________________ ( 58 ) "सुशीलनाममाला" ग्रन्थ का अवलोकन करने / का अवसर प्राप्त हुआ। 'अनुष्टुप् छंद का यह संस्कृत भाषा में पर्यायवाची शब्द कोष एक अनुपम प्रयास है। भाषा के - प्रगति के लिए शब्द कोष व उसमें भी पर्यायवाची शब्द संकलन एक विशिष्ट स्थान रखता है। इस नाममाला में 2 'छः' विभाग रखे गए है और जो विभागीकरण विषय का / किया गया है वह अनुमोदनीय है। इसके उपरांत जो अनुक्रम रखा है वह सराहनीय है। - (1) देवाधिदेव (2) देव (3) मर्त्य (4) तियंग (5) नरक (6) सामान्य विभागीकरण ग्रन्थकार महोदय के धार्मिक दृष्टिकोण का सूचक व प्रेरक है। शब्द संकलन में शब्द के र यथार्थ अर्थ को सुरक्षित रखने का जो प्रयास किया गया है ? व साहित्यक दृष्टि से अनुकरणीय व प्रशंसनीय है। पू० प्राचार्य श्री विजयसुशीलसूरि महाराज साहेब ने 3 संस्कृत साहित्य की इस ग्रन्थ द्वारा जो सेवा की है वह संस्कृत साहित्य के प्रति उनके पादर का द्योतक है। भाषा के विद्वानों लेखकों व विद्यार्थियों के लिए यह ग्रंथ उपयोगी सिद्ध हो यही मेरी कामना है। सिरोही पुखराज सिंघी एडवोकेट संयोजक दिनाङ्क राजस्थान जैन संघ व अध्यक्ष 12-6-76 सेठ कल्याणजी परमानंदजी पेढी