________________ द्वितीयोदेवविभागः __ 15 * नक्षत्रनामानि * प्राश्वि'न्यश्वकिनी दस्र-देवता चाश्वयुक् तथा / बालिनी चाथ नक्षत्रे, भरणी' यमदेवता // 3 // कृत्तिका' श्चाग्निदेवाश्च, बहुलाश्चाथ रोहिणी'। ब्राह्मी तु मृगशीर्ष च, मृगशिर स्ततः परम् // 14 // चान्द्रमसं तथा मार्गः, मृगश्च तदनन्तरम् / इल्वला'स्तु मृगशिरः, शिरःस्थाः पञ्चतारकाः // 6 // ज्ञेया प्रार्द्रा' तु रौद्री च, कालिनी तु पुनर्वसू / प्रादित्यौ' यामको चाथ, पुष्य 'श्च गुरुदैवतः // 6 // तिष्यः साध्य स्ततः सामे'-श्लेषा' पित्र्यास्तथा मघाः / विज्ञेया पूर्वफल्गुनी', नक्षत्र योनिदेवता // 7 // उत्तरफल्गुनी' चार्य-मदेवा' हस्त' नामकः / सवितृदेवत' स्त्वाष्ट्री', चित्रा स्वाति' स्तथाऽऽनिली२॥८॥ इन्द्राग्निदेवता' राधा, विशाखा' तदनन्तरम् / अनुराधा' च मैत्री स्यात्, ज्येष्ठेन्द्री मूल' पाश्रपः // 66 पूर्वाषाढा' तथाऽऽपी तू- त्तराषाढा' तदनन्तरम् / वैश्वी तु श्रवण' श्चैव, हरिदेव स्ततः परम् // 10 // धनिष्ठा' तु श्रविष्ठा' च, नक्षत्रवसुदेवता। शतभिषक् तु नक्षत्र-वारुणी त्वजदेवता' // 101 //