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________________ .. [ 67 ] .. . . शासन सम्राट् प० पू० प्राचार्यदेव श्रीमविजयनेमिसूरीश्वरजी महाराज साहेबे पा कालमां शास्त्रीय पठन पाठननो जे नाद प्रापणी साधु संस्थामां गाजतो कर्यो जेने लइ आगमन्याय-व्याकरण-ज्योतिष-प्राकृत-प्रने साहित्य विगेरेमा प्रकाण्ड विद्वान् साधुवर्ग तेमना शिष्यो प्रशिष्यो अने बीजा समुदायो द्वारा शासन ने सांपड्यो। प्रा शास्त्रीय पठन-पाठनमां हमणां प्रोट प्रावी छे. स प्रने हालमां केटलोक साधुवर्ग दृष्टांतोटूचका-सुभाषितो अने आधुनिक लोकरुचिकर साहित्य तरफ वळवा मांडयो छ। ते काळमां पोताना दादा गुरु अने गुरुना शाखीय वारसाये प० पू० प्राचार्य श्रीमद्विजयसुशीलसूरीश्वरजी महाराजे प्रा 'सुशीलनाममाला' बनावी सारीरीते साचवी राख्यो छे / तेनी प्रतीति करावी छ / वर्तमानकाळमां व्याकरणना विषयमा प० पू० प्राचार्यदेव श्रीमद्विजयलावण्यसूरीश्वरजी महाराज अजोड विद्वान हता। तेमणे तेमना जीवनकाळ दरमियान समग्न व्याकरणग्रंथोना तलस्पर्शी अभ्यास उपरांत सात लाख श्लोक प्रमाण करतां पण अधिक नूतन व्याकरणादि साहित्यनी रचना करी छे अने तेमना पट्टधर शिष्य-प्रशिष्य प० पू० प्रा० श्रीमद्विजयदक्ष- श
SR No.004481
Book TitleSushil Nammala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandiram
Publication Year1988
Total Pages878
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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