________________ 54 सुशीलनाममालायां मध्यमगतिमन् नृत्यादिकं मध्यं धनं तु वै। .. पुनरनुगतं चेति, कोविदः कथ्यते किल / / 424 // मृदङ्गो' मुरज श्चेति, सोऽङ्कया' लिङ्ग यूवंक विधा / स्याद् यशःपटह' श्चैव, ढक्का भेरी' तु दुन्दुभिः२ // 425 // प्रानक: पटह' श्चाथ दर्दरः कलशीमुखः / ज्ञेयं वै सूत्रकोण' श्च, उमरुकं पुन स्ततः / / 426 // परणवः१ किंकण स्याद् वै, हुडुक्कः 'तालमर्दक:२ / वाजिन्त्रं शृङ्गवाद्यं तु, शृङ्गमुखं तथवै च // 427 // कुहाला काहला' स्याद् वै, चण्डकोलाहला तथा। द्रकट:' द्रगड पश्चापि, स्यात् धूमल स्तथा बलिः 2 / / 428 // क्षुण्णक' क्षणकरे चाथ, स्यात् प्रियवादिका किल / वाजिन्न मर्धतूरं' स्याद्, डिण्डिम' स्टट्टरी तथा // 426 // झर्भर श्च कलापूरः, तिमिला' लम्बिका तथा। वेध्या तथापि मड्डु श्च, ज्ञातव्या किरिकिच्चिका // 430 // अथ स्यात् शारिका' कोणो, वीणादिवादनं किल / * रसनामानि * अथ शृङ्गार'-हास्यौ च, करुणः रौद्र-वीरकौ // 431 // भयानक श्च बीभत्सो -ऽद्भुत-शान्तौ रसाः नव / ज्ञेयाः पुन स्त्रिधा भावाः', स्थायिनः सात्विका स्तथा // 432 / /