________________ द्वितीयो देव विभागः 27 मातालः' सारथि स्तस्य, द्वितीयोऽस्ति हयंकष / द्वाःस्थ स्तु देवनन्दो' वै, ऐरावणो' गजः पुनः // 19 // ऐरावतोऽभ्रमातङ्गो, हस्तिमल्लो ऽभ्रमुप्रियः / श्वेतगज श्चतुर्दन्त , तथाऽर्कसोदरो गजः // 16 // वैजयन्त' स्तु प्रासादः, वैजयन्तो' ध्वज स्तथा। पुर्यमरावती' ज्ञेया, नामापरं सुदर्शनम् // 197 // सरो नन्दीसर' स्तस्य, सुधर्मा' तु सभा भवेत् / वनं तु नन्दनं' ज्ञेयं, वृक्षाश्च हरिचन्दनः // 19 // मन्दार: पारिजात श्च, सन्तान श्चापि कल्पकः / धनु वायुधं' ज्ञेयं, तमुजु रोहितं' तथा / / 196 // दीर्घरावतं चैव, स्याद् वज्र त्वशनिः२ स्वरुः / दम्भोलि दिनी' शंव', शतकोटि स्तथा पविः // 20 // शतारः शतधार'० श्च, व्यायामः११ कुलिश स्तथा। भिदु' 3 श्च भिदुरं वज्र-ज्वाला तु अतिभी' भवेत् // 201 // स्फुर्जथु' वज्रनिर्घोषः-पण्डितेन निगद्यते / स्ववॆद्या वश्विनौ दस्रौ , नासिकयौ वडवासुतौ // 202 // नासत्या वाश्विनोपुत्रौ , तथा प्रवरवाहनौ। यमौ नासत्यदस्रौ' वै गदान्तको 1 तथा ऽर्कजो१२॥२३॥ प्रब्धिजौ13 आश्विनेयौ१४ च, ज्ञेयौ यज्ञवहौ'५ तथा / त्वष्टा' तु विश्वकर्मा च, विश्वकृद् देववर्द्धकिः // 204 //