________________ चतुर्थस्तिर्यविभागः 261 प्रयागाद् हरद्वारान्त-गङ्गायमुनयोः खलु / प्रोक्तमध्यप्रदेशं तद्, चाऽन्तर्वेदि:' समस्थली // 1613 // ब्रह्मावत' इदं नाम, प्रख्यातं सर्वदा किल / सरस्वत्या दृषद्वत्या, मध्यभागे बुध रिह // 1614 // विख्यातो ब्रह्मवेदि' स्तु, पश्वरामहृदस्य वै / मध्यभागो कुरुक्षेत्रे भूगोलस्य कोविदः // 1615 // धर्मक्षेत्रं' प्रसिद्ध यत कुरुक्षेत्रं तदेव हि / निश्चितं कुरुक्षेत्रस्य, द्वादशयोजनावधि // 1616 // हिमवद् विन्ध्ययो मध्यं, यत् प्राग् विनशनादपि / प्रत्यगेव प्रयागा च्च, मध्यदेश:' स मध्यमः // 1617 // प्राच्यः प्रागदरिगणो देशो, नदो यावच्छरावतीम् / उदीच्यः' कथ्यते विजैः, देशो हि पश्चिमोत्तरः // 1618 // प्रोक्तो म्लेच्छस्य देशो हि, प्रत्यन्तो' म्लेच्छमण्डलः / श्वेतमृत्तिकवान् देशः, पाण्डुमृत्तिक' उच्यते // 1616 // . पाण्डुभूम:२ स एवास्ति. देशोऽयं शुभदः सदा। . . .. उदगभूम' च प्रख्यात, उदङ्मृत्तिक उच्यते // 1620 // कृष्णभूमिवान् देशः, कृष्णमृत्तिक' उच्यते। कृष्णभूमः स एवात्र, कथ्यते कोविदैः किल // 1621 //