________________ चतुर्थस्तिर्यविभागः 381 - द्विजिह्वो' दीर्घजित 2 श्च, दीर्घपृष्ठ:१४ सरीसृप:१४ / टक्क!१५ दन्दशूकरच. दकिरो बिलेशय: 8 // 2354 // हरिश्चक्षुःश्रवा२०३चक्रो", कुम्भीनस२२ इच कञ्चुको। जिह्मगो२४ लेलिहान२५ इच, , . . . व्याडो" व्याल२० श्च कुण्डली२८ / / 2355 // माशीविष२६ च गोकर्णः, प्राशीविष३१ श्च गूढपात् / विषधर स्तथा भोग-धर:३४ फणधर:३५ पुनः // 2356 / / द्विरसन स्तथा काको-दर३७ श्च फरणभृत्३८ किल / अष्टाविंशद्धिनामानि सर्पस्य सम्भवन्ति वै // 2357 // ॐ सर्पभेदा: * विमुखो' हीरणी राज-सर्प३ ३चाहीरण स्तथा। भुजङ्गभोजीति पञ्च सर्पभेदाः स्मृताः'पुनः // 2358 // * अजगरनामानि * अजगर:' शयु चैव, पारोन्द्र चक्रमण्डली / , वाहस' श्चेति नामानि, मन्यन्तेऽजगरस्य वै // 2356 / / ...ॐ जलसर्पनामानि * . प्रलगर्दो' ऽलगर्द्ध इच, जलव्याल स्तथैव च / / अलीगई' श्च नामाभि, जलसर्पस्य सन्ति // 2360 / /