वारा हुआ है। . Page #782 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रापश्री के संसारी पिताश्री और संयमावस्था के साधु, स्वर्गीय शासनसम्राट् प० पू० प्राचार्य महाराजाधिराज श्रीमदविजयनेमिसूरीश्वरजी म० के शिष्यरत्न संयमवयस्थाविर पूज्य मुनिराज श्रीचन्द्रप्रभविजयजी म. संयम की सुन्दर श्राराधना करके स्वर्ग सिधाये हैं। आपश्री के संसारी ज्येष्ठ बन्धु और संयम अवस्था के गुरु स्वर्गीय साहित्य-सम्राट् प० पू प्राचार्यप्रवर श्रीमद्विजयलावण्यसूरीश्वरजी म. सा. के प्रधान पट्टधर-व्याकरणरत्न-शास्त्रविशारद-कविदिवाकर-देशनादक्ष-धर्मप्रभावक पूज्य प्राचार्यप्रवर धीमद्विजयदक्षसूरीश्वरजी म. सा. अनुपम शासन की प्रभावना कर रहे हैं। . प्रभावमा 99 प्रापश्री को-संसारी छोटी बहिन और संयम अवस्था की साध्वी, स्व. शासनसम्राट् समुदाय के प्राज्ञात्तिनी परमविदुषी स्व० पू० साध्वी श्रीप्रभाश्रीजी म० श्री की शिष्या, बालब्रह्मचारिणी-विद्यानुरागिणी-संयमी पू० साध्वी श्रीरवीन्दुप्रभाश्रीजी म० भी संयम की सुन्दर प्राराधना कर रही हैं। आपश्री भी-बालब्रह्मचारी, 46 वर्ष के निर्मल दीक्षा पर्याय वाले, व्याकरण-न्याय-साहित्य-छन्द-कोश-पागम-प्रादि अनेक शाखों के ज्ञाता, प्रशान्त, सौजन्यमूति, प्रतिभाशाली, सञ्चारित्र शील, क्रियापात्र और ज्ञानध्यानादिक में सदा लीन रहते हैं। दिनाङ्क 17-6-1978 मनोजकुमार बाबुलालजी हरण बी. कॉम. सिरोही (मारवाड़) Page #783 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 8 ] . . . . . I.T.FRE पाल निषण्णा कमले भव्या, अहस्ता सरस्वति / सम्यगज्ञाप्रदाभ्यात, . भव्यानांभक्ति-शालिनाम् / 555555555555555555 Page #784 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ISADSHADANm SASAKSTARSne AVRATRNAKAKKHAIRSTARUNSLASSURSUISIUS R271322222222222222 "प्राचार्य श्रोविजयसुशीलसूरीश्वरजी ए रचेली स सुशीलनाममाला' ना प्रारंभना बे फारम जोया। तेमनो आ प्रयत्न प्रशंसनीय छ। तेमां ज प्राजे ज्यारे साधुग्रोमां ग्रन्थ कर्तृत्व घटी राम होवान कहेवामां आवे छे, तेवे अवसरे aa नाममाला एक इल जरुरियात पुरी पाडवा साथे पोतानुं प्रागवं गौरव स्थापित करे छ। आ नाममालामां अनुष्टुप्छन्दमां बने तेटलां वधु शब्दोनो र संग्रह करायो छे, ए स्तुत्य छे. अने ते कारणे प्रा नाममाला अभ्यासीवर्गने खूब उपयोगी बनशे।" प्रमदावाद / विजयनन्दनसूरि पांजरापोळ ता० 6-2-75 ज्ञानशाला RRRRR RRRRRRRRRNEN Page #785 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 2 ) نتنا منان **** कलिकाल सर्वज्ञ श्रीहेमचन्द्रसूरीश्वरजी रचित "अभिधान चिन्तामणि " कोशना आधारे तमे रचेल नूतन संस्कृतश्लोकमां “सुशीलनाममाला" नूतन कोष हालना कालमा समाजने घणोज उपयोगी थशे, तेमां बे मत नथी। दिनप्रतिदिन प्रावू नूतन संस्कृत साहित्य बहार पाओ के जेथी समाज ने खूबज उपयोगी थाय एज शुभेच्छा। ***@******************** वेरावल (सौराष्ट्र) / विजयमोतिप्रभसूरि / प्रासो शुद 14 गुरुवार जैनउपाश्रय ता० 7-10-76 जगावाव चोक RAMRITERARAMMARTRAITANNIVARNE Page #786 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 3 ) **************** __कलिकाल सर्वज्ञ भगवन्त प्रा० श्रीहेमचन्द्रसूरीश्वरजी व विरचित "अभिधान चिन्तामणि" संस्कृतशब्दकोष र तदनुसार 2848 संस्कृतश्लोकप्रमारण "सुशीलनाममाला" ए शुभ नामथी सुशोभिन शब्दकोष नूतन युगना अभ्यासीनो माटे उपकारी अने उपयोगी निवडशे. तमारो प्रयत्न अतिसबल अने सफल बन्यो छे. अने चिरंजोत्र बनवा निर्मायो छे. विद्वानोना करकमलमां जशे त्यारे पास ग्रन्थ अतीव प्रादरणीय बनशे. प्रा योजना दीर्वदृष्टिथी करवामां आवेल छे. प्राशा छ। के वधु ने वधु तमारो (ग्रन्यकर्ता प्रा० श्रीविजयसूशीलसूरिजीनो) प्रयत्न स्व-पर श्रेयस्कर बनो. **RRRRRRRR*** मुंबई-56 A. S. __ लो० आ० मेरुप्रभसूरि जैनउपाश्रय महात्मा गांधी रोड वोलेपार्ला (पूर्व) दिनाङ्क . 1-10-76 * Page #787 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ] 4 ] // ॐ ह्रीं अर्ह नमः / / of "सुशीलनामनाला"-निर्माणकृते शुभाशीराशिमालामुनीन्द्रं तीर्थपं सावं, नौमि नेमि जगद्गुरुम् / लावण्- शीलशाल्यङ्ग, दक्षमोदक्षमोत्तमम् // 1 // "यथा नाम तथा गुणाः" इत्युक्तिमनुसृत्येयं नाममाला Ey सुन्दरतरशीलालङ्कारालङ्कृतत्वाद्यथार्थाभिधानागुणनिधाना च। कलिकालकल्पतरुकल्प- कलिकालसर्वज्ञेन भगवता ॐ श्रीमद्धेमचन्द्राचार्यवर्येण विरचिता 'ऽभिधानचिन्तामणि' सदभिधानशब्दकोषयटिष्ठपरिपाटीपरिपुष्टत्वेन सुवर्णसुवाससंवलनसादृश्यं समजनिष्ट / दृग्गता पठ्यमाना चेयं 'सुशीलनाममाला', संस्कृतसाहित्योपासक-सर्वजनता-सार्वजनीनता जनयतु, विजयतु तुच जगतीतले समुद्र-सूर्य-सुधाकर-कमलाकर-धराधरादिसंस्थिति यावद् / शाखविशारद-कविभूषण-साहित्यरत्नाचार्यश्रीविजयसशोलसरिवरो मदोयसांसारिकोऽनजोऽपि विनेयोऽपि सुशीलतालतालवालकल्पोऽनल्पायुष्मान् सम्भूय श्रीजिनेन्द्रशासनप्रभावनाभा सुरकार्यकलापकरणोद्यतो भवत्वनुदिनमिति मे मङ्गलमनीषासहकृतशुभाशीराशिमालासराला॥ 2503 श्रीवीराब्दे, 2033 विक्रमेऽब्दे, 28 श्रीनेमिवत्सरे, सु 13 लावण्यवर्षे, चैत्रशक्लसप्तम्यां, रविवासरेऽलेखि विजयदक्षसूरिणा॥ दिनाङ्कः-२७-३-७७ / मरुधरस्थे जावालनगरे शाश्वतीचंत्रीश्रीनवपदावलिसमाराधना याः प्रथममङ्गलदिने चेति शुभं र कल्याणमस्तु // N O * * * ** * * Page #788 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 5 ] अभियः प्रथ कोशो हि कवीनां नृपाणामिव महदू बलम्, न तेन विना समर्थोऽपि कवितृ पो वा किञ्चित् कपारयति, कोशो द्विविधः, अर्थात्मकः शब्दात्मकश्च, प्रत्रास्माकं शब्दात्मकः कोशोऽभिप्रेतः। पुरा अनेक विद्वत्तल्लजैविविधा गद्यपद्यमयाः संक्षिप्ता विस्तृताश्च बहवः कोशा व्यरच्यन्त, तथापि समये समये समर्थपुरुष स्तवृद्धिः कर्तव्यति नीतिवाक्य मनसि सम्प्रधार्य विद्वद्र धुरीणाचार्य श्रीविजयसुशीलसूरीश्वरेण या " सुशीलनाममाला" दृब्धा सा भृशं प्रशंसाए / एतादृशं कार्य न हि स्वल्पशक्त्या प्रनवहितस्वान्तेन वा साधयितुं शक्यते / कलिकालसर्वज्ञा श्रीमद्धेहचन्द्रसूरीश्वरभगवता विरचिताऽभिधानचिन्तामणि नाम* मालायाः सरणिमनुसृत्य भूयसा प्रयासेन कृतां सुशीलनाममालामुपयुज्य विपश्चिन्मूर्धन्या विद्यार्थिनश्च सर्वेषां परिधर्म सप्रसवं विदधीरनित्यस्मदीया हार्दिकी शुभ कामना। " श्रीमत्सुशीलविदुषा, दृग्धा हि सुशीलनाममालेयम् / प्राचन्द्रार्कमिहोया, नन्दतु पापठ्यमाना जः // 1 // " अमदाबाद विजयदेवसूरिः / सं० 2033 प्राश्विन कृ०६ / विजयहेमचन्द्रसूरिः दिनांक 2-11-77 / शान्तिनगर-जैन उपाश्रय . R2R2222222222222222 Page #789 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 6 ] र श्रीअभिधानचिन्तामणि कोषना प्रालंबने तमोए 2848 र संस्कृत श्लोकप्रमाण 'श्रीसुशीलनाममाला' नामनोशुभग्रन्थ रचेल छे, ते जाणो अनुमोदना / ते संस्कृत शब्दकोष सर्वेने उपयोगी बने तेवी शुभेच्छा। पालीताणा तारीख 12-10-76 विजय जयानंदसरि . नेमि-दर्शनज्ञानशाला 卐 Page #790 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 7 ] वन्दना. पत्र मल्यो. "राजानी जेम विद्वान्ने कोषनी अभिवृद्धि प्रानन्द प्रापनारी थाय छे. कोशमां-अर्थबोधक सत्त्व जेटलु विशेष होय तेटलु तेनु मूल्यांकन विशेष रहे छे. एवं प्रस्तुतमां 2 सधायु हशे !" पासो वदि 3 दिनांक : 13-10-76 विजयधर्मधुरंधरसूरि जैनउपाश्रय-पांजरापोळ प्रमदाबाद-३८०००१ + + + Page #791 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 8 ] 9999999999999999 'सुशीलनाममाला' अभिधानचिन्तामणि कोशनी जग्याए आपना हाथे बहार पडे छे. एज विद्वानो शिष्यनी परंपरामां गौरव ने उन्नतमुखे प्रशंसा करवा लायक छे. बाकी वाचकवर्ग तेनो लाभ उठावी प्रशंसा करे त्यारे ज ग्रन्यकर्तानी शोभा छे. . सूर्योदय थतो होय तो कोइने 'आंगळी बताववानी जरुरत रहेती नथी, तेनी मजा तो प्रांख ज लूटो शके छे. ए तो पुस्तकनो अभ्यास करी विद्यार्थीश्रो ज प्रशंसा करी जाणे एज। राजा पण कोश विनानो राज्य करी शकतो नथी तेम पंडित पण कोशविनानो कवि बनी शकतो नथी एटलु लखी विरमु छु। अमदाबाद-१ दिनाङ्क 14-10-76 प्रियंकरसूरि मांडवीनी पोळ जन उपाश्रय 9595959595959599999999999999999) Page #792 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 6 ] FARARIशायराशाशाशासाशाशाशाशासाशासारा __ 'संस्कृत साहित्य संदर्भमां एक ग्रन्थरत्ननी वृद्धि थइ रही छे. ते जाणो परम संतोष.' **KAWA** 1 विजयचन्द्रोदयसूरि पासो वद 3 . तथा सोमवार प न्यास प्रशोकचन्द्रविजयगणि ता०६-१०-७६ . | जैननगर, जैनउपाश्रय अमदावाद-७ ॐ // // ANAKWA संशशाशाशाशाशाशाशाशास्यास्यास्यास्यास्याणाशासाशाशा Page #793 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 10 ) ** “व्याकरणना अभ्यासी जीवोने माटे कलिकाल सर्वज्ञ पू० प्राचार्य भगवन्त श्री हेमचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजे "श्रीअभिधानचिन्तामणी" कोषनु सुंदर सर्जन कयु. तेनुपालंबन लइ सरलरीते समजी शकाय तेवो रोते केटलाक प्रकाशनो थया छ। . आ “सुशीलनाममाला" कोष पण अभ्यासमां रो घणो सारो सहकार प्रापे तेवो सुदर ग्रंथ छे. पू० प्रा० श्रीमद्विजयसुशीलसूरीश्वरजी म० श्री ए * *** ** आ ग्रन्थने तैयार करवामां घणी काळजी राखी छे. विद्वानोने तथा संस्कृतना अभ्यासी जीवो ने 'पा ग्रन्थ खरेखर स उपयोगी थशे. ज्ञानभंडारोए वसाववा जेवो छ / " ** * वोंछीमा तारीख 4-10-76 | विजयनीतिप्रभसूरि जनउपाश्रय ***** 卐 卐 卐 Page #794 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 11 ) प्रापश्रीनो विद्वत्ता, साहित्य सेवा अने प्रात्मीयता अजोड छे. तेनी हुँ मूरि भूरि अनुमोदना करु छु अने इच्छु छु के प्रापश्रीए बनावेलो प्रा सुशीलनाममाला' नामनो ग्रंथ संस्कृतना जाणकार सर्वने उपयोगी थाय एवी शुभ कामना। सिरोही दिनांक 22-10-76 उपाध्याय चन्दनविजयगणि श्रीहीरसूरीश्वरजी जनउपाश्रय . Page #795 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 12 ] पूज्यपाद प्रातःस्मरणीय कलिकाल सर्वज्ञ श्रीमद्हेमचन्द्र7 सूरीश्वरजी महाराज विरचित 'श्री अभिधानचितामणी' a कोश- मालंबन लइ, आपश्रीए 2848 श्लोक प्रमाण श्रीसुशीलनाममाला' नामनो या नूतन संस्कृत कोश बनान्यो छे तेनी अंतःकरण पूर्वक हुँ भूरि भूरि अनुमोदना करु छु। प्रापनो अन्तिषद् उपाध्याय सिरोही ( राजस्थान) दिनाङ्कः . 22-10-76 विनोदविजयगणि श्रीहीरसूरीश्वरजी जैन उपाश्रय LAT Page #796 -------------------------------------------------------------------------- ________________ / 13 ) के विद्वद्वयं प्रशांतमूर्तिपरमपूज्य प्राचार्यदेव श्रीमविजयसुशीलसूरीश्वरजी महाराज साहेब विरचित 'सुशीलनाममाला' शब्दकोश संस्कृतना अभ्यासोवर्गने उपयोगी थशे. पूज्यपाद् प्राचार्यदेवश्रीजीनी साहित्य अंगेनी सेवा घणीज अनुमोदनीय अने अभिनन्दनने पात्र छे. - दिनाङ्क 15-10-76 .---- पंन्यास विकासविजयगणि जंन न्याति नोहरा, सादडी, मारवाड़ 99999999999999999995 Page #797 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 14 ] * मेरी मनोकामना * ************* **************** व्याकरण, न्याय-साहित्य-काव्य-ज्योतिष-तर्क या चाहे किसी विषय को ले ले पर यदि उन विषयों को कोश का सहारा न मिले तो उस प्रत्येक विषय को समझने में या उसके तात्पर्यार्थ को समझने में कठिनता रहेगी। किसी भी विषय के लिए शब्द प्राप्त करने के लिए कोश के बिना चल नहीं सकता। यदि व्याकरण शब्द को सिद्ध या उत्पन्न करता है तो कोश उसका संग्रह करता है। व्याकरणके सृजनको सुगठित करना कोश का कार्य है। व्याकरण यदि शब्द संपत्ति है तो कोश उसका निधान-खजाना या भंडार है। संसार भरके ग्रन्थ निर्माणों में कोश को अनिवार्य आवश्यकता हमेंशा महसुस होती रही है, सदा होती ही रहेगी। प्रत्येक भाषाको सिद्धी के लिए ज्यों उस उस भाषा का व्याकरण प्रावश्यक होता है। त्यों प्रत्येक भाषाके लिए उसका समृद्ध शब्द भण्डार भी उतना ही प्रावश्यक है। परम तारक, परमपूजनीय, सदास्मरणीय, सदाध्येय परमकृपालु श्री सर्वज्ञ भगवन्, सर्वाक्षरसन्निपाति पूज्य श्री गणधर भगवन् बीजबुद्धिधर अथवा श्रतकेवली परमपुरुषों के RRRRRRRRRR Page #798 -------------------------------------------------------------------------- ________________ R [ 15 ] अलावा संसारके सभी को लिखने में या बोलने में शब्दों को र प्रत्यंत आवश्यकता रहती है। यह जरुरी नहीं है कि प्रत्येक को लिखने या बोलने में अपने भावों को व्यक्त करने के लिए माकूल शब्द मिल ही जाय।। मति या श्रत ज्ञानावरणीय कर्मका क्षयोपशम जितना होगा उतनीही मति-बुद्धि या शब्द उपलब्ध होंगे। ऐसे समयमें अपने भावों को सुंदर शब्दों में प्रस्तुत करने हेतु कोश एक सफल सुंदर वरदान सिद्ध होता है। पंगु को ज्यों वैसाखी यष्टि चलने में सहायक सिद्ध होती है, वैसे ही लिखने या बोलने वालों के लिए शब्द कोश।। संसारके समस्त भाषाओंकी जननी है-संस्कृत व प्राकृत भाषा। . आज तक संस्कृत या प्राकृत भाषा में जितने साहित्यका सृजन हुआ, उतने सृजन का सौभाग्य शायद ही और किसी भाषाको मिला होगा। संस्कृत व प्राकृत एक प्रकार से कभी पुरानी या वृद्ध न स होने वाली सदा बहार एवं सदा युवान भाषा है। . गांभीर्य पूर्ण प्रचुर अर्थ को कम शब्दों में संकलित करना सि हो तो वह केवल संस्कृत व प्राकृत में ही संभव है। शशशुनाशाशासारामाशाशाखाशाशाशान E ETIREMENRELREARRIEIRIRARARINAKARAKासायाशा Page #799 -------------------------------------------------------------------------- ________________ __ यों कहना नितान्त सत्य है कि:- विशाल भावों को अल्प शब्दों में व्यक्त करनेका एक मात्र भाषा माध्यम हो तो वह है-संस्कृत। भारतीय संस्कृति की अस्मिता-प्रतिभा व प्रोजस्विता जितनी संस्कृत-प्राकृत भाषा में निखरती है शायद ही उतनी और किसी भाषा में निखरती हो। इतिहास के कलेबर को प्राणवान् रखने वाली भाषा हो तो वह भी संस्कृत व प्राकृत है। संस्कृत भाषाको देव भाषा कहते है इसे सभी सुज्ञ जानते ही हैं। परमपूजनीय पंचमांग श्री व्याख्या प्रज्ञप्तिभगवतीजी सूत्रमें कहा है कि-देवलोकवासी देव मागधी (प्राकृत) भाषा में बोलते है-उनको भाषाको व्यवहार पद्धति है प्राकृत भाषा। यों संस्कृत व प्राकृत भाषाएं युगारंभ से लेकर आज तक अपने महत्वको सम्हालती व सुदृढ करती आई है। युग चलेंगे तब तक यह भी चलेगी। अतः समय 2 के विद्वानोंने हमेशा इस भाषामें लिखा व इस भाषा को संपन्न बनाया। समय 2 के विद्वानोंने समय 2 पर उत्पन्न होनेवाले शब्दों को भी समय 2 पर उन शब्दों र का संग्रह करके उन्हें अक्षय व अमर बनाया। Page #800 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 17 ) - उपलब्ध संस्कृत प्राकृत साहित्य में सर्वतोमुखी प्रतिभावान, अपने समय के एकमात्र महानतम ज्ञानी श्री सिद्धराज जयसिंह एवं गुर्जरेश्वर परमाहत श्रीकुमारपाल भूपालप्रतिबोधक अपने ज्ञानालोक से समग्र भारतको पालोकित करनेवाले कलिकाल सर्वज्ञ परमपूजनीय चरण सुगृहित नामधेय प्राचार्यशेखर श्री हेमचन्द्रसूरीश्वरजी म० ने अपने जीवन में 3: करोड़ श्लोक प्रमाण नव्य संस्कृत-प्राकृत साहित्य का निर्माण किया। प्रस्तुत निर्माण में सभी विषयों का साहित्य है। ऐसा कोई विषय नहीं है कि जिसपर कलिकाल-सर्वज्ञ श्री की लेखिनी मुखर न हो उठी हो। प्रत्येक विषयका कलिकाल सर्वज्ञ श्री का प्रदान अपूर्व एवं महत्वपूर्ण वरदान जैसा है। साथ 2 प्रमुख प्रतिष्ठित व आदर्श साहित्य भी है। प्रत्येक विषय पर बेरोकटोंक द्रुतगति से चलनेवाली कलिकाल सर्वज्ञ श्री को लेखिनी ने भारत में तो क्या पर विश्वमें जैन साहित्य को प्रादरपूर्ण प्रमुख स्थान दिलवाया। विदेश के विद्या-विपिन-विहारी-विहग-विद्वान-विनम्र व प्रभावित होकर पूज्य श्री कलिकाल सर्वज्ञ श्री को भारत का कोहेनूर कहते है। और अपनी भावभरी अंजली पूज्य श्री के चरणों में प्रस्तुत करते है। प्र Page #801 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 18 ] EARESTERNETHERIESiki *** ******* s oritAsst.L.SILAL..BL. S जन साहित्य में से कलिकाल सर्व श्री के साहित्य को हटा दिया जाय तो ? ? ? अनेक विषयों के प्रमाणभूत साहित्य के बिना जैन साहित्य पंगु-निस्तेज जैसा बनेगा यह बात बिना किसी हिचकिचाहट माननी ही पड़ेगी। 3. करोड़ श्लोक प्रमाण प्रामाणिक-प्रतिष्ठित प्रादर्श बि संस्कृत-प्राकृत के साहित्य का सृजन करके कलिकाल सर्वज्ञ र श्री ने जो विक्रम (रेकोर्ड) प्रस्थापित किया है वह अाज तक अटूट है। अभी तक ऐसा कोई विद्वान् या सर्जक ऐसा नहीं दिखा, नहीं सुना या नहीं कहीं बांचा कि जिसने अपनी जीवनी में 33 करोड़ श्लोक प्रमाण संस्कृत-प्राकृत भाषा K में नवसृजन किया हो। पश्चातत्ति असंख्य सजक व लेखकों ने अपनी रचना में र जगह 2 कलिकाल सर्वज्ञ यो सृजित साहित्य के पाठों को न प्रामाणिक व प्रतिष्ठित एवं सद्य, शीघ्न ग्राहा मानकर उसके प्रमाण आदर व बहुमान पूर्वक दिये है। ऐसे असंख्य गुण निधान पूज्य श्री कलिकाल सर्वज्ञ श्री विनिर्मित शब्दकोश है-अभिधान चिंतामणि ! जो सरससरल-सुन्दर प्रौढ एवं मातृ दुग्ध जैसा सुपाच्य है। जो साहित्य विश्व में विख्यात है। आज तक उसके मूल व टोकानों की लाखों प्रतिया छप चुकी है- और छप भी रही है। इतने म परसे ही इस कोश की बहुबुधजन मान्यता का ध्यान आसानी से से पा सकेगा। URILANKI ********** * Page #802 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 16 ] - इसी अभिधान चितामणि कोश के आधार को लेकर सर्वविदित पूजनीय चरण प्राचार्य श्रीमद् विजय सुशील सूरीश्वरजी म० द्वारा नव-निर्मित "सुशीलनाममाला" नामक गि कोश प्रगट हो रहा है / साहित्य समुद्र में एक वेलाकी अभिवृद्वि हो रही है यह इष्ट व प्रानन्द दायक है। प्रस्तुत कोश की रचना पद्धति अभिधान चितामणि के अनुसार ही रक्खी है। और उचित ही है। एक सामान्य नियम है कि- शिष्टों का वि पद चिन्हों का अनुसरण शिष्ट ही करते है। 2848 श्लोक प्रमाण का यह नव्य कोश जिज्ञासुओं के लिए सहायक सिद्ध होगा। वर्तमान समयके कुछ नव्य शब्दों को भी इस नव्यकोश में संकलित किया है। और हा! यह आवश्यक भी है और सार्थक व उचित भी है कि नव्य रचनामें नवोदित शब्द संकलित हो जाय / नव्य रचना की यही तो खुबी है-कि प्राच्य का रक्षण व नव्य का संकलन हो एवं प्राच्य नव्य का संयोजन अक्षय हो। इस प्रकार की प्रणालिका को लेकर प्राच्य अक्षष्ण रहता है व बिखरा नव्य शब्द देह पाकर अमरता की ओर अग्रसर होता है। इस प्रकार साहित्य समृद्ध होता रहता है। - नव्य कोश के बारे में अपनी 2 रूचि के अनुसार विविध विचारकों के विविध विचार हो सकते है। और यह सुन्दर भी है। जैसे उपवन 1 और कुसुम अनेक वैसे साहित्य एक और विविधरंगी विचार कुसुम अनेक ! इसे अनुचित भी से नहीं कह सकते। PARMAाशाशापाशशशशशशशशशशशशशाशय Page #803 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 20 ) WWERSOWEAT) S ATH पर एक बात तो निश्चित रूप से प्रत्येक ममझदार व सामान्य बुद्धिवाला भी अबव्य मानेगा कि-मृजन के पीछे का / मृजक का परिश्रम अवश्य ही सराहनीय-व अनुमोदनीय राब आदर्श है। . साथ 2 अपन प्राशा भी करेंगे कि:-सदायुवान-गदाबहार संस्कृत व प्राकृत भाषा के साहित्य को प्रस्तुत कोशकार पूज्य प्राचार्य श्री नव्य स्वसृजनावं अनुपलब्ध व उपयोगी प्राच्य पुनः प्रकाशन द्वारा संस्कृत-प्राकृत के साहित्य में अपना महत्वपूर्ण प्रदान करके देव भाषा साहित्य को समृद्ध करेंगे। हम शासनदेव से प्रार्थना करेंगे कि :-हमारी अपेक्षित साहित्य सृजन को पाशा को नवपल्लवित व सफल करने हेतु कोशकार को बलप्रदान करें-सहयोग दे यह ही हमारी मनो कामना है। वोर सं० 2502, वि. सं० / गामन सम्राट्-साहित्य सम्राट परम पूज्य 2032 नेमि स० 27 प्रा० श्री नेमिलावण्य चरण रज कात्तिक कृष्णा 5 मनोहरविजय गणिः / स बुधवार दिनांक 13-10-76 जैन उपाश्रय श्री संभव जिन केवल जान श्री नाडुलाइ तीर्थ कल्याणक दिन [ राजस्थान ] Page #804 -------------------------------------------------------------------------- ________________ है अभिप्राय - प्रापे अभिधान चिंतामणि उपरथी ‘सुशीलनाममाला' नूतन ग्रंथ तैयार कर्यो ते माटे भूरी 2 अनुमोदना. खरेखर बालजीवोने व्याकरणना अभ्यासीनोने सरल उपयोगी नीवडशे तेमां शक नथी. REARREARREARREARRIERRAZZARSEXREARREARREARREARREARREAKERAYARI . आप विद्वद्वर्य छो ने व्याकरण तथा साहित्य पापना श्वासमां घूटायेलुछे. प० पू० आचार्य गुरुदेवोनापाशीर्वाद मेळवेला छे. आपनी कृतिने माटे हुँ नानो शुलखु ! ___ खरेखर कलिकाल सर्वज्ञ श्रीमद्हेमचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा जगत्प्रसिद्ध व्याकरणकार कहेवाया. तेोश्रीए रचेल विद्वभोग्य ए अभिधान चितामणि कोशनु प्रालंबन लई प्रापे एक सुदर संस्कृत कोश तैयार कर्यो ते वधुने वधु Page #805 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 22 ] लोकोने उपकारक थाय ते माटे एनुअाकर्षक प्रकाशन अने व्यवस्थित संपादन थाय तो प्राथमिक संस्कृत अभ्यासोप्रोने खूनज उपयोगी नीवडो। आपे अनेकानेक ग्रन्थोनी रचना करीने जैन समाज ने अर्पण कर्या छे. शासनदेव आपने अधिकाधिक बल प्रापे ने वधु 2 ग्रंथोनी रचना करो एवी हार्दिक शुभेच्छा। *******RRRAAARRRRRRRRRRRRRRRRRRK मुम्बइ-३ दिनांक 21-10-76 प्रवर्तक / मुनिनिरंजनविजय श्रीनमिनायजी जैन उपाश्रय 376, भीडी बजार . Page #806 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 23 ] 222222222222222222222 * सम्मति * दत्वा संयमरूपरत्नममलं योऽपीपठत् सर्वदा, स्नेहान्मामुदनीतरत् करुणया संसारकूपस्थितम् / शान्तं शास्त्रविशारदं कविवरं साहित्यरत्नं शुभं, वन्देऽहं स्वगुरु जिनोत्तममुनिः सूरि सुशीलं सदा // 1 // मेरे परमपूज्य प्राचार्य गुरुदेव ! प्रापश्रीने छोटे बड़े 108 ग्रन्थ की रचना की है। इसमें कलिकाल सर्वज्ञ परमपूज्य आचार्यप्रवर श्रीमदहेमचन्द्रसूरीश्वरजी म. सा० विरचित 'श्रीअभिधान चिन्तामणि' कोश के प्रालंबन से स्वनाम से समलंकृत 'सुशील नाममाला' नामक भव्य नव्य कोश की रचना कर विद्वद् समाज पर अनहद उपकार किया है, जो अविस्मरणीय तथा हम लोगों के लिये एक अक्षयनिधि है। क्योंकि जनसाधारणों के लिये द्रव्यकोश तथा शिक्षित समाजों के लिए शब्दकोश का ही परम महत्व माना जाता है। आपश्री की यह असाधारण ज्ञानसाधना साहित्यसाधना बदल आपश्री को हमारा सदैव कोटिशः वन्दन हो। / श्रीमच्चरणकमलचञ्चरिक विजयादशमी / शिशु शिष्य दिनांक जिनोत्तमविजय 21-10-77 श्राहारसूराश्ररजो जन उपाश्रय सिरोही (राजस्थान) Page #807 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 24 ) 3955555555555555555555 यत किञ्चित 'दरोदृश्यते च विकसित विश्वसित विश्वविश्वयलये + विश्वप्रतिष्ठित विशिष्ट शिष्ट गरिष्ठ शब्दकोषेश्वपि विद्वदर्य परमपूज्याचार्यवर्य श्रीमद्विजयसुशीलसूरीश्वयरय नृत्नः / प्रयत्नः किमर्थं स्वीकृतः इति कल्पनया तद्वेतं विचारयता 5 च मया निर्धार्यते मे मनसि यदयं "श्रीसुशीलनाम माला" भिधो नवीनः कोष प्राधुनिकाल्पमतिजुषा मध्याम पनाध्ययनादि शर्मकर्मव्यापूतानां महोपकाराय कल्पतरति तु निविवादमेव / विश्वविख्यात विद्वजनमान्याभिधानचिन्तामणि-अमरकोष卐 धनञ्जननाममालादिवदयमपि श्रीमदाचार्यवर्याणां मौलिक प्रयासो विद्वज्जनगणचकोरवृन्दानि प्रीणयितुं चन्द्रायमाणो # बोभोतु इति सानन्दं सोल्लासं सादरश्चाभिप्रेति वाचस्पतिविजयाभिधः कोऽपि वाचंयमः श्रीस्तंभनपुरात्' इतिशम् / त्रिगुणावकाशपादपरदुःखभञ्जनसमाबाहल बहुलश्रीवीरविरतिवासर सौम्यवासरे। खम्भात (गुजरात) / लि० वाचस्पतिविजयो मुनिः ! [स्वर्गीय प० पू० प्राचार्य प्रवर दिनाङ्क श्रीमद्विजयनन्दन सूरीश्वराणां 6-2-75 शिष्यः ] 5599999996555555555555 Page #808 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 25 ) $1447444726041 45 46 47 461454545454545454545454545 यह 15454545454545454545454545454545455465466461454554654 सुशीलनाममाला' ग्रन्थ के बारे में सुप्रसिद्ध अन्य समुदाय के पूज्यपाद आचार्य महाराजादि मुनिमहात्माओं की ___ सम्मतियें + 卐5 59595555555555555555555599 Page #809 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 26 ) कलिकाल सर्वज्ञ श्रीहेमचन्द्राचार्य विरचित श्रीअभिल धानचिन्तामणि कोश के आधार पर जो यह 'सुशीलनाममाला' नाम की पुस्तिका छप चुकी है कर संदेश पढकर अत्यधिक प्रानन्द का विषय हुआ है। कारण कि-साहित्य संशोधनादि कार्य में कामयाब होगा, पण्डितों का कार्य सराहनीय होगा। ग्रन्यकर्ता प्राचार्य श्रीमद्विजयसुशीलसूरीश्वरजी द्वारा ऐसे ही अनेकानेक ग्रन्थ प्रकाशित हो। यही कामना करते है। किमधिकम्.......... आउवा ( राज०) विजयहिमाचलसूरि दिनाङ्क जैन उपाश्रय 7-10-76 Page #810 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [27 ] ___संस्कृत साहित्य में शब्द कोषों को परम्परा खूब ही पुरातनीय है / आचार्य भागुरि ने संस्कृत साहित्य के प्राङ्गण में एक नया चमत्कार कोष के कलाप से प्रादुर्भूत किया। तत्पश्चात प्राचार्य केशव ने एवं अमरसिंह प्रादि विद्वानों ने अपूर्व प्रयास कर कोषों के कलेवर विपुल बनाये / महावैयाकरण दलायुध ने, महाकवि धनञ्जय ने भी कोषों के निर्माण में महान प्रयास किया। . . ... इस प्रकार जैनाचार्य भी कोष निर्माण में कृत हस्त सिद्ध हुए। जिन में कलिकाल सर्वज्ञ श्रीहेमचन्द्राचार्यजी म० का स्थान विशेष श्रद्धेय है। ही इस समय प्राचार्य श्रीमविजयसुशीलसूरिजी महाराज ने पूज्य श्रीहेमचन्द्राचार्यजी म० का अवलम्बन लेकर "सुशीलनाममाला" ग्रन्थ का निर्माण किया है वह अवश्य ही श्लाघ्यनीय है। : कोष किसी की सम्पत्ति बन जाए यह तो कहना कुछ कठिन सा है। हाँ-कोष से कोई कोविद्, कलाकार, कवि, र भाषा शास्त्र का समृद्ध सुयोग्य सुधी बन जाए तो कुछ सम्भावित है। Page #811 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 28 ) "सुशीलनाममाला" के कर्ता ने अवश्य ही कृतार्थ बनकर संस्कृत साहित्य को सेवा का समुचित लाभ उठाया है। भविष्य में भी इसी प्रकार निरन्तर साहित्य की सेवा कर समाज, संस्कृति एवं सभ्यता के उत्थान में अग्रेसर रहे, यही मेरी शुभेच्छा है। विशेषावश्यक भाष्यकार लिखते है कि समग्र शाख निर्जरा के लिए है, उस में अमंगल जैसा कुछ भी नहीं है / ....... सव्वं च णिज्जरत्थं सत्थमनोऽमंगलमजुत्तं // 16 // होशियारपुर (पंजाब) ] दिनाङ्क विजयसमुद्रसूरि 1-10-76 Page #812 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 29 ] शुभ कामना KARAMKARARIENयायामशाशाशासाRATRIKARARIARRIA यह ज्ञात कर प्रतीव प्रसन्नता हो रही है कि-'सुशील नाममाला' नामक कोष ग्रन्थ का प्रकाशन होने जा रहा है। विविध पर्यायार्थक शब्दों का सुन्दर संकलन हेतु भीमद् विजय सुशीलसूरीश्वरजी महाराज का हम हार्दिक अभिनन्दनकरते हैं और सामयिक प्रकाशन के लिये बधाई प्रेषित करते हैं / अत्यधिक लोकप्रिक बने यह ग्रन्थ यही से शुभ कामना। स पासो वद 3 . विजयविद्याचन्द्रसूरिस दिनाङ्क मोदरा, (राज.) MKKHAIKARAKAAMKARMANAWIKMAINAKRAMRAAMRAKARAAMKARAMAMAMAMANAMRAT 6-12-76 स [ तपागच्छीय त्रिस्तुतीय मुख्य प्राचार्य महाराज सा० का से यह अभिप्राय है ] शिशशशशशशRIENRAYARIशायराश Page #813 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 30 ] ॥नँ अर्ह ऐं नमः // "सुशीलनाममाला" भाषाव्यवहार माटे पहेली जरुरीयात शब्दज्ञानती छे. र शब्दज्ञाननो खजानो कोषग्रंथोमा संकलित छे. समर्थ विद्वानने पण जो कोषग्रंथोनं अध्ययन सुचाररपे न होय तो प्रसंगे अंखावं पडे छे. . सर्व विद्याप्रोनो प्रकाश पण कोष ग्रंथोनी मदद विना कयांय पहोंची शकतो नथी. वर्तमानमा उपलब्ध कोष ग्रंथोनी श्रेणिमा एक नवीन प्रकाश किरणरुप, स्वनाम धन्य “सुशीलनाममाला" कोष अन्य परम विद्वद्वर्य प्राचार्य श्रीविजयसुशीलसूरीश्वरजी महाराजे रचेल प्रकाशित थइ रह्यो छे तेनी भूरि अनुमोदना. कर्ताए अनोखी शैलीधी लगभग प्रचलित सर्व शद्वोनो संग्रह या ग्रंथमा सुन्दर अने व्यवस्थितपणे कर्यो छे. श्रा संस्कृत कोष ग्रन्थ विद्वान् पुरुषो अने संस्कृत अभ्यासोनो माटे महान् उपकारक बनी रहे एज शुभ अभिलाषा / - पुना सिटी लि. विजयप्रेमसूरि दिनाङ्क विजयसुबोधसूरि 27-10-76 / विजयलब्धिसूरि र [ ए त्रणे प्रा० म० स्व० 50 पू० प्रा० श्रीमद्विजयभक्तिसूरी श्वरजी म. सा० ना समुदायना छे. ] PN#22222222222222222222 Page #814 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 31 ] रिपू० प्रा० श्रीविजयभद्रंकरसूरीश्वरजी महाराज नो पत्र ) स शमदमादिगुणभूषित प्रवचन प्रभावक चरणकरणगुण गणाकर प्राचार्य महाराज श्रीसुशीलसूरिजी महाराज र आदि जोग भद्रं करनी वन्दना पूज्योनी कृपाए सुख शाता छे. आपनो पत्र अने 'सुशीलनाममाला' ना छापेलाथोडा फरमा मल्या. 'प्रथम दृष्टिये जोतां ज ग्रन्थ गत विषयोना विभाग वगेरे करवामां एक सुंदर स्वाध्यायरूप प्रयत्न थयो छे. भादवा शु० 12 शनिवार | दिनाङ्क 24-6-77 . भद्रकरविजय पंकज सोसायटी जैन उपाश्रय अमदावाद-७ [ जे ओ श्री-स्वर्गीय संघ स्थविर प०. पू० प्रा० श्रीमविजय- सिद्धिसूरीश्वरजी महाराज साहेबना समुदायना प० पू० प्रा० श्रीमद्विजयभद्रंकरसूरीश्वरजी म. सा. छे. ] + + + Page #815 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 32 ] XXXNXXU2222222222222222 __ तमे 'सुशोलनाममाला' ना फरमा मोकल्या, ते जोया। ल तमार कार्य विद्वता भरेलु छे ते अनुमोदनीय छ / आचार्यविजय मंगलप्रभसूरि ठेकाणं सांडेराव जिनेन्द्र भवन पालीताणा मागसर शुद-१३ दिनाङ्क 4-12-76 तथा आचार्यविजय अरिहंस-सिद्भसूरि [ जे प्रो श्री तीर्थोद्धारक स्व०प० पू० प्रा० श्रीमद्विजयनीतिसूरीश्वरजी म. सा. ना समुदायना छे. ] AND Rom 72222222222222222222222 Page #816 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसुशीलनाममाला' नामनो संस्कृत शब्दकोष सुन्दर छे. अनेकरीते आदरणीय छे. मध्यम बुद्धिवाला संस्कृतना अभ्यासी विद्यार्थीप्रोने कंठस्थ करी लाभ लेवा जेबो छे. सुगम होवाथी घणाने रुचशे. याबो परिधम लेवा बदल ग्रन्थकर्ता ने धन्यवाद / अमदाबाद दिनांक . 10-10-76 - ली० राजेन्द्रसूरि . दोशीवाडानी पोल, डहेलानो उपाश्रय . कम Page #817 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 34 ] Hococcooooooo .. अभिप्राय "श्रीसुशीलनाममाला" कोश श्लोकबद्ध र प्राचीन संस्कृत नाम कोशोमां एक सुन्दर उमेरो छे. अलबत् श्लोक संख्या कांइक मोटी छे, छतां एमां शब्दोमा लिंगनो समावेश होवाथी लिंगज्ञान नोकनी साथे साथे ज थइ - जाय छे तेथो कुल श्लोक संख्या वधे ए सहज छे. श्लोक रचना सरल होवाथी तेम ज मुख्य शब्दना शीर्षक होवाथी भणनार ने सरलता रहेशे. साथे अकारादि क्रमथी शब्दोनु परिशिष्ट होवाथी शब्दनो अर्थ जाणवा इच्छुकने पण सारो सरलता थड छे.. अमलनेर वीर सं० 2033 विजयभुवनभानुसूरि का० सु०६ / [ जेप्रोधी स्व० 50 पू० प्रा० श्रीमद्विजयप्रेमसूरीश्वरजी न म० सा० ना पट्टालङ्कार छे. ] AAAAAENTERTAIश शाशEROINETVNE Page #818 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 35 ) 45555555555555555555555555 // श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथाय नमः // पूज्यपाद आचार्य भगवान् श्रीमद्विजयसुशील सूरीश्वरजो * महाराज साहेबनी सादर सेवामां. 卐 सादर वंदना सुखशाता. के साथे बे दिवसना पाप कृपालुना परिचयथी घणोज आनंद अनुभव्यो छे. तेमां विशेष प्राप श्री संस्कृत व्याकरण म आदिमां निष्णात छो, प्रावो अनुभव परोक्षमा हतो ते अनुभव प्राजे प्रापश्रीजीए श्रीअभिधान चिन्तामणी वगेरे शब्दकोशनी एक तादृश्य प्रतिभाशाली रुपरेरवा समान अालेखेल " सुशीलनाममाला" ग्रंथना तैयार फर्मा जोइने घणोज प्रानंद अनुभव्यो छे. अभिधानचिन्तामणि- परकोश-धनञ्जयनाममाला प्रादि शब्दकोश करता पण बालजीवो माटे मा कृति घणा ज विशेष प्रमाणमां उपकारी नीवडशे, कारण के आवा महान् दलदार ग्रंथमा आपश्रीजीए घणोज सुदर शैलीथी जे शब्दोनी रचना पद्धति गोठवी छे जे पा कठीण ग्रंथमाथी पण बालजीवो सहेलाइथी कोइ पण शब्द लिंग प्रादि साथे सारी रीते समजी शकशे. पाप कृपालुनी प्रा प्रवृत्ति घणीज अनुमोदनरूप छ। . ली० गुणानुरागो दिनाङ्क प्राचार्य विजय सोमचन्द्र सरि . . 26-11-76 श्रीहोरसूरीश्वरजी जैन उपाश्रय . सिरोही, ( राजस्थान ). 555555555555555555555 Page #819 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ARRIA कोइ पण भाषाना क्षेत्रमा प्रगति साधवा मा ते भाषाना शब्दकोशनु जान कब' जी के संस्कृत साहित्य क्षेत्र नाना-मोटा अनेक संस्कृत शब्द-कोशोनी रचना भयेली. तेमा कलिकाल मज' विरद धारक सिद्ध - सारस्वत श्रीमचन्द्राचार्य N कृत "अभिवान चितामणि कोका' अनेरी भात पाडे हे. जैन माहित्यना अभ्यासक-वाचक वर्ग ने बोजा बधा शब्दकोशो करना " अभिधान का वधु उपयोगी अने उपकारी छे. पूज्य प्रा वार्षदेव श्रीसुशीलसूरीश्वरजी महाराज संस्कृत भाषाना उंडा अभ्यासी. निन्दभन्याकरण' सबंधी विपुल सारित्यनु तेगोत्री अययन-मनन कयुठे, अने संस्कृत-गुजरातो मामां अनेक रनको लती सारी एवी माहित्य-सेवा बजावी छे. प्रस्तुत "सुशीलनाम साला" अन्य पण तेसोश्रीनी एक कृति छे. "अभिवाची नो महान प्रादर्श नजर समक्ष राखी ले पो रचना शरली बस ने अनुसरत्रा पूर्वक प्रा " नाम माला" नी रचना कीने तेश्रो श्रीर हकीकता 'अभिधान क्रोत्रा नीज अम्चिना वधारी. Page #820 -------------------------------------------------------------------------- ________________ { 37 } STIANISMENT GURAVAYC 'अभिधान कोश' थी अज्ञात लोकोना हाथमां श्रा ग्रन्थ प्रावशे त्यारे तेमना हृदयमां पण आदर्श-प्राधारभूत "अभियान कोश" अने तेना रचयिता श्रीहेमचन्द्राचार्य तरफ पादर-बहुमान भाव जाग्या बिना नहीं रहे ! 2448 श्लोकोनी संख्यामां अनुष्टुप पद्य - बद्ध प्रा शब्द कोशमां " अभिधान कोश" अने तदुपरान्त " शेषनाममाला" अन्तर्गत घणा खरा शब्दोंने संग्रही लेवामां प्राव्यां छे. अने ते सिवाय या ग्रन्थनी एक विशेषता ए छे के अर्थना विभागी करण अने अवतरणिकाना उल्लेख पूर्वक श्लोकनी रचना अने गोठवणी संदर रीते थयेली होवाथी विद्यार्थीसोने, वांचकोने अने लेखकों ने संस्कृत शब्दों अने तेना अर्थनो बोध थवामां घणो ज सरलता थशे // [ कच्छ-वागडवाला स्व० 50 पू० आ० श्रीमद्विजयकनकसूरीश्वरजी म. सा० ना समुदायना ए प्राचाय म० नो पा अभिप्राय छे. ] लुणावा ( राज.) / विजयकलापूर्णसूरि दिनांक जैन उपाश्रय सायाशासाशनासायासाRARIAAAAAA Page #821 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 38 ] ‘सुशीलनाम माला' नामनी प्रा शब्दकोश अभ्यासोप्रो ने अनेक रीते उपयोगी थइ पडे तेम छे. दरेक नूतन शब्द श्लोकादिनी शरातमां पावतो होवाथी कंटस्थ करनारामोने घणी सरलता की प्रापे छे तथा शब्दार्थ समजवामां पण घणो सुगम थइ पडे तेवो छे. प्रा शब्दकोष तैयार करवामां प्राचार्य श्रीमुशीलसूरि महाराजे लीधेल सख्त परिश्रम गीर्वाण गिराना अभ्यासोप्रोने पाशिर्वाद रप निवडवा संभव छे. अभ्यान को तेनो लाभ उठावी श्रुतज्ञाननी वृद्धि करी स्वपर श्रेयने साधो एज एक है शुभाभिलाषा. [प० पू० प्रा० श्रीमद्विजयरामचन्द्र सूरीश्वरजी म. मा. ना शिष्यरत्न पू० श्रीभद्रं करविजयजी गणिवर्य म. श्रीनो या अभिप्राय छे. ] सं० 2033 चैत्र वदि 10 बामणवाडजी तीर्थ ( राजस्थान) भद्रक र विजय स - - Page #822 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 36 ) RM26 - "सुशीलनाममाला" भाषा ज्ञान माटे शब्द ज्ञान आवश्यक छे. अने शब्द ज्ञाननो खजानो कोषग्रन्थोमां संकलित छे. कोषग्रन्थाभ्यासना प्रभावे समर्थ विद्वत्ता नो पण प्रभाव होय छे. वर्तमानमा उपलब्ध अनेक कोष ग्रन्थोनी श्रेणीमा एक नवो प्रकाश पाडवा परम विद्वद्वर्य प्राचार्य श्रीविजयसुशीलसूरीश्वरजी महाराजश्रीए स्वनाम . साथे "सुशीलनाम माला" नामक कोषग्रन्थ अत्यन्त संदर अने व्यवस्थितरीते संपादित करीने विद्वद् समाज उपर अनहद उपकार को छे. जे चिरस्थायी रहेशे. . प्रा ग्रन्थ सर्व ने माटे उपयोगी निवडे एज शुभेच्छा. जेयो प्री-स्व० प० पू० प्रा० श्रीमद्विजयभक्तिसूरीश्वरजी म० सा० ना समुदायना छे. ] 0WSDORRA दिनाडू विजयलब्धिसूरि 3-2-77 वाइ Page #823 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (पू० पन्नधास थी पद्मसागरजी गणिवर म० नो पत्र ) परम पूज्य विद्वयं प्राचार्यदेव श्रीमद्विजयमुशीलसूरीश्वरजी महापाज नाहे बनी सेवामां सादर वंदना मुखशाता. आपनो कृपा पत्र मळयो. समाचार बधा जाण्या. 'कनिकाल मर्वज्ञ श्रीहेमचन्द्राचार्य' म विरचित भी अभिवानचिन्तामणि' कोश नं प्रालंबन लइ, बाल जीबोना उपकार माटे आपश्रीए सुशीलनाम माला' नूतन संस्कृत कोश तयार कयों छे. ते खूबज उपयोगी अने प्रशस्त कार्य प्रापे करेल छे. . व्याकरणना संस्कृत साहित्यता प्राप' जेवा उच्च कोटिना अभ्यासु श्रमण संस्थामा विद्वान् छो, ते गौरब समान छे अने तेथी अापना कार्यमां त्रुटि होवा कयाय संभावना नथी. जे रीते आपे कोशने सरल, सुगम ने मूंदर बनाव्यो छे, ते रीते पाप लोक भोग्य थाय तेवो मुगम ने सरल अन्य ग्रन्थ प्रापो तेवी मारी विनंति. प्रापश्रीनी या विषयमा बौद्धिक प्रतिभा उच्च कोटिनी छे, अने प्रावां सुंदर सरल भाषामा अपायेल साहित्यनो आस्वाद अनेक लइ शकशे. Page #824 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 41 ) ARE ARREARREARRANARARIAARRERAKARNAT प्रापे जे प्रशसनीय अभिनव कार्य प्रथाग परिश्रम लइने करेल छे ते अनुमोदनीय अने अभिनंदनीय छे. प्रापश्री सुखशातामा हशो. [ जेनोश्री-स्व० प० पू० प्रा० श्रीमद्बुद्धिसागरसूरीश्वरजी म० सा० ना समुदायना छे, अने वर्तमानमा प्राचार्यपद थी समलंकृत प्रा० श्रीपद्यसागरसूरिजी म० ना नामथो सुप्रसिद्ध छ.] अमदावाद-१३. . ! सेवक पद्मसागर जैन उपाश्रय उसमानपुरा KKRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRR दिनाडु 16-10-7E ARAKHAR RRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRREARRIERRANA waywww SABKESARIANS Page #825 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 42 ) ********* ************** श्रीवर्द्धमानस्वामिने नमः // श्रीवीतरागपरमात्मशासनानुसारिविदुषां हि श्रमणप्रष्ठानां हृन्मानसेऽतीवान्तरानन्दलहरिपरि पूर्णताऽनुभूयमाना भवेत्प्रकृत सुशीलनाममालाख्यनव्यशब्दकोशोपलम्भेन / तत्त्वज्ञमुनीनां नैसर्गिको हि तथाविध प्रवृत्तिर्यन स्वपरावबोधशक्तिविजृम्भणं स्यात्, शब्दशास्त्र-न्यायशास्त्ररुपचक्रद्वयेन शाख-विपिने विचरणं तदैव सुखावहं भवेत्, यदा हि विविधा थंगमकनानाशब्दव्रजपरिचायकशब्दकोशधुरि तस्य चक्रद्वयस्य यथायोगं सन्निवेशः स्यात्, विना हि शब्दकोशविज्ञान कोशविहीननृपाल वत् ज्ञानसमृद्धिविलसितं लब्धजन्म न भवेत्, . एतादृशे हि महत्त्वपूर्णे शब्दकोश साहित्ये, प्रयुज्यमानशब्दवजान फल्गुप्रायान् निरस्योपयोगिशब्दवजं मुखपाठसौकर्याय पद्यबंधेन विरचय्य याथार्थ्येन पूज्यवर्या चार्यपुंगवैः श्रीमद्भिः सुशीलसूरीश्वरैः स्वगुरुवर्यप्रस्थापितश्रमणवर्याध्ययनप्रागल्भयं वृद्धिङ्गतमकारीति सुजनानां महाभागानां विद्याविलासिनां भूयोभ्यः धन्यवादानि सूरिप्रतिष्ठान गुरुवर्योपाध्याय-तपस्विमूर्धन्य श्रीधर्मसागरजितां महाराजानां 20**** नाशाशाशाशाशयाशाशासालान्याशाशाशासाशासाशासायाशा Page #826 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 43 ] निदेशतः विनयावनभ्रकन्धरापुरः वंदना पूर्वकं प्रमोदभावनापूरितमनस्कोऽभिनन्दये, कामये चैतादृशस्थायि-शासनलाभदायि-1 मौलिकसाहित्यसर्जनद्वारा विस्मार्गमाण-परंपरारक्षणार्थ पूज्य- 1 पादाः सूरिभगवन्तः सदा बद्धकक्षाः भवेयुः इति च लिखितमभय सागरेण वैक्रमाब्दे योगसंग्रहासमाधिस्थानमिते आश्विन मासस्य शुक्लपक्षे नवमोतिथौ भृगुनन्दनवासरे श्रीमनरंजनपार्श्वनाथाधिष्ठितमहेसाणा नगरे / // शुभं भवतु सर्वजीवानाम् // [ स्वर्गीय प्रागमोद्धारक प० पू० प्रा० श्रीमदसागरानंदसूरीश्वरजी म. सा०. के समुदाय के पंन्यास श्रीमभयसागरजी गणिवर म. का यह.अभिप्राय है। ] (पासो सुद-६) JA W Page #827 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 44 ] 955555555555555555555555555 प्रा० श्रीसुशीलसूरिजी महाराजे घणा परिश्रमे तयार करेली 'सुशीलनाममाला' शब्दोना अभ्यासीओने सरलता करी प्रापे तेवी छे. वि० सं० 2033 चंत्र दि 10 ) | मुनिराज श्रीभुवनविजयान्तेवासी मुनिजंबूविजय ब्राह्मणवाड़ा [ स्व० 50 पू० प्रा० श्रीमद्विजयसिद्धीसूरीश्वरजी म. सा. ना समुदायना समजवा. ] 3599999999999999999999) Page #828 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 45 ] 22222222222222222222222 है विमल भावना है वस्तुतः कोष साहित्य जगत् को अभूतपूर्व कुञ्जी है। विविध प्रकारी भावार्थ की भूमिका निभाने का गौरव विश्व में कोष को प्राप्त है। कोष का प्रभाव अपना अलौकिक स्थान भी रखता है / अभिधान चिन्तामणी कोष श्रीमद्हेमचन्द्राचार्य को असाधारण कृति है और उसी के पालम्बन को लेकर के श्रीमद् प्राचार्य वर्ग श्रीसुशीलसूरीश्वरजी म. ने "सुशील नाममाला" का सुंदर निर्माण किया है वह वस्तुतः उपादेय पाथेय की तरह साहित्य जगत् का प्राधार रहेगा और असीम अवधि तक जन जगत् का मार्गदर्शक बनेगा ऐसी विमल भावना। मोदरा मुनिजयन्तविजय दिनाङ्क . ( मधुकर ) 6-12-76 [ तपागच्छीय त्रिस्तुतीय मुनिराज का यह अभिप्राय है ] 222222222205RRRRRRR Page #829 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 46 ] - = शुभ संदेश - परमपूज्य आचार्य भगवन्त श्रीसुशीलसूरिजी महाराज साहेबे कलिकाल सर्वज्ञ श्रीहेमचन्द्राचार्य रचित अभिधानचिन्तामणि कोषनुं पालंबन लइने 'सुशीलनाममाला' नुं सरल संस्कृत भाषामां सर्जन करीने महान सुकृत करेल छ / ___मारं सद्भाग्य छ के-पू० श्री प्राचार्य भगवंतनुं ज्यारे जोधपुरमा चातुर्मास हतं त्यारे तेज वरसे खरतर गच्छ उपाश्रय कुशलभुवनमा माएं चातुर्मास हतुं / ___ अने या कारणे समय समय पर पू० प्राचार्य भगवंत नो सहयोग दरेक शुभकार्यमां मळ तो रह्यो। प्राचार्य भगवंतमां सरलता भद्रीकता निराभिमानपणुं तथा समन्वयता आदि अनेक गुणोंने कारण हुँ तेस्रोश्रीथी खूब प्रभावित बन्यो। तेोश्री संघना महान् प्राचार्य होवा छतां पण तेस्रोश्रीए मारा जेवा सामान्य साधु प्रत्ये पण जे आत्मियता राखी ते कयारे पण भूली शकाय तेम नथी। पूज्य आचार्य भगवंतना चरणो वंदन करोने शासनदेव प्रत्ये प्रार्थना कर छु के प्रापश्री रचित मा 'सुशीलनाम - माला' विद्वद् वर्गमां खूब व्यापक बने अने अनेक प्रात्माप्रोप्रा द्वारा ज्ञान उपार्जन करीने प्रात्म कल्याण करे, एज अभ्यर्थना। श्री वीर सं० 2503 / लि. जयानंदमुनि विक्रम सं० 2033 ! ठि०-श्रीखरतर गच्छ उपाश्रय कात्तिक शुद-३, सोमवार लोढों का वास, दिनाङ्क 25-10-76 पाली ( राज) Page #830 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 47 ) 59555555555555555555555555555555) यह 'सुशीलनाममाला' ग्रन्थ के बारे में। . सुप्रसिद्ध __ जैनेतर पण्डितों की सम्मतियें + + + 5 4454545454545454545454545496497454545455465466 Page #831 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 48 ] RRRRRRRRRRRRRRRRRRRR*****BARRA विशेष्यतो जैनागम संविदा साहित्यरत्नाद्यनेकोपाधिभाजा श्रीविजयसुशीलसूरिणा मनीषिणा विधाय परितो बहुशश्च परिश्रमान् वस्तुतो मुख्यतश्च विनेयानामन्येषां च सरलातिसरल दिशैव परमपुरुषार्थोपयोगी सुशीलसम्प्रयोजि केयमन्वर्थ नाम्नी सुशीलनाममाला' पुस्तको विनिबद्धा, विख्यातमथिलमनीषिणा पं० श्री सुरेशझा शर्मणा संशोधिता च, दृष्ट्र मां दृढं विश्वसिमि यदिगं झटित्येव स्वशक्तया सत्प्रचार प्रसारणादिना बाढं फलिष्यति प्रार्थय चैतत्साफल्याय भगवन्तं परमेश्वरम्, ग्रन्थनिर्मात्राऽत्र निर्माणे कियान् श्रमो व्यधायोति नातिरोहितमेतत् सुशीलनाममालां विपश्यतां विपश्चितामिति / शुभेच्छोमें, जयपुर दिनाङ्क खड्गनाथ मिश्रस्य __ सम्मतिः प्रधानाचार्य राजकीय महाराजा प्राचार्य संस्कृत महाविद्यालय (डीन, संस्कृत संकाय, राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर ).. 8-10-76 चित्यशास्त्राशयाशाशाशाशासायासाशास्यामा Page #832 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 46 ] SHESH ___* श्रीरस्तु * प्राजन्मब्रह्मचर्यव्रतपरायणस्य विद्याविद्वत्संपोषणस्तस्य स्वयमपि महत्या वैदुष्या संपन्नस्य मूत्तिपूजकश्वेताम्बर जैनमुने राचार्यचूडामणेः श्रीमविजयनेमिसूरेः शिष्य परम्परामलं कुर्वाणेन विद्वत्प्रकाण्डेन प्राचार्यश्रीमद्विजयसुशीलसूरिणा पद्यमय्या संस्कृतवाचा संहब्धः "सुशीलनामाला" ऽभिधानः कोशग्रन्थो मया बहुषुस्थलेषु विलोकितः / अमुष्य भाषा-विन्यासः सरलो मनोहरः झटिति शब्दार्थावबोधनपटुश्च प्रत्यभात् / मन्येऽदसीय निर्माणसमये निर्माताऽस्मिन् एतदगुणगणाधानाय प्रयत्नपर इवामु निरमिभीत। अल्पीय सैव प्रयासेन संस्कृत शब्दान् तदर्थाश्च बुभुत्समानस्य साधारणमपि . संस्कृतविज्ञानं बिभ्रतो जनस्य महन्तमुपकारं ग्रन्थोऽयमाधारस्यतीति मदीयं चेतो दृढं विश्वसिति / वि० सं० 2033 माघ शुक्ला पश्चमी . [वसन्त पञ्चमी] सोमवार दिनाङ्क 24-1-77 दुर्गानाथझा प्रधानाचार्य श्रीस्वामिनारायण संस्कृत महाविद्यालय कालुपुर, अहमदाबाद (गुजरात) ॐ 9595959999999999955959 Page #833 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 50 ) ES "पद्यामृतमयकोषः, वृद्धिवंदुष्यवर्द्धकः / गुटिकेव सदा सेव्यः, कण्ठस्थः सिद्ध निर्मितः // 1 // देवतादेवभाषायां, भासितो भास्करोपमः। विद्वत्सर सिवदतां,पण्डितोक्ति व्यनक्ति च / / 2 // मुनिप्रवर्येण सुशीलनाम्ना, सुनिमितेयं चं सुशोलमाला। हृद्यर्जनः स्वेहदि संस्थितोय मानन्ददादुष्टजत्तिदा च // 3 // श्रीकान्तठक्क र इति प्रठितेन सम्यक्, ' कोषान्तबोचनकृतात्र सुशीलमाला। तेनातिरम्य वचनेन सुधन्यवाद विष्वक प्रयच्छति मुदा सुमतिप्रसूनम् // 4 // AssistARSASLILUESLISSUEnwLISAASussust जयपुर दिनाङ्क / श्रीकान्त ठक्कर (ज्योतिषाचार्य, पोष्टाचार्य) भू० पू० व्याख्याता, महाराजा / संस्कृत कॉलेज, जयपुर) 8-10-76 शाशयाशशशशशशशशशा Page #834 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 51 ] VYWENYEWE KAREINS పడు माश // वाग् विजयते // इदमत्रवक्तव्यं यदर्थाभिधाने सर्वमहिमानं कोशमहिमा ननामनातिशेते नेत्यविदितं सर्व विपश्चिताम् / यद्यपि EHRARAARAKAARAKARANANAARAHARIHAARAAKAMANIRAHIARRiae 'शक्तिग्रहं व्याकरणोपमान, कोशाप्तवाकयाद् व्यवहारतश्च / वाकयस्य शेषाद् विवृतिर्वदन्ति, सानिध्यतः सिद्धपदस्य वृद्धाः॥" इत्यभियुक्तोकत्या कोशादितरेऽपि वाच्याभिधाने चतुरास्तथाप्यल्पमेधसामतिसरलोपायस्तत्र कोश एवेति मन्ये, तदुच्यते" कोशेन बलवान् लोकः, कोशाद् भवति पण्डितः / कोशेन राजते राजा, तस्मात् कोशं समाश्रयेत् // " . इत्यद्याहं सुशीलनाममाला नामानं कोशमालोकयाति हर्षप्रकर्षमनुभवामि / अत्र च स्फटिकाक्षमालयेवैकाक्षरमाल याऽनुरक्ता अहर्निशम् सेविकयेच सदनुक्रमणिकया सेविता ॐ देवाधिदेवविभागादयः षड्विभागाः लसन्ति, तस्मात् सत्स्वपि अन्येषु कोशेषु कोशोऽसौ बालव्युत्पत्तिसिद्धये बहुमन्ये किमघिक विशेषु। मिथिलावास्तव्य झोपाख्य दिनांक नजकान्तः व्याकरणविभागाध्यक्षः 5-12-76 अध्यहपदावाद श्रीकाशी विश्वनाथ संस्कृत महाविद्यालयस्य / / ISAWAN LWARA Page #835 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 52 ] "स्वाभिप्रायान् परावबोधयितुं भाषाणामध्ययनेऽध्यापने / र च शब्दकोशानामतीवावश्यकता भवति / तदर्थमेव च अनेक मनीषिभिरल्लखिताः शब्दकोशाः। तेषु तेषु च कोशेषु विद्यते - स्व स्व वैशिष्टयम्, परं यादृशं वैशिष्टयमस्यां "सुशील नाममालायां" विद्यते तादृशं वैशिष्टयं नान्येषु शब्दकोशेषु दृष्टिगोचरं भवति / अस्या अतीवसरलतया शब्दान्वेषणे अल्पमेधसामपि जनानामनतिश्रममात्रेणवाल्पकाले स्वाभिष्टज्ञानानि भविष्यन्तीति सुनिश्चितमेव / अत्र पर्यायादिव्युत्पत्तिप्रदर्शनक्रमेण शब्दार्थानां ज्ञानं कारयितुं विविधोपायाःप्रदर्शिताः सन्ति। यतोऽस्यांनाममालायां यत्र तत्रातीव सरलतया क्लिष्ट शब्दानां व्युत्पत्तिरादिदृश्यते / स्वानुभवतर्कगहनाध्ययनपरिपाकमत्या . पूर्वापराचार्यसम्मतं स्वीकृत्य भाषाविज्ञानदृष्टयापीयं सम्यगुपयोक्तृणां छात्राणां गुणैकपक्षपातिनां विदुषाश्चातीव लाभकरी भविष्यतीति, प्राशा समानः।" जोधपुरम् जयनन्दनझा संस्कृताध्यापकः दिनाङ्क व्याकरणाचार्य-साहित्यरत्न शिक्षाशाखी, 16-10-76 | सरदार उच्च माध्यमिक विद्यालयः / 5 Page #836 -------------------------------------------------------------------------- ________________ AMMAAMRAPARAMPARANAMAAमा माश जयन्ति ते सुकृतिनो, रससिद्धाः कवीश्वराः। नास्ति येषां यशः काये, जरामरणजं भयम् // ___ 'संस्कृतः संस्कृतिश्चैव श्रेयसे समुपस्यताम्' इति कालिदास कवेः सूक्तिरित्यनया प्रेरणया संस्कृत विद्वद्वरस्या भाषायाः अभ्युदयार्थं रक्षणार्थ च भूरि भूरि श्रमः निरन्तरं कृतः। साम्प्रतं संस्कृत भाषा पठनार्थ उपेक्षा दृश्यते। अस्मात् हेतो एव जनाः शुद्धोच्चारणं, लेखन, पठनं अपि नैव जानन्ति का कथा रचनायाः। . ____ सर्व विदितमेव यत् त्रिपक्षी विधेयं अर्थात् त्रिपक्षं यावत् अस्याः प्रावर्तनं न स्यात् तहि सर्वमपि विस्मृतं भवेत् / अनेन पुनरावर्तन हेतुना 'सुशीलनाममाला' रव्य नवीन शब्दकोषोऽयं ग्रन्थः जैन जगति प्रसिद्धः सर्व शास्त्रज्ञः प्राचार्य श्रीमद्विजयसुशीलसूरिवरेण कृतः। - 'अपूर्वः' कोऽपि कोशोऽयं विद्यते तव. भारति' चरिता र्थमेव सुक्तः भाषायाः अध्ययन-अध्यापनेन जनानां रचना व . प्राञ्जला, शुद्धाः भावबोधिनी स्यात् / अयं ग्रन्थः पद्यमय VANI शाशाशासाशाशासाशाशाशाशाशाशाशाशासाशाशा Page #837 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ENEMEMEYE VEDEWEVENDEVEVIEVEME మదుమడు MSANILE Aa P4 र अनुष्टुप छन्देषु सर्वबोधगम्यः विद्यते / 'वाकय रसात्मकं काव्यं' अनुसारेण अयं ग्रन्थ विदुषान् करकमले प्रायाति / कि बहुना- 'क्षणे क्षणे यन्नवतायुवैति तदेव रुपं रमणीयतायाः' कृतित्व-सौन्दर्येण मम हृदये अमिट प्रभावः स्थापितः। . कामये ग्रन्थोऽयं पाठकानां सुबहु उपकरिष्यति / जावाल RE&RRAKKERRRRRRRRRRRRARA******** दिनाङ्क भवदीय जयन्तीलालः ओझा एम. ए. बी. एड. जावालस्थः। सस्यशश्शशशशशुष्शERYTHIRANAPANIPARANARANAPAARAशाशश 18-8-76 [जन्माष्टमी दिने] / Page #838 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व श्रीसिरोही नगरात् जावालं प्रति प्रागतेन विदुषा जैनाचार्य श्रीमद्विजयसुशीलसूरीश्वरेण विरचिता सुशीलनाममाला संस्कृतवाङ्मयरूपः कोशो मया दृष्टः / कोशेऽस्मिन् षड्विभागाः सन्ति / अस्याच नाममालायां वहूनां-एतेषु शब्दानां व्युत्पत्तिरपि समाविष्टा, इयं च - अतीवपयोगिनी / विशेष रुपेण कृदन्तानां तद्धितपदानां प्रयोगश्च व्युत्पत्यनुसारेण कृतः। एतदपि अतीव समीचीनम् उल्लेखनीयञ्चास्ति। कोशेऽस्मिन् अनेक शब्दानां पर्यायवाचिनः शब्दाः वैधानिकरूपेण संग्रथिताः, ते सर्वेषां कृते ज्ञान सम्पत्त्य प्रतीवोपयोगिनः सन्ति। अध्यात्मवादिनां कृते तु कोशोऽयम् अतीव शोभनः उपादेयश्च अस्ति। जगत्यस्मिन् नानाविधाः कोशाः सन्ति, तेषु सर्व प्रथमः अमरकोशः अपरश्व श्रीहेमचन्द्राचार्य कृतः अभिधानचिन्तामणि कोशः, उभयो मध्ये सुशीललाममालाख्य Page #839 -------------------------------------------------------------------------- ________________ NARAYANMARATSANIA शब्दकोशोऽयम् हिमालयवत् उभयोः कोशयोः मानदण्डं करोति / यथा हिमालये भास्वन्ति रत्नानि महोषधिश्च तथैवा स्मिन् कोशेऽपि सुगमरूपेण शब्दानां वर्णां दरिदृश्यते / तथैव कोशेऽस्मिन् शब्दाः रत्नानि इव प्रकाशन्ते / तथा च औषध्यः इव उपयोगिनः सन्ति / कोशोऽयं सुन्दरः उपादेयश्चास्तीति 'सत्यम् शिवम् सुन्दरम्'। सिरोही दिनाङ्क 29-6-76 भूरालाल शर्मा ( वेदान्त साहित्य शास्त्री रा० उ० मा० विद्यालये संस्कृताध्यापकः ) ARTARATEXXYI करारारा राज DASAASEANSLA लियन SATYARKS NALYAN Page #840 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 57 ] 15555555555555555555555555 1: 00:00: 00:ce S यह. 'सुशीलनाममाला' ग्रन्थ के बारे में? 23 वकील-डॉक्टर-प्रोफेसर-शिक्षक मंत्री आदि की .. सम्मतियें 999999999999999999999) Page #841 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 58 ) "सुशीलनाममाला" ग्रन्थ का अवलोकन करने / का अवसर प्राप्त हुआ। 'अनुष्टुप् छंद का यह संस्कृत भाषा में पर्यायवाची शब्द कोष एक अनुपम प्रयास है। भाषा के - प्रगति के लिए शब्द कोष व उसमें भी पर्यायवाची शब्द संकलन एक विशिष्ट स्थान रखता है। इस नाममाला में 2 'छः' विभाग रखे गए है और जो विभागीकरण विषय का / किया गया है वह अनुमोदनीय है। इसके उपरांत जो अनुक्रम रखा है वह सराहनीय है। - (1) देवाधिदेव (2) देव (3) मर्त्य (4) तियंग (5) नरक (6) सामान्य विभागीकरण ग्रन्थकार महोदय के धार्मिक दृष्टिकोण का सूचक व प्रेरक है। शब्द संकलन में शब्द के र यथार्थ अर्थ को सुरक्षित रखने का जो प्रयास किया गया है ? व साहित्यक दृष्टि से अनुकरणीय व प्रशंसनीय है। पू० प्राचार्य श्री विजयसुशीलसूरि महाराज साहेब ने 3 संस्कृत साहित्य की इस ग्रन्थ द्वारा जो सेवा की है वह संस्कृत साहित्य के प्रति उनके पादर का द्योतक है। भाषा के विद्वानों लेखकों व विद्यार्थियों के लिए यह ग्रंथ उपयोगी सिद्ध हो यही मेरी कामना है। सिरोही पुखराज सिंघी एडवोकेट संयोजक दिनाङ्क राजस्थान जैन संघ व अध्यक्ष 12-6-76 सेठ कल्याणजी परमानंदजी पेढी Page #842 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 56 ) AKRAKARARENKORKERRAN | एक अनुमोदनीय साहित्य सेवा कलिकाल सर्वज्ञ श्रीमद् हेमचन्द्रसूरीश्वरजी महाराज रचित 'श्रीअभिधानचिन्तामणि' ग्रन्थ संस्कृत साहित्य को अनुपम देन है। आज सैकड़ों वर्षों बाद राजस्थान प्रदेश में पू० जैनाचार्य श्रीमद्विजयसुशीलसूरीश्वरजी महाराज ने 2848 श्लोकों का संग्रह 'सुशीलनाममाला' के रूप में रचकर संस्कृत शब्द कोष को न केवल समृद्ध किया है अपितु श्रोहेमचन्द्रसूरीश्वरजी म० की स्मृति को पुनः जिवित किया है। ___ यह शब्द कोष प्राचार्य श्री को संस्कृत के प्रति अटूट निष्ठा और प्रेम का परिचायक है। यह कोश संस्कृत प्रेमियों र के लिये महत्व पूर्ण ग्रन्थ सिद्ध होगा यह निश्चित है। शासन और साहित्य के प्रति आचार्य श्री को महान् सेवाये सकल संघ के लिये गौरव की वस्तु है। . जयपुर दिनांक 28-6-76 प्रापका हीराचन्द वैद संघ मंत्री जयपुर संघ . मानसशास AHIMARARAN Page #843 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 60 ] , अभिप्राय sacsssssssss साहित्यरत्न, कविभूषण, शाखविशारद पू० प्राचार्य देव श्रीविजयसुशीलसूरीश्वरजी म० श्री ताजेतरमा कलिकाल सर्वज्ञ पूज्य आचार्य भगवत श्रोहेमचन्द्रसूरीश्वरजी म. रचित 'श्रीअभिधानचिन्तामणि' ने अवलं-अनुलक्षी, सरल भाषामां अने रोचक शैलिमा 2848 श्लोक प्रमाण 'सुशीलनाममाला' नामनो एक नूतन संस्कृत कोश रची प्रकाशित रही रह्या छे. पूज्य आचार्यश्रीना निकट सत्संगथी अने भाव वाही उपदेशथी तेनोश्री एक विशिष्ट विद्वान्, प्रखर शाखाभ्यासी, सिद्धहस्त लेखक अने प्रभावक वक्ता छ एतो जाणुंज छु. तेश्रोश्रीए आज पर्यंत न्हाना-म्होटा पुस्तकों-ग्रंथो रची बहोळा प्रमाणमा साहित्य-सर्जन कर्य छे. जे सरल, रसप्रद अने मननीय होइ, सुंदर ने उष्माभर्यो आवकार पामेल छे. परन्तु प्राजे हुँ विशेष प्रभावित तो ए कारणे थयो के Page #844 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 61 ] 9454555555 555555 अभिधान चिंतामणि कोश' जेवा सर्वमान्य अने विद्वभोग्य ग्रंथना प्रालंबनथी पोतानी आगवी रीतिए, ॐ सरल संस्कृत भाषामां, अने रोचक शैलिमा 'सुशीलनाम माला' नामना सुंदर कोशनी रचना करी, संस्कृत भाषी साहित्यकारो, विद्वानों ने अभ्यासकों ने चरणे धरी रह्या छ, जे म्हें बारीकाइथी ने रसपूर्वक जोयो-वांच्यो छे अने म्हने खात्री थइ छ के, प्रस्तुत 'कोश' विद्वानों ने वांचकोने घणो ज उपयोगी निवडशे अने सर्वत्र पाव-कार्य बनी रहेशे. प्रावो प्रमाणित ने प्रशस्त ग्रंथ रसमय ने काव्य मय // शलिमां श्रीचतुर्विध संघने चरणे धरी, पूज्य श्रीए जैन समाज उपर महान उपकार कर्यों छ; जे वर्षों सुधी चिरस्मरणीय बनी रहेशे. . ए माटे पू० प्राचार्यदेव.धन्यवाद ने पात्र छे. पापणी पासे जैन आगमो अने शाखोनो विपुल ने विशाल भंडार भर्यो छे, तेमाथी लेखक प्राचार्य श्री विद्वभोग्य ने संघोपयोगी शास्त्र-ग्रंथों चूंटी काढी, 'सुशीलनाममाला' नी जेम सरल, सरस ने रुचिकर शैलिमा अनुवादित के संग्रहित करी प्रकाशित करे एवी श्रीसंघनी अपेक्षा प्रस्थाने नहि गणाय एम मार्नु छु 5454545454545454545454545457451451461454554564574594595 Page #845 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 62 ) विद्वान् लेखक श्रीए स्वनामधन्य ग्रंथ-'सुशीलनाम। माला' रची प्रकाशित करो जिज्ञासु साहित्यकारों ने 12 विद्वानों ने ऋणी बनाव्या छे. भावा अपूर्व ने अमूल्य ग्रंथना सर्जन-प्रकाशन माटे पूज्य आचार्यदेव ने शतशः धन्यवाद साथे, वंदना करी, भविष्यमा पण नवनवं सर्जन श्रीचतुर्विध संघने चरणे धरता पालीताणा (सौराष्ट्र) गुजरात रहे एवी नम्र विनंति सह विर# छु / श्री वीर सं० 2403 / विक्रम सं० 2033 पोश सुद 15 / बुधवार दिनाङ्क 4-6-77 संघ-सेवकडॉ० भाइलाल एम० बावीशी. एम. बी. ब्री. एस. (बोम्बे) एफ. सी. जी. पी. (इण्डिया) प्रेसीडेन्ट-इन्डियन मेडीकल एसोसिएशन, पालिताणा. Page #846 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 63 ] मायामाशाशासासासारामाशासारसासारामा * ब्रान्च * HEATRIKARANARARIAशुपाशाशाशासाRARAMROHTARY र ममेजिंग ट्रस्टी श्रीविजयवल्लभसूरीश्वरजी ज्ञानवर्धक ट्रस्ट. कारोबारी सभ्य श्री अखिल भारभय जैन श्वेताम्बर कॉन्फ्रेन्स, मुंबई. एउवाइझरी बोर्ड- . सर मानसिंहजी होस्पीटल. प्रमुख- .. श्रीसिद्ध क्षेत्र सामयिक मंडलः एकस-प्रेसीडेन्ट पासिताणा म्युनिसिपल्टी. एकस-वाइस-प्रेसीडेन्ट पालिताणा तालुका .. कांग्रेस कमिटीः RRRRRRRRRRRRRR RRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRAAAAAAA Page #847 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिमत OC PARMANAसमयसासाराPREPARAMERAMANEMAMAMANIKPRIMARY परम पूज्य आचार्यदेव श्रीविजयसुशीलसूरीश्वरजी म० सा० द्वारा विरचित 'सुशीलनाममाला' का अवलोकन करने का सौभाग्य प्राप्त हुना। 2448 श्लोकों का यह ग्रन्थ न केवल एक 'शब्द कोष' है अपितु एक ' ज्ञान कोष' भी है। इसके विभिन्न विभागों में जैन साहित्य से संबंधित अनेकों पर्यायवाची शब्दों का उल्लेख है / ग्रन्थ में जैनदर्शन की परंपरानुसार तीर्थंकर, गणधर, यक्ष-यक्षिणी, गत चौविसी, वर्तमान चौविसी, देवलोक,मृत्युलोक आदि का विवरण ज्ञान से परिपूर्ण है / ग्रन्थकार प्राचार्यप्रवर एक सिद्धहस्त लेखक है / साथ ही पाप एक प्रखर व्याख्यानकार एवं वक्ता भी है। आप के छोटे बड़े करीब 56 ग्रन्थ अब तक प्रकाशित हो चुके हैं। बालब्रह्मचारी विद्वान् लेखक अपने निर्मल दीक्षा जीवन के 45 वर्ष पूर्ण कर चुके हैं जिसमें आपने व्याकरण, न्याय, आगम आदि कान च्छा अध्ययन किया हैं जिसका प्रति बिम्ब प्राप द्वारा लिखित ग्रन्थों में दिखाई पड़ता है। गुजरात राज्य में जन्मे लेखक की कर्मभूमि राजस्थान रही है जहाँ आपने अनेकों मंदिरों का जिर्णोद्धार, प्रतिष्ठाएं, नूतन जिनालयों का निर्माण, छेरी पाल संघों का नेतृत्व राशाशाशाशासाशासनाशाशाशाशशशशशशशशायावर Page #848 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 65 ] RRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRR प्रादि अनेकों पावन पवित्र एवं प्रशंसनीय कार्य करवाये हैं। प्राप जैन धर्म के सिद्धान्तोंनुसार एक सच्चे अर्थ में साधु है। प्राप में यथा नाम तथा गुण की कहावत चरितार्थ होती है। प्रापका संपूर्ण साधु जीवन त्याग-तपस्या, व ज्ञानध्यान से प्रोतप्रोत है। प्राप जैसे उत्कृष्ट कोटि के सुसाधुओं का राजस्थान में विचरण जैनधर्म व समाज के लिये महान् उपकारी रहा है। मेरा विश्वास है कि-विद्वान् लेखक द्वारा प्रकाशित ‘सुशीलनाममाला' जैन दर्शन में संस्कृत भाषा के प्रन्थों का अध्ययन करने वाले प्रत्येक पाठक के लिये एक महत्त्वपूर्ण संदर्भ ग्रन्थ के रूप में उपयोगी प्रमाणित होगी। अंत में, मैं शासनदेव से लेखक के दीर्वजोवन की शुभ कामना करता हूँ ताकि जैन शासन का यह देदिप्यमान सूय अपने प्रकाश द्वारा जन जगत् को प्रकाशित करता रहे। - गांधी जयन्ति दिनाङ्कः प्रोफेसर अमृतलाल गाँधी . सिरोही. वाले (जोधपुर विश्वविद्यालय जोधपुर) अध्यक्ष श्री भैरूबाग पार्श्वनाथ जैन तीर्थ, जोधपुर (राजस्थान) .. 2-10-76 Page #849 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ** AKAKAKAW******************* आज हमारा परम सौभाग्य है कि आप श्री जैसे विविध विद्या विशारद-विद्याव्यासंगो-निस्वार्थ परोपकार परायणसत्कर्तव्यनिष्ठ-लोकोपकार उपयोगी विद्याभ्यासी साहित्य सेवी ने समाज के लिए चिर स्मरणीय विविध साहित्य की सुयशस्वी रचना कर असाधारण उपकार किया है जिसका मूल्य प्रांका नहीं जा सकता। जिसमें विशेषकर साहित्य समुपासक सदा आपके ऋणि रहेंगे। "अभिधान चिंतामणी कोश" जिसमें 1542 श्लोक हो हैं लेकिन आपने कई वर्षों की कठिन साधना के बाद 2848 श्लोकों वाले “सुशीलनाममाला" नामक 6 विभागों में भाजित एक उपयोगी ग्रन्थ की रचना की है। पूज्य आचार्यवर्यने वाङ्मय के विविध विषयों का अवगाहन कर श्लोकों के रुप में रचे गये अमृतमय विशाल साहित्य का सृजन किया है। जिससे विद्यार्थियों, अभ्यासियों, जिज्ञासुओं एवं समाज के लिए एक महान् ज्ञान भंडार प्राप्त होगा। वास्तव में प्राप श्री द्वारा रचा गया विद्वत्तापूर्ण ग्रन्थ "सुशीलनामनाला" संस्कृत प्रेमियों के लिए ज्योति स्वरुप होगा। हमारा प्रापश्री के चरणों में कोटि 2 वंदन स्वीकार होवे। / विनीत सुगन चंद जैन ___B. A, B. Ed. (सा. रत्न) दिनांक 15-6-76 / राजकीय माध्यमिक विद्यालय, नाडोल (पाली), राजस्थान. M Page #850 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .. [ 67 ] .. . . शासन सम्राट् प० पू० प्राचार्यदेव श्रीमविजयनेमिसूरीश्वरजी महाराज साहेबे पा कालमां शास्त्रीय पठन पाठननो जे नाद प्रापणी साधु संस्थामां गाजतो कर्यो जेने लइ आगमन्याय-व्याकरण-ज्योतिष-प्राकृत-प्रने साहित्य विगेरेमा प्रकाण्ड विद्वान् साधुवर्ग तेमना शिष्यो प्रशिष्यो अने बीजा समुदायो द्वारा शासन ने सांपड्यो। प्रा शास्त्रीय पठन-पाठनमां हमणां प्रोट प्रावी छे. स प्रने हालमां केटलोक साधुवर्ग दृष्टांतोटूचका-सुभाषितो अने आधुनिक लोकरुचिकर साहित्य तरफ वळवा मांडयो छ। ते काळमां पोताना दादा गुरु अने गुरुना शाखीय वारसाये प० पू० प्राचार्य श्रीमद्विजयसुशीलसूरीश्वरजी महाराजे प्रा 'सुशीलनाममाला' बनावी सारीरीते साचवी राख्यो छे / तेनी प्रतीति करावी छ / वर्तमानकाळमां व्याकरणना विषयमा प० पू० प्राचार्यदेव श्रीमद्विजयलावण्यसूरीश्वरजी महाराज अजोड विद्वान हता। तेमणे तेमना जीवनकाळ दरमियान समग्न व्याकरणग्रंथोना तलस्पर्शी अभ्यास उपरांत सात लाख श्लोक प्रमाण करतां पण अधिक नूतन व्याकरणादि साहित्यनी रचना करी छे अने तेमना पट्टधर शिष्य-प्रशिष्य प० पू० प्रा० श्रीमद्विजयदक्ष- श Page #851 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 68 ] 999999999999955555555555 ॐ सूरीश्वरजी महराज अने प० पू० प्रा० श्रीमद्विजय सुशील- सूरीश्वरजी महाराजनी बांधव बेलडीए पोताना गुरुना पगले 卐 चाली गुरुनी प्रतिभाने जीवंत राखी अनेकविध प्राचीन साहित्यने पल्लवित करेल छ / प० पू० प्रा० श्रीमद्विजयपुशीलसूरीश्वरजी महाराजे पोजाना प्रगुरु प्राचार्यदेव श्रीमद्विजय लावण्य सूरीश्वर महाराजना मरुस्थलमा स्वर्गवास बाद, तेमणे तेमनो विहार राजस्थानमां ज राख्यो छे / अने त्यां रही अवार नवार विशिष्ट ग्रंथो संपादन करता याव्या छे। या " सुशीलनाम माला" ग्रंथनी रचना पण तेमणे राजस्थानना मरुधर देशमा : प्रावेल पाली शहेर मां वि० सं० 2027 नी सालमां चातुर्मास / रही पूर्णाहुति पूर्वक करी छ। ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ ॐॐॐ संस्कृत साहित्यमां ग्रंथनी रचना करवी ते साहित्यना प्रकाण्ड विद्वत्ता विना संभवी शके नहिं / प्रा ग्रन्थ तेमणे अनुष्टुप् 2 छन्दमां रच्यो छे, अने तेना छः विभाग राख्या छ / पहेलो देवाधिदेवविभाग, बीजो देवविभाग, त्रीजो मय॑विभाग, चोथो ॐ तिर्यग् विभाग, पांचमो नारक विभाग अने छट्टो सामान्यविभाग. 2 छेल्ले एकाक्षर कोशमाला अने अन्ते सुशीलनानमालाना छः ॐ विभागमा प्रापेला शब्दोनो अकारादि अनुक्रम प्रापेल छे / / 55999999999999999999 Page #852 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 66 ) संस्कृतना प्रभ्यासी माटे प्रा ग्रंथ उत्तम छ / संपादन शैलिपण श्रेष्ठ छ / पर्यायवाची शब्दोनो संग्रह सुंदर छ / - ग्रंथना अवलोकनथी ग्रन्थकर्तानी विशिष्ट विद्वत्ता प्रने सांस्कृत भाषा उपरनो सुंदर काबु जणाया विना रहेतो नथी। प्रा ग्रन्थ निर्माण द्वारा तेमणे अभ्यासको उपरना महान् उपकार साथे सूरिसनाट्ना शिष्य-प्रशिष्योनी विशिष्ट विद्वत्ताना दर्शन साथे जैन शासननी अने विशेषे करीने साधु संस्थानी प्रतिभाने वधारी छ। . हुँ इच्छुछु के प्रावा उत्तम ग्रन्थो, निर्माण करी जैन शासननी विशिष्ट कोटिनी विद्वत्ता द्वारा प्रभावना करे / प्रमदाबाद-७ दिनाङ्कः मफतलाल झवेरचन्द गांधी [ जैन पंडित ] 4 सिद्धार्थ सोसायटी, पालडी. 1-11-76 Page #853 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * मन्तव्य * Harssesoxercensore न वि अत्थि न वि अहो ही, सज्झाय समं तपो कम्मं // वृत भा० 1147 जैनधर्म दिवाकर राजस्थान दीपक, मरुधर देशोद्धारक शाख-विशारद साहित्य-रत्नकवि भूषणादि भूषितोपाधि श्री श्री श्री 1008 श्रीमद् विजयसुशीलसूरीश्वरजी महाराज सा० द्वारा रचित 'सुशीलनाममाला' ग्रन्थ का अवलोकन ___ करने का सुअवसर मिला, सम्पूर्ण ग्रन्थ अंपने मौलिक स्वरुप में अनूठा ग्रन्थ है / यह ग्रन्थ शब्द कोष के रुप में होते हुए भी जैन तत्व दर्शन, जैनागमों के सद्धान्तिक विश्लेषण तथा जन कथा साहित्य की परंपरानों से सुसम्पन्न है / विषय का प्रस्तुतीकरण सुबोध एवं साहित्यिक रसानुभूति से युक्त होने से व्याकरण विषय की निरसता नहीं है तथा साधारण के लिये समझने योग्य है। आपने इस ग्रन्थ को कोष के रुप में प्रस्तुत करते हुए भी साहित्यिक एवं सांस्कृतिक इति वृत्तात्मकत्ता से सटीक एवं कलात्मक बनाया है जो इस पुस्तक की अपनी विशेषता है। Page #854 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 71 ) . स्वाध्याय, मनन तथा तत्वचिंतन. ऐसे महान् तप है जिनकी साधना से प्रागमा बुधि से अतीत के मुक्ता अन्वेषित कर साहित्य के कोष को समृद्ध बनाया जाता है। प्राचार्य श्री का प्रयास इस रुप में वरदान तुल्य है। वर्तमान भौत्तिक जीवन में प्रागमों की ज्ञान-गंगा जन मानस तक लाकर आध्यात्मिक उर्वरता प्रदान करने की र प्रत्यन्त आवश्यकता है। इस प्रकार का भगीरथ प्रयास भौतिक जिजीविषा से मुक्त प्राचार्य, मुनि ही कर सकते है तथा भौतिक सुखों को मृगतृष्णा में भटकते जीवों को शाश्वत् मोक्ष सुख प्रदान कर सकते है। शिक्षा मोक्ष देने वाली हो। 'सा विद्या या विमुक्तये' प्राज की शिक्षा मुक्त रहने के लिये नहीं भौत्तिक बन्धनों का हेतु बन गई है। - सम्यक-ज्ञान की अत्यन्त आवश्यकता है। समाज में नतिक एवं चारित्रिक शुद्धता के विकास के लिये इस प्रकार 4 की कृतियों प्रकाशस्तभ का कार्य करती है। . सम्यक-दर्शन, सम्यक-ज्ञान एवं सम्यक-चारित्र्य की रत्न त्रयो का त्रिवेणी संगम आध्यात्मिक एवं मानसिक र संतुष्टि प्रदान कर भव भव भटकते भविजन को कर्मो के पाश M से मुक्त करा कर मोक्ष का पथिक बनाता है। RAKAARTHATARTHATAENELORSERIES RAIIAN Page #855 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राष्ट्रीय चेतना में नैतिक एवं चारित्रिक विकासको अत्यन्त आवश्यकता है। इस प्रकार की रचनाएँ भगवान महावीर के उपदेशों एवं सिद्धान्तों को जीवन में प्राचरण शुद्धि का क्रियात्मक कायाकल्प कराती है। __आज के परिवर्तित परिवेश में एवं राष्ट्रीय धारा के बदलते हुए स्वरुप में यह ग्रन्थ मानव मात्र के लिये भद्रंकर होगा तथा इस प्रकार के अन्य ग्रन्थों की रचनाएँ विश्व कल्याण की भावना को बढाने में आशीर्वाद स्वरुप होगी। ज्योतिष सदन / पं० हीरालाल शास्त्री एम० ए० ऋषि पंचमी गुरुवार ! संस्कृताध्यापक (भाद्रपद शु०) शासकीय विद्यालय विक्रम सं० 2035 दिनाङ्क 7-6-78 :) माण्डवला (जालोर) . . / TLE ला NDAL Page #856 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 73 ) RAHAMARIKARARIANRAIायायायायाशाशााााााााााश 'सुशीलनाममाला' पुस्तकना मुद्रित फरमानो जोतां (1) देवाधिदेव विभाग (2) देव विभाग (3) मर्त्यविभाग (4) तिर्यग् विभाग (5) नारक विभाग अने (6) सामान्य विभाग, ए छ विभागमा विभाजीत करेल प्रा नाममालानु पुस्तक संस्कृत साहित्यना पठन-पाठनमां अभ्यासीनोने खूबज उपयोगी नीवडशे। वधुमां प्रा पुस्तकमां दर्शित 'अ' कारादि अनुक्रमथी दरेकनी शब्दनी माहीती तेना पर्यायवाचक नामो साथे सुलभताथी प्राप्त करी शकशे। पा पुस्तकना रचयिता परमशासनप्रभावक पूज्यपाद आचार्य भगवन्तः श्रीमविजयसुशीलसूरीश्वरजी महाराज साहेब आगम-न्याय-व्याकरण आदि साहित्यना प्रकांड अभ्यासी उपरांत ते प्रोश्रीनो विचार, वाणी अने वत्तंन स्वरुप जीवन व्यवहार अहिंसा-संयम अने तपथी अलकृत छ। पूज्यश्रीए स्वयं करेल या पुस्तकना समस्त श्लोकोना सर्जन उपरथी ज, तेयोश्रीना संस्कृत भाषा उपरना काबुनो आपणने ख्याल पेदा थइ शके छ / तेपोश्री छल्ला केटलाक वर्षोथी राजस्थानमा ज विचरीत्र र रही अनेक स्थले शासन प्रभावनानां कार्यो करी रह्या छ / Page #857 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 74 ) पूज्यश्रीनी शुभ निश्रामा राजस्थानमा अनेक स्थले अंजनशलाका-प्रतिष्ठादिनां शुभ कार्यो थतां ज रहेतां होवा छतां संस्कृत के तात्त्विक विषयना साहित्य सर्जनमा तेस्रोश्री खूवज प्रवृत्तिशील बनी रहेता होइ विविध विषयो पुस्तकोनु सर्जन करी शकया छ / पूज्यश्रीना रोमेरोममा प्रकाशी रहेल समता गुणे, राजस्थानना घणा गामोमां दीर्घकालीन क्ल शमय वातावरणने पण एकदम शांत बनाषी अंजनशलाका-प्रतिष्ठा प्रादिनां कार्यो निविघ्ने अने उत्साह पूर्ण वातावरणवाळां बनी जवा पाम्यां छ / ******************AXARREKEK शासन प्रभावनानां अने सकल संघना हितकार्योमां कया माणसपासेथी कइ रीते काम लेवु तेनी सुज, प्रा प्राचार्य भगवन्तमा अजोड छ। हमणां ज थयेल धीबामणवाडजी महातीर्थमां अंजनशलाका अने प्रतिष्ठान कार्य ते प्रत्यक्ष पूरावा रुपे छ / पूज्यश्री दीर्घायु बनी रही नवा नवा साहित्य सर्जनमा अने शासनप्रभावनानां विविध कार्योमां शासनदेव तेश्रोधीने सहायभूत बनी रहे एज शुभेच्छा / श्री वीर सं० 2503 ली० विक्रम सं० 2033 खुबचंद केशवलाल पारेख अषाड शुक्ला त्रयोदशी निवृत्त "धार्मिक शिक्षक" दिनाङ्क 26-6-77 / वाव (बनास कांठा) गुजरात. Inter RRRRRRRRRRRRRRRR Page #858 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 75 ) || श्रीस्थम्मनपार्श्वनाथाय नमः // XERRAN . संस्कृतसाहित्यविषयकस्तुत्यपरिश्रमेणानेकविधग्रन्थरचनाकारि-पूज्यपादाचार्यभगवच्छ्रीमत्सुशीलसूरीश्वररचितेयं "सुशीलनाममाला"-कृतिः संस्कृत साहित्यविषये प्रगतिकारिका प्रावालविद्वद्भोग्या च भविष्यति / प्रतिशब्दमन्यरुपान्तरं दर्शयित्वाऽतीव सरलतरा सुभोग्या च कृता। . __कलिकालसर्वज्ञभगवता श्रीहेमचन्द्राचार्येण संस्कृतसाहित्यातिविस्तृतप्राकाश्यमाने सहायार्थ सारल्यार्थं च रचित पञ्चानुशासनान्तर्गत शब्दानुशासने कृतेऽपि शब्दसिद्धित्वे संस्कृतकोश जगति महद द्वितीयं च कायं कृतम् / ... संस्कृतसाहित्यजगति महाकोश जगति च वालमुमुक्षजीवान् प्रवेशयितुं सरलतया ज्ञानं च लम्भयितु कोशविषयकस्तुत्यप्रयासकृच्छ्रीमन्त प्राचार्यवर्याः श्रीजिनशासनस्य महतीं सेवां कृतवन्तः। Page #859 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 76 ] KINNER ला अतोऽस्माकं तेषां कोटाकोटिवन्दनसहितमभिनन्दनं घटते / इतिशम्। / जैनं जयति शासनम् / लिखितं___केशरीचन्द्रात्मज छबीलदासेन श्रेष्ठिवर्यश्रीमत्केशवलाल बुलाखीदास-संचालित-श्रीभट्टीबाईस्याद्वादसंस्कृत प्राकृतपाठशाला-श्रीललिताबेनकेशवलाल स्वाध्यायमन्दिर प्रधानाध्यापनेन वर्तमान स्तम्भतीर्थ (खम्भात) निवासिना वैक्रमीयत्रयखिशदधिकद्विसहस्रसंवत्सरे। [जैन पंडित श्रीछबीलदास केशरीचंदजी नो पा अभिप्राय छे.] A RIAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAKAKARARIA IMAJAL शाशाशासायासाशाशाशासायास्यास्यामा Page #860 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 77 ) *****#* र पू० प्रा० श्री विजयसुशीलसूरिजी म०, सादर वन्दना। आपने संस्कृत कोष बनाया जानकर खुशी हुई। प्रापको साहित्य साधना निरंतर चल रही है, यह देखकर बड़ी प्रशनता होती है। साहित्य में प्रवेश करने के लिये बहुत ही प्रावश्यक्ता होती है. प्रतः प्रापने 'सुशीलनाममाला' संस्कृत कोष लिखकर संस्कृत के पाठकों के लिये बहुत ही उपयोगी कार्य किया है। यह शीघ्र प्रकाशित हो अधिकाधिक प्रचार हो यही शुभ कामना है। बीकानेर दिनाङ्क अगरचन्द नाहटा 18-6-76 / . [जैन पंडित ] ******** #2222 2 22 Page #861 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 78 ] 9555555555555555555555555 अभिप्राय Hasssmasecsee. "सुशीलनाममाला" ना छपातां फारम जोयां. कलिकाल-सर्वज्ञ प्राचार्य श्रीहेमचन्द्रसूरीश्वरजी म. ना "अभिधान चिंतामणो" कोशना प्राधारे रचायेली आ नाममालामां अनेक शब्दोनो संग्रह करेलो होवाथी विस्तृत बनी छे, छतां तेनी रचनामां प्रासाद गुण अने सरलता होवाथी विद्यार्थीने कंठस्थ करवानी साहजिकतानो अनुभव थशे. // प्रामां लिंगोनो निर्देश साथे साथे होत तो ते वधु अनुकूल बनत. प्राचार्य विजयसुशीलसूरि म० नी अनेक विषयोनी रचनामां आ कृति भात पाडे एवी छे. कात्तिको पूणिमा ६/बी, वीरनगर सोसायटी जनवावाडज अमदाबाद-१३ / म दिनाङ्क 6-11-76 / अम्बालाल प्रेमचन्द शाह [ जैन पंडित ] // // 9999999999999999999999 Page #862 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 76 ] - परम पूज्य कलिकाल सर्वज्ञ प्राचार्य भगवन्त श्री हेमचन्द्रसूरीश्वरजी म० कृत श्री अभिधान चिंतामणि कोश' ना प्राधारे पू० प्राचार्यदेव श्री सुशीलसूरिश्वरजी महाराज साहेबे'सुशीलनाममाला' ( संस्कृत शब्दकोश ) अनुष्टुप् छन्दमा 2848 श्लोक प्रमाण बनावी संस्कृत साहित्यना अभ्यासीओ उपर महान् उपकार करेल घे. प्राजे ज्यारे संस्कृत साहित्य तरफ लोकोतुं ध्यान सविशेष खेचायेलं छे, त्यारे आवा ग्रन्थो ते साहित्यना अभ्यासीयोने वधु उपकारक थशे. पूज्यपाद प्राचार्यदेवश्रीनो प्रा प्रयास प्रतिस्तुत्य छे.... पालिताणा लि. कपुरचंद रणछोडदास वारया दिनाडू तया अध्यापक श्री जैन [श्रेयस्कर मंडळ ] सोमचंद डी० शाह 27-8-76 संपादक-'सुघोषा' मासिक. A KEARRIANEARENTATTATREARREARREARREARREARRIATE) 卐 // // AMRAPARIशाशाशाशाशाशा श याशाशा शाश EXR Page #863 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 80 ) विद्ववर्य प्राचार्य श्रीविजयसुशीलसूरिजी महाराज कृत 'सुशीलनाममाला' कोश, संस्कृतना अध्येतानोने उपयोगी थाय एम मार्ने छु केमके आ कोशनी रचना कलिकाल सर्वज्ञ प्राचार्य श्री हेमचन्द्रसूरीश्वरजी महाराज ना अभिधान चिन्तामणिकोशना प्राधार उपर थयेल छे. पूज्य प्राचार्य श्रीविजयसुशीलसूरिजी महाराजनो प्रा प्रयत्न अनुमोदनीय छे. तेस्रोश्रीए परिश्रम पूर्वक संस्कृत अने गुजराती साहित्यना विषयमा बोजा पण अनेक प्रन्थो तैयार कर्या छे. तेप्रोश्रीनी ज्ञानोपासना प्रशंसनीय छ / | पासो सुद६ शुक्रवार दिनांक थि० शिवलाल नेमचंद शाह / [ जैन पंडित ] ठे० कोकानो पाडो पाटण (उ० गुजरात) 1-10-76 Page #864 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (81 ) ETIRTHAKHAIRAMA ARAMANAPANIPANANDININMAMRAPANALANDANARAPARAMAY प्राचीन कालमां परम पूज्य प्रातः स्मरणीय कलिकाल सर्वज्ञ प्राचार्य पुङ्गव श्रीमदहेपचन्द्रसूरीश्वरजी महाराज साहेबे जेम 'श्रीअभिधानचिन्तामणि' कोश रच्यो हतो तेम पा अर्वाचीन कालमा स्वर्गीय शासन सम्राट् प० पू० प्राचार्य श्रीमद् विजयनेमिसूरीश्वरजी म० सा० ना पट्टालंकार स्वर्गीय साहित्य सम्राट् प० पू० प्राचार्य श्रीमद्विजयलावण्यसूरीश्वरजी म. सा० ना पट्टधर कविदिवाकर प० पू० प्राचार्य श्रीमद् विजयदक्षसूरीश्वरजी म० सा० ना पट्टधर साहित्यरत्न प० पू० प्रा० श्रीमद् विजयसुशीलसूरीश्वजी म० श्रीए स्वरचित 'श्रीसुशीलनाममाला' कोश ए अाजना संस्कृतनो सारो अभ्यास करनारा अने शब्द कोषमां पारंगत विजेता थनाराम्रो माटे परम प्रशंसनीय अने अादरणीय एवं खास अभ्यासनीय छ / * लि. शिवगंज श्री साधु-साध्वी जैन पाठशाला दिनाङ्क शिवगंजना प्राध्यापक . जेशिंगलाल चुनीलाल चाणस्मावाला 14-8-76 . [जैन पण्डित ] 卐 शासनाशयशामाशामाशा शाशशशशशशशशशश 卐 卐 Page #865 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 82 ) AYUMES 474 UDASANTHSAAS HEVISITIETIETIETITIXEYEATMES 3rdiaCkattestants जैन धर्म दिवाकर-राजस्थान दीपक-मरुधरदेशोद्धारकशाख विशारद परम पूज्य प्राचार्यदेव श्रीमविजय सुशीलसूरीश्वरजी महाराज साहत्र की र स्वरचित 'श्रीसुशीलनाममाला' की कृति प्रतीत सुन्दर, प्रशंसनीय, प्रादरणीय एवं अस्यासनीय है। মিল दिनाङ्क लि० 'श्री वर्द्धमान जेन तत्त्वज्ञान / प्रचारक विद्यालय श्री शिवगंज' के प्रधानाध्यापक एवं मैनेजर शा० भूरमल वीरचन्दजी प्रागबाट जैन लासवाला. 14---76 . Page #866 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 83 ] MSMSMSMSUNMUNWIRWISI VESVESEVEWE SSC JABARKARSASARSANSAHARSALSO WIMINA पूज्यपाद प्राचार्यदेव श्रीमद् विजयसुशीलसूरीश्वरजी महाराज साहेब प्रादि ठाणानी पवित्र चरण कमलमां श्रीजावाल प्रापश्रीए तैयार करेल ‘सुशीलनाममाला' ग्रंथ संस्कृतना अभ्यासीयोने उपयोगी छ प्रापश्रीनो परिश्रम स्तुत्य छे. एज सभ्य - कोटी प्रो. सोना कोटीशतः वंदणा अवधारशोजी - [श्रीमद् यशोविजयजी जैन संस्कृत पाठशाला. अने श्री जैन श्रेयस्कर मंडल-महेसाणा. ] दिनांङ्क 2-10-1976 2008222222 Page #867 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 84 ) प्राचीन कालमां परमपूज्य प्रातः स्मरणीय कलि काल, सर्वज्ञ प्राचार्यदेव श्रीमद्विजय हेमचन्द्रसूरीश्वरजी महाराज साहेबे रचेल 'श्री अभिधान चिन्तामणी कोशना' आधारे बाल ब्रह्मचारी राजस्थान दीपक परम पूज्य प्राचार्यदेव श्रीमद् विजय सुशीलसूरीश्वरजी महाराज साहेबे बनायेल ' श्रीसुशीलनाममाला' संस्कृतना 7 अभ्यासीनोंने घणोज उपयोगी छे. आपश्रीजीनो प्रयास घणोज प्रशंसनीय छे. तेनो घणोज प्रचार थाय एवी अंतिम भावना। , लि० मास्टर बाबुलाल मणिलाल संघवी भाभरवाले हाल तखतगढ राजस्थान (मारवाड़) दिनांक 10-1-76 Page #868 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 85 ) 7. विश्वविख्यात परम पूज्य कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेम चन्द्राचार्य महाराज श्री ने सदीयो पहले रचा हुआ महा ग्रंथ 'श्रीअभिधानचिन्तामणि' कोश का पालंबन लेकर आपने यह 'सुशीलनाममाला' नामक ग्रन्थ की सुंदर रचना करके आम जनता के सामने साहित्य सेवा का उदाहरण प्रस्तुत किया है यह बहुत ही प्रशंसनीय और अनुमोदनीय है। यह ग्रंथ जैसे संस्कृत पढने वाले बालकों के लिए उपयोगी है उसी प्रकार विद्वानों-बुद्धिमानों के लिए भी अति उपयोगी है। इसी प्रकार पुस्तक का यह कोष कॉलेज में पढाया जा सका है। आपने अनेक ग्रन्थों का सर्जन करके समाज पर बहुत बडा उपकार किया है। ..आपकी अजोड साहित्य सेवा और शांत स्वभाव दोनों मिलकर पुनः अनेक ग्रंथ के निर्माण भविष्य में भी कर सकेंगे। आप पूज्य गुरुदेव से विनंति है कि समय 2 पर ऐसी साहित्य सेवा करके जगत का उपकार करे। आप श्री को सदैव मेरा कोटि कोटिशः वन्दन हो। लि. सिरोही, राजस्थान / ! आपका चरणोपासक विधिकारक दिनाङ्क मनोजकुमार बाबुलालजी हरण 22-10-76 ( बी० कॉम०) KATARIRAINRITERABANKARNATAसाथ Page #869 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 86 ) A bunch of flowers : I was thrilled to go through the great book Susheel Nam Mala' containiig about 3000 siokas written by His Holiness Acharya Shrimad Vijay Sushil Surishwarji Maharaj. The Acharya Shree has written one hundred and eight books out of which fifty six books have been published and the remaining await publication. The Acharya Shree's style is lucid and comprehensive which like nectar enters the soul resulting in the transformation of mind, body and soul. Every theme is depicted in such a simplicity that the reader feels as if he is in the wonderland of illumination. such is the magic of his style. His books dealing with all the aspects of the Jainism have become very popular among the elite as well as the common people belonging to all faiths, caste and creed. The Acharya Shri was born in 1973 V. S. in Chansma village of the greater Gujarat Province in a well known Visa Shrimali family of the Chauhan Cotra. CREPEKERXERORREDO Page #870 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 87' ] His father Mehta Chaturbhai was a religions man and his mother Smt. Chanchal Bahen was a devout lady. His grand father Mehta Tarachandji led a very pious life. His elder brother Dalpatbhai renounced this world and is well known as Acharya Shrimad Vijay Daksha - Surishwarji Maharaj. The Acharya Shree's younger sister was also deeply religions. The younger Sister Tarabahen also renounced this world and is well known as Ravindu Prabha-Shriji The religions trend of this family left an indelible impression of piety and divimity upon Acharya Shree Vijay Sushil Surishwarji Maharaj The great teachers like Acharya Smrat Shrimad Vijay Nemisurishwarji Maharaj and Acharya Shimad Lavanya Surishwarji Maharaj inspired him in his boyhood to renounce this world at the age of 15 in the year 1988 VS. After the renunciation, the Acharya Shree devoted himself fully to learning at the holy feet of Acharya Smart Shrimad Vijay. Nemisurishwarji Maharaj and Acharya Shrimad Lavanya Surishwarji Maharaj. He not only studie Jain scriptures under their guidance but also acquired a deep knowledge of the Shad Darshanas Page #871 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 88 ] 414141414141414141414141414141414141414141414545o : **Achaya Shri Vijay Susheel Surishwarji. though born in Gujarat, has been moving barefooted in the villages, towns and cities of Rajasthan for the last thirteen years benefitting people by his sermons and inspiring them to lead pious life and perform good deeds for the welfare of the people and the Society: He has been decorated with titles such as Shastra Visharad - well versed in Jain Scriptures, Sahitya Ratna' - the jewel of literature and Kavi' Bhushan' - the ornament of the poets. In the holy Jaisalmer Tirtha, Shri Sangh confirmed on him the title of Jain Dharma Diwakar' - the Sun of the Jainism. Besides, he was awarded Marudhar - Desho-dharak on the auspicious Pratishtha ceremony at Rani Station, 'Tirtha Prabhavak' at Chanvaleshwar Tirtha, Rajasthan Deepak-The lamp of Rajasthan in Pali, Shasan Ratna'The jewel of Jain Society in Jodhpur. L. in the sacred Memory of Lord Mahavir. Acharya Shree got the following temples and monuments constructed: 154545454545146145461454545454545454545454546554695 Page #872 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 89 ] 4545454545454545454545454545454545454545454545 1. The Siddha Chakra Mandir at Nadol. 2. Pavapuri Jal Mandir at Nadol. 3. Laghu Shanti-the sacred poem composed by 5 the great Acharyadev Shrimad Mandev Suri was carved in marble-stones at Nadol. The life sketch of the great composer has also been carved in marble in the temple. 45454545454545454545454545454545454545454545454545454545454545 4. Samavasaran Mandir in Jodhpur. 5. Pavapuri Temple at Knimel. 6. Kirti Stambh at Jawal. 54545454545454545454545454545454545454545454545455555697461414514614541551 Acharya Shrimad Vijay Susheel Surishwarji Maharaj has inspired Shree Sangh to open Religious schools at varions places such as Nadol. Ramsin, Khimel. Jodhpur, Udaipur etc. It is his firm belief that the transformation of society depends upon education especially education in Religion Many holy pilgrimages took place at the inspi. ration of the Acharya Shree. Eleven 'Chhari, Pal Sangh' were led by the Acharya. Among then, the following are worthy of mention. 1545455456454545454545454545454545454545454545 Page #873 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 90 ) 1. Godwar Panch Teerthi including the Ranakpur Temple. 2. The Abuji Tirtha. 3. The Kapardaji Tirtha. 4. Phalodi Parshwanath Tirth. The Acharya Shri inspired to go to pilgrimage to the holy Tirthas like Sametshikharji, Sidhgiriji. Jaisalmer, Nakoda. Kaparda Shankheshwarji etc. The Acharya Shree is well versed in Gujarati, Hindi and Sanskrit His style in Sanskrit bears a modern touch and is known for its crystal clarity. It is evident from his books like 'Shri Shad Darshan Darpanam' Shri Tirthankar Charittam' 'Sushil Nam Mala' Chhando Ratna Mala'" Shri Hem' Shabda nu Shasan Sudha' etc. The Sushil Nam Mala is written in, stylish Sanskrit and is admired even by the Sanskrit Scholars of repute. As a great disciple of His Holiness Acharya Shrimad Vijay Dakhshasurishwarji, his fame and name has spread like the fragrance of the 'Kalpa-Pushpa'- The flower of the tree of Heaven which fulfills all desires. Page #874 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 91 ) He like 'Bhagirath' has brought the Ganga in the desert of Rajasthan. The holy Ganga is many a good deed of the Acharya Shree such as the rennovation and the installation ceremonies of many Jain Temples, Updhan Tap-the penance for the purification of soul and many religious ceremonies. 222222222KRR) The good deeds and religious ceremonies performed by the Jain Sangh at the great inspiration of Acharya Shri Vijay Sushilsurisharji Maharaj at various places of Rajasthan, Maharashtra, Gujrat and, through out the country, have brought the Ganga of spiritual happiness and inner peace in the tormenting desert of the material world. WYRZYNARAYANARRA Acharya Shri performed Pratishtha & Anjan Shalaka Ceremonies of Kareda Parshwanath Temple in presence of His Holiness Acharya Shri Dakhsha Suriswarji on 2-2-77. Dhe to his blessings, the Sirohi Jain Sangh was . united. Then Acharya Shri performed Pratishtha and Anjan Shalaka ceremonies of Bamanwadji Jain Tirth RRER** * Page #875 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 92 ) with great enthusiasm, in the year 2033, Owing to this ceremony, the Sangh enjoyed all sorts of happiness. I bow to the Sacred feet of Acharya Shri Vijay Sushilsuriswarji Maharaja, who is like a Tree of Heaven on this earth.. FALNA Samvat 2033, Ashadh Sukla Panchami. Wednessday, ( 22-6-77) J. C. Patni M.A. (English & Hindi) Vice Principal, S.P.U. College, Falna. Page #876 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 63 ) भEDPAPPURISADARAMADAANAAMANANAMARAयशशशशशशश श्रीसुशीलनाममाला अंगे अभिप्रायविद्वद्वर प्राचार्य श्रोविजयसुशीलसूरिजी म० जोग अनुवन्दना सुखशाता. तमे 'सुशीलनाममाला' नामनो संस्कृत शब्दकोष तयार कर्यो छे ते जाणी खूब आनंद थयो छे. संस्कृत ग्रन्थो वांचवामां अने नवीन ग्रन्थ रचवामां कोष ए घणु उपयोगी साधन छे. कोष वगर जेम राजा शोभतो नथी तेम विद्वान पण कोष वगर शोभतो नथी. तमारो प्रयास प्रशंसनीय छे.. बीजी पण प्रावो मौलिक कृतिम्रो तमारा हाथे तैयार थाय एवी अभिलाषा साथे-- वि० सं० 2033 _ मागशर शुद६ विजयदेवसूरि पालिताणा समायायायायायाशाशाशशशशशशशशा Page #877 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 64 ) सशाशयाRVARARIANRAIशशशशशशशशशशशशशास श्रीसुशीलनाममालायाः- अभिप्रायः। / श्रीमत्-सुशील-महनीय बुधेश्वराणां, . भव्योपकारभर-निर्भर तत्पराणाम्। पादारविन्दविगलन्मकरन्दवृन्द, मद्वन्दनात्मकमिलिन्द उपत्वमन्दम् // 1 // श्रीमत्कराम्बुजविनिः सृतपत्रमेत्य, हर्षप्रकर्षमिह सन्तनुते नितान्तम् / स्वान्ते ममाऽस्ति कुशलं भवदीयमिप्सोः, ... श्रीमत्प्रसादमनिशं मनसाऽभिलिप्सोः // 2 // यः श्रीमता मतिमता रचितोऽस्ति कोषो, वैदुष्यलक्षणमहार्थ भटाधिपोषः / एतत्कृते मतिमते भवते ददामि, धन्य ध्वनि स्वरवनि प्रतिपद्यमानम् // 3 // कोषं विना न लसतोह तथा विपश्चित्, लोके यथा नरपतित्वमितोऽपिकश्चित् / तस्मात् सुधोजन समाज उदारभावं, दृष्ट्रा प्रसीदतितरां मतिमत्सु सत्सु // 4 // साहित्य सद्म-दृढयन्त्रविमोचि कुञ्जी, गूढार्थबोधविहिताऽऽदरलोकरञ्जी। श्रीमन्मुखाम्बुजविनिर्गत नाममाला, मालायते हृदि न कस्य गुणे विशाला // 5 // वि० सं० 2033 / उपाध्याय हेमचन्द्रविजयो मणिः मार्गसित षष्ठी पादलिप्तपुरम् 722222222222222 ansastrotamaanastasistianitSANSARABANARASUIWALILASSASUISUALISLATULSUNNISUASUMBINI Page #878 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुद्रक : अजन्ता प्रिण्टर्स, त्रिपोलिया, जोधपुर