________________ द्वितीयो देवविभागः तथा कल्या' शुभा वाणी, चर्भटी' चर्चरी समे / यः सनिन्द उपालम्भः, स्यात् तत्र परिभाषणम् // 366 // अथाऽऽपृच्छा' च सोम्भाष, पालाप3 श्चापि कथ्यते / मुहुर्वचोऽनुलाप: स्यात्, प्रलाप' श्चाप्यनर्थकम् // 367 // अथोयशोचनं' स्याच् च, विलाप:२ परिदेवनम् / उल्लापः' काकुवाहः स्याद्, अन्योऽन्यक्ति' स्तु संकथा // 38 // संलापो विप्रलाप' स्तु, विरुद्धोक्ति 2 श्च कथ्यते / निह्नव' श्वाऽपलाप: स्यात्. सुप्रलाप' स्तथा पुनः // 36 // ज्ञेयं सुवचनं चापि, सन्देशवाक् ' तु वाचिकम् / अथाऽऽज्ञा' शासनं शिष्टिः निर्देश ३च नियोगकः५ // 400 // प्रादेशश्च निदेशो वै, प्रववादश्च कथ्यते / सेवकादिक माहय प्रेषणं प्रतिशासनम् / / 401 // प्रथाऽऽस्था' संश्रवः' सन्धा3, संवित् प्रतिश्रवाऽऽश्रवौ / पागू श्चापि प्रतिज्ञा वै, समाधि: सङ्गर स्तथा // 402 / / अङ्गीकारो'१ ऽभ्युपाय१२ इच, स्यादभ्युपगम स्तथा / गीतनृत्यवाद्ययुक्त, नाट्य तौर्यत्रिकं भवेत् // 403 // सङ्गीत' मीक्षणार्थेऽस्मिन्, शास्त्रोक्त नाट्यमिका' / गीतं' गानञ्च गान्धर्व, गेयं गीति' श्च कथ्यते / / 404 //