________________ 22 सुशीलनाममालायां नभस्यः स्यादिष' श्चाश्वि-युज प्राश्विन उच्यते / . अथ कात्तिकिक: सैरी२, कात्तिक: कौमुद स्तथा // 15 // बहुलो-च नामानि, प्रोक्तानि कोविदः समैः / द्वौ द्वौ मासौ च एकर्तु, मार्गादितः क्रमाद् भवेत् // 152 // हिमागम' स्तु हेमन्तो', रौद्र श्च प्रसल' स्तथा। शेष' स्तु शिशिर श्चव, वसन्त' स्तु बलाङ्गकः२ // 153 // इष्य श्च पुष्पकालस्तु, सुरभिः५ पिकबान्धवः। पुष्पसाधारण श्चाथ, निदाग' ऊष्म ऊष्मकः // 154 // उष्ण ऊष्मायणो ग्रीष्मः, पद्म उष्णागम स्तपः / प्राखोर'० श्चैव वर्षा' तु, मेघागम स्तपात्ययः // 155 // मेघकाल: क्षरी' प्रावृट्प, वरिषा स्तु घनात्ययः / शरद् चैवा ऽयनं' ज्ञेयं, शिशिराद्यै खिभिखिभिः // 156 // उत्तरायण' कालेन, संयुक्त दक्षिणायनम् / स्यादेको वत्सरो' नाम्ना, वर्ष संवत्सरं शरत् // 157 // तथाऽनुवत्सरो ऽब्दं च, हायनः परिवत्सरः। उद्वत्सरः समाः' वत्सः'१, संवत्र च कथ्यते बुधैः // 15 // भवेत् पैत्र' त्वहर्नक्त, मासेनाब्देन दैवतम् / सहस्रयुगले दिव्यः युगैः स्याद् ब्राह्म'मेककम् // 156 // स्थिति-प्रलयकालात्म-कल्पो नरणां तु तत्तथा। एकसप्ततिभि दिव्य, युग मन्वन्तरं' मतम् // 160 //