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________________ प्रस्तावना सम्पूर्ण साहित्य का अभिज्ञान करवाने का प्रयत्न करता है, तो शब्दकोष शब्द ब्रह्म का निरूपण। जैन साहित्य में ज्ञान कोषकारों में प्रा० श्रीजिनभद्रसूरि (1456-1510 वि०) का नाम विशेष आदर से लिया जाता है। उन्होंने जैसलमेर, जालौर, नागौर एवं पाटन आदि स्थानों पर जैन पुस्तक भण्डारों की स्थापना की थी। धीमज्जैसलमेरुदुर्ग नगरेजाबालपुयों तथा, श्रीमद्देवगिरौ तथा अहिपुरे श्रीपत्तने पसने / भाण्डागारम बी भरद्वरताना विधः पुस्तकं:, सः श्रीमन्जिनभद्रसूरि सुगुरुभाग्याद्भुतोऽभुमुनि // -समयसुन्दर कृत 'भष्टलक्षी प्रशस्ति' उन्होंने 'अपवर्ग नाममाला' नामक एक कोश की भी रचना की थी एवं ज्ञान भण्डारों की स्थापना की थी। इन ज्ञान. भण्डारों में कोश, व्याकरण, आयुर्वेद, साहित्य, ज्योतिष, धर्म एवं दर्शन सम्बन्धी सभी प्रकार के ग्रंथ एकत्रित हो गए थे। तब से ज्ञानकोषों के एवं शब्दकोशों के निर्माण की सूप्त परम्परा जागृत हुई एवं पन्द्रहवीं शदी से लेकर आज तक यह परम्परा विधिवत् चली आ रही है। जैन ज्ञानकोश की कड़ी में अभिधान राजेन्द्र कोश ( 20 वीं शती ) एक महत्वपूर्ण कार्य रहा है। शब्द एवं ज्ञानकोष की मिली-जुली रूपरेखा 'सुशील नाममाला' में प्रकट हुई है। ... 'सुशोल नाममाला' शब्दकोश की परम्परा का ग्रंथ है। इसमें कूल 6 विभाग हैं। कोश परम्परा से हटकर इसका विभाग निर्माण इस प्रकार हुअा है
SR No.004481
Book TitleSushil Nammala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandiram
Publication Year1988
Total Pages878
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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