________________ तृतीयो मर्त्यविभागः 116 * पूर्णकलशनामानि 8 स्याद् वै स्वस्त्ययन' पूर्ण-कलशं२ मङ्गलाह्निकम् // 816 // * मङ्गलस्नाननाम * शान्तिक' मङ्गलस्नानं२, यत् सुजलेन क्रियते / * हस्तलेपनाम * करणं' हस्तलेप इच, विवाह समये विधौ // 17 // * हस्तबन्धनाम * पीडनं' हस्तबन्ध श्च, पाणिग्रहण नामनी / 7 // * करमोचननाम * तथापि समवभ्रंशः', कथ्यते करमोचनम् // 818 // वात्तिक धूलिभक्त 2 स्याद्, विवाह समये क्रिया। * जामातृनाम * जामाता जगति ख्यातः, पुत्रीपतिः स मन्यते // 819 // * जारनाम के उपपति' श्च जारो ऽपि, कथ्यते जारपूरुषः / .. ॐ गणिकापतिनाम * स्याद् गणिकापति' नाम, भुजङ्गो ऽपि तथैव च // 20 //