________________ 57 द्वितीयो देवविभागः अस्र मस्त्रु च नेत्राम्बु', बाष्पो लोत स्तथाऽश्रु वै / मूर्छा तु प्रलय श्चैवासात्विकाऽचेष्टिताऽखित्वा // 452 // अथ स्वास्थ्यं च सन्तोषो', धृतिः स्यात् स्मरणं' स्मृतिः / अध्यानं धो मंति' बुद्धि, मनोवा विषणा पुनः // 453 // ज्ञप्ति' श्चित् चेतना प्रज्ञा , प्रेक्षा च प्रतिभा'१ तथा / उपलब्धि१२ श्च संवित्ति:१३, दृष्टि१४ ३च शेमुषी 15 तथा // 454 // प्रतिपद्१६ षोडशं नाम, सा मेधा' धारणक्षमा। तत्त्वानुसारिणी पण्डा', ज्ञानं' च मोक्षदायकम् // 455 // विज्ञान मन्यतो ज्ञेयं, धीगुणा अष्टधा पुनः / शुश्रूषा' श्रवणं चापि, ग्रहणं धारणं लथा // 456 // ऊहो५ ऽपोहो ऽथ विज्ञानं, तत्वज्ञानं च मन्यते / अथ ब्रीड' श्च मन्दाक्षं, शूका सूका तथा त्रपा' // 457 / / खोडा लज्जा तथा ह्री श्च, ज्ञेया सा ऽपत्रपा' ऽन्यतः / अथ जाड्यं' तथा मौख्यं , विषाद' स्तु विषण्णता // 45 // अवसाद श्च सादोऽपि, विबुधैः कथ्यते किल / मदो' मुन्मोहसम्भेदः, स्याद् व्याधि' स्तु रुजाकरः२ // 456 / / प्राधि श्चाथ प्रमीला' स्यात्, तन्द्रा तन्द्रि श्च तामसी। तन्द्री नन्दीमुखी निद्रा, श्वासहेति' श्च संलयः // 460 // संवेश:१० शयनं 1 स्वाप:१२, सुप्तं' तु सुखसुप्तिका / सुष्वाप श्चेति निद्राया, खयं नामाधिकं खलु // 461 //