________________ सुशीलनाममालायां स्वपर चक्रजं दृष्टं 1, ज्ञेयं भीम' च भैरवम् / .. दारुणं भीषणं घोरं', भयानकं भयावहम् // 442 // भयङ्करं तथा भीष्मं, प्रतिभयं च भासुरम्''। प्राभीलं' 2 डमरं चैव, जुगुप्सा' तु घृणा' खलु // 443 // अथ स्याद् विस्मयो' मोहः२, चित्रं चोद्य तथाऽद्भुतम् / प्राश्चर्य फुल्लकं वीक्ष्यं, शान्ति' स्तु शमथ स्तथा // 444 // उपशम:3 शम इचैव, तृष्णाक्षय स्तथैव च / अमी तु स्थायिनो भावाः, रसानां कारणं क्रमात् // 44 // शृङ्गारे च रतिः स्थायीः, हास्ये तु हसनं तथा। ." शोक्र: स्थायी च करुणे, क्रोधो रौद्र रसे तथा // 446 // वीरे स्थायी समुत्साहोभयानके च भयं भवेत् / स्थायी भावश्च बीभत्से, जुगुप्सा च घृणाथवा // 447 // पाश्चय विस्मयश्चित्रं, स्थायी भावोऽद्भुते रसे / शान्तरसे, च तृष्णान्तः स्थायि भावश्च जायते // 448 // अथ स्तम्भो' भवेज् जाड्य, धर्मः स्वेद स्तथैव च / निदाघ श्चाथ रोमाञ्चः', कण्टकः२ पुलक स्तथा // 446 // रोमोद्गम स्तथा रोमविकागे रोमहर्षणम् / पुन रुद्धषरणं ज्ञेयमुल्लकसनमित्यपि // 450 // कल्लत्वं' स्वरभेदः स्याद्, स्वरे कम्प' स्तु वेपथुः / वैवयं' कालिका स्याद वै, हगजलं' रोदनं भवेत् // 45 //