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________________ चतुर्थस्तिर्यविभागः 257 * सैन्धवनामानि ॐ सैन्धवं' माणिबन्धं च, माणिमन्थं च सिन्धुजम् / माणिमन्त' तथा शीत-शिवं चोक्त नदीभवम् // 1598 // ॐ वसुकलवणनामानि ॐ रोमक' ञ्च रुमाभवं', वसूक' वसुकं वसु' / * विडलवणनामानि * . पाक्यं' विडं२ बिडं 3 पक्व लवणं कृत्रिमं भवेत् // 1566 // * सौवर्चलनामानि * सौवर्चले' ऽक्ष दुर्गन्धं 2, रुचक ञ्च शूलनाशनम् / प्रोक्तं तु तिलकं' नाम, निर्गन्धं कृष्णवर्णकम् // 1600 // * यवक्षारनामानि के यवाग्रजो' यवक्षार:२, पाक्य 3 श्च यवनालजः / नामान्येतानि मन्यन्ते, यवक्षारस्य साक्षरः // 1601 // .. . * टङ्कणनामानि * टङ्कण' स्टङ्कनो' लोह-श्लेषणो रसशोधनः / मालतीतीरज' श्चैव, प्रोक्तः पाचनकः पुनः // 1602 //
SR No.004481
Book TitleSushil Nammala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandiram
Publication Year1988
Total Pages878
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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