________________ 72 * सुशीलनाममालायां अनृजु श्चापि शण्ठः स्यात्, फरे' पाप:२. नृशंसकः / निखिश श्चापि धूर्त' स्तु, वञ्चको व्यंसक स्तथा // 558 // कुहको जालिको मायो', दाण्डाजिनिक" उच्यते / मायावी मायिक श्चेति, ज्ञातव्या धूर्तवाचकाः // 556 / / शाठ्य' स्यात् शठता माया, कुसृति निकृ'त:' पुनः / कपट' कैतवं' कूट, मिषं लक्षं तथा छलन् // 560 // उपाधि रुप विश्छद्म', व्याजो' व्यपदेशो'१ निभम् / उपधा'३ चेति मन्तव्याः, कपटस्यैव वाचकाः // 561 // अथ स्याद दम्भचर्या' च, कुक्कुटि: 2, कुहना तथा। वञ्चन' च व्यलोकं चा-ऽतिसन्धान प्रतारणम् // 562 // अथाऽऽर्य' श्चापि साधुः२ स्यात्, सभ्य: श्च सज्जन स्तथा / दौषकहक' पुरोभागी, विद्वद्भिः कथ्यते किल // 563 / / अथ कर्णेजप:' क्षुद्रो', द्विजिह्वो' दुर्जनः खलः / प्रखलः पिशुनो नोचः८, स्यान् मत्सरी च सूचक:१°५५६४॥ व्यसना' !परक्तौ वै, * चोरनामानि * भवेच् चोर' श्च चोरडः / . परिमोषो परास्कन्दो, दस्यु' श्च प्रतिरोधक: n565 //