________________ ( 28 ) "सुशीलनाममाला" के कर्ता ने अवश्य ही कृतार्थ बनकर संस्कृत साहित्य को सेवा का समुचित लाभ उठाया है। भविष्य में भी इसी प्रकार निरन्तर साहित्य की सेवा कर समाज, संस्कृति एवं सभ्यता के उत्थान में अग्रेसर रहे, यही मेरी शुभेच्छा है। विशेषावश्यक भाष्यकार लिखते है कि समग्र शाख निर्जरा के लिए है, उस में अमंगल जैसा कुछ भी नहीं है / ....... सव्वं च णिज्जरत्थं सत्थमनोऽमंगलमजुत्तं // 16 // होशियारपुर (पंजाब) ] दिनाङ्क विजयसमुद्रसूरि 1-10-76