________________ [27 ] ___संस्कृत साहित्य में शब्द कोषों को परम्परा खूब ही पुरातनीय है / आचार्य भागुरि ने संस्कृत साहित्य के प्राङ्गण में एक नया चमत्कार कोष के कलाप से प्रादुर्भूत किया। तत्पश्चात प्राचार्य केशव ने एवं अमरसिंह प्रादि विद्वानों ने अपूर्व प्रयास कर कोषों के कलेवर विपुल बनाये / महावैयाकरण दलायुध ने, महाकवि धनञ्जय ने भी कोषों के निर्माण में महान प्रयास किया। . . ... इस प्रकार जैनाचार्य भी कोष निर्माण में कृत हस्त सिद्ध हुए। जिन में कलिकाल सर्वज्ञ श्रीहेमचन्द्राचार्यजी म० का स्थान विशेष श्रद्धेय है। ही इस समय प्राचार्य श्रीमविजयसुशीलसूरिजी महाराज ने पूज्य श्रीहेमचन्द्राचार्यजी म० का अवलम्बन लेकर "सुशीलनाममाला" ग्रन्थ का निर्माण किया है वह अवश्य ही श्लाघ्यनीय है। : कोष किसी की सम्पत्ति बन जाए यह तो कहना कुछ कठिन सा है। हाँ-कोष से कोई कोविद्, कलाकार, कवि, र भाषा शास्त्र का समृद्ध सुयोग्य सुधी बन जाए तो कुछ सम्भावित है।