________________ 166 सुशीलनाममालायां छायाकर' श्छत्रधारः२, छत्रधारी पुमान् भवेत् // 1246 // पताकी' वैजयन्तिकः२, सचिह्न छत्रधारकः / परिचरः परिधिस्थः 2, सेनासंरक्षको भवेत् // 1247 / / प्रामुक्त:' परिमुक्त' इच, पिनद्धो ऽपिनद्ध' इति / भवेत् कवुकधारी यः, संभवेत् सैनिको जनः // 1248 // सन्नद्धो' वम्मित:२ सज्जः३, दंशितो व्यूढकङ्कटः / पुनः कवचितो' भेदो, युद्धाय गन्तुमुत्सुके / / 1246 / / * कवचनामानि के पन्नाहः कङ्कटो' वर्म, तनुत्रं कवच' तथा। दंश श्च दंशनं त्वक्र, तनुत्राण-मुरश्छद:१० // 1250 / / माठि'' श्च जगरो'२ माठो१३, नामानि कवचस्य वै / कूर्पास:' कञ्चुक श्चापि, वारबागो निचोलक.४ // 1251 // भवेदाघातसन्त्राणे, लौह निर्मित वस्तु नि। सारसन'-मधिकाङ्ग 2, ऽधियाङ्ग धियाङ्ग मिति // 1252 / / कञ्चुकोपरि येनाऽसौ, बध्नाति तत्र कथ्यते / शिरखारणं' शिरस्क२ च. शीर्षकं खोल मित्यपि // 1253 / / शीर्षण्यं चेति वै प्रोक्तं, शिरस्त्रे लौह निमिते / . नागोद'-मुदरबारणं, येनोदरस्य रक्षरणम् // 1254 //