________________ य] सुशीलनाममालायां साधन के साथ जैन दर्शन के नामों का साधन इस नाममाला की विशेषता है। परिशिष्ट में अकारादि क्रम से एकाक्षर कोशमाला भी दी गई है, जो इस नाममाला की पूर्णता का प्रतिपादन करती है। सबसे अन्त में 'सुशील नाममाला' में स्थित शब्दों की अकारादि क्रम से अनुक्रमणिका दी गई है, जो दिदृक्षुओं एवं जिज्ञासुओं के बड़े काम की वस्तु है। - ग्रंथकार का परिचय पृ० प्राचार्य श्रीसुशीलसूरिजी म० एक सिद्धहस्त लेखक हैं एवं इन्होंने 108 छोटे-मोटे ग्रन्थों का सर्जन किया है। उनमें से 56 तो प्रकाशित हो चुके हैं। इन ग्रन्थों में 'तीर्थङ्कर चरित्र', 'छन्दो-रत्नमाला', षड्दर्शन दर्पण (संस्कृत) 'शील दूत टीका' एवं 'श्री हेम शब्दानुशासन सुधा' आदि प्रमुख हैं। इतिहास एवं पुरातत्व में भी आपकी रूचि है एवं निरन्तर साहित्य सर्जन से जैन जगत के भण्डार को भर रहे हैं। आपका जन्म वि० सं० 1973 में गुजरात के चारणस्मा ग्राम में हुआ था। माता का नाम चंचल बहन व पिता का नाम चतुरभाई ताराचन्द मेहता था। दस वर्ष की लघुवय में ही संयम पथ पर अग्रसर होने की इनकी भावना प्रकट हुई एवं 15 वर्ष की अवस्था में सं० 1988 में प्रवर्तक प्रवर श्रीमद् लावण्यविजयजी म. के वरदहस्त से दीक्षित हुए। सं. 1988 में ही बड़ी दीक्षा प्राचार्य देवेश शासन सम्राट् श्रीमद् विजय नेमिसूरीश्वरजी म. के हाथ सम्पन्न हुई। सं० 2007 में