________________ 146 सुशीलनाममालायां मध्या' च मध्यमा ज्येष्ठा, सावित्री' स्यादनामिका // 954 कनोनिका' कनिष्ठा' च, व्यवहारे प्रयुज्यते / प्रवहस्तः' प्रसिद्धोऽपि, कथ्यते हस्तपृष्ठतः // 655 // * नखनामानि के कामाङकुशो' भुजाकण्टर, करज: पाणिज स्तथा। कररुहः५ करशूकः', पुनर्भव: पुनर्नवः // 66 // महाराजो नख' श्वैव, नखर११ श्चापि कथ्यते / प्रदेशिन्यादिभिः सार्द्ध-मङ्गुष्ठे वितते सति // 657 // प्रादेश' श्चापि ताल' इच, गोकर्ण स्तदनन्तरम् / वितस्ति: कथ्यते भूयो, जगति पण्डितैः जनैः // 658 // प्रसारिताङ्गुलौ पाणौ प्रहस्तः' प्रतल स्तलः / चपेट 4 स्तालिका ताल,-श्चेति हस्तस्य पञ्जक: // 56 // कथ्यते तो युतौ सिंह-तल' संहतल' स्तथा / के मुष्टिनामानि * संपिण्डिताङ्गुलिः पाणि, Mचुटी' मुवुटि:२ पुनः // 660 // मुष्टि र्मुस्तु श्च समाहो', ऽर्द्ध मुष्टिः खंटक' स्तु वै / प्रसृतः' प्रसृतिः पाणिः, कुन्जितः कथ्यते किल // 661 //