________________ द्वितीयो देवविभागः 46 नामधेयं च नाम स्यादथ, सम्बोधनं पदम् / मिन्त्रण२ मपि ज्ञेय- माह्वान' त्वभिमन्त्रणान्२ // 377 / / आकारणं तथाऽऽकारो', हूति राकारणं' हवः / हक्कारक श्च हक्कार:१०, संहूति' बहुभिः कृता // 378 / / * प्रस्तावनामानि * उपोद्घात' उपन्यास उदाहारश्च वाङ्मुखम् / विवादो' व्यवहारः२ स्यात्, शपनं शपथः२ शपः // 376 / / अथ प्रतिवच' स्तु स्या, दुत्ता'ञ्चापि कथ्यते / पृच्छा' ऽनुयोजनं प्रश्नः', कथंकथिकता किल // 30 // तथा पर्यनुयोगो वै, अनुयोग श्च कथ्यते / देवप्रश्नस्तथैवस्या दुपश्रुति श्च चाटु' च // 381 // प्रियप्राय चटु' तुस्यात्- प्रियसत्यं तु सूनृतम् / अथ सत्यं तथा सम्यक्र, समीचीनं यथास्थितम् // 382 // यथातथ मृतं तथ्य,, सद्भूतं स्यान् मृषा'ऽनृतम् / अलीकं वितथं मिथ्या', ऽसत्यं सत्येतरत् तथा // 383 / स्यात् क्लिष्ट' सङ्कलं चैव, परस्परपराहतम् / सान्त्वं' सुमधुर ख्यात, मश्लीलं' ग्राम्य मस्फुटम् // 34 // अस्पष्ट स्यात् तथा म्लिष्ट, लुप्तवर्णपदं' पुनः / ग्रस्तं ध्वस्तं मवाच्यं तु, प्रोक्त मनक्षरं बुधैः // 385 //