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________________ [ 14 ] * मेरी मनोकामना * ************* **************** व्याकरण, न्याय-साहित्य-काव्य-ज्योतिष-तर्क या चाहे किसी विषय को ले ले पर यदि उन विषयों को कोश का सहारा न मिले तो उस प्रत्येक विषय को समझने में या उसके तात्पर्यार्थ को समझने में कठिनता रहेगी। किसी भी विषय के लिए शब्द प्राप्त करने के लिए कोश के बिना चल नहीं सकता। यदि व्याकरण शब्द को सिद्ध या उत्पन्न करता है तो कोश उसका संग्रह करता है। व्याकरणके सृजनको सुगठित करना कोश का कार्य है। व्याकरण यदि शब्द संपत्ति है तो कोश उसका निधान-खजाना या भंडार है। संसार भरके ग्रन्थ निर्माणों में कोश को अनिवार्य आवश्यकता हमेंशा महसुस होती रही है, सदा होती ही रहेगी। प्रत्येक भाषाको सिद्धी के लिए ज्यों उस उस भाषा का व्याकरण प्रावश्यक होता है। त्यों प्रत्येक भाषाके लिए उसका समृद्ध शब्द भण्डार भी उतना ही प्रावश्यक है। परम तारक, परमपूजनीय, सदास्मरणीय, सदाध्येय परमकृपालु श्री सर्वज्ञ भगवन्, सर्वाक्षरसन्निपाति पूज्य श्री गणधर भगवन् बीजबुद्धिधर अथवा श्रतकेवली परमपुरुषों के RRRRRRRRRR
SR No.004481
Book TitleSushil Nammala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandiram
Publication Year1988
Total Pages878
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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