________________ द्वितीयो देवविभागः 53 चतुर्विद्या वृत्ति रेषा, काव्य-नाटकयोः स्थिता। तूर्य ' वादिन' मातोद्यं, तूरं वायं५ स्मरध्वजः // 414 // ततं' वीरणादिवाजिन्त्रं, घनं तालादिकं तथा। शुषिरं चादि वंशादि- मानद्धं' दर्दरं तथा // 415 // करट मवनद्धं च, कथ्यते मुरजादिकम् / वीणा' घोषवती' चैव, विपञ्ची कण्ठकूणिका // 416 // वल्लको चाथ तन्त्रीभिः, सप्तभिः परिवादिनी' / अनालम्बी' शिवस्य स्यात्, सरस्वत्या श्च कच्छयो' // 417 // महतो' नारदस्य स्याद् गणानां च प्रभावतो' / बृहती' संज्ञका वीणा, विश्वावसो स्तु कथ्यते // 418 // अथ कलावती' वीणा, तुम्बरस्य हि कथ्यते / चण्डालानां तु डकारी, किनरी बल्लको तथा // 416 // काण्डवीणा कुवीणा वै, चाण्डालिका च खुङ्गाणी / तथा कटोलवीणा वै, सारिका चेति कथ्यते / / 420 // तस्याः कोलम्बक:' काय, उपनाहो' निबन्धनम् / प्रवालः' स्यात् पुनर्दण्डः, ककुभ' स्तु प्रसेवक:२ // 421 // स्यान्मूले कलिका' वंश- शलाका कूणिका' तथा / कालस्य क्रियया मानं, ताल: ' साम्यं लयः' पुनः / / 4.2 // स्याद् शीघ्रगतिमन् नृत्यादिकमघो द्रुतं' किल / स्यान् मन्दगतिमन् नृत्यं, तत्त्वं विलम्बितं खलु // 423 //