________________ R [ 15 ] अलावा संसारके सभी को लिखने में या बोलने में शब्दों को र प्रत्यंत आवश्यकता रहती है। यह जरुरी नहीं है कि प्रत्येक को लिखने या बोलने में अपने भावों को व्यक्त करने के लिए माकूल शब्द मिल ही जाय।। मति या श्रत ज्ञानावरणीय कर्मका क्षयोपशम जितना होगा उतनीही मति-बुद्धि या शब्द उपलब्ध होंगे। ऐसे समयमें अपने भावों को सुंदर शब्दों में प्रस्तुत करने हेतु कोश एक सफल सुंदर वरदान सिद्ध होता है। पंगु को ज्यों वैसाखी यष्टि चलने में सहायक सिद्ध होती है, वैसे ही लिखने या बोलने वालों के लिए शब्द कोश।। संसारके समस्त भाषाओंकी जननी है-संस्कृत व प्राकृत भाषा। . आज तक संस्कृत या प्राकृत भाषा में जितने साहित्यका सृजन हुआ, उतने सृजन का सौभाग्य शायद ही और किसी भाषाको मिला होगा। संस्कृत व प्राकृत एक प्रकार से कभी पुरानी या वृद्ध न स होने वाली सदा बहार एवं सदा युवान भाषा है। . गांभीर्य पूर्ण प्रचुर अर्थ को कम शब्दों में संकलित करना सि हो तो वह केवल संस्कृत व प्राकृत में ही संभव है। शशशुनाशाशासारामाशाशाखाशाशाशान E ETIREMENRELREARRIEIRIRARARINAKARAKासायाशा