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________________ अभिमत OC PARMANAसमयसासाराPREPARAMERAMANEMAMAMANIKPRIMARY परम पूज्य आचार्यदेव श्रीविजयसुशीलसूरीश्वरजी म० सा० द्वारा विरचित 'सुशीलनाममाला' का अवलोकन करने का सौभाग्य प्राप्त हुना। 2448 श्लोकों का यह ग्रन्थ न केवल एक 'शब्द कोष' है अपितु एक ' ज्ञान कोष' भी है। इसके विभिन्न विभागों में जैन साहित्य से संबंधित अनेकों पर्यायवाची शब्दों का उल्लेख है / ग्रन्थ में जैनदर्शन की परंपरानुसार तीर्थंकर, गणधर, यक्ष-यक्षिणी, गत चौविसी, वर्तमान चौविसी, देवलोक,मृत्युलोक आदि का विवरण ज्ञान से परिपूर्ण है / ग्रन्थकार प्राचार्यप्रवर एक सिद्धहस्त लेखक है / साथ ही पाप एक प्रखर व्याख्यानकार एवं वक्ता भी है। आप के छोटे बड़े करीब 56 ग्रन्थ अब तक प्रकाशित हो चुके हैं। बालब्रह्मचारी विद्वान् लेखक अपने निर्मल दीक्षा जीवन के 45 वर्ष पूर्ण कर चुके हैं जिसमें आपने व्याकरण, न्याय, आगम आदि कान च्छा अध्ययन किया हैं जिसका प्रति बिम्ब प्राप द्वारा लिखित ग्रन्थों में दिखाई पड़ता है। गुजरात राज्य में जन्मे लेखक की कर्मभूमि राजस्थान रही है जहाँ आपने अनेकों मंदिरों का जिर्णोद्धार, प्रतिष्ठाएं, नूतन जिनालयों का निर्माण, छेरी पाल संघों का नेतृत्व राशाशाशाशासाशासनाशाशाशाशशशशशशशशायावर
SR No.004481
Book TitleSushil Nammala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandiram
Publication Year1988
Total Pages878
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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