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________________ [ 18 ] EARESTERNETHERIESiki *** ******* s oritAsst.L.SILAL..BL. S जन साहित्य में से कलिकाल सर्व श्री के साहित्य को हटा दिया जाय तो ? ? ? अनेक विषयों के प्रमाणभूत साहित्य के बिना जैन साहित्य पंगु-निस्तेज जैसा बनेगा यह बात बिना किसी हिचकिचाहट माननी ही पड़ेगी। 3. करोड़ श्लोक प्रमाण प्रामाणिक-प्रतिष्ठित प्रादर्श बि संस्कृत-प्राकृत के साहित्य का सृजन करके कलिकाल सर्वज्ञ र श्री ने जो विक्रम (रेकोर्ड) प्रस्थापित किया है वह अाज तक अटूट है। अभी तक ऐसा कोई विद्वान् या सर्जक ऐसा नहीं दिखा, नहीं सुना या नहीं कहीं बांचा कि जिसने अपनी जीवनी में 33 करोड़ श्लोक प्रमाण संस्कृत-प्राकृत भाषा K में नवसृजन किया हो। पश्चातत्ति असंख्य सजक व लेखकों ने अपनी रचना में र जगह 2 कलिकाल सर्वज्ञ यो सृजित साहित्य के पाठों को न प्रामाणिक व प्रतिष्ठित एवं सद्य, शीघ्न ग्राहा मानकर उसके प्रमाण आदर व बहुमान पूर्वक दिये है। ऐसे असंख्य गुण निधान पूज्य श्री कलिकाल सर्वज्ञ श्री विनिर्मित शब्दकोश है-अभिधान चिंतामणि ! जो सरससरल-सुन्दर प्रौढ एवं मातृ दुग्ध जैसा सुपाच्य है। जो साहित्य विश्व में विख्यात है। आज तक उसके मूल व टोकानों की लाखों प्रतिया छप चुकी है- और छप भी रही है। इतने म परसे ही इस कोश की बहुबुधजन मान्यता का ध्यान आसानी से से पा सकेगा। URILANKI ********** *
SR No.004481
Book TitleSushil Nammala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandiram
Publication Year1988
Total Pages878
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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