________________ सुशीलनाममालायां प्रथम - देवाधिदेव विभाग। द्वितीय - देव विभाग। तृतीय - मर्त्य विभाग। . चतुर्थ - तिर्यग विभाग। पंचम - नारक विभाग। षष्ठ - सामान्य विभाग। परिशिष्ट - एकाक्षर कोशमाला मंगलाचरण में भगवान श्री महावीर, गौतमस्वामी, सुधर्मास्वामी की वन्दना कर प्राचार्य श्री सुगीलसूरिजी ने अपनी गुरु परम्परा की वन्दना करते हुए श्रीनेमिसूरीश्वरजी, श्रीलावण्य सूरीश्वरजी एवं श्रीदक्षसूरीश्वरजी की वन्दना की है, जिनका स्वयं का कोशकला एवं शब्दानुशासन में प्रावीण्य रहा है। तत्पश्चात् भगवती आहती भारती की वन्दना की गई है। सरिजी ने इसमें अपने शिष्य देवभद्रविजयजी का भी स्मरण किया है, जो उनके उदार चरित् का दिग्दर्शन करवाता है / प्रथम विभाग को जिनशासन के बीज रूप अर्हन्नाम से प्रारम्भ किया है एवं 24 तीर्थङ्करों का ऐक्य प्रतिपादित करने के लिए अर्हद् भगवान के 24 नामों का शिवप्रद पर्यायत्व प्रदर्शित किया है तथा इनकी संज्ञा जैन धर्म एवं दर्शन के चरम लक्ष्य 'शिवत्व' को देने वाली बताई है। ये 24 नाम हृदय कमल की 24 पंखुरियाँ हैं / तत्पश्चात् गणधर इन्द्रभूति गौतम के नामों का उल्लेख - किया गया है। यह एक प्रकार से जैनधर्म कोश है।। इस कोश में जैन जगत की परम्परानुसार तीर्थङ्कर, गणधर श्रतकेवली, दर्शपूर्वधर, जिनमाता-पितामो, यक्ष, यक्षिणी,