SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 823
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (पू० पन्नधास थी पद्मसागरजी गणिवर म० नो पत्र ) परम पूज्य विद्वयं प्राचार्यदेव श्रीमद्विजयमुशीलसूरीश्वरजी महापाज नाहे बनी सेवामां सादर वंदना मुखशाता. आपनो कृपा पत्र मळयो. समाचार बधा जाण्या. 'कनिकाल मर्वज्ञ श्रीहेमचन्द्राचार्य' म विरचित भी अभिवानचिन्तामणि' कोश नं प्रालंबन लइ, बाल जीबोना उपकार माटे आपश्रीए सुशीलनाम माला' नूतन संस्कृत कोश तयार कयों छे. ते खूबज उपयोगी अने प्रशस्त कार्य प्रापे करेल छे. . व्याकरणना संस्कृत साहित्यता प्राप' जेवा उच्च कोटिना अभ्यासु श्रमण संस्थामा विद्वान् छो, ते गौरब समान छे अने तेथी अापना कार्यमां त्रुटि होवा कयाय संभावना नथी. जे रीते आपे कोशने सरल, सुगम ने मूंदर बनाव्यो छे, ते रीते पाप लोक भोग्य थाय तेवो मुगम ने सरल अन्य ग्रन्थ प्रापो तेवी मारी विनंति. प्रापश्रीनी या विषयमा बौद्धिक प्रतिभा उच्च कोटिनी छे, अने प्रावां सुंदर सरल भाषामा अपायेल साहित्यनो आस्वाद अनेक लइ शकशे.
SR No.004481
Book TitleSushil Nammala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandiram
Publication Year1988
Total Pages878
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy