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________________ 243 तृतीयो मर्त्यविभागः चर्मप्रसेविका' भखारे, प्रोक्त श्चर्मप्रसेवकः / प्रास्फोटनो' वेधनिका', मौक्तिक छेदशस्त्रकम् // 1531 // निकष' स्तु कषः' शाणः२, कषपाषाण उच्यते / कङ्कमुख' श्च संदंशः२, संदंशस्य हि कथ्यते // 1532 // यन्त्रकं च भ्रमः२ कुन्दं', मद्यभ्रामकयन्त्रकम् / * मरिणकारनाम * प्रोक्तं नाममणिकारो', वैकटिकोरे ऽपि कथ्यते // 1533 // ___ के शौल्विकनाम के शौल्विक स्ताम्रकुट्टको', मन्यते शौल्विकस्य हि / ___ - * शाङ्खिकनाम के काम्बविक' श्च शाङ्खिकः२, कथ्यते शाङ्खिकस्य वै // 1534 // ___ * सौचिकनाम * सौचिक' स्तुन्नवायरे श्च, नामोक्त सोचिकस्य हि / . * कतरीनामानि * कर्तरी' कर्तरि श्चैवं, कृपाणी कल्पनी पुनः // 1535 // वस्त्रादि कर्तनं कतु, शक्त लोहकृतं भवेत् /
SR No.004481
Book TitleSushil Nammala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandiram
Publication Year1988
Total Pages878
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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