________________ तृतीयो मर्त्यविभागः ध्यानयोगासनं ब्रह्मा-सनं ख्यातं महीतले / स्वाध्यायादि क्रियाजातं, ब्रह्मवर्चस' मुच्यते // 1397 // वृताध्ययद्धि' श्चापि, तदेव कथ्यते बुधैः / / ब्रह्माञ्जलि' स्तु वेदस्य, पाठकाले कृताञ्जलिः // 1398 // पाठे स्थान मुखनिष्क्रान्ता, विषो ब्रह्मबिन्दवः / ॐ पारायणनाम है साकल्यवचनं' पारा-यणं' सम्पूर्णवाचने // 1366 // * * कल्पनामानि * क्रमः' कल्पो विधि 3 श्चापि, कल्पसंज्ञा त्रयं भवेत् / प्रङ्गुष्ठमूलं ब्राह्म' स्यात्, तीर्थ कायं' कनिष्ठयोः // 1400 // तर्जन्यङगुष्ठान्तः पित्र्यं', दैवतं त्वगुलीमुखे / हस्तस्य च मध्यमात्रे, सौम्यं तीर्थं निगद्यते // 1401 // ब्रह्मत्वं' ब्रह्मसायुज्यं२, ब्रह्मभूयं च मन्यते / देवत्वं' देवसायुज्यं२, देवभूयं च कथ्यते // 1402 // मूर्खत्वं' मूर्खसायुज्यं२, मूर्खभूयं च मन्यते / ग्रहणं वेदपाठस्य, उपाकरण' मुच्यते // 1403 // स्वाध्याय' श्च जप:२ प्रोक्तो, वेदस्याऽध्ययने किल। प्रौपवस्तं' चौपवखरे,-मुपवस्व तथैव च // 1404 //