________________ प्रस्तावना [ म लीच्छन, गत चोवीसी, अनागत चौवीसी एवं मोक्ष नामों का निरूपण संग्रंथन किया गया है। तत्पश्चात् मुनि, प्राचार्य, शिष्य, दोक्षा आदि शब्दों का जैनमतानुसार नामोल्लेख किया गया है / द्वितीय विभाग में स्वर्ग, देव, अकृत. भवनपति, व्यन्तरदेव, सूर्य नक्षत्र आदि के नामों का उल्लेख है। देवी-देवताओं एवं तत्सम्बन्धी साधनों का वर्ग इस विभाग में समाया हुआ है। तीसरे मर्त्य विभाग में मृत्यूलोक सम्बन्धी नामों का उल्लेख हा है, जिसमें पदार्थों से लेकर मनुष्य के भाव भी सत्व अभयत्व आदि का भी समावेश हुआ है। यह विभाग बड़ा है। . चौथे तिर्यग् विभाग को पृथ्वीकाय के नामों से प्रारम्भ किया गया है। इसमें प्रत्येक वस्तु के सूक्ष्म से सूक्ष्म भेदों का निरूपण किया गया है- जैसे क्षेत्र, धूलि, लेष्टु व नगर आदि / इसमें साग-सब्जियों के नाम से लेकर पशु-पक्षियों के नामों एवं भेदों तक का उल्लेख है। पाँचवें नारक विभाग में नरक, नरक की वासनाओं एवं पाताल आदि के नामों का उल्लेख है। यह सबसे छोटा विभाग है। - छठा सामान्य विभाग अपेक्षाकृत बड़ा है। इसमें लोक, प्रात्मा, जीव, श्वास, मन, गुण, अवस्था, पाप, पुण्य आदि के नामों का उल्लेख है। अन्य विभागों के बचे हए समस्त विषय इसमें आए हैं, पर प्राचार्य श्री की दृष्टि जैन दर्शन के परिभाषिक नामों एवं शब्दों पर ही टिकी रहती है। सब प्रकार के