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________________ ( 17 ) - उपलब्ध संस्कृत प्राकृत साहित्य में सर्वतोमुखी प्रतिभावान, अपने समय के एकमात्र महानतम ज्ञानी श्री सिद्धराज जयसिंह एवं गुर्जरेश्वर परमाहत श्रीकुमारपाल भूपालप्रतिबोधक अपने ज्ञानालोक से समग्र भारतको पालोकित करनेवाले कलिकाल सर्वज्ञ परमपूजनीय चरण सुगृहित नामधेय प्राचार्यशेखर श्री हेमचन्द्रसूरीश्वरजी म० ने अपने जीवन में 3: करोड़ श्लोक प्रमाण नव्य संस्कृत-प्राकृत साहित्य का निर्माण किया। प्रस्तुत निर्माण में सभी विषयों का साहित्य है। ऐसा कोई विषय नहीं है कि जिसपर कलिकाल-सर्वज्ञ श्री की लेखिनी मुखर न हो उठी हो। प्रत्येक विषयका कलिकाल सर्वज्ञ श्री का प्रदान अपूर्व एवं महत्वपूर्ण वरदान जैसा है। साथ 2 प्रमुख प्रतिष्ठित व आदर्श साहित्य भी है। प्रत्येक विषय पर बेरोकटोंक द्रुतगति से चलनेवाली कलिकाल सर्वज्ञ श्री को लेखिनी ने भारत में तो क्या पर विश्वमें जैन साहित्य को प्रादरपूर्ण प्रमुख स्थान दिलवाया। विदेश के विद्या-विपिन-विहारी-विहग-विद्वान-विनम्र व प्रभावित होकर पूज्य श्री कलिकाल सर्वज्ञ श्री को भारत का कोहेनूर कहते है। और अपनी भावभरी अंजली पूज्य श्री के चरणों में प्रस्तुत करते है। प्र
SR No.004481
Book TitleSushil Nammala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandiram
Publication Year1988
Total Pages878
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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