________________ षष्ठः सामान्य विभागः 415 खगवाते तु यूथं' स्यात्, सङ्घः' सार्थ श्च देहिनाम् / सजातीनां कुलं' तेषां, निकाय' स्तु समिरणाम् / / 2566 / / वर्ग' स्तु सदृशां ज्ञेयो, जड-चेतनयो द्वयोः / स्कन्ध' स्तु समुदायो वै, नर-कुञ्जर-वाजिनाम् // 2567 // ग्रामो' विषय-शब्दोक्त-भूतेन्द्रिय-गुणाद्गरणे / समजः' स्यात् पशूनां वै, समाज' श्चान्यदेहिनाम् // 2568 / / शौक' शुकसमूहे स्यात्, मायूरं तु शिखिवजे / तैत्तिरं' तेत्तिर वाते, कथ्यते पुनरत्र वै // 2566 // कपोतसञ्चये प्रोक्त कापोतं' पण्डित रिह। भक्षं भिक्षासमूहे स्यात्, साहस्र' दशशतव्रजे // 2570 // गाभिणं' गर्भिणसमूहे, यौवतं' युवतिव्रजे / गोत्रार्थप्रत्ययान्तानां, स्यु रौपगवकादयः' // 2571 // उक्षादे रौक्षक' मानुष्यकं तु मनुष्यबजे / वार्द्ध कं' वृद्धवृन्दे स्या, दौष्ट्रक' मुष्ट्रकव्रजे // 2572 // राजपुत्र समूहे वै, राजपुत्रक'-मुच्यते / नृपाणां समुदाये स्याद्, राजन्यकं' च राजकम् // 2573 // प्राजकं' कथ्यते लोके, ऽजकानां प्रकरे बुधैः / वात्सकं' वत्सकव्यूहे, मन्यते साक्षरैः पुनः // 2574 // उरभ्रकस्य सङ्घाते, प्रोक्त मौरभ्रक' किल /