________________ [ 16 ] - इसी अभिधान चितामणि कोश के आधार को लेकर सर्वविदित पूजनीय चरण प्राचार्य श्रीमद् विजय सुशील सूरीश्वरजी म० द्वारा नव-निर्मित "सुशीलनाममाला" नामक गि कोश प्रगट हो रहा है / साहित्य समुद्र में एक वेलाकी अभिवृद्वि हो रही है यह इष्ट व प्रानन्द दायक है। प्रस्तुत कोश की रचना पद्धति अभिधान चितामणि के अनुसार ही रक्खी है। और उचित ही है। एक सामान्य नियम है कि- शिष्टों का वि पद चिन्हों का अनुसरण शिष्ट ही करते है। 2848 श्लोक प्रमाण का यह नव्य कोश जिज्ञासुओं के लिए सहायक सिद्ध होगा। वर्तमान समयके कुछ नव्य शब्दों को भी इस नव्यकोश में संकलित किया है। और हा! यह आवश्यक भी है और सार्थक व उचित भी है कि नव्य रचनामें नवोदित शब्द संकलित हो जाय / नव्य रचना की यही तो खुबी है-कि प्राच्य का रक्षण व नव्य का संकलन हो एवं प्राच्य नव्य का संयोजन अक्षय हो। इस प्रकार की प्रणालिका को लेकर प्राच्य अक्षष्ण रहता है व बिखरा नव्य शब्द देह पाकर अमरता की ओर अग्रसर होता है। इस प्रकार साहित्य समृद्ध होता रहता है। - नव्य कोश के बारे में अपनी 2 रूचि के अनुसार विविध विचारकों के विविध विचार हो सकते है। और यह सुन्दर भी है। जैसे उपवन 1 और कुसुम अनेक वैसे साहित्य एक और विविधरंगी विचार कुसुम अनेक ! इसे अनुचित भी से नहीं कह सकते। PARMAाशाशापाशशशशशशशशशशशशशाशय