________________ [ 23 ] 222222222222222222222 * सम्मति * दत्वा संयमरूपरत्नममलं योऽपीपठत् सर्वदा, स्नेहान्मामुदनीतरत् करुणया संसारकूपस्थितम् / शान्तं शास्त्रविशारदं कविवरं साहित्यरत्नं शुभं, वन्देऽहं स्वगुरु जिनोत्तममुनिः सूरि सुशीलं सदा // 1 // मेरे परमपूज्य प्राचार्य गुरुदेव ! प्रापश्रीने छोटे बड़े 108 ग्रन्थ की रचना की है। इसमें कलिकाल सर्वज्ञ परमपूज्य आचार्यप्रवर श्रीमदहेमचन्द्रसूरीश्वरजी म. सा० विरचित 'श्रीअभिधान चिन्तामणि' कोश के प्रालंबन से स्वनाम से समलंकृत 'सुशील नाममाला' नामक भव्य नव्य कोश की रचना कर विद्वद् समाज पर अनहद उपकार किया है, जो अविस्मरणीय तथा हम लोगों के लिये एक अक्षयनिधि है। क्योंकि जनसाधारणों के लिये द्रव्यकोश तथा शिक्षित समाजों के लिए शब्दकोश का ही परम महत्व माना जाता है। आपश्री की यह असाधारण ज्ञानसाधना साहित्यसाधना बदल आपश्री को हमारा सदैव कोटिशः वन्दन हो। / श्रीमच्चरणकमलचञ्चरिक विजयादशमी / शिशु शिष्य दिनांक जिनोत्तमविजय 21-10-77 श्राहारसूराश्ररजो जन उपाश्रय सिरोही (राजस्थान)