________________ 220 सुशीलनाममालायां दध्याजं च दधिप्राज्य, कथ्यते पण्डितै जनैः / / बध्ना स्यान् मधुसंपृक्त, मधुपर्क' महोदयः // 1388 // हवित्री' होमकुण्ड२ ञ्च, होमाधारस्थले द्वयम् / हव्यपाक' श्चरु' श्चैव, हव्यान्नेन विरच्यते // 1386 // . अमृतं' यज्ञशेष श्च, यज्ञशिष्टे हि वस्तुनि / विधसो' भृक्तशेषको२, यज्ञे भुङ्क्ते हि योऽधिकम् // 1390 // यज्ञान्ते क्रियते स्नान, यज्ञान्तो' ऽवभृथो हि सः / प्रोक्त पूर्त' पुन प्या,-दोष्ट' तथा मखक्रिया 2 // 1391 // इष्टापूर्त' तु पूर्वोक्त,-मुभयं कथ्यते पुनः / , विष्टरो' बहिर्मुष्टि इच, दर्भासने प्रयुज्यते // 1362 // प्राहिताग्नि' रग्निहोत्री चाऽऽग्न्याहितो ऽग्निचित् तथा। अग्न्याधान' मग्निहोत्र, माऽग्निरक्षण-मित्यपि // 1363 // दर्वी' दवि स्तथैवाऽस्ति, नामेह घृतलेखनी।। महाज्वालो' महावीरो, होमाग्नि श्च प्रवर्गवत् // 1394 // निगणो' होमभस्म श्च, होमधूमे प्रयुज्यते / वैष्टुतं वै होमभस्म, ख्यातं होमजभस्मनि / / 1395 // . प्राचमन' मुपस्पर्शो२, जलेन मुखस्पर्शने। सेक' श्च सेचनं धारो, घृतादे रग्निर्नासचने // 1366 //