________________ ( 56 ) AKRAKARARENKORKERRAN | एक अनुमोदनीय साहित्य सेवा कलिकाल सर्वज्ञ श्रीमद् हेमचन्द्रसूरीश्वरजी महाराज रचित 'श्रीअभिधानचिन्तामणि' ग्रन्थ संस्कृत साहित्य को अनुपम देन है। आज सैकड़ों वर्षों बाद राजस्थान प्रदेश में पू० जैनाचार्य श्रीमद्विजयसुशीलसूरीश्वरजी महाराज ने 2848 श्लोकों का संग्रह 'सुशीलनाममाला' के रूप में रचकर संस्कृत शब्द कोष को न केवल समृद्ध किया है अपितु श्रोहेमचन्द्रसूरीश्वरजी म० की स्मृति को पुनः जिवित किया है। ___ यह शब्द कोष प्राचार्य श्री को संस्कृत के प्रति अटूट निष्ठा और प्रेम का परिचायक है। यह कोश संस्कृत प्रेमियों र के लिये महत्व पूर्ण ग्रन्थ सिद्ध होगा यह निश्चित है। शासन और साहित्य के प्रति आचार्य श्री को महान् सेवाये सकल संघ के लिये गौरव की वस्तु है। . जयपुर दिनांक 28-6-76 प्रापका हीराचन्द वैद संघ मंत्री जयपुर संघ . मानसशास AHIMARARAN