________________ 50 सुशीलनाममालायां अम्बूकृतं' सनिष्ठेवर, सथूत्कारे च कथ्यते / तथा निरस्तं सर्वत्र जानातु त्वरयोदितम् // 386 // भवेदाम्रोडितं द्विस्त्रि-रुक्तं, निरर्थक' तु वै / असम्बद्धं तथाऽबद्धं 3, कथितं पण्डितर्जनः // 387 // पृष्ठमांसादनं' तद् यद्, परोक्षे दोषदर्शनम् / अथ मिथ्याभियोगः' स्यादभ्याध्यानं तथा किल // 38 // स्याद् हृदयंगमं' चैव, सङ्गतं परुषं वचः / विक्रष्टं निष्ठुरं रुक्ष - मुच्चैर्युष्टं तु घोषणा // 36 // अथेडा' वर्णना२ श्लाघा, स्तवः स्तुति' र्नुति' स्तथा। स्तोत्रं तथा प्रशंसा स्या दर्थवाद, श्च मन्यते // 360 // विकत्थनं च मिथ्या स्यात् कौलिनं' वचनीयता / तथा जनप्रवादो वै, विगानं च निगद्यते // 361 // उपक्रोशो' ऽपवाद 2 श्च, गर्दा गर्ह श्च गर्हणा / जुगुप्सनं जुगुप्सा च, निन्दा कुत्सा च धिक्रिया // 362 // निर्वाद:११ परिवाद 2 श्चाऽवर्ण:१३ क्षेप 14 श्च कथ्यते। स्यादाऽक्रोश' स्तथाऽऽक्षेपः२, शाप स्तथाऽभिषङ्गकः // 363 // क्षारणा' ऽऽक्षारणा स्यान् वै, स रते दूषणं तथा / . विरुद्धशंसनं' गालि'- राशी' मङ्गलशंसनम् // 364 // प्रथ कोतिः' समाख्या स्याद, श्लोकोऽ ऽभिख्या यश५ स्तथा समाज्ञा रुशती' वाणी सर्वथा याऽशुभा भवेत् // 36 //