________________ षष्ठः सामान्य विभागः शब्दो गुणानुरागोत्थः, प्ररणाद: सीत्कृतं नृणाम् / जयजयकारशब्दो, ऽयं क्रियते जगजनैः // 2548 // पर्दनं' गुदजः शब्दः, कर्दनं' कुक्षिजः पुनः / क्ष्वेडा' तु सिंहनादोऽस्ति, भटानां गर्जना युधि // 2546 // युद्धाह्वाने निगद्येत क्रन्दनं' सुभट ध्वनि: / कलकलः कोलाहलो, युगपद् बहुभाषरणम् // 2550 // व्याकुलो येन लोकः स्यात, तमुल: स च उच्यते / मर्मरो' वस्त्रपर्णादे. भूषणानां तु शिञ्जितम् // 2551 // हेषा' हषा हि वाजीनां, गजानां गर्ज'- बंहिते- / गर्जा ऽपिगज शब्दोऽस्ति, विस्फारो' धनुषो रवः // 2552 / रम्भा' हम्भा च गोशब्दे, स्तनितं' स्वनितं द्वयम् / ध्वनितं गजितं : गाँव:५, रसितं' मेघगर्जने // 2553 // पुनः प्रोक्त विहङ्गाना, कूजनं कूजितं द्वयम् / / तिरश्चां वाशितं चैव, प्रसिद्धं वासित रुतम् // 2554 // वृक शब्दो रेषणं' स्याद्, रेषा च पुनरुच्यते / बुक्कनं' स्याच्छुनः शब्दे, भषणं च प्रयुज्यते // 2555 // पीडितानां रवो लोके, करिणतं' करिणति स्तथा / दम्पत्यो रतिकाले तु, शब्द स्तु मणितं' भवेत् // 2556 // वीणा शब्द स्तु प्रकारणः', प्रक्वरण:२ कथ्यते बुधैः /