________________ ( 77 ) *****#* र पू० प्रा० श्री विजयसुशीलसूरिजी म०, सादर वन्दना। आपने संस्कृत कोष बनाया जानकर खुशी हुई। प्रापको साहित्य साधना निरंतर चल रही है, यह देखकर बड़ी प्रशनता होती है। साहित्य में प्रवेश करने के लिये बहुत ही प्रावश्यक्ता होती है. प्रतः प्रापने 'सुशीलनाममाला' संस्कृत कोष लिखकर संस्कृत के पाठकों के लिये बहुत ही उपयोगी कार्य किया है। यह शीघ्र प्रकाशित हो अधिकाधिक प्रचार हो यही शुभ कामना है। बीकानेर दिनाङ्क अगरचन्द नाहटा 18-6-76 / . [जैन पंडित ] ******** #2222 2 22