________________ 48 सुशीलनाममालायां अथ सूचनकृत् सूत्र, सूत्रोक्तार्थप्रपञ्चकम् / भाष्यं' ज्ञेयं च प्रस्तावः', प्रकरणं ज्ञायतां तथा // 367 / / पदभञ्जन' मेवंहि निरुक्त शीघ्रपाठतः / अवान्तरप्रकरण-विश्रामे ह्रयाह्नि नकं तु वै // 36 // अधिकारोऽधिकरण' मेकन्यायोपपादनम् / उक्तानुक्तदुरुक्तार्थ-चिन्ताकारि च वात्तिकम् // 36 // तथा निरन्तरव्याख्या, सा टोका कथ्यते बुधैः / पुन यास:' पञ्जिकाफि तथा स्यात् पदभञ्जिका // 37 // अथाऽन्वर्थे निबन्ध' श्च, वृत्तिः स्याद् संग्रह'स्तु वै। समाहृति:२ तथा ज्ञेया. परिशिष्टं तु पद्धति:२ // 371 // अध्यायोऽङ्क स्तथोच्छवासः सर्गः प्रमुखमत्रस्यात् / ग्रन्थस्यावयवाः प्रोक्ताः काव्यादौ यत्र कुत्रचित् // 372 // कारिका' स्वल्पवृत्तौ स्याद् बहोरर्थस्य सूचिका। ज्ञातव्या सर्वविद्या' च कलिन्दिका' कडिन्दिका // 373 // निघण्टुः' शब्दकोषः स्याद्. नामसंग्रह इत्यपि / इतिहासः' पुरावृत्तं', द्वयं पूर्वचरित्रके // 374 // सूचकः गुप्तभावस्य, प्रवलिका' प्रहेलिका। जनश्रुतिः' किंवदन्ती२, तितिह्य पुरातनी // 375 . उदन्त'स्तु प्रबृत्तिः स्याद्, वार्ता' वृत्तान्तक स्तथा / प्रथाऽऽध्या' ऽऽह्वाऽभिधाऽभिख्या संज्ञा' गोत्रं तथा ऽऽह्वयः // 376 //