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________________ तृतीयो मर्त्य विभागः 147 पुन श्च प्रसृतौ हस्तौ, साप्यञ्जलि' हि मन्यते / प्रसृते च द्रवाधारे, गण्डूष' श्वुलुक र स्तथा // 662 // चलु श्च चलुक चेति, कथ्यते कोविदैः सदा / हस्तः' प्रामाणिको मध्ये, मध्यमाङ्गुलिकूपरम् // 663 // बद्धमूले भवेद् रत्नि'-ररत्नि' निष्कनिष्ठिकः / तिर्यगबाहू प्रसारितो, न्यग्रोध' श्च तनूतल:२ // 664 // बाहुचापो वियाम इच, व्यायामो व्यामक: पुनः / ऊर्वीकृत भुजाहस्त-नरमानं तु पौरुषम् // 65 // * जानुमात्रनामानि * जानुमात्रं' जानुदनं२, जानुद्वयस मित्यपि / पुरुषमात्रं' नृदनं', पुरुषद्वयसं पुनः // 666 // प्रमाणार्थे खलु मात्रं, द्वयसं दध्न ऊह्यताम् / * पृष्ठवंशनाम * रोढकः' पृष्ठवंश' श्च, स्यात् पृष्ठ' चरम तनोः // 667 // 8 उत्सङ्गनामानि 8 अङ्कः' क्रोड 2 उपस्थ श्च, पुन रुत्सङ्ग इत्यपि / देहस्य पूर्वभायो हि. कथ्यते पण्डितः किल // 668 //
SR No.004481
Book TitleSushil Nammala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandiram
Publication Year1988
Total Pages878
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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