________________ ** AKAKAKAW******************* आज हमारा परम सौभाग्य है कि आप श्री जैसे विविध विद्या विशारद-विद्याव्यासंगो-निस्वार्थ परोपकार परायणसत्कर्तव्यनिष्ठ-लोकोपकार उपयोगी विद्याभ्यासी साहित्य सेवी ने समाज के लिए चिर स्मरणीय विविध साहित्य की सुयशस्वी रचना कर असाधारण उपकार किया है जिसका मूल्य प्रांका नहीं जा सकता। जिसमें विशेषकर साहित्य समुपासक सदा आपके ऋणि रहेंगे। "अभिधान चिंतामणी कोश" जिसमें 1542 श्लोक हो हैं लेकिन आपने कई वर्षों की कठिन साधना के बाद 2848 श्लोकों वाले “सुशीलनाममाला" नामक 6 विभागों में भाजित एक उपयोगी ग्रन्थ की रचना की है। पूज्य आचार्यवर्यने वाङ्मय के विविध विषयों का अवगाहन कर श्लोकों के रुप में रचे गये अमृतमय विशाल साहित्य का सृजन किया है। जिससे विद्यार्थियों, अभ्यासियों, जिज्ञासुओं एवं समाज के लिए एक महान् ज्ञान भंडार प्राप्त होगा। वास्तव में प्राप श्री द्वारा रचा गया विद्वत्तापूर्ण ग्रन्थ "सुशीलनामनाला" संस्कृत प्रेमियों के लिए ज्योति स्वरुप होगा। हमारा प्रापश्री के चरणों में कोटि 2 वंदन स्वीकार होवे। / विनीत सुगन चंद जैन ___B. A, B. Ed. (सा. रत्न) दिनांक 15-6-76 / राजकीय माध्यमिक विद्यालय, नाडोल (पाली), राजस्थान. M