________________ द्विनीयोदेवविभागः अमावास्या' त्वमावासी२, सूर्येन्दुसङ्गम स्तथा।। अमावस्या च दर्शो ऽमा - मावासी कथिता बुधैः // 143 // सा नष्टेन्दुः कुहुः प्रोक्ता, कुहू 2 श्चापि निगद्यते / सचन्द्रिका सिनीवाली', भूतेष्टा' तु चतुर्दशी // 144 // _* मासनामानि * द्विपक्षौ मास' प्राख्यातः, वर्षकोशोऽपि कथ्यते। वर्षांशकोऽपि मासार्थे, दिनमल श्च प्रयुज्यते // 14 // . * मासभेदः * मार्गशीर्ष' स्सहा: मार्गो, वत्सरादि स्तथा सहः / प्राग्रहायणिक श्चैव, सहस्य' स्तु सहस्यवत् // 146 // पौष स्तैष स्तु माघ'श्च, तफा स्तु फाल्गुन स्तथ।। फल्गुनिक स्तपस्य श्च, फल्गुनाल' स्तपस्यवत् // 147 // चैत्र'स्तु चैत्रिक श्चैव, मधुश्च फाल्गुनानुजः / / कामसख' स्तथा मोह-निक राध' स्तु माधव:२ // 148 / / उच्छर' श्चैव वैशाखे , ज्येष्ठ' स्तु खरकोमल: / मल: शुक्र स्तथा ज्येष्ठा-मूलीयः' खरक स्तथा // 14 // प्रथाऽऽषाढः' शुचि श्चापि, श्रावण' स्तु नभा२ स्तथा। श्रावणिकोऽथ भाद्र' श्च, भाद्र-प्रौष्ठ परः पदः // 150 / /